31.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 31 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *763 वां*

 हमें परमात्म सत्ता पर अगर विश्वास दृढ़ होता,

सहज अध्यात्म का स्वर ही हमारी श्वास में होता,

धरा अपनी मलावृत कभी किंचित हो न सकती थी,

अनंतानंददायी सौम्य शुचि मंगल सदा होता ।।


प्रस्तुत है  शुचिव्रत ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 31 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *763 वां* सार -संक्षेप


 1:  सद्गुणी




एक लम्बी ऋषि परम्परा वाला अत्यन्त अद्भुत भारतीय जीवन दर्शन, जिसे  अस्ताचल देशों को देखकर भ्रमित हो जाने पर हम लोगों ने अनदेखा कर दिया,मानता है कि परमात्मा आदि और अन्त से रहित है  न इसका अन्त है न ही इसके आदि की सुस्पष्ट कल्पना करना संभव है

धन्य-धन्य मेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया,

धन्य तुम्हारी स्नेह-कृपणता, जिसने मुझे उदार बनाया,

मेरी अन्धभक्ति को केवल इतना मन्द प्रकाश बहुत है

जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है।

-बलबीर 'रंग '

प्रायः हम कहते हुए सुनते हैं कि वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं 

वेद अर्थात् ज्ञान

वेद अपौरुषेय हैं

हम पुरुषों के द्वारा उनकी रचना नहीं हुई है

परमात्मा से इस ज्ञान को ऋषियों ने प्राप्त किया ऋषियों के विषय में कहा जाता है 

ऋषयो मन्त्र द्रष्टारः न तु कर्तारः!! अर्थात् अनुसंधानकर्ता ऋषियों ने भावजगत में उत्पन्न हुए मंत्रों का दर्शन किया है न कि इनकी रचना की है

निर्विकल्प समाधि में लीन परमात्मा जब विकारी हुआ

अर्थात् उसने इच्छा प्रकट की

एकोऽहं बहुस्याम

तो उसने यह सृष्टि रच दी 

बहुत होने की कल्पना ही कवि को कविता के लिए लेखक को लेखन के लिए कलाकार को कलाकृति बनाने के लिए प्रेरित करता है 

ॐ परमात्मा  के मुख से निकलने वाला पहला शब्द है

विवेकानन्द के अनुसार वेद का अर्थ है विभिन्न आध्यात्मिक सत्यों का संचय


मूल रूप से  हम का आत्म्साक्षात्कार अध्यात्म एक है लेकिन उसके स्वरूप भिन्न भिन्न हैं यह अध्यात्म हमारे भीतर प्रविष्ट है जब हम उसे विस्मृत कर केवल इन्द्रियों को केन्द्र में रखकर जीवन यापन करते हैं तो हम संसारी जीव हो जाते हैं यही सांसारिकता हमें कभी कष्ट देती है कभी सुखी करती है

इसलिए आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम अध्यात्म का आश्रय लेकर अपने जीवन को उन्नत समृद्ध बनाएं अध्यात्म के महत्त्व को समझने के लिए हमें अपने अद्भुत ग्रंथों का आश्रय लेना होगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संदीप शुक्ल का नाम क्यों लिया मां मुझे क्षमा करो किसने कहा आदि जानने के लिए सुनें

30.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *762 वां*

 प्रस्तुत है  प्रतूर्ण ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 30 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *762 वां* सार -संक्षेप


 1:  फुर्तीला



शिक्षक के रूप में आचार्य जी तो एक उदाहरण हैं ही किन्तु आचार्य जी का सदैव प्रयास रहा है कि वे अपने शिष्यों को इतना प्रेरित कर दें इतना अधिक उत्साहित कर दें उनमें इतनी अधिक ऊर्जा भर दें कि वे भी विश्व के लिए राष्ट्र के लिए समाज के लिए एक उदाहरण बन जाएं

इन सदाचार वेलाओं से आचार्य जी हमें नित्य प्रेरित उत्साहित ऊर्जित करते हैं ईश्वर की यह महती कृपा है

यह विश्वास रखें  ईश्वर जो करता है सब अच्छा ही करता है 

आइये इन सदाचार वेलाओं से लाभ प्राप्त कर हम बुद्धि शौर्य शक्ति सम्पन्न हो जाएं भय भ्रम मोह मुक्त हो जाएं

समस्याओं से निपटने का हौसला प्राप्त कर पाएं अपने जीवन को उन्नत और समृद्ध बनाने की दिशा में अग्रसर हो जाएं

हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं

वेदों में संसार का ज्ञान है उपनिषदों में अध्यात्म की चर्चा है इसी तरह गीता और मानस भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक ग्रंथ हैं

आइये गीता  के दूसरे अध्याय में प्रविष्ट हो जाएं जो गीता का सार भी है 


मोह से हम अपना कर्तव्य ही भूल जाते हैं जैसा अर्जुन के साथ हुआ


भगवान कृष्ण मोहग्रस्त ज्ञानी अर्जुन को  समरांगण में समझा रहे हैं क्योंकि अर्जुन योद्धा के रूप में अपनी क्रिया को भूल गया है


अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।


यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः।।1.45।।


यह बड़े आश्चर्य और दुःख की बात है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय किए हुए हैं, राज्य और सुख के लालच में स्वजनों को ही मारने के लिये तैयार हो गये हैं

तो भगवान् कहते हैं


श्री भगवानुवाच


कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।


अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2.2।।


हे अर्जुन!

 इस विषम अवसर पर तुम्हारे अन्दर यह कायरता  कैसे आ गई जिससे श्रेष्ठ पुरुष दूर रहते हैं यह कायरता  स्वर्ग को देने वाली नहीं है और न इससे कीर्ति मिलेगी

ज्ञान को ज्ञान से ही शमित किया जा सकता है और यही भगवान कृष्ण ने किया



त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।


निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।


वेद त्रिगुण के कार्य को ही वर्णित करते हैं

 हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित हो जाओ , निर्द्वन्द्व हो जाओ, परमात्मा में लीन हो जाओ , योगक्षेम की चाह  मत रखो


आत्मा नदी संयम पुण्यतीर्था सत्योदकं शील तटा दयोर्मि । तत्राभिषेकं कुरु पाण्डुपुत्र न वारिणा शुद्धयते चान्तरात्मा ।

आचार्य जी इसकी व्याख्या करके बताते हैं कि


ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


ऊपर की ओर मुख किए मूल वाले तथा नीचे की ओर मुख किए शाखा वाले जिस संसार रूपी अश्वत्थवृक्ष को अव्यय कहते हैं  वेद जिसके पत्ते हैं, उस संसार रूपी वृक्ष को जो व्यक्ति जानता है, वह सम्पूर्ण वेदों का ज्ञाता है

आचार्य जी ने इसके विस्तार में और क्या बताया भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ आज आचार्य जी कहां आये हुए हैं आदि जानने के लिए सुनें यह संप्रेषण 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक सूचना दी कि आज उन्नाव विद्यालय में कार्यक्रम है इसके बाद दो सितम्बर और तीन सितंबर को भी कार्यक्रम हैं तीन को कवि गोष्ठी में

१. श्री अंसार कम्बरी जी कानपुर २. डॉ. सुरेश अवस्थी जी कानपुर ३. डॉ. कमल मुसद्दी जी कानपुर ४. श्रीमती व्याख्या मिश्र जी लखनऊ ५. श्री अतुल बाजपेयी जी लखनऊ ६. श्री प्रख्यात मिश्र जी लखनऊ ७. श्री कुमार दिनेश जी उन्नाव ८. डॉ. पवन मिश्र जी कानपुर पधार रहे हैं

29.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *761 वां*

 प्रस्तुत है  प्रदानशूर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 29 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *761 वां* सार -संक्षेप


 1:  अति दानशील  पुरुष



मोक्ष परम अवस्था है जिसका अनुभव किया जा सकता है लेकिन इसे अभ्यास में लाना लगभग असंभव है मोक्ष का अर्थ है किसी भी प्रकार की चिन्ता नहीं जैसे न संबन्धों की न विचारों की न घटनाओं की न धन संपदा की चिन्ता

हम लोग मुमुक्षु हो सकते हैं लेकिन मुक्त नहीं क्यों कि हम संसार में रहते हैं इसलिए सांसारिक कर्तव्यों से विमुखता असंभव है

हम लोग व्यवधानों से भी मुक्त नहीं रह सकते इसलिए उनके आने पर भ्रमित नहीं होना चाहिए मानव का स्वभाव विविध प्रकार का है परमात्मा का भाव उसमें अवतरित हुआ है भाषा भाव विचार लेखन कृत्य मनुष्य के द्वारा ही संभव है पशु पक्षी इससे भिन्न हैं उनका स्वभाव एक ही प्रकार का होता है

 हम मनुष्य मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें इसके लिए हमारा मार्गदर्शन होता रहा है हमारी संस्कृति हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं और  आचार्य जी का प्रयास रहता है कि शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आधार लेते हुए हमारी उन्मुखता इनके प्रति रहे ताकि हम सदाचारमय विचार ग्रहण कर अपने जीवन को उन्नत बना सकें श्रीमद्भगवद्गीता का मार्गदर्शन अद्भुत है इसके अध्ययन से हम किसी भी परिस्थिति का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं अपने जीवन को उन्नत बनाने के इसमें उपाय हैं


कर्तव्य और अकर्तव्य के निर्णय  में यह प्रमाणित ग्रंथ है शास्त्रोक्त विधान को जानकर हमें अपने कर्म करने  के लिए उद्यत होना चाहिए इस ग्रंथ का आशय है

 इसमें  शरीर संबन्धी वाणी संबन्धी तप क्या हैं यह इस प्रकार बतलाया गया है


देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।


ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।



देवताओं, ब्राह्मणों , गुरुओं और ज्ञानी जनों का पूजन अर्थात् समर्पण , शुद्धता,सरलता,ब्रह्मचर्य (ब्रह्म की दिशा में उन्मुखता )और अहिंसा (किसी को कष्ट न देना लेकिन स्वयं की रक्षा करना अर्थात् हमें कायरता नहीं दिखानी है ), यह शरीर संबंधी तप  है


अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।


स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।।17.15।।



उद्वेग न करने वाला, सत्य, प्रिय, हित करने वाला भाषण, स्वाध्याय व अभ्यास करना   वाणी सम्बन्धी तप  है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आचार्य श्री आनन्द जी का नाम क्यों लिया भैया मुकेश जी भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

28.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *760 वां*

 उठो जागो विनिद्रित भाव को त्यागो 

विधाता से विवेकी शौर्यमय उत्साह शुभ माँगो, 

न झिझको एक पल भी गीदड़ों के शोर संभ्रम से, 

बढ़ो पुरुषार्थ से पूरित कहो "साथी उठो जागो" ।।

✍️ओम शंकर 16-09-2022



प्रस्तुत है  विचारशील ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 28 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *760 वां* सार -संक्षेप


 1:  सचेत



बहुत से विषयों को अपने में समेटे इन सदाचार संप्रेषणों के सदाचारमय विचारों  से हम लाभान्वित हो रहे हैं और अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिज्ञासु और जिज्ञासा -शमनकर्ता की दोहरी भूमिका निभाते हुए आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है


राष्ट्राभिमुख सदस्यों वाले अपने कुटुम्ब के विस्तार से हम सबको आनन्द की अनुभूति हो रही है


अपनेपन का यह विस्तार अद्भुत है हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने इसी अपनेपन को संपूर्ण विश्व को सिखाने का प्रयास करने वाले भारत देश में जन्म लिया है यह अपनापन ही तो संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब मानता है



इस अपनेपन को आत्मसात् करने वाले विकट से विकट समस्याओं के आने पर भयभीत नहीं होते और लगातार अपने लक्ष्य की ओर लगे रहते हैं



संसार समुद्री भंवरों में डूबता  और उतराता हूं

इन अद्भुत धार भंवर लहरों से   लड़ता औऱ पचाता हूं

क्या अद्भुत तेरी लीला है 

क्षण भर भी  जब कुछ जान सका 

उस क्षण भर हंसकर बाकी हरदम रोता और रुलाता हूं


हम परमात्मा के ही अंश हैं और जब उसके अंश हैं तो हम निराश कैसे रह सकते हैं

परमात्म -चिन्तन ही हमें निराश होने से बचाता है और आनन्द की अनुभूति कराता है हमें अध्यात्म -चिन्तन के ऐसे ही क्षणों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए और विधाता से याचना करनी चाहिए कि वह हमें विवेकी उत्साहित सचेत शौर्ययुक्त शक्तिसम्पन्न बनाए ताकि संकट के इस काल में  गीदड़ों के शोर संभ्रम से हम एक पल भी झिझक न सकें लक्ष्य -पथ से डिग न सकें और हमारा लक्ष्य है अखंड भारत


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संपूर्ण सिंह और भैया अजय (कायमगंज वाले ) का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

27.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *759 वां*

 प्रस्तुत है गुणाढ्य ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 27 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *759 वां* सार -संक्षेप


 1:  गुणों से समृद्ध


अनन्त गुणों से समृद्ध हनुमान जी बिना थके अनेक काम कर रहे हैं हमारी रक्षा कर रहे हैं वे हमारी प्राणिक ऊर्जा को उचित स्थान पर पहुंचाने के लिए संकल्पित रहते हैं हम उनके भक्त हैं

हम लोगों के भाव विचार बुद्धि शक्ति राष्ट्रानुरागी बनाने के लिए वे नित्य प्रयासरत रहते हैं उनकी कृपा से हमें इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त है हमें जिज्ञासु बनकर इनका लाभ उठाना चाहिए इनके विषय हमें संतुष्ट करते हैं हमें उत्साहित करते हैं और हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं 

जड़ चेतन के अद्भुत संयोग वाले इस नाम रूपात्मक जगत, जो काल का चबेना है, की  सांसारिकता में ही हम मनुष्य,  जो ईश्वर की एक अद्भुत कृति हैं,फंसे न रहे इसलिए संसारेतर चिन्तन के लिए भी प्रेरित करते हैं



झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद | जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ||



(कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग संसार की भौतिक वस्तुओं के उपभोग को सुख मानते हैं वह  झूठा सुख है। सच्चा सुख तो ईश्वर की भक्ति में है। यह संसार और इसका भौतिकवाद तो क्षणभंगुर है)

हम धन्य हैं क्योंकि हमारा एक ऐसे दुर्लभ देश भारत में जन्म हुआ है जिसमें हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराने वाले अनन्त ऋषि चिन्तक विचारक हुए हैं और उनकी आत्मीयता ने हमें कुमार्ग पर चलने से बचाने का बार बार प्रयास किया है और जिन्हें इस मनुष्यत्व की अनुभूति करने का अवसर नहीं मिल पाया है वे अन्य हैं

मनुष्यत्व की अनुभूति करने पर हम पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानने लगते हैं 

विस्तार लिया यह अपनापन अद्भुत है इसके लिए हमें ईश्वर को बारंबार धन्यवाद देना चाहिए


त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।

त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥


तू दयालु, दीन हौं , तू दानि , हौं भिखारी।

हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप-पुंज-हारी।1।


नाथ तू अनाथको, अनाथ कौन मोसो

मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो।2।


परमात्मा और हमारे बहुत सारे सम्बन्ध हैं इन संबन्धों का विस्तार ही इस संसार का आनन्द है इन संबन्धों में स्वार्थ का कोई स्थान नहीं

भारत ने तो सदैव संबन्धों की  प्रगाढ़ता में विश्वास किया है वियोजन से दूरी बनाई है


इसके अतिरिक्त मेले में भी हम अपने को अकेला क्यों पाते हैं इसका उत्तर जानने के लिए और  आचार्य जी ने भैया यज्ञदत्त भैया प्रफ़ुल्लित भैया मनीष कृष्णा भैया शुभेन्दु का नाम क्यों लिया इस जिज्ञासा को शमित करने के लिए सुनें यह संप्रेषण

26.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *758 वां*

 स्वदेश के सपूत उठ परीक्षा कड़ी हुई

विभिन्न रूप धार शत्रुसैन्य उठ खड़ी हुई, 

प्रशस्त पंथ कर उखाड़ कील सब गड़ी हुई 

कवच कुठार धार वीर युद्ध की घड़ी हुई।



प्रस्तुत है गुणगृध्नु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 26 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *758 वां* सार -संक्षेप


 1: अच्छे गुणों का इच्छुक




ये नित्य की सदाचार वेलाएं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराते हुए समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाती हैं हमारे विचारों को परिमार्जित करती हैं उन्हें एक सुस्पष्ट दिशा देती हैं जिससे हम भयमुक्त भ्रममुक्त लोभमुक्त द्वेषमुक्त होकर सांसारिक प्रपंचों के बीच में अपने जीवन को उन्नत बनाने में सक्षम हो जाते हैं  यह समय शान्ति प्रसन्नता सत्चिन्तन तार्किकता का है

स्वयं आनन्दमय जीवन की अनुभूति करते हुए भावी पीढ़ी को भी आनन्दमयी जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली भावना रखते हुए 

आइये सद्गुणों को आत्मसात् करने की अभिलाषा के साथ प्रवेश कर जाएं आज की इस सदाचार वेला में


एक सद्गुण यह भी है कि हम अपनी स्मृतियों को जाग्रत रखें ताकि किसी भी विषय को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने में हमें कठिनाई न हो


किसी भी समाज हित राष्ट्र हित के कार्य को करते समय अपने अंदर दम्भ न लाएं क्योंकि दम्भ पतन का कारण बनता है देशसेवा और समाजसेवा के अवसर बार बार तलाशें 


समस्याओं को झेलते समय हमारा राष्ट्र बार बार मुस्कराया है हमें ऐसे अपने राष्ट्र पर गर्व है इस राष्ट्र ने अपने सपूतों को बार बार चेताया है कि कार्य करते जाएं लेकिन दम्भ कभी न करें


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


ब्रह्मा ने इस जड़ चेतन विश्व को गुणमय दोषमय रचा है, किन्तु साधु रूपी हंस दोष रूपी जल को त्यागते हुए गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं

गुण के साथ दोष हैं इसमें आश्चर्य कुछ भी नहीं

नाट्य में नायक के साथ खलनायक का भी अस्तित्व है

इस भाव से चिन्तन करने में हमें उलझनें नहीं होती

हमारे राष्ट्र के शत्रुओं धर्म के शत्रुओं का अस्तित्व हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म  रामत्व की अनिवार्यता बताते हुए हमें उनसे सामना करने के लिए और अधिक सशक्त बनाता है

सचेत रहना जाग्रत रहना आवश्यक है  क्योंकि संकट का समय है

कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम्

संगठन महत्त्वपूर्ण है संगठन के किसी भी सदस्य में आये विकार को दूर करने का प्रयास  भी करना चाहिए

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि उन्नाव विद्यालय के माध्यम से युगभारती कुछ प्रयोग करे 

साथ ही हम दिन भर के कार्यों की रात्रि में समीक्षा करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज किस कार्यक्रम में आ रहे हैं स्वामी विवेकानन्द का कौन सा प्रसंग आचार्य जी ने बताया उन्नाव विद्यालय का वार्षिकोत्सव कब है आदि जानने के लिए सुने


25.8.23

श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *757 वां*

 हम जगत्पिता के अंश वंश देवोपम ऋषियों वाले हैं

 हम हैं प्रकाश के पुंज रूप में मेघश्याम मतवाले हैं

 हम अचल हिमालय की समाधि सागर-लहरों की उथल पुथल

 हम वृंदावन की धूलि और संगम का पावन गंगाजल 


 हम सत्य सनातन वेदमंत्र गीतायुत शुचि समराङ्गण हैं

 पौराणिक कथामंत्र गायक हम आदि सृजन के प्राङ्गण हैं

हम आत्मतुष्ट जगतीतल को परिवार मानने वाले हैं

निज स्वाभिमान के संपोषक जगजीवों के रखवाले हैं



अम्बर को पिता घरित्री को निज माता कहते आए हैं

 भगवान भरोसे रहकर सारे संकट सहते आए हैं

 हम आत्मबोध से युक्त कर्मयोद्धा निस्पृह संन्यासी हैं

 लघु क्षरणशील तन को धारे हम अजर अमर अविनाशी हैं



प्रस्तुत है गुणाकर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 25 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *757 वां* सार -संक्षेप


 1: गुणों की खान



इन सदाचार वेलाओं का अस्तित्व ईश्वर की  अद्भुत गुम्फना है जिसके माध्यम से हम राष्ट्रभक्तों का चिन्तन मनन भाव विचार क्रिया भक्ति संयम श्रद्धा अनुराग सदैव राष्ट्रोन्मुखी करने का संकल्प लेकर आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देते हुए हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं

अपने समय का सदुपयोग करते हुए हम अपने मानसिक    उत्थान  वैचारिक उन्नति सांसारिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए  गुणों की खान इन वेलाओं की प्रतिदिन प्रतीक्षा करते हैं ये हमारे उत्साह की वृद्धि में सहायक हैं इनसे प्रेरित होकर हम समाज -सेवा राष्ट्र- सेवा  करने में आनन्दित होते हैं

ये भाव विचार हमारे मन में प्रतिदिन आने चाहिए और हमें क्रिया में प्रवृत्त हो जाना चाहिए

राम नाम का आश्रय लेकर हम संकटों में घबराते नहीं हैं यह विश्वास रखना चाहिए

जीवन के लक्ष्य पर भी ध्यान दें औपनिषदिक चिन्तन भी अद्भुत है दृष्टि भी स्वच्छ रखने का प्रयास करें सचेत भी रहें समुद्र जैसी गहराई रखें किसी से भयभीत न हों

विचारों से विकृत लोगों से प्रभावित न हों 

साथ ही हमें इन भावों में भी जाना चाहिए कि हम कौन हैं हमारा कर्तव्य क्या है कौन पुरुष ब्रह्म प्राप्ति (परम स्वाद )के योग्य बन जाते हैं

गीता में


बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।

विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।


ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।।18.52।।


अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।


विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।।18.53।।


विशद बुद्धि से युक्त, धृति द्वारा आत्मसंयम कर, शब्दादि विषयों   राग-द्वेष का परित्याग कर,एकांत सेवी, सीमित आहार ग्रहण करने वाला  शरीर, वाणी और मन को संयत करने वाला  ध्यानयोग के अभ्यास में रत वैराग्य पर आश्रित

अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध परिग्रह को त्यागने वाला ममत्वभाव से रहित और अत्यन्त शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य है



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम परस्पर संवाद करें

इसके अतिरिक्त के के मोहम्मद की चर्चा क्यों हुई आचार्य जी दिल्ली में किन भैया से मिलेंगे आदि जानने के लिए सुनें

24.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *756 वां* l

 ये चन्दा रूस का ना ये जापान का

ना ये अमरीकन प्यारे ये तो है हिन्दुस्तान का

(इन्सान जाग उठा )


23 अगस्त, 2023 एक ऐतिहासिक दिन बना जब परमात्मा की एक अत्यन्त प्रिय कृति हिन्दुस्तान  चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बना

और इस देश का बच्चा बच्चा पुलकित हो उठा

आनन्द के इन क्षणों की अनुभूति करते हुए आइये जिज्ञासु बनकर प्रवेश कर जाएं आज की सदाचारवेला में 


प्रस्तुत है पुरुषचन्द्र ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 24 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *756 वां* सार -संक्षेप


 1: पुरुषों में चन्द्रमा अर्थात् एक श्रेष्ठ व्यक्ति



ऐ चांद तू न उतरा आंगन हमारे 

ले तेरे आंगन में हम आ गए।

ऐसा सजाया  तिरंगे से हमने

कि सारे ज़माने पे हम छा गए।।



चन्द्रमा से संबन्धित इस आनन्दित करने वाले समाचार से हम सभी राष्ट्रभक्तों का मन अत्यन्त भावुक और शरीर रोमांचित हो गया इसी भावुकता को उजागर करते हुए आचार्य जी लिखते हैं


मन भावुक तन पुलकायमान जाग्रत विवेक आनन्दित है 

तन मन जीवन चैतन्य युक्त विक्रम प्रज्ञान प्रमंडित है 

हम सतत प्रयास परिश्रम हैं परमेश्वर के विश्वासी हैं

बदरी केदार द्वारका मथुरा हम रामेश्वर काशी हैं.....


मिशन चंद्रयान-3 से जुड़े इसरो के सभी वैज्ञानिक  बधाई के पात्र हैं

इसी टीम का हिस्सा रहे अपने विद्यालय पं दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय के भैया गुलशन गुप्त जी

 २०१० बैच , आजाद नगर कानपुर निवासी  और इसरो अहमदाबाद (अंतरिक्ष उपयोग केंद्र) में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत 

भी  बधाई के पात्र हैं


हम मनुष्यों में जो जिज्ञासा रहती है उसी का परिणाम है कि हमारा यान चन्द्रमा के तल पर पहुंचा यदि हम इसके  भौतिक पक्ष को न देखें और आध्यात्मिक पक्ष को देखें तो




मैया, मैं तो चंद-खिलौना लैहौं। 


जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥ 


सुरी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं। 


ह्वैहौं पूत नंद बाबा कौ, तेरौ सुत न कहैहौं॥ 


आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं। 


हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥ 


तेरी सौं, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं। 


सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥



ये चन्द-खिलौना चन्दा मामा सूर्य देवता हमसे कब संयुत हुए इसका सतत चिन्तन आवश्यक है पूरे अंतरिक्ष पूरे ब्रह्माण्ड का भाव हमारे साहित्य में है


ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे------- जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे ---------(अपने नगर/गांव का नाम लें) पुण्य क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते :... तमेऽब्दे .. नाम संवत्सरे...... महामंगल्यप्रदे मासानां .... तिथौ... वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया....



यज्ञों की प्रधानता के कारण भारत  को कर्मभूमि तथा  अन्य द्वीपों को भोग- भूमि कहा गया है

गायत्री मन्त्र अद्भुत है सविता हमारी प्राणिक ऊर्जा है

हम किसी ग्रह को जीतने के लिए नहीं जाते उनकी स्थिति आदि की जानकारी लेते हैं

भारत अद्भुत है इसकी भारतीयता हमें समझनी चाहिए

सफलता आनन्द -सिन्धु का प्रसाद है हमें आत्मोन्नति की भाषा बोलनी चाहिए शक्ति के साथ संयम का सामञ्जस्य रखें अध्यात्म के साथ पौरुष शौर्य पराक्रम आदि का संयोजन करें और  सत्कर्म के लिए उद्यत हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया मोहन जी भैया मनीष जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

23.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *755 वां*

 देशभक्त का धर्म है, क्षुद्र स्वार्थ का त्याग। 

सत्पुरुषों का संगठन, धरती से अनुराग। ।



प्रस्तुत है कोटिवेधिन् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 23 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *755 वां* सार -संक्षेप


 1: बहुत कठिन कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने वाला


कठिन से कठिन कार्यों को आसानी से सम्पन्न करने का हौसला प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास उत्पन्न करने के लिए  संसार और सार के बीच वाले मार्ग पर आनन्दपूर्वक चलने के लिए मन को सही दिशा देने के लिए  आइये आज की इस भावभूमि पर उतर जाएं और अपने भावों को ध्यानस्थ करने की प्रेरणा ले लें

भाव ध्यानस्थ करने पर हमारी कृति वाणी विचार प्रस्तुति मङ्गलमय हो जाती है


हम देशभक्तों का कर्तव्य है कि  क्षुद्र स्वार्थ का त्याग करते हुए हम अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् रहें आज की परिस्थितियां ऐसी हैं कि हम अपने संगठन को और अधिक सशक्त बनाएं


दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्मों का त्याग न करने की कर्म के फल की इच्छा न करने की सीख देने वाली 

गीता का दूसरा अध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है संकट विकट होने पर इस अध्याय का अध्ययन करना चाहिए

उसमें बहुत सारी समस्याएं परिलक्षित होती हैं लेकिन भगवान कृष्ण ने उन सारी समस्याओं के हल भी प्रस्तुत कर दिए हैं


स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।


स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।2.54।।


स्थितधी का अर्थ है स्थिति को जानना पहचानना 

हमारी स्थिति व्यावहारिक सांसारिक आध्यात्मिक सैद्धान्तिक हो सकती है या हम भ्रामक स्थिति में भी हो सकते हैं जो उस स्थिति को जान लेता है वह स्थितप्रज्ञ है


उसकी भाषा क्या है उसका व्यवहार कैसा हो सकता है अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर भगवान् कृष्ण देते हुए कहते हैं


प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।



सारी कामनाओं का त्याग करने वाला और स्वयं से संतुष्ट रहने वाला स्थितप्रज्ञ है


दुःखों के मिलने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता और सुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में स्पृहा नहीं रहती  और राग भय क्रोध से दूर रहने वाला स्थिरबुद्धि कहलाता है


यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।


नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।2.57।।


सब जगह आसक्तिरहित होकर जो मनुष्य  शुभ अशुभ के मिलने पर न तो अभिनन्दित होता है और न द्वेष करता है, उस मनुष्य की बुद्धि प्रतिष्ठित है।

इसके अतिरिक्त ऋषियों की भूमिका में कौन है

Anti wrinkle cream की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

22.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *754 वां*

 नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥

राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥


प्रस्तुत है वैदुष्य -प्रकाश ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 22 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *754 वां* सार -संक्षेप


 1: वैदुष्यम् =ज्ञान

आइये प्रवेश करें इस सदाचार वेला में जो हमारी 

आत्मोन्नाति आत्मशक्ति आत्मभक्ति आत्मविश्वास का उपाय है

यहां हम कौन हैं मनुष्य के रूप में जन्म लिया है तो हमारा मानवधर्म क्या है आदि प्रश्नों का उत्तर मिलता है 

इस वेला से हमारी छिपी हुई शक्तियां जाग्रत होती हैं 


शरीर हमारा निकटतम साथी है हमें इस साधन की सेवा करनी चाहिए इसे बोझ नहीं समझना चाहिए यदि यह बोझ लगता है तो इस पर चिन्तन की आवश्यकता है सद्संगति से हमें यह बोझ नहीं लगेगा और यदि सद्संगति भी न मिले तो केवल राम नाम का जप करें

कलियुग का शरीर बहुत लम्बी आयु का नहीं होता हम इस कलियुगी शरीर में बहुत कठिन साधनाओं का समावेश नहीं कर सकते 

किसी भी विकार के आने पर रामनाम का जप करें इसके जाप के साथ पुरुषार्थ पराक्रम संयम के उदाहरण भगवान राम का जीवन भी हमारे अन्दर प्रवेश करने लगेगा जिसकी आज के संकटकालीन समय में बहुत आवश्यकता है हमारे अन्दर शक्ति सामर्थ्य का प्रवेश होगा और हम


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

जैसा प्रण कर पाएंगे 

हम आनन्दमय जीवन बिता पाएंगे यही मोक्ष की अवस्था भी है मोक्ष का अर्थ शरीर त्याग नहीं है 

हमारी मानसिकता परिशुद्ध होने पर कृत्य भी सात्विक होंगे

राम नाम का अभिमन्त्रण, मन्त्र,अनुमन्त्रण, यन्त्र,तन्त्र

हमारे भीतर चलता रहे तो यह हमारा कल्याण करेगा


नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।

जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥ 26॥


कलियुग (  कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना )   में राम का नाम(  सकल सुकृत फल राम सनेहू ) कल्पवृक्ष और कल्याण का निवास है, जिसको याद करने से निकृष्ट तुलसीदास तुलसी के समान पवित्र हो गया



भगवान् राम के नाम की तरह हमारा राष्ट्र भी पुरुषार्थ पराक्रम संयम का उदाहरण है हम तो राष्ट्र के नाम का भी जप कर सकते हैं और करना भी चाहिए 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


इसके अतिरिक्त चोर अपना अनुभव कहां बताते थे बैदक का बस्ता किसके पास था चोरी का इल्जाम किस पर लगा आदि जानने के लिए सुनें

21.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *753 वां*

 मन रे तू काहे ना धीर धरे

ओ निर्मोही मोह ना जाने जिनका मोह करे

मन रे तू काहे ना धीर धरे



प्रस्तुत है पलाशन -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 21 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *753 वां* सार -संक्षेप


 1: पलाशनः =राक्षस


अनेकशास्त्रं बहुवेदितव्यम्, अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्नाः । यत सारभूतं तदुपासितव्यं, हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात्॥


 अनेक प्रकार के शास्त्र हैं, बहुत कुछ जानने के लिए है लेकिन समय कम है,बहुत विघ्न हैं।


 अतः जो सारभूत है उसका ही सेवन करना चाहिए


जिस प्रकार हंस जल और दूध में से दूध को ग्रहण कर लेता है।

वह सारभूत हमें इन वेलाओं में मिलेगा 

प्रातःकाल के इस समय का सदुपयोग करते हुए तत्त्व ग्रहण करने के लिए सदाचारमय विचारों को आत्मसात् कर अपने जीवन को संवारने के लिए चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय में रुचि जाग्रत करने के लिए

 आइये प्रवेश करें इस वेला में


हम देखते हैं कि हमारे सारे क्रियाकलाप व्यवहार मन पर आधारित होते हैं

और मन होता कैसा है

इसके लिए आचार्य जी की यह कविता देखिये 


मन कभी अतल गहराई में 

या समान गगन ऊँचाई में 

गिरि शृंगों को रौंदे क्षण में

 भयभीत कभी परछाई में ।। 


मन का उत्साह निराला है,

 पल में सफेद फिर काला है

 हर प्राणी का रखवाला मन

 मन आफत का परकाला है

 मन से हारी हर जुर्रत है,

 मन के कदमों में कूबत है।

 मन, मन भर का जब हो जाता,

उत्साह गात का सो जाता....




ईश्वर की लीला अद्भुत है हम ईश्वर पर विश्वास रखें हमारे अन्दर बहुत क्षमताएं हैं संसार

में हमने मनुष्य रूप में जन्म लिया है तो अपने मनुष्यत्व को पहचानते हुए आनन्दपूर्वक अपनी यात्रा को हमें पूरा करना चाहिए

वर्तमान में रहने का प्रयास करें कलियुग में योगी होना योग सिद्धि ध्यान सिद्धि आसान नहीं

फिर भी यदि भगवद्भक्ति राष्ट्रभक्ति में मन लगाएंगे तो यह कल्याणकारी होगा


मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।




मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।9.34।।


मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।


मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।।



तुम मेरे भक्त हो जाओ , मुझमें मन लगाने वाले हो जाओ , मेरा पूजन करने वाले हो जाओ और मुझे नमस्कार करो ।

इस प्रकार मेरे साथ अपने आपको सन्नद्ध कर , मेरे परायण होकर तुम मुझे ही प्राप्त होगे


मैं तुम्हे यह सत्य वचन देता हूँ क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो।।

कलियुग में हरिनाम के अतिरिक्त मंगल प्राप्ति का दूसरा उपाय नहीं है


हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।

कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।

(चै.च.आ. 17/21 संख्याधृत वृह्न्नारादीय-वचन 38/126)


जो करता है परमात्मा करता है और परमात्मा सब अच्छा ही करता है

यह विश्वास रखें

हमारे देश, जो परमात्मा की लीलाभूमि है, में भक्तों की परम्परा अद्भुत  गम्भीर और विशिष्ट है

इन भक्तों में हम अच्छाई देखें

खराबी को न देखें यह गुरुत्व है इसकी अनुभूति का अभ्यास करें हमें वरिष्ठों पर विश्वास करना चाहिए

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लखनऊ के डा चौहान जी की चर्चा क्यों की भैया यज्ञदत्त भैया पवन रामपुरिया भैया आलोक का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

20.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *752 वां*

 हमारा देश मेरे कल्पनाम्बर में समाया है, 

प्रकृति परिवेश बिल्कुल साफ आँखों में नुमाया है ,

उन्हें छोड़ो जहाँ पर बेतरह कूड़ा दिमागों में ,

यहाँ तो दशभक्तों के रगों पर देश छाया है।



प्रस्तुत है आराधयितृ ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 20अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *752 वां* सार -संक्षेप


 1: उपासक


 

हमारी भारतीय संस्कृति में आत्मविश्वास पर बहुत अधिक बल दिया गया है आत्म महत्त्वपूर्ण है  हमें विश्वासी होना ही चाहिए हमारा रचनाकार ईश्वर हमारी चिन्ता करता है ऐसा विश्वास करना चाहिए और यह विश्वास तब होगा जब हम सूक्ष्म  पर ध्यान देंगे संसार में ऐसी स्थितियाँ प्राय: होती रहती हैं जब व्यक्ति स्थूल की पूजा करने लगता है और सूक्ष्म से उसका ध्यान हटा रहता है। अस्थिर चित्त वाला अविश्वासी होता है। आइये अपने चित्त को स्थिर करने के लिए, सूक्ष्मोन्मुख होते हुए सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए, अपने कल्पनांबर में भगवान पर विश्वास बनाए रखने के लिए, आत्मशोध में प्रविष्ट होने के लिए, परशोध से प्रायः दूरी बनाए रखने के लिए,स्वाभाविक और बद्ध कर्मों को करते हुए दिव्य कर्मों का विलक्षण आनन्द प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें आज की इस वेला में


गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं 


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।


तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।



जो  भक्त भक्तिपूर्वक मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, जल आदि का अर्पण करता है, उस शुद्ध मन वाले भक्त का वह अर्पण  मैं स्वीकारता हूँ।।



अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।


साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।9.30।।


अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर  यदि मुझे भजता है तो वह भी साधु समान है,कारण स्पष्ट है कि वह यथार्थ निश्चय वाला है।


भक्ति इस संसार के मायारूप से संघर्ष है भक्ति कोई भी हो राष्ट्र -भक्ति, भगवद्भक्ति

हमारे देश की संत परम्परा बहुत लम्बी है संतत्व इस देश की प्राणिक ऊर्जा भी है और रक्षा कवच भी

संत वह नहीं जो किसी से कोई मतलब न रखे जैसा कि भ्रम फैलाया गया

संत को सबसे मतलब होता है वह सबका सुधार करना चाहता है

देश में चुनौतीपूर्ण समय है आगे चुनाव भी हैं हमें अपनी भूमिका स्पष्ट रखनी है

राष्ट्र -भक्त सरकार का कोई विकल्प देश हित में नहीं है इसलिए समाज -जागरण के  दिव्य कर्म की ओर हम ध्यान दें यही संतत्व है सत्पुरुषों का संगठन बनाएं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी भैया प्रदीप जी का नाम क्यों लिया

हरिशंकर परसाई का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

19.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *751 वां*

 प्रस्तुत है ज्ञान -मन्थर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 19 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *751 वां* सार -संक्षेप


 1: मन्थरः =भण्डार




सो चादर सुर नर मुनि ओढी,

ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥

दास कबीर जतन करि ओढी,

ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥


प्रकृति द्वारा बनाए गए इस शरीर रूपी चादर को देवता , नर  और मुनि  सबने  अपने ऊपर डाला और इन तीनों ने ही उसे मैला कर दिया 


कबीर  कहते हैं मैने जतन से चादर ओढ़ी  और ज्यों की त्यों परमात्मा को वापस कर दी।

ऐसा वही कह सकता है जिसने मन,वाणी और कर्म से निष्पाप निर्मल जीवन जिया हो

हम प्रवेश कर चुके हैं ज्ञान के इस अद्भुत मन्थर सदाचार वेला में जिसमें अपने जीवन को संवारने में सहायक अद्भुत रत्न भरे हुए हैं संसार रूपी इस रंगमंच से जब हम उतरें तो द्रष्टाओं द्वारा प्रशंसा के पात्र बनें 

 ईश्वर से परिव्याप्त ईश्वर की अद्भुत रचना अर्थात् संसार में लिप्त रहते हुए जीवन के इस सात्विक पक्ष को सदाचारमय विचारों से और अधिक उन्नत बनाने में ये वेलाएं महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं

प्रतिदिन ही ये भावमय और व्यवहारमय वेलाएं हमारे लिए रुचिकर और उपयोगी  हैं

यदि हम सफल हैं तो अच्छा है लेकिन असफल होने पर समीक्षा करें 

उलझनों से हमें घबराना नहीं है संकट कैसे भी आएं लक्ष्य को न त्यागें

सब कुछ ईश्वर का है यह समझकर केवल कर्त्तव्य पालन के लिए ही विषयों का यथाविधि उपभोग करना चाहिए


कुर्वन्नेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः ।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरा ॥ २॥


इस सत रज तम के संसार में शास्त्र नियत कर्तव्य कर्मों को करते  हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करें  कर्मबन्धन से मुक्ति का दूसरा मार्ग नहीं है


जिस समय पुरुष मन में प्रविष्ट समस्त कामनाओं को त्यागता है और आत्मा से ही आत्मा में सन्तुष्ट रहता है उस समय वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है

हम असारता को सारता और सारता को असारता समझते हैं लेकिन संसार में रमना भी अनिवार्य है रमते हुए मुक्त रहना कठिन काम है 

पतन की ओर उन्मुख मनुष्य के अनर्थ के कई कारण हैं 

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।


सङ्गात् संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।2.62।

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।


स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।




विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है और आसक्ति से ही इच्छा और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है


क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति का भ्रम


स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नाश  से वह मनुष्य  ही नष्ट हो जाता है



हमारी भारतीय संस्कृति विचारधारा ऐसी ही अद्भुतता लिए हुए है जो हमारा इस प्रकार मार्गदर्शन करती है


हमारा अवतारवाद कहता है


जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।


समाज के चिन्तक सर्वत्यागी ब्राह्मण, देवता, संत और गाय जब कष्ट में होते हैं तो इसका अर्थ है बहुत भयानक स्थिति है

ऐसे में भगवान् राम ने मनुष्य रूप में जन्म लिया और सबके कष्ट दूर किए

आज भी जब ऐसी स्थिति है तो हम अपनी भूमिका को पहचानें हम सब राष्ट्रभक्त राम जी की सेना हैं संगठन के महत्त्व को समझें आत्मस्थ हों

अपनी शक्ति बुद्धि कौशल का प्रदर्शन करें

इसके अतिरिक्त 

आचार्य जी ने गोरक्षा आंदोलन का  क्या प्रसंग बताया मणिपुर की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

18.8.23

राष्ट्र -गौरव श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *750 वां*

 उठो जागो मनस्वी लेखको कवियो कलाकारो  ,

विकारों स्वार्थों लोभों विरोधों को सुदुत्कारो, 

मनस्वी ज्योति को ज्वाला बनाकर हाथ में पकड़ो, 

 अँधेरों को ज्वलित अंगार की जंजीर से जकड़ो।



प्रस्तुत है रौरव -रिपु ¹ राष्ट्र -गौरव श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 18 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *750 वां* सार -संक्षेप


 1: रौरव =जालसाजी से भरा हुआ


हम किसी रचनाकार की रचना अगर,

तो फिर हमारा अलग से अस्तित्व कैसा !

और यदि हम व्यक्ति ही खुद में नहीं हैं,

तो कहो फिर स्वयं का व्यक्तित्व कैसा ?

इसलिए सर्वांग शरणागत हुए हम,

चाहते जैसे उसी विधि हम रहेंगे ,

त्याग कर मद मोह ममता दंभ दुविधा,

आप का सबकुछ हमें स्वीकार जब जैसा कहेंगे।।



आचार्य जी का परामर्श है कि जितना परिवेश हमारे साथ संयुत है उसी को हम संसार मानकर उसको प्रणाम करें


सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥

सीय राम हमें प्रेरणा देते हैं कि हम  मनुष्यत्व का नाट्य खेलते हुए शक्ति शौर्य संयम साधना से संयुत हों आत्मतत्त्व को जानें अपने संपूर्ण परिवेश को सुन्दर बनाएं जलकर राख हो गई अनेक अनगिनत विभूतियों वाले इस देश के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को समझें

हो जायँ अभय; भय भ्रम शंका आदि दोषों को दूर कर ,


सुख-शान्ति-हेतु  क्रान्ति मचाने का प्रण करें

जगदुपवन के झंखाड़ छाँटें

सीय राम मनचाहा भूगोल बनाने के लिए प्रयासरत होने की प्रेरणा  देते हैं अपने भीतर छिपी हुई क्षमता को जानने की प्रेरणा देते हैं हमारी सूझ बूझ की जागृति कराते हैं इधर उधर न बहकर अपने लक्ष्य की ओर चलने के लिए हम संकल्पित रहें यह बताते हैं

अपने अपने गीत एक दूसरे से साझा करते हुए संगठन को मजबूत करने में ही विजय सुनिश्चित है इस विश्वास को  सुदृढ़ करते हैं


भारत देश ने अनेक संघर्ष झेलें हैं और हर संघर्ष का हमने सामना किया है विजय प्राप्त की है

 हम राष्ट्र का व्रत लेकर अपने सिद्धान्त पर टिके रहें अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् रहें

भ्रष्टाचार का बोलबाला है भ्रष्ट आचरण से भ्रष्ट आचरण कैसे मिट सकता है

अद्भुत दुनिया है 


इस दुनिया में सबका अपना अलग अलग अंदाज है

सबकी बोली सबकी शैली अलग अलग आवाज है

तरह तरह के रंग रूप रुचियों का अद्भुत मेल है 

अजब सुहाना अकस्मात् मिट जाने वाला खेल है.... (जून 2014)


देश में परिस्थितियां विषम हैं 

ऐसे में हमें अपना चिन्तन एक सुस्पष्ट दिशा की ओर रखना है

तात्विक चिन्तन से शक्ति में वृद्धि होती है लेकिन साथ में व्यावहारिक कार्य विस्मृत न करें गुमनामी में छिपे  अपने जैसे विचारशील लोगों को खोजें

हमें काम के बाद परिणाम पर अवश्य विचार करना चाहिए


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया आचार्य जी ने किस व्यक्ति के दुर्गुण न देखने के लिए कहा है जानने के लिए सुनें

17.8.23

श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *749 वां*

 सनातन शील संयम शौर्य की पहचान हिंदू है, 

अपरिमित धैर्य दृढ़ता शक्तियों की खान हिंदू है, 

न जिसका आदि उसका अंत फिर कैसे भला संभव, 

जगत को ज्ञात हो अमरत्व की संतान हिंदू है।


प्रस्तुत है उदितोदित ¹ श्री ओम शङ्कर जी का आज  श्रावण मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 17 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *749 वां* सार -संक्षेप


 1: शास्त्रों से भलीभांति परिचित



हम राष्ट्रभक्त कर्मशील योद्धाओं के मार्गदर्शन के लिए आचार्य जी पुनः सदाचार वेला में उपस्थित हैं आइये समय का सदुपयोग करते हुए  व्यक्तिगत स्वार्थ को दरकिनार करते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर हम अपने कार्य और व्यवहार को समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी बनाने का प्रयास करें जिससे समाज और राष्ट्र का तानाबाना उदात्त बन सके

हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय निदिध्यासन में रत हों हम अपनी भीरुता पराश्रयता समाप्त कर सकें

हम रजोगुणी स्वभाव से बचें सद्गुण अपनाएं 

हमारा भारतीय जीवन दर्शन पाश्चात्य जीवन से भिन्न है हम जीवन को यज्ञ मानते हैं वे उपभोग मानते हैं


कई विषयों पर विस्तृत ज्ञान प्रदान करने वाले शास्त्रों और अन्य ग्रंथों में कर्म के सिद्धान्त को अपनी शैली में व्याख्यायित किया गया है

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म के अद्भुत ग्रंथ श्रीमद्भग्वद्गीता में 

कर्मानुराग कर्मशीलता कर्मसिद्धान्त का  विस्तृत वर्णन है

जब हम संकट में आते हैं तो आचार्य जी हमें गीता के दूसरे अध्याय का अध्ययन करने के लिए कहते हैं गीता का दूसरा अध्याय गीता का सार संक्षेप है

इसी दूसरे अध्याय में


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।



स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।


स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।2.54।।


भगवान कृष्ण से अत्यन्त प्रेम करने वाले अर्जुन कहते हैं - हे केशव ! परमात्मा में स्थित स्थिर बुद्धि वाले व्यक्ति के क्या लक्षण  हैं? वह कैसे बोलता, बैठता  और  चलता है?



श्री भगवानुवाच


प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


जो सारी कामनाओं का  त्याग कर देता है और अपने आपसे अपने आप में ही सन्तुष्ट रहता है, वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है


स्थितप्रज्ञ परिस्थितियों को अच्छी तरह जानता है संसार असंसार को जानता है


राग, भय और क्रोध से सब प्रकार से रहित हो गया है, वह  मनुष्य स्थिरबुद्धि कहलाता है

लेकिन क्रोधरहितता की परिभाषा अलग है हमारे अन्दर तेजस्विता झलझला रही हो तो कोई हमें आंखें नहीं दिखा सकता

स्थितप्रज्ञता से किसी के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव आ जाता है 


भक्त परम्परा में महान भक्त  आचार्य श्री माधवेन्द्रपुरी कहते थे 

सन्ध्यावन्दन भद्रमस्तु भवतो भोः स्नान तुभ्यं नमो । भो देवाः पितरश्च तर्पणविधौ नाहं क्षमः क्षम्यताम् ॥ यत्र क्कापि निषद्य यादव कुलो त्तमस्य कंस दविषः । स्मारं स्मारमद्यं हरामि तदलं मन्ये किमन्येन मे ॥


मेरी त्रिकाल वन्दनाओं , तुम्हारी जय  । हे स्नान, तुम्हें प्रणाम । हे देव पितृ जन , अब मैं आप लोगों के लिए तर्पण करने में असमर्थ हूँ। अब तो मैं जहाँ भी बैठता हूँ,  श्रीकृष्ण का ही स्मरण करता हूँ और इस तरह मैं अपने पापयुक्त बन्धन से मुक्त हो सकता हूँ। मैं सोचता हूँ कि  मेरे लिए यही पर्याप्त है l 




हम इन विषयों को शुद्ध भाव से, यथारूप, और अधिक संस्कारित करते हुए अपने भीतर प्रविष्ट कराकर मानसिक शक्ति बौद्धिक प्रखरता  प्राप्त करने की और शौर्य का उत्साह जाग्रत करने की चेष्टा करें

हम लेखन- योग के योगी बनकर अपनी अभिव्यक्तियों का स्वयं आनन्द लें अपनी अभिव्यक्तियां भी हमारा मार्गदर्शन करती हैं  प्रतिस्पर्धा स्वयं से करें तो आनन्द आयेगा और अधिक क्या कर सकते हैं इस पर चिन्तन मनन करें किसी से तुलना न करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने आचार्य श्री माता प्रसाद जी की चर्चा क्यों की भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

16.8.23

आचार्यतल्लज ¹ श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *748 वां*

 ध्रु॒वा द्यौर्ध्रु॒वा पृ॑थि॒वी ध्रु॒वास॒: पर्व॑ता इ॒मे । ध्रु॒वं विश्व॑मि॒दं जग॑द्ध्रु॒वो राजा॑ वि॒शाम॒यम् ॥



सारी वस्तुओं का आधार जगत् नियम में  ध्रुव है, नक्षत्र एवं ग्रहमण्डल का आधार द्युलोक ध्रुव है, मनुष्य पशु पक्षी वृक्ष आदि का आधार पृथ्वी ध्रुव है, इसी तरह प्रजा के आधार राजा  को भी ध्रुव नियम में रहना चाहिए


प्रस्तुत है आचार्यतल्लज ¹ श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 16 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *748 वां* सार -संक्षेप


 1: श्रेष्ठ आचार्य


तेजस्वी स्वरूप वाले भगवान हनुमान जी के वरदहस्त से इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हम आचार्य जी,  जिन्हें बहुत से महामनीषियों का सान्निध्य प्राप्त हुआ,जो सात्त्विक कर्म में रत हैं,द्वारा उद्भूत सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर अपने मानसिक जीवन का परिमार्जन करने के लिए व्यग्र रहते हैं 

व्यग्रता होनी भी चाहिए क्योंकि हमारे मार्गदर्शन के लिए इससे अच्छा साधन और कोई नहीं दिखता

  संसार के रहस्यों को समझते हुए उलझनों को दूर करते हुए हमें रास्ता मिलता जायेगा राह में हमें बैठना नहीं है  राह अनन्त है रामकाज करने की आतुरता हमें होनी चाहिए राग द्वेष से दूरी बनाए रहें उपेक्षित लोगों की ओर अवश्य ध्यान दें 


हम सब उस महासिन्धु के बिन्दु हैं जिसमें सब कुछ समाया हुआ है और सब कुछ उसी से उद्भूत होता है यह भारत का चिन्तन है 

हमें अपने को भाग्यशाली समझना चाहिए कि हम भारत में जन्मे हैं हमें मानवत्व की अनुभूति होनी चाहिए यह मानवत्व देवत्व के माध्यम से परमात्मतत्त्व तक पहुंचता है

हम यदि मन बुद्धि विचार चैतन्य शरीर प्राणतत्व का सदुपयोग करते हैं तो


मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।


सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।


हमें सात्त्विक कर्म करने चाहिए

गीता में ही 


नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।


अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते।।18.23।।


जो   नियत और संगरहित कर्म फल की चाह न रखने वाले पुरुष के द्वारा बिना किसी राग द्वेष के किया गया है, ऐसा कर्म सात्त्विक  है l


जब कि


यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुनः।


क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्।।18.24।।


जो कर्म बहुत मेहनत वाला  है और फल की चाह रखने वाले अहंकारी पुरुष के द्वारा किया जाता है, ऐसा कर्म राजस है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नाना जी देशमुख, अटल जी,गोविन्दाचार्य जी, श्रद्धेय अशोक जी, दीनदयाल जी, बैरिस्टर साहब, भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया

उन्नाव विद्यालय में कल सम्पन्न हुए कार्यक्रम के विषय में  उन्होंने क्या बताया

किसने चाहा मेरे बच्चों के पास चार भले आदमी बैठें

आदि जानने के लिए सुनें

15.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *747वां*

 *जीवन तन मन  विवेक का अद्भुत संगम है*

*यह नाट्य मंच पटकथा और अभिनय अनूप*

*इसमें  सब कुछ हर समय घटित होता रहता*

*यही निशीथ की छांव दिवस की यही धूप*


(25-10-2013 को आचार्य जी द्वारा लिखी एक कविता के अंश )



प्रस्तुत है न्यग्भावित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 15 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *747वां* सार -संक्षेप


 1: श्रेष्ठता को प्राप्त



यह संसार अद्भुत है परमात्मा की इसी अद्भुत सृष्टि में हम जन्म लेते हैं  विचरण करते हैं और विदा हो जाते हैं और पुनः संसार की तैयारी करते हैं

 बिन्दु से सिन्धु सिन्धु से बिन्दु

तक की यात्रा चलती रहती है 

वसुधैव कुटुम्बकम्  विलक्षण सात्विक चिन्तन है 


 यह सब हमारे साहित्य द्वारा हमें प्रचुर मात्रा में प्राप्त है

हमें अनेक बौद्धिक प्रतिभाएं प्राप्त हैं हमारी विचारधारा संपूर्ण विश्व को सुरक्षित रखने में सक्षम है 

प्रतिदिन  इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से अद्वितीय बौद्धिक प्रतिभासम्पन्न आचार्य जी का प्रयास  रहता है कि हमारे अन्दर सद्गुणों का समावेश हो जैसे चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय आदि 

हम अध्यात्म का आनन्द लें

लेकिन एकांगी चिन्तन से बचकर अध्यात्म को शौर्य से संयुत रखें अध्यात्म कर्मशीलता का तात्विक पक्ष है

शिवो भूत्वा शिवं यजेत्' यानि शिव बनकर शिव की उपासना करें 

कर्मठता की नई नई परिभाषा  गढ़ें और उसी में एक  वृत्ति  यह पनप जाए कि हमारे मन में जो कुछ आये उसे हम लिख लें भावनाओं की 

यह अभिव्यक्ति समय की बरबादी नहीं है बल्कि समय का सदुपयोग है हमारा आत्मविस्तार है लेकिन उसमें मन रमना चाहिए 

अभिव्यक्तियों के और भी माध्यम हैं हम अपनी रुचि के अनुसार उन्हें अपना सकते हैं 


अतीत से शिक्षा प्राप्त करें वर्तमान से सन्नद्ध रहें और भविष्य के सपनों के लिए  बड़ी से बड़ी सोच रखें और विषम परिस्थितियां आने पर भी उन सपनों को कभी मरने न दें

नर हो न निराश करो मन को 

यही मनुष्य जीवन है मनुष्य परमात्मा की अद्भुत अभिव्यक्ति है हमें मनुष्यत्व की अनुभूति हो तो फिर क्या कहना

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय वर्मा भैया पंकज भैया शौर्यजीत का नाम क्यों लिया teleprompter की चर्चा क्यों की


हमारे विद्यालय का गंगातट के किनारे होने का क्या अभिप्राय है जानने के लिए सुनें

14.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *746 वां*

 शपथ ली है हिमालय के शिखर पर शौर्य ने फिर से

 बजाई दुंदुभी जय की मुखर हो धैर्य ने फिर से

 सुनी भेरी विजय की मस्त 'लरकाना' हुआ फिर से

 जयस्वी हाँक से आश्वस्त 'ननकाना' हुआ फिर से 


लिया संकल्प छू माटी धरा गूँजी गगन गूँजा

लहू से कर विजय अभिषेक हिमगिरि भाल को पूजा

 अटल संकल्प है भारत अखण्डित अब पुनः होगा

 बना अवरोध जो भी राह में खण्डित पड़ा होगा l

(शौर्य -स्तवन )


प्रस्तुत है बलान्वित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 14 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *746 वां* सार -संक्षेप


 1: बलवान्


चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय,स्मृति -वातायन, सद्संगति के आधार पर आचार्य जी

( *किस व्रत में है* *व्रती वीर* *यह*, *निद्रा का यों त्याग किये*

उत्तर है भारत का अखंड स्वरूप देखना जिसके लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म महत्त्वपूर्ण है )

 नित्य हमें प्रेरित करते हैं और हम (  वीर-वंश की लाज यही है, फिर क्यों वीर न हो प्रहरी)  इन संप्रेषणों से लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं यह समय समय पर हमारे द्वारा व्यक्त की गई टिप्पणियों से स्पष्ट भी हो जाता है

*व्यक्ति के व्यक्ति के साथ संपर्क /सम्बन्ध  में परस्पर का संवाद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है*


परस्पर संवाद कर हम एक दूसरे को उत्साहित कर सकते हैं यदि ऐसा नहीं भी होता तो भी संवादों का सृजन कर हम स्वयं अपने को उत्साहित कर सकते हैं


कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता;

आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता।


भैया डा अजय कृष्ण द्विवेदी आज अपने विभाग में भारत का विभाजन  त्रासदी दिवस कार्यक्रम द्वारा भारत के विभाजन का स्मरण करेंगे



भारत का विभाजन हम सबको व्यथित कर देता है विभाजन के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गांव गांव में जागरूकता फैलाने का काम कर रहा था लोगों को बता रहा था कि देश स्वतन्त्र नहीं हुआ है कट गया है हमें दुःख मनाना चाहिए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह अरविन्द आश्रम ने भी कभी नहीं माना कि देश इतना ही है

हम भारत के पुजारी हैं भारत मां कहते हैं मां की भुजाएं कटी हों तो कष्ट होगा ही


 दुनिया का बन्दरबांट समझना होगा

हमको नकली भूगोल बदलना होगा

इसी देश पर बार बार संकट आये हैं लेकिन ऐसी ज्वालाएं पैदा होती रही हैं जो इन संकटों को भस्मीभूत करती रही हैं और आगे भी करेंगी 

अपने स्वार्थ के लिए अपने ही देश की पीठ पर जो छुरा भोंके ऐसा लोकतन्त्र किस काम का

2024 के चुनाव के लिए हम अपनी तैयारी अभी से प्रारम्भ कर दें इसी सरकार को दोहराने का संकल्प लेकर


इसके अतिरिक्त 

जेल में रहकर किसने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की

किसने अपनी परम्परा डुबा दी  नूंह  और मणिपुर का उल्लेख क्यों हुआ 

जार्ज सोरेस का नाम क्यों आया आदि जानने के लिए सुनें

13.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 745

 श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


अच्छी तरह से आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म की अपेक्षा गुणों की कमी वाला अपना धर्म श्रेष्ठ है।

अपने धर्म में मर जाना भी कल्याण करता है   परधर्म भय देने वाला होता है



हम धर्म अर्थात् कर्तव्य (जो करने योग्य है ) का पालन करें इसके लिए हमारे यहां बहुविध ग्रंथ हैं गृहस्थ यदि निर्विकल्प रहता है तो वह अधार्मिक कहलायेगा

धार्मिक पुरुष को भी व्यावहारिक पथ पर चलना चाहिए 



प्रस्तुत है पालयितृ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 13 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *745 वां* सार -संक्षेप


 1: संरक्षक



भक्ति और शक्ति जितने सहज सरल विषय लगते हैं उतने ही तात्विक भी हैं भक्ति अर्थात् विश्वास का बोध यदि हमें है तो शक्ति स्वयमेव हमको शरण देने हेतु प्रस्तुत हो जाती है



विश्वास ऐसा कि


सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।


अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।।


सारे धर्मों का परित्याग कर तुम  मेरी  शरण में आ जाओ,और इस तरह मैं तुम्हें सारे पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक कतई न करो

जब भगवान कृष्ण के समझाने पर भक्त अर्जुन की सारी उलझनें समाप्त हो जाती हैं


हम बिना भ्रम के उसकी शरण में पहुंच जाएं जिस पर विश्वास किया है जैसा विश्वास अर्जुन ने किया है




आचार्य जी ने नीराजना से नीराजन तक की अद्भुत कथा बताई  शक्ति की उपासना में होने वाली आरती नीराजना /नीराजन कहलाती है

आचार्य जी ने बताया कि बोध चिह्न में भारत सूर्य पुस्तक का संयोजन किया गया प्रतिदिन एक सुविचार लिखा जाने लगा प्रार्थना भी बन गई उस समय के अद्भुत संस्मरण रहे हैं

इसी तरह के अद्भुत संस्मरण हमें लिख लेने चाहिए लेखन -योग महत्त्वपूर्ण है 

इसी लेखन -कार्य पर आधारित  29 दिसंबर 2009

को लिखी 

एक स्वरचित कविता आचार्य जी ने सुनाई


लिखने के लिए कलम लेकर बैठा तो हूं

पर क्या लिख दूं यह सचमुच एक समस्या है

लिखना लिखकर पढ़ना पढ़पढ़ कर फिर लिखना 

अब लगता है यह भी तो एक तपस्या है


तप के प्रकार अब तक जो सुने समझ पाये

उनमें तन मन को ताप तप्त करना भर है 

पर लेखन- तप कुछ ऐसा अद्भुत परिष्कार 

इसमें आनन्द उर्मियों का मानस -सर है 


यह मन का मानस दिव्य दान है स्रष्टा का

इसकी अनुभूति अनोखी है वर्णनातीत 

 इसमें जैसे भविष्य के सपने दिखते हैं 

कुछ वैसा ही उत्सव सा लगता है अतीत 


बस इसीलिए लेखक आनन्दित रहता है

उसको  दुनिया  बस कुछ ही देर  नचाती है 

पर जैसे ही लेखनी उठाता उसका मन 

दुनिया उससे बचती भी और बचाती है


यह कलम जहां भी मन से एकाकार हुई

सर्जन में प्रलय प्रलय में सर्जन रच जाता

लहरों पर  ज्वालामुखियां आग उगलती हैं

विश्रांत गगन में भीष्ण गर्जन मच जाता.....


इस कविता का शेष भाग क्या है आचार्य आनन्द जी की चर्चा क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें

12.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *744 वां*

 पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया

कुदरत से लोहा लेने को आतुर है शैतानी दुनिया


केवल भाषा तक सीमित है  संयम विवेक सच सदाचार 

आचरण भ्रष्ट दुनियादारी के नाम लिख रहे कदाचार 

ईश्वर या अखिल नियन्ता को केवल विपत्ति में करें याद

आपदा टली अलमस्त हुए फिर शुरु हुआ लोकापवाद

क्या खूब बनाई स्रष्टा ने यह अद्भुत इंसानी दुनिया


उपदेश दूसरों के खातिर खुद बने हुए मन के गुलाम

अपनों पर अत्याचार परायों को करते फिरते सलाम

बेहतर वाणी के बोल मगर कर्मों में केवल बरबादी......

(13 दिसंबर 2015)



प्रस्तुत है वयस्थ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 12 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *744 वां* सार -संक्षेप


 1: शक्तिशाली


प्रायः हमारे इष्ट प्रातःकाल हमें दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं हमारे ऋषि भी ब्रह्म वेला के जागरण पर जोर देते थे देर से जागने का बहाना बनाना हमारा ही नुकसान करता है देर का जागरण हमें बहुत से प्रपंचों में उलझा देता है इसलिए प्रातःकाल जल्दी जागना महत्त्वपूर्ण है 

हमारे इष्ट की कृपा से प्राप्त दिशा दृष्टि हमें प्रेरित करती है कि हम आचार्य जी की इन सदाचार वेलाओं का लाभ लें अपने जीवन को व्यवस्थित करें अपनी एक समय सारिणी बनाएं  समय की व्यवस्था अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है

क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् । क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥


 सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर जीवन में आ रही समस्याओं का हम हल प्राप्त करें सदाचारमय विचारों को प्रतिदिन इन वेलाओं से ग्रहण करना अद्भुत है अद्वितीय है 

स्रष्टा द्वारा प्रविष्ट अपने भीतर के आत्मतत्व को,शक्ति को पहचानने का प्रयास करें



आत्मस्थ होकर विचार करें हम केवल शरीर नहीं हैं केवल मन नहीं हैं केवल बुद्धि नहीं हैं हम इन सबका संयम हैं और प्राणतत्व परमात्मा की एक ऐसी अद्भुत लीला है जो हमें बहुत कुछ प्रदान करती है

इसी असीमित शक्ति को हम प्राप्त करने की चेष्टा करें पुरुष हैं तो पुरुषार्थ करें


ध्यान धारणा संयम आसन अध्ययन चिन्तन मनन लेखन स्वाध्याय प्राणायाम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म संगठन महत्त्वपूर्ण हैं इनको अपने जीवन में उतारें 


माहौल ऐसा बन रहा है कि हमें  वेदों पुराणों उपनिषदों श्रीमद्भगवद्गीता रामचरितमानस आदि सद्ग्रन्थों की उपयोगिता कुछ कुछ समझने में आने लगी है


आचार्य जी ने कल परामर्श दिया था कि हम गहनता से परिपूर्ण तैत्तिरीय उपनिषद् का अध्ययन अवश्य करें

इसी उपनिषद् में है


तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः। आकाशाद्वायुः । वायोरग्निः। अग्नेरपः । अद्भ्यः पृथिवी। पृथिव्याओषधयः। ओषधीभ्योऽन्नम्। अनात्पुरुषः। स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः। तस्येदमेव शिरः। अयं दक्षिणः पक्षः। अयमुत्तरः पक्षः। अयमात्मा । इदं पुच्छं प्रतिष्ठा। तदपयेश् श्लोको भवति ॥


यह स्व  आत्मा है,  आत्मा से आकाश का जन्म हुआ

और आकाश से वायु , वायु से आग,आग से पानी, पानी से पृय्वी, पृथ्वी से जड़ी-बूटियाँ और पौधे

 जड़ी-बूटियों और पौधों से भोजन, भोजन से मनुष्य का जन्म हुआ

 सत्य है कि यह मनुष्य भोजन के आवश्यक पदार्थ से बना है

और यह जो हम देखते हैं, यह उसका सिर है  यह उसका दाहिना भाग  यह उसका बायां भाग

 और यह  उसका स्वत्व

 यह उसका निचला अंग  जिस पर वह स्थायी रूप से विश्राम करता है 



आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि शिक्षक शिक्षार्थी के कहने  सुनने का शैक्षिक प्रबन्धन हमारे देश की विशेषता है और इसी कारण वेद अर्थात् ज्ञान का एक नाम श्रुति है



विद्या ज्ञान का आधार और शिक्षा विद्या का आधार है वास्तव में शिक्षा वास्तविक सत्य को जानने के लिए है वह सत्य जो अपने को परिवर्तित न करे और परिवर्तनशीलता सत्य और मिथ्या का योग है

इन सबको विस्तार से जानने के लिए सुनें यह सदाचार संप्रेषण

11.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *743 वां*

 ॐ

(सृष्टि का आदि स्वर )

किसी भी तात्विक विषय के प्रारम्भ  में ॐ का उच्चारण महत्त्वपूर्ण है 


प्रस्तुत है अध्यात्म -शेवधि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 11 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *743 वां* सार -संक्षेप


 1: शेवधिः =मूल्यवान् कोष

विद्या ज्ञान का आधार है और शिक्षा उस विद्या को प्राप्त करने का सलीका है 

शिक्षा देते समय शिक्षक को सदैव सचेत रहने की आवश्यकता है एक शिक्षक के रूप में आचार्य जी नित्य हमें सचेत रहते हुए शिक्षा दे रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है

किसी भी तरह की चिन्ता से ग्रसित होकर हमें भावी कार्यों को बाधित नहीं करना चाहिए

परिस्थितियां विषम हैं हम सनातन धर्म के रक्षकों के पास काम बहुत हैं अपने प्रमाद का त्याग करें

अपने मानस चैतन्य को सत्कर्मों में रत करें शक्ति चैतन्य आदि की सहायता से राष्ट्र और समाज के लिए हम शक्ति स्वरूप बनकर   खड़े हों क्योंकि यह राष्ट्र ही संपूर्ण विश्वप्रपंच का आधार है 

सनातन कार्य सिद्धि में गुरु और शिष्य यदि अपने अंतस में निम्नांकित मन्त्र उतार लें तो कोई एक दूसरे से ईर्ष्या नहीं करेगा और मिलजुल कर सहयोग मिलेगा


ॐ सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्वि नावधीतमस्तु

मा विद्विषावहै।

ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!!



हे परमेश्वर! आप हम दोनों शिक्षक और शिक्षार्थी की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों एक दूसरे का पालन पोषण करें।  शिक्षार्थी के आचरण कार्यव्यवहार आदि से शिक्षक को पोषण मिलता है वह आनन्दित होता है हम दोनों ही साथ-साथ उस महान ऊर्जा शक्ति सामर्थ्य को प्राप्त करें। हम दोनों की अध्ययन की हुई विद्या तेज से भरी हुई हो। हम दोनों कभी परस्पर द्वेषभावना से ग्रसित न हों 

हमारे अन्दर विकृति न आये 


प्रमुख रूप से शिक्षा के स्वरूप का वर्णन करने वाले तैत्तिरीय उपनिषद् में

शिक्षक और शिक्षार्थी उस विषय को समझने के लिए उद्यत हो रहे हैं

आज की शिक्षा इससे भिन्न है

इससे कभी आनन्द की अनुभूति नहीं होगी

इसी उपनिषद्  में ऋषि आगे कहता है


ब्रह्मविद् आप्नोति परं...

सत्यं ज्ञानम् अनंतं ब्रह्म



ब्रह्मज्ञानी महात्मा परब्रह्म को प्राप्त हो जाता है

सत्य और सत्य का ज्ञान अनन्त ब्रह्म है




आचार्य जी ने शिक्षा का मूल आधार क्या बताया सातवें आसमान की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की आदि जानने के लिए सुनें

10.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *742 वां*

 हम चलेंगे साथ तो संत्रास हारेगा

पूर्व फिर से अरुणिमा आभास धारेगा 

हम सृजन पर ही सदा विश्वास रखते थे

यजन में ही जिंदगी की आस रखते थे

भोग में अनुरक्त जीवन  था नहीं अपना

जगत को हरदम समझते आए हम सपना 



प्रस्तुत है सौरथ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 10 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *742 वां* सार -संक्षेप


 1: शूरवीर


समाज जीवन में प्रदूषण बहुत गहराई से व्याप्त है इसके कारण बहुत से हैं और हम लोग उसी प्रदूषण को समाप्त करने के प्रयास में रत होकर व्यक्ति से व्यक्तित्व के निर्माण की दिशा में बढ़ रहे हैं


यज्ञाग्नि को प्रदीप्त करते हुए साधनारत आचार्य जी नित्य  इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हमारे सुप्त भावों को जाग्रत कर रहे हैं हमें प्रेरित उत्साहित कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है गम्भीरतापूर्वक विचार कर 

हम मानसिक वैचारिक शारीरिक स्वच्छता का आधार लेकर समाज को जागरूक करने का लक्ष्य बनाएं विद्वत समाज को भी जाग्रत करने की आवश्यकता है 


हमारी शिक्षा कभी अत्यन्त उच्चकोटि की रही है जिसने अपनी सार्थकता भी सिद्ध की और हम उसी के बल पर विश्वगुरु कहलाए


आज की शिक्षा अपने वास्तविक स्वरूप और उद्देश्य से अत्यन्त दूर है और ये तथाकथित शिक्षित अधूरी क्षमताओं वाले व्यक्तियों की भीड़ है ।हम यज्ञमण्डप से उठकर श्मशान आ गए हैं

भोग के भ्रमजाल में संत अपना संतत्व भूल गए हैं 


शिक्षा की इसी अपूर्ण  अवधारणा की ओर संकेत कर  राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त  'भारत भारती' में लिखते हैं 


शिक्षे! तुम्हारा नाश हो, तुम नौकरी के हित बनी


चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय महत्त्वपूर्ण है आत्मावलोकन कर अपनी दिशा दृष्टि विश्वास को पूर्ण  दृढ़ता से अपनी प्राणिक ऊर्जा के साथ रखने पर हम निराश नहीं होंगे भगवान् राम भगवान् कृष्ण का आदर्श लेकर हम सदाचार के मार्ग पर चलें भाव विचार और क्रिया का सामञ्जस्य बैठाएं

लेखन -योग को अपनाएं

आत्मबोध जाग्रत करें देश संकट में है इसलिए संगठन के महत्त्व को समझें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आश्रय लें पश्चिम के भोगवाद बाजारवाद और एकाकीपन से दूर रहें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मुरादाबाद के दंगों के विषय में क्या बताया पश्चिम से हमें क्या से सीखना चाहिए आदि जानने के लिए सुनें

9.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 9 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण *741 वां*

 समय और हम इसके साथ सामञ्जस्य बैठाने के लिए यदि हमारा आत्मबोध खो गया तो हम उसी तरह बह जाएंगे जैसे  उखड़ी हुई घास.......

हमें अपना आत्मबोध नहीं खोना है इसी आत्मबोध को जाग्रत करने के लिए आइये प्रवेश करते हैं इस सदाचार वेला में


प्रस्तुत है होमिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 9 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *741 वां* सार -संक्षेप


 1: यज्ञकर्ता



यह अद्भुत संसार है इस संसार में असार तत्त्व को सहयोगी बनाकर सार का अनुसंधान इस मनुष्य जीवन का अद्भुत स्वभाव है जिनमें यह भाव उनके विचार और कर्म में परिलक्षित होने लगता है वे इस मनुष्य जीवन को सार्थक सिद्ध करने लगते हैं और उन्हें आनन्द का अनुभव होने लगता है


*यह जीवन सुख दुःख लाभ हानि उत्थान पतन वैभव अभाव*

.......

*मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है*


सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48


यह जानते हुए भी कि सहज कर्म दोषयुक्त है तो भी उसे त्यागना नहीं चाहिए

*हमें प्रत्येक क्षण संयमित जाग्रत चुस्त रहना है*,

*शिकायत और कुंठा की न कोई बात कहना है ,*

*सभी हम देश धर्म समाज सेवा व्रती हैं प्यारे ,*

*गृहस्थी के सहित हमको तपस्वी भाव गहना है ।*


हमें देश की सेवा अपने मूल सनातनी समाज की सेवा अपने धर्म



श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


कोटि कोटि कंठ से हिन्दु धर्म गर्जना

नित्य सिद्ध शक्ति से मातृभू की अर्चना

संघ शक्ति कलियुगे सुधा है धर्म के लिये l



की सेवा करते समय भ्रम दुविधा को दरकिनार करते हुए  उनमें रत होना है

हाल में नूंह की घटना में हमें अपनी भूमिका स्पष्ट होनी चाहिए हम हिन्दू समाज को मनोबल प्रदान करें और आर्थिक सहायता भी प्रदान करें


जो मैं हूं वही आप हैं यह अनुभव अद्भुत है यदि मैं सोचूं कि मैं कोई और हूं और आप कोई और

तो यह विग्रह / वैमनस्य का कारण बन जाता है 

हमें तो आत्मविस्तार का आनन्द लेना है

हम स्वदेश स्वभाव स्वकर्म का समायोजन कर आनन्दित रहने का अपना लक्ष्य बनाएं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री संतोष जी (चित्रकूट ), श्री प्रकाश जी का नाम क्यों लिया

आदि जानने के लिए सुनें

8.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 8 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 740 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -स्रुति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 8 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  740 वां सार -संक्षेप


 1: स्रुतिः =धारा


स्थान :सरौंहां



इतनी अद्भुत सृष्टि का कोई रचनाकार न हो यह कैसे हो सकता है  परमात्मा का अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता हम विश्वास करते हैं कि परमात्मा का अस्तित्व है

परमात्मा का मूल उद्देश्य अपने अस्तित्व की परीक्षा देना नहीं है वह तो यह चाहता है कि हम उसके संपूर्ण स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर आनन्द की अनुभूति करें


 परमात्मा विविध रूपों में प्रकट होता है


जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥


करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध ² सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥


² कहीं कहीं मनुज



हम आस्था विश्वास श्रद्धा भक्ति के भाव लेकर सहज अभिव्यक्ति के साथ आत्मानुभूति करें हम वही विविध रूप धारण कर आये हैं षड्विकारों से रहित हों यह भाव रखें  अपनी आवश्यकताओं के प्रति व्याकुल न हों व्याकुल होने की क्षुद्रता से मुक्त रहें संयम स्वाध्याय साधना का आश्रय लें


न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ,


मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।


न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः,


चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥


इस अनुभूति के साथ  आइये 

इस सदाचार वेला का लाभ उठाएं और चिन्तन करें और गहराई में जाकर चिन्तन करने पर हम देखते हैं कि 

भगवान् को कैसा भक्त प्रिय है


अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।


निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।


सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।


मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।


सभी प्राणियों में द्वेष की भावना से दूर होकर , सबका मित्र ,दयालु, ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख और दुःख दोनों की प्राप्ति में समान भाव रखने वाला,क्षमाशील, पौरुष और पराक्रम पर आधारित होकर सदैव सन्तुष्ट,योगी, शरीर को वश में किये हुए, दृढ़ निश्चय वाला, मुझ में अर्पित मन बुद्धि वाला जो मेरा भक्त है, वह मुझे प्रिय है।


यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।


हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः।।12.15।।

जो किसी को कष्ट नहीं पहुंचाता बात सही है लेकिन किसी से कष्ट पाएं भी नहीं इसीलिए इस कलियुग में संगठनावतार का महत्त्व है

किसी भी शत्रु में इतनी हिम्मत न हो कि वह हमें भयभीत करने के बारे में भी सोच सके हमें संपूर्ण भारतभूमि की रक्षा करनी है


यह एकलिंग का आसन है¸

इस पर न किसी का शासन है।

नित सिहक रहा कमलासन है¸

यह सिंहासन सिंहासन है॥1॥


राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है॥3॥


इस सिंहासन पर सहज रूप से विराजमान रहना हमारी स्वाभाविक अवस्था है कालनेमियों से सावधान रहें

छोटे से छोटे कार्य की जिम्मेदारी मिली है तो उसे पूर्ण करें 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

राक्षसों से सावधानी आवश्यक है पुरुषार्थी पुरुष 

इन समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होता है समाज -निर्माण का कार्य करें

लोगों को स्वावलम्बी बनाएं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि , कर सकते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने तीन माह के लिए कौन सा कार्य किया था  तथाकथित संतों को किसने एकत्र किया था  आदि जानने के लिए सुनें

7.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 7 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहं न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥1॥


मैं न  मन, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं

मैं न  कान , न जीभ, न नाक , न ही नेत्र हूं

मैं न आकाश , न धरती, न अग्नि, न ही वायु  हूं

मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं। शिव हूं l


प्रस्तुत है करुणाविमुख -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 7 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *739 वां* सार -संक्षेप


 1: करुणाविमुख =क्रूर



स्थान :आम्रकुंज उन्नाव


आइये सदाचार वेला में सम्मिलित हो जाएं इन वेलाओं से हम अत्यधिक ऊर्जा  शक्ति प्राप्त करते हैं

हम इसी ऊर्जा और शक्ति का संचरण भी करें तभी समाज का राष्ट्र का हित होगा 

सांसारिक प्रपंचों में उलझने पर अध्यात्म का आश्रय लेकर हम  निःसंदेह उत्साहित रह सकते हैं  हमें कभी यह अनुभव नहीं करना चाहिए कि हम असमर्थ असहाय अशक्त हैं  हमें बेचारगी से बचना चाहिए। जीवेम शरदः शतम् (  अथर्ववेद -19 /67 /1 -8  )  वाचिक कायिक प्राणिक शक्ति को व्यर्थ में न गवाएं समाज विश्व विज्ञान अध्यात्म की भी हम जानकारी रखें आचार्य जी प्रतिदिन हमें यही बात समझाने का प्रयास कर रहे हैं

आचार्य जी कामना करते हैं कि हमें भौतिक विभूति अर्थात् संसार में रहने की शक्ति समर्थता भी प्राप्त हो 

हम सौभाग्यशाली हैं कि हम भारतवर्ष में जन्मे हैं जहां अध्यात्म के विग्रह सिद्ध संतों का सान्निध्य हमें प्राप्त है ऐसे अनेक संत हैं जिनसे हम परिचित नहीं हैं हमें उनके बारे में भी जानने का प्रयास करना चाहिए

हम माटी के लौंदें नहीं हैं हम हर प्रकार से सक्षम समर्थ हैं इस बात में हमें भ्रम नहीं रखना चाहिए देश में विकट परिस्थितियां हैं  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म अनिवार्य है अवसर बहुत हैं अपनी भूमिका को हम पहचानें अपनी दिशा खोजें 

अपने संगठन युगभारती द्वारा हम अधिक से अधिक जागरूकता फैलाएं 

आत्मानन्द की अनुभूति करें जिसके लिए प्रेम आत्मीयता का विस्तार आवश्यक है

प्रयास करने पर असफल होने पर निराश न हों

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी भैया अरविन्द जी श्री सुरेश सोनी जी  संत रामभद्राचार्य जी की चर्चा क्यों की लंदन से कौन आता है क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन अध्यात्म पर आधारित संगठन है? आदि जानने के लिए सुनें

6.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 6 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण

 धर्म ध्वजा फहराते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो 

ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो


प्रस्तुत है ज्ञान -उद्भिद् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 6 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *738 वां* सार -संक्षेप


 1: उद्भिद् =झरना


स्थान :तीर्थस्थान चित्रकूट

( सेवा समर्पण संयम स्वाध्याय के विग्रह श्रद्धेय नाना जी की कर्मस्थली )


इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य स्पष्ट है

उद्देश्य है कि हम परमात्मा की लीला के पात्र सद्पुरुष भारतवर्ष की सेवा में संलग्न हों अस्ताचल देशों द्वारा फैलाए गए भ्रम के जाल से बाहर निकलें अपने सद्ग्रंथों से सुपरिचित हों सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर संकटों का सामना करने का हौसला प्राप्त करें प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें  तीर्थस्थानों की यात्रा करते समय आस्थामय जिज्ञासु मानस रखें

संसारेतर चिन्तन करते हुए सांसारिकता से नाता रखें 

भ्रमित Society आपके प्रति क्या धारणा बना ले इसकी चिन्ता न कर अपने विचार व्यक्त करें  अनृजु कालनेमियों को पहचानकर उनसे सतर्क रहें

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को जानें 

आर्ष परम्परा की गहराई में उतरने का प्रयास करें भारतीय संस्कृति के चिन्तन में रत हों भारतवर्ष की जीवनपद्धति ही विश्व का कल्याण करने में सक्षम है यह स्वयं समझते हुए इसको समझाने का प्रयास करें

शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन सुरक्षा का आधार लेकर अपनी संस्था युगभारती का विस्तार करें 

हमारे अन्दर परिवार समाज राष्ट्र की सेवा के विचार अंकुरित हों हम अपना प्रकाश फैलाते रहें 

निःसंदेह इन सदाचार वेलाओं की यह पद्धति यह रूप हमें भा रहा है

विषम परिस्थितियां आ जाएं तो भी हम अपना उद्देश्य न भूलें राष्ट्रसेवापारायण बनें सुविधाओं पर ही पूर्ण आश्रित न हों अभावों में भी अपने लक्ष्य पर दृष्टि बनाए रखें 

भगवान् राम विकट विषम परिस्थितियों में भी अपना उद्देश्य नहीं भूले


*निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।*

*सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥*

आर्ष कथन है कि राम का नाम जपने से आत्मिक तथा मानसिक विश्वास बढ़ता है।

राम नाम के अमृत का अमृतपान करने से मनुष्यों को प्रारब्धजन्य कष्ट भी कट जाते हैं।



रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।

रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥


राम, रामभद्र, रामचंद्र, ब्रह्म स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं मां सीता के पति की मैं वंदना करता हूं ।


श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण प्रदान करें 


श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।

श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

मैं एकाग्र मन द्वारा प्रभु राम के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूं, वाणी से और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् राम के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की ही शरण लेता हूँ।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चित्रकूट यात्रा के विषय में क्या बताया नुंह की घटना पर हमारी प्रतिक्रिया क्या हो आदि जानने के लिए सुनें

5.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 5 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 737 वां सार -संक्षेप

 बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने 


यही बस एक दरिया का नज़ारा याद रहता है


प्रस्तुत है अनुष्ठायिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 5 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  737 वां सार -संक्षेप


 1: अनुष्ठान करने वाला


स्थान :चित्रकूट 


संसार अत्यन्त अद्भुत है संसार न अच्छा है न बुरा

अपनी मानसिक अवस्था के अनुसार ही हमें यह संसार अच्छा या बुरा लगता है।



संसार में कभी कुछ पूर्ण नहीं होता यहां कार्य व्यापार कभी बन्द नहीं होते इसलिए संसार के इस स्वभाव को समझते हुए अपने शरीर के संसार का सामञ्जस्य बैठाएं

हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए जिससे हमारा सम्मान हो

हमें सेवा समर्पण के साथ करनी चाहिए  समाज और राष्ट्र (वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः )के लिए हमें निःस्वार्थ भाव से कार्य करने चाहिए

अपना समय देना चाहिए व्यस्त होते हुए भी


व्यस्त हैं या अस्त -व्यस्त हैं यह चिन्तन का विषय है

हम व्यस्त समय में भी अपनी जीवनशैली को बदलने का प्रयास करें व्यावहारिक जगत

भी महत्त्वपूर्ण है अपने परिवार की भी हमें चिन्ता करते रहना है परिवार को आनन्दमय ढंग से चलाना चाहिए परिवार को संवारकर संभालकर चलें 


सांसारिक स्वरूप को जानते हुए हमें सदैव कामना करनी चाहिए कि दुःख और सुख में 

हम समान बने रहें

दुःख में न अधिक दुःखी और न सुख में बहुत अहंकारी


उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा। सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥


उदय  और अस्त होते समय जैसे सूरज देव लाल होते हैं उसी तरह महापुरुष भी सुख और दुःख में समान रहते हैं।



सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।



इस तरह के सूत्र सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारना आसान तो नहीं है लेकिन हमें प्रयास करते रहना चाहिए

सदाचार के नियमों के पालन से शरीर का परिमार्जन संमार्जन होता है व्याकुलता भ्रम भय में अपनी ऊर्जा नष्ट होती है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने,

वृद्ध पुरुष की मानसिक सेवा शारीरिक सेवा से अधिक महत्त्वपूर्ण है, किस तरह स्पष्ट किया

भैया मोहन कृष्ण, भैया आलोक जी सतना वाले,भैया राघवेन्द्र जी, भैया अरविन्द जी का नाम क्यों आया Fortune Hospital का उल्लेख क्यों हुआ राजाराम जयपुरिया जी से संबन्धित क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

4.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 4 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 736 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अनुष्ठातृ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 4 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  736 वां सार -संक्षेप


 1: अनुष्ठान करने वाला


स्थान : वाहन (चित्रकूट जाते समय )


 वैदिक काल के ऋषि,दार्शनिक,वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसेनीय शाखा के द्रष्टा,शतपथ ब्राह्मण के रचनाकार, नेति नेति के व्यवहार के प्रवर्तक याज्ञवल्क्य और भारतीय नारियों की मेधा की सबसे बड़ी प्रतीक, ब्रह्मवादिनी,राजा जनक के दरबार की दार्शनिक विदुषी  मित्र ऋषि की पुत्री मैत्रेयी के बीच संवाद में संसार को स्वार्थ का ही पर्याय माना गया है किन्तु हम  मनुष्य संसार और परमात्मतत्त्व के संमिश्रित स्वरूप हैं लेकिन जब हमारा मनुष्यत्व संसारोन्मुखी होता है तो उसमें हमें शौर्य धैर्य पराक्रम चिन्तन मनन  विचार स्वाध्याय लेखन संघर्ष आदि बहुत कुछ सामञ्जस्यपूर्ण शैली में व्यवहृत करना होता है।

इसमें चूक होने पर हम पुरुषार्थी नहीं कहे जाते

हम अपनी जीवनशैली में भ्रमित होने पर एकांत खोजने लगे और हमें लगने लगा कि हमको किसी से मतलब नहीं रखना चाहिए ऐसे अध्यात्म का कोई अर्थ नहीं 

यह कहकर शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की महत्ता और अनिवार्यता की ओर आचार्य जी संकेत कर रहे हैं

संगठित होकर समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी होना अपना उद्देश्य है

आध्यात्मिक आत्मोन्मुखता में परमार्थ परिलक्षित होता है और सांसारिक आत्मोन्मुखता में स्वार्थ दिखता है


हमारे यहां संघर्षशील पुरुषार्थियों की एक लम्बी पंक्ति है

एक लक्ष्य बनाना और फिर उस उद्देश्य को पाने में किसी भी समस्या का सामना करने में भयग्रस्त न होना उन्हें महापुरुष बना गया



महाराणा प्रताप बन्दा बैरागी वीर शिवा जी गुरुगोविन्द सिंह आदि हमारे आदर्श के विग्रह हो गये सभी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को साथ लेकर चले

इन्हीं के पदचिह्नों पर चलने वाली हमारी सेना साधनों के अभाव में भी विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना है

मानस का एक प्रसंग है जब भयग्रस्त भ्रमित विभीषण कहते हैं


नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥

तो भगवान् राम कहते हैं 

सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥


सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥


आत्मबोध के साथ हम समाज -देवता को समझें और किसी भी परिस्थिति में व्याकुल न हों मार्ग खोजें

कर्म -पथ पर चल दें संगठन बनाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी के साथ कौन से भैया साथ जा रहे हैं चित्रकूट में अन्य स्थानों से कौन कौन आ रहा है जानने के लिए सुनें

3.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 3 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 735 वां सार -संक्षेप

 अखण्ड हिन्दुराष्ट्र का हृदय हृदय में वास हो ,

उपासना गृहों में शौर्य शक्ति का निवास हो ,

"भविष्य" में न स्वार्थ भीरुभावना प्रविष्ट हो ,

हृदय में वीरता रहे स्वभाव किंतु शिष्ट हो।


प्रस्तुत है अध्यात्म -संसृति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 3 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  735 वां सार -संक्षेप


 1: संसृतिः =धारा


हमारे विचार शरीर के अस्वस्थ होने पर और मन के उद्विग्न होने पर प्रभावित होते ही हैं उस समय हमें तात्विक चिन्तन (जितना भी हम जानते हैं )का मन में प्रवेश करा लेना चाहिए क्योंकि संसार ( संसरति इति संसारः ) में हमें समस्याओं का सामना भी करना ही होता है  और उन समस्याओं का हल उस तात्विक चिन्तन में निश्चित रूप से है मै कौन हूं यह चिन्तन करें 

हम मनुष्य हैं और हम लोगों के पास ही इन समस्याओं का समाधान भी है अन्य जीव जगत के पास इनका समाधान नहीं है



गीता में


मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।


मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।9.4।।


यह सम्पूर्ण जगत् मुझ नियन्त्रक परमात्मा के अव्यक्त स्वरूप से व्याप्त है

 समस्त प्राणी मुझ में स्थित है लेकिन मैं उनमें स्थित नहीं हूं

परमात्मा की शक्तियां सर्वत्र उपस्थित हैं वह सर्वत्र उपस्थित नहीं रहता है तब भी


हमें इसकी अनुभूति करनी चाहिए और यह हम अत्यन्त क्षमतासम्पन्न संकल्पशील लोग प्रेम के रस से परिपूर्ण भक्ति द्वारा इसे पा सकते हैं ब्रह्मसंहिता का एक अत्यन्त मोहक छंद है 

 5.38

  जिसका अर्थ



मैं गोविंदा, आदि भगवान की पूजा करता हूं, जो श्यामसुंदर हैं और स्वयं कल्पना से परे अनगिनत गुणों वाले कृष्ण हैं, जिन्हें विशद भक्त अपने हृदय में प्रेम के रस से रंगी हुई भक्ति के नयनों से देखते हैं


,है

भोजप्रबन्ध के एक चर्चित छन्द का उल्लेख करते हुए आचार्य जी बता रहे हैं

कि विषम परिस्थितियों में भी सूर्य अपना प्रभाव डाल देता है (व्यक्ति का व्यक्तित्व भी इसी तरह का प्रभाव डालता है )

  सूर्य भगवान के सारथी हैं अरुण  (प्रजापति कश्यप और विनता के पुत्र)

 ये गरुड़ के बड़े भाई हैं जो पक्षियों के राजा हैं। रामायण में  सम्पाती और जटायुं इन्हीं के पुत्र थे।



हमारे साहित्य में कथाओं का संसार अद्भुत है और यह सारे संसार को एक सूत्र में बांध देता है

यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि हमारी शिक्षा में इनको स्थान नहीं दिया गया

लेकिन अब इसे बदलने का समय है हम अपने बच्चों को भी इस तरह की शिक्षा दें


किशोर अवस्था में तो और ध्यान दें


हम सनातन धर्म के रक्षक इस ओर ध्यान दें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राजनीति का कौन सा विषय आज उठाया

आज आचार्य जी कहां आये हैं जानने के लिए सुनें

2.8.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 2 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 734 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -अध्वगा ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 2 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  734 वां सार -संक्षेप


 1: अध्वगा =गङ्गा



इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है कि हम बुरी आदतों की उपेक्षा करें और अच्छी आदतों को विकसित करें

तप ध्यान योग दान लेखन स्वाध्याय अध्ययन अच्छी आदतें हैं 

परमात्मा की लीला अद्भुत है

भारतवर्ष की एक अद्भुत निधि और अद्वितीय जीवनीशक्ति यह है कि हमारे यहां संसार और संसार से इतर दोनों का चिन्तन हुआ है

हम संसार में केवल भोग के लिए नहीं आये हैं

हम मनुष्य हैं हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए

बहुत से प्रपंचों में फंसने के बाद भी आचार्य जी नित्य हमें जाग्रत करते हैं यह परमात्मा की विशिष्ट कृपा है अविद्या के साथ हमें विद्या को भी जानना चाहिए  ऋषित्व अद्भुत है लेकिन हमारे सामने जो ऋषि की तस्वीर खींची गई है वह गलत है ऋषि अनुसंधानकर्ता हैं वे सत्य को जानते हैं 


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग तैत्तिरीय उपनिषद्  (शिक्षा की जानकारी हेतु) और कठोपनिषद् का पारायण करें

स्वयं अध्ययन करें और इसका अध्यापन भी कराएं

अपने परिवारों विद्यालयों संस्कार केन्द्रों में इनका सहज भाषा में कथात्मक रूप में प्रस्तुतिकरण अद्भुत परिणाम ला देगा ऐसा करने से जीवन शैली ही बदल जाएगी




 व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने के ये उपनिषद् बहुत अच्छे स्रोत हैं


कठोपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत निहित है। 

कठोपनिषद् में  नचिकेता और यम के बीच हुए संवाद का अत्यन्त प्रसिद्ध उपाख्यान है। वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता ने पिता से बार-बार पूछा कि आप मुझे किसको प्रदान करेंगे? तो पिता ने खीजकर उसे यम को दान करने की बात कह दी

प्राणिक संचेतना अद्भुत है यम कहते हैं


एको वशी सर्वभूतान्तरात्मा एकं रूपं बहुधा यः करोति।

तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं नेतरेषाम्‌ ॥



सारे प्राणियों के अन्तर् में जो स्थित है शान्त है और सबको वश में रखने वाला है वह 'आत्मा' एक ही रूप को बहुत प्रकार से रचता है

 जो धीर पुरुष 'उस' का आत्मा में शीशे के समान दर्शन करते हैं उन्हें शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है, इससे इतर अन्य लोगों को नहीं हो पाती


इतना सब सुनने के पश्चात् 

नचिकेता को समझ में सब कुछ आ जाता है और उनकी संसार में वापस जाने की इच्छा नहीं होती 


अंगुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये सन्निविष्टः।

 

 अंगूठे जितना परम पुरुष हमेशा पुरुषों के दिल में रहता है।

जो अपने भीतर विद्यमान है वह अद्भुत है लेकिन हम अनुभव नहीं कर पाते हम कौन हैं इस पर चिन्तन करना चाहिए इस चिन्तन से हम संसार में रहते हुए भी संसार से अलग होने का अनुभव करते हैं कमल की तरह


अध्यात्म विद्या को जानकर हम मृत्यु आदि विकारों से दूर हो जाते हैं

हमारा " राष्ट्रीय विचारधारा"  के पल्लवन का उद्देश्य भी  है 

हम इस ओर भी ध्यान देते रहें 

किस यज्ञ में सब कुछ दान कर दिया जाता है

उद्दालक ऋषि के मन में कौन सा विकार आया 

आदि जानने के लिए सुनें

1.8.23

¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 अगस्त 2023 का सदाचार संप्रेषण 733 वां सार -संक्षेप

 एषां भूतानां पृथिवी रसः पृथिव्या आपो रसोऽपामोषधयो रस ओषधीनां पुरुषो रसः पुरुषस्य वाग्रसो वाच ऋग्रस ऋचः साम रसः साम्न उद्गीथो रसः॥



पृथ्वी इन सभी प्राणियों का रस है और जल पृथ्वी का रस है; खेत की जड़ी-बूटियाँ जल का रस हैं; मनुष्य जड़ी-बूटियों का रस है. वाणी मनुष्य का रस है, ऋग्वेद वाणी का रस है, साम ऋच् का रस है। साम का  उद्गीथ अर्थात् ॐ ही रस है।


प्रस्तुत है अध्यात्म -अध्वग ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज अधिक श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 1 अगस्त 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  733 वां सार -संक्षेप


 1: अध्वगः =सूर्य



अच्छी संस्थाओं के किसी भी कार्यक्रम या कार्य की योजना में हमें विचारपूर्वक सक्रियता से भाग लेना चाहिए क्योंकि ऐसे कार्यक्रम और योजनाएं आत्मविकास में सहायक होती हैं

आचार्य जी हम लोगों को प्रतिदिन प्रेरित करते हैं हमारा उत्साहवर्धन करते हैं हमें उत्थानोन्मुख करते हैं

परिस्थितियां इस समय विषम हैं इस कारण कर्म की महत्ता अधिक हो जाती है

 मात्र प्रेरणा देने से काम नहीं चलेगा

वाणी प्रभावशालिनी तभी होती है जब हम जो कुछ कहते हैं वह करते भी हैं

कथनी और करनी में अन्तर नहीं होना चाहिए


हमारा व्यक्तिगत जीवन भी तपोमय होना चाहिए ऐसा जीवन निश्चित रूप से प्रभावकारी होता है


अपनी शक्ति भक्ति बुद्धि विचार कौशल के अनुसार हम यज्ञमयी संस्कृति के उपासक श्रद्धा भक्ति समर्पण का भाव रखते हुए समाज के लिए राष्ट्र के लिए जितना कर सकते हैं करें यही समाजोन्मुखता है राष्ट्रोन्मुखता है


आत्मानन्द के लिए


राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार। 


‘तुलसी’ भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥


इष्ट का ध्यान जप तप अपने भीतर की ऊर्जा को परिमार्जित करने का एक साधन है यही ऊर्जा लेखन पारस्परिक चर्चा विमर्श कार्य योजनाओं में व्यक्त हो जाए तो आनन्द ही आनन्द है

युग -भ्रान्ति से हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए अपना खानपान व्यवहार सात्विक रखना चाहिए अपनी भाषा संस्कृति पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए 

कर्म करें हाथ पर हाथ धरकर न बैठें 

हमारी व्याकुलता स्वतः समाप्त हो जाएगी क्योंकि हम कार्यरत हो चुके हैं

करने में फल की भी इच्छा न करें


लेखन -योग, अध्ययन,ध्यान, धारणा, संयम,भक्ति, शक्ति,सेवा,स्वाध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है स्रष्टा ने विश्वासपूर्वक हमें कर्म करने के लिए भेजा है मनुष्य के रूप में अपने मनुष्यत्व का हमें अनुभव करना चाहिए


आचार्य जी अपनी रचित एक कविता में कहते हैं 


भावना हूं सृजन का विश्वास हूं........

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी आगामी यात्रा के बारे में क्या बताया है जानने के लिए सुनें