31.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 31 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण 732 वां सार -संक्षेप

 श्री गनेस सुमिरन करूं,

  उपजै बुद्धि प्रकास। 


सो चरित्र बरनन करूं,

जासों दारिद नास  l l



प्रस्तुत है अनुयोगकृत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 31 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  732 वां सार -संक्षेप


 1: Spiritual Teacher


(यदि हम संसार के सत्य को समझ लेते हैं तो मृत्यु के समय निराश नहीं होते )


अपनी पत्नी को ज्ञान के सामने धन की महत्त्वहीनता  बताते हुए सुदामा कहते हैं


सिच्छक हौं सिगरे जग के तिय‚ ताको कहां अब देति है सिच्छा।

जे तप कै परलोक सुधारत‚ संपति की तिनके नहि इच्छा।

मेरे हिये हरि के पद–पंकज‚ बार हजार लै देखि परिच्छा

औरन को धन चाहिये बावरि‚ ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा

भिक्षा का अर्थ भीख नहीं है यह मधुकरी अद्भुत है राजा का पुत्र भी मधुकरी मांगने में संकोच नहीं करता था

ऐसा था हमारे यहां का शिक्षा का स्वरूप 



भारतीय संस्कृति के रक्षक आचार्य जी ने भी धन कमाने के लिए कभी शिक्षा नहीं देनी चाही शिक्षक का वर्तमान स्वरूप आपको पीड़ा पहुंचाता है

शिशुपन से गौमुखी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों के सान्निध्य में आपके संस्कार पल्लवित हुए 

आचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य और व्यवहार को शिक्षा में सम्मिलित कर लिया

यह नित्य की सदाचार वेला संघ की शाखा जैसी ही है

परिस्थिति और परिवेश के अनुसार संस्कृति में परिवर्तन संभव है लेकिन संस्कृति संस्कृति ही रहती है


त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्

शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।


राष्ट्र के प्रति हमें निष्ठावान होना ही चाहिए

राष्ट्र -निष्ठा की भावना हमारे अन्तःकरण में जलती रहे संघठन के महत्त्व को समझते हुए संगठित कार्यशक्ति हमारे सनातन धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो ऐसा प्रयास हम करें  कर्मपथ के पंथी आचार्य जी हमसे बार बार यही कहना चाहते हैं

आपके मन में यह भाव लगातार दहकता रहता है

हमारे मन में कायरता नहीं आनी चाहिए गीता में भी यही संदेश है सफलता के लिए युद्ध भी आवश्यक है अपनी आत्मज्योति जाग्रत करें और ज्योति को ज्वाला बना दें




इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई 


हूं कर्मपथ का पंथी फिर अपनी परिभाषा क्या......

आचार्य जी ने लगभग बीस वर्ष पहले यह कविता लिखी थी

श्री ठाकुर साहब और एक अभिभावक से संबन्धित क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

30.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण *731 वां* सार -संक्षेप

 प्रभा प्रकीर्ण हो रही निशा विदीर्ण रो रही

करो मनस्मरण कि शक्ति शौर्य युक्त हो रही।


प्रस्तुत है हारीत -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 30 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *731 वां* सार -संक्षेप


 1: हारीतः =धूर्त



प्रेम, आत्मीयता, परिवार- भाव अपनी शक्ति का संवर्धन करता है काल्पनिक समस्याओं को भुला देता है मन प्रसन्न कर देता है आनन्दमयी वातावरण निर्मित कर देता है इसलिए हमारे यहां समूह, संगठन महत्त्वपूर्ण है


शरीर मन बुद्धि विचार आदि का संयुक्त चिन्तन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इसकी महत्ता को हमने जितना समझा है वह अन्य किसी देश ने नहीं समझा है  हमारे यहां इसके चिन्तन के साथ इसके व्यावहारिक स्वरूप की प्रस्तुति अद्भुत रही है

आइये आज हम प्रेम आत्मीयता श्रद्धा परिवार- भाव आदि सद्गुणों को ग्रहण करने का संकल्प लें क्योंकि प्रेम के अभाव में समस्याएं और अधिक ऊर्ध्वगामी हो जाती हैं, अपने विचारों को स्थिर बनाएं, भय और भ्रम का त्याग करें,दुरध्व पर चलने से बचें सुकृत्यों का पवित्र उद्यान बनाकर धनदौलत की वृद्धि करें

ज्ञान कर्म उपासना के त्रिकोण के महत्त्व को समझें 

शान्ति और सद्व्यवहार का वातावरण निर्मित करें 

सामाजिक ढांचे को मजबूत करें 

इसी ढांचे को तुलसीदास जी ने  प्रेम के प्रवाह मानस में मजबूत किया है जिसे उस समय की परिस्थितियों से संयुत कर यह संकेत दिया कि संगठन महत्त्वपूर्ण है आपसी मतभेदों को भुलाना अनिवार्य है क्योंकि दुष्ट अकबर के कारण  अपना धर्म सुरक्षित नहीं है 

मां कैकेयी द्वारा परिवार विखंडन की बाध्यता एक अलग विषय है लेकिन जो उन्होंने वरदान मांगे



होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं।

मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं॥33॥


यदि प्रातःकाल होते ही मुनि का वेष धारण कर  राम वन को नहीं जाते हैं तो   समझ लीजिए कि मेरा मरना निश्चित है जिससे आपका अपयश ही होगा




भरत राजमुकुट धारण कर प्रसन्न होंगे लेकिन


चहत न भरत भूपतहि भोरें।


भरत भरत हैं तुलसीदास जी बहुत सी वृत्तियों के साथ भरत के भीतर प्रविष्ट हो गए हैं

भरत राम जी को वापस लाने का संकल्प ले लेते हैं

भरत -निषाद मिलन में


करत दंडवत देखि तेहि भरत लीन्ह उर लाइ।

मनहुँ लखन सन भेंट भइ प्रेमु न हृदयँ समाइ॥193॥


देवता अच्छे काम की सराहना करते ही हैं इसलिये सत्कर्म हमारे लिए आवश्यक हैं

मानस में उठे हरेक विषय की गहराई में हम लोग जाने का प्रयास करें

तुलसीदास जी कथा में क्या कहना चाहते थे और सिद्धान्त में क्या कहना चाहते थे

उलझनों में यदि हम हैं तो मानस का पाठ करें समस्याएं सुलझती चली जाएंगी 

संसार से विदा होने वाले मार्ग पर जब हम चलते हैं तो हमारा स्वभाव भिन्न हो जाता है 

इसके अतिरिक्त भैया अरविन्द जी, करपात्री जी, सुदर्शन चक्र जी का नाम क्यों आया हेलिन चाची कौन थीं आदि जानने के लिए सुनें

29.7.23

औजस्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण 730 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है औजस्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 29 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  730 वां सार -संक्षेप

(सार -संक्षेप के दो वर्ष पूर्ण )

1 : बल और स्फूर्ति का संचारक


भगवान की अत्यन्त कृपा है कि एक बहुत अच्छा कार्य इस सदाचार संप्रेषण के रूप में चल रहा है जो हमारे भय और भ्रम का निवारण करने में सक्षम है हमें सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करता है मनुष्यत्व  की अनुभूति कराता है राष्ट्र के  प्रति निष्ठावान बने रहने का हौसला देता है समाज के प्रति कर्तव्य की याद दिलाता है बाह्य परिस्थितियों से व्याकुल न होने की हिम्मत देता है कभी कालनेमियों से जूझने तो कभी कालनेमियों की उपेक्षा करने की प्रेरणा देता है

 हमें शक्तिमय बनाना उत्सहित करना संगठित रहने की आशा देना इसका उद्देश्य है  यह बार बार हमें अपने लक्ष्य अखंड हिन्दू राष्ट्र की याद दिलाता है 

यह अवचेतन मन की शक्ति की पहचान कराता है 

अवचेतन मन की शक्ति बताने के लिए आचार्य जी करपात्री जी महाराज का उदाहरण दे रहे हैं 

अद्भुत सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,दशनामी परम्परा के संन्यासी,परम विद्वान, ज्ञान -विग्रह शिवोपासक 

धर्मसम्राट स्वामी करपात्री (करपात्री = हाथ ही बर्तन हैं जिसके) (१९०७ - १९८२)    मूल नाम हरि नारायण ओझा   दीक्षोपरान्त  नाम 'हरिहरानन्द सरस्वती'

अस्वस्थ हो गए उनका पूजा का इतना अधिक अभ्यास था कि बेहोशी की हालत में भी शिवार्चन के समय उनका दाहिना हाथ जल   चढ़ाने के लिए उठ जाता था

ऐसी होती है अवचेतन मन की शक्ति



हम भी अपने अवचेतन मन की शक्ति को पहचाने

हमने  इस  पवित्र धरती पर जन्म लिया है

यहां की गंगामयी यज्ञमयी संस्कृति अद्भुत है

हम संयम के साथ अपनी शक्ति जगाएं

संयम न होने पर व्याकुलता की वृद्धि होती है

संयम का व्यापक अर्थ है उसे भांपना और उसका समय पर सदुपयोग करना


भगवान् राम घोर युद्ध में संलग्न हैं भक्त विभीषण साथ में है  भगवान राम ने दुविधाग्रस्त विभीषण को धर्मरथ अर्थात् रामगीता का उपदेश दिया है


रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥

अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥


रावण रथ पर और श्री राम को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया कि बिना रथ के रावण को  मेरे प्रभु कैसे जीत सकेंगे


अविश्वास हमें हानि पहुंचाता है

उस लंका कांड की हम आज के वैचारिक प्रजातांत्रिक युद्ध से तुलना कर सकते हैं

प्रेम और संदेह के कारण हमारा कार्य प्रायः बाधित होता है

धर्मरथ  जीवन में अभ्यास में लाने के लिए है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा जी एन वाजपेयी,जी डा संकटा प्रसाद जी,कैप्ट. शिवेन्द्र सिंह, गुरु जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

28.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण 729 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है षट्प्रज्ञ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 28 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  729 वां सार -संक्षेप

1 : जो छः विषयों अर्थात् चार पुरुषार्थ लोकप्रकृति ब्रह्मप्रकृति से सुपरिचित हो




इन सदाचार संप्रेषणों अर्थात् आर्ष परम्परा की कथाओं के माध्यम से आर्ष परम्परा को विस्तार देते हुए आचार्य जी हमें संकेत     यत् स्वल्पमपि तद्बहु    करते हैं कि हम आत्मबोध जाग्रत रखें आत्मविश्वासी बने रहें अपनी परम्पराओं और आदर्श सिद्धान्तों का अनुसरण करें

और सात्विक चिन्तन को व्यक्त करते, व्यवहार और सिद्धान्त के समन्वय को दर्शाते अपने आधार ग्रंथों का अध्ययन अवश्य करें


आज के समय में भी इस प्रकार के ग्रंथों को रचने वाले  अपने यहां बहुत सारे रचनाकार हैं लेकिन वे चर्चित नहीं हैं

जो चर्चित हैं वे तो अपना प्रचार कर हमें लाभ पहुंचा ही रहे हैं लेकिन जो एकांत में बैठे हुए हैं उनके तत्व से पूर्ण गहन चिन्तन को प्राप्त करने की  भी हमें चेष्टा करनी चाहिए


हमें गहराई और विस्तार दोनों से संपर्कित रहना है

श्रीराम की कथा अत्यन्त तत्वपूर्ण और गूढ़ है


बालकांड में बहुत से विचार हैं  व्यवहार हैं कथाओं के संकेत हैं तुलसीदास जी ने अयोध्या कांड में कथा का सूत्र    पकड़ लिया और उस कथा को एक ऊंचाई पर पहुंचा दिया


धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी॥

पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू॥3॥



धर्मधुरीण प्रभु रामजी ने धर्म की गति को जानकर माता से अत्यंत कोमल वाणी में कहा- हे माता! पिताजी ने मुझको वन का राज्य दिया है, जहाँ हर तरह से मेरा  बहुत बड़ा काम बनने वाला है


यह भारतवर्ष का आदर्श उदाहरण है


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥

यह हमारा सिद्धान्त सूत्र है निशाचर अपना रूप बदल बदल कर भारतभूमि को दूषित करते रहे हैं 

और इनसे हमारा संघर्ष हमारा कर्म है हमारा धर्म है 

भरत जी महाराज का खड़ाऊं  वाला प्रसंग अद्भुत है ऐसी आदर्श रही है हमारी परम्परा


भगवान् राम ने आर्ष परम्परा का सम्मान करते हुए अपना उद्देश्य पूरा किया

आर्ष परम्परा व्यवस्था के संशोधन की परम्परा है


साधुशीलवान् अंग के अत्यन्त दुष्ट पुत्र वेन के अत्याचारों से तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से  उसे मार डाला था।


आर्ष परम्परा चिन्तन को गहराई  और विस्तार देती है

इसे विस्मृत करने पर हम मार्गान्तरित हो गये और हमारा विस्तार संकुचित हो गया 


लेकिन हमें इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए आज भी अनेक लोग साधनारत हैं

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म आज की आवश्यकता है हमें आज भी अस्त्र,शस्त्र और बाहुबल की आवश्यकता है

सही दिशा में अपना संघर्ष जारी रखें

इसके अतिरिक्त मोहब्बत की दुकान से भ्रमित न होने का आशय क्या है डा सैफ़ुद्दीन जिलानी कौन हैं भोजनालय में चार दिन कौन रहा था सरभंगा का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

27.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण 728 वां सार -संक्षेप

 साधु समाज न जाकर लेखा। राम भगत महुँ जासु न रेखा॥

जायँ जिअत जग सो महि भारू। जननी जौबन बिटप कुठारू॥4॥


प्रस्तुत है हितान्वेषिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 27 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  728 वां सार -संक्षेप

1 : कुशलाभिलाषी



इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना


किन्तु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं ।


 महाकवि जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी १८८९ – १५ नवंबर १९३७)की यह कविता मनुष्य को साहसिक अभियान पर चलने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य को मनुष्यत्व का अनुभव करने की प्रेरणा देती है l

जीवन एक लम्बी यात्रा है लेकिन यदि यह सुखद हो निरापद हो आनन्दमयी हो तो यह बात अलग है 

निर्विघ्न यात्रा के लिए हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आश्रय लेना होगा और इसके लिए  बलशाली लोगों के एक मजबूत संगठन की आवश्यकता है जिसका इतना भय हो कि दुश्मन आंख उठाने से पहले एक बार सोचे और वह आक्रमण करे विघ्न डाले तो हम उसको परास्त कर दें समस्याएं आती रहती हैं लेकिन हमारे पास समाधान भी रहते हैं समस्या न सुलझे तो व्याकुल नहीं होना चाहिए हमें आशान्वित रहना चाहिए 

यात्रा के   पड़ावों के मंगल आयोजन होने चाहिए

मानस में व्याकुलता के पश्चात् भरत जी महाराज ने एक यात्रा का आयोजन किया है  उनके मित्र निषादराज शंकाग्रस्त हैं


जानहिं सानुज रामहि मारी। करउँ अकंटक राजु सुखारी॥

भरत न राजनीति उर आनी। तब कलंकु अब जीवन हानी॥3॥

और कहते हैं


राम प्रताप नाथ बल तोरे। करहिं कटकु बिनु भट बिनु घोरे॥

जीवन पाउ न पाछें धरहीं। रुंड मुंडमय मेदिनि करहीं॥1॥

भगवान् रामजी के प्रताप से और आपके बल से हम लोग भरत की सेना को बिना वीर और बिना घोड़े की कर देंगे । जीते जी पीछे पाँव न रखेंगे। पृथ्वी को सिर और धड़ से सजा देंगे l




ऐसा हौसला हम सबको रखना चाहिए  हमारे अन्दर भी अद्भुत विचार आ सकते हैं और हम   बड़े से बड़े काम कर सकते हैं इस ईश्वरीय लीला का अनुभव हम भी कर सकते हैं और इस पर विश्वास करें तो यह प्रतिफलित भी होती है

निषादराज को पता चलता है कि भरत तो श्री रामचन्द्रजी को मनाने जा रहे हैं।

और 

दण्डवत करते देखकर भरत जी  महाराज ने उठाकर उसको छाती से लगा लिया। जैसे स्वयं लक्ष्मण जी से भेंट हो गई हो


ये द्रवित करने वाले प्रसंग हैं

ये हमें  यदि द्रवित कर देते हैं तो इसका अर्थ है मानस हमारे अंदर प्रवेश कर रहा है

इसी कथा का विस्तार करते हुए आचार्य जी कहते हैं भक्त भगवान् से कम नहीं है भक्त और भगवान् जब एक हो जाते हैं तो भक्ति की रचना होती है

हमारे क्रान्तिकारियों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने भारत की भक्ति की

जैसे भरत के मन में राम हैं ऐसे ही इन क्रान्तिकारियों के मन में भारत समाया था जैसे चन्द्रशेखर आजाद शौर्यप्रमंडित अध्यात्म का एक ज्वलंत उदाहरण

ऐसे महापुरुष भारत की धरती पर थे हैं और आगे भी रहेंगे


अखंड भारत का संकल्प हमारा रहेगा ही

हम नित्य अपनी समीक्षा करें

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार। 


रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया नीरज जी भैया अमित अग्रवाल जी का नाम क्यों लिया खली का नाम क्यों आया आदि जानने के लिए सुनें

26.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26 जुलाई 2023 का सदाचार संप्रेषण 727 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है वैनयिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 26 जुलाई 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  727 वां सार -संक्षेप

1 : शिष्टाचार का व्यवहार करने वाला


आचार्य जी लेखन योग का महत्त्व बताते हुए कहते हैं लिखे हुए अक्षर मां सरस्वती की मूर्तियां हैं हमें इनकी पूजा करनी चाहिए 



लिखो लिखते रहो लिखना भावना का यजन है

मनस का संकल्प श्रुति युत भारती का भजन है 

लिखा जो कुछ गया वह इतिहास है 

आज का लेखन मधुर मधुमास है

और भावी लेख सुष्ठु प्रयास है 

लिखे कागज अमित दस्तावेज हैं

और अलिखित सभी सादे पेज हैं


वाणी की अभिव्यक्ति की तरह लेखन की अभिव्यक्ति भी अद्भुत है लिखा हुआ तत्काल काम में आता है श्रुतियां लेखन में आईं तो इनके विभिन्न स्वरूप हुए  श्रुति स्मृति बनी स्मृति उपनिषद् बने



इन्हीं उपनिषदों में एक है छान्दोग्य उपनिषद्

इसके नाम के अनुरूप ही इस उपनिषद का आधार छन्द है। छन्द साहित्यिक पद्य रचना के प्रकार तक ही सीमित न होकर  व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है

छन्द का अर्थ है आच्छादित करने वाला


कवि जिस सत्य का साक्षात्कार करने का प्रयास करता है, उस सत्य को हृदयंगम करने के लिए   छन्द का प्रयोग करता है।

 वह सत्य या भाव जिन अक्षरों, पदों, स्वरों आदि से आच्छादित होता है, वे सब उस छन्द के अंग उपांग होते हैं।

इस उपनिषद् की भूमिका के अनुसार 

नारद जी सनत्कुमार के पास आत्मज्ञान की जिज्ञासा लेकर पहुंचे हैं

आत्मज्ञान अद्भुत है नारद जी जो जानते थे वह सब बता दिया बहुत सारी विद्याएं जानने के बाद भी नारद जी को शान्ति नहीं मिल रही थी उसी का समाधान वे चाहते थे 

सनत्कुमार ने उन्हें उदाहरण देकर समझाया



कलियुग के आधार हनुमान जी हम लोगों को प्रेरित करते रहते हैं कि हम राष्ट्र सेवा के लिए प्रयत्नशील रहें जिस तरह हेडगेवार जी दीनदयाल जी गुरुगोविन्द सिंह विवेकानन्द सुभाषचन्द्र बोस चन्द्रशेखर आजाद भगत सिंह राष्ट्र सेवा करते रहे


हाल में इस संसार का त्याग करने वाले देशभक्ति के विग्रह और कर्मठ कौशल के प्रतीक श्रद्धेय मदनदास जी भी राष्ट्र सेवा करते रहे यह तो बहुत लम्बी फेहरिस्त है


हम लोग प्रतिदिन इस बात की समीक्षा करें कि आज समाजसेवा राष्ट्रसेवा के लिए क्या किया और उसे लिख लें

राष्ट्र हमें पुकार रहा है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अनिल महाजन का नाम क्यों लिया एक संन्यासी का व्रण वाला क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

25.7.23

 हम उत्तम अवसरों की प्रतीक्षा न करें अपितु साधारण समय को ही उत्तम अवसर में परिवर्तित करने के लिए प्रयत्नशील 

रहें व्यक्ति से व्यक्तित्व बनने का मौका न गवाएं क्योंकि व्यक्तित्व बनने पर व्यक्ति की क्षमताएं योग्यताएं संयम कर्मशीलता दिखने लगती है 

यह अति महत्त्वपूर्ण असामान्य सदाचार संप्रेषण भी ऐसा ही एक सुअवसर

GOLD IN THEM THAR HILLS है शिशुपन के भाव से उत्थित होने का अवसर है

हम भी सागर पर पत्थर तैराने की क्षमता रखते हैं यह बताने का मार्ग है 



प्रस्तुत है हित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 25-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 


  726 वां सार -संक्षेप

1 : परोपकारी

प्रायः हम सभी भ्रमित रहते हैं भय से ग्रसित रहते हैं सफलता हेतु सभी प्रयास करते हैं विफलता में विलाप करते हैं 


किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़


कठोपनिषद् में गौतम ऋषि के पुत्र नचिकेता का मृत्यु के देवता यम के साथ संवाद चल रहा है ।  यम नचिकेता

 को  सृष्टि के अंतिम सत्य परमात्मतत्त्व के बारे में बता रहे हैं l परमात्मा तो ऐसा है


जो न शब्द है, न स्पर्श और न रूप , जो अव्यय है  लेकिन जिसमें न  रस है  न  गन्ध है, जो नित्य , अनादि, अनन्त है, 'महान् आत्मतत्त्व' से भी परे है, ध्रुव है उसका दर्शन करके मृत्यु के मुख से मुक्ति मिल जाती है।



अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत्‌।

अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात्‌ प्रमुच्यते ॥

इसलिए 

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)



उठो, जागो, और ज्ञानी श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान की प्राप्ति करो विद्वानों  का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी तरह दुर्गम है जिस प्रकार छुरे की पैनी धार पर चलना



,, आती हैं लेकिन हमें विचलित नहीं होना चाहिए

हम सभी क्षमतावान हैं

जब हनुमान  और अंगद लङ्का में दुबारा जाते हैं


अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा। कीन्ह दुर्ग अस कह अवधेसा॥

लंकाँ द्वौ कपि सोहहिं कैसें। मथहिं सिंधु दुइ मंदर जैसें॥4॥

तो राक्षसों ने प्रदोष  काल का बल पाकर रावण की दुहाई देते हुए उन पर धावा बोल दिया

दोनों दल हार नहीं मान रहे थे

 इसे हम आज की परिस्थितियों से संयुत कर लें

किसी के कुछ करने का इन्तजार न करें स्वयं आगे आएं चुनाव आने वाले हैं अपने विचारों से भ्रमित जनता का भ्रम दूर करें


इसके बाद लक्ष्मण जी को शक्ति लगती है तो हम हनुमान जी की क्षमता देखते हैं हम उन्हीं  अतुलित बल वाले हनुमान जी के भक्त हैं हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए

हम अपनी छुपी हुई क्षमताओं को बाहर निकालें 

यह सब तब होगा जब हमारा खानपान संगति व्यवहार आदि सही होगा अस्ताचल देशों के कारण भ्रमित हुए समूह को देखकर हम उनकी नकल न करें न ये कहें आज की society ऐसी है


अपने मनुष्यत्व को पहचानें

हम प्राचीन काल में ही प्रगति कर चुके थे आज के विज्ञान से भी अधिक उन्नत विज्ञान था हमारा

आत्मबोध का उत्सव मनाने के लिए तैयार हों

संगठित होने का प्रयास करें

विचारों पर कार्यान्वयन करें आगे के पांच दस साल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं


अमरत्व के पुजारी हम पुत्र इस धरा के

उज्ज्वल हमीं करेंगे भवितव्य मातृ भू के


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रदीप सिंह का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

24.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है कल्याणधर्मन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 24-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 


  *725 वां* सार -संक्षेप

1 : गुणसम्पन्न


यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का 

चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है



देवों और असुरों के बीच संग्राम लगातार चल रहा है


दुष्ट अपने स्वभाव के अनुसार  दुष्टता करते हैं 

हमारा स्वभाव इन दुष्ट लोगों से भिन्न है हम दैवीय शक्तियों के संवर्धन का प्रयास लगातार करते हैं हमारा परिवेश भी इसी तरह का रहता है आचार्य जी की  प्रेरित और प्रभावित करने वाली वाचिक वार्ता  द्वारा हम आत्मबोध -कल्याण मनाने के लिए तैयार हो रहे हैं

दुष्टों से संघर्ष में विजय का भाव हम अवतारी राष्ट्र भक्तों में होना चाहिए और भारत की संस्कृति की रक्षा के लिए तत्पर रहते हुए हम लोगों का यह प्रयास भी होना चाहिए कि हम अपना प्रकाश    अंधकार में भटकने के लिए विवश की गई नई पीढ़ी को भी दें और उसे कुचक्रों से बचाएं

मानस अद्भुत है 

भगवान राम हमें प्रेरित करते रहते हैं वे नीति की रक्षा करते रहते हैं 


सब कुछ जानने वाले, सबके हृदय में निवास करने वाले, मनुष्य के रूप में लीला करने वाले तथा राक्षसों  का नाश करने वाले प्रभु रामजी नीति की रक्षा करने वाले वचन बोले


सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥

संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँति॥3॥





इस पर लंकापति विभीषण जी ने कहा- प्रभु सुनिए, यद्यपि आपका एक बाण ही करोड़ों समुद्रों को सोखने वाला है सोख सकता है, तथापि उचित यह होगा कि पहले समुद्र से प्रार्थना की जाए

सखा कही तुम्ह नीति उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई।

मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दु:ख पावा॥1॥


यह मन्त्रणा लक्ष्मण जी  को अच्छी नहीं लगी

दुःखी हुए लेकिन लक्ष्मण जी द्वारा उत्तेजित करने पर भी राम जी हंसकर बोले


 ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥

अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई॥3॥


कवितावली के कुछ रोचक पदों का उल्लेख करते हुए आचार्य जी कहते हैं कि राम जी ने बहुत सी विषम परिस्थितियों का सामना किया लेकिन अपने लक्ष्य से डिगे नहीं हम ऐसे राम के भक्त हैं


हम भी विषम परिस्थितियों के आने पर अपने लक्ष्य से डिगें नहीं हम अपनी साधना से डिगें नहीं

साधकों को विजय मिलती ही है

विकट परिस्थिति आने पर रूप बदल सकते हैं भाव नहीं बदलें

हम जिस परंपरा के वारिस हैं वो बहुत महान है भारतभूमि महान है यह भाव हृदय से निकलना चाहिए

विश्वास रखें

हम युगभारती संगठन के सदस्य हैं हम आपस में विद्वेष न रखें एक दूसरे का ख्याल रखें जिन जिन जगहों पर सुधार की आवश्यकता है उन्हें देखें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वाराणसी में होने वाली बैठक के लिए क्या कहा भैया अमित अग्रवाल जी का उल्लेख क्यों हुआ सन् 1974,1975,1976 के कुछ प्रसंग क्या थे जानने के लिए सुनें

23.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 हमारा अपना शरीर  हमारा संसार है हमें बहुत प्रिय लगता है लेकिन किसी शरीर से जैसे ही प्राण निकलते हैं तो वह प्रिय  नहीं लगता है......




प्रस्तुत है ओजस्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 23-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 


  *724 वां* सार -संक्षेप

1 : शक्तिशाली




यह सदाचार संप्रेषण आत्मबोध का उत्सव है यह एक ऐसा विलक्षण लक्ष्य है जो हम मनुष्यों को मनुष्यत्व का बोध कराता है हमें चिन्तन मनन निदिध्यासन लेखन ध्यान धारणा के लिए प्रेरित करता है हमारा सर्वाङ्गीण विकास करता है हमें यह बताता है कि मनुष्य का जीवन कितना महत्त्वपूर्ण है

 संस्कारी परिवार परिवेश विद्यालय संस्थान की तरह ये हमारा उत्थान करता है हमें संस्कारवान बनाता है

प्रतिदिन का यह संप्रेषण हमारे भावों का विस्तार कर इस असार नाशवान संसार के तात्विक पक्ष को उजागर करने लगा है

हममें से बहुत से लोग जब अपने लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं तो उनकी सूची में इसका श्रवण एक अनिवार्य अति महत्त्वपूर्ण लक्ष्य हो जाता है


आइये परमात्मतत्व की अनुभूति करें हम अनुभूति करें कि हम सब परमात्मा के अंश हैं दम्भरहित बनें

पुण्यात्मा कृतज्ञ गुणवान बनें दैहिक दैविक भौतिक ताप हमें न व्यापे परस्पर प्रेम से रहें एक दूसरे की खींचातानी में समय व्यर्थ न करें इस देश जिसका देवता भी गुणगान करते हैं जो विश्वगुरु बना था के अस्तित्व को बचाने का संगठित प्रयास करें

जिस तरह से रामराज्य में किसी को  त्रिताप नहीं व्याप रहे थे एक दूसरे से प्रेम कर रहे थे

हाथी और सिंह वैर भूलकर एक साथ रह रहे थे


फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग गज पंचानन॥

खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई॥1॥

चिदानन्द रूप के संसारी रूप में आने पर यह रामराज्य संभव हुआ

वह तत्त्व अवतारी होकर हमारे बीच रहने लगा

भगवान राम ने अद्वितीय महान उद्यम किया


 ३ अगस्त १८८६ को पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में जन्मे मैथिली शरण गुप्त साकेत में लिखते हैं 



राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या?


विश्व में रमे हुए नहीं सभी कही हो क्या?


तब मैं निरीश्वर हूँ, ईश्वर क्षमा करे,


तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे ।


इसके अतिरिक्त उर्मिला मांडवी आदि पात्रों पर ध्यान देने के लिए किसने कहा पतले ईंटे का दीनदयाल जी से संबन्धित क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

22.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है पुण्योद्यान ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 22-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 


  723 वां सार -संक्षेप

1 : सुन्दर उद्यान रखने वाला

(युगभारती रूपी सुन्दर उद्यान जिसके पुष्प स्थान स्थान पर अपनी सुगंध फैला रहे हैं कोई यज्ञ करवा रहा है कोई संगठन को मजबूत कर रहा है कोई समन्वय स्थापित करते सद्विचार प्रेषित कर रहा है कोई समाज सेवा कर परोपकार रहा है )



कविश्रेष्ठ दार्शनिक लोकनायक तुलसीदास जी के साहित्य में समन्वय का विराट् भाव परिलक्षित होता है

उनके समय में काशी में शैव वैष्णव के बीच का संघर्ष देश को हानि पहुंचा रहा था

और उनके बीच उन्होंने समन्वय स्थापित करने के लिए भरपूर प्रयास किया

यह चौपाई देखिए



जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत बिश्रामा॥

कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरे। असि परतीति तजहु जनि भोरे॥



भगवान ने कहा  जाकर शंकर के शतनाम का जप करो,  हृदय में तुरंत शांति स्थापित होगी। शिव की तरह  तो मुझे कोई भी प्रिय नहीं है, इस विश्वास को भूलकर भी न त्यागना


प्रभु राम जी की कथा को शिव जी के मुख से कहलवाना उनके स्पष्ट लक्ष्य को दर्शाता है


सिव द्रोही मम दास कहावा।

सो नर सपनेहुं मोहि नहिं पावा।।


इसी प्रकार जब हम एक लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं तो हमें विवादों में प्रवेश नहीं करना चाहिए दुष्ट इसका लाभ उठा लेते हैं इतिहास में ऐसा होता आया है

हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

देश इस समय गम्भीर संकट में है इसलिए विवादों में हम अपना समय नष्ट न करें

आगामी चुनाव में अपनी भूमिका स्पष्ट रखें राष्ट्रोचित भाव रखें कालनेमियों से सावधान रहते हुए वास्तविक राष्ट्रभक्तों का साथ दें मुष्टीमुष्टि नखानखि न कर एक साथ आ जाएं 



कोई भी सदाचारमय विचार लक्ष्यविहीन नहीं होता समय ऐसा है परिस्थितियां ऐसी हैं कि 

उन्मार्गगामी होना बहुत आसान है और जब अस्ताचल देशों का फैलाया भ्रम, विषाक्त प्रभाव डालने वाला शैक्षिक विकार साथ हो तो यह और आसान हो जाता है

षड्विकारों से ग्रस्त होने पर मनुष्य को अपनी बात ही सही लगती है 

आचार्य जी का नित्य यही प्रयास रहता है कि हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर  सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करें हमें जाग्रत करने का उनका स्पष्ट लक्ष्य है

ईश्वर से हम लोग प्रार्थना करें कि उनका यह प्रयास अनवरत चलता रहे

त्रेतायुग से लेकर आज तक मार्गदर्शक संरक्षक हनुमान जी एक लक्ष्य को लेकर सन्नद्ध हैं भारत वर्ष की प्राणिक ऊर्जा को संरक्षित सुरक्षित रखने का

माध्यम बन जाते हैं ऋषि तपस्वी समझदार पुरुष सदाचारी नेतृत्वकर्ता संस्थाएं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नारद मोह प्रसंग के बारे में क्या बताया कितने आम खराब हो गए आदि जानने के लिए सुनें

21.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 खुला शम्भु का नेत्र आज फिर वह प्रलयंकर जागा 

तांडव की वह लपटें जागी वह शिवशंकर जागा

तालताल पर होता जाता पापों का अवसान॥


ऊपर हिम से ढकी खड़ी हैं वे पर्वत मालाएँ

सुलग रही हैं भीतर-भीतर प्रलयंकर ज्वालाएँ

उन लपटों में दीख रहा है भारत का उत्थान॥


प्रस्तुत है ऐश्वर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 21-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 


  722 वां सार -संक्षेप

1 : शक्तिशाली




केरा तबहि न चेतिया, जब ढिंग लागी बेर |

                अब के चेते का भयों, जब काटनि लीन्ही घेर ।।

संदेश बहुत स्पष्ट है हमें सचेत हो जाना चाहिए

देश की स्थिति गंभीर है | सन् 2024 के आम चुनाव हेतु हमें अपनी भूमिका को पहचानना है कम से कम दो माह के लिए संकल्पित होकर उस भीड़ वाले वर्ग को जाग्रत करना होगा जो बहुत जल्दी प्रलोभनों में आकर  अपना वोट झोंक आता है। दुष्टों से हमें सचेत रहना है। । दुष्टों से सामना करने के लिए हमें सशक्त बनना होगा | आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारे अन्दर अग्निस्वरूपा उत्साह आए | 

रामचरित मानस का भी संदेश बहुत स्पष्ट है श्री राम ने जो संकल्प किया कि निसिचर हीन करउं महि .. उसे पूरा करके ही राज्य करने बैठे 

 क्योंकि ऋषियों की  अंतड़ियों का रावण लहू चूस रहा था


आज भी बहुत से रावण लहू चूस रहे हैं 

देश के सात्विक स्वभाव संयम श्रद्धा विश्वास को नष्ट करने का जो कुत्सित प्रयास चल रहा है हमें उससे सचेत रहना है

जब सशक्त नेतृत्व होता है तब विषमता खोती है


बयरु न कर काहू सन कोई / राम प्रताप बिषमता खोई।।

नरेन्द्र मोदी जी के रूप में हमें ऐसा ही सशक्त नेतृत्व मिला है 

भारतीय नेतृत्वकर्ता को खाद्याखाद्य दिवेक ( अगर जीवन अपवित्र है तो चिन्तन कैसे महान हो सकता है), संयम, स्वाध्याय,सेवा , शौर्य की साधना और अध्यात्म पर विश्वास आदि गुणों के आधार पर परखा जाना चाहिए नरेंद्र मोदी जी इस पर खरे उतरते  हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसा नेतृत्व मिला है हमे आगे भी इन्हें ही कमान सौंपने के लिए कटिबद्ध होना है

लेकिन अकेले वे ही संघर्ष करते रहेंगे तो संकट आ जायेगा इसलिए हमें अपनी भूमिका देखनी है इस गम्भीर युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए विश्वामित्र वाल्मीकि अगस्त्य हनुमान   गरुड़ आदि सभी की आवश्यकता है

नित्य विचार चिन्तन स्वाध्याय  अध्ययन करें

शौर्य शक्ति का वरण करें शौर्य शक्ति प्राप्त करने के लिए साधना की आवश्यकता है

भारत के अखंड स्वरूप का चिन्तन करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने


को छूट्यो इहि जाल परि, कत कुरंग अकुलात

                ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चहत, त्यों-त्यों उरझत जात

किस प्रसंग में कहा जानने के लिए सुनें

20.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है एनस्वत् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 20-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 


  721 वां सार -संक्षेप

1 : एनस्वत् =दुष्ट


अत्यन्त व्यस्त होते हुए आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय हमें देते हैं हम अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं

हम आनन्द की प्राप्ति के लिए उनसे सदाचारमय विचार ग्रहण कर रहे हैं

आचार्य जी आज रामाज्ञा प्रश्न की चर्चा कर रहे हैं जिसके आधार पर आचार्य जी ने कई विचार किए हैं और वे सही भी निकले हैं




रामाज्ञा प्रश्न  तुलसीदास  जी की एक ऐसी रचना है, जो शुभ और अशुभ फल विचार हेतु रची गयी है सात-सात सप्तकों के सात सर्गों हेतु पुस्तक देखने पर जो दोहा मिलता है, उसके पूर्वार्द्ध में राम-कथा का कोई प्रसंग आता है और उत्तरार्ध में शुभाशुभ फल।

 कथा की दृष्टि से यह मानस से कुछ  भिन्न है। 

 'रामाज्ञा-प्रश्न' की रचना अवधी भाषा में है।

 यह  उनकी प्रारम्भिक कृतियों में से एक है। इसकी रचना का समय तिथि निम्नलिखित दोहे में आती है-


"सगुन सत्य ससिनयन गुन अवधि अधिक नय बान।


होई सुफल सुभ जासु जस प्रीति प्रतीति प्रमान॥


इस प्रकार रचना की तिथि संवत 1621 है


 कथा इस प्रकार है

  तुलसीदासजी ने अपने मित्र गंगाराम ज्योतिषी हेतु इसकी रचना की थी। गंगाराम ज्योतिषी काशी में प्रह्लादघाट पर रहते थे।

 वे प्रतिदिन सायं काल प्रायः असी घाट पर रहने वाले  गोस्वामी जी   (तुलसीदास जी को यह सम्मान काशी में ही मिला था ) के साथ संध्या वन्दन के लिए गंगा - तट पर जाते थे।

 एक दिन   गंगाराम ने कहा-  मैं आज गंगा किनारे नहीं जा सकूँगा

 गोस्वामी जी ने पूछा- आप अत्यन्त उदास क्यों हैं? ज्योतिषी  ने कहा

राजघाट पर दो गढ़बार वंशीय नरेश हैं जिनके अधीन मैं हूं , उनके राजकुमार शिकार के लिये गये थे, किन्तु लौटे नहीं हैं ऐसा समाचार मिला है कि  उनमें से एक को बाघ ने मार दिया है।

 राजा ने मुझे आज बुलाया था।

मुझसे पूछा गया कि उनका पुत्र सकुशल है या नहीं, यह बताएं 

उत्तर ठीक निकला तो ढेर सारा पुरस्कार मिलेगा अन्यथा प्राणदण्ड मिलेगा


 मैं एक दिन का समय

माँगकर घर आ गया हूँ, किन्तु मेरा ज्योतिष-ज्ञान इतना नहीं कि निश्चयात्मक उत्तर दे सकूँ।

 तुलसीदास जी को दया आ गयी। उन्होंने कहा- आप चिन्ता न करें। सब ठीक होगा 


आश्वासन मिलने पर गंगाराम गोस्वामी तुलसीदास जी के साथ संध्या वन्दन करने चले गये। संध्या  वन्दन करके लौटने पर अद्भुत शक्ति भक्ति विश्वास रखने वाले चिन्तक विचारक गोस्वामी जी यह ग्रन्थ रचने बैठ गये। उस समय उनके पास स्याही नहीं थी।

कत्था /खैर घोलकर सरकण्डे की कलम से छ: घंटे में यह अद्भुत ग्रन्थ उन्होंने लिख दिया और गंगाराम को दे दिया।

दूसरे दिन  गंगाराम राजा के पास गये। ग्रन्थ से शकुन देखकर उन्होंने बता दिया राजकुमार सकुशल हैं

और बात सही निकली 

 राजकुमार सकुशल ही थे। उनके किसी साथी को बाघ ने मार डाला था, किन्तु राजकुमार के लौटने तक राजा ने गंगाराम को बन्दीगृह में बन्द रखा। जब राजकुमार घर लौट आये, तब राजा ने ज्योतिषी गंगाराम से क्षमा माँगी और बहुत अधिक धन सम्पत्ति दे दी। उन्हें प्रतिष्ठा भी मिली l वह सारा धन गंगाराम ने गोस्वामी तुलसीदास के चरणों में लाकर रख दिया। गोस्वामी जी को तो धन नहीं चाहिए था, किन्तु गंगाराम के बहुत कहने पर उनके सन्तोष के लिये कुछ राशि लेकर उनसे हनुमान जी के दस मन्दिर  बनवा दिए । उन सभी मन्दिरों में दक्षिणाभिमुख हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं।


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग इसके दोहों की स्वयं जांच कर सकते हैं

साथ ही हम सब लोग श्रीरामचरित मानस का भी पाठ करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम क्यों लिया भैया मुकेश जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

19.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है महान्धकार -संहर्तृ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 19-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 


  720 वां सार -संक्षेप

1 : महान्धकार = आध्यात्मिक अज्ञान 

    संहर्तृ   =नष्ट करने वाला

The destroyer of spiritual ignorance


(जिसका आधार आत्मा है वह ज्ञान आध्यात्मिक है

ज्ञान मन को आत्मा से संयुत करता है

जो मन को आत्मा से नहीं मिलाता है, वह ज्ञान नहीं  ज्ञान की भ्रांति है

 इसी कारण तथाकथित ज्ञान से मन में अहंकार आ जाता है)


आत्मबोधोत्सव


 

जो सहज प्रकृति को सद्प्रकृति की ओर उन्मुख कर देते हैं इस  सहज प्रकृति में संस्कृति की स्थापना कर देते हैं उन्हें स्थान और समय के परिवर्तन से किसी प्रकार का अंतर नहीं  पड़ता है और उनका प्रयास अनवरत चलता रहता है ऐसा ही प्रयास आचार्य जी का  इन भावनात्मक वैचारिक संप्रेषणों का नित्य रहता है जिनसे हम लाभ प्राप्त कर रहे हैं


प्रयास इस संसार का महानतम आवश्यक प्रस्थान -बिन्दु है जहां से हम अपनी यात्रा प्रारम्भ करते हैं

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं। 


राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं॥ 


पायेउँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहों। 


स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं॥ 


परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं। 


मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं॥



Just let it be

अब तक तो यह उम्र व्यर्थ ही नष्ट हो गई, लेकिन अब इसे और नष्ट नहीं होने दूँगा। प्रभु राम की कृपा से संसार रूपी रात बीत गई है, अब जागने पर फिर माया/ भ्रम का बिछौना नहीं बिछाऊँगा। मुझे तो राम  रूपी सुंदर चिंतामणि प्राप्त हो गई है। उसे  कभी  गिरने नहीं दूँगा।

प्रभु  का जो पवित्र सुन्दर रूप है उसकी कसौटी बनाकर अपने चित्त रूपी सोने को कसूँगा। जब तक मैं इंद्रियों के वश में था, तब तक उन्होंने  मनमानी कर मेरी  हँसी उड़ाई, परंतु  अब इंद्रियों को जीत लेने पर उनसे अपना उपहास नहीं कराऊँगा। अब तो अपने मनरूपी भ्रमर को  श्रीराम जी के चरण-कमलों में लगा दूँगा।


हमारा परिवेश बहुत अच्छा है भगवान की इतनी महती कृपा है हमें तो सुधर जाना चाहिए लेकिन हम नहीं सुधरते इसका कारण है हम अपने को नहीं समझते

हम समझते हैं संसार यही है

आचार्य जी का यही प्रयास है कि हम अपने को जानें 

हम जिज्ञासु बनें आत्मबोध प्राप्त करें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन सद्संगति अष्टांग योग लेखन राष्ट्र के प्रति हमारी रुचि जाग्रत हो

अपने लक्ष्य के प्रति चिन्ता करें संगठन को मजबूत करें

आगामी चुनाव के लिए जागरूक बनें 

स्वयं जाग्रत होकर   नई पीढ़ी को भी जाग्रत करें मनुष्यत्व का वरण करें 

मन चंचल है उस पर बुद्धि का नियन्त्रण रखें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द तिवारी जी के बाबा जी का क्या प्रसंग बताया जानने के लिए सुनें

18.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विचेतस् -शरण्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 18-07- 2023


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  719 वां सार -संक्षेप

1 : विचेतस् =अज्ञानी

    शरण्य     =शरणगृह




अर्जुन के प्रश्न


एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते।


येचाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः।।12.1।।


जो भक्त आपकी उपासना करते हैं और जो भक्त अक्षर, और अव्यक्त की उपासना करते हैं, उन दोनों में कौन उत्तम  है।

के उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं


ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।


अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।।



जो भक्तजन मुझे ही परम लक्ष्य मानते हुए सारे कर्मों को मुझे अर्पित कर अनन्ययोग के द्वारा मेरे सगुण रूप का ही ध्यान करते हैं


तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।


भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।12.7।।


 जिनका चित्त मुझ में ही स्थिर है ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार से उद्धार करने वाला होता हूँ।

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि प्रतिदिन अपने इष्ट का ध्यान करें धरती मां के प्रति कृतज्ञता दर्शाएं 

इस तरह के चिन्तन को प्रखर करने का ही आचार्य जी प्रतिदिन इन वेलाओं के माध्यम से प्रयास कर रहे हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए 

हमारी संस्कृति हमारे विचार हमारी सभ्यता के मूल में अध्यात्म है नई पीढ़ी को सामान्य रूप से वेद उपनिषद् आदि की जानकारी देनी होगी  और उसके पहले हमें इन्हें जानने की आवश्यकता है

वेद अर्थात् ज्ञान और ज्ञान भी इन्द्रियातीत ज्ञान

वेदों का गद्य में व्याख्या वाला खण्ड ब्राह्मण ग्रंथ कहलाता है। ब्राह्मण, वैदिक वाङ्मय का दूसरा भाग है। इनमें देवताओं और यज्ञ विधियों की व्याख्या की गयी है l

इन्हीं सब बातों को भगवान शंकराचार्य ने समझा उन्होंने सिद्ध किया सर्वत्र ब्रह्म है 

वे कैसे संन्यासी बने इसकी एक कथा है



भगवान शंकर अपनी माता के साथ पूर्णा नदी में स्नान के लिए गए जहाँ उनका पैर फिसल गया और उन्हें लगा कि एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया है। वे  ज़ोर से चिल्लाये, ‘‘मां, मुझे मगरमच्छ खींच रहा है,वह मुझे खा जायेगा, मुझे आप संन्यासी बन जाने की आज्ञा दे दें। माता के सामने और कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने हां कर दी। भगवान शंकर ने नदी में ही अपथ-संन्यास की दीक्षा अपने मन ही मन में ले ली। अवश्यम्भावी मृत्यु के समय लिए गए संन्यास को अपथ संन्यास कहते हैं। ऐसा कहते हैं मगरमच्छ ने उन्हें तुरन्त छोड़ दिया।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रीभागवतहृदय की चर्चा की

आचार्य जी ने विचलन के बारे में क्या बताया पुस्तक मृत्यु के उस पार की चर्चा में आचार्य जी ने क्या बताया

आदि जानने के लिए सुनें

17.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अध्यात्म-अजनि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 17-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  718 वां सार -संक्षेप

1 : अजनिः =पथ


हमारे आसपास हमारे विचारों में जब तक संसार प्रविष्ट रहता है तब तक हम परेशान रहते हैं साधारण उपलब्धि में प्रसन्न हो जाते हैं



इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हम सांसारिक समस्याओं का समाधान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं संसारेतर चिन्तन में रत होने का प्रयत्न करते हैं

संसार को विस्मृत करने की चेष्टा के साथ संसार के सार को ग्रहण करने के लिए हम अपनी संस्कृति अपनी परम्परा अपने साहित्य अपने तत्वचिन्तन को आधार बनाते हैं 

यह सदाचार का पाठ राष्ट्र, जिसकी पहचान है उसकी संस्कृति उसकी परम्परा उसका साहित्य उसका इतिहास,की सेवा में लगने का भाव स्फुरित होने का और विकसित होने का प्रयास है


हमें सात्विक चिन्तनशील विचारशील संयमी बनाने का प्रयास है हमारे उत्थान का प्रकल्प है शक्ति बुद्धि संयम स्वाध्याय को हमारे अन्दर समाहित करने का उपक्रम है


हमारे आदर्श हैं भगवान राम, भगवान कृष्ण, हनुमान

आचार्य जी प्रयास करते हैं कि हम परमात्म चिन्तन में रत हों क्योंकि परमात्मा तो अद्भुत है वह एक महान रचनाकार व्यवस्थाकार  निर्देशक लेखक है

हम तत्त्व ग्रहण करें मालिन्य का त्याग करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुए कार्यक्रम की समीक्षा में क्या बताया हेडगेवार जी ने भगवा ध्वज की परिकल्पना क्यों की

प्रेमभूषण जी और सोनी जी की चर्चा क्यों हुई 

संगठन को सक्रिय करने के लिए क्या करना चाहिए 

किसी भी चिन्तनपरक कार्यक्रम में प्रश्नोत्तर के बाद क्या आवश्यक है जानने के लिए सुनें

16.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 अनंतानन्त शुभ आशीष  मंगल कीर्ति  पाने का 

रहे आजन्म सुख समृद्धि जग में यश कमाने का

न हो षड्दोष का संपर्क हो बेदाग जगजीवन 

न किंचित भय रहे क्षणभर जगत को छोड़ जाने का ।



प्रस्तुत है अध्यात्मरति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 16-07- 2023


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  717 वां सार -संक्षेप

1 : जो परमात्म चिन्तन में सुख का अनुभव करे



परमात्मचिन्तन में सुख का अनुभव कराने वाली,

मनुष्यत्व अमरत्व का संदेश देने वाली,  संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानने वाली, साधारण मनुष्य को पुरुषोत्तम बनने की राह दिखाने वाली, शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म को महत्त्वपूर्ण मानने वाली, कर्मप्रधान,अनन्त विचार प्रदान करने वाली,बहुआयामी  और संपूर्ण विश्व में अद्वितीय, पवित्र,चारित्र्यसम्पन्न, मंगलमय भारतीय संस्कृति के आधारभूत मूल्यों से भावी पीढ़ी को अवगत कराने हेतु

और भारत को वैचारिक रूप से खंडित करने में असमर्थ आक्रमणकारियों से  आगे सचेत रहने के लिए

 सनातन फाउंडेशन,युगभारती और विमर्श संस्था द्वारा संयुक्त रूप से आज दिनांक १६ जुलाई २०२३ को एक वैचारिक संगोष्ठी "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद: चुनौतियां और हमारी भूमिका" का आयोजन मर्चेंट चैंबर हाल सभागार कानपुर में किया जा रहा है



सहज को जो सुन्दर बना दे वह संस्कार कहा जाता है

इस संस्कार का वैविध्य उचित प्रकार से रचित होकर एक जीवनशैली के रूप में यदि विकसित हो जाए तो इसे एक अद्भुत उपलब्धि कहा जाएगा और इस उपलब्धि को भारतीय जीवन दर्शन ने  और भारत की इस धरती ने प्राप्त किया है




गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ये भारतभूमिभागे।स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।। — विष्णुपुराण (२।३।२४)


हनुमान जी की प्रेरणा से तुलसी जी को भक्ति प्राप्त हुई भगवान राम उनके इष्ट बने श्रीरामचरित मानस का अवतरण हुआ

श्रीरामचरित मानस की विशेषता  देखने के लिए बालकांड के 35 से 43ख संख्या वाले दोहे तक का अंश देखा जा सकता है


जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।

अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु।।35।।



अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद ।

कहउँ जुगल मुनिबर्ज कर मिलन सुभग संबाद।।43(ख)।।


इन चालीस चौपाइयों और दस दोहों का बार बार पाठ करने से हमें यह समझ में आने लगेगा कि भारत राष्ट्र का राष्ट्रीयत्व किस प्रकार  महापुरुषों के माध्यम से अवतरित हुआ है


यह सिलसिला वैदिक काल से आजतक चला आ रहा है कभी कम कभी ज्यादा लेकिन कभी खंडित नही हुआ 

इस धरती पर तो अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया इतने महापुरुष अन्यत्र नहीं हुए



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपने जीवन को आनन्दमय बनाने हेतु अध्ययन और स्वाध्याय करें

हम राष्ट्र के महत्त्च को समझें



शान्ति आनन्द और जीवन का लक्ष्य पाने के लिए एक अत्यन्त सुगम मार्ग तुलसीजी ने इंगित कर दिया


पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु।

माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु॥ 37॥


कथा में जो रोमांच होता है,वे ही वाटिका, बाग और वन हैं और जो सुख  है, वही सुंदर पक्षियों का विहार है। निर्मल मन ही माली है जो प्रेम रूपी जल से सुंदर नयनों द्वारा उनको सींचता है


मानस में गीता वेद उपनिषद् आदि सब कुछ है

इसमें राष्ट्र राज्य समस्याएं समाधान आदि भी है

इसलिए इसका पाठ अवश्य करें

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

15.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15-07- 2023

जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।

अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥ 35॥



यह रामचरित मानस जैसा है, जिस प्रकार बना है और जिस हेतु  जगत् में इसका प्रचार हुआ, अब वही कथा मैं शिव पार्वती का स्मरण कर कहता हूँ


अद्भुत और अद्वितीय है रामचरित मानस

इसी तरह अद्भुत हैं ये सदाचार संप्रेषण 


प्रस्तुत है अध्ययोदधि ¹

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 15-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  716 वां सार -संक्षेप

1 : अध्यय =ज्ञान

      उदधि   = समुद्र



आइये मानस का संस्कार करने के लिए, अभ्यास और वैराग्य द्वारा चंचल प्रमथन स्वभाव वाले मन के  निग्रह के लिए 

(चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।


तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।)

, आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए, भौतिक कार्यों की सिद्धि की कामना के साथ साथ संसारेतर शक्तियां प्राप्त करने हेतु  और लगातार कर्मशील बने रहने की योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें अध्ययोदधि में क्योंकि इन अद्भुत भावों के संप्रेषणों से लाभ प्राप्त कर हम सांसारिक समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं

इनसे विरति हानिकारक है

और अनुरति लाभदायक है

भौतिकता और आध्यात्मिकता के बीच में झूला झूलते सब रोगों की जड़ मोह अर्थात् अज्ञान से ग्रस्त अर्जुन को रणक्षेत्र में भगवान् कृष्ण समझाते हुए कहते हैं


असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।


अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।।


नि:सन्देह मन चंचल, कठिनता से वश में होने वाला है किंतु, हे अर्जुन ! उसे अभ्यास और वैराग्य  द्वारा वश में किया जा सकता है


असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।


वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।।6.36।।


जिसका मन पूर्ण वश में नहीं है, उसके द्वारा योग प्राप्त होना कठिन है। फिर भी उपायपूर्वक यत्न करने वाले को योग प्राप्त हो सकता है


पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।


नहि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति।।6.40।।


उस पुरुष का न  इस लोक में और न ही परलोक में  नाश होता है

कोई भी शुभ कर्म करने वाला दुर्गति को नहीं प्राप्त होता है


इसके अतिरिक्त बागेश्वर धाम  सिद्ध स्थान कैसे है?

किन आचार्य जी ने  घड़ी सीधी की थी?

लाइन से  थोड़ी सी बाहर चप्पल को हाथ से सही करने वाला क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

14.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14-07- 2023

 प्रस्तुत है अहंयु -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 14-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  715 वां सार -संक्षेप

1 : अहंयु =स्वार्थी



वही सरिता परम पुनीत रहती है जो सतत प्रवाहमान रहती है इसी तरह जीवन जब तक सरिता की तरह रहेगा अर्थात्  प्रवाहमह रहेगा आनन्द ही आनन्द रहेगा

 प्रवाह है इस अद्भुत संसरण करते संसार को समझकर इसके सत्य को सतत खोजने का


जिसका विनाश होता है, वह संसार है। संसार एक समस्या है उलझाव है संसार  भी सत्य नहीं है संसार का जीवन भी सत्य नहीं है।  संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है।




जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


जीवन का परम सत्य मोक्ष है और उसको ब्रह्म की साधना उपासना ध्यान पूजापाठ जप स्वाध्याय वेद  पुराण उपनिषद् गीता  मानस के अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है ।  मोक्ष प्राप्ति से  परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है

इसलिए प्रतिदिन कुछ समय हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय के लिए अवश्य निकालें 

लेखन कौशल भी विकसित करें आत्मविस्तार करें 

परमात्मा की तरह हम भी अपने परिवार की वृद्धि चाहते हैं

एकोऽहं बहुस्याम

हम चाहते हैं हमारा विस्तार हो 


नये नये विचारों का अंकुरण होना हमारे लिए लाभदायक है


बहुत से लोग हैं जिन्हें आत्म -प्रकाशन  SELF -REVELATION, SELF -ENLIGHTENMENT   का चाव रहता है

मैं हूं का भाव अद्भुत है


मैं हूं अर्थात् अहंकार

गीता से


भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।


अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।।



पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश नामक पञ्चमहाभूत  मन, बुद्धि तथा अहंकार  के साथ मिलाकर आठ प्रकार के भेदों वाली मेरी 'अपरा' प्रकृति है। हे अर्जुन ! इस अपरा प्रकृति से भिन्न जीव रूप बनी हुई मेरी 'परा' प्रकृति को जान लो


हमारे जीवनदर्शन का अनन्त बोध हमें अमर बनाता है


आचार्य जी परामर्श देते हैं कि रामचरित मानस को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लें 

रामचरित मानस मात्र अध्ययन के लिए बांचने के लिए पूजा पाठ के लिए गाने के लिए नहीं है यह तो एक अद्भुत कृति है

जिस काव्यानन्द में मग्न होकर राष्ट्रहितैषी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ का प्रणयन किया है यह भारतवर्ष की अद्भुत घटना है



मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।

जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥34॥


सज्जनों के बहुत से समूह  सरयू नदी के पवित्र जल में स्नान करते हैं और हृदय में सुंदर श्याम शरीर श्रीराम का ध्यान करके उनके नाम का जप करते हैं



यह तो उनका भाव है

और 

रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥

मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥4॥


इसका नाम रामचरित मानस है, जिसको सुनते ही शांति मिलती है। मन रूपी हाथी विषय रूपी दावानल में जल रहा है, वह यदि इस मानस रूपी सरोवर में आ पड़े तो सुखी हो जाएगा



आचार्य जी ने बताया कि बालकांड के दोहे 35,36,37,38 को बार बार दोहराने से अद्भुत अथाह ज्ञान प्राप्त होता है


हमारे यहां ज्ञानियों की लम्बी परम्परा है हम भी ज्ञानी होने की दिशा में अपने कदम आगे करें


आचार्य जी का परामर्श है कि युगभारती के हम सदस्य गम्भीरतापूर्वक किसी भी विषय का  गहन चिन्तन कर उसे विचारपूर्वक आगे प्रेषित करें



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सीमा की चर्चा क्यों की

16 को होने वाले कार्यक्रम के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

13.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।


भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।7.26।।


 हे अर्जुन ! जो प्राणी भूतकाल में  हो चुके हैं, जो वर्तमान में  हैं और जो भविष्य में जन्म लेंगे , उन सभी को  मैं  तो जानता हूँ लेकिन मुझे कोई मूढ़ मानव नहीं जानता है



प्रस्तुत है अहरणीय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 13-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  714 वां सार -संक्षेप

1 : श्रद्धालु




हमारी भी इच्छा होती है कि हम इस तरह के रहस्यों को जानें जैसे भगवान् तो सबको जानते हैं लेकिन उस भगवान को कोई नहीं जान पाता


गीता के आठवें अध्याय में



सब प्रकार से शक्ति बुद्धि चैतन्य से सम्पन्न अर्जुन के प्रश्न 


किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।


अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते।।8.1।।


 ब्रह्म क्या है अध्यात्म क्या है कर्म क्या है अधिभूत (भौतिक जगत )तथा अधिदैव   (दैव जगत )क्या हैं?

के उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं




अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।


भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः।।8.3।।



 -परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व ब्रह्म है अपना स्वरूप अध्यात्म है  और अधिक स्पष्ट करें तो ब्रह्म का नित्य स्वभाव भी है और अनित्य स्वभाव भी है उसका नित्य स्वभाव ही अध्यात्म है 

भूतों के भावों को उत्पन्न करने वाला विसर्ग  कर्म  है


आचार्य जी ने अमरत्व को भी स्पष्ट किया शंकराचार्य जैसे महापुरुष चिरस्मरणीय चिरस्थायी और शरीर से मुक्त होने के बाद भी चैतन्य जगत में विद्यमान रहते हैं यही अमरत्व है हम इसी के पुजारी हैं क्योंकि हम परम्पराओं पर विश्वास करते हैं इन्द्रियजन्य के अतिरिक्त इन्द्रियातीत पर भी विश्वास करते हैं यही हमारी विशेषता है भारतीय जीवन दर्शन की विशेषता है

भावी संतति में भी इन सब विषयों को शिक्षा के माध्यम से हमें रखना चाहिए इसका परिणाम भी देखें 

यह इन सदाचार वेलाओं का मूल उद्देश्य है

अपने मनुष्यत्व को जाग्रत करने के लिए हम प्रयासरत रहते हैं हमारा काम खाना और सोना ही नहीं है


(सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै। 


दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥)


समाजोन्मुखी विचारों से समन्वित संयमित व्यवस्थित संपूर्ण समाज को अपना परिवार मानने का भाव लेकर

हम युगभारती संगठन के रूप में है यही उस अध्यात्म की प्राप्ति का प्रयास है


आचार्य जी ने श्रीगुरु जी समग्र की भी चर्चा की


गुरु जी के भाव राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण रहते थे


हम पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं  यह भारतीय चिन्तन है ऐसी संस्कृति विचारों वाला देश दुनिया में इतना उपेक्षित हो गया ऐसा होना नहीं चाहिए था इसलिए गुरु जी चाहते थे कि हमारे देश बलवान बनाया जाए तभी उसे सम्मान मिलेगा 

आचार्य जी ने एकात्ममानववाद को भी स्पष्ट किया

इसके अतिरिक्त 16 को होने वाले कार्यक्रम के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

12.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12-07- 2023

 जौं परलोक इहाँ सुख चहहू। सुनि मम बचन हृदयँ दृढ़ गहहू॥

सुलभ सुखद मारग यह भाई। भगति मोरि पुरान श्रुति गाई॥1॥


यदि उस लोक में और इस लोक में अर्थात् दोनों जगह सुख चाहते हो, तो मेरे वचन सुनकर उन्हें हृदय में दृढ़ता से पकड़ लो । हे भाई! यह मेरा भक्ति का मार्ग सुलभ, सुखदायक है, पुराणों और वेदों ने इसे गाया है


प्रस्तुत है उल्लिङ्गित¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 12-07- 2023


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  713 वां सार -संक्षेप

1 : प्रसिद्ध


उत्तर कांड की एक चौपाई है



पुनि कृपाल लियो बोलि निषादा। दीन्हे भूषन बसन प्रसादा॥

जाहु भवन मम सुमिरन करेहू। मन क्रम बचन धर्म अनुसरेहू॥1॥


इसके पश्चात् कृपालु प्रभु राम ने निषादराज को बुला लिया और उसे आभूषण, वस्त्र प्रसाद में दिए

और कहा

अब तुम भी घर जाओ, वहाँ मेरा स्मरण करते रहना और मन, वचन और कर्म से धर्म के अनुसार ही चलना




हमारी आर्ष परम्परा यही कहती है कि हमें तो अपने धर्म के अनुसार ही चलना चाहिए

प्रतिदिन आचार्य जी का भी प्रयास रहता है कि उनके (आचार्य जी) द्वारा प्रोक्त भ्रम रहित सदाचारमय विचारों की वृष्टि से आचरणवान् आचार्य जी के हम मानस पुत्रों के अंदर सदाचारमय विचारों का अंकुरण हो

हम भारतीय संस्कृति के परिपालक बनें अस्ताचल देशों को देख हमें भ्रमित नहीं होना है भय और भ्रम दोनों हानिकारक हैं इन्हें पालने पर 

जो अच्छा है उसे भूल जाते हैं

बुरे का प्रतिकार नहीं करते हैं

 हमें विचार करना चाहिए कि हमारी शिक्षा किस प्रकार की हो

हमारे आत्मतत्त्व का आत्मबोध जागे इसका प्रयास करें


चिदानन्द रूपः शिवोहं शिवोहम्

इससे हमारे अन्दर शक्ति और भक्ति दोनों प्रविष्ट होंगी 

हमें जहां भी जब भी अवसर मिले इन सुस्पष्ट विचारों को अपने अन्दर ढालने का प्रयास करें

अस्तव्यस्त जीवन को सुधारने का प्रयास करें

हम कौन हैं हमारा जन्म क्यों हुआ है हम अपने को अशक्त क्यों समझें

यदि अपने अन्दर से इन प्रश्नों के उत्तर मिलने लगेंगे तो एक नये समुद्योग के साथ उन्नति करने लगेंगे हम अनुभव करें कि हम विशेष हैं

सही खानपान,चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, प्राणायाम सद्संगति आदि द्वारा रामानुभूति का अपने अन्दर प्रवेश कराएं 

प्रातःकाल उत्थान से लेकर शयन तक हम  कर्म करते रहते हैं

और कर्म का प्रतिनिधि है कर अर्थात् हाथ

हम मनुष्यों को कर्म करने के लिए कर की आवश्यकता है ही

परमात्मा को कर की आवश्यकता नहीं


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

इसलिए प्रातः जागते ही मुखर पाठ या मौन पाठ द्वारा हम कहते हैं



कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥


समुद्र वसने देवी, पर्वत स्तन मंडले,


विष्णु पत्नी नमोस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्वमे ।


हमारी भारतीय संस्कृति की चिरन्तन चिन्तन की विधा अद्भुत है

वेद पुराण उपनिषद् गीता महाभारत रामायण रामचरित मानस आदि ज्ञान की निधियों के प्रति हमारी श्रद्धा बनी रहनी चाहिए

इसके अतिरिक्त धरती और आकाश का क्या सम्बन्ध है पहले गांवों का मनोरंजन कैसे होता था आदि जानने के लिए सुनें

11.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है नैकृतिक -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 11-07- 2023


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  712 वां सार -संक्षेप

1 : नैकृतिक =दुरात्मा



ये सदाचार वेलाएं मानसिक ऊर्जा प्रदान करती हैं 

मानसिक ऊर्जा के इस स्रोत का हम दर्शन करें क्योंकि ये हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी हैं

गुरु वही है जो हितोपदेश दे अर्थात् हित का उपदेश

हित हमारा किसमें है?

परिवार के एकीकरण, परिवारबोध , राष्ट्र-बोध, समाज बोध, खाद्य अखाद्य विवेक में हमारा हित है

इन वेलाओं के श्रवण से अपने अंदर आये परिवर्तन की समीक्षा भी करें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन प्रारम्भ हुआ या नहीं खानपान सोना जागना सही हुआ या नहीं देखें 


आइये आज की कक्षा में प्रवेश करें


कल्पना और वास्तविकता का मेल साहित्य का मूल धर्म है यह मेल साहित्यिक मर्म भी है 

कल्पना उपहास का विषय कदापि नहीं है कल्पना करने पर ही परमात्मा द्वारा सृष्टि कवि द्वारा कविता,कलाकार द्वारा  कलाकृति अस्तित्व में आती है। अत: कल्पना महत्वपूर्ण है। 

भारतभूमि सत्यानुभूति की पवित्र धरती है 

परमसत्य की खोज का सनातन तीर्थ है 

परमसत्य  के प्रश्न हैं ?

 ये कौन चित्रकार है



ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार


हरी भरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन

कि जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन

दिशाएं देखो रंग भरी

दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी

ये किसने फूल फूल से किया श्रृंगार है

ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार.....




 सृष्टि क्या है 

जन्म व मृत्यु क्या है 

इस सत्य के उत्तर को खोजने  वाले को मुमुक्षु कहते हैं 

भारतीय चिन्तन, भारतीय जीवन शैली को आत्मसात् करने पर शांति प्राप्त होती है 

हम व्यावहारिक अभ्यास 

में निपुणता प्राप्त कर लेते हैं 

रामकृष्ण मिशन के संन्यासियों का व्यवहार तथा तितिक्षा अर्थात् सहनशक्ति, जैन मुनियों की कृच्छ्र साधना भारत का वैश्विक चिन्तन अद्भुत है

मिरा अलफासा, भगिनी निवेदिता, एनी बेसेंट आदि विदेशी थीं लेकिन वे यहां से अत्यन्त प्रभावित हो गईं



एनी वुड (एनी बेसेंट ) ने कहा था



भारत में प्रश्रय पाने वाले अनेक धर्म हैं, अनेक जातियां हैं, किन्तु इनमें किसी की भी शिरा भारत के अतीत तक नहीं पहुंची है, इनमें से किसी में भी वह दम नहीं है कि भारत को एक राष्ट्र में जीवित रख सकें, इनमें से प्रत्येक भारत से विलीन हो जाय, तब भी भारत, भारत ही रहेगा. किन्तु, यदि हिंदुत्व विलीन हो गया तो शेष क्या रहेगा तब शायद, इतना याद रह जायेगा कि भारत नामक कभी कोई भौगोलिक देश था



हिन्दु को जगाने का काम बहुत पहले से चल रहा है

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि


मांगि के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबो को एक न दैबे को दोऊ

में मसीत को सोइबो का क्या वास्तविक अर्थ है


हमारे यहां कर्म के सिद्धान्त को युद्धभूमि में समझाया गया है


भारत की संस्कृति और भारत का राष्ट्र एक दूसरे के पर्याय हैं जो इसे एक दूसरे से संयुत नहीं करता वो भ्रम में है

पश्चिमी जीवनशैली हमें भ्रमित करती है हमें तो अपनी जीवनशैली रास आनी चाहिए


आत्मतुष्टि खोजें संतानों को सही ढंग से पोषित करें

मनुष्य का जीवन का एक एक पल संस्कारों को विकसित करने का है

आत्मिक विकास हो या भौतिक विकास हो इस पर चिन्तन आवश्यक है

इसके अतिरिक्त ,आचार्य जी ने बताया भैया मोहन भैया डा उमेश्वर का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

10.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10-07- 2023

 जब तक रहो संसार में हिम्मत कभी हारो नहीं, 

विपदा पड़े तो भी कभी नैराश्य को धारो नहीं, 

सर्वत्र सर्वाधार की अनुभूति का अभ्यास कर 

श्रद्धा-समर्पण से मनस् को कभी निर्वारो नहीं।



प्रस्तुत है नैकषेय -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 10-07- 2023


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  711 वां सार -संक्षेप

1 : नैकषेयः =राक्षस

नैकषेय अर्थात् राक्षस अशान्ति का विस्तार चाहते हैं उनका  विकृत भाव ही कुछ न कुछ  हड़पने का होता है वह कुछ देना नहीं चाहते हमारे यहां की संस्कृति देने वाली संस्कृति है 

भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व को अपना मानती है भारतीय संस्कृति भारतीय विचार भारतीय चिन्तन  विशिष्ट है भारत की भूमि  भी विशिष्ट है और इसमें हमारा जन्म हमारा सौभाग्य है 


आचारः परमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च । तस्मादस्मिन्सदा युक्तो नित्यं स्यादात्मवान्द्विजः ll


वेदों और स्मृतियों (कुछ स्मृतियों के नाम हैं याज्ञवल्क्य स्मृति मनु स्मृति वशिष्ठ स्मृति )में जो आचरण व्यक्त है  वही सर्वश्रेष्ठ धर्म है  अतः आत्मोन्नति चाहने वाले द्विज को   इस श्रेष्ठाचरण में निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए

शिष्ट व्यक्तियों द्वारा अनुमोदित और बहुमान्य रीति रिवाजों को आचार कहते हैं

नैतिक मूल्यों के सिद्धांतों पर जीवन यापन करना ही धर्म है


अध्ययन लेखन चिन्तन मनन अभिव्यक्ति आदि प्रकृति पर आधारित हैं जो बाह्य प्रकृति है वही सूक्ष्म रूप में हमारे अन्दर स्थित है इसका जो सामञ्जस्य बैठाता है वह आचारवान् कहा जाता है

इस गहन संस्कृति, इस गुरु गम्भीर देश, इस तरह के वातावरण को प्राप्त कर हम आत्मपरिष्करण और आत्मसंस्करण करें

ग्रामोन्मुखी, राष्ट्रोन्मुखी चिन्तन और विचार भारतीय संस्कृति का परिष्कार और उद्धार है

प्रायः हर आदमी आगे बढ़ना चाहता है और तब उसका सामना अपरिचय से होगा

जितना अपरिच्य उतनी ही शंकाएं कुशंकाएं


इसलिये हम ऐसा परिचय करें कि पीछे आने वाले उसी मार्ग पर गतिमान होके चलें


हम वाणी व्यवहार कर्म संकल्प में सुसंस्कृत बनें

हमारे पास समय कम है कार्य बहुत हैं समस्याएं बहुत हैं भ्रष्टाचार का बोलबाला है

सात्विक शिक्षा से इसका निवारण हो सकता है

इसके अतिरिक्त कल सम्पन्न हुए कार्यक्रम के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया आचार्य की परिभाषा क्या है

कामधेनु तन्त्र की चर्चा क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें

9.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 09-07- 2023

 प्रस्तुत है नैःश्रेयसिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष

सप्तमी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 09-07- 2023


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  710 वां सार -संक्षेप

1 : आनन्द की ओर ले जाने वाला



संसार में संसरण और सार दोनों है आत्मविस्तार और आत्मसंकोच दोनों का ही संसार में अस्तित्व है आत्मविस्तार मनुष्य का आनन्द पक्ष है जब कि आत्मसंकोच दुःख दुविधा का



संसार में संसरण करते हुए सांसारिक प्रपंचों में उलझने के बाद भी जो अल्प क्षण भी स्थिर होने के लिए उपलब्ध है  उसमें यदि हमें आनन्द की अनुभूति हो जाए वही बहुत है


दूसरे के लिए कष्ट उठाना दूसरे के द्वारा प्रसन्नता का अनुभव करने पर स्वयं प्रसन्न होना संसार का आनन्द पक्ष है


ऐसे आनन्द में रहने वालों को अपने से हम संयुत करते जाएं और जो दूसरे के आनन्दित होने पर दुःखी हों उनकी उपेक्षा कीजिए


मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमश्शाश्वतीस्समा: ।


यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम् ।।



वाल्मीकि जी के मुख से निकला यह अद्भुत छंद और रामकथा इतिहास के साथ पल्लवित हो गई वाल्मीकि जी को आदिकवि कहते हैं लेकिन इस धरा पर वैदिक ज्ञान उससे भी पहले उतर चुका था


कवित्व परमात्मा का वरदान है कवित्व लेखन के साथ वाचन और पाठन भी है

जो कवि की रचनाएं सुनते हैं ग्रहण करते हैं वे भी कवि हैं

व्यक्त करने वाले और ग्रहण करने वाले दोनों कवि हैं वे  मनुष्यत्व की अनुभूति करते हैं


ऐसे ही एक कवि हैं तुलसीदास जी 

वे कहते हैं 


श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।

किमि समुझौं मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़॥ 30(ख)॥


श्रोता मां भवानी हैं और वक्ता शिव जी हैं



भवानी-शंकरौ वन्दे श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम् ।।


शिव जी की कृपा आवश्यक है अद्भुत है मानस की रचना 

मां भवानी साक्षात् श्रद्धा हैं और शंकर विश्वास

वाणी,विनायक, भवानी और शंकर की वन्दना के बाद तुलसी जी गुरु का स्मरण करते हैं गुरु के ज्ञान से अभिभूत हैं तुलसी जी


गुरु का आश्रय तो कहां से कहां पहुंचा देता है




इसके बाद आचार्य जी ने क्या कहा भैया पंकज भैया अरविन्द जी का नाम क्यों आया

जानने के लिए सुनें 

( सूचना :आज सरौंहां में होने वाले कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित हैं)

8.7.23

नैःश्रेयस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 08-07- 2023

 भारत का सम्मान ही,है अपना सम्मान, 

बिना देश के कोई भी,कहीं न पाता मान, 

कहीं न पाता मान शान कितनी भी रख ले, 

मनमोदक का स्वाद चापलूसों से चख ले, 

अतः भाइयो देश का सदा बढ़ाओ मान 

अपने से अगणित गुना हो भारत सम्मान।


प्रस्तुत है नैःश्रेयस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष

षष्ठी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 08-07- 2023


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  709 वां सार -संक्षेप

1 : आनन्द की ओर ले जाने वाला


बीते कल के उद्बोधन से


राष्ट्र एक परम्परा है देश एक स्थान है जब परम्परा किसी देश से संयुत हो जाती है तब वह भारत माता हो जाती है

केवल भूमि का  टुकड़ा नहीं

हम इस परम्परा के वाहक हैं इसीलिए राष्ट्र के प्रति निष्ठा अनिवार्य है



श्रीरामचरित मानस ग्रंथ का पाठ विलक्षण प्रभाव   छोड़ता है  बार बार इसका अध्ययन मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराता है दुश्चरित्र सुचरित्र पापी पुण्यात्मा दुर्जन सज्जन क्रोधी शान्त निर्दय दयालु और नास्तिक आस्तिक हो जाता है


इसी तरह के सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए आइये प्रवेश करते हैं आचार्य जी, जिनका मूल उद्देश्य रहता है कि

हम भारतीय परम्परा के प्रति किसी भी प्रकार का अविश्वास न रखें, जीवन के प्रति  विश्वास रखें,  सांसारिक प्रपंचो से हटकर आनन्द के क्षण खोजें

 (अपने इतिहास परम्परा पूर्वजों के प्रति अनास्था कमजोरी है)

की 

आज की कक्षा में




सबसे पहले तो हमें यह भ्रम ही नहीं पालना चाहिए कि हम कभी पराधीन रहे

हम कभी पराधीन नहीं रहे हम परिस्थितियों से जूझते हुए संघर्षशील रहे


हमारा इतिहास शौर्य पराक्रम संघर्ष का ही रहा है


कहा जाता है


क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूपं रमणीयतायाः

 जिसे देखने में हर क्षण कुछ नए प्रकार का आनंद प्राप्त हो वही सर्वोत्तम सौंदर्य है


इसी प्रकार महापुरुषों के चरित्रों का बार बार अध्ययन नए नए उद्भावों को जन्म देता है ऐसे ही एक महापुरुष हैं भगवान् शंकराचार्य


वे कहते हैं 

दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्।

मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः ॥


इस संसार में निम्नांकित तीन चीजें को प्राप्त करना वास्तव में अत्यधिक दुर्लभ है,  भगवान की अत्यधिक कृपा से ही कोई उन्हें पा सकता है 

1. मानव जन्म


बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥


2. मुक्ति पाने की तीव्र इच्छा

अर्थात् मोक्ष /स्वतन्त्रता की कामना 

3. महापुरुष की संगति



बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥

आइये अब प्रवेश करें मानस में 


वर्णानां अर्थसंघानां रसानां छंद सामपि,

           मंगलानां च कर्त्तारौ वंदे वाणीविनायकौ....


आचार्य जी ने श्रीरामचरित मानस के इस अंश की व्याख्या में बताया कि अमरकोश के अनुसार जिसकी जाति ज्ञात न हो उसे ब्रह्मक्षत्रिय  वर्ण माना जाता है जैसे विश्वामित्र

और विश्वामित्र की ही बालकांड में प्रमुख भूमिका है

यह वर्णानाम्    बाल कांड हो गया इसी तरह अन्य शब्द शेष कांडों से संयुत हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने


श्री दुलीचन्द्र जी,भैया मुकेश जी, भैया पंकज जी, भैया मनीष जी, रामायणी वन्दन जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

7.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 07-07- 2023

 प्रस्तुत है अनादीनव ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष

चतुर्थी विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 07-07- 2023


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  708वां सार -संक्षेप

1 :निर्दोष


हम युग भारती के सदस्यों का लक्ष्य है

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


राष्ट्र एक परम्परा है देश एक स्थान है जब परम्परा किसी देश से संयुत हो जाती है तब वह भारत माता हो जाती है

केवल भूमि का   टुकड़ा नहीं

हम इस परम्परा के वाहक हैं इसीलिए राष्ट्र के प्रति निष्ठा अनिवार्य है

हम व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व हैं 

व्यक्तित्व का विकास समाज करता है अकेले तो हम बोलना भी नहीं सीख सकते

बलरामपुर वाले रामू का उदाहरण हमारे सामने है


समाज आवश्यक है समाज -ऋण की अनुभूति हमें अवश्य होनी चाहिए

समाजोन्मुखता के बिना हमारे व्यक्तित्व का अस्तित्व ही नहीं है


लेकिन हम तुच्छ हैं यह अनुभूति भी नहीं करनी चाहिए


श्रीरामचरित मानस की चर्चा में स्वान्तः सुखाय मानस लिखने वाले तुलसीदास जी अनिवार्य रूप से सामने आयेंगे वे मात्र कवि महात्मा कथावाचक विद्वान न होकर हमारे देश का नेतृत्व करने वाले समाज सुधारक थे राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का अद्वितीय उदाहरण


बहुत से पुराणों निगम आगम रामायण भागवत शास्त्रोक्त विधान इस राष्ट्र के आधार हैं और इन्हीं को इस ग्रंथ में सम्मिलित किया है


इस ग्रंथ का पाठ विलक्षण प्रभाव   छोड़ता है  बार बार इसका अध्ययन मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराता है दुश्चरित्र सुचरित्र पापी पुण्यात्मा दुर्जन सज्जन क्रोधी शान्त निर्दय दयालु नास्तिक आस्तिक हो जाता है

ऐसा है यह अद्भुत ग्रंथ

इसका पाठ अवश्य करें


इसके अतिरिक्त भैया अमित भैया पंकज भैया अशोक त्रिपाठी का नाम क्यों लिया

बोधायन का उल्लेख क्यों हुआ

रटी विद्या क्यों प्रभाव नहीं डालती

किसके झंकृत होने पर आनन्द की अनुभूति होती है

श्री राम चरित का यह मानस क्यों है

आदि जानने के लिए सुनें

6.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 06-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।

करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥



प्रस्तुत है अनात्मनीन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष

तृतीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 06-07- 2023


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  707 वां सार -संक्षेप

1 :निःस्वार्थ



आनन्द की अनुभूति ही इस वेला का सार तत्त्व है अन्यथा शेष समय तो सांसारिक प्रपंचों में संघर्ष करते हुए बीत जाता है इसलिये समय का सदुपयोग करते हुए सदाचारमय विचार


उदाहरणार्थ



"प्रायः स्मृतियां आनन्द देती हैं ऐसी स्मृतियां जब हमारे भीतर पल्लवित होने लगती हैं तो श्रुति के उपरान्त ऐसी स्मृतियों का संपादन होने लगता है और वे ही हमारी मार्गदर्शक हो जाती हैं अपने मार्गदर्शक हम स्वयं हो जाते हैं"

,

" मन से दिया गया आशीर्वाद अत्यन्त प्रभावकारी होता है "

आदि 

ग्रहण करने के लिए आइये इस दूरस्थ फिर भी अत्यन्त उपयोगी महत्त्वपूर्ण वेला में प्रवेश कर जाएं


किसी भी कारण से आनन्द की अनुभूति परमात्मा की ही कृपा है

इस अनुभूति को विस्तार देने के लिए हम अदृश्य अस्पष्ट अवर्णनीय अद्भुत भविष्य की चिन्तना करने लगते हैं इस कल्पना में आनंद के उपलब्ध क्षण उतनी देर भी हमें आनन्दित नहीं कर पाते और फिर हम अपने अनुकूल समूह को खोजने लगते हैं



लेकिन अकेले में आनन्द की अनुभूति परमात्मा की महती कृपा है

हम भावुक और भावक लोग ,  जो महापुरुषों के अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लिए हुए हैं,किसी दैवीय विधान से एक दूसरे से संयुत हैं इस दैवीय विधान का आनन्द हमें तब मिलेगा जब हम इस विधान की अनुभूति करेंगे




श्री रामचरित मानस का अध्ययन भारत के भविष्य का संस्कार है

यह केवल बालकांड से उत्तरकांड तक ही सीमित नहीं है



नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्

रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।

स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा

भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥


अनेक पुराण, वेद और तन्त्र शास्त्र से सम्मत साथ ही जो रामायण में वर्णित है और  अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री राम की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख हेतु अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में वर्णित करता है

गहन अध्ययन और स्वाध्याय करने वाले तुलसीदास जिन्हें ज्ञान का बोध  हो गया था यशस्वी तपस्वी जयस्वी और उस समय के साहित्यिक योद्धा थे

वह समय अत्यन्त निराशा का था

अकबर तबाही मचाए हुआ था

रघुपति के चरितों को संसार में निरत लोगों के मन में प्रवेश करा देना तुलसी का अद्भुत कौशल था

संपूर्ण विश्व के अद्भुत व्यक्तित्व हैं हमें दिशा देने वाले तुलसी

उनकी तुलना शेक्सपीयर से करना हास्यास्पद ही है

आत्मबोध से हमें जाग्रत होने की आवश्यकता है  अपने अद्भुत साहित्य से लगाव करने की आवश्यकता है अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन इसके लिए आवश्यक है जो सदाचार ग्रहण करें उसे प्रसरित भी करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने निगदन, साहित्य, पुराण, इतिहास, सर्ग, विसर्ग का अर्थ भी बताया

श्री तरुण विजय का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें

5.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 05-07- 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अनातुर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष

द्वितीया विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 05-07- 2023


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  706 वां सार -संक्षेप

1 :स्वस्थ




आत्मज्ञान के इस नित्य मंच पर आचार्य जी   के सदाचारमय विचार हम भ्रमित  भयभीत मनुष्यों को मनुष्यत्व की अनुभूति कराके समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बनाने का प्रयास करते हैं


आइये  इस पर श्रद्धा और विश्वास  करके इससे लाभ प्राप्त करें




गीत मैं लिखता नहीं हूँ से



।    आओ काल बुलाता है


भावों का ज्वालामुखी मचलता जब उर में

 हर शब्द दहकता अंगारा बन जाता है

 सुधियों में उतरा करता है इतिहास अमर

संकल्प अकल्पित मानस में ठन जाता है । 


उपहास सत्य का जब दर-दर होने लगता

 गूँजता गगन में वृत्रासुर का अट्टहास

देवता दीन-दुर्बल हो पन्थ भटकते हैं


तब युग-दधीचि आकर अड़ जाते अनायास

यह देवासुर संग्राम सत्य है 'सत्ता' का 

चिन्तन कहता है इस पर विवश विधाता है




देवासुर संग्राम लगातार चल रहा है हाल में फ्रांस में एक अघटित घटना हुई दुष्ट लोगों ने अपने स्वभाव के अनुसार  दुष्टता की चरम सीमा पार कर ली


हमारा स्वभाव इन दुष्ट लोगों से भिन्न है हमें दैवीय शक्तियों के संवर्धन का प्रयास लगातार करना चाहिए जैसा फ्रांस की जनता ने स्थान स्थान पर इन दुष्टों का प्रतिकार कर शासन का साथ  देकर किया


स्थान स्थान पर प्रतिकार होने पर शान्ति स्थापित होती है


हमारी प्रकृति शान्ति स्थापना की रहती है हम लोगों की मदद करते हैं और यही भाव हम युगभारती सदस्यों में सदा पल्लवित रहना चाहिए


हम समाज का चिन्तन और चिन्ता अवश्य करें इसे लिपिबद्ध भी करें यह लेखन हमें ही आनन्दित करेगा 



हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़ उठें

व्यक्तिगत हानियां लाभ लोभ की आशा  छोड़ उठें




सपनों के पंख नहीं होते,

 होते न सत्य के पांव कभी

वीरों के लेंहड़ न होते हैं,

संतों के होते गांव कभी?


क्या कहीं प्रतिष्ठा की बाजारें लगती हैं,

पौरुष का कहीं न होते देखा मोल -तोल l

पुरुषार्थ पराक्रम मौन मनन में रत रहता,

पर संकट में अड़ जाता अपना वक्ष खोल ll


जो नियमनीतियों की परिभाषा गढ़ते हैं,

वो शायद ही उनका परिपालन कर पाते l

पर कभी न जिनने इनकी परिभाषा बांची,

वो ही झंझाएं झेल शिखर सर कर जाते ll


यह भारत है दैवी आभा से ओतप्रोत,

इसका सपूत हरदम विश्वासी होता है ll

जो नहीं यहां की माटी में जन्मा जूझा,

जीवन का भार कहार सदृश ही ढोता है ll


आओ भारत की माटी का सम्मान करें,

इस पावन माटी से ही माथा सजा रहे ।

अध्यात्म शौर्य तप वैभव त्याग पराक्रम से,

फहराती नभ में भारत मां की ध्वजा रहे ll




हम शस्त्र शास्त्र संयोग पराक्रम पौरुष का वरण करें

हमारे अन्दर ब्रह्म ज्ञान के लिए समर्पण हो

राष्ट्र -हित में प्राण अर्पित करने की ललक हो

स्मृतियां आनन्द देती हैं ऐसी स्मृतियां जब हमारे अन्दर पल्लवित होने लगती हैं तो श्रुति के पश्चात् उन स्मृतियों का संपादन होने लगता है वही हमारी मार्गदर्शक हो जाती हैं अपने मार्गदर्शक हम स्वयं हैं

हमारे अन्दर का तेजस संयम साधना के साथ प्रतिफलित होने लगता है हमें स्वयं ही दिशा दृष्टि मिलने लगती है

आत्मानुभूति की भाषा अद्भुत है

इसका प्रयास और अभ्यास करें

जल्दी जागें खानपान की सात्विकता आसन ध्यान प्राणायाम पर ध्यान दें

सदाचार से अपने परिवर्तन की समीक्षा करें

विश्व में शान्ति के लिए कमर कसें

संपूर्ण विश्व आर्य बने इसका प्रयास करें


इसके अतिरिक्त

तबले वाले  श्री पांडेय जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें

4.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 04-07- 2023

 तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् । पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रुणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥

(शुक्लयजुर्वेदसंहिता, अध्याय 36, मंत्र 24)




प्रस्तुत है अनागतविधातृ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष

प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 04-07- 2023


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  705 वां सार -संक्षेप

1 :दूरदर्शी



आत्मज्ञान की इस नित्य कक्षा में आचार्य जी   के सदाचारमय विचार हम भ्रमित मनुष्यों को मनुष्यत्व की अनुभूति कराके समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बनाने का प्रयास करते हैं

ये विचार आत्मीयता वाले भाव के विस्तार की आवश्यकता पर बल देते हैं क्योंकि आत्मीयता ही हमें परमात्मा के निकट पहुंचाती है यानि उसके रहस्य को हम जान जाते हैं 

आइये  इस कक्षा पर श्रद्धा और विश्वास  करके इससे लाभ प्राप्त करें



संसार एक महारंगमंच है इसकी कथाएं अनन्त हैं सृष्टि स्रष्टा संचालन विलयन अद्भुत  है कभी हम मनुष्यों का इससे लगाव कभी दुराव होता है

हम इसके अभिनेता हैं अलग अलग दायित्व हैं

हम अपने दायित्व का उचित रूप से निर्वाह करें

हम सबके अंदर गुरु विद्यमान है वह गुरु संपूर्ण शरीर चक्र में जीवन चक्र में संसार चक्र में स्रष्टा के प्राप्त करने के भाव में कभी आनन्दित तो कभी व्यथित रहता है सफलता के लिए संघर्ष करता है

ऐसा है ये संसार

इस संसार के सत्य को समझने के लिए मनुष्य में ऐसी ज्ञान -गरिमा प्रविष्ट है

उसे जानकर कुछ मनुष्य  आनन्द का अनुभव करते हैं और 

कष्टों को भूल जाते हैं

सारे ग्रंथ इसी के प्रमाण हैं 

इसी में रामचरित मानस तो अद्भुत है जिसके दो पृष्ठों की सारी चौपाइयों का अर्थ भी कोई ठीक से नहीं बता सकता 


अध्यात्म लेकिन शौर्य को संयुत करती तुलसीदास जी की इसी ग्रंथ की ये पंक्तियां हमें रामत्व का वास्तविक अर्थ दिखलाती हैं

इतिहास की उन भूलों को याद करके हम सजग सचेत रहें


प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥17॥

(सोरठा )


मैं पवनकुमार श्री हनुमानजी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी अरण्य को भस्म करने के लिए अग्नि के समान हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं  जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष बाण धारण किए प्रभु  निवास करते हैं


इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी को मानस के किस बहुत अच्छे अध्येता ने  पढ़ाया


दीनदयाल जी के जन्मदिन पर एक दिन के स्थान पर साप्ताहिक वार्षिकोत्सव करने का सुझाव किसने दिया था जीप का क्या प्रसंग है

भैया यज्ञदत्त भैया पंकज जी का नाम क्यों आया  गुरुत्व क्या है आदि जानने के लिए सुनें

3.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा ),विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 03-07- 2023

 बलिहारी गुरु आपकी, घरी घरी सौ बार।

मानुष तैं देवता किया, करत न लागी बार॥


समाजसुधारक कुरीतियों के निवारक गुरु रामानन्द के प्रति अपार भाव रखने वाले कबीरदास जी कहते हैं कि मैं अपने गुरु पर हर क्षण सैकड़ों बार न्यौछावर होता हूँ जिन्होनें मुझको बिना देर लगाये मनुष्य से देवता कर दिया


प्रस्तुत है अनन्यसदृश ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा ),विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 03-07- 2023


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  704 वां सार -संक्षेप

1 :अनुपम




आत्मज्ञान की इस नित्य पाठशाला में   ज्ञान के प्रकाश से समृद्ध आचार्य जी



(सतगुर की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। 


लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावण हार॥ 


ज्ञान  से संपन्न सद्गुरु की महिमा अनन्त है। उन्होंने मेरा जो उपकार किया है वह भी सीमारहित है। उन्होंने मेरे अपार शक्ति संपन्न ज्ञान-चक्षु को खोल दिया जिससे मैं परम तत्त्व का साक्षात्कार कर सका। ईश्वरीय आलोक को दृश्य बनाने का श्रेय ऐसे महान गुरु को ही है।)



  के सदाचारमय विचार अपार शक्ति से सम्पन्न किन्तु भ्रमित हम मनुष्यों को मनुष्यत्व की अनुभूति कराके समाज और राष्ट्र,

जो संबन्धों की पूजा करता है भावों की पूजा करता है,

के प्रति निष्ठा को जाग्रत कराते हैं

 भगवान्  की विशेष कृपा  हमारा अज्ञान भय भ्रम दूर करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराती है

 यह पाठशाला ऐसा ही एक अवसर है 

आइये  इस पर अटूट विश्वास  करके इससे लाभ प्राप्त करें ईश्वरीय आलोक का दर्शन करें 

आचार्य जी ने बताया कि गुरु रामानन्द  जिनका रामानन्दी संप्रदाय चल गया (गुरु रामभद्राचार्य जी भी इसी संप्रदाय के हैं )ने कबीर को भगाया नहीं उनके आसपास के लोगों ने उन्हें फटकने नहीं दिया होगा और फिर जब कृपा हुई 

तो कबीर रामानन्द का हो गया 

सतगुर हम सूँ रीझि करि, कहा एक परसंग।

बरसा बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥


प्रेमाश्रु सारा कलुष धो देते हैं

तुलसीदास ने गुरु को शंकर रूप कहा अर्थात् कल्याण करने वाला

गुरु शिष्य परम्परा अद्भुत है

भगवान् दत्तात्रेय का आगमवर्ग में अत्यन्त महत्त्व है आगम तन्त्र शास्त्र का एक भाग है


वाराही तंत्र के अनुसार जिसमें सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा, सब कार्यों के साधन, पुरश्चरण, षट्कर्म- साधन और चार प्रकार के ध्यानयोग का वर्णन हो, उसे आगम कहते हैं


तन्त्र शास्त्र तीन भागों में विभक्त है— आगम, यामल और मुख्य तंत्र



तन्त्र का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार  है - “तनोति त्रायति तन्त्र”। अर्थात् तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है।

आचार्य जी ने महानिर्वाणतन्त्र का उल्लेख करते हुए बताया

कि कलियुग में अपवित्रता का बोलबाला है आगममार्ग के अतिरिक्त कोई गति नहीं है



आज गुरु पूर्णिमा के पवित्र दिन में एक ही चिन्तन करें

मैं शरीर मन विचार और मात्र तत्व नहीं हूं 

मैं तत्त्व शक्ति विश्वास का सामञ्जस्यपूर्ण स्वरूप हूं

(एकात्म मानवदर्शन ) मैं संसार और संसारेतर दोनों हूं



हम सभी का गुरू अपने हृदय में द्युतिमान है, 

वायु पर आसीन होकर गात में गतिमान है, 

उसी का हो ध्यान धारण उसी की आराधना, 

यही है युगधर्म प्यारे यही अपनी साधना।



कसाई क्या पूछता है यह किस प्रसंग में आया शिष्य या भक्त की क्या परिभाषा है आदि जानने के लिए सुनें

2.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 02-07- 2023

 प्रस्तुत है अनन्यहृदय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

चतुर्दशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 02-07- 2023


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  703 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त


आत्मज्ञान के इस नित्य कृत्य में  आत्मनिष्ठ आचार्य जी   के सदाचारमय विचार हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराके समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का बोध कराते हैं

 भगवान् राम की विशेष कृपा  हमारा अज्ञान  मिटाने के हमें तात्त्विक शक्तियां प्रदान करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराती है

 यह वेला ऐसा ही एक अवसर है 

आइये पूर्ण  विश्वास  कर इससे लाभ  उठाकर    आनन्द के पथ का अनुसरण कर लें


किसी भी संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए साधना की आवश्यकता होती है और वह साधना परमात्मा की कृपा से ही होती है इसलिए इष्ट की शरण में जाएं निराशा का चिन्तन त्यागें 


पढ़ना गुनना चिन्तन मनन करना महत्त्वपूर्ण विषयों को व्याख्यायित करना

शिष्य के मन में सीखने की इच्छा को जाग्रत करना

 एक शिक्षक का धर्म है


एक अच्छा शिक्षक एक छात्र के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है


शिक्षा और शिक्षक संसार की संस्कृति का सत्य है

देखा जाए तो हर व्यक्ति शिक्षक है और उसे यदि यह अनुभव है  तब उसका शिक्षकत्व  उसे राह से भटकने ही नहीं देगा



ऐसे शिक्षक भी हैं जिनका उद्देश्य होता है शिक्षकत्व भूलकर नौकरी करना धन कमाना सुख साधन चाहना

स्वार्थ के लिए चापलूसी करना और

फिर वे सुख साधन के क्षरण पर विलाप करते हैं




लेकिन कुछ ऐसे शिक्षक हैं जो संसार को राह दिखाते हैं अपने गायन से संसार को रागमय बना देते हैं

आचार्य जी ऐसे ही एक शिक्षक हैं उन्हें लगता है हम राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् रहें

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म के महत्त्व को समझें अपने प्रचुर साहित्य का अध्ययन कर उससे लाभ उठाएं खानपान सही रखें संगठित रहें  दुष्टों से सजग सचेत रहें Relay Race की तरह baton दूसरे को सौंपें 

उनका उद्देश्य है संसार के संघर्षों को चुनौती के रूप में लेना अंधकार को मिटाना उनका धर्म है 

आचार्य जी कहते हैं


मैं अमा का दीप हूँ जलता रहूँगा

चाँदनी मुझको न छेड़े आज, कह दो |

जानता हूं अब अन्धेरे बढ़ रहे हैं 

क्षितिज पर बादल घनेरे चढ़ रहे हैं

आँधियाँ कालिख धरा की ढो रही है

 व्याधियाँ हर खेत में दुःख बो रही है

 फूँक दो अरमान की अरथी हमारी

मैं व्यथा का गीत हूँ चलता रहूँगा।

मैं अमा का दीप..... ।।१।। 



मानता हूँ डगर  यह दुर्गम बहुत है

प्राण का पाथेय चुकता जा रहा है 

प्यास अधरों की जलाशय खोजती है

भाव का अभियान रुकता जा रहा है

काल से कह दो कि अपनी आस छोड़े

 हिमशिखर का मीत हूँ गलता रहूँगा

मैं अमा का दीप......।।२।।


रात प्रात का संघर्ष संसार में चल रहा है हमारा दीपक की भांति एक कर्तव्य है




कुछ ऐसे शिक्षक हैं जो संसार के सत्य को समझ लेते हैं लेकिन किसी को बताते नहीं हैं मौन रहते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि


करुण रस में भी आनन्द है

दशरथ कहते हैं


हा रघुनंदन प्रान पिरीते। तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते॥

हा जानकी लखन हा रघुबर। हा पितु हित चित चातक जलधर॥4॥


राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम।

तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम॥155॥


जिअन मरन फलु दसरथ पावा। अंड अनेक अमल जसु छावा॥

जिअत राम बिधु बदनु निहारा। राम बिरह करि मरनु सँवारा॥1॥


जीने और मरने का फल तो दशरथ जी ने ही प्राप्त किया , जिनका यश अनेक ब्रह्मांडों में छा गया। जीते जी तो श्री राम के विधु -तुल्य मुख को देखा और श्री राम के विरह को निमित्त बनाकर अपना मरण भी सुधार लिया


आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया चामण्ड राय कौन कहलाते हैं आदि जानने के लिए सुनें

1.7.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी ,विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 01-07- 2023

 प्रस्तुत है अनन्यमानस् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष

त्रयोदशी ,विक्रम संवत् 2080

  तदनुसार 01-07- 2023


का  सदाचार संप्रेषण 

 

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  702 वां सार -संक्षेप

1 :एकाग्रचित्त




आत्मज्ञान के इस नित्य कर्तव्य में  आचार्य जी   के सदाचारमय विचार हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने की,परिवार, अक्षय समाज और  अक्षय राष्ट्र के प्रति हमारे द्वारा अपने कर्तव्य का अनुभव करने की प्रेरणा देते हैं l


आइये  विश्वासपूर्वक इस वेला का लाभ  उठाकर  शक्ति  बुद्धि सामर्थ्य संचित करते हुए

(इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी प्राप्ति के लिए परिश्रम आवश्यक है)


 सांसारिकता से भी पूर्ण सरोकार रखते हुए  क्योंकि हम उस संसार में रह रहे हैं जो गुणों अवगुणों से सनी हुई है



भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥

कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना॥2॥



भले-बुरे सभी  लोग ब्रह्मा द्वारा पैदा किए हुए हैं, किन्तु गुण और दोषों का विचार कर वेदों ने उनका विभाजन कर दिया है। वेद, इतिहास, पुराण कहते हैं कि ब्रह्मा की यह अद्भुत सृष्टि गुणों अवगुणों से भरी हुई है 

अभ्यास में अत्यन्त कठिन संतत्व अपनाने का प्रयास करते हुए प्रगति का पथ  पकड़ लें


अपनी अपनी भूमिकाओं को पहचानें

हमारे यहां बहुत अन्याय हुए हैं उनके परिष्करण की  आवश्यकता का हम लोग ध्यान रखें 

आइये आज शब्दाद्वैत की चर्चा करते हैं 

हमारे यहां अद्वैत द्वैत शुद्धाद्वैत विशिष्टाद्वैत आदि की तरह शब्दाद्वैत भी है



भर्तृहरि ने वाक्यपदीय में शब्दाद्वैतवाद को दार्शनिक रूप से प्रस्तुत किया है


वाक्यपदीय संस्कृत व्याकरण का एक अत्यन्त प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसे त्रिकाण्डी भी कहते हैं। वाक्यपदीय, व्याकरण शृंखला का मुख्य दार्शनिक ग्रन्थ है।


इसमें भर्तृहरि ने भाषा  की प्रकृति और उसके बाह्य जगत से सम्बन्ध पर अपने विचार दिये हैं। यह ग्रंथ तीन कांडों में  है


पहले काण्ड ब्रह्मकाण्ड  में शब्द की प्रकृति की व्याख्या  है। इसमें शब्द जिसे ब्रह्म माना गया है और ब्रह्म की प्राप्ति हेतु शब्द को प्रमुख साधन कहा गया है।


दूसरे काण्ड में वाक्य के विषय में विभिन्न मत रखे हैं।

तीसरे काण्ड में अन्य दार्शनिक रीतियों के विषयों की चर्चा की गयी है। इसमें भर्तृहरि यह दर्शाते हैं कि विभिन्न मत एक ही वस्तु के विभिन्न आयामों को प्रकाशित करते हैं।



व्याकरण शास्त्र एक तरह से आगम शास्त्र है जिसकी अभिव्यक्ति महेश्वर से है। आगम के अनुसार शब्द के चार स्वरूप हैं

परा ,पश्यंती, मध्यमा और वैखरी


वास्तव में शब्दब्रह्म की उपासना ही ब्रह्म की उपासना है  इसलिये हमें बोलते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए बिना समझे किसी पर बहुत अधिक टिप्पणी भी नहीं करनी चाहिए

हमारे यहां इसलिए मौन का अभ्यास भी है प्राणायाम पर ध्यान दें

आचार्य जी ने लेखन योग पर जोर दिया


इसके अलावा

आचार्य जी  ने  एक सज्जन श्री नारायण चन्द्र पाण्डेय जी की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिए सुनें