31.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 31 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण 824 वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आशंसु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  कार्तिक मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 31 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  824 वां सार -संक्षेप


 1  आशावान्


हमारा शरीर से बहुत मोह होता है शरीर संसार तत्त्व को समझने का माध्यम होता है

यही शरीर संसार के भोगों को भोगने का भी माध्यम है


शरीर को जिस तरह संपोषित किया जाता है वह उसी तरह का  प्रभाव डालता है सन्ध्योपासन में हम अपने शरीर अपने संसार की शुद्धि की प्रार्थना करते हैं




आचार्य जी का  उद्देश्य रहता है कि हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की ओर से विमुख न हों इसलिए  वे हमें अध्यात्मोन्मुख कर देते हैं

आचार्य जी चाहते हैं हम शरीर के साथ मन बुद्धि को भी संयमित करें

 सूर्योदय से पहले अवश्य जागें खानपान सही रखें संगति सही रखें और संसार में संसारी भाव रखते हुए शौर्य पराक्रम सेवा भाव के साथ सन्नद्ध रहें

राम कथा में हमें शौर्य पराक्रम सेवा समर्पण त्याग आदि बहुत कुछ दिखता है इसलिए यह कथा बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है 


राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥

जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥1॥


राम कथा सुनते-सुनते जो तृप्त हो जाते हैं उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं जीवनमुक्त भी भगवान के गुण निरंतर सुनते रहते हैं


तुलसीदास जी ने अध्यात्म से प्रारम्भ कर अध्यात्म से ही समापन कर दिया और बीच में कथा लिख दी जब कि महर्षि वाल्मीकि जी ने मां सीता का धरती में समाने वाला प्रसंग उठाया है तुलसीदास जी ने यह प्रसंग नहीं लिया 

रामानन्द सागर कृत रामायण  बहुत चर्चित रहा है इसका पहला एपिसोड 25 जनवरी, 1987 को प्रसारित हुआ था।

आचार्य जी ने लगभग २४६ पंक्तियों की एक कविता लिखी थी

भारत महान भारत महान


इसमें भी वनदेवी अर्थात् मां सीता का धरती में समाये जाने (रामराज्य में आदिशक्ति के निर्वासन का महापाप )का उल्लेख है


आचार्य जी की इस कविता के भावों में डूबने के लिए सुनें आज का यह उद्बोधन

30.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 30 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने॥



प्रस्तुत है राष्ट्र -प्रालंब ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  कार्तिक मास कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 30 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  823 वां सार -संक्षेप


 1  राष्ट्र का आभूषण




यह शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का दम था जिसके बल पर आर्ष परम्परा वाला हमारा देश कभी पराजित नहीं हुआ


आचार्य जी का उद्देश्य रहता है कि हम अध्यात्म की ओर से मुंह न फेरें इसलिए हमारा रुझान वे इस ओर कर देते हैं

आचार्य जी चाहते हैं हम शरीर मन बुद्धि को संयमित करें सूर्योदय से पहले जागें खानपान सही रखें संगति सही रखें और संसार में संसारी भाव रखते हुए शौर्य पराक्रम सेवा भाव के साथ सन्नद्ध रहें भावना  की पूजा आवश्यक है यह भावना मनुष्य को प्राप्त एक अद्भुत वरदान है यह मनुष्यत्व की समीक्षा और परीक्षा दोनों है

नचिकेता के ये भाव देखिये

जब यम कहते हैं 


ये ये कामा दुर्लभा मर्त्यलोके सर्वान्कामांश्छन्दतः प्रार्थयस्व।

इमा रामाः सरथाः सतूर्या न हीदृशा लम्भनीया मनुष्यैः।

आभिर्मत्प्रत्ताभिः परिचारयस्व नचिकेतो मरणं माऽनुप्राक्शीः ॥



जिन-जिन कामनाओं की पूर्ति मर्त्यलोक में दुर्लभ है, उन सभी कामनाओं को तुम सहर्ष माँग लो

किन्तु, मृत्यु के विषय में प्रश्न मत करो।"


न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यो लप्स्यामहे वित्तमद्राक्श्म चेत्त्वा।

जीविष्यामो यावदीशिष्यसि त्वं वरस्तु मे वरणीयः स एव ॥


मनुष्य को धन से संतृप्त नहीं किया जा सकता और यदि हमने आपके दर्शन कर लिये तो धन हमें प्राप्त हो ही जाएगा तथा जब तक आपका हम पर प्रभुत्व रहेगा तब तक हम जीते भी रहेंगे। मेरे वरण करने योग्य वर तो वही है।


आत्मा क्या है परमात्मा क्या है यह गहन विषय है अद्भुत हैं  ऐसे दार्शनिक विषय


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने , की अनिवार्यता बताई कल सम्पन्न हुए कार्यक्रम की चर्चा की


आचार्य जी ने भैया मलय जी भैया विनय जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

29.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 29 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है राष्ट्र -भूषा ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  कार्तिक मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 29 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  822 वां सार -संक्षेप


 1  राष्ट्र का रत्न

प्रस्तुत है राष्ट्र -भूषा ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  कार्तिक मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 29 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  822 वां सार -संक्षेप


 1  राष्ट्र का रत्न



इस तरह सेवा करने का अपना ही महत्त्व है साथ ही अपने अन्दर का अहम् शमित करने का प्रयास करें

गांव के इन लोगों को उस सन्मार्ग पर ले जाने का प्रयास करें जिस पर हम स्वयं चल रहे हैं

प्रस्तुत है राष्ट्र -भूषा ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  कार्तिक मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 29 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  822 वां सार -संक्षेप


 1  राष्ट्र का रत्न


हम संपूर्ण सृष्टि को दैवीय व्यवस्था मानते हैं और कहते हैं कि जितना भी दृश्यमान जगत है सब परमात्मा का स्वरूप है


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


हम शुभ और अशुभ दोनों का ध्यान रख जीवन का संचालन करते हैं

सेवा इसी का धर्ममय स्वरूप है


इसी तरह की सेवा करने का आज हमारे पास सुअवसर है आज सरौंहां में स्वास्थ्य शिविर का आयोजन हो रहा है


अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।


निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।


भूतमात्र के प्रति जो द्वेष नहीं रखता है साथ ही सबका मित्र तथा करुणावान् है

 जो ममता,अहंकार से रहित, सुख  दु:ख में सम और क्षमावान् है।


सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।


मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।


जो संयतात्मा, दृढ़निश्चयी योगी सदा सन्तुष्ट है, जो अपने मन और बुद्धि को मुझ में अर्पित किये हुए है,  ऐसा मेरा भक्त  मुझे प्रिय है।।


अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।


जो अपेक्षारहित, बाहर भीतर से शुद्ध, दक्ष, उदासीन, व्यथारहित और सारे कर्मों का संन्यास करने वाला मेरा भक्त  मुझे प्रिय है।।


इस तरह सेवा करने का अपना ही महत्त्व है साथ ही अपने अन्दर का अहम् शमित करने का प्रयास करें

गांव के इन लोगों को उस सन्मार्ग पर ले जाने का प्रयास करें जिस पर हम स्वयं चल रहे हैं

28.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 28 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?

मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?

मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने ?

या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?

प्रस्तुत है भाव -मन्दाकिनी ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 28 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  821 वां सार -संक्षेप


 1  भावों की गंगा



संसार -सागर का संतरण आनन्दमय ढंग से करने के लिए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म सहारा है इस अध्यात्म को समझने के लिए आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में


जीवन माटी का एक खिलौना है लेकिन माटी की परिपाटी यदि हमें प्रेरित करने लगे तो यह सदाचार वेला कल्याणकारी होगी


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


यह जीवन कुशलता पूर्वक जीने के लिए है और कर्म करने के लिए है कर्म करके फल की इच्छा नहीं करनी है


यह भाव जीवन -भक्ति के साथ संयुत हो जाए तो हम दीपक की भांति जलते रहते हैं


और फिर मृत्यु में हम लोग शोक नहीं करते



इन सब सूत्रवाक्यों पर विचार करने की आवश्यकता है


विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥


जो तत् को इस रूप में जान लेता है कि वह एक साथ विद्या और अविद्या दोनों ही है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरत्व का आस्वादन करता है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शुभेन्दु शेखर जी का नाम क्यों लिया भैया अरविन्द गांव कब पहुंच रहे हैं आदि जानने के लिए सुनें

27.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 27 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है करुणामय ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 27 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  820 वां सार -संक्षेप


 1 अत्यन्त कृपालु


ये सदाचार वेलाएं यथार्थ से आदर्श की ओर चलने के लिए हैं ज्यों ही आदर्श प्राप्त हो तो वह यथार्थ हो जाता है और फिर हमारी यात्रा आदर्श की ओर चलने की हो जाती है 

संसार अद्भुत है


आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥

सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥




 यहां भिन्न भिन्न रुचियां प्रकृतियां स्वभाव हैं  आधार और आधेय के कारण संसार संसार जैसा लगता है और अच्छा भी लगता है

और इसी कारण चल भी रहा है


,है इसका तत्त्व इसको चलाता है इससे बहुत से कर्म करवाता है शरीर को आधार मानकर बहुत सी रचनाएं करवा देता है अध्यात्म की दृष्टि से यही अविद्या है लेकिन बहुत प्रिय लगती है जीवन दर्शन अद्भुत है जीवन दर्शन में जो व्यक्ति संसार को संसार की दृष्टि से देखे आत्म को आत्म की दृष्टि से देखे तो उसे जीवन वृन्दावन की तरह लगेगा उसे आनन्दित करेगा 

यह शरीर कैसा है इस पर आचार्य जी ने एक बहुत तात्त्विक कविता २७ अगस्त २०११ को लिखी थी


यह तन क्या है बस माटी का

 सुन्दर सा एक खिलौना है....


माटी से इतर इसकी परिपाटी है

सृष्टि की परिपाटी जिसे भारत महत्त्व देता है


परसों होने वाले स्वास्थ्य शिविर में आप सब लोग सादर आमन्त्रित हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण सारस्वत जी का नाम क्यों लिया भैया प्रमोद जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

26.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 26 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 ईशा वास्यामिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥


प्रस्तुत है करुणाकर ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 26 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  819 वां सार -संक्षेप


 1 करुणा की खान


प्रस्तुत है आज की सदाचार वेला

ये वेलाएं हमें आनंदित करती हैं हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी हैं हमें आत्मस्थता की अनुभूति कराती हैं आचार्य जी प्रतिदिन हमारा पुरुषार्थ जाग्रत करने की चेष्टा करते हैं इसलिए हमें प्रतिदिन इनकी प्रतीक्षा रहती है इन वेलाओं से समाज का हित स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है

किसी भी बहाने से समाज के हित में किया गया कोई भी कार्य परमात्मा की आराधना है

वह परमात्मा जो


तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके।

तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥



वह गतिमान है और स्थिर भी ; वह दूर है और पास भी है; सबके भीतर है और  सबके बाहर भी है।


बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥

इसके अतिरिक्त


कर्मयोद्धा श्री प्रकाश जी अवस्थी, जो संसार की समस्याओं से जूझते हुए सफल किस तरह हुआ जाता है इसका एक उदाहरण थे,की स्मृति में उनके पुत्र भैया दुर्गेश माधव भैया शुभेन्दु शेखर भैया हितेन्द्र केशव जी ने क्या बनवाने का निर्णय किया

भैया नवनीत जी का वह क्या प्रसंग था जिसमें आचार्य जी ने अपना लिखा भी संशोधित कर दिया था 

भावों में स्थिरता होती है या नहीं  आदि जानने के लिए सुनें

25.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 25 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है करुणामय ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 25 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  818 वां सार -संक्षेप


 1 अत्यन्त कृपालु



हम लोग भोग प्रधान युग में हैं

संसार हर तरफ से घेरे रहता है ऐसे में समस्याओं का समाधान अध्यात्म के सहारे मिलता है यह हमें अच्छी तरह समझ लेना चाहिए

और हमें समझ में आता भी है इसी कारण हम इन वेलाओं से संतृप्त होते हैं


हम संघर्षरत रहते हैं और यह अपेक्षा करते हैं कि हमें फिर शांति मिले और संघर्ष करने के बाद भी यदि शान्ति न मिले तो चिन्तन मनन करने की आवश्यकता है कि संघर्ष फलप्रद क्यों नहीं हो रहा


हम यह जान लें यह फलप्रद भक्ति के आधार पर होगा भक्ति के मूल में विश्वास है यह विश्वास जब आत्मविश्वास में परिवर्तित हो जाता है तो हम बहुत सी विकराल समस्याओं को भी हल कर लेते हैं

हम इतने प्रभावशाली बन जाएं कि हमारा प्रभामंडल लोगों को आकर्षित करने लगे  यह प्रयास करें 

साथ ही अपना लक्ष्य

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः स्मरण में रहे


आचार्य जी ने बहुत विस्तार से बताया कि क्यों हम रामराज्य की कल्पना करते हैं कृष्णराज्य की क्यों नहीं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कृपालु जी महाराज का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

24.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 24 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है ज्ञान -वाङ्क ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 24 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  817 वां सार -संक्षेप


 1 ज्ञान का समुद्र



प्रस्तुत है आत्मविश्वास जगाने वाली आज की वेला

इसे हम ध्यानपूर्वक सुनें और गुनें


संसार आकर्षण भी है संसार विकर्षण भी है संसार समस्या भी है और समाधान भी है

संसार हमें चारों ओर से घेरे है



वनेषु दोषा प्रभवन्ति रागिणाम्, गृहेषु पञ्चेन्द्रिय निग्रहः तपः । .

वनों में भी रागी को राग घेर लेता है और विरागी घर में रहकर भी विरक्त रह सकता है

अद्भुत हैं कवि

आचार्य जी की यह कविता भी अद्भुत है 

भावना नियति की आंच न जब  सह पाती...

आइये मानस में प्रवेश करें


मां कैकेयी ने चक्रवर्ती सम्राट दशरथ की युद्ध में  निःस्वार्थ भाव से सहायता की लेकिन वे दासी के प्रभाव में आ गईं

मर्यादित रहते हुए दशरथ कैकेयी के प्रति आत्मार्पित हैं


होत प्रात मुनिबेष धरि जौं न रामु बन जाहिं।

मोर मरनु राउर अजस नृप समुझिअ मन माहिं॥33॥


लेकिन बुद्धि भ्रमित हो जाए तो कुछ नहीं किया जा सकता कैकेयी नहीं मानी

ऐसे ही बुद्धि -भ्रमित लोग हमारे देश में हैं जो सिर्फ अपना स्वार्थ देखते हैं इस कारण स्थिति विषम हो जाती है

भगवान् राम को वन जाना होता है

राम का जीवन संघर्ष तपस्या शौर्य का है इसलिये राम- राज्य की परिकल्पना की गई है कृष्ण -राज्य की नहीं


आचार्य जी ने ,बताई

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

23.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 23 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है विद्या अर्णव ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 23 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  816 वां सार -संक्षेप


 1 विद्या का समुद्र


इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत और शुद्ध रखें, हम प्रयास करें कि  मालिन्य मिटा रहे,सन्मार्ग पर चलते हुए पौरुष और पराक्रम की पूजा करें, पथभ्रष्ट न हों,मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित का कार्य करें , परस्पर प्रेम  आत्मीयता का भाव रखें, वर्तमान समय में संगठन का महत्त्व समझें,आस्तीन के सांपों से सावधान रहें,दुष्टों के लिए अग्नि के समान दिखें,संसार के तथ्य को जानते हुए भी संसार में रहने का तरीका पता रखें,व्यवहार को भी जीवन का एक आवश्यक अंग बनाए रखें, सकारात्मक सोच के लिए आवश्यक उपाय करते रहें


आइये प्रवेश करें

आज की वेला में

हमें आत्मबोधोत्सव सदैव मनाना चाहिए

अटल बिहारी जी किस कविता से मंच हिलने लगा था

आचार्य जी ने भैया डा अमित भैया डा पंकज का नाम क्यों लिया


परिवार और आत्म का संतुलन क्यों आवश्यक है

आदि जानने के लिए सुनें

22.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 22 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है मुनि -पुङ्गव ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 22 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  815 वां सार -संक्षेप


 1 सर्वश्रेष्ठ ऋषि



इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत और शुद्ध रखें, हम प्रयास करें कि  मालिन्य मिटा रहे,सन्मार्ग पर चलते हुए पौरुष और पराक्रम की पूजा करें, पथभ्रष्ट न हों,मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित का कार्य करें , परस्पर प्रेम  आत्मीयता का भाव रखें, वर्तमान समय में संगठन का महत्त्व समझें,आस्तीन के सांपों से सावधान रहें,दुष्टों के लिए अग्नि के समान दिखें,संसार के तथ्य को जानते हुए भी संसार में रहने का तरीका पता रखें,व्यवहार को भी जीवन का एक आवश्यक अंग बनाए रखें, सकारात्मक सोच के लिए आवश्यक उपाय करते रहें


प्रस्तुत है आज की वेला

इसे हम ध्यानपूर्वक सुनें और गुनें


एक देशभक्त सौ कायरों पर भारी है देशभक्त एक अनमोल रत्न शक्ति भक्ति विश्वास और कर्म का स्वरूप होता है



भगवान राम समर्पण का उदाहरण है

लंका कांड, जो कर्म की पराकाष्ठा है,में भगवान् राम की वन्दना इस प्रकार है



रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं

योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।

मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं

वंदे कंदावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥ 1॥

आचार्य जी ने इसका विस्तृत अर्थ बताया एक एक गुण मनन करने योग्य है 



रावण ने गौण भक्ति की 

रावण की सेना में नौकरी का भाव है

मानस कथा बहुत रोचक है



आचार्य जी ने विनय अजमानी भैया को क्या काम सौंपा था

लंका कांड के बारे में आचार्य जी ने और क्या बताया आदि जानने के लिए सुनें

21.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 21 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *814 वां*

 बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥57॥


प्रस्तुत है ज्ञान -कुशूल ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 21 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *814 वां* सार -संक्षेप


 1 ज्ञान का भण्डार 




06:21 , 16.59 MB, 16:54



भारतीय आर्ष चिन्तन, जो अत्यन्त गहन प्रभावशाली कल्याणकारी रहा है, का अनुसरण  करती इन सदाचार  वेलाओं का मूल उद्देश्य है कि उस महत् के अंश हम सत्कर्मों में संलग्न रहने का प्रयास करें ,शरीर मन बुद्धि चैतन्य का सामञ्जस्य बैठाते हुए सक्षम समर्थ शक्तिशाली बनें, हमारा प्रयास रहे कि  हम षड्विकारों से मुक्त रहें ,हम यज्ञीय भाव को आत्मसात् करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के पवित्र कार्य करते चलें,हम आत्मस्थ होकर इस संसार-रत्नाकर के रहस्य को समझें  सुलझाएं ,मुमुक्षु बनें

हम राष्ट्रभक्त यह अनुभव करें 

कि भारत पुनः विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है


आइये प्रवेश करें आज की वेला में


हमें यह अनुभव करना चाहिए कि हम उस परमात्मा के अंश होने के कारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं

चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्

शक्ति की अनुभूति करें 

 कोई दूसरा जो कह रहा है वही सही है इसे ही हम सत्य न मान लें यदि मुझे अनुभव हो रहा है कि वह ठीक है तभी उसे ठीक समझें

मुझे बहुत लोगों से प्रेरणा मिलती है लेकिन पराश्रयता कहीं से नहीं मिलती यही अनुभव करें 

हमें तो स्वयं अपना कल्याण करना है

हम आत्म को विस्मृत न करें

आत्मबोध आत्मशोध अत्यन्त आवश्यक है


*त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।*

*ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥*


अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।


निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।


सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।


मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।



जो भूतमात्र के प्रति  द्वेषरहित रहने वाला  मित्र करुणावान्  ममता और अहंकार से रहित, सुख और दु:ख में सम, क्षमावान्, संयतात्मा, दृढ़निश्चयी,योगी, सदा सन्तुष्ट रहने वाला  अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किये हुए है वही मेरा भक्त है मुझे प्रिय है।।


जो होना होता है वह होकर रहता है शुभ अशुभ काल नहीं होता

हमारा कर्मसिद्धान्त प्रत्येक क्षण का है 

हमारा कर्मसिद्धान्त पौरुष को जाग्रत करते रहने का एक माध्यम है 

वर्तमान का कर्म भविष्य का भाग्य बनता है 


करम गति टारै नाहिं टरी ॥

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि ।

सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥

कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी ।

कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥

पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी ।

कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही ॥ ३॥



हम इस ओर भी ध्यान दें कि

क्या अंग्रेजी के लिए हिमायती होना बहुत आवश्यक है

यह भाषा हमारे ऊपर छल से लाद दी गई हमें भ्रामक जाल में फंसा दिया गया

यह भाषा जिसने हमारे रीतिरिवाजों हमारी परंपराओं  पर प्रहार किया हो हमारा आत्मबोध भ्रमित किया हो वह वितृष्णा के योग्य है



आचार्य जी ने इस ओर भी संकेत किया स्वयं वयसनों को त्यागकर हम दूसरों को व्यसनों को त्यागने की सलाह दें तभी दूसरों पर इसका प्रभाव पड़ेगा 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्वास्थ्य शिविर के बारे में क्या बताया vintage car rally की चर्चा क्यों की

जानने के लिए सुनें

20.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 20 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *813 वां*

 प्रस्तुत है क्लान्तिछिद ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 20 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *813 वां* सार -संक्षेप


 1 थकावट दूर करने वाला 




06:20 , 16.52 MB, 16:50



भारतीय आर्ष परम्परा का, हिन्दुत्व द्वारा अपनाए गए सनातन चिन्तन, जिसके कारण विश्व ने भारत की अनुकृति की है,का अनुसरण  करती इन सदाचार  वेलाओं का मूल उद्देश्य है कि हम सत्कर्मों में संलग्न रहें ,शरीर मन बुद्धि चैतन्य का सामञ्जस्य बैठाते हुए सक्षम समर्थ शक्तिशाली बनें, हम पुरुष हैं तो पौरुष का अनुभव करें, प्रयास रहे कि  हमारी षड्विकारों से दूरी बनी रहे ,हम यज्ञमयी परमार्थ भाव रखते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करते चलें,हम ग्रामोन्मुखी पुरुषार्थ करें,हम आत्मस्थ होकर इस संसार के रहस्य को समझते और सुलझाते चलें


हमें यह अनुभव कराना कि हम सृजनहार की रची वीणा अर्थात् संसार में रह रहे हैं तो संघर्षों से मुक्त नहीं रह सकते इस लिए उनसे भयभीत नहीं होना चाहिए, मोक्ष हमारा प्राप्तव्य है इसकी भी अनुभूति कराना इन वेलाओं का लक्ष्य है 


आइये प्रवेश करें इस वेला में


सारी समस्याओं का हल यदि हम सहज रूप से कर लें तो इससे अच्छा क्या हो सकता है

कोरोना काल का उदाहरण हमारे सामने है हमने कालिमा की उपज कोरोना पर विजय पाई

आचार्य जी ने उसी समय,जब सन् २०२१ में कोरोना चरम पर था,लिखी एक कविता सुनाई (२४ अप्रैल २०२१ )


शहर संकटग्रस्त पल पल मर रहा है

गांव बेचारा बहुत ही डर रहा है

.........

यह लेखन बहुत सहारा देता है हम भी लेखन -योगी बनें आचार्य जी प्रायः इस पर जोर देते हैं

हम अपनी अध्यात्मपरक जीवनशैली तय करें अपने जीवन को प्रकृति से उन्मुख रखें 

आगामी २९ अक्टूबर को सरौंहां में स्वास्थ्य मेला है उसमें आप लोग सादर आमन्त्रित हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें

19.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 19 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *812वां*

 प्रस्तुत है युगबाहु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 19 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *812वां* सार -संक्षेप


 1 लम्बी भुजाओं वाला 




06:27 , 16.67 MB, 16:59



भारतीय आर्ष परम्परा को संपोषित करती इन सदाचार  वेलाओं का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि प्रबोधित रखें, सक्षम समर्थ शक्तिशाली बनें हमारा प्रयास रहे कि  हमारी षड्विकारों से विमुखता बनी रहे ,यज्ञीय भाव से समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करते चलें ,सकारात्मक सोच की महत्ता को जानें,सद्गुणविकृति में भी न फंसे,आत्मीय जनों से संपर्क में रहें, अखंड भारत के चित्र को लगातार अपने सामने रखें, भाव और भक्ति में शक्ति की अनुभूति करें




जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ 


फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ 


तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो 


उठके अमरत्व विधान करो 


दवरूप रहो भव कानन को 


नर हो न निराश करो मन को


आइये इन्हीं अनुभूतियों के साथ प्रवेश कर जाएं आज की वेला में


हम शक्ति के पुंज हैं हम केवल शरीर नहीं हैं केवल मन केवल बुद्धि केवल विचार  नहीं हैं हम इन सबका समन्वित स्वरूप हैं

चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्


इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।



शरीर से परे  इन्द्रियाँ  हैं  lइन्द्रियों से परे मन है  मन से परे बुद्धि है लेकिन जो बुद्धि से भी परे है, वह  आत्मा है


इस प्रकार बुद्धि से परे  आत्मा को जानकर  बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके तुम इस दुर्जेय  कामरूप शत्रु अर्थात् लोभ लालच को मार दो  

छोटे पुर्जे से लेकर  बड़े  पुर्जे सभी का महत्त्व है

संसार के सार को समझते हुए हम शक्ति सामर्थ्य की अनुभूति करें अपनी कमजोरियों को पराजित करें 

स्वस्थ रहते हुए विचारों से जाग्रत रहते हुए बिना उद्वेलित हुए समाज का चिन्तन करें सामाजिक कार्य करें 

हमारा चिन्तन पश्चिमी चिन्तन से श्रेष्ठ है हमारा दर्शन आशावादी है

यह समय ठीक नहीं चल रहा है 

जगह जगह शक्ति के पुंज बनाएं 

      दुष्टों से तिकड़मियों से सावधान रहें

हम सब अपने को सरकार समझें

आत्मबोध से उद्बुद्ध रहकर आनन्द के अर्णव में तैरें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमीरपुर से उरई का क्या प्रसंग बताया लखनऊ के कार्यक्रम के विषय में क्या बताया और वह प्रसंग  क्या था जिसमें यह बताया गया कि जब  बढ़ई लकड़ी छोटी कर देता है तो उसका नाम घटई होना चाहिए न कि बढ़ई 

जानने के लिए सुनें

18.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 18 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *811 वां*

 ध्यान मूलं गुरु मूर्ति पूजा मूलं गुरु पदम्।

मंत्र मूलं गुरु वाक्यं मोक्ष मूलं गुरु कृपा॥१॥



प्रस्तुत है प्रवर्ह ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 18 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *811 वां* सार -संक्षेप


 1 सर्वोत्तम 




06:31 , 16.65 MB, 16:58


इन सदाचार  वेलाओं का मूल लक्ष्य है कि हम अपनी बुद्धि प्रबोधित रखें, हम प्रयास करें कि  हमारी मालिन्य से विमुखता बनी रहे, हम शौर्य पराक्रम के तापस बनें , समय शक्ति और धन को व्यय करते समय आनन्द का अनुभव करते हुए यज्ञीय भाव से समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , परस्पर प्रेम और आत्मीयता को निधि बनाए रखें, ,सकारात्मक सोच की महत्ता को जानें, अपने भीतर की छिपी हुई शक्तियों को पहचानें, घोर भौतिकवादी न बने रहें अध्यात्म की अनुभूति भी करें 


संयोग और सामञ्जस्य मनुष्य जीवन की अमूल्य विधियां और निधियां हैं

यह भी एक संयोग है कि हमें ये अत्यन्त लाभकारी सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं

आइये आज के संप्रेषण में प्रवेश कर जाएं



हम सब के अन्दर कवित्व है जो कभी लिखे हुए शब्दों के माध्यम से दिखता है कभी वाणी से प्रकट होता है तो कभी अपने कार्यों से दिखता है


कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभू । कवि मनीषी है, परिभू' अर्थात् अपनी अनुभुति के क्षेत्र में सभी कुछ समेटने में भी सक्षम है और स्वयंभू अर्थात् जो अपनी अनुभूति हेतु किसी का ऋणी नहीं है कहने का अर्थ यह है कि काव्य उस मनीषी की सृष्टि है जो सर्वज्ञ सम्पूर्ण है।

कवित्व अद्भुत है हमारे यहां साहित्य का प्रारम्भ ही काव्य से हुआ है

देवासुर संग्राम अनन्त काल से चल रहा है आजकल इजरायल हमास युद्ध से हम प्रभावित हैं

ऐसे समय में संगठन का महत्त्व अधिक हो जाता है हम इस ओर ध्यान दें हम राष्ट्र-भक्त उन लोगों पर भी ध्यान दें जिन्हें अपना राष्ट्र प्रिय नहीं है स्वार्थी हैं वोट और नोट के लालची हैं उन्हें जगह जगह बेअसर करें

इन्हें बेअसर करने के लिए सात्विक शक्ति की उपासना आवश्यक है रामकथा से शिक्षा लेने की आवश्यकता है क्यों कि रामकथा शक्ति और भक्ति की आराधना है  और तब  हम संगठित होकर उन्हें बेअसर कर सकते हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी  भैया डा सुनील गुप्त के नये भवन में आज क्यों जा रहे हैं दीनदयाल जी का उल्लेख क्यों हुआ फिलिस्तीनी दूतावास का क्या प्रसंग है विकार क्यों आवश्यक हैं जानने के लिए सुनें

17.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन् मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 17 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण 810 वां सार -संक्षेप

 पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः

स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।

नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः

परोपकाराय सतां विभूतयः॥



प्रस्तुत है अनुव्रत ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 17 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  810 वां सार -संक्षेप


 1 भक्त 




06:32 , 16.55 MB, 16:52



विस्तार ले रही इन सदाचार  वेलाओं, जिनके प्रति हम सबका लगाव भी बहुत अधिक है, का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत  रखें, हम प्रयास करें कि हमारी  मालिन्य से विमुखता बनी रहे, पौरुष और पराक्रम के अनुव्रत बनें , मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , परस्पर प्रेम और आत्मीयता का भाव बनाए रखें, कलियुग में जन्म लेने के कारण और दुष्टों के कारण संगठन का महत्त्व समझें, मन बुद्धि चित्त अहंकार का अद्भुत खेल समझें,संसार के तथ्य को जानते हुए भी संसार में रहने का सलीका समझें ,सकारात्मक सोच बनाए रखें

आइये एक बार फिर प्रवेश कर जाएं सनातनमय वातावरण में आचार्य जी की अद्भुत वैखरी का श्रवण करने के लिए


किसी भी विषय भाव क्रिया विचार की अति नहीं होनी चाहिए


अतिरूपेण वै अतिगर्वेण रावण: ।


अतिदानात् बलिर्बद्धो अति सर्वत्र वर्जयेत् ।।


इसलिए संतुलन बहुत आवश्यक है मनीषियों में जब अध्यात्म की अति हो गई तो संपूर्ण विश्व पर नियन्त्रण करने वाले संपूर्ण विश्व का भरण पोषण करने वाले संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब् मानने वाले अपने चक्रवर्ती सम्राटों की एक वृहद् अभिधानमाला लिखने वाले परोपकार की भावना सतत बनाए रखने वाले हम संकुचित होते चले गए

इसलिए किसी की अति नहीं होनी चाहिए 

प्रकृति में देने की भावना होती है बाहर दिखने वाली स्थूल प्रकृति सूक्ष्म रूप में हमारे अन्दर विद्यमान रहती है इसलिए हमारे अन्दर भी परोपकार की भावना होती है

उस प्रकृति के आधार पर हम अपना परिचय देते हैं

हम कौन हैं हम भारतवर्ष के हैं

जैसे स्वामी रामतीर्थ स्वयं भारतवर्ष का परिचय थे

उनके खोजपरक व लीक से हटे हुए विचारों से युवा वर्ग  प्रभावित हुआ भगवान् श्रीकृष्ण और अद्वैत वेदान्त वाले निबंधों ने भारत में एक नव वैचारिक क्रांति को जन्म दिया

इसी तरह विवेकानन्द के विचारों को दुनिया ने माना

हम स्नेहोपासक हैं विदेशी आक्रांताओं को भी हमने समाहित कर लिया

देश का विभाजन भी हुआ जो दुर्भाग्य था

फिर देश का नियन्त्रण भी गलत हाथों में हो गया

गांधी जी की हत्या हुई

ये घटनाएं हमें शिक्षा देती हैं

कहां हमसे गलती हुई कहां सुधार की आवश्यकता है यह दिखाती हैं 

आज का युगधर्म शक्ति उपासना है हमारे अन्दर ऐसी शक्ति आए कि लोग फैसला करवाने आएं स्थान स्थान पर शक्तिकेन्द्र विकसित हों हमारी ऊर्जा ऊष्मा लोगों को अनुभव हो हम तो परमात्मा के जीवित जाग्रत अंश हैं


इसके अतिरिक्त भैया राघवेन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

16.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 16 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *809 वां

 प्रस्तुत है सर्वङ्कष -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 16 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *809 वां* सार -संक्षेप


 1 दुष्टों का शत्रु 




06:38 , 16.17 MB, 16:28


समय ऐसा है कि हम सब बहुत व्यस्त रहते हैं लेकिन इस व्यस्तता में भी यदि सात्विकता की ओर उन्मुख करने वाले हमें कुछ क्षण मिल जाएं तो इसे भगवान् की कृपा समझना चाहिए


और इन क्षणों से हमें लाभ भी मिलता है इन सदाचार वेलाओं से हमें ऐसे ही सात्विकता की ओर उन्मुख करने वाले क्षण प्राप्त हो रहे हैं ज्ञान भक्ति चिन्तन व्यवहार शक्ति शौर्य प्राप्त हो रहा है आइये इनसे लाभ प्राप्त करें


सात्विकता महत्त्वपूर्ण है लेकिन यदि इसके साथ शौर्य का समन्वय हो तो यह अत्यन्त कल्याणकारी हो जाती है यही शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म है


भारतीय साहित्य कितना अद्भुत है कि इसमें ज्ञान विज्ञान वेद शास्त्र कथा तत्त्व आदि बहुत कुछ है




परीक्षित के पुत्र जन्मेजय और व्यास जी की परस्पर वार्तालाप पर आधारित ग्रंथ श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है


दुर्गासप्तशती जिसका नवरात्र में हम लोग पाठ करते हैं इसी  का अंश है


कलियुग का एक विचित्र प्रकार का धर्म है

परीक्षित के समय से कलियुग का प्रारम्भ हो गया था 

युग धर्म का प्रभाव विपरीत नहीं होता काल ही धर्म और अधर्म का कर्ता है


कालः कालस्य कारणम्


काल ही काल का कारण होता है सतयुग त्रेता द्वापर में

पुण्यशाली दानव्रत करने वाले लोग हुए तो कलियुग में दुराचारी लोग  हुए

मनुष्य जिस युग में भी है वह प्रयास करता है उससे मुक्त होने का

उस मुक्ति के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है इसलिए



हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥


बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर

हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर

ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए

ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥


हम चले थे विश्व भर को प्रेम का संदेश देने

किंतु जिन को बंधु समझा आ गया वह प्राण लेने

शक्ति की हम ने उपेक्षा की इसीका दंड पाया

यह प्रकृति का ही नियम है अब हमे यह जानना है ॥


जग नही सुनता कभी दुर्बल जनों का शान्ति प्रवचन

सिर झुकाता है उसे जो कर सके रिपु मान मर्दन

हृदय मे हो प्रेम लेकिन शक्ति भी कर मे प्रबल हो

यह सफलता मन्त्र है करना इसी की साधना है ॥


यह न भूलो इस जगत मे सब नही है संत मानव

व्यक्ति भी है राष्ट्र भी है जो प्रकृति के घोर दानव

दुष्ट दानव दमनकारी शक्ति का संचय करे हम

आज पीडित मातृभू की बस यही आराधना है ॥



आचार्य जी ने देशदर्शन का परामर्श दिया और कहा किसी भी कार्यक्रम को करने के बाद यह देखें कि उससे कितने लोग आगे कंधा से  कंधा मिलाने के लिए  खड़े हो गए यज्ञीय भाव रखें 

विषम परिस्थितियों में समर्पण न कर प्रयास करें 

कि उनसे बाहर कैसे निकलें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गुरुशरणानन्द जी के पुस्तकालय के बारे में क्या बताया डा सुनील गुप्त जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

15.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 15 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *808 वां*

 नमो देवी विश्वेश्वरी प्राणनाथे सदानन्दरूपे सुरानन्दे ते। नमो दानवांतप्रदे मानवानामनेकार्थदे भक्तिगम्यस्वरूपे ॥ 


न ते नामसंख्यां न ते रूपमीदृक्तथा कोऽपि वेदादिदेवस्वरूपे।


हे विश्वेश्वरी ! हे प्राणों की स्वामिनी ! हमेशा आनन्दस्वरुप में रहने वाली, देवताओं को भी आनन्द प्रदान करने वाली हे देवी ! आपको नमस्कार है।

 दानवों का अंत करने वाली,हम मनुष्यों की सारी कामनाएं पूर्ण करने वाली और भक्ति से अपने रूप का दर्शन देने वाली हे देवी! आपको नमस्कार है।



प्रस्तुत है आपच्चिक ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 15 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *808 वां* सार -संक्षेप


 1 कठिनाइयों को पार करने वाला 



06:22 , 14.84 MB, 15:07


जीवन एक यात्रा है इसमें सुख दुःख हर्ष विषाद सफलताएं विफलताएं कठिनाइयां आती रहती हैं हमें न तो यात्रा से घबराना चाहिए न इससे विमुख होना चाहिए 

आज शारदीय नवरात्रि का प्रथम दिन है नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के माता शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है

देवी से हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि हम दया के पात्र न बनें हमारे अन्दर शक्ति और भक्ति का समन्वय हो हम यम नियम का पालन करें जिससे हम भी आशीर्वाद देने वाली मुद्रा में ही रहें

हम कर्म का शरीर धारण किए मनुष्य हैं 

हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें तो देवत्व की अनुभूति अपने आप आती है मनुष्यत्व की यात्रा मनुष्यत्व से ईश्वरत्व तक है सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का भाव लेकर देवी से हम प्रार्थना करें

कि भयों से निरन्तर हमारी रक्षा करें संसार में अनेक प्रकार के भय रहते हैं लेकिन हमें भयाक्रान्त नहीं रहना चाहिए

रोगों को उत्पन्न करने वाली शरद ऋतु और वसंत ऋतु प्राणियों के लिए दुर्गम हैं आत्मकल्याण की कामना करने वाले व्यक्ति को नवरात्र का व्रत करना ही चाहिए

आचार्य जी ने कुछ शस्त्रोक्त विषय बताए जैसे कितने कितने वर्ष की कन्याएं पूजन योग्य हैं

और पूजन दरिद्रता का नाश करता है पूजन में भक्ति विश्वास भाव समर्पण आवश्यक है 

स्वार्थ से दूर रहना भी आवश्यक है 

रोगी वृद्ध और बालक के लिए व्रत वर्जित है


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम युगभारती के सदस्यों को अखाद्य की ओर तो दृष्टि रखनी ही नहीं चाहिए और शिक्षकत्व का दायित्व  संभालकर अन्य लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चण्डिका त्रिमूर्ति शाम्भवी का उल्लेख क्यों किया आदि जानने के लिए सुनें

14.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 14 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *807 वां*

 ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।



प्रस्तुत है दानवेय -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 14 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *807 वां* सार -संक्षेप


 1 दानवों का शत्रु 




06:20 , 16.30 MB, 16:36

स्थान :उन्नाव 


सदाचारमय विचारों का संप्रेषण कर  आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देकर हमें लाभान्वित कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है आइये यह लाभ प्राप्त करने के लिए, जिससे हमारा जीवन भी स्पष्ट लक्ष्य के साथ व्यवस्थित होता रहे आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत से उन्नत होता रहे और सांसारिक दृष्टि से भी प्रतिष्ठित होता रहे साथ ही हमारा शारीरिक बौद्धिक मानसिक कल्याण होता रहे


नियमित रूप से इन संप्रेषणों को सुनने का संकल्प करते हुए प्रवेश कर जाएं इस साधना में




स्मृतियां मनुष्य की निधि भी हैं और बोझ भी हैं लेकिन बोझिल कुछ भी अच्छा नहीं होता है  गीता ज्ञान इसी कारण आवश्यक है क्योंकि वह हमें सिखाता है कि कोई काम बोझिल नहीं है काम सहज रूप से होते जा रहे हैं

हम कोई काम नहीं करते कोई करवाता है शरीर भी अपना नहीं है वो भी किसी का बनाया हुआ है लेकिन उस रचनाकार पर यदि हम विश्वास कर लें तो वही हमारा रक्षक मार्गदर्शक अभिभावक सब कुछ हो जाता है वही हमें भयानक से भयानक संकटों से निजात दिला देता है भक्ति में शक्ति है

इस भक्ति को अपने अंदर धारण करने की पात्रता आ जाए इसकी हम परमात्मा से नित्य कामना करते हैं

हमारे कर्म कैसे हों इस पर अवश्य विचार करें 

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।


कर्म और अकर्म  में बुद्धिमान भी भ्रमित हो जाते हैं। इसलिये मैं तुम्हें कर्म कहूँगा जिसको जानकर तुम संसार के बन्धन से मुक्त हो जाओगे।


यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


अपने आप जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तुष्ट रहने वाला,  द्वन्द्वों  मत्सर से रहित,  सिद्धि असिद्धि में समान भाव वाला पुरुष कर्म करके भी नहीं बंधता है।


सभी कुछ ब्रह्म है इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में लगे मनुष्य का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है।।

इस भाव से ही हमें राष्ट्र सेवा समाजसेवा के काम करने चाहिए 


आज भी हमें दानवेय दिखते हैं लेकिन हमें इनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि हम उस भारतभूमि के निवासी हैं जहां भगवान राम यह कहकर


निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।

भगवान कृष्ण यह कहकर


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।

हमें बल देते हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी तीर्थयात्रा के दौरान विद्या अविद्या के बारे में कहां बताया आचार्य जी ने कल्याण पत्रिका की किस लघुकथा का उल्लेख किया

आदि जानने के लिए सुनें

13.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 13 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *806 वां*

 प्रस्तुत है ज्ञानाविष ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 13 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *806 वां* सार -संक्षेप


 1 ज्ञान का समुद्र 




04:57 , 12.11 MB, 12:20


भक्त भावनाओं से भरा हुआ रहता है जिसमें विचार उसकी सहायता करते हैं  सद्भाव विचारों के साथ सतत समन्वित बना रहे इसके लिए हमें सदाचारमय विचार ग्रहण करने के अवसर खोजते रहने चाहिए  प्रेरक विषय हमारी ऊर्जा में वृद्धि करते हैं 


हमारी कर्म की ऊर्जा समर्पण के हवनकुंड में जब प्रवेश करती है तो एक विशिष्ट शक्ति उत्पन्न होती है यही हमारी शक्ति का मूल स्रोत है

इसी कारण भक्ति में शक्ति कहा जाता है


राम, कृष्ण और शिव हमारी भक्ति, शक्ति, विश्वासों , भावनाओं, विचारों का आधार हैं


हम राष्ट्र -भक्तों की आस्था, अस्मिता व मनोबल पर प्रहार करने के लिए दुष्टों ने लगातार आक्रमण कर मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाने, मूर्तियों को खंडित करने का दुष्कृत्य किया


अयोध्या की तरह  कृष्ण जन्मभूमि के लिए भी न्याय की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं हमें पूर्ण आश्वस्त रहना चाहिए कि हमें न्याय मिलेगा


हम युगभारती के सदस्यों को तीर्थयात्राओं का प्रबन्ध भी करना चाहिए तीर्थयात्रा भारतवर्ष का दर्शन है जिसे हमने देखा न हो उससे हम प्रेम कैसे कर सकते हैं इसलिए यदि हम देश से प्रेम करते हैं तो  उत्साह से लबरेज होकर देश को देखना भी हमारे लिए अनिवार्य है

हम राष्ट्र के प्रति समर्पित भी हों

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मूल स्वार्थ और भौतिक स्वार्थ में क्या अन्तर बताया झांसी से कौन भैया ब्रजभूमि पहुंचे  आदि जानने के लिए सुनें

12.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 12 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *805 वां*

 चतुर विवेकी धीर मत, छिमावान, बुद्धिवान 

आज्ञावान परमत लिया, मुदित प्रफुलित जान।


प्रस्तुत है प्रशान्तबाध ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 12 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *805 वां* सार -संक्षेप


 1 जिसकी समस्त बाधाएं दूर हो गई हों




06:47 , 9.93 MB, 10:06


हम जीवन हैं

 हम निर्जीव नहीं हैं इसलिए हमें अपने जीवन का दर्शन भी करना चाहिए

हम कौन हैं क्या हम शरीर हैं क्या हम मन हैं या बुद्धि, विचार, संसार या और कुछ हम ये सब नहीं हैं हम हैं

चिदानन्द रूपस्य शिवोऽहं शिवोऽहम्

देखा जाए तो हम ये सब नहीं जानते हैं आचार्य जी ऐसे ही हमारे सुप्त भावों को जाग्रत करने का प्रयास इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से कर रहे हैं

कबीर गुरु और साधु कु, शीश नबाबै जाये 

कहै कबीर सो सेवका, महा परम पद पाये।


आइये अपने ज्ञान के नेत्र खोलने के लिए सुप्त भावों की जागृति हेतु  गुरु की शरण में चले चलें

गुरु आज्ञा मानै नहीं, चलै अटपटी 

चाल 

लोक वेद दोनो गये, आगे सिर पर 

काल।


भावों का संसार भी अद्भुत है कुछ समय भावों की अनुभूति के लिए हम लोग अवश्य निकालें भावों की पूजा करने का आनन्द अद्भुत है 

हम मनुष्य के रूप में जन्मे हैं अतः हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी चाहिए हमारा काम केवल खाना सोना नहीं है 

मनुष्यत्व की यात्रा स्थिर रहती है लेकिन मनुष्य की यात्रा चलती रहती है

यह एक दार्शनिक विषय है

 हमारे वैचारिक अधिष्ठान को बल देने वाले सद्गुण     विश्वास आस्था भक्ति प्रेम आत्मीयता सेवा समर्पण तप हमारी निधि हैं

सिद्धियों की धन से तुलना नहीं करनी चाहिए सिद्धियां सिद्धियां हैं

अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक हमें रुकना नहीं है हमारा लक्ष्य है

अखंड भारत 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

 राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया समीर राय जी का नाम क्यों लिया अभिभावकत्व क्या है

भैया संपूर्ण जी ने परमात्मा के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

11.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 11 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *804 वां*

 प्रस्तुत है प्रशान्तकाम ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 11 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *804 वां* सार -संक्षेप


 1 संतुष्ट 


06:01 , 16:22 MB, 16:31


स्थान : रमण रेती


(रमण रेती, मथुरा और महावन के बीच स्थित एक पवित्र स्थान है।

 1978 में आई बाढ़ के पूर्व रमण रेती में रेत ही रेत हुआ करता था। इस रमणीक वन में कदम्ब और पीपल के वृक्ष बहुत संख्या में थे यहां आने वाले दर्शनार्थी रमण रेती की मिट्टी से तिलक करके भगवान कृष्ण की चरण धूलि  को माथे से लगाने की अनुभूति करते हैं)


हमारा राष्ट्र अध्यात्म आधारित राष्ट्र है यह संसार के शौर्य शक्ति का समन्वय है भावनाओं की पूजा करने वाले इस राष्ट्र में सब कुछ समाहित है हम राष्ट्र -भक्तों का उद्देश्य है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


विश्वम्भर भारत की इस पुण्य भूमि में  सङ्‌क्रन्दन और रघुनन्दन शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म के शिखर पर  हमारे मार्गदर्शक के रूप में विराजमान हैं 

महान लोग जिस मार्ग से गये हैं हमें उसी मार्ग को अपना लक्ष्य बना लेना चाहिए क्यों कि इस मार्ग पर चलने वाला

सद्गुणों को धारण करना चाहेगा उसमें परोपकार सेवा समर्पण त्याग प्रेम आत्मीयता की भावना बलवती होगी


आचार्य जी ने बताया श्रीमद्भागवत में दशम स्कंध की कथा  चिन्तन मनन करने योग्य है


भगवान कृष्ण मथुरा चले गए हैं प्रेम और स्वाभिमान का अद्भुत उदाहरण देखिए गोपियां पैदल जा सकती थीं लेकिन नहीं गईं उद्धव की बात उन्हें समझ में नहीं आई


आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तौपै,

ऊधौ ये बियोग के बचन बतरावौ ना।

कहै रतनाकर दया करि दरस दीन्यौ,

दुख दरिबै कौं, तौपै अधिक बढ़ावौ ना॥

टूक-टूक ह्वै है मन-मुकुर हमारौ हाय,

चूकि हूँ कठोर-बैन-पाहन चलावो ना।

एक मनमोहन तौ बसिकै उजार्यो मोहिं,

हिय में अनेक मनमोहन बसावौ ना॥


यह भावों की अभिव्यक्ति अद्भुत है

यही राधाभिव्यक्ति है जो सबमें समाहित है

कृष्ण तत्त्व राम तत्त्व सुप्त अवस्था में रहता है राधा तत्त्व उसे जगाता है

राधा और भगवान कृष्ण का अन्तिम मिलन बहुत मार्मिक है राधा तत्त्व कृष्ण तत्त्व में विलीन हो जाता है 

राधा की सांसारिक कथा बहुत अद्भुत है बहुत अधिक धैर्यशाली व्यक्ति ही इस कथा को कह पाता है इस राधा तत्त्व की हम अनुभूति कर सकते हैं अभिव्यक्ति कठिन है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संपूर्ण जी भैया विनय जी भैया मोहन जी भैया अरुण जी भैया दिनेश मिश्र जी भैया पङ्कज जी का नाम क्यों लिया

आचार्य जी ने गुरुशरणानन्द जी के विषय में क्या बताया

गुरुपद की व्याख्या किसने की

गीता प्रेस की किस पुस्तक में राधातत्त्व का विशद विवेचन है जानने के लिए सुनें

10.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 10 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *803 वां*

 प्रस्तुत है अमोघवाच् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 10 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *803 वां* सार -संक्षेप


 1 जिसके शब्द कभी व्यर्थ न हों 


05:25 , 12:64 MB, 12:52


आचार्य जी ने हाल में ही रचित अपनी एक कविता सुनाई जो हमारे जीवन का दर्शन है हम भौतिकता से इतर चिन्तनरत हों इस ओर यह रचना संकेत कर रही है

 यह कविता अद्भुत भक्ति श्रद्धा विश्वास प्रेम आत्मीयता वाली भारतीय संस्कृति की विशेषता उजागर कर रही है

 हमें संसार की समस्याओं से जूझने का हौसला दे रही है

हम परमात्मा का अंश हैं यह अनुभूति करा रही है और जब हम परमात्मा का अंश हैं तो भय और भ्रम क्यों हो 

राष्ट्रवादी चिन्तन की ओर इंगित करती यह कविता अद्भुत है 

यह आचार्य जी को प्राप्त एक  अनोखा मानवीय वरदान हैं कि वे अपनों भावों को जो अभिव्यक्तियां दे देते हैं वो देखते ही बनती हैं

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम भी लेखनयोग की महत्ता को समझें 

आइये इस कविता के भावों की गहराई में डूब जाएं 


मन भावुक तन पुलकायमान जाग्रत विवेक आनन्दित है 

तन मन जीवन चैतन्य युक्त विक्रम प्रज्ञान प्रमंडित है 

हम सतत प्रयास परिश्रम हैं परमेश्वर के विश्वासी हैं

बदरी केदार द्वारका मथुरा हम रामेश्वर काशी हैं

हम जगत्पिता के अंश वंश देवोपम ऋषियों वाले हैं

हम हैं प्रकाश के पुंज रूप में मेघ श्याम मतवाले हैं

हम अचल हिमालय की समाधि सागर लहरों की उथल पुथल 

हम वृन्दावन की धूलि  और संगम का पावन गंगा जल  

हम सत्य सनातन वेदमन्त्र गीतायुत शुचि समरांगण हैं

पौराणिक कथा मन्त्र गायक हम आदि सृजन के प्रांगण हैं 

हम आत्मतुष्ट जगतीतल को परिवार मानने वाले हैं

निज स्वाभिमान  के संपोषक जगजीवों के रखवाले हैं 

अंबर को पिता धरित्री को निज माता कहते आये हैं 

भगवान भरोसे रहकर सारे  संकट सहते आये हैं 

हम आत्मबोध से युक्त कर्मयोद्धा निस्पृह संन्यासी हैं 

लघु क्षरणशील तन को धारे हम अजर अमर अविनाशी हैं 

हम मंगलमय विधान जग का संकल्पों की परिभाषा हैं 

दुःख दुविधाओं से ग्रसित व्यथित मानव जीवन की आशा हैं

हम ऋषियों की साधना वीरपुत्रों का अतुल पराक्रम हैं 

रचनाकर्ता की आदिसृष्टि का सफल सजीव उपक्रम हैं 


हम सृजन प्रलय की कथा सुनाने वाले मंचमनीषी हैं 

जगजीवों के रक्षक पोषक अनुतोषक और हितैषी हैं 

.......


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनोज अवस्थी जी भैया दिनेश जी भैया विनय अजमानी जी भैया पंकज पांडेय जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

9.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 9 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *802 वां*

 प्रस्तुत है अमोघवांछित ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 9 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *802 वां* सार -संक्षेप


 1 जो कभी निराश न हो 


06:16, 16.51 MB, 16:49


इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत और शुद्ध रखें, हम प्रयास करें कि  मालिन्य मिटा रहे,सन्मार्ग पर चलते हुए पौरुष और पराक्रम की पूजा करें, पथभ्रष्ट न हों,मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित का कार्य करें , परस्पर प्रेम  आत्मीयता का भाव रखें, वर्तमान समय में संगठन का महत्त्व समझें,आस्तीन के सांपों से सावधान रहें,दुष्टों के लिए अग्नि के समान दिखें,संसार के तथ्य को जानते हुए भी संसार में रहने का तरीका पता रखें,व्यवहार को भी जीवन का एक आवश्यक अंग बनाए रखें, सकारात्मक सोच के लिए आवश्यक उपाय करते रहें


यहां इस बात का आह्वान है कि हम युगभारती के सदस्य  केवल इन्द्रियों के विषय स्थूल देह और मन के स्तर पर ही न रहे जो हमारे व्यक्तित्व का बाह्यतम पक्ष है हम अपने आंतरिक पक्ष को भी सशक्त बनाएं, व्यक्तिगत सामान्य परिचय के साथ साथ कर्म का उल्लेखनीय परिचय देने के लिए योजनाएं बनाएं और उन योजनाओं पर कर्मरत हो जाएं, अपनी संतानों को भी उसी तरह तैयार करें, भारतीय विचारधारा की धर्म -ध्वजा को थामने का संकल्प लें 


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

इस संसार में कर्ममय होते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए

भगवान शंकराचार्य जी मात्र ३२ वर्ष जीवित रहे लेकिन उनका अद्भुत कर्ममय जीवन रहा  उन्हें ८ वर्ष में तो चारों वेद का ज्ञान हो गया १२ वर्ष की अवस्था में संपूर्ण शास्त्रों में पारंगत हो गए १६ वर्ष में अनेक भाष्य कर लिए इसके बाद उन्होंने संपूर्ण भारत का भ्रमण किया चार मठों की स्थापना की

इसी तरह विवेकानन्द शिवा जी का जीवन था

योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।



कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।


जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।।


समतायुक्त मनीषी जन कर्मजन्य फल का परित्याग कर जन्मरूप बन्धन से मुक्त होकर निर्विकार पद को पा लेते हैं।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने माध्यमिक शिक्षा की महत्ता को किस प्रकार बताया आचार्य जी वृन्दावन कब जा रहे हैं, भैया विनय जी भैया संपूर्ण जी भैया दिनेश जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

8.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 8 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *801 वां* सार -संक्षेप

 ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

ॐ शान्तिः , शान्तिः , शान्तिः



प्रस्तुत है अमोघविक्रम ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 8 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *801 वां* सार -संक्षेप


 1 अटूट शक्तिशाली 


06:10, 16.38 MB, 16:41




 अद्भुत परिपाटी के अवतंश हम सौभाग्यशाली हैं कि सदाचारमय विचारों का संप्रेषण कर हमारे कल्याण की भावना रखते हुए सुस्पष्ट लक्ष्य के साथ सुव्यवस्थित जीवन जीने वाले अत्यन्त प्रतिष्ठित आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय देकर हम अभिभाव्यों को लाभान्वित कर रहे हैं आइये यह लाभ प्राप्त करने के लिए, जिससे हमारा जीवन भी सुस्थिर सुस्पष्ट सुव्यवस्थित और सांसारिक दृष्टि से प्रतिष्ठित हो, जिससे हमारा शारीरिक बौद्धिक मानसिक कल्याण हो, नियमित रूप से इन संप्रेषणों को सुनने का संकल्प करते हुए  भाव का धन प्राप्त करने के लिए देश को बलवान् करने के लिए प्रवेश कर जाएं  साधना के अंग आज की वेला में



ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।


अखिल ब्रह्मांड में जड़-चेतन स्वरूप जो भी जगत् है, यह समस्त ईश्वर से व्याप्त है । उस ईश्वर पर विश्वास रखते हुए त्यागपूर्वक इसका भोग करते रहो, आसक्त मत होओ क्योंकि धन – भोग्य पदार्थ – किसका है, अर्थात् किसी का नहीं है ।


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

यह अद्भुत भाव है 


कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता।

जिनमें प्रेमाञ्जन लगा हुआ है भावों से जो भरे हुए हैं

जो द्रोह लोभ ईर्ष्या कुंठा की भावना से दूर हैं

 उन्हें यह विश्वास रहता है कि 

ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है


बहुत अधिक भोग में लिप्तता भी ठीक नहीं है हमारे सद्गुण भगवान् हैं और दुर्गुण शैतान हैं हमने इन भगवानों और शैतानों का मिला जुला शरीर धारण किया है सत् आचरण के अभ्यास से हमारे दुर्गुण दूर होते जाएंगे

संयम और स्वाध्याय का अभ्यास आवश्यक है

अभिभावक हनुमान जी जब हमारे साथ हैं तो हमें भय और भ्रम क्यों हो

मनुष्यत्व की अनुभूति कर हमें कर्तव्य अकर्तव्य का विवेक आ जाता है इसलिए मनुष्यत्व की अनुभूति का अभ्यास प्रारम्भ कर दें मनुष्यत्व की अनुभूति ही शौर्य पराक्रम का भी अनुभव करा देती है और यह अनुभव भी कि हम परमात्मा के अंश हैं और जब परमात्मा को किसी से भय नहीं तो हमें किसी से भय क्यों होगा

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

का भाव सदैव रखें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष भैया दुर्गेश का नाम क्यों लिया

इजरायल हमास युद्ध की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

7.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 7 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *800 वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है विद्राण ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 7 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *800 वां* सार -संक्षेप


 1 जिसकी बुद्धि जाग्रत हुई हो 


06:00, 16.63 MB, 16:57



इन सदाचार वेलाओं का मूल उद्देश्य है कि हम अपनी बुद्धि जाग्रत रखें शुद्ध रखें हम प्रयास करें कि अपना मालिन्य मिटा रहे,सन्मार्ग पर चलते हुए पौरुष और पराक्रम की उपासना करें, पथभ्रष्ट न हों,मनुष्यत्व की अनुभूति करें, समाज -हित और राष्ट्र -हित का भाव रखें, परस्पर प्रेम भाव रखें, संगठन का महत्त्व समझें, संसार के सत्य को जानते हुए भी संसार में रहने का सलीका जानें

हम युगभारती के सदस्य इन उद्देश्यों की पूर्ति करते दिख भी रहे हैं क्योंकि ऐसे उदाहरण अब सामने आने लगे हैं


आचार्य जी हमें सावधान कर रहे हैं कि संसार के जीवन को हम कटु न बना लें

इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने साथी सहयोगी पर विश्वास रखें भ्रम भय न रखें


जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।

बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ 



प्रेम आत्मीयता की सुंदर रीति देखते ही बनती है कि जल भी दूध के साथ मिलकर दूध के समान भाव  पर बिकता है, लेकिन  कपट रूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है अर्थात् दूध फट जाता है  और स्वाद  जाता रहता है अर्थात् कपट के कारण प्रेम आत्मीयता समाप्त हो जाती है


 मां सती का एक प्रसंग है जिसमें तत्त्वज्ञ शिव जी समझा रहे हैं कि राम  जी साधारण मनुष्य नहीं हैं


सती  संसारी भाव में फंसी हुई हैं शिव जी सर्वज्ञ हैं


बहुरि राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥

हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥


तब संकर प्रभु पद सिरु नावा। सुमिरत रामु हृदयँ अस आवा॥

एहिं तन सतिहि भेंट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं॥

तब तत्त्वज्ञ शिव जी ने प्रभु राम के चरणों में सिर नवाया प्रभु राम का स्मरण करते ही उनके मन में यह आया कि सती के इस शरीर से मेरी भेंट नहीं हो सकती


और शिव ने अपने मन में यह संकल्प कर लिया


शिव जी चाहते हैं कि सती को इसी संसारी भाव में रहते हुए भी शान्ति मिले वे यह नहीं चाहते कि सती नष्ट हो जाएं


सती भी संकल्प करती हैं


कहि न जाइ कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामहि सुमिर सयानी॥

जौं प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा॥



तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी। छूटउ बेगि देह यह मोरी॥



ये संकल्प अद्भुत हैं

हम भी यदि  बहुत छोटा सा अंश वाला संकल्प करें तो संसार की हमारी रहनी बन जाए


किसी कथा का अध्ययन करें तो उसके मूल में जाने का प्रयास करें

हम आत्मसमीक्षा अवश्य करें जो आत्मशक्ति का स्रोत है

एक ही सत्य को ज्ञानी लोग बहुत तरह से समझाते आ रहे हैं

अपनी दिनचर्या सही रखें

इसके अतिरिक्त भैया अमित जी भैया विनय जी भैया आशीष जोग जी भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

6.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 6 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *799 वां*

 प्रस्तुत है चाट -रिपु ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 6 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *799 वां* सार -संक्षेप


 1 चाट =ठग 


06:00, 16.63 MB, 16:57


हमारा सनातन धर्म अर्थात् आर्यत्व अद्भुत है इस पर जो भी व्यक्ति विश्वास करेगा इसको समृद्ध करेगा वह उतना ही संपूर्ण विश्व के कल्याण में सहायक होगा


इन वेलाओं के माध्यम से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं इन वेलाओं का सार यह है कि  हम सदाचारमय विचार तो ग्रहण करें लेकिन यह भ्रम न पाल लें कि  अपने शरीर को कष्ट देते हुए दीन दुनिया से विरक्त होकर चिन्तन मनन ध्यान धारणा में लीन होना सदाचार है 

सदाचार के अर्थ को समझने वाला व्यक्ति वह है 

जो तत् को ऐसे रूप में जानता है कि वह  विद्या और अविद्या दोनों  का संयोजन है, वह अविद्या से मृत्यु पर विजय पाकर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है



विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥


इस संसार की  अविद्या को पूर्णरूपेण जानकर समझकर उपयोग कर,मानव और अन्य जीवों के कल्याण हेतु उसके स्वरूप को उपयोगी बनाते हुए, मैं कौन हूं इसका सतत विचार करते हुए, शरीर जब कर्म योग्य न रहे तो उसे त्यागने में बिना मोहित हुए अपने को परमात्मा में लीन करना ही सदाचार है

सनातन धर्म में इन्हीं सब बातों को बहुत विस्तार से समझाया गया है 

विकारों का प्रभाव तो ऐसा है कि समझदार व्यक्ति भी भ्रमित हो जाते हैं


अर्जुन जैसा समझदार व्यक्ति भी भ्रमित होकर द्यूतक्रीड़ा में

सब कुछ गंवा बैठा  संसार के बल के दम पर घमंड में चूर मोहांध दुर्योधन श्रीकृष्ण भगवान को बांधने तक का आदेश दे देता है

मनुष्य रूप में लीला करने वाले भगवान् कृष्ण जब अपना विराट् स्वरूप दिखाते हैं तो अर्जुन को समझ में आता है कि ये तो सामान्य व्यक्ति न होकर भगवान् ही हैं


अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्।


अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्।।11.10।।


दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।


सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।11.11।।


उस बहुत से मुखों और आंखों से युक्त,  अनेक अद्भुत दर्शनों वाले, बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त, बहुत से दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाये हुए

दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुए, दिव्य गन्ध से लिपे हुए, विविध प्रकार के आश्चर्यों से युक्त अनन्त, विश्वतोमुख अर्थात् विराट् स्वरूप परमात्मा को अर्जुन ने देखा



इसी तरह सती के भ्रम को शिव जी ने दूर किया

वह प्रसंग  बहुत अद्भुत है कि भगवान राम सीता जी को खोज रहे हैं और सती भ्रमित हैं

बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥

खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधामपति असुरारी॥


संसार में लिप्तता जब हावी हो जाती है और उससे भ्रमित व्यक्ति जब विश्वास नहीं करता तो अपना स्वरूप दिखाना ही   पड़ता  है



राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु।

सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु॥ 53॥


जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा॥

सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित भ्राता॥


सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ।


ज्ञान खुलता है तो संसार विलीन हो जाता है भोग में लिप्त लोग अंधकार में रहते हैं शरीर में ही वे अवस्थित रहते हैं ज्ञान के पटल इसी कारण खुल नहीं पाते

कभी हमारे यहां घर घर में ज्ञान की सरिता प्रवाहित होती थी कर्मरत रहना फल की इच्छा न करना परमात्माश्रित रहना सिखाया जाता था हम संतुष्ट रहते थे आनन्दित रहते थे 

लेकिन अब हम सतत असंतुष्ट रहते हैं

हमें इस ओर ध्यान देना होगा

यही सदाचार का तत्त्व है

सिद्धि की कामना न करते हुए साधना में रत रहना अद्भुत है

आत्मस्थ होने का प्रयास करें

जीवन शैली संतुलित करें

 नई पीढ़ी को संस्कारित करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शान्तनु बिहारी जी का नाम क्यों लिया जनप्रतिनिधियों के विषय में क्या बताया जानने के लिए सुनें

5.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 5 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *798 वां*

 प्रस्तुत है क्लेशक्षम ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 5 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *798 वां* सार -संक्षेप


 1 =कष्ट सहने में समर्थ 


06:12, 16.39 MB, 16:42



हम दृढ़ विश्वास रखें कि हम केवल शरीर नहीं केवल मन नहीं केवल बुद्धि नहीं हैं अपितु इन सबका समुच्चय हैं

और प्राणों के माध्यम से परमात्मा ने हमारे आत्मतत्त्व को इस संसार में विचरण के लिए प्रेषित किया है यही अध्यात्म का चिन्तन है

संसार के संसरित होने के साथ साथ हम भी भिन्न भिन्न कर्म करते हुए सुख दुःख अच्छा बुरा आनन्द कष्ट का अनुभव करते करते संसरित होते रहते हैं परमात्मा की लीला अद्भुत है


यदि संसार इतना अधिक अद्भुत न लगे तो चिन्तक विचारक इस संसार के रचनाकार के प्रति बहुत अधिक समर्पित नहीं रह सकता

उलझनों में फंसे अर्जुन को भगवान कृष्ण समझाते हुए कहते हैं 


मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।


निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः।।3.30।।



हे अर्जुन सारे कर्मों का मुझ में संन्यास करके,  आशा और ममता से दूर होकर,  संताप के बिना तुम युद्ध करो


आचार्य जी ने पत्रकारों को पकड़े जाने से संबन्धित  घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि हम अपने विवेक को जाग्रत रखें भ्रमित न रहें

 ऐसे बहुत से लोग हैं जो बहुत जल्दी बहुत कुछ पा लेना चाहते हैं उनमें धीरज नहीं रहता अर्थात् वे धर्म से विमुख रहते हैं 

यह समय ठीक नहीं चल रहा है देश को अस्थिर करने का बहुत से लोग मन्सूबा पाले हैं

सनातन धर्म को भी घृणा से देखने वाले बहुत से लोग हैं

इन सदाचार वेलाओं को सुनकर हम अपना मार्ग निर्धारित करें



श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।

हम अपने कर्तव्य को समझें

शिक्षक ने अपना कर्तव्य नहीं समझा 

पराश्रयता की शिक्षा देने के कारण शिक्षक भ्रमित हो गया

 योद्धा अपना धर्म भूल गया पत्रकार अपना धर्म भूल गया

जब धर्म का पालन नहीं तो मनुष्य के रूप में जन्म लेने का क्या लाभ


इसलिए हम अपने मनुष्यत्व को पहचानें

अपना आत्मबोध जाग्रत करें

उस दिशा को हम पहचानें और उसी ओर चलें जिसकी ओर आचार्य जी संकेत कर रहे हैं


हम अपने खान पान संगति व्यवहार आदि पर भी ध्यान दें

 सत्कर्म करने का भाव रखें

मन बुद्धि पर नियन्त्रण रखें

प्रातः जल्दी जागें सात्विक भोजन करें सद्संगति करें अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों चिन्तन में गहराई लाएं

आसन प्राणायाम करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सुदामा का कौन सा प्रसंग बताया आदि जानने के लिए सुनें

4.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 4 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *797 वां*

 प्रस्तुत है नीरुज् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 4 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *797 वां* सार -संक्षेप


 1 =स्वस्थ 


06:10, 16.42 MB, 16:44




असाधारण व्यक्तित्व के धनी आचार्य जी की इन सदाचार वेलाओं का परिणाम  परिलक्षित हो रहा है इसमें कोई संदेह नहीं

हमें अब अपने कष्टों और समस्याओं का समाधान मिलने लगा है सदाचारमय विचारों का प्रभाव ऐसा ही होता है भ्रम ,भय , तिमिर से मुक्त होने की दिशा में हम अग्रसर हैं


हम उपासक ज्योति के फिर क्यों तिमिर से भय


  भारत के अद्भुत गहन श्रुति साहित्य के प्रति आचार्य जी ने हमारे अन्दर रुचि जाग्रत कर दी है  इस साहित्य में वेदसंहिता, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक एवं उपनिषद् सम्मिलित हैं।

भौतिकवादी चिन्तन के कारण हमने इनसे दूरी बना ली थी लेकिन अब हमें इनका महत्त्व समझ में आने लगा है

धर्म से हम दूरी कैसे बना सकते हैं वह तो अत्यन्त उपास्य है इसे हम उपेक्षित नहीं कर सकते इसे तो  जितना समझें उतना ही संसार का भला होगा


हम कौन हैं यदि यह विचार करें तो



हम उदय के गीत, गति के स्वर, प्रलय के शोर भी हैं

 हम गगन के मीत हैं, पाताल के प्रहरी, कभी घनघोर भी हैं

 हम हलाहल पी हँसे हैं हर तिमिर काँपा यही इतिहास मेरा

 मानवी जय की पताका हम, प्रभा के तूर्य धिक् यह लोभ घेरा ।

 बज उठें फिर शंख मंगल आरती के झाँझ और मृदंग,


भागे मुँह छिपा तम जो घनेरा है।

उठो साथी उठो अभी सबेरा है।

उठो अब भी सबेरा है ll


हमेँ जड़त्व मोह वासना का त्याग करना है हम अपना आत्मबोध जाग्रत करें


कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।


न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति।।3.4।।


कर्मों के न करने से मनुष्य निष्कर्मता को प्राप्त नहीं होता है और न कर्मों के संन्यास से ही वह सिद्धि पाता है


सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।


अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्।।3.10।।


कर्म फलप्रद तो हो लेकिन उसके प्रति लालसा न हो



कर्म के मूल से दूर न हों


परमात्मा ने हमें अद्भुत शरीर दिया है वह भी सतत कर्मरत है


परमात्मा अद्भुत है उसकी लीला अवर्णनीय है परमाणु में भी गति है ब्रह्माण्ड में भी गति है

उस परमात्मा ने कर्मरत होकर ही अनेक सृष्टियां बना दीं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम दम्भ न करें सजातीय को साथ लेकर चलें संगठन के महत्त्व को समझें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया दिनेश प्रताप सिंह जी का नाम क्यों लिया मञ्जूषा वाली कौन सी रोचक कथा थी विधवा विलाप से क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें

3.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 3 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *796 वां*

 संयम श्रद्धा स्वाभिमान के साथ सतत संकल्प भजो, 

लोभ लाभ दीनता कृपणता कायरता हर हाल तजो। 

उठो उठाओ जो उठना चाहें उन सबका हाथ गहो, 

और बन चुके जो जड़ पत्थर उनसे हरदम दूर रहो।।


प्रस्तुत है सत्यधन ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 3 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *796 वां* सार -संक्षेप


 1 =अत्यन्त सच्चा 


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आचार्य जी की इन वेलाओं से सात्विक, तात्विक, कर्मशीलता वाले, अध्यात्म में शौर्य और पराक्रम की अनिवार्यता व्यक्त करने वाले  भाव प्राप्त कर हम अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करने में सफल हो रहे हैं यह परमात्मा की कृपा है


जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥


स्रष्टा ने इस जड़-चेतन विश्व को गुण-दोषमय रचा है

 यहां संबन्ध  विच्छेद ऊंच नीच शुभ अशुभ सफलता असफलता जय पराजय सुख दुःख का मिला जुला रूप दिखता है 

 लेकिन सन्त रूपी हंस दोष रूपी जल का परित्याग कर गुण रूपी दुग्ध को ही ग्रहण करते हैं

आइये इसी दुग्ध को प्राप्त करने के लिए,  अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए,अपने दीर्घकालीन लक्ष्यों को पाने के लिए, आत्मबोध की अनुभूति के लिए, भ्रम और भय के निवारणार्थ,कर्मानुरागी चैतन्य की प्राप्ति हेतु  और

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आधार लेकर देश और समाज के लिए कुछ न कुछ करने की प्रेरणा प्राप्त करने के लिए 

हम प्रवेश कर जाएं आज की वेला में



इस संसार में हम लोग मनुष्य के रूप में निवास कर रहे हैं और मनुष्यों की वृद्धि से मनुष्य चिन्तित हो रहा है और वह उपाय खोज रहा है

मनुष्य अनेक प्रपंचों में फंसा रहकर अपना महत्त्वपूर्ण जीवन व्यतीत कर देता है

भारत की संस्कृति अद्भुत है 

मनुष्य ने ज्ञान की उपासना की इसकी प्राप्ति के लिए वेदों का हमें आश्रय मिला


वेद अमरत्व के उपासक ग्रंथ हैं ब्राह्मण कर्मकांड हेतु और आरण्यक उपासना हेतु हैं उपनिषद् उपासना और ज्ञान का भंडार हैं इनमें ज्ञान और कर्म का सामञ्जस्य है इन्हें वेदान्त भी कहते हैं ये हजारों की संख्या में हैं उपनिषद् के आधार पर गीता और गीता के आधार पर मानस है 

दाराशिकोह को उपनिषद् बहुत अच्छे लगे तो उसने इनका फारसी में अनुवाद कर दिया

उस अनुवाद का एक फ्रेंच लेखक ने लैटिन में अनुवाद कर दिया उसे एक जर्मन दार्शनिक ने देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा उसे इसमें बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्य दिखे  उसे लगा कि इसकी बातें जीवन के लिए तो उपयोगी हैं ही मृत्यु के समय में भी इनसे सहारा मिलेगा

हमें भी उपनिषदों का अध्ययन करना चाहिए इनसे मानसिक कमजोरी दूर होगी

जब हमें इनमें सब कुछ मिल जायेगा तो फिर हमें क्या चाहिए 

यही मोक्ष है आत्मानन्द है

नई जनरेशन को भी समझाएं

 उसे दिशा देने की आवश्यकता है उसमें आत्मबोध जाग्रत हो जाए तो पूरे विश्व का कल्याण होगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रदीप भैया नीरज भैया अरविन्द भैया विभास का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

2.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 2 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *795 वां*

 असतो मा सद्गमय। असतो मा सद्गमय

तमसो मा ज्योतिर्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय

मृत्योर्मा अमृतं गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ 

- बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28


प्रस्तुत है ज्ञान -दीधितिमत् ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 2 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *795 वां* सार -संक्षेप


 1 =दीधितिमत् =सूर्य 


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इसमें कोई संदेह नहीं कि संसार अद्भुत है ही लेकिन इसके साथ ही संसार के सार को खोजने की विधियां भी अत्यन्त अद्भुत हैं

कोई इसे शान्ति कहता है कोई सुख कोई आनन्द /परम आनन्द


भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।


सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति।।5.29।।




जब इनकी विवेचना होती है तो वही सत्य लगती है


कभी सब कुछ ठीक लगता है कभी लगता है कुछ भी ठीक नहीं है

परमात्मा का अंश मनुष्य जीवात्मा के रूप में इस संसार में भ्रमण करता है तो 

इस बात का कभी आकलन नहीं किया जा सकता कि किसमें कब कौन सा भाव उत्पन्न हो जाए

यह अवसर कभी भी आ सकता है 

हमें  सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का कोई भी अवसर अनदेखा नहीं करना चाहिए ये सदाचार वेलाएं एक ऐसा सुअवसर हैं जो हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी हैं हमें अपनी समस्याओं के यहां समाधान मिलेंगे ही इसमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए


बृहद् ज्ञान वाला बृहदारण्यक  उपनिषद्    अति प्राचीन है और इसमें जीव, ब्रह्माण्ड और ब्रह्म (ईश्वर) के बारे में कई बाते कहीं गईं है।यह एकान्त में अध्ययन करने योग्य है

शंकराचार्य ने इसका भाष्य किया है

इस उपनिषद् की भूमिका भी अद्भुत है


इस उपनिषद् के अनुसार याज्ञवल्क्य संन्यास लेना चाहते हैं उनकी दो पत्नियों कात्यायनी और मैत्रेयी में कात्यायनी संसारी भाव की हैं और मैत्रेयी अध्यात्मोन्मुख हैं

वह धन संपत्ति बांटना चाहते हैं ताकि बाद में विवाद न रहे

मैत्रेयी को वह चीज चाहिए थी जो कभी समाप्त न होती 

अर्थात् अमरत्व

याज्ञवल्क्य बोले यह तो मुश्किल है

मैत्रेयी उपदेश प्राप्त करना चाह रही थीं



स होवाच याज्ञवल्क्यो


 न वा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवत्यात्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति न वा अरे जायायै कामाय जाया प्रिया भवत्यात्मनस् तु कामाय जाया प्रिया भवति।



यह अपना क्या है मन बुद्धि तो परिवर्तनशील हैं आत्म अपरिवर्तनशील है


आत्म समझना कठिन है


त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।

ग्रामं जनपदस्यार्थे

*आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्* ॥


आत्म वो तत्व है जो प्राणों के बीच स्थित है


संक्षेप में कहा जाए

तो देश समाज के साथ हमें आत्मोन्नति के उपाय भी खोजने चाहिए

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया ध्यान लगाने की विधि कैसी होनी चाहिए जानने के लिए सुनें

1.10.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन् मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080 तदनुसार 1 अक्टूबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *794 वां*

 नीलः पतङ्गो हरितो लोहिताक्षस्तडिद्गर्भ ऋतवः समुद्राः।

अनादिमत्त्वं विभुत्वेन वर्तसे यतो जातानि भुवनानि विश्वा॥



प्रस्तुत है प्रक्रान्त ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आश्विन् मास कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रम संवत् 2080  तदनुसार 1 अक्टूबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  *794 वां* सार -संक्षेप


 1 = बहादुर 


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संसार में प्रायः हम सबके जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं

अध्यात्म हमें प्रपंचों में उलझने से बचाता है इसलिए अध्यात्म महत्त्वपूर्ण है

आइये अध्यात्म के दर्शन के लिए आज की सदाचार वेला में प्रवेश कर जाएं



अद्भुत बैखरी से हम सबको अत्यन्त प्रभावित करने वाले आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय देकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है


परमात्मा अत्यन्त सक्षम समर्थ है वह हमारी रक्षा करता है वह अत्यन्त कृपालु है हमें उस पर विश्वास करना ही चाहिए  

ज्ञान का प्रकाश परिस्थितियों की अनुकूलता गुरु की प्राप्ति आदि परमात्मा की कृपा से संभव हैं परमात्मा विविध रूपों में हमारे सामने आता रहता है 

श्वेताश्वतरोपनिषद् के इन छंदों में उसकी महानता के दर्शन होते हैं 


अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः।

स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्र्यं पुरुषं महान्तम्‌॥


वह बिना पाणि का होते हुए भी सबको पकड़े हुए है। पैरों के बिना  वह तेजी से चलता है। नेत्रों के बिना देखता है।  बिना कानों के सुनता है। जानने योग्य हर चीज को वह जान ही लेता है। पर उसे कोई नहीं जान पाता

ज्ञानीजनों के अनुसार  वह अग्रवर्ती और विराट पुरुष है।



अणोरणीयान्महतो महीयानात्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः।

तमक्रतुः पश्यति वीतशोको धातुः प्रसादान्महिमानमीशम्‌॥



सूक्ष्मतम से भी सूक्ष्मतर तथा महानतम से भी महानतर आत्मन प्राणियों के हृदय में छिपा हुआ है। स्रष्टा की कृपा से व्यक्ति शोक और कामना से मुक्त होने पर उसे परम आत्मन के रूप में जान लेता है।


यह हमारा सौभाग्य है कि  हमारे ऋषियों ने इन छंदों को रचा उनके मन में कुछ भाव आये और उन्हें  अनुभूति का आनन्द मिला फिर उन्होंने इनकी रचना कर डाली

तुलसीदास जी को भी ऐसा ही आनन्द मिला होगा


तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥



मंदोदरी रावण को समझा रहीं हैं कि राम भगवान् हैं वे सामान्य मनुष्य नहीं हैं


पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥

भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥




पाताल उन विश्व रूप भगवान का चरण है, ब्रह्म लोक सिर है, अन्य जिनके  भिन्न-भिन्न अंगों पर स्थित हैं

 भयंकर काल जिनका भृकुटि संचालन  है। सूर्य नेत्र है,बाल बादलों का समूह है।


उनका विराट् स्वरूप हमें गीता में भी दिखता है

अपने अपने स्तर के अनुसार परमात्मा हमें समझ मे आ सकता है


हमारा साहित्य अद्भुत है ज्ञान का प्रचुर भंडार है हम इस साहित्य के ग्रंथों से अपने जीवन में सब कुछ पा सकते हैं हमें अन्यत्र भटकने की आवश्यकता ही नहीं है

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय में हमें अवश्य रत होना चाहिए


आचार्य जी ने हमारा ध्यान इस ओर भी दिलाया कि 

कार्यक्रमों को करते समय हमें उनका हेतु भी समझ में आना चाहिए

किस कार्यक्रम से कितने कार्यकर्ता मिले इसका भी हिसाब किताब रखें

भाव गहन करेंगे तो शक्ति प्राप्त होगी

समय का सदुपयोग करें


इसके अतिरिक्त मनीषत्व क्या है भैया मोहन जी भैया विनय जी का उल्लेख क्यों हुआ कुमार विश्वास का नाम क्यों सामने आया जानने के लिए सुनें