31.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३७ वां सार -संक्षेप

 भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥


प्रस्तुत है विलसत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  31मई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३७ वां सार -संक्षेप

¹ चमक्ने वाला

ये सदाचार संप्रेषण दूरस्थ शिक्षा का अप्रतिम उदाहरण हैं और हमारी भारतीय परम्परा का परिपालन करते हुए यह शिक्षा हमारा मार्गदर्शन कर रही है 


जो व्यक्ति केवल संसार में लिप्त रहते हैं वे व्याकुल ही रहते हैं  हमें अपने अद्भुत ग्रंथों वेद उपनिषद् गीता मानस से शिक्षा में दूर रखा गया परिणाम यह हुआ कि हम संसार बन गए अर्थात् हम संसार में पूर्णरूपेण लिप्त हो गए 

 यदि कुछ क्षणों के लिए ही सही व्यक्ति संसार के साथ सार की भी अनुभूति कर ले तो कम से कम उन क्षणों में तो वह आनन्दित रहेगा ही 


न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:

न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥


बहुत कम समय में ही बहुत कुछ करने वाले भगवान् आदि शंकराचार्य एक उदाहरण  हैं



जो अपने मनस् तत्त्व को संवेदनशीलता के साथ जाग्रत रखते हैं उन्हें श्री राम की कथा अपने घर की कथा लगती है 

यह मनस् तत्त्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है हम मनुष्य इसीलिए हैं कि मन हमारे साथ है


दुनिया को परिभाषित करते हुए आचार्य जी कहते हैं 


इस दुनिया में सबका अपना अलग अलग अंदाज है

सबकी बोली सबकी शैली अलग अलग आवाज है

तरह तरह के रंग रूप रुचियों का अद्भुत मेल है 

अजब सुहाना अकस्मात् मिट जाने वाला खेल है


प्यार और तकरार प्रेम की पीर सुखद अनुभूति है 

जो जलकर के राख हो गई उसका नाम विभूति है 

सबका सुर सबका तेवर है सबका अपना साज है 

इस दुनिया में...



दुनियादारी की भी सबकी अलग अलग परिभाषा है 

शब्दों का  अंदाज अलग पर वही एक सी भाषा है 

दुनिया में आना जीना जाना तो एक बहाना है 

सचमुच में दुनियादारी का अजब गजब अफसाना है 

यह अफसाना ही दुनिया का अपना एक मिजाज है

हर पारखी यहां पर रखता अपनी अपनी माप है 

पैमानों पर लगी हुई है सबकी अपनी  छाप है 

ये पैमाने ही दुनिया भर के सारे संघर्ष हैं 

क्योंकि सबके यहां हो जाते  अलग अलग निष्कर्ष हैं 

खुश हो जाता एक दूसरे पर जब गिरती गाज है 

दुनिया में रहते रहने पर सबको सभी अखरते हैं 

और गुम हो जाने पर सुधियों में प्रायः रोज उभरते हैं 

अच्छा बुरा प्रेम नफरत दुनियादारी के नखरे हैं 

तरह तरह के छ्ल प्रपंच कोने कोने में पसरे हैं 

दिन में शीश मुफलिसी ढोता रात पहनता ताज है 

ज्ञान नसीहत का खुमार है 

ध्यान यहां सोना चांदी 

विश्वासों की छत के नीचे 

रिश्तों की है आबादी....


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ राय जी का नाम क्यों लिया एक शाखा पर लड़ाई वाला क्या प्रसंग है आदि जानने के लिए सुनें

30.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३६ वां सार -संक्षेप ¹ मालाधारी

 मैं तत्व शक्ति विश्वास, 

समस्याओं का निश्चित समाधान, 

मैं जीवन हूँ मानवजीवन

मैं सृजन- विसर्जन-उपादान।


प्रस्तुत है स्रग्धर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 मई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३६ वां सार -संक्षेप

¹ मालाधारी



ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं इनको सुनने से हमें शक्ति मिलती है हम दिन भर के लिए ऊर्जस्वित हो जाते हैं हम उत्साह उल्लास से भर जाते हैं हनुमान जी की यह महती कृपा है संकटमोचक हनुमान जी महाराज इस कलियुग के जाग्रत रक्षक देव हैं जो भ्रमित पीड़ित लोगों के संकटों को,कष्टों को दूर करते हैं 

संकट कटे मिटे सब पीरा , जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।


किष्किन्धा कांड में भगवान् राम  एक शास्त्रोक्त कथन कहते हैं 


सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।

मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत॥3॥


हे हनुमान ! अनन्य वही व्यक्ति है जिसकी ऐसी बुद्धि कभी नहीं टलती कि मैं सेवक हूँ और यह जड़ चेतन जगत्‌ मेरे स्वामी भगवान्‌ का स्वरूप है


सेवा धर्म परम गहनो योगिनामप्यगम्यः।

सेवा के अनेक प्रकार हैं 

पद्म पुराण का उल्लेख करते हुए आचार्य जी बताते हैं कि उसमें एक भाग में सेवा विस्तार से बताई गई है 

आचार्य जी शुद्धाद्वैत दर्शन के व्याख्याता श्री वल्लभाचार्य का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि 

भक्ति के क्षेत्र में   महाप्रभु श्रीवल्‍लभाचार्य जी का साधन मार्ग पुष्टिमार्ग कहलाया 

सूरदास पुष्टिमार्गीय थे 

वल्लभाचार्य कहते हैं सेवा के तीन स्थान हैं 

गुरु, संत और प्रभु 

गुरु और संत की सेवा साधन है और प्रभु की सेवा साध्य 

सेवा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जब सेवा  का भाव विचारों में पल्लवित होकर क्रिया में परिवर्तित होता है तो अत्यन्त आनन्ददायक होता है

हनुमान जी ने जो सेवा की वह अवर्णनीय है 

मां जानकी को खोजने का काम 

मां जानकी की सेवा करने के बाद प्रभु राम के पास आते हैं 

रामसेतु बनने के बाद अंगद सेवा करते हैं 

रावण के सम्मुख भरे दरबार में  रावण को शठ कहते हैं 


तोहि पटकि महि सेन हति चौपट करि तव गाउँ।

तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ॥ 30॥

जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥

कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥


सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥

तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी॥


अंगद सेवा कर रहे हैं मनोवैज्ञानिक रूप से रावण को हतोत्साहित कर रहे हैं 

भगवान् राम के प्रति रावण द्वारा अपमानजनक शब्द बोलने पर क्रोधित हो जाते हैं 

यह सेवा ही है सैनिक भी  सेवा करते हैं 

जब हमें सेवा में आनन्द आने लगता है तो सम्बन्ध अपने आप विकसित होने लगते हैं जिस प्रकार भैया डा सौरभ राय भैया अनिल महाजन जी की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं वह एक मिसाल है 

इसके अतिरिक्त शुक्रवार को कौन भैया भारत आ रहे हैं जानने के लिए सुनें

29.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है सद्विद्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 मई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३५ वां सार -संक्षेप

¹ सुशिक्षित


सुशिक्षित मनुष्य  होना एक महत्त्वपूर्ण विलक्षण उपलब्धि है  जिसमें धीरज  धर्म शक्ति शौर्य आदि बहुत से गुण भी आवश्यक हैं यूं तो मनुष्य होना ही एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है उसे  'चिन्तन ' नाम की एक अद्भुत शक्ति  प्राप्त है जो अन्य जीवों को नहीं प्राप्त है  हम सनातनधर्मी हिन्दू हैं और सनातनधर्मी हिन्दू इस पार से उस पार तक की चिन्ता भी करता है और चर्चा भी 

गगन के उस पार क्या, पाताल के इस पार क्या है? क्या क्षितिज के पार? जग जिस पर थमा आधार क्या है?

अद्भुत है हमारा भारतीय जीवन दर्शन कि जहां समरभूमि में भी शिक्षा दी जाती है और वह भी अत्यन्त प्रभावकारिणी 

गीता रामायण धर्म के मानक बन गए 

हमें गर्व करना चाहिए कि हम मनुष्य हैं, भारतवर्ष में हमारा जन्म हुआ है और उसमें भी उत्तर प्रदेश में जन्म हुआ है 

कितने सौभाग्यशाली हैं हम 

घोर संकटों में घिरे होने पर भी जिस मनुष्य का धैर्य स्थिर रहे तो समझ लेना चाहिए उसे भगवान् का वरदान मिल गया है 

इसी धैर्य का हम प्रयास करें  जिसके लिए अध्यात्म के प्रति आकर्षण  अत्यन्त आवश्यक है 

वह ही कवि है जो चिन्तन करता है वेदों का रचयिता भी कवि ही है 

निर्विकल्प समाधि में स्थित परमपिता परमात्मा के मन में जब काव्यात्मक अनुभूति उत्पन्न होती है तो वह सृष्टि की रचना करता है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह आनन्दपूर्ण रहस्यमय संसार एक कविता है

हम उस संसार के प्रतिनिधि हैं 



न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म: न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥


हमें इस तत्त्व के प्रति अनुभूति होनी चाहिए 

सोऽहं सोऽहम् 


ज्येष्ठ मास के मंगलवार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं  कल मंगलवार था और अपने गांव सरौंहां में एक अत्यन्त सफल कार्यक्रम सम्पन्न हुआ जिसमें लगभग ५० स्वजन उपस्थित हुए 

आचार्य जी ने २ जून को होने वाली बैठक के लिए कुछ परामर्श दिए 

बैठक के अन्दर प्रेम आत्मीयता की सुगंध फैलनी चाहिए 

आगामी राष्ट्रीय अधिवेशन के प्रबन्धन के लिए  केवल धन ही आवश्यक नहीं है प्रबन्धन हेतु व्यक्तियों का मानसिक उल्लास उत्साह अत्यन्त आवश्यक है 



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ द्विवेदी जी भैया पुनीत जी भैया अरविन्द जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

28.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 मई 2024 मङ्गलवार का सदाचार सम्प्रेषण १०३४ वां सार -संक्षेप

 ज्येष्ठ मास के प्रथम मङ्गलवार को आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं 



प्रस्तुत है गमक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 मई 2024 मङ्गलवार का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३४ वां सार -संक्षेप

¹ विश्वासोत्पादक


विश्वास की ही तो कमी है इस कलियुग में 

आचार्य जी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्रयास करते हैं कि हमारा अपने धर्म के प्रति राष्ट्र के प्रति  अपनी भाषा के प्रति अपने ग्रंथों के प्रति  अपने प्रति अपनों के प्रति विश्वास बढ़े 

आचार्य जी यह भी प्रयास करते हैं कि विषम परिस्थितियों में भी हम अपने भावों से दूर न रहें 

भाव अर्थात् चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

शक्ति भक्ति तत्त्व सत्त्व विश्वास को संगठित रूप में हम यदि प्रदर्शित करते हैं तो अपने निराश हताश लोगों की हिम्मत बंधती है यही हम राष्ट्रीय अधिवेशन,जो हमारी तपोवृत्ति की परीक्षा है,के माध्यम से करने जा रहे हैं 

हम मुमुक्षु बनने का प्रयास भी करें

अर्थात् शरीर के रहते हुए ही मोक्ष का अनुभव करें 

मोक्ष का अर्थ शरीर का मर जाना नहीं है 


चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह। 


जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥


साहन के साह अर्थात् राजाओं के राजा 

मुमुक्षु को तत्त्व का साक्षात्कार हो जाता है 

ऐसी स्थिति में प्रारब्ध कर्म का भोग शेष रहता है  धृतराष्ट्र का उदाहरण हमारे सामने है लेकिन संचित और क्रियमाण कर्म उसके लिए बन्धन उत्पन्न नहीं करते 

जीवनमुक्त की दो अवस्थाएं होती हैं एक समाधि दूसरी उत्थान 

समाधि अवस्था में व्यक्ति ब्रह्मलीन रहता है उत्थान अवस्था में व्यक्ति 

सभी व्यावहारिक कार्यों को अनासक्त भाव से करता है 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


आचार्य जी ने आदि शङ्कराचार्य जी के शिष्य मंडनमिश्र अर्थात्

सुरेश्वराचार्य की चर्चा की

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि जीवन्मुक्ति विवेक पुस्तक अवश्य पढ़ें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज हम लोगों के अपने गांव  सरौंहां में होने जा रहे किस कार्यक्रम की चर्चा की 

भैया अमित जी भैया पङ्कज जी की चर्चा क्यों की आचार्य जी ने ताण्डव का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

27.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है चिन्मय ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३३ वां सार -संक्षेप

¹ विशुद्ध बौद्धिकता से युक्त



ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं और उसी प्रकार हैं कि 

बूड़त कछु अधार जनु पाई॥

मानो डूबते हुए व्यक्ति को कुछ आश्रय मिल गया हो।

सदाचारमय विचारों के बीच रहकर हम डूबने से बच सकते हैं 

विधि विपरीत भलाई नाहीं

मालिन्य से दूर रहने का प्रयास करें 

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम जो कार्य  करें वह समाज में एक उदाहरण बने जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, आदि शङ्कराचार्य, गुरु गोविन्द सिंह, महाराणा प्रताप,शिवा जी महाराज आदि अनेक उदाहरण बने


सितम्बर में होने जा रहे राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए हम सब लोग अत्यन्त उत्साहित हैं इस अधिवेशन हेतु  यात्राएं करें संपर्क करें सम्बन्ध बनाएं विचार करते रहें

हवन करते हाथ न जलें इसका ध्यान भी रखें यह उपलक्ष्य, जिसके लिए हम किसी भी परिस्थिति के आने पर अपने प्रयासों में कमी नहीं आने दे रहे हैं, हमें अपने लक्ष्य को याद दिलाता रहता है और हमारा लक्ष्य है 


जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष ।

निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।


परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥ 



हम स्वयं जागें और जागृति का संदेश फैलाएं

 मनीषी चिन्तक विचारक कवि संसार की सांसारिकता से परे जाकर कहता है 

जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक ।

व्योम-तम पुंज हुआ तब नष्ट , अखिल संसृति हो उठी अशोक ।।

भाव विचार और क्रिया का क्रम न टूटे इसका हम प्रयास करते रहें यही उपासना अर्थात् अपने पास बैठना है उपासना हमें अनुभूति कराती है कि 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

यह अनुभूति अत्यन्त आवश्यक है 


आचार्य जी ने परिवार भाव को भी स्पष्ट किया हमारी संस्था युगभारती में परिवार भाव परिलक्षित होना चाहिए किसी को किसी से संकोच नहीं होना चाहिए-

स्वार्थ के आडंबर से दूर दुराग्रह से किनारा

 समाज के परिवेश पर्यावरण के चिन्तन के साथ हम प्राण पर भी ध्यान दें 

हमारे प्राण विलक्षण हैं 

प्राण अत्यन्त पवित्र हैं और आत्मा को इधर से उधर व्यवहार में लाने का आधार भी हैं  

वायु पर आसीन होकर आत्मतत्त्व विचरण संचरण करता है वह वायु शुद्ध रहे इसके लिए प्राणायाम आवश्यक है 

 इसके अतिरिक्त परम आदरणीय आचार्य जी ने 

भैया मुकेश जी भैया पुनीत जी भैया डा अमित जी भैया डा प्रदीप त्रिपाठी जी भैया मोहन जी भैया सुरेश जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया किसके हाथ में लगातार दर्द बना हुआ है २ जून की बैठक हेतु लखनऊ से कौन कौन आ रहा है भगवान् शंकराचार्य के जन्मस्थान के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

26.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है लोकप्रसिद्ध ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३२ वां सार -संक्षेप

¹ विश्वविख्यात


अध्ययन और स्वाध्याय से अपनी समझदारी के पर्दे खुलते हैं  ज्ञान -चक्षु खुलते हैं इसलिए सतत अध्ययन करते रहना चाहिए जैसे हमें उपनिषदों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए 


हनुमान जी की कृपा से यह सदाचार वेला, जिसमें आर्ष परम्परा से आई ज्ञान की किरणें हमें प्राप्त होती हैं,सदाचारमय संसार के स्वरूप की निर्मिति में सहयोग देने का छोटा सा लेकिन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण  विन्दु प्रयास है

एक शब्द है विन्दु  और एक दूसरा शब्द है सिन्धु 

विन्दु और सिन्धु एक ही तत्त्व के अंश हैं 

विन्दु जब सिन्धु में विलीन हो जाता है तब वह विन्दु नहीं रहता अपितु सिन्धु हो जाता है

कबीर के शब्दों में 

 

हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।


बूँद समानी समद मैं, सो कत हेरी जाइ॥


साधना की चरम अवस्था में जीव  का अहंभाव नष्ट हो जाता है। यही आनन्द प्राप्ति की अवस्था है अद्वैत को अनुभव करने पर आत्मा  परमात्मा का अंश लगता है। अंश अंशी  में लीन होकर अपना अस्तित्व ही मिटा देता है।

उसका अस्तित्व सिन्धुमय हो जाता है


हमारी आर्ष परम्परा अद्भुत है पं दीनदयाल कहते थे कि वो जो कुछ बोलते लिखते हैं वह आर्ष परम्परा से प्राप्त है 

एकात्म मानववाद भी उसी आर्ष परम्परा के अध्ययन का परिणाम है उनकी अपनी परिकल्पना नहीं 

कामायनी की भूमिका में जयशंकर प्रसाद भी यही बात कहते हैं कि मैंने ऋग्वेद की कथा को इसमें संजोने का प्रयास किया है 

आचार्य जी ने याज्ञवल्क्य मैत्रेयी कात्यायनी वाला प्रसंग बताया याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थीं मित्र ऋषि की पुत्री मैत्रेयी और भारद्वाज ऋषि की पुत्री कात्यायनी 

कात्यायनी संसारी भाव में थीं जब कि मैत्रेयी चिन्तनशीला 

ऋषि याज्ञवल्क्य को लगा कि अब वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम में जाना चाहिए और अपनी संपत्ति इन दोनों में बांट देनी चाहिए याज्ञवल्क्य उस दर्शन के प्रखर प्रवक्ता थे, जिसने इस संसार को मिथ्या स्वीकारते हुए भी उसे पूरी तरह से नकारा नहीं। उन्होंने व्यावहारिकता के धरातल पर संसार की सत्ता को स्वीकारा  कात्यायनी ने तो प्रस्ताव स्वीकार लिया, पर मैत्रेयी  जानती थीं कि धन-संपत्ति से आत्मज्ञान नहीं खरीदा जा सकता। इसलिए उन्होंने पति की संपत्ति लेने से मना करते हुए कहा - "मैं भी वन में जाऊंगी और आपके साथ मिलकर ज्ञान और अमरत्व की खोज करूंगी क्योंकि धन और साधन तो क्षरणशील हैं 

इस तरह कात्यायनी को ऋषि की सारी सम्पत्ति मिल गई और मैत्रेयी अपने पति की विचार-सम्पदा की स्वामिनी बन गईं 

ऐसी अनेक  हैं गिनती में हमारी विदुषी माताएं 

हमें इनके बारे में जानना चाहिए और अपने बच्चों को अपनी धर्मपत्नियों को बताना चाहिए 

इस भाव की अनुभूति करते हुए अपनी परम्पराओं को देखते हुए लक्ष्य और उपलक्ष्य का हम ध्यान रखें 


अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम उनसे प्रश्न करें ताकि हमें जो उत्तर मिलें उससे हमारे ज्ञान में वृद्धि हो सके 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने २ जून की बैठक के विषय में क्या कहा 

जानने के लिए सुनें

25.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३१ वां सार -संक्षेप

 हम उदय के गीत, गति के स्वर, प्रलय के शोर भी हैं

 हम गगन के मीत हैं, पाताल के प्रहरी, कभी घनघोर भी हैं

 हम हलाहल पी हँसे हैं हर तिमिर काँपा यही इतिहास मेरा

 मानवी जय की पताका हम, प्रभा के तूर्य धिक् यह लोभ घेरा ।

 बज उठें फिर शंख मंगल आरती के झाँझ और मृदंग,

भागे मुँह छिपा तम जो घनेरा है।

उठो साथी उठो अभी सबेरा है।

उठो अब भी सबेरा है ll



प्रस्तुत है विद्या -पेयुः ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३१ वां सार -संक्षेप

¹ पेयुः =समुद्र



ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं  इनसे ज्ञान प्राप्त करने हेतु विश्वास आवश्यक है इन्हें मात्र हम सुने ही नहीं अपितु अधिक लाभ लेने के लिए चिन्तन भी करें मात्र चलताऊ ढंग से सुनना पर्याप्त नहीं है यदि आत्मस्थ होकर कुछ क्षणों के लिए हम अपने भीतर प्रवेश नहीं करेंगे तो हम यूं ही संसार की समस्याओं को झेलते झालते समाप्त हो जाएंगे समस्याओं का समाधान हमारे भीतर ही है यह निश्चित रूप से सही है हमारी प्राणिक ऊर्जा हमें पता ही नहीं लगने देती कि हम अनेक व्याधियों से युक्त अत्यधिक वजन का शरीर उठाए घूम रहे हैं 

प्राण जाने पर शरीर सुन्दर नहीं लगता 



हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए हैं हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने इस देश में जन्म लिया है  हमारा देश अद्भुत है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि इन महापुरुषों का जीवन हम विस्तार से पढ़ें और प्रेरणा प्राप्त करें ऐसे ही एक महापुरुष हैं भगवान् आदिशंकराचार्य जिन्हें मात्र ३२ वर्ष की आयु मिली उनकी रचनाएं पढ़कर ऐसा लगता है कि उनमें अलौकिक प्रतिभा थी l 

किसी विद्वान् ने लिखा है कि उनमें प्रकांड पाण्डित्य, गम्भीर विचारशैली,प्रचंड कर्मशीलता, अगाध भगवद्भक्ति, सर्वोत्तम त्याग,अद्भुत योगैश्वर्य आदि गुणों का दुर्लभ समुच्चय था

दीनदयाल जी ने भी उन  पर आधारित एक छोटी सी पुस्तिका की रचना की

लोग उन्हें अद्वैतवादी मानते हैं 

आचार्य जी ने निर्वाण षटकम् की चर्चा की जिसके छहों छंद अद्भुत हैं 

मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं

श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे

न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः

चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि ये सारे छंद याद कर लें इन्हें गाएं  इन्हें अपनों को सुनाएं यह गायन जब भीतर प्रवेश करेगा तब हमारे ज्ञान -चक्षु खुलेंगे 

शंकराचार्य भगवान् ने तो इतनी कम आयु में अनेक ग्रंथ लिख डाले 


चार धार्मिक मठ दक्षिण में शृंगेरी शंकराचार्यपीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धनपीठ, पश्चिम में द्वारिका में शारदामठ तथा उत्तर में बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ भारत की एकात्मकता को आज भी दिग्दर्शित कर रहे हैं 



हम भी अपनी भूमिका जानें परमात्मा ने किसी उद्देश्य से हमें यहां भेजा है समय की गम्भीरता को पहचानें 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि २ जून की बैठक में अपने लखनऊ के सदस्यों को भी आमन्त्रित करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि बुद्धि मलिन होने पर क्या होता है 

बाहर से आने पर कौन लोटने लगा आदि जानने के लिए सु

24.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०३० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -पेयुः ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०३० वां सार -संक्षेप

¹ ज्ञान का सूर्य


संसार का धर्म है कि किसी से मिलते समय अपनी दैन्य अवस्था प्रदर्शित नहीं होनी चाहिए दैन्य विविध प्रकार का होता है भगवान् के सामने भक्त का शरणागत होना और दैन्य अवस्था में होना दोनों में अन्तर है 

युद्ध स्थल में अर्जुन मोहग्रस्त होकर युद्ध नहीं करना चाहते तो भगवान् कृष्ण उन्हें अपने विराटत्व की अनुभूति कराते हैं 


पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।


नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।11.5।।

तो अर्जुन कहते हैं कि 

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण


स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।


वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम


त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।11.38।।


आप ही आदिदेव, पुराण पुरुष हैं, आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। निश्चित रूप से आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। अनन्त रूपों वाले  आपसे ही सारा संसार व्याप्त है।


इस विराटत्व की अनुभूति इन्द्रियों से यदि दृष्टिगोचर हो जाए तो ऐसी शरणागति आनन्दमयी होती है 

कागभुषुण्डी जी जिन्हें भी विराटत्व की अनुभूति हो चुकी थी गरुड़  जी महाराज के भ्रम को दूर करते हुए कहते हैं 



निज अनुभव अब कहउँ खगेसा। बिनु हरि भजन न जाहिं कलेसा॥

राम कृपा बिनु सुनु खगराई। जानि न जाइ राम प्रभुताई॥3॥



हे पक्षीराज गरुड़! सुनिए अब मैं आपसे अपना निजी अनुभव बताता हूँ। 

 भगवान् के भजन बिना क्लेश दूर नहीं होते हैं । प्रभु श्री रामजी की कृपा  बिना श्री रामजी की प्रभुता नहीं जानी जाती


बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु।

गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु॥89 क॥



गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं वैराग्य के बिना भी संभव नहीं इसी तरह वेद और पुराण कहते हैं कि श्री हरि की भक्ति के बिना सुख नहीं मिल सकता है


बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।

राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥90 क॥

भगवान् राम की प्रभुता तो ऐसी है कि 


मरुत कोटि सत बिपुल बल रबि सत कोटि प्रकास।

ससि सत कोटि सुसीतल समन सकल भव त्रास॥91 क॥


भक्त को इस प्रकार का विश्वास होता है जो व्यवसायी होते हैं संसारी पुरुष होते हैं उन्हें विश्वास नहीं होता है वे क्यों वाले प्रश्न ज्यादा करते हैं ये प्रश्न समस्याओं की जड़  हैं 

लेकिन ये प्रश्न भक्तिपूर्ण हैं तो ये समस्याओं के समाधान हैं भक्त का भाव अद्भुत है तुलसीदास जी की भक्ति अद्भुत है साक्षात् विश्वासपूर्ण 

इस समय विश्वास की कमी दिखाई देती है आचार्य जी ये प्रसंग इसलिए लेते हैं कि हमारे  विश्वास में वृद्धि होए और इसके लिए आत्मविश्वास आवश्यक है आत्मविश्वास के लिए भगवान् की कृपा आवश्यक है अपने इष्ट पर मानसिक रूप से समर्पित होवें कार्यव्यवहार में मन लगाएं 

भगवान् से सदैव मांगें कि हमारी इन्द्रियां हमारा मन हमारे अंग परिपुष्ट हों ॐ के उच्चारण के साथ 

ॐ आदि स्वर है मन्त्र तन्त्र यन्त्र मूर्त अमूर्त बहुत कुछ है 


समाज और देश के हित हेतु कहें 



ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि सर्वं । 



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लेखन -योग अपनाएं


हम समाज और देश,जो हमारा ही विस्तार है,के लिए जाग्रत हों हमें जागृति का संदेश देती ये पंक्तियां 

मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान

मैं भाव प्रभाव सुनिष्ठा हूं

धरती की प्राणप्रतिष्ठा हूं

संकट कराल संघर्ष बीच   दृढ़ धैर्य शक्ति मंजिष्ठा हूँ  

मैं  संयम शुचिता  सात्विकता संतोष सरलता मुदिता हूं

मैं गहन निशा में  चन्द्रकिरण प्रमुदित प्रभात का सविता हूं

विभु की कल्पना और अणु की अनुभूति हमारे मन में है..


असत् त्याज्य है सत् ग्राह्य है इन्हीं अभिव्यक्तियों के लिए हम अपना अधिवेशन करने जा रहे हैं जो हमारा उपलक्ष्य भी है हमें अपना लक्ष्य स्पष्ट है 


परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्र समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्


इसके अतिरिक्त आचार्य जी से आज कौन मिलने वाला है जानने के लिए सुनें

23.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२९ वां सार -संक्षेप

 सदा स्वदेश के लिए समर्थ सेव्य भाव हो, 

निवास हो जहाँ वहाँ चरित्र का प्रभाव  हो, 

प्रबुद्ध चिंतना मगर सशक्त हाव-भाव हो, 

सुशान्ति के लिए सदैव शक्तिमंत्र चाव हो।


प्रस्तुत है मञ्जुवाच् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२९ वां सार -संक्षेप

¹ मधुर बोलने वाला



श्री रामचरित मानस अद्भुत है इसे पढ़ने पर हम अत्यन्त उत्साहित हो जाते हैं 

 इसमें वर्णाश्रम धर्म अवतारवाद 


(जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार। की तुम्ह अखिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार॥1॥)

साकार उपासना निराकार उपासना गोरक्षा ब्राह्मणरक्षा वेद पुराण के सार  गीता आदि को समेटा गया है 


नाना पुराण निगमागम सम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोह्यपि।


एहि महँ रघुपति नाम उदारा।

 अति पावन पुरान श्रुति सारा॥

मंगल भवन अमंगल हारी। 

उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥

तुलसीदास जी ने शैव वैष्णव विद्रोह को समाप्त करने का भी प्रयास किया 

इस ग्रंथ पर तो अखंड चर्चा हो सकती है 

मानस में हनुमान जी की भूमिका अद्भुत है

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् I

हनुमान जी महाराज अभी भी हमारी रक्षा कर रहे हैं 

 हनुमान जी ही तुलसीदास जी की प्रेरणा हैं वे ही उन्हें भगवान् राम के दर्शन कराते हैं 

 सहज रूप से मानस का नाम लेते ही त्यागी तपस्वी समाजसेवी परोपकारी उपदेशक गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे में जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है वे रामानन्दी परम्परा के सिद्ध भक्त थे वे गृहस्थ हुए विरक्त भी हुए


हम ज्ञान की उपासना करना चाहते हैं क्योंकि ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं है हमें विद्या अविद्या दोनों की आवश्यकता है

इन सदाचार संप्रेषणों से हम ज्ञान प्राप्त करते हैं इस ज्ञान को व्यवहार में परिवर्तित करने की भी आवश्यकता है हम अपनी संतानों को भी इसकी जानकारी दें उन्हें परिपुष्ट करें अपने को परिपुष्ट करें 

ध्यान धारणा चिन्तन मनन लेखन सत्संग प्रातःकाल जल्दी का जागरण उचित खानपान सब नित्य आवश्यक है 

इन संप्रेषणों से लाभ उठाकर हमारे अन्दर भक्ति शक्ति बुद्धि विचार कौशल आये और हम संगठित भी होवें हम आत्मानुभूति करें आत्माभिव्यक्ति भी करें 

समाज और देश के लिए हम अपने आत्मीय लोगों के संगठन के प्रभाव का प्रदर्शन भी करें 

राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारियों के सम्बन्ध में सूचनाएं देते रहें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने ४ जून तक की प्रतीक्षा न करने के लिए क्यों कहा आदि जानने के लिए सुनें

22.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है मञ्जुभाविन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२८ वां सार -संक्षेप

¹ मधुर बोलने वाला

एक लम्बे समय से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करते चले आ रहे हैं   जैसा हम जानते हैं दीनदयाल विद्यालय १८ जुलाई १९७० गुरु पूर्णिमा के दिन महाराजा शिशुमन्दिर तिलक नगर से प्रारम्भ हुआ उस सत्र में भी सदाचार से हम लोग लाभ उठाते थे सदाचार हमें अच्छा लगता था विद्यालय का हम लोगों का अपना भवन बना हनुमान जी महाराज के मन्दिर का निर्माण हुआ मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई ऐसी अनगिनत मधुर स्मृतियां हैं ऐसी आनन्दमयी स्मृतियों को संजोने के लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि 


ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि सर्वं

जब हमारी इन्द्रियां मन विचार आदि सशक्त होंगे तब हम जो भी सीखेंगे समझेंगे जानेंगे वह सब हमारे लिए और हमारे अपनों के लिए अत्यधिक प्राणवान् और जाग्रत होगा 

यूं तो सुख दुःख चलता ही रहता है पर जीवन अद्भुत है क्षणभंगुर जीवन होने पर भी हमारे अन्तर्मन में आशा रहती है हम विदा होते हैं जनमने के लिए मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है 


हूं कभी निराशा की पीड़ा

आशा का  हूं उल्लास 

कभी पतझड़  की तन्हाई भी हूं 

अनुगुंजित शुभ मधुमास कभी


यह जीवन सुख दुख  शोक हर्ष उत्थान पतन की परिभाषा

क्षणभंगुर हो यह भले मगर

 अन्तर्मन में केवल आशा


जीवन विराग की करुण कथा

संघर्षों भरी जवानी है

जीवन मरुथल की अबुझ प्यास गंगा का शीतल पानी है


जीवन अलबेला रंगमंच अभिनय अभिनेता एक रूप

और कल्पना कथा संगीत वाद्य सब मिल बनते मोहक स्वरूप


पर वेश उतरते ही दुनिया फिर वैसी वैसा खांव खांव

सुरभित प्रसून भ्रमरावलियां विलुप्त फिर से वह कांव कांव



हमें मानव जीवन मिला है हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए

भगवान् भी मनुष्य रूप में लीला करने के लिए अवतरित होते हैं 


किष्किन्धा कांड में 

पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥

बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥3॥


को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥

कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4॥

मन अत्यन्त भावुक हो जाता है भगवान् की लीलाएं वर्णनातीत हैं 

जब वह लीला करता है तो उसे पता रहता है कि वह भगवान् है लेकिन तब भी नर के रूप में लीला करता रहता है 

लछिमन समुझाए बहु भाँती पूछत चले लता तरु पाती


यह पहचान तब होती है जब पहचान करवाने वाला पहचान करवा देता है


गीता में नारायण समझा रहे हैं और वह नर ही है जिसे समझा रहे हैं तिर्यग्जाति को नहीं 


सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।


ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।



नर हो, न निराश करो मन को 


कुछ काम करो, कुछ काम करो 


जग में रह कर कुछ नाम करो 


यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो 


समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो 


कुछ तो उपयुक्त करो तन को 


नर हो, न निराश करो मन को

ऐसी कविताएं कथाएं प्रसंग हमारे जीवन को उत्साह उमंग  शक्ति से भर देते हैं 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम इन कथाओं आदि को सरलीकृत कर नई पीढ़ी को समझाएं परिवार सम्मेलन में संस्कारों की चर्चा करें अपने बच्चों के प्रेरणादायक वीडियो बनाकर यूट्यूब आदि पर डालें 

राष्ट्रीय अधिवेशन से हमें समाज को बताना है कि केवल अंधेरा नहीं है 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि मेरे परिवार से हमारे परिवार तक जाने का क्या आशय है

 इसके अतिरिक्त विद्यालय में तीसरे आचार्य जी के रूप में कौन आया था अपना मूल्यांकन कैसे करें आदि जानने के लिए सुनें 

यह संप्रेषण

21.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२७ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है मञ्जुघोष ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२७ वां सार -संक्षेप

¹ मधुर स्वर बोलने वाला


भारतीय संस्कृति के शास्त्रोक्त नियमों की ओर उन्मुखता के साथ अद्भुत गुरु -शिष्य परम्परा पर विश्वास बनाए रखते हुए सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में


शास्त्रोक्त नियमों से विमुखता हमें पीड़ा पहुंचाती है हमें उलझनों का अनुभव होता रहता है

 वेद अर्थात् ज्ञान और शास्त्र उस ज्ञान को प्राप्त करने की विधि व्यवस्था हैं 

ज्ञान के बिना हम अज्ञानी हैं अज्ञानी या तो पूर्ण निश्चिन्त होगा जैसे जड़भरत जिनका ज्ञान गुप्त ऊष्मा की तरह भीतर दबा पड़ा था या बहुत बोझ से लदा होगा

हम बहुत से झंझावातों में घिरे हुए हैं ऐसे में उल्लसित मन हमें कमजोरी का अनुभव नहीं होने देता

मन के विषय में कहा जाता है 

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥ 

भगवान् से प्रार्थना करें कि मेरा मन बुद्धि शरीर सब पुष्ट रहें


मानस में शिव जी गरुड़ जी को कागभुषुण्डी जी के पास जाने का परामर्श देते हैं रामकथा सुनकर पक्षिराज आनन्दित हो गए  उन्होंने यह भी जाना कि कागभुषुण्डी जी को कौवे का शरीर कैसे मिला


वहां का वातावरण अत्यन्त आनन्दित कर रहा था  राम कथा सदैव आनन्दित करती है समय का चक्र घूमता है लेकिन ज्ञान की ऊष्मा बनी रहती है भारतवर्ष की यही विशेषता है कि वह नाम और रूप से परिवर्तित नहीं होता 

मानस में कलियुग का जिस तरह वर्णन किया गया है आज भी वैसा ही दिखता है 



 पर त्रिय लंपट कपट सयाने। मोह द्रोह ममता लपटाने॥

तेइ अभेदबादी ग्यानी नर। देखा मैं चरित्र कलिजुग कर॥1॥



जो व्यक्ति पराई स्त्री में आसक्त हैं , पर और स्व का ध्यान नहीं रखते,कपट करने में चतुर हैं जो मोह, द्रोह और ममता में लिपटे हुए हैं, वे ही ब्रह्म और जीव को एक बताने वाले ज्ञानी हैं। मैंने कलियुग का यह चरित्र देखा ll

कपटी लोग सत्मार्ग पर चलने वालों को भी दिग्भ्रमित कर देते हैं 

वेदों को लांछित करने का प्रयास किया गया 

अब धीरे धीरे प्रकाश दिखाई दे रहा है  चोटी जनेऊ  तिलक पूजा ध्यान आदि पर पुनः ध्यान दिया जा रहा है 

ये सदाचार के लक्षण दिखने लगे हैं 

 आचार्य जी ने युगभारती की विधि व्यवस्था में हमारे ऊपर कोई बन्धन नहीं रखा लेकिन यह सहजता दुर्बलता में संलिप्त न हो जाए हमें यही देखना है यही इन वेलाओं का उद्देश्य भी है 

आचार्य जी ने कहा समाज में सात्विकता होनी चाहिए 

छोटी सफलताओं से दंभी न बनें इनका श्रेय परमात्मा को दें 

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म अनिवार्य है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुए उन्नाव विद्यालय के किस कार्यक्रम की चर्चा की अधिवेशन के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें

20.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२६ वां सार -संक्षेप

 रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। 


सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥ 


प्रस्तुत है अधीतिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  20 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२६ वां सार -संक्षेप

¹ खूब पढ़ा लिखा


ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि सर्वं ।


हे ईश ! मेरे  सारे अंग परिपूर्ण और बलवान हों,

नेत्र , कान , प्राण , वाणी , बल इन्द्रियों में महान हों।

परमेश्वर की यह अनुभूति आवश्यक है 

और इस अनुभूति के साथ 


अदीना: स्‍याम शरद: शतम् ।


भूयश्‍च शरद: शतात् ।। यजुर्वेद ३६/२४


 


हम सौ वर्ष या उससे भी अधिक समय तक अदीन होकर रहे ।

काम क्रोध लोभ मोह आदि के साथ यदि बोध बना रहता है तो यह अच्छा है बोध होने पर ये अपने में पच जाते हैं 

जिस तरह समुद्र अपने में बहुत कुछ समाहित कर लेता है ऐसे ही हमारे भगवान् राम 

समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्येण हिमवानिव ।।1.1.17।।


हैं जो गम्भीरता, धैर्य के साथ शक्ति विश्वास तप त्याग संयम प्रेम आत्मीयता आदि के पर्याय हैं 

परमेश्वर से प्रार्थना है भगवान् राम के इन गुणों के अंश हमारे भीतर भी प्रविष्ट हों


इन गुणों के कारण भगवान् राम का स्मरण इस सदाचार वेला के प्रारम्भ में हम लोग करते हैं 

भगवान् राम का नाम केवल जप करने के लिए नहीं है यह आधार तप करने हेतु है अर्थात् संसार के जितने भी कार्य हैं हम उन्हें तप स्वरूप मानें हम कर्म पर ध्यान देंगे तो अपनी आयु भी नहीं देखेंगे हम कर्म का उत्साह अपने भीतर भरेंगे संसार परीक्षा स्थल है यहां के हम अच्छे परीक्षार्थी बनें 


एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥

जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥4॥


श्री रामचरित मानस का केवट प्रसंग हमें अत्यन्त भावुक कर देता है आचार्य जी ने बताया कि उन्हें बी ए  में  पढ़ाने वाले प्रो निशानाथ दीक्षित जी ने अपने दीनदयाल विद्यालय में 

अपने प्रवचन में अत्यन्त भावुक केवट प्रसंग लिया था इस प्रसंग से वहां उपस्थित लोगों में जो भावुक थे वे अश्रुपात करने लगे 

भावुकता आयु और संसार के अनुभव का परिणाम होती है

 आचार्य जी ने उपलब्ध ग्रंथों को पढ़ने  का परामर्श दिया अधिवेशन के लिए जागरूक होने की भी सलाह दी 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया जस्टिस सुरेश  गुप्त जी भैया संदीप रस्तोगी जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया प्रमोद जी भैया विनय अजमानी जी भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

19.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आत्मप्रभ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२५ वां सार -संक्षेप

¹ स्वयं प्रकाशवान् 


हम लोग संसारी पुरुष हैं लेकिन संसार में  स्व और पर के विवेक के साथ जो सामञ्जस्य स्थापित करता है वही सार है यही संबन्धों का संसार कहलाता है  जिसके संबन्ध व्यापक हो जाते हैं वे वसुधैव कुटुम्बकम् की भाषा बोलते हैं जिनके सम्बन्ध संकुचित हो जाते हैं वे संतुष्ट नहीं रहते हैं और अनेक दुर्व्यसनों में लिप्त हो जाते हैं 

हम घोर कलियुग में रह रहे हैं कलियुग का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं 


कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।

दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥97 क॥


कलियुग के पापों ने सारे धर्मों को ग्रस लिया, अच्छे ग्रंथ लुप्त हो गए, दम्भी लोगों ने अपनी बुद्धि से कल्पना करते करते बहुत सारे पंथ प्रकट कर दिए


कोई कहता यह ठीक है कोई कहता जो हम कह रहे हैं वही ठीक


लोभ और मोह ने दुर्दशा कर रखी है 


भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।

नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं॥

सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेल जनेऊ लेहिं कुदाना॥1॥



हे गोसाईं! सारे नर नारियों के  वश में दिखाई देते हैं और बाजीगर के बंदर की तरह उनके इशारों पर नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञान का उपदेश देते हैं और गले में जनेऊ डाल बुरा दान लेते हैं


मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥

मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥2॥


जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग सही है। जो डींगें मारता है, वही ज्ञानी है। जो आडंबररत दंभरत है वही सबकी नजरों में  संत है


ऐसे भयानक कलियुग में भी हनुमान जी महाराज सतयुग का आभास करा देते हैं आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हममें कुटुम्बत्व का अनुभव भी हो यद्यपि हम कहते तो हैं वसुधैव कुटुम्बकम् लेकिन यदि कुटुम्बत्व का अनुभव न करें तो यह कहने का अर्थ नहीं 

जिन्हें यह अनुभव हो जाता है वो वन्दनीय हैं 

सौभाग्य से हम भावनासम्पन्न युगभारती परिवार में भी इस कुटुम्बत्व का अनुभव करने वाले लोग हैं आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम उन्हें प्रोत्साहित अवश्य करें

जैसे भैया सौरभ राय जी जिनके अपनेपन ने इतना विस्तार लिया कि वे हमारे लिए उदाहरण बन गए हैं अमेरिका में रह रहे भैया अनिल महाजन जी को पक्षाघात हो गया है और भैया सौरभ उन्हें भारत ला रहे हैं भैया सौरभ जैसे लोग सेवाधर्म के प्रतीक बन गए हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सर्वेश अस्थाना जी आचार्य श्री दीपक जी भैया नीरज जी शालिनी दीदी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

18.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है माहाकुल ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२४ वां सार -संक्षेप

¹ उत्तम कुल का


उत्तम कुल में जन्मे महामानव बैरिस्टर नरेन्द्र जीत सिंह जी का आज जन्मदिन है वे 18 मई सन् 1911 को इस धरा धाम पर अवतरित हुए थे 

हमारे देश की प्रकृति ऐसी है कि यहां अनगिनत महापुरुषों का जन्म हुआ यहां छह ऋतुएं हैं यहां की प्रकृति सम है इसलिए यहां का स्वभाव सौम्य है विषम स्वभाव वाले स्वार्थी लोभी लंपट होते हैं सौम्य प्रकृति वाले अपनी रक्षा और अपनों की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं उनके साथ शक्ति भक्ति शौर्य तप त्याग सेवा आदि बहुत कुछ संयुत रहता है यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है 

प्रायः वैभव की ओर लोग आकर्षित होते हैं जो वैभव प्राप्त करके भी शान्त सौम्य सेवाभावी होते हैं उनके बारे में कहा जाता है कि ये पूर्वजन्म के साधक हैं इनकी साधना पूर्ण नहीं होने पर परमात्मा इन्हें बहुत वैभवपूर्ण परिवार में जन्म देता है

वैभवपूर्ण परिवार में जन्म लेने वाले बैरिस्टर साहब भी अत्यन्त शान्त सौम्य सेवाभावी थे उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा

गीता उनके जीवन में उतरी थी वे कहते थे कि  

गीता उन्हें जेल में समझ में आई 

बैरिस्टर साहब के पूर्वज पंजाब के मूल निवासी थे, 1921 में उनके पिता श्री विक्रमाजीत सिंह ने कानपुर में ‘सनातन धर्म वाणिज्य महाविद्यालय’ की स्थापना की 

इसके बाद तो उनके परिवार ने सनातन धर्म विद्यालयों की शृंखला ही खड़ी कर दी अपना दीनदयाल विद्यालय उन्हीं में से एक है जहां हमें बहुत अच्छे संस्कार मिले 


1935 में बैरिस्टर साहब का विवाह जम्मू-कश्मीर राज्य के दीवान बद्रीनाथ जी की पुत्री सुशीला जी से हुआ

आचार्य जी ने ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल के विषय में भी जानकारी दी


भारत धर्म मण्डल  काशी के संस्थापक स्वामी श्री ज्ञानानन्द जी के  प्रिय शिष्य  स्वामी दयानन्द जी  (स्वामी दयानन्द सरस्वती नहीं )ने कानपुर में ‘श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल’ की स्थापना की थी। इस महामण्डल की स्थापना में प्रमुख रुप से राय बहादुर विक्रमाजीत सिंह जी , साहित्यकार कवि राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण’  जी एवं कैलाश मन्दिर के श्री दुर्गा प्रसाद वाजपेई  जी जैसे महानुभाओं का अहम योगदान रहा इस महामण्डल ने देश व समाज के विकास के लिए शिक्षा पर विशेष बल दिया शिक्षा के  माध्यम से समाज को संस्कारित किया जा सकता है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परामर्श दिया कि सोच समझकर बोलना चाहिए उचित शब्द -चयन हो

और आचार्य जी ने केंचुए का उल्लेख क्यों किया भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

17.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२३ वां सार -संक्षेप

 केनेषितं पतति प्रेषितं मनः। केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।

केनेषितां वाचमिमां वदन्ति। चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति ॥



प्रस्तुत है परिनिष्ठित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२३ वां सार -संक्षेप

¹ पूर्ण कुशल


ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं दिन भर तो हम सांसारिक गतिविधियों में व्यस्त रहते ही हैं यदि प्रातः कुछ समय के लिए  पूजा भाव से हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें तो हमारे लिए यह अत्यन्त लाभकारी होगा

हम कामना करें कि जब तक हम इस संसार में रहें हमारा मन हमारे अंग परिपुष्ट रहें 



ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि

हमारा ध्यान हमारा भाव 

यह भी बना रहे कि हमारे शरीर में अवस्थित सारा विभव परमात्मा की कृपा से ही संभव हुआ है हमें दंभ न हो 

तात्विक अहं तो रहे लेकिन सांसारिक दंभ न रहे 

इस भावभूमि पर हम जितनी देर अवस्थित रहेंगे तो सांसारिक समस्याओं के आने पर हम खीझेंगे नहीं और उन समस्याओं को सुलझा भी लेंगे


इसी कारण हमारे यहां पूजा प्रार्थना का विधान है इसे धर्म के साथ संयुत किया गया सनातन धर्म अद्भुत है  अद्वितीय है जिसमें पूजा पाठ की नियमित व्यवस्था है इसकी तुलना किसी अन्य पंथ से नहीं की जा सकती 

एक सज्जन कहते हैं भगवान् राम और  बाबर की तुलना  गुड़ गोबर की तुलना करना है 

औपनिषदिक शिक्षा नई पीढ़ी को भी देने की आवश्यकता है 

जो अच्छा है उसे ग्रहण करें उससे सीख लें उस अच्छाई का शतगुणित विस्तार करें


आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकरा है

 दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है



हम संघर्षरत रहे हैं अपने को बचाने की चेष्टा करते रहे हैं लेकिन अब समय है हम अपना विस्तार करें


फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं।

यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने के लिए हम कृतसंकल्प हैं 

यह तभी संभव होगा जब हम अपने भाव अपने विचार अपनी भाषा अपना व्यवहार आचरण सही रखेंगे संगठित रहेंगे एक साथ बैठने की आदत डालेंगे 

आचार्य जी ने परामर्श दिया अपनों से टेलीफोन द्वारा भी संपर्क करें 

राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए भी सक्रिय हों  इसका अन्तरराष्ट्रीय स्वरूप हो इसके लिए सभी प्रयासरत हों 

जागृति का संदेश दें 

अपने सिद्धांतों पर आधारित लक्ष्य की चर्चा करें विचारों के लिए समय निकालें 

किसी कार्यक्रम को करने की ठान लें तो पीछे नहीं हटें


दसो दिशाओं में जाएं दल बादल से छा जाएं , उमड़ घुमड़  कर इस धरती पर नंदनवन सा लहराएं ।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी की पुत्री काव्या बिटिया की चर्चा क्यों की मौर्य जी का क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें

16.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पुष्ट ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२२ वां सार -संक्षेप

¹ बलवान्

प्रस्तुत है पुष्ट ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२२ वां सार -संक्षेप

¹ बलवान्


हमें पुष्ट सशक्त  बलशाली भाव -समृद्ध आदि बनाने का एक सिलसिला हमारी भारतीय संस्कृति में चला आ रहा है 

हमें उत्साहित उमंगित करने का  आचार्य जी का नित्य का यह प्रयास अद्भुत है हमें उद्बोधित करके आचार्य जी प्रयास करते हैं कि इन संप्रेषणों के विचारों से हम वह आत्मिक शक्ति उत्पन्न कर सकें जो हमें बड़ी से बड़ी समस्या का भी आसान समाधान उपलब्ध करा सके

(समस्या आई है तो समझें कि यह परमात्मा की कोई व्यवस्था है यदि वह हल हो गई तो समझें परमात्मा की कृपा है) 

आचार्य जी परामर्श देते हैं कि हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों 


संसार में हम हैं तो आचार  हमें करना ही पड़ेगा औऱ यदि वह सत् आचार हो तो  यह आनन्द वर्णनातीत है

रामचरित मानस का प्रसंग है 

अवतारी सिद्ध पुरुष भरत जी कह रहे हैं


(जन्म-जन्म में उनका श्री राम जी के चरणों में प्रेम हो, बस, यही वरदान वह माँगते हैं) 


मागउँ भीख त्यागि निज धरमू। आरत काह न करइ कुकरमू॥

अस जियँ जानि सुजान सुदानी। सफल करहिं जग जाचक बानी॥4॥


मैं अपना धर्म ( क्षत्रिय धर्म में मांगा नहीं जाता ) त्याग आप से भीख माँगता हूँ।  पीड़ित  मनुष्य कौन सा बुरा कर्म नहीं करता? 

यह जानकर  उत्तम दानी याचनाकर्ता की वाणी को सफल किया करते हैं ll




आचार्य जी कहते हैं हम सब मध्यम जीवन स्तर मध्यम आर्थिक स्थिति वाले हैं मध्यम समाज के स्वरूप हम लोग यह हीनभावना कभी न लाएं कि हमारे साथ मध्यम शब्द संयुत है आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि मध्यम कितना महत्त्वपूर्ण है जैसे कंठ से कटि शरीर का मध्यम भाग है जो मनुष्य की साधना का आधार है महापुरुष मध्यम वर्ग के ही हुए माध्यमिक शिक्षा कितनी महत्त्वपूर्ण है देखने की बात है 

मध्यम होने का भाव बुरा नहीं है जब इस भाव में शौर्य शक्ति का प्रवेश हो तो ऐसा मनुष्य बहुत कुछ कर सकता है 

किशोरावस्था मध्यम का संस्पर्श करती है 

आचार्य जी ने बताया कि सृष्टि -तत्त्व में परमात्म स्वरूप का विस्तार से वर्णन है 

हमारे देश में अनगिनत संकट आए अन्य देश कुछ संकटों को भी नहीं झेल पाए और बदल गए 

हमारा देश अद्भुत है



 जिस दिन सबसे पहले जागे,

नव-सिरजन के स्वप्न घने,

जिस दिन देश-काल के दो-दो,

विस्तृत विमल वितान तने,

जिस दिन नभ में तारे छिटके,

जिस दिन सूरज-चांद बने,

तब से है यह देश हमारा,

यह अभिमान हमारा है।


हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है गंगा गायत्री गौमाता गीता वाला यह देश है

हम जो भी अच्छा करेंगे समाज पर उसका प्रभाव होगा 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सोमलता की चर्चा क्यों की परमात्मा का सृष्टि -बोध क्या है वार्षिक अधिवेशन की चर्चा क्यों हुई 


भैया अमित सिंह जो अपने विद्यालय में रहकर, मोतीलाल खेड़िया विद्यालय में पढ़े हैं (आपके पिता श्री राजेन्द्र सिंह जी चित्रकूट में अपने दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ता हैं। )की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की जानने के लिए सुनें

15.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है करुणापर ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  15 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२१ वां सार -संक्षेप

¹अत्यन्त कृपालु


अत्यन्त कृपालु हनुमान जी की कृपा से हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं यह परमात्मा का एक लीला क्रम है जिसमें हम अपने अंदर विद्यमान शक्ति भक्ति बुद्धि भाव विचार की अनुभूति करते हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  

अत्यन्त व्यस्त रहने वाले हम लोगों के लिए ये क्षण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं हमें इनसे लाभ उठाना चाहिए 

विषम से विषम परिस्थितियों में रहने के बाद आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह एक आश्चर्य का विषय है

 जो अच्छा है उसकी अनुभूति करना श्रेयस्कर है कबीर कहते हैं 


साधो सहज समाधि भली।

गुरु-प्रताप जा दिन तैं उपजी,

दिन-दिन अधिक चली॥


समाधिस्थ अवस्था अद्भुत होती है यदि कुछ क्षणों के लिए भी हमें यह अवस्था प्राप्त हो जाए तो हमारे भीतर का नैराश्य समाप्त हो जाता है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम इस ओर अवश्य उन्मुख हों अपने भावों को गद्य पद्य नाटक आदि के रूप में अवश्य अंकित करें डायरी लिखें अपने अनुभव लिखें और उपनिषदों का अध्ययन अवश्य करें क्योंकि वे वेद ब्रह्मसूत्र से सरल हैं 

केन उपनिषद् से 


ॐ आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि ।

हमें अध्ययन करने से पहले अपना स्वास्थ्य भी देखना है यदि हम स्वस्थ नहीं रहेंगे हमारे अंग परिपुष्ट नहीं होंगे हम प्रसन्न नहीं रहेंगे तो हम अध्ययन करने पर कुछ समझ नहीं पाएंगे


हम शरीर को कष्ट देकर साधना करेंगे तो सिद्धि तक नहीं पहुंचेंगे लेकिन शरीर को सुविधा देकर भी साधना करेंगे तो भी सिद्धि संभव नहीं

आत्मविश्वास सदैव सफलता दिलाता है इसलिए आत्मविश्वासी बनें 


इसके अतिरिक्त सांगली महाराष्ट्र में जन्मे श्री पं शंकर श्रीपाद बोडस जी की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की भैया प्रशान्त जी के नंबर कैसे अच्छे आए

ब्रह्मवर्चस् कैसे प्राप्त कर सकते हैं कृच्छ्र साधना और खीर का क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें

14.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०२० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है वदान्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  14 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०२० वां सार -संक्षेप

¹ दानशील


हम शिक्षार्थियों को उत्साहित करने के लिए हमें कुंठाओं से मुक्त करने के लिए हमारा कल्याण करने के लिए हमें श्रम पौरुष पराक्रम की अनुभूति कराने के लिए  हमें आत्मस्थता का अनुभव कराने के लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं आइये प्रवेश करें उन्हीं की आज की वेला में


भारतवर्ष का जीवन अद्भुत जीवन है यहां हमेशा श्रम और पौरुष का रिवाज रहा है यहां हम विद्या और अविद्या दोनों प्राप्त करते हैं क्योंकि दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं 

यहां सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर जीवन को व्यतीत करना धर्म है 

दुनिया को परिभाषित करते हुए आचार्य जी कहते हैं 


इस दुनिया में सबका अपना अलग अलग अंदाज है

सबकी बोली सबकी शैली अलग अलग आवाज है

तरह तरह के रंग रूप रुचियों का अद्भुत मेल है 

अजब सुहाना अकस्मात् मिट जाने वाला खेल है


प्यार और तकरार प्रेम की पीर सुखद अनुभूति है 

जो जलकर के राख हो गई उसका नाम विभूति है 

सबका सुर सबका तेवर है सबका अपना साज है 

इस दुनिया में...



दुनियादारी की भी सबकी अलग अलग परिभाषा है 

शब्दों का  अंदाज अलग पर वही एक सी भाषा है 

दुनिया में आना जीना जाना तो एक बहाना है 

सचमुच में दुनियादारी का अजब गजब अफसाना है 

यह अफसाना ही दुनिया का अपना एक मिजाज है

हर पारखी यहां पर रखता अपनी अपनी माप है 

पैमानों पर लगी हुई है सबकी अपनी  छाप है 

ये पैमाने ही दुनिया भर के सारे संघर्ष हैं 

क्योंकि सबके यहां हो जाते  अलग अलग निष्कर्ष हैं 

खुश हो जाता एक दूसरे पर जब गिरती गाज है 

दुनिया में रहते रहने पर सबको सभी अखरते हैं 

और गुम हो जाने पर सुधियों में प्रायः रोज उभरते हैं 

अच्छा बुरा प्रेम नफरत दुनियादारी के नखरे हैं 

तरह तरह के छ्ल प्रपंच कोने कोने में पसरे हैं 

दिन में शीश मुफलिसी ढोता रात पहनता ताज है 

ज्ञान नसीहत का खुमार है 

ध्यान यहां सोना चांदी 

विश्वासों की छत के नीचे 

रिश्तों की है आबादी....



इसकी शेष पंक्तियां क्या है इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अन्य कविताएं कौन सी सुनाईं 

निराला जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

13.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) तदनुसार 13 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है कर्मयोद्धा आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) तदनुसार 13 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१९ वां सार -संक्षेप


परमपिता परमेश्वर जिस समय अपनी निर्विकल्प समाधि से जागता है तो उसके मन में इच्छा होती है एकोऽहं बहुस्याम 

एक हूं बहुत होना चाहता हूं  एक से अनेक होने पर फिर परमात्मा उन सबका नियन्त्रण और व्यवस्था भी करता है  अद्भुत है उसकी लीला वही लीला हम परमात्मा के प्रतिनिधि मनुष्य भी करते हैं जब वह लीला से भटक जाता है तो वह ढोंग हो जाता है जो बहुत विकार उत्पन्न करता है मतदान ढोंग नहीं है यह एक व्यवस्था है हमारा कर्तव्य है कि हम स्वयं तो मतदान करें ही अन्य को भी प्रेरित करें


मत उसे दें जो राष्ट्र का हितैषी, सक्षम,योग्य, समझदार हो जो प्रतिनिधित्व करना जानता हो, समाज के दुःख और सुख में भागीदार हो 

वर्तमान में जो प्रतिनिधि दिख रहे हैं उनमें ज्यादातर दिखावा करते हैं लोभ लाभ में अधिक लिप्त रहते हैं लेकिन जो दिखावा नहीं करते उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती  है जैसे मोदी जी को अधिक दौरे करने  पड़ रहे हैं ऐसा अन्य लोग भी करने लगें तो केवल एक को इतना जूझने की आवश्यकता नहीं होती अन्य शिकायत करते हैं कि उनकी बात कोई सुनता नहीं हमारी बात तभी सुनी नहीं जाती जब हम स्वयं अपनी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं होते अपने को पहचानने की आवश्यकता है 

इन वेलाओं से विचारों को प्राप्त कर अपनी कार्यशैली को सुधारने की आवश्यकता है 



हम उत्साहित रहें अखंड भारत का स्वप्न साकार होगा इसके लिए आशान्वित रहें 

आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त भैया अरविन्द जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया चित्रकूट की चर्चा क्यों की आदि जानने के लिए सुनें

12.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है दुर्विनीत -रिपु आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  12 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१८ वां सार -संक्षेप

¹ दुर्विनीत =दुष्ट


स्थान : चित्रकूट 


राष्ट्र एक चिन्तन है जीवन है दर्शन है

भारत राष्ट्र एक दर्शन चिन्तन जीवन है हम उसके नागरिक हैं हमारे अपने कर्तव्य हैं इन कर्तव्यों का चिन्तन करना और इन कर्तव्यों का चिन्तन करते हुए आगे कार्यान्वयन के लिए लेखन करना संप्रेषण करना आदि आवश्यक है  हमें जाग्रत रहने की आवश्यकता है हम ऋषियों की संतान हैं भारतवर्ष में जन्मे हैं इसकी भूमि से हम लगाव रखते हैं इस कारण हमें अपने कर्तव्यों का बोध होना ही चाहिए 


आचार्य जी ने न्यायपालिका द्वारा केजरीवाल को छोड़ने  की चर्चा की भारतीय न्यायपालिका के बारे में भारतीय जनमानस की धारणा ऐसी ही है जैसी गंगा के प्रति कि गंगा पवित्र हैं ही जब कि उन्हें बहुत प्रदूषित किया गया 


न्यायपालिका भी प्रदूषित लगती है इसे शुद्ध करने की आवश्यकता है 

मनुष्य में ही ऐसी क्षमता है कि वह समस्याओं का समाधान कर सकता है अन्य जीव केवल समस्या उत्पन्न करते हैं 

 बहुमत वाली सरकार से यह संभव है कि वह न्यायपालिका शुद्ध कर सके 

आचार्य जी ने शाहबानो प्रकरण की भी चर्चा की

लोकतन्त्रीय प्रणाली के माध्यम से हम लोग अपने विचारों आदि को प्रतिफलित कर सकें इसके लिए अपने अपने स्थान से अपनी अपनी शक्ति बुद्धि लगाकर और सक्रिय होकर भारत मां की सेवा के लिए सन्नद्ध हों 

इसके अतिरिक्त चेन्नई से मतदान के लिए कौन से भैया कानपुर आए हैं भैया अरविन्द जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया विचार पर आधारित लोकतन्त्र के लिए किसने परामर्श दिया था जानने के लिए सुनें

11.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१७ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है पुष्कल आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  11 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१७ वां सार -संक्षेप

¹ श्रेष्ठ

स्थान :चित्रकूट


यह सदाचार संप्रेषण प्रेरक और प्रेरित का व्यवहार है किसी भी परिस्थिति में इसका सातत्य अद्भुत है प्रेरक के रूप में नित्य आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं यही है गुरु शिष्य परम्परा जो आज भी जीवित है

अच्छे काम का नैरन्तर्य कभी विच्छिन्न न हो और बुरे काम का जुड़े नहीं हमें भी इसका प्रयास करना चाहिए


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम सभी अपने अपने आवरण से बाहर निकलें


अपने अंदर दूसरों को प्रेरित करने की क्षमता विकसित करें इस आंतरिक क्षमता को विकसित करने के लिए प्रातःकाल का जागरण ध्यान धारणा प्राणायाम आदि अत्यन्त आवश्यक हैं हनुमान चालीसा का पाठ गायत्री मन्त्र का जाप आदि करें 

किसी भी कार्य में व्यस्त हैं तो उसके परिणाम का भी आकलन करें चित्रकूट में बाल व्यक्तित्व विकास शिविर ३० अप्रैल से प्रारम्भ होकर १० मई को समाप्त हुआ जिसमें बच्चों ने प्रशंसनीय प्रदर्शन किए आज उसका दीक्षान्त समारोह है


आचार्य जी ने PWD के उपाध्याय जी और पद्मश्री (जल संरक्षण हेतु )उमा शंकर पांडेय जी को राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए आमन्त्रित किया है 

जल के पहरेदार जखनी ग्राम के जल योद्धा श्री उमाशंकर पांडेय जी का पद्मश्री से सम्मान हम सबके लिए गौरव की बात है। उन्होंने खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ का मंत्र संपूर्ण देश को दिया। सामुदायिक सहभागिता से उन्होंने जल संरक्षण की दिशा में  निःस्वार्थ भाव से अनेक कार्य किए हैं


एक अल्प शिक्षित व्यक्ति द्वारा अपने विकास के साथ अपनों के विकास करने का यह एक आदर्श उदाहरण है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री अभय जी का उल्लेख क्यों किया किन भैया की तबीयत खराब हुई आदि जानने के लिए सुनें

10.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है असेचन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  10 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१६ वां सार -संक्षेप

¹ मनोहर


परमात्मा ने मनुष्य का जो शरीर बनाया है वह पशु शरीर से भिन्न है मनुष्य का शरीर मिलने के बाद भी जो मनुष्य पशु जैसा व्यवहार करते हैं वे अन्याय करते हैं 


येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।

ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥13॥



हमें मनुष्यत्व की अनुभूति होनी ही चाहिए

हमारा शरीर कर्म के लिए बना है


केवल मनुष्य शरीर में ही कर्म करना संभव है। यही एक मात्र कर्म योनि है, अन्य सभी शरीर भोगयोनि हैं 

मानव जीवन कर्म प्रधान है।

यही बात हमारे ऋषि महर्षि त्यागी तपस्वी कहते चले आए हैं इसकी परम्परा चली है 

प्राचीन काल से गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा एक-दूसरे तक यह बात पहुँचती रही है।

ऐसी आदर्श परम्परा को प्राप्त कर हम आनन्दपूर्वक यहां अपना जीवन जी रहे हैं तो हम कर्महीन नहीं रह सकते 

जैसे गीता में 


इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।


विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।4.1।।

हमें अपने साथ कुछ आदर्श लेकर चलने चाहिए जैसे हमारे आदर्श शिक्षक हैं आचार्य विष्णुगुप्त अर्थात् चाणक्य, आदर्श संत हैं आदि शंकराचार्य,

आदर्श सर्वश्रेष्ठ साहित्यवेत्ता गोस्वामी तुलसीदास और आदर्श राजनेता पं दीनदयाल 

हमारी भारतीय संस्कृति अद्भुत है यह अत्यन्त गूढ़  है जो इस  गूढ़त्व को जान लेते हैं वो आनन्दित रहते हैं हमारी संस्कृति संपूर्ण विश्व को आर्य बनाना चाहती है और इसके लिए सक्षम कौन है सक्षम वह है जिसके अंदर शक्ति भक्ति भाव विचार कौशल तत्परता बुद्धि तप त्याग है 

हम इसका चिन्तन करें कि हमें अपना व्यवहार कैसा रखना है 


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।।


हम आत्मानुभूति करें ईश्वर हमारे अन्दर विद्यमान है 

चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम्

हनुमान जी जैसी शक्ति पाने के लिए हनुमान जैसा भाव हमारे अन्दर आना चाहिए 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी के साथ चित्रकूट कौन जा रहा है OTC की चर्चा क्यों हुई व्यक्तित्व विकास शिविर कहां चल रहा था जानने के लिए सुनें

9.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१५ वां सार -संक्षेप

 शपथ लेना तो सरल है

पर निभाना ही कठिन है।

साधना का पथ कठिन है

साधना का पथ कठिन है ॥


शलभ बन जलना सरल है

प्रेम की जलती शिखा पर।

स्वयं को तिल-तिल जलाकर

दीप बनना ही कठिन है ॥१॥


है अचेतन जो युगों से

लहर के अनुकूल बहते

साथ बहना है सरल

प्रतिकूल बहना ही कठिन है ॥२॥


ठोकरें खाकर नियति की

युगों से जी रहा मानव।

है सरल आँसू बहाना 

मुस्कराना  ही कठिन है ॥३॥


तप-तपस्या के सहारे

इन्द्र बनना तो सरल है।

स्वर्ग का ऐश्वर्य पाकर

मद भुलाना ही कठिन है ॥४॥


प्रस्तुत है ज्ञान -तिमिरनुद् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१५ वां सार -संक्षेप

¹ ज्ञान का सूर्य

हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि प्रतिदिन हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से मार्गदर्शन मिल जाता है हम इन्हें सुनकर और सुनने के पश…

शपथ लेना तो सरल है

पर निभाना ही कठिन है।

साधना का पथ कठिन है

साधना का पथ कठिन है ॥


शलभ बन जलना सरल है

प्रेम की जलती शिखा पर।

स्वयं को तिल-तिल जलाकर

दीप बनना ही कठिन है ॥१॥


है अचेतन जो युगों से

लहर के अनुकूल बहते

साथ बहना है सरल

प्रतिकूल बहना ही कठिन है ॥२॥


ठोकरें खाकर नियति की

युगों से जी रहा मानव।

है सरल आँसू बहाना 

मुस्कराना  ही कठिन है ॥३॥


तप-तपस्या के सहारे

इन्द्र बनना तो सरल है।

स्वर्ग का ऐश्वर्य पाकर

मद भुलाना ही कठिन है ॥४॥


प्रस्तुत है ज्ञान -तिमिरनुद् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१५ वां सार -संक्षेप

¹ ज्ञान का सूर्य

हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि प्रतिदिन हमें इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से मार्गदर्शन मिल जाता है हम इन्हें सुनकर और सुनने के पश्चात् गुनकर इनका लाभ उठाते हैं गुनना आवश्यक है

भरसक प्रयत्न करके अपने भीतर का अंधकार दूर करें  (अध्यात्म यही है )


 इस प्रसाद को ग्रहण करने के पश्चात् शक्ति सामर्थ्य का भी अनुभव करें (अर्थात् शौर्य प्रमंडित अध्यात्म  )मलिनता दूर करें विवादों से बचें अपनी कुंठाएं स्वयं व्यक्त न करें मानस -सागर में निमग्न होने का प्रयास करें मन का नियमन करने वाले विविध विधानों का पालन करें लेखन -योग की ओर उन्मुख हों 

नाव का लंगर खोलकर नाव चलाएं अन्यथा समय बीत जाएगा चप्पू चलाते जाएंगे नाव वहीं 

की वहीं खड़ी  मिलेगी 

 संसार अद्भुत है  यह साधनों से भरा हुआ भी है और साधनामय भी है 

साधना को भारतवर्ष में सबसे बड़ा प्राप्तव्य माना गया है यद्यपि साधना का पथ कठिन है


संसार में रहने का विधान है कि 


विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥

आचार्य जी ने वर्तमान में चल रहे चुनावों की चर्चा की


मतदान लोकतंत्रीय प्रणाली का पहिया,

पहिए के बिना समूची गाड़ी लँगड़ी है। 

जब जहाँ उपेक्षा इस पहिए की हुई वहीं, 

जड़ता कर्दम के साथ छितर कर बगड़ी है। 

हम सभी उठें इस पहिए को गतिमय करके, 

राष्ट्रीय और मानवधर्मिता सनाथ करें। 

उसको सौंपें इस देवभूमि के नीति-नियम ,

जो तत्व शक्ति शिव शौर्य भक्ति के साथ वरे। ।


आचार्य जी ने एक और अत्यन्त प्रेरक ६ नवम्बर २०१५ को  रची अपनी  एक कविता सुनाई 



यदि संवाद विवाद के लिए करना है 

बेहतर है हम दोनों ही चुपचाप रहें..


यह पूरी कविता क्या है आचार्य जी चित्रकूट कब जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

8.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है ज्ञान -धत्र आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१४ वां सार -संक्षेप

¹ ज्ञान का घर


ज्ञान की हमारे भीतर अनुभूति होने लगे कि मैं परमात्मा का अंश हूं

हम आनन्द के क्षणों को अवश्य खोजें भावपूर्ण जीवन व्यतीत करें क्योंकि भाव भक्ति का आधार होते हैं पुरुषत्व जो भक्ति शक्ति का सामञ्जस्य है की अनुभूति करें आचार्य जी नित्य यही प्रयास करते हैं हम संसारी पुरुषों में  ज्ञान भक्ति विचार संयम शक्ति सूक्ष्म रूप में विद्यमान  रहते हैं अद्भुत है संसार यह गतिमान रहता है न्यायवेत्ता मिथ्याज्ञान से उत्पन्न वासना को संसार कहते हैं 

मेदिनीकोष के अनुसार प्रतियत्न, अनुभव और मानसकर्म संसार है 

न्यायदर्शन के अनुसार वेगाख्य, स्थितिस्थापक और भावना संसार है

इस संसार में रहते हुए हम भी संसार हो जते हैं 

 संसार से मिलता जुलता शब्द है संस्कार 

हमारे यहां बहुत सारे संस्कार हैं इन संस्कारों को हमारी शिक्षा में सम्मिलित किया गया था

शिक्षा का अर्थ ही संस्कार है बिना संस्कार की शिक्षा मिस्त्रीगिरी होती है जिस शिक्षा में संस्कार नहीं होते वह धनार्जन तो करा देगी लेकिन संतुष्टि नहीं देगी शान्ति नहीं देगी 

इस ज्ञान की हमारे भीतर अनुभूति आवश्यक है अपना लक्ष्य सुस्पष्ट है उसे प्राप्त करने तक रुकें नहीं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संसार के व्यक्ति व्यक्ति में किसका प्रवेश चाहा भैया पङ्कज जी भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया श्री राजेन्द्र चड्ढा जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

7.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१३ वां सार -संक्षेप

 कठिन संसार से पीछा छुड़ाकर मुक्त विचरण है

कठिन वाणी विभव से मुक्त अन्तर्भाव धारण है

कठिन तप त्याग सेवा साधना की जिंदगी जीना

कठिन संकल्पमयता के सहित जग आचरण भी है


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१३ वां सार -संक्षेप


सदैव चौकन्ना रहना हमारे स्वभाव में होना चाहिए सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से जीवित जाग्रत मूर्ति आचार्य जी का प्रयास भी रहता है कि हम अपनी संकल्पमयता को विस्मृत न करें हम राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत रहें संघर्ष के मार्ग पर चलने के लिए तत्पर रहें शौर्य शक्ति की अनुभूति करें

खाद्याखाद्य विवेक के साथ व्याधिमन्दिर अर्थात् शरीर को सही रखें हम उद्बुद्ध हों राष्ट्र के लिए जाग्रत रहना हमारी संकल्पमयता है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

आचार्य जी हमें इसलिए प्रेरित करते हैं कि समाज को हम ज्योतियों का वह संगठित स्वरूप दिखे जो ज्वाला के रूप में शत्रु को भयभीत करने की क्षमता रख सके

आइये प्रवेश करें आज की वेला में 

हम वेदभूमि में रहते हैं वेदभूमि अर्थात् ज्ञान की भूमि 

वैदिक ज्ञान हमारी संपदा है वेद अपौरुषेय है 


छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते

ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते।

शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्

तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥


शिक्षा,कल्प,व्याकरण,निरुक्त ,ज्योतिष, छन्द ये छः वेदांग हैं

वेद को पुरुष माना गया 

छन्द को वेदों के पैर , कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कर्ण , शिक्षा को नासिका , शब्दानुशासन अर्थात् व्याकरण को मुख कहा गया है।

इन सबका विस्तार अनेक ग्रंथों में हुआ

आचार्य जी ने वेदान्त कल्पतरु आदि बाईस ग्रंथों की ओर संकेत किया ये ग्रंथ तब लिखे गए जब ऐबक का शासन शुरु हुआ उस समय हमें अपना शौर्य प्रदर्शित करना था 

याद करें वीर पृथ्वीराज चौहान को 


पृथ्वीराज चौहान की सेना ने ११९१ में तराइन के प्रथम युद्ध में घुरिदों को पराजित कर दिया था तराइन का दूसरा युद्ध ११९२ में घुरिद बलों और राजपूत संघ के बीच तराइन (हरियाणा, भारत में आधुनिक तराओरी) में हुआ  जिसमें आक्रमण करने वाली घुरिद सेनाओं की जीत हुई। मध्यकालीन भारत के इतिहास में इस युद्ध को व्यापक रूप से प्रमुख मोड़ के रूप में माना जाता है क्योंकि इस युद्ध से उत्तर भारत में दृढ़ता से मुस्लिम उपस्थिति स्थापित हो गई

क़ुतुबुद्दीन ऐबक  दिल्ली सल्तनत का स्थापक और ग़ुलाम वंश का पहला सुल्तान था। वह ग़ौरी साम्राज्य के सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी का एक ग़ुलाम था


गुलाम वंश खिलजी वंश आदि वंशों से घृणा होती है 


यदि ज्ञान शक्ति और शौर्य से विहीन है तो पंगु है  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म आज भी आवश्यक है यही बात सुदर्शन टीवी के संपादक सुरेश चह्वाणके भी कहते हैं

 वे कहीं जाते हैं तो उपहार में हथियार देते हैं

 वे अपनी बात निर्भीक होकर कहते हैं

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इन संप्रेषणों से हमें कितना लाभ पहुंचा इसका आकलन करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बोरियों वाला क्या प्रसंग बताया धर्म अर्थ काम मोक्ष की कैसी व्याख्या की शौर्यप्रमंडित अध्यात्म का आनन्द कैसे प्राप्त होगा जानने के लिए सुनें

6.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है सोढ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१२ वां सार -संक्षेप

¹ सहिष्णु


सहिष्णु रहते हुए  परमात्मा की लीला के हम पात्रजन इन सदाचार संप्रेषणों से प्रेरणा प्राप्त करें आनन्दार्णव में तैरें तो हमें लाभ होगा विश्लेषणात्मक चिन्तन हानिकारक होता है उसमें तर्क की उग्रता होती है उसमें आनन्द नहीं आता आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


परम ज्ञानी( किन्तु साथ ही साथ परम भक्त भी )भगवान् शङ्कराचार्य ने संपूर्ण भारतवर्ष में प्रेम और आत्मीयता के आधार पर सनातन धर्म को पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया वे फैले हुए अनगिनत  विवादों में  तर्क करने के लिए स्थान स्थान पर जाते थे और  बड़े से बड़े विद्वानों को अपने तर्क से पराजित कर देते थे 

 प्रेम आत्मीयता भक्ति भाव विश्वास मनुष्य जीवन की दुर्लभ संपदा है हम इन्हें  अगली पीढ़ी को भी संप्रेषित करें 

अगली पीढ़ी को अपनी संस्कृति का ज्ञान भी हम कराएं 

जब संसार में हर ओर निराशा ही निराशा दिख रही होती है तो भारतवर्ष में आशा के दीप जलते हैं किसी भी कालखंड पर हम दृष्टिपात करें तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि हमें श्मशान ही श्मशान दिखा हो हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ है 


गायन्ति देवाः किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।। -(विष्णुपुराण- 2/3/24)

हमारी सनातन संस्कृति का स्वरूप  अद्भुत है  जो यह बताता है कि परमात्मा हमें मंच पर उतारकर हमसे लीला करवाता है और फिर हमें मंच से उतार भी देता है जब हम मंच पर रहें तो अपनों से आत्मीयता प्रेम बनाए रखें


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि १५ अगस्त को हम अखंड भारत दिवस मनाएं अपने घरों में अखंड भारत का मानचित्र लगाएं 

महाशिवरात्रि रामनवमी और कृष्णजन्माष्टमी आनन्दपूर्वक मनाएं इन सबसे हमारी संस्कृति पुनर्जीवित होगी इसकी सुरक्षा में हम अपना श्रम लगाएं 

इस समय भौतिकता का वात्याचक्र बहुत भयानक स्वरूप धारण किए हुए है खाद्यअखाद्य पेय अपेय का विवेक आवश्यक है 


इसके अतिरिक्त कल सम्पन्न हुई युगभारती की बैठक के सम्बन्ध में आचार्य जी ने क्या कहा

गांव के कुछ बच्चों से संबन्धित प्रसंग क्या था 

राष्ट्रीय अधिवेशन से हम समाज को क्या संदेश देने जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

5.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०११ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है प्रवाच् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०११ वां सार -संक्षेप

¹ वक्ता


संसार विचित्र है यह हम सबको प्रभावित करता है  विकार इसका स्वभाव है इसके प्रपंचों में हम फंसे रहते हैं आइये सत्कर्मों को धर्म समझते हुए आज की सदाचार वेला में  सार असार से परिचित होने के लिए ,अभिनय में तत्त्व की खोज के लिए, ईश्वरभक्ति राष्ट्रभक्ति आत्मभक्ति की अनुभूति हेतु प्रवेश करें 



उठो जागो, जगाओ जो पड़े सोये भ्रमों भय में, 

जिन्हें विश्वास किंचित भी नहीं है नीति में नय में, 

स्वयं के आत्मप्रेमी सलिल के छींटे नयन पर दो 

कहो ' हे ! भरतवंशी कर्म अपना है जगज्जय में ' ।



 आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि ईशावास्योपनिषद् के सारे छंद याद कर लें जो कुल अठारह हैं 

स्मृति में किसी भी अच्छे तत्त्व को प्रविष्ट कराना हमारे ज्ञानपक्ष को संवर्धित करता है निदिध्यासन इसे स्थायित्व प्रदान करता है 


सम्भूतिञ्च विनाशञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा सम्भूत्याऽमृतमश्नुते ॥


जो  व्यक्ति तत् को इस रूप में जान लेता है कि वह एक साथ जन्म और जन्म का अन्त दोनों है, वह व्यक्ति जन्म के अन्त से मृत्यु को पार कर जन्म से अमरत्व का आस्वादन करता है।

जब तक सुस्पष्ट ज्ञान न हो हमें तब तक उस पर प्रयोग नहीं करने चाहिए 

केवल स्मरण करते हुए चिन्तन करना चाहिए



हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।

तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥



सत्य का चेहरा चमकीले सुनहरे ढक्कन से ढका हुआ है

हे पोषण करने वाले सूर्य देवता ! 

सत्य के विधान की उपलब्धि हेतु साक्षात् दर्शन हेतु आप वह ढक्कन अवश्य हटा दें


और आप अपनी किरणों को व्यूहबद्ध करते हुए व्यवस्थित करते हुए , अपने प्रकाश को एकत्र एवं पुञ्जीभूत कर लें आपका जो तेज  सबसे अधिक कल्याण करने वाला रूप है, वही रूप मैं देखता हूं।

परब्रह्म परमेश्वर संकटकाल में स्वरूप धारण करके आते हैं और नरलीला करते हुए अपने कर्मों से हमें दिशा दृष्टि देते हैं जैसे भगवान् राम जिनका जीवन अनुकरणीय है 

जिन्हें यह दिशा दृष्टि मिल जाती है वे आनन्द में रहते हैं उसी दिशा दृष्टि को पाकर कोई मन्दिर बनवा देता है कोई ग्रंथ लिख देता है ये सारे काम अच्छे हैं लेकिन उनमें लोगों को भटकना नहीं चाहिए 

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि अध्ययन स्वाध्याय भक्ति विचार चिन्तन मनन संयम साधना के विभिन्न स्वरूप आपने बड़े लक्ष्य को पाने की सीढ़ियां कैसे हैं 

लक्ष्य प्राप्ति हेतु सभी पर मजबूती से पैर जमाने हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राष्ट्रीय अधिवेशन के विषय में क्या परामर्श दिया भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया   

NGO से भय का क्या अर्थ है 

जानने के लिए सुनें

4.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०१० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है अवदात आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०१० वां सार -संक्षेप

¹ गुणी


गुणी होने के लिए हम इन सदाचार संप्रेषणों के सार, जिसे कथा कहानियों आदि के माध्यम से विस्तार दिया जाता है, को ग्रहण करने का प्रयास करें सदाचारमय विचारों को तात्विक रूप से मन मानस में संगृहीत करने का अभ्यास भी करें 

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।


विद्या और अविद्या दोनों को जानें विद्या ज्ञान है अविद्या कर्म है अविद्या अर्थात् संसार में रहने का शिष्टाचार 

जो परमात्माश्रित रहते हैं वे भौतिक क्लेशों से दूर रहते हैं उन्हें भय भ्रम नहीं सताता वे दैहिक दैविक भौतिक तापों से मुक्त रहते हैं यह अनुभूति करें कि परमात्मा हमारे भीतर भी विद्यमान है 

लोभ लालच आदि से मुक्त होकर इस संसार में परमात्मसत्ता का दर्शन करें 

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥



 परमात्मा का सतत स्मरण आवश्यक है क्योंकि हम कलियुग में रह रहे हैं इस कलियुग में  हर ओर से आ रही बाधाओं को झेलते हुए  हम आत्मस्थ रहने का अभ्यास करें और सचेत भी रहें 

तामस बहुत रजोगुन थोरा। कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा॥

कलियुग का प्रभाव ही ऐसा है कि तमोगुण अर्थात् लोभ मोह काम क्रोध आदि बहुत हैं एवं रजोगुण थोड़ा है , चारों ओर वैर-विरोध दिख रहा है


हमारी चाह कैसी हो?

हम सेवा में सतत लगे रहना चाहते हैं 


न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।

कामये दुःखताप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥


मैं अपने लिए राज्य की, स्वर्ग की अथवा मुक्ति की  इच्छा नहीं करता हूंँ मैं तो मात्र यही चाहता हूंँ कि दुःख से पीड़ित प्राणियों के कष्टों का नाश हो।

आचार्य जी चाहते हैं कि हम जहां भी हैं वहां आनन्दपूर्वक अपने कर्म में रत रहें 

हम बुद्धिमान् हैं और यदि  बुद्धिमान् हैं तो बुद्धिमत्ता पूर्वक कार्य करें ध्यान रखें कि हम सत् और असत् के युद्ध में रत हैं युद्ध राष्ट्र और अराष्ट्र का है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया प्रकाश जी का नाम क्यों लिया पाहुल कौन हैं आदि जानने के लिए सुनें

3.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००९ वां सार -संक्षेप

 जल से देह के ऊपरी भाग को धो लेना ही स्नान नहीं है। स्नान तो उसका नाम है, जिससे बाहरी शुद्धि के साथ साथ हम अपनी अन्तःशुद्धि भी कर लें।



प्रस्तुत है  आशाजनन आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००९ वां सार -संक्षेप

¹ आशा बढ़ाने वाला



आत्मा नदी संयम पुण्यतीर्था सत्योदकं शील तटा दयोर्मि ।

 तत्राभिषेकं कुरु पाण्डुपुत्र न वारिणा शुद्धयति चान्तरात्मा ।।



आत्मा नदी है जिसमें संयम का पवित्र पावन घाट है, सत्य ही  उसका जल है और शील किनारा  उसके अन्दर दया की लहरें उठती रहती हैं अतः हे युधिष्ठिर! तुम उसी में गोता लगाओ, भौतिक जल से शरीर धुल जाता है अन्तःकरण नहीं धुलता।

आइये अपनी अन्तः शुद्धि के लिए  और आनन्द शान्ति उत्साह विश्वास आशा प्राप्त करने के लिए मनुष्यत्व, जिसमें देवत्व को पार कर ब्रह्मत्व को पा लेने की क्षमता होती है,की अनुभूति कराने वाली शक्ति भक्ति को एक साथ पाने के लिए हम संसारी पुरुष प्रवेश करें आज की वेला में  जिसमें हमें हनुमत् कृपा से भावों का विस्तार  भी प्राप्त होगा 

शरीर के रूप में हमें अद्भुत वाहन मिला है और शरीर का वाणी व्यवहार भी अद्भुत है  अमूल्य है


स्वामी अभेदानन्दजी द्वारा लिखित मृत्यु के पार ग्रंथ के साथ ही अनेक ग्रंथों में वर्णित है कि जब शरीर मुक्त हो जाता है तो सूक्ष्म शरीर अपने आत्मीय जनों को समझाने का प्रयास करता है कि मैं मरा नहीं हूं लेकिन  चूंकि उसके पास वाणी नहीं होती इस कारण उसकी बात सुनाई नहीं देती


कठिन संसार से पीछा छुड़ाकर मुक्त विचरण है

 

कठिन वाणी विभव से मुक्त अन्तर्भाव धारण है

....

आइये प्रविष्ट हों मानस में 

उत्तरकांड में कलियुग का वर्णन हो रहा है 

कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।

गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास ॥“

 मनुष्य विश्वास करे तो कलियुग के समान  दूसरा युग है ही नहीं  क्योंकि इस युग में प्रभु राम के पावन गुणसमूहों को गा गाकर मनुष्य बिना परिश्रम प्रयास ही संसार रूपी सागर से तर जाता है

यह गायन भीतर गूंजने लगता है 


प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।

जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥१०३ ख॥


धर्म के चार चरण अर्थात् सत्य, दया, तप और दान अत्यधिक प्रसिद्ध है जिनमें  कलियुग में दान रूपी चरण ही प्रधान है। जिस किसी विधि से भी दिया जाए  दान कल्याण ही करता है 

सत्य दया तपस्या मुश्किल हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने महादेवी वर्मा और निराला का कौन सा प्रसंग बताया, क्या शिव दया करते हैं, आचार्य जी ने किससे पैसा नहीं लिया जानने के लिए सुनें

2.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००८ वां सार -संक्षेप


मनोबुद्ध्यहङकार चित्तानि नाहं

न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।

न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः



हम शरीर नहीं हैं हम मन नहीं हैं हम बुद्धि नहीं हैं तो हम क्या हैं उत्तर है 


चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 




चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥॥

यह अनुभूति अद्भुत है यदि  प्रतिप्रभातम् कुछ क्षणों के लिए ही हम यह अनुभूति करते हैं तो इसके परिणाम अद्वितीय हैं 

यह अनुभूति कठिन काम है लेकिन इस कठिन काम का रास्ता बहुत सरल है और वह है भक्ति 


भक्ति बेजोड़   है  अपने इष्ट के प्रति एक समर्पण भाव है भक्ति , जिससे हमारे मन में यह विश्वास उत्पन्न होता है कि इष्ट की शरण में हम सदैव सुरक्षित उत्साहित शान्त रहेंगे। आचार्य जी प्रतिदिन भक्तिपूर्वक लगकर निःस्वार्थ भाव से हमें प्रेरित करते हैं हमें ये सदाचार संप्रेषण सुनकर इनका लाभ उठाना चाहिए 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने नवधा भक्ति बताई है 


नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥4॥

गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।

चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥35॥


मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥

छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥

सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥

आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥2॥

नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥

नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥3॥


भक्ति भाव के साथ संयुत रहती है इसमें विचार विलीन हो जाते हैं भावना प्रमुख हो जाती है कुछ लोग भक्ति का आनन्द लेते हैं और कुछ लोग संसार की युक्तियों को खोजते रहते हैं

अभक्त लोगों का जीवन कष्टकारी होता है भक्ति हर क्षेत्र में दिखाई देती है



विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।


रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।2.59।।

 

निराहारी अर्थात् इन्द्रियोंको विषयों से हटाने वाले  व्यक्ति के  विषय तो निवृत्त हो जाते हैं किन्तु उनके प्रति राग नहीं हटता । परन्तु  स्थितप्रज्ञ का तो रस भी परमात्मतत्त्व की अनुभूति से निवृत्त हो जाता है।

मन प्रमुख है मन को संयमित करना भक्ति के प्रभाव से  संभव हो जाता है


हमारा जिस काम में मन लगे उस काम को भक्तिपूर्वक करें परिणाम विस्मयकारी होगा भक्ति का फल आत्म -दर्शन है

भक्त दुविधा में नहीं रहता ज्ञानी दुविधा में रहता है 


ग्यान पंथ कृपान कै धारा। परत खगेस होइ नहिं बारा॥

जो निर्बिघ्न पंथ निर्बहई। सो कैवल्य परम पद लहई॥1॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अजय कटियार जी भैया डा मलय जी भैया डा प्रवीण जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

1.5.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का वैसाख कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 मई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १००७ वां सार -संक्षेप

 कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।

जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग॥102 ख॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज वैसाख कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 मई 2024 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १००७ वां सार -संक्षेप

हमारा संगठन युगभारती एक व्यावहारिक संगठन है जिसका उद्देश्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

नित्य सदाचारमय विचारों को ग्रहण करते हुए  विरक्त भावों और अनुरक्त भावों में तालमेल बैठाते हुए अपने राष्ट्र के संवर्धन हेतु हम प्रयासरत रहते हैं

हम ध्यान धारणा संयम सेवा त्याग तप दान समर्पण भक्ति शक्ति स्वाध्याय विश्वास सद्व्यवहार  खाद्याखाद्य विवेक आदि सद्गुणों को अपनाने के लिए लालायित रहते हैं इन्हीं सद्गुणों से अगली पीढ़ी को भी संक्रमित करने का प्रयास करते रहते हैं 

हमें विश्वास रहता है कि हनुमान जी सदैव हमारी रक्षा करते रहते हैं 

जो व्यक्ति और संगठन हमारे विचारों से जुड़ते हैं वे हमारे अंग हो जाते हैं 

इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह परमात्मा की महती कृपा है सत् और असत् का विभाजन इन वेलाओं का एक विषय रहता है 

इस घोर कलियुग में हमारे अन्दर रामकाज करने की आतुरता होनी चाहिए आतुर होने की प्रेरणा के लिए आइये प्रवेश करें श्रीरामचरित मानस में रामत्व की अनुभूति करते हुए 

मानस एक अद्भुत ग्रंथ है जब हम बहुत अधिक उलझनों में हों तो हमें इसी की शरण में जाना चाहिए


कल आचार्य जी ने परामर्श दिया था कि उत्तरकांड में हम ९६वें से १०३ वें  दोहे तक का भाग अवश्य पढ़ें इनमें कलियुग का वर्णन है



सुनु खगेस कलि कपट हठ दंभ द्वेष पाषंड।

मान मोह मारादि मद ब्यापि रहे ब्रह्मंड॥101 क॥

कागभुशुण्डी जी कह रहे हैं 

हे पक्षियों में श्रेष्ठ गरुड़जी! सुनिए कलियुग में कपट, हठ , दम्भ, द्वेष, पाखंड, मान,  काम, क्रोध,लोभ,मद,मोह मत्सर आदि ब्रह्माण्ड भर में व्याप्त हो गए हैं


तामस धर्म करिहिं नर जप तप ब्रत मख दान।

देव न बरषहिं धरनी बए न जामहिं धान॥101 ख॥

मनुष्य जप, तप, यज्ञ, व्रत, दान, सेवा आदि धर्म कर्म तामसी भाव से करने लगे हैं । देवता समय से धरती पर जल नहीं बरसाते  असमय वर्षा हो जाती है और बोया हुआ अन्न  भी उगता नहीं है दुष्परिणाम हमारे सामने हैं 

तामसी भाव है कि हमने इतना बड़ा यज्ञ इतना विशाल कार्यक्रम कर दिया कोई कर नहीं पाया 

इतना धन लगा दिया कोई लगा नहीं पाया 



अबला कच भूषन भूरि छुधा। धनहीन दुखी ममता बहुधा॥

सुख चाहहिं मूढ़ न धर्म रता। मति थोरि कठोरि न कोमलता॥1॥


स्त्रियों के बाल ही भूषण हैं अब उनके शरीर पर कोई आभूषण नहीं रह  गया है  वे सदा अतृप्त रहती हैं संतृप्त नहीं रहती हैं वे धन रहित हैं और बहुत प्रकार की ममता होने के कारण दुःख में डूबी रहती हैं। वे सुख चाहती हैं किन्तु धर्म में उनका प्रेम नहीं है...



इंद्रिय-दमन, दान, दया और समझदारी किसी में नहीं रह गई है । मूर्खता अधिक दिख रही है ठगी बहुत अधिक बढ़ गई है ।  सभी शरीर के ही पालन-पोषण में लगे रहते हैं।  परनिंदा करने वाले  फैले पड़े   हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बाबा रामदेव का नाम क्यों लिया आचार्य जी आज कानपुर क्यों आ रहे हैं मध्यप्रदेश राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता श्री दिग्विजय सिंह की चर्चा क्यों हुई नामजप का क्या महत्त्व है जानने के लिए सुनें