31.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  31 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९८ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने से हमें आनन्द और उत्साह प्राप्त होता है हम अपने लक्ष्य निर्धारित कर पाते हैं 


भारतीय जीवन दर्शन में विश्वास करने वालों का विश्वास है कि सृष्टि अनादि काल से चल रही है अनन्त काल तक चलेगी

 परिवर्तन आते रहते हैं परिवर्तित स्वरूपों के साथ हमको सामञ्जस्य बैठाना होगा


हम सितम्बर में अधिवेशन करने जा रहे हैं और इस तरह के आयोजनों को करने के पीछे एक कारण है कारण स्पष्ट है हम भारत भारतीयता अध्यात्म शक्ति शौर्य के समन्वय की आवश्यकता समझते हैं भारत ही इनका उद्भव स्थान है और भारत की जीवन पद्धति से विश्व का कल्याण संभव है


हमें पुस्तकों के चयन में भी सचेत रहना होगा उनका रचयिता कौन है यह जानना भी आवश्यक है क्योंकि बहुत कुछ ऊल जलूल भी लिखा रहता है 

सारा संसार अध्यात्म से शून्य हो गया है और भोगवाद में प्रलिप्त है और  यदि भारत भी उसी का अनुसरण करेगा तो घोर अनर्थ हो जाएगा

भोगवाद में लिप्त मानवता को अध्यात्म और भौतिकता का समन्वय सिखाना होगा 

भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अंधकार  दूर करने में सक्षम हैं और वे अंधकार दूर कर भी रहे हैं और परमात्मा की ही ये लीला है कि वह ऐसे लोगों को उत्साहित कर रहा है 

परमात्मा की लीला अद्भुत है निर्विकल्प समाधि में स्थित परमात्मा के मन में इच्छा उत्पन्न हुई उसके मन में ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हुआ और आदिस्वर ॐ निकला उसी को प्रसाद मानकर हम ग्रहण करते हैं चाहे ईश्वरवादी हो या अनीश्वरवादी, सगुणोपासक हो या निर्गुणोपासक जिसने अध्यात्म में प्रवेश किया है उसे इस चिन्तन में जाना ही पड़ता है



पं दीनदयाल जी का एकात्म मानवदर्शन भी इसी पर आधारित है एक ही तत्त्व समस्त सृष्टि में व्याप्त है मानव अपनी लालसाओं की पूर्ति करते हुए इसकी अनुभूति भी करे भारतीय संस्कृति में भौतिकता आध्यात्मिकता की विरोधी नहीं है वह इसकी स्थूल अभिव्यक्ति है 

भारतीय समाज ने प्रारम्भ से ही जीवन में सहयोग समन्वयता पूरकता में विश्वास रखा है आचार्य जी ने सिक्किम भूटान के देशदर्शन की ओर संकेत करते हुए बताया कि आयुर्वेद में किसी फल पत्ती छाल को प्राप्त करने से पहले हम प्रार्थना करें कि इस कारण हम इसका उपयोग करने जा रहे हैं हम त्यागपूर्वक उपभोग करते हैं हम भारत माता गौमाता, गंगा माता कहते हैं

इसके अतिरिक्त england के इतिहासवेत्ता ने भारत के विषय में क्या कहा सीता के स्वयम्वर का उल्लेख क्यों हुआ शौर्यप्रमंडित अध्यात्म क्यों अनिवार्य है जानने के लिए सुनें

30.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९७ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित करते हैं और अनेक व्यवधानों  के आने के बाद भी इनकी अविच्छिन्नता अद्भुत है अद्वितीय है 

संसार से मुक्त होकर हम संसारी पुरुषों को इनका श्रवण करना चाहिए और अन्य को भी प्रेरित करना चाहिए



चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति हम संसारी पुरुषों को शक्ति प्रदान करती है आनन्द देती है और हमारे विचार परिमार्जित हो जाते हैं


हम सितम्बर में राष्ट्रीय अधिवेशन करने जा रहे हैं इस तरह के आयोजन अत्यन्त प्रभावशाली होते हैं हमारे सामर्थ्य में उत्साह में वृद्धि करते हैं हमारे विचार विमल बनें

 इसका प्रबन्ध करते हैं नहर की झाल का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने बताया कि जिस प्रकार झाल प्रवाह को तीव्र करता है उसी प्रकार ये कार्यक्रम किसी विचार को व्यवस्था को विषय को तीव्र करते हैं 

हम इस तरह के आयोजनों से अत्यन्त उत्साहित होते हैं इसी कारण हमारी संस्कृति में एक से एक विशाल मेलापकों का प्रबन्ध किया गया है जैसे कुम्भ के मेले 

ऐसे चिन्तनपरक देश में यदि हम निराश हताश रहते हैं तो यह अत्यन्त दुःखद है हमारी आर्षपरम्परा हमें निराशा हताशा से दूर करती है 

भयानक परिस्थितियों ने अंधकार के दीप तुलसीदास जी ने मानस की रचना कर डाली दशरथ जैसे महारथी जनक जैसे सुविज्ञ    विश्वामित्रीय सृष्टि के स्रष्टा क्षत्रिय से ब्राह्मण बने विश्वामित्र जैसे ऋषि के होने के बाद भी भारतवर्ष में रावण ने अपने अनेक हस्तक छोड़ दिए जो आतंक मचाए थे  लेकिन दशरथ जनक आदि भी ध्यान नहीं दे रहे थे 

यह सद्गुण -विकृति है 

सद्गुण इस मात्रा तक पहुंच जाएं कि वे विकार का रूप ले लें 

ऐसे समय में पौरुष और पराक्रम को जाग्रत करने की आवश्यकता होती है 

रामकथा इसी कारण महत्त्वपूर्ण है 

बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥

रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥


रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥

सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥



राम-कथा पंडित जनों को विश्राम देने वाली, सभी मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली और कलियुग के पापों का समूल नाश करने वाली है। यह कथा कलियुग रूपी साँप के लिए मोरनी है और विवेक रूपी अग्नि को प्रकट करने के लिए अरणि है।



रामकथा कलियुग में सारे मनोरथों को पूरा करने वाली कामधेनु गौ है और सज्जनों हेतु सुंदर संजीवनी जड़ी है। पृथ्वी पर यही अमृत - नदी है, जन्म-मरण रूपी भय को समाप्त करने वाली और भ्रम रूपी मेढ़कों को खाने के लिए सर्पिणी है।


आचार्य जी ने अधिवेशन के लिए डायरी बनाने का परामर्श दिया जो सोचें उसे लिख डालें अपने दायित्व ले लें अपना उद्देश्य स्पष्ट करें हमें अधिवेशन में बहुत अच्छी व्यवस्थाएं करनी होंगी अधिवेशन करके अपने कर्तव्य की इतिश्री न कर लें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया पुणे कौन कौन जा रहा है सुरेश सोनी जी प्रदीप सिंह जी का उल्लेख क्यों हुआ शासक अनियन्त्रित क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

29.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९६ वां* सार -संक्षेप

ये सदाचार संप्रेषण आत्मानुभूति और आत्मदर्शन का प्रयास हैं हम अकेले हैं तो यह अनुभूति करें कि हमारा मार्गदर्शक हमारे भीतर उपस्थित है 


लगाव दुराव संसार का स्वभाव है आत्म का स्वभाव नहीं है 


संसार को सत्य मानने लगेंगे तो सत्य-सा भासित होगा और स्वप्न मानेंगे तो सपने जैसा लगने लगेगा

हरि की कृपा से झूठा संसार सच लगता है 

हे हरि! कस न हरहु भ्रम भारी । जद्यपि मृषा सत्य भासै जबलगि नहिं कृपा तुम्हारी ॥ १ ॥

हम भ्रमित लेकिन विश्वासी लोगों का मार्गदर्शन करने वाली श्रीमद्भग्वद्गीता में एक ही गुरु और एक ही शिष्य समग्र विश्व के गुरु और शिष्य के रूप में प्रतिष्ठापित हैं


इस समय गुरुओं की बहुतायत है फिर भी शिष्य व्याकुल घूम रहे हैं यह कलियुग का स्वभाव और स्वरूप है हम लोगों को इस जंजालयुक्त संसार में रहते हुए आत्मस्थ होने की चेष्टा करनी चाहिए


कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः


पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।.....



कायरता वाले स्वभाव का और कर्तव्य -पथ पर चलने में भ्रमित मैं आपसे पूछता हूँ कि जो मेरे कल्याणार्थ हो उसे कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ।शरणागत को शिक्षित कीजिए

समर्पण भाव से बैठे शिष्य को देख गुरु भावुक हो जाता है 

गो और गो -वत्स का उदाहरण देते हुए आचार्य जी कहते हैं संसार वास्तव में अद्भुत है और इस अद्भुत संसार में शान्ति सुख यश प्राप्त करने की लालसा को संतुलित करने की हमें चेष्टा करनी चाहिए


स्वयं को सफलता पूर्वक आगे  बढ़ाने के लिए  सुयोग्य बनना होगा हमें समस्याओं को हल करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए

गीता में 

अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता तो भगवान् श्रीकृष्ण खीझते नहीं हैं वे तो सर्वद्रष्टा हैं 


अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।


गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।

जिनके लिये शोक करना उचित नहीं है, उनके लिये तुम शोक करते हो और ज्ञानियों जैसे बोलते हो, परन्तु ज्ञानी पुरुष मृत  और जीवित दोनों के लिये शोक नहीं करते हैं।।


पूरी गीता में प्रश्नोत्तर हैं हमें भी प्रश्न करने चाहिए और उन्हें हल करने का प्रयास करना चाहिए


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा मनीष वर्मा,भैया मनीष कृष्णा, भैया मोहन का नाम क्यों लिया Thick -skinned किसने कहा

आचार्य जी ने आचार्य प्रयाग जी से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया 

जानने के लिए सुनें

28.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९५ वां* सार -संक्षेप

 जो जहाँ है वहीं से समाजी बने 

जागरणमंत्र युत यज्ञ याजी बने 

दूसरों के क्रिया कर्म को छोड़कर 

सत्कृती धर्ममय कर्मसाजी बने।


आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष   अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९५ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित करते हैं अनेक व्यवधान आने के बाद भी इनकी अविच्छिन्नता अद्भुत है यह भी एक प्रकार का भक्ति का ही स्वरूप है 

आचार्य जी के व्यक्तिगत जीवन हेतु यह साधना है

संसार से मुक्त होकर हमें इनका श्रवण करना चाहिए 

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि शान्ति के दर्शन कैसे होते हैं 

हम सबके मन में, संसार में रहते हुए सांसारिक समस्याओं से जूझते हुए यशस्विता की कामना रहती है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

कितने अद्भुत भाव आये होंगे भगवान् शङ्कराचार्य के मन में 

तभी उन्होंने यह लिख दिया उनके भाव विचार भाषा अलौकिक रही ऐसी अलौकिकता क्षणांश में भी हमें मिल जाए तो यह भगवान् की कृपा होगी यह भावदृष्टि जब मिलती है तो संकटों में भी प्रकाश दिखने लगता है भारतीय जीवनदर्शन में जो भक्ति का स्वरूप है उसके अनुसार भक्त को शरणागत होना चाहिए 

अध्यात्मवादी इसे विश्वास कहते हैं 

युद्धक्षेत्र में सम्बन्धियों साथियों को देखकर अर्जुन मोहग्रस्त होता है भगवान् श्रीकृष्ण को वह मित्र समझ रहा है तब भगवान् उसको अपना विराट् स्वरूप दिखाते हैं


गोस्वामी तुलसीदास की रघुनाथ गाथा के लंका कांड में आता है 


बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।

लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥ 14॥

विदुषी मन्दोदरी के मन में भगवान् राम का यह स्वरूप आता है और वह रावण को समझाने का प्रयास करती है इसे मन्दोदरी गीता कह सकते हैं

भारतवर्ष में प्रकाश बिखेरने वाले अनेक लोग हुए हैं और आगे भी होंगे हमें भी  शौर्य- प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति का प्रयास करना चाहिए और अंधकार को दूर भगाने का प्रयास करना चाहिए 

समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए 

विचित्र है संसार

 विश्वासी विश्वास करता है और जो संसारी है वह मीनमेख निकालता है कलिकाल का विचित्र स्वरूप है कि संसद में हायतौबा मची रहती है कहने को वहां जनजीवन के भाग्यविधाता हैं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अमित भैया डा मलय भैया आकाश का नाम क्यों लिया किसने मूर्ति बनाने के बाद भी कहा यह मैंने नहीं बनाई जानने के लिए सुनें

27.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष  सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९४ वां* सार -संक्षेप


ब्रह्मा ने इस जड़-चेतन विश्व को गुण-दोषमय रचा है किन्तु हम राष्ट्र -भक्त दोषों को त्यागने और सद्गुणों को ग्रहण करने का प्रयास करते हैं हमारा सौभाग्य है कि दूरस्थ शिक्षा द्वारा आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं 

अत्यन्त विषम परिस्थितियों में अवतारी साहित्यपुरुष तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस की रचना की यह ग्रंथ अद्भुत है हमें इसका अध्ययन करना चाहिए क्योंकि यह हमें उत्साहित करता है संकटों में बिना विचलित हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान देने की याद दिलाता है परिस्थितियों से जूझने की प्रेरणा देता है 


हमें सब कुछ समझते हुए मार्ग निकालने का प्रयास करना चाहिए हम जाग्रत रहें और संगठित रहें संगठित रहना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है 

"संघे शक्ति: कलौयुगे"

सात्विक समझदार सुयोग्य शक्तिसम्पन्न विचारशील लोगों के संगठन में ही ईश्वरत्व का निवास होता है इससे इतर गिरोहबन्दी में विकार पैदा होने लगते हैं


रामचरित मानस में भी यही सब बताया गया है कागभुषुण्डी जी गरुड़ जी महाराज को सारी कथा सुना रहे हैं

हे खगराज गरुड़जी! 

जो माया सारे जगत् को नचाती है और जिसका चरित्र कोई  वर्णित नहीं कर पाया, वही माया प्रभु श्री रामचंद्र जी की भृकुटी के सङ्केत पर अपने परिवार सहित नटी की तरह नृत्य करती है

भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ ७२ क॥

अद्भुत वर्णन किया है तुलसीदास जी ने 

भगवान् राम के पिता भी राजा थे लेकिन उनके नाम पर अर्थात् दशरथ चरित मानस आदि सुनाई नहीं देता  यद्यपि उनका कार्यव्यवहार इतिहास के रूप में दर्ज है 

भगवान् राम को संसारी पुरुष की तरह दिखाया गया है आचार्य जी ने माया की सीता और तात्विक सीता की ओर संकेत करते हुए बताया कि हमारा भी कभी माया का स्वरूप होता है कभी तात्विक स्वरूप होता है तात्विक स्वरूप में हम शक्तिसम्पन्न ज्ञानसम्पन्न विचारसम्पन्न रहते हैं माया रूप में भय कुशङ्का भ्रम निराशा रहती है 

माया की सीता कहती हैं 


जाहु बेगि संकट अति भ्राता। लछिमन बिहसि कहा सुनु माता॥

भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ कि सोई॥2॥


कुशल कलाकार वही है जो वह रूप धारण करे लोग वही समझें 


बच्चे मोहित हो जाते हैं भावुक व्यक्ति मोहित हो जाते हैं जो ज्ञानसम्पन्न हैं वे जानते हैं कि यह लीला हो रही है 


कुछ लोग ऐसे हैं जो राम  का अस्तित्व ही नकारते हैं 

ऐसे संसार में हम निवास करते हैं


हम स्वयं ऐसे कूप से बचे रहें और इसके लिए चिन्तन मनन ध्यान धारणा द्वारा स्व -रूप में प्रवेश करें

 हम कौन हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

यह भाव उस समय प्रविष्ट होने चाहिए जब हम भ्रमित होने लगें 

लोग केवल धन के पीछे भागते रहते हैं और जब हम धन के पीछे भागेंगे तो विचारशून्य और ज्ञानशून्य हो जाएंगे धन आधार नहीं है यह जीवनाधार नहीं है केवल साधन है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने Agarwal Classes का नाम क्यों लिया हमें क्या decode  करना है भैया मोहन जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

26.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष  षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९३ वां* सार -संक्षेप


हमारी आर्ष परम्परा अद्भुत है इसे किसी न किसी रूप में अपने भीतर संजोने की चेष्टा करनी चाहिए


वैदिक ज्ञान से लेकर श्री रामचरित मानस तक के ज्ञान में हमें यही बताया गया है कि संसार में रहने की विधि क्या है  भगवान् रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानन्द को डांटते हुए कहा कि निर्विकल्प समाधि का कोई औचित्य नहीं यदि संसार में तुम्हें रहना है 

संसार की सबसे बड़ी निधि कीर्ति है कीर्ति उनको मिलती है जिनके पास भक्ति वाली शक्ति होती है


राम की कथा अत्यन्त अद्भुत कथा है

नागपाश में बंधे भगवान् राम को छुड़ाने के कारण गरुड़ जी को अहंकार हो गया लेकिन अपना अहं विलीन कर कागभुषुण्डी जी से कहते हैं 

अब श्रीराम कथा अति पावनि। सदा सुखद दु:ख पुंज नसावनि॥

सादर तात सुनावहु मोही। बार बार बिनवउँ प्रभु तोही॥2॥


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम  उत्तर कांड के ६३ वें दोहे के आगे १६ दोहे अवश्य पढ़ें इनको बार बार पढ़ने से हमें समझ में आयेगा कि वास्तव में संसार है क्या 


 निर्विकल्प समाधि में रहने वाले परमात्मा के मन में इच्छा उत्पन्न होती है वह सविकल्प होता है और वह सृष्टि की रचना करता है और सबसे पहले माया का सृजन होता है जिसे प्रकृति कहते हैं प्रकृति और पुरुष सृष्टि  का आधार हैं

परमात्मा ने मनुष्य को सब प्रकार की शक्तियां देकर स्वतन्त्र छोड़ दिया यह स्वातन्त्र्य संस्कारी के लिए अमृत तुल्य है और विकारी के लिए विष है 

यह सारा वैदिक ज्ञान है जिसने फिर विस्तार लिया गीता और मानस में भी यही ज्ञान निहित है 

वही बात बार बार दोहराई जाती है जो विवेकानन्द की साधना थी वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की साधना थी यह देश यह संस्कृति यह विश्वास ही सर्वोपरि है 

हमें विकृतियों में से नवनीत निकालना चाहिए 

इसी कारण परिस्थितियों को देखकर हमें संस्कारित होने की आवश्यकता है संसार के साथ हम संयुत तो हों लेकिन संसारत्व को समझकर अपनी शक्ति बुद्धि विचार को संस्कारित कर आगे चलने के लिए संकल्पित होवें 

आचार्य जी ने अधिवेशन की चर्चा की इसका उद्देश्य स्पष्ट रखें वर्तमान में जीवित रहने का प्रयास करें सारसंक्षेप करें 

आचार्य जी ने संगठन किस प्रकार चल सकता है यह स्पष्ट किया दोषारोपण से संगठन नहीं चलता 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने तांगेवाला कौन सा  प्रसंग सुनाया जानने के लिए सुनें

25.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९२ वां* सार -संक्षेप

 तटस्थ भी लहर लहर निहारते हुए थके 

पदस्थ भी सुकून को विचारते हुए थके 

गृहस्थ हर सदस्य को उबारते हुए थके

 मठस्थ दुःख द्वन्द्व को हिकारते हुए थके।

थके परन्तु राह छोड़ना नहीं कबूल है 

अनंत राह पर बने रहें यही उसूल है l 


आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष  पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९२ वां* सार -संक्षेप



ये सदाचार संप्रेषण हमें संसार के वात्याचक्रों से जूझते हुए संसार -सागर को पार करने का उपाय बताते हैं इस कारण हमें इनकी महत्ता को समझना चाहिए  पार करने के इस प्रयास में कभी कभी यह शरीर रूपी साधन बीच में हमसे दूर हो  जाता  है तो हमें दूसरे साधन की प्राप्ति होती है और इसका हमें विश्वास रहता है क्योंकि 


देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।


तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।

 हे भारत ! यह देही आत्मा सभी के शरीर में सदैव अवध्य है अतः समस्त प्राणियों हेतु तुम्हें शोक करने का कोई औचित्य नहीं है


जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग नए वस्त्रों को ग्रहण करता है वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग  नए शरीरों को प्राप्त होता है


हम इन काव्यमय सिद्धान्तों को सुनकर सुखानुभूति करते हैं 


हमारे सूत्र सिद्धान्त हमारा दर्शन  अद्भुत है  बेमिसाल जीवन पद्धति अद्भुत प्रकृति विलक्षण परिवेश हमें प्राप्त है और इसके बाद भी हमें निराशा हताशा कुंठा है तो इसका कारण है हम ठीक प्रकार से शिक्षित नहीं हुए हम कमाई करने के लिए प्रशिक्षित हुए


हमें बहुत प्रकार से भ्रमित किया गया कुछ लोगों ने संघर्ष किया लेकिन उनके साथ समाज नहीं खड़ा हुआ 

देशद्रोही कभी हमारा साथ नहीं दे सकता इस कारण हमें उसकी उपेक्षा करके सोचना होगा 

हमें संगठित रहना होगा योजनाएं बनानी होंगी 

ऐसे देशद्रोही हमारी शक्ति देख भयभीत हो जाएं यह प्रयास करें


यह देश विधाता की रचना का प्रतिनिधि है 

सत रज तम के साथ बनी युति सन्निधि है 

परमात्म तत्त्व की लीला का यह रंगमंच 

इसमें  दर्शित होते जगती के सब प्रपंच 

यह जनम जागरण मरण सभी का द्रष्टा है 

यह आदि अन्त का वाहक शिव है स्रष्टा है

हम हुए अवतरित पले बढ़े तम से जूझे 

विश्रान्त शान्त रहकर रहस्य हमको सूझे


हम पढ़ें  लिखें बोलें समझें देश के लिए 


जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व संपूर्ण समाज में व्याप्त हो गया हो उसकी स्मृति में बने 

दीनदयाल विद्यालय की स्थापना के पीछे भी यही उद्देश्य था दीनदयाल जी स्वदेश के लिए ही जन्मे थे सुख के अनेक अवसरों को वे त्यागते गए 

उनकी यात्रा अधूरी रह गई हमें उस अधूरी यात्रा को पूरी करने का संकल्प लेना है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शशि शर्मा जी भैया अनित गर्ग जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

24.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९१ वां* सार -संक्षेप

 आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९१ वां* सार -संक्षेप


हमारे उपकार के लिए ही ताकि हम पौरुष और पराक्रम की अभिव्यक्ति कर सकें आचार्य जी नित्य हमें संबोधित कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है आचार्य जी के व्यक्तिगत  जीवन के लिए साधना के रूप में परिलक्षित हो रहे इन सदाचार संप्रेषणों की अविच्छिन्नता कम आश्चर्यजनक नहीं है


भगवान् शङ्कराचार्य को जब एक विशिष्ट अनुभूति हुई तो वह निम्नांकित अभिव्यक्ति के रूप में प्रकट हुई  


न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:

न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥


ऐसी अभिव्यक्ति जो कर्म का एक साक्षात् दिव्य जाग्रत प्रबन्ध काव्य है 

उन्होंने चार धामों की स्थापना कर डाली संपूर्ण भारत को ३२ वर्ष की आयु में पैदल मथ डाला 

विकृत शिक्षा में इन अवतारों का वैशिष्ट्य हमसे छिपाया गया लेकिन विवेकानन्द सरीखे कुछ लोगों ने इसे संजो कर रखा विवेकानन्द का हमसे विशेष जुड़ाव है  विवेकानन्द से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक अधिष्ठान की जाग्रत भूमियां हमें प्रेरित कर रही हैं 

हमें निराश नहीं होना चाहिए सनातन की जीवन यात्रा अप्रतिहत रूप से चल रही है हमारा पौराणिक बोध हमारे अन्दर पुरुषार्थ उत्पन्न करने में सक्षम है 

इतिहास की भयंकर भूलों से सबक लेते हुए और अपने नैतिक बोध को पतित न करते हुए हम पौरुषयुक्त पराक्रम की उपासना करें 

नैतिक बोध में खाद्याखाद्य विवेक भी आता है हमारा शरीर मन बुद्धि विचार आदर्श रहे इसका प्रयास करें 

हमारे तत्त्वबोध को परिलक्षित करने वाले विद्या अविद्या दोनों को विस्तार से समझाने वाले वेद अद्भुत हैं उपनिषदों में उनका सरलीकरण है स्मृतियों ने राह सुझाई पुराणों में हमारे  पुरुषार्थी पराक्रमी पूर्वजों का वर्णन है लेकिन हम भ्रमित हो गए अपने लोग स्वार्थी हो गए हमने इनका महत्त्व नहीं समझा 

आचार्य जी ने बताया दीनदयाल विद्यालय इतिहास की एक घटना है भविष्य का एक संकल्प है भावनाओं का मूर्त स्वरूप है दीनदयाल जी की यात्रा अधूरी रह गई उनके चिन्तन को भावमय व्यक्तियों ने संजो लिया 


आचार्य जी कामना कर रहे हैं कि हमारा व्यक्तिगत जीवन समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करे हम राष्ट्र के लिए क्या कर सकते इस पर विचार करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पवन मिश्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें


23.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९० वां* सार -संक्षेप

 ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः । अनेन वेद्यं सच्छास्त्रमिति वेदान्तडिण्डिमः ll



आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष  द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९० वां* सार -संक्षेप

परिस्थितियां कैसी भी हों आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित कर रहे हैं हमें भौतिकवाद के भयानक तांडव से बचा रहे हैं हमें भारतीय संस्कृति की विशेषताओं से परिचित करा रहे हैं यह हमारा सौभाग्य हैं ये सदाचार संप्रेषण हमारे मनोनुकूल रहते हैं इस कारण हम इन्हें सुनने के लिए लालायित रहते हैं 


परिस्थितियां जब परिवर्तित होती हैं तो हमें अपने निर्धारित लक्ष्यों के स्थान आदि भी परिवर्तित करने  पड़ते हैं नियमित रूप से किए जाने वाले कार्य में आने वाली बाधाओं के लिए हम मार्ग निकालते हैं और यदि ऐसा नहीं करते हैं और परिस्थितियों के वशीभूत होकर बाधाओं से झुककर मूल कार्य को तिलाञ्जलि दे देते हैं तो इसका अर्थ है हम पुरुषार्थ से दूर भाग रहे हैं हम परिस्थितियों का आकलन करते हैं क्योंकि हम चिन्तन करने में सक्षम हैं  इधर कुछ दिनों तक आचार्य जी ने शिक्षा पर हमारा मार्गदर्शन किया हमारी शिक्षा को दूषित किया गया इस पर हमें चिन्तन करना चाहिए और उसके अनुरूप कार्यव्यवहार करना चाहिए क्योंकि जो शिक्षा का यह स्वरूप चल रहा है वो हमें व्याकुल करता है हमारी व्याकुलता तब दूर होती है जब हम अपने को उससे अलग करके देखते हैं

भारतीय पद्धति वाली शिक्षा महत्त्वपूर्ण है जो हमें संस्कारित करती है 

जहां संस्कार होते हैं वहां प्रेम लगाव आत्मीयता होती है मनुष्य का जीवन इसी में आनन्दित रहता है विलायती लोगों द्वारा थोपी गई शिक्षा में हमें अपने पूर्वजों की कथाओं से दूर किया गया इस शिक्षा का प्रभाव विवेकानन्द मदनमोहन मालवीय डा हेडगेवार लाला लाजपत राय पर नहीं हुआ कारण स्पष्ट है उनके परिवारों के संस्कार उस शिक्षा पर हावी रहे मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (का हि वि वि )खोला जिसके ईंटों में भी का हि वि वि लिखा है 

हमारे ऊपर वैचारिक आक्रमण हुए सैन्य आक्रमण हुए लेकिन हमारी देशभक्ति की भावना जाग्रत रही 

युगभारती भी यही प्रयास कर रही है कि समाज की देशभक्ति वाली भावना जाग्रत रहे 

इसे बलवती बनाने के लिए हम संगठन करें मिलने के अवसर खोजें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमें निर्भय करने वाला  कौन सा मन्त्र बताया भैया विजय गर्ग जी  भैया अमित गुप्त जी का नाम क्यों लिया न्यूटन का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

22.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष  प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८९ वां* सार -संक्षेप

विषम परिस्थितियों में होने के बाद भी आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित कर रहे हैं हमें संस्कारित कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है 

कष्ट में भी जिनको कष्ट की अनुभूति नहीं होती वे सिद्ध पुरुष होते हैं भारत में ऐसे सिद्ध पुरुषों की बहुतायत रही है 

भारत में ऐसे अनेक राष्ट्र -भक्त हुए जिनको दुष्टों ने बहुत कष्ट दिए 

इस अद्भुत देश की यह अद्भुत परम्परा रही है और यह सिलसिला चल रहा है  ऐसे लोग हमारे पथ -प्रदर्शक बन जाते हैं अध्यात्म की दृष्टि से देखें तो जो परमात्मा करता है अच्छा ही करता है तो इसमें भी कुछ अच्छाई ही होगी 

अच्छा ही है यदि हमारा भरोसा बना रहे हम भ्रमित भयभीत न रहें 

इन्हीं के बीच हम लोग भी हैं जो अपना कार्य व्यवहार कर रहे हैं थोड़ा करते हैं अधिक यश की कामना करते हैं अध्यात्मोन्मुख होते हुए हम सुख शान्ति सौहार्द सौमनस्य के लिए समर्पण भाव से प्रयास करें यही मनुष्यत्व है मानव जीवन है अन्य जीवन प्रकृति पर आधारित होते हैं मनुष्य का जीवन प्रकृति के साथ सामञ्जस्य बैठाता है और मनुष्य मार्ग खोजने में सक्षम होता है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम युगभारती के सदस्य एक दूसरे की परिस्थितियों के बारे में जानकारी रखें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लोमश ऋषि का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

21.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा )विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८८ वां* सार -संक्षेप


प्रातःकाल का समय नवजीवन का समय होता है आचार्य जी नित्य  इस समय हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है 

हमारा यह कर्तव्य बने कि हम इन सदाचार संप्रेषणों के तत्त्व खोजें और उन्हें व्यवहार में उतारें

हम दुष्ट नहीं हैं हम विशिष्ट हैं हमारा वैशिष्ट्य देशभक्ति, राष्ट्र -भाव का वैशिष्ट्य है  हमारा वैशिष्ट्य राष्ट्र को सञ्जीविनी प्रदान करने वाले विचार व्यवहार की विशिष्टता को धारण किए हुए है

*उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं*


यह उद्घोषणा हमें अपना लक्ष्य याद दिलाती है 

हमारा लक्ष्य है 

 अपने पूर्व के अखंड ऐतिहासिक भौगोलिक स्तर को पुनर्स्थापित करना 

हम खंडित संस्कृति के उपासक नहीं हैं


जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक


व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक


जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष


निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष


हमारी शिक्षा को विकृत किया गया हमारे रीति रिवाज बदल गए हमारी भाषा व्यवहार में विकार आ गए लेकिन यह देश कभी मरता नहीं यह अक्षय है कोई न कोई अपनी ज्योति के साथ जलता है इसी प्रकार परम पूज्य डा केशवराव बलीराम हेडगेवार जले

वह यह सोचने को मजबूर हुए कि समाज में जिस एकता और धुंधली पड़ी देशभक्ति की भावना के कारण हमें संघर्ष करना पड़ रहा  है वह मात्र कांग्रेस के जन आन्दोलन से जाग्रत और पृष्ट नही हो सकती

अतः भिन्न उपाय की आवश्यकता है और इस तरह हिन्दू समाज को संगठित करने  संस्कारित करने हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अस्तित्व में आती है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हम निकट से जानने का प्रयास करें और साथ ही 

अपनी संस्था युगभारती के लिए धन का समय का शक्ति का अर्पण करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज किस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं किस व्यक्ति के कार्य की प्रसिद्धि हुई न कि उसकी स्वयं की,भैया नितिन जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए  सुनें

20.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८७ वां* सार -संक्षेप

 मन्त्रार्थभूमिका ह्यत्र मन्त्रस्तस्य पदानि च ।

पदार्थान्वयभावार्थाः क्रमाद बोध्या विचक्षणशैः।



प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  20 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८७ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी द्वारा हमें उत्थित जाग्रत और  कर्मशील बनाने का , आपाधापी में सुपथ का संधान कराने का, आत्ममन्थन कराने का, सद्व्यवहार कराने का, इस कठिन समय में तेजस्वी पूर्वजों की याद दिलाने का नित्य का यह प्रयास अद्भुत है तो जाग्रत उत्थित कर्मशील होने के लिए 

आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


वाणी -विधान परमात्मा का बहुत बड़ा विधान है इसी का आश्रय लेकर हमारे ऋषियों मुनियों ने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन और इसके विस्तार का अद्भुत अकल्पनीय प्रयास किया है

जो व्यक्ति इस वाणी -विधान के सम्बन्ध में जाग्रत रहता है उस व्यक्ति के सांसारिक और पारलौकिक दोनों जीवनों को यह मूल्यवान बना देता है 


ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।

हमारे यहां तो शब्दाद्वैत दर्शन ही विकसित हो गया शब्द ब्रह्म है परमात्मा स्वर के रूप में पहले 

प्रसरित हुआ है ॐ आदिस्वर है वाणी वहीं से प्रारम्भ हुई है

वेद आधार तत्त्व ग्रंथ हैं पाश्चात्य विद्वानों मैक्समूलर आदि ने इन्हें विकृत करने का प्रयास किया और हमारे आधुनिक ऋषि महर्षि दयानन्द की आलोचना की 

ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रणीत ग्रन्थ है। उन्होंने वेद और वेदार्थ के प्रति अपने मन्तव्य को स्पष्टतः प्रतिपादित करने हेतु इस ग्रन्थ का प्रणयन किया l उन्होंने पाश्चात्य विद्वानों के मतों का अत्यधिक प्रभावशाली ढंग से खंडन किया है 

ऋषि मन्त्र का द्रष्टा होता है 

हमें क्षणांश भी ऋषित्व की अनुभूति हो जाए तो हमारी दृष्टि खुल जाती है

ऋषि ज्ञान का प्रथम प्रवक्ता है ऋषि के बहुत विभेद हैं जैसे महर्षि राजर्षि ब्रह्मर्षि आदि 

किसी न किसी प्रसंगवश यदि ये सब हम भावी पीढ़ी को बता देते हैं तो उन बच्चों की जिज्ञासा जाग्रत होगी

इसी प्रकार मुनि मननकर्ता है ब्रह्म के चिन्तन के लिए वह मौन धारण करता है उसे ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाता है मौन ही उसका व्याख्यान है इस प्रकार हमने ऋषि मुनि का अन्तर जाना 

यह ज्ञान शिक्षा से ही संभव है शिक्षा इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाती है बैल अश्व हाथी भी प्रशिक्षित कर दिए जाते हैं किन्तु शिक्षा के तत्त्व को जानकर उसकी गहराई में जाकर संस्कार के स्वरूप का अनुभव करना मनुष्य के द्वारा ही संभव है उसे अपने मनुष्यत्व को पहचानना ही चाहिए 


आओ फिर से मिल ध्यान करें.....

आचार्य जी ने लेखन -योग की महत्ता बताई 

इससे हमें संतोष भी प्राप्त होता है



इसके अतिरिक्त ऋषि मुनि कहां computer चलाते थे अधिवेशन के लिए क्यों सचेत रहें यज्ञ का क्या अर्थ है जानने के लिए सुनें

19.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८६ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी प्रयास करते हैं कि इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हमारे अन्दर शक्ति भक्ति शौर्य पराक्रम उत्साह प्रविष्ट हो और हम समाज -सेवा, राष्ट्र -सेवा के लिए सन्नद्ध हों 

शिक्षा मनुष्य के संस्कारों का आधार बनती है इस कारण उचित शिक्षा बहुत अनिवार्य है शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म इसीलिए अनिवार्य है कि हम कमजोर न रहें हमारी कमजोरी के कारण हमारे समाज में विद्रूपता फैली

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म में तो इतनी क्षमता है कि वह अपने परिवेश को आनन्दित रखता ही है 


अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः ।

इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।

ऐसे हैं परशुराम जिनमें ज्ञान के साथ शौर्य भी है एक ओर परशुराम अवतार हैं तो बुद्ध भी अवतार हैं इनका सामञ्जस्य हमें समझ में आना ही चाहिए अन्यथा हम भ्रमित भयभीत रहेंगे

बन्धन में बंध जाना पारतन्त्र्य है हम स्वतन्त्र हैं शक्तिसम्पन्न है यह भाव रखें 


इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि भक्ति में शक्ति है



आचार्य जी ने ब्रह्मसंहिता के एक अंश का उल्लेख करते हुए बताया कि पूजा का प्रस्तुतिकरण कितना अच्छा हो सकता है 

जब हम पूजा भाव से अध्ययन करते हैं कर्म करते हैं अपने विचार संप्रेषित करते हैं तो एक विशिष्ट प्रकार की शक्ति परिलक्षित होती है 


करपात्री जी महाराज जैसे लोगों ने वर्ण व्यवस्था जन्मना मानी लेकिन सामान्य मनुष्य को वे समझा नहीं पाए कि जन्म भी कर्म के आधार पर होता है क्यों कि उनकी भाषा बहुत क्लिष्ट थी 

परमज्ञानी के पास सामान्य शब्दावली नहीं रह पाती 

हमें संसार में लिप्त तो होना ही पड़ेगा  लेकिन लिप्त रहते हुए भी अलिप्त रहना एक अद्भुत स्थिति है और उस स्थिति को हम बिना भक्ति के प्राप्त नहीं कर सकते 


चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।


तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।

 

गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचित है। यद्यपि मैं इसका कर्ता हूँ, फिर भी तुम मुझे अकर्ता एवं अविनाशी ही जानो।।


विश्वास भी अत्यन्त आवश्यक है


हमारे लिए यह समझना अत्यन्त आवश्यक है कि हम नौजवानों का समाज के प्रति क्या योगदान है 

हमें इस ओर ध्यान देना होगा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी कल कहां जा रहे हैं नागपुर कब जाएंगे भैया राजन रावत जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

18.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८५ वां* सार -संक्षेप



भारतवर्ष सदियों पुराना है 


जिस दिन सबसे पहले जागे, नवल -सृजन के स्वप्न घने

जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने

जिस दिन नभ में तारे छिटके जिस दिन सूरज-चांद बने

तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है।


तब भी भारतवर्ष था आज भी भारतवर्ष है 

अनेक विकार विचार आये  और गए  भी यह सिलसिला तो चलता ही रहेगा कुछ लोग निराशा में व्याकुल रहते हैं और कुछ आशा में जीते हैं

हमें अपनी आशा त्यागनी नहीं चाहिए 

प्रायः लोग मैक्समूलर के वैदिक उद्धरण देते हैं जो सही नहीं है यद्यपि उसने मेहनत बहुत की थी स्वामी विवेकानन्द ने भी उसकी प्रशंसा की थी किन्तु उसकी मंशा ठीक नहीं थी उसने बहुत नुकसान पहुंचाया आजकल की studies में भी यही सिद्ध हो रहा है हमें ऐसी studies खोजनीं चाहिए 

आचार्य जी ने कल मनुस्मृति का उल्लेख किया था और अन्त्यज को परिभाषित किया था 

(उनके वर्णोत्कर्ष की व्यवस्था सुनाते हुए) 

अन्त्यज से शूद्र फिर सच्छूद्र फिर वैश्य फिर क्षत्रिय और अन्त में ब्राह्मण वर्णोत्कर्ष है 


हमारे यहां मनुष्य के संस्कार को बहुत महत्त्व दिया गया सोलह संस्कार का उल्लेख होता रहता है यह सब मनुस्मृति में है


ऐसी अनेक स्मृतियां हैं इन सबका सार श्रीरामचरित मानस है 

प्रभु राम का व्यवहार अद्भुत है 

हमारे यहां की ग्रंथावली अद्वितीय है हम इसका अध्ययन करें  चिन्तन करें और अपने जीवन में इससे परिवर्तन भी लाएं

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की भाषा बोलें उसे आचरण में लाएं आत्मबोधोत्सव मनाएं 


हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़ उठें

व्यक्तिगत हानि या लाभ लोभ की आशा  छोड़ उठें....

कहने का तात्पर्य है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सगे सहोदर हैं हम भेदभाव न करें 


आचार्य जी ने नागर और ग्रामवासी की तुलना की 

उस व्यावहारिक उदाहरण का भी उन्होंने उल्लेख किया  कि जब एक त्वरित भाषण प्रतियोगिता में भैया यतीन्द्रजीत सिंह बैच १९८५ ने ग्रामीण और नागरिक के बीच का अन्तर स्पष्ट किया था 

आचार्य जी ने नागरवृत्ति और ग्राम्यवृत्ति भी बताई


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भाईसाहब जी का उल्लेख क्यों किया श्री राजबलि पाण्डेय जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

17.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८४ वां* सार -संक्षेप



अविच्छिन्न रूप से ये सदाचार संप्रेषण हमें प्राप्त हो रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है हमारा सनातन चिन्तन भी इसी बात की पुष्टि करता है कि जीवन के सत्कर्म अविच्छिन्न चलने चाहिए

हमारा कर्तव्य बनता है कि इन संप्रेषणों के तत्त्व हम खोजें और उन पर विचार कर व्यवहार में लाएं अपनी संस्कृति सभ्यता समाज के प्रति सुस्पष्टता लाएं 


अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपने विचार, अपने देश और समाज पर गर्व हमें तब होगा जब हम अपने ग्रंथों का सही ढंग से अध्ययन करेंगे


चतुर्वेदाः पुराणानि सर्वोपनिषदस्तथा

रामायणं भारतं च गीता सद्दर्शनानि च ॥८॥


जैनागमास्त्रिपिटकाः गुरुग्रन्थः सतां गिरः

एषः ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा ॥९॥



.हमारे यहां चारों वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र अत्यधिक सम्मानपूर्वक विभाजित किए गए ये कर्माधारित थे

मनुस्मृति में ही  वर्णोत्कर्ष की प्रक्रिया भी वर्णित है 

लेकिन विखंडनवादियों ने बहुत सी बातें गलत ढंग से प्रस्तुत कीं 

हमें अपनी परम्पराओं में हीनत्व दिखाई दे इसी का प्रयास इन्होंने किया 

वेद का अध्ययन करना हो पहले मैक्समूलर का अध्ययन करें ऐसी बातों से हमें बरगलाया 

मैकाले की शिक्षा नौकरी पर आधारित है 

हमें भ्रमित और हीनभावना से ग्रसित नहीं रहना चाहिए


हम कमजोर न पड़ें इसका प्रयास करें अपने भीतर सब कुछ समाहित करने की क्षमता रखनी चाहिए अन्यथा विखंडनवादी इसका लाभ उठाते हैं और उसी का परिणाम है कि जैन बौद्ध सिख अल्पसंख्यक हो गए


सुसंस्कृत लोगों को भी सुसंगठित रहने की आवश्यकता है भेदभाव से दूर रहना होगा आत्मीयता दिखानी होगी हम कहते हैं वसुधैव कुटुम्बकम् 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया 

धर्म शब्द का अर्थापकर्ष हो गया साहस शब्द का अर्थोत्कर्ष हो गया 

A Brief History of Time (1988) a book written by the scientist and mathematician Stephen Hawking की आचार्य जी ने चर्चा की 

श्यामलाल जी की चर्चा क्यों हुई काशी विश्वविद्यालय का उल्लेख क्यों किया अन्त्यज का क्या अर्थ है जानने के लिए सुनें

16.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८३ वां* सार -संक्षेप

 आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष  दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८३ वां* सार -संक्षेप


धर्म-आधारित जीवन जीने पर व्यक्ति संयमी, स्वाध्यायी, चिन्तनशील विचारशील हो जाता है उसके प्रयास सात्विक और उत्कृष्ट कोटि के होते हैं जैसे प्रयास गुरुगोविन्द सिंह महाराणा प्रताप वीर शिवाजी आदि ने किए जिन्हें मात्र योद्धा न कहकर धर्मयोद्धा कहना चाहिए  उनके बारे में वैचारिक विकृतियों का प्रयास करने वाले भौतिकता की बुभुक्षा लिए विलायती लोगों ने जो विकृत धारणाएं उत्पन्न कर दीं हमें उनके बारे में चिन्तन करना चाहिए

ये विलायती लोग सफल इसलिए हुए क्योंकि हमने शौर्य आधारित अध्यात्म को विस्मृत कर दिया शक्ति के स्थान पर हमारा अध्यात्म चिन्तन में प्रवेश कर गया  हमने ज्ञान को अपने भीतर सुरक्षित तो कर लिया लेकिन हम उसका व्यावहारिक उपयोग नहीं कर पाए


आधिभौतिक,आधिदैविक और आध्यात्मिक नामक त्रिकोण बहुत चिन्तन मनन विचार के बाद प्रस्तुत किया गया है 

शिक्षा मात्र नौकरी प्राप्त कर लेना नहीं है शिक्षा ऐसी जो हमें मनुष्यत्व की अनुभूति कराए

हमारा सनातन विचार बहुत तात्त्विक है वेद ज्ञान है वेद अपौरुषेय है इस संसार और संसार के स्रष्टा को जानने की हमें आवश्यकता है


वेद यौगिक शब्दों में लिखे गए हैं शब्द यौगिक औऱ रूढ़ दोनों होते हैं जैसे लोटा रूढ़ शब्द है  जिसका एक ही अर्थ है यौगिक के अनेक अर्थ होते हैं जैसे पुरुष यौगिक शब्द है आचार्य जी ने इस शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि कैसे इसके आधिभौतिक आधिदैविक आध्यात्मिक के अनुसार भिन्न भिन्न अर्थ हैं


ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के १६४वें सूक्त की ४६वीं ऋचा के अनुसार - इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्। एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥

वेद में लिखा है कि अल्पज्ञानी से मुझे डर लगता है क्योंकि वह मेरा वध कर देगा 

मैक्समूलर अल्पज्ञानी ही था मोहांध था उसने हमें भ्रमित किया 

अब समय है कि हम भ्रम में न रहें new generation को भी मार्गदर्शन दें 

शैशव में अच्छे संस्कार मिल जाएं तो बहुत लाभ मिलता है 

संस्कारों को जाग्रत करने का जब अवसर मिल जाता है तो आनन्द आ जाता है हमें यह अवसर मिला है आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित कर रहे हैं ताकि हमारे संस्कार जाग्रत हो सकें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राष्ट्रीय अधिवेशन के विषय में क्या बताया 

गृहस्थ धर्म वास्तव में क्या है आचार्य जी ने अपने बचपन के क्या प्रसंग बताए लक्ष्य प्राप्ति क्या है जानने के लिए सुनें

15.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८२ वां* सार -संक्षेप

 पूरब में ही समस्याएं उभरती हैं किन्तु पूरब में ही सूर्योदय होता है...



प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  15 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८२ वां* सार -संक्षेप


भारत -राष्ट्र


(जिस दिन सबसे पहले जागे, नवल -सृजन के स्वप्न घने

जिस दिन देश-काल के दो-दो, विस्तृत विमल वितान तने

जिस दिन नभ में तारे छिटके जिस दिन सूरज-चांद बने

तब से है यह देश हमारा, यह अभिमान हमारा है।

-बाल कृष्ण नवीन)

 का चिन्तन मनन मन्थन शौर्य पराक्रम कभी भी पूर्णरूपेण समाप्त नहीं हुआ यद्यपि षड़यंत्र तो बहुत होते रहे जब जब भारतवर्ष पर समस्याएं आईं उनके समाधान भी होते गए इसलिए हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए  निराशाजन्य चिन्तन हमें शिथिल कर देता है और हुआ भी ऐसा ही है 

इस कारण सबसे पहले तो हमें निराशा से उबरना होगा जब हम विश्वास करेंगे तो उसका लाभ भी मिलेगा 

भारतवर्ष समस्याओं के समाधान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है 

आज कल भावना की भूमि पर जन्मे अंधेरे में दिया जलाने की प्रेरणा देने वाले आचार्य जी हमारा ध्यान आकृष्ट किए हुए हैं कि किस प्रकार भारत में शिक्षा में साजिशें हुईं 

मैकाले की योजना थी कि वह इस प्रकार की शिक्षा कर देगा जिससे बंगाल में एक भी मूर्तिपूजक नहीं बचेगा 

इंशा अल्ला खाँ, सदल मिश्र, मुंशी सदासुखलाल, लल्लू लाल को लेकर उसने तमाशा खड़ा किया

उसी बंगाल में १८३६ में रामकृष्ण परमहंस का जन्म होता है अक्षर ज्ञान शून्य फिर भी वे परम ज्ञानी हो गए उनके अनेक युवा शिष्य बने 

उन्होंने मूर्ति -पूजा को महत्त्व दिया १८८६ में संसार से वे विदा हो गए उनके शिष्य विवेकानन्द (१८६३-१९०२) ज्योति बनकर प्रज्वलित हुए उस समय अंग्रेजी अपने रंग दिखा रही थी

लोभी लालची उससे व्यामोहित थे 

सन् १८८९ में डा हेडगेवार अवतरित हुए उसी बंगाल में उन्होंने क्रांति का पाठ पढ़ा

आज का युग -धर्म शक्ति उपासना है 

हमें हिन्दुत्व को समझना है तो दर्शन धर्म संस्कृति सभ्यता को समझना होगा 

सभ्यता बाह्य स्वरूप है बाह्य व्यवहार है संस्कृति आंतरिक ऊर्जा है धर्म का अर्थ है कर्तव्य 

जिसमें करणीय और अकरणीय का विवेक हो वह धार्मिक है

अर्जुन का कर्म है युद्ध करना समझाते समझाते भगवान् कृष्ण कहते हैं 



इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।


एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।


इस प्रकार बुद्धि से परे आत्मा को जान बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके  तुम  अर्जुन इस दुर्जेय  कामरूप शत्रु को मार डालो


दीनदयाल जी का एकात्ममानववाद इसी पर आधारित है 


हम शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा का आधार लेकर समाज का चैतन्य जाग्रत करने के लिए तैयार है उसके लिए सबसे पहले अपना चैतन्य जाग्रत करना होगा जिसके लिए शिक्षा को व्यवहार में लाना आवश्यक है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कौन सी कविता सुनाई आनन्दभवन का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

14.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  14 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८१ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों से हमें उत्साह प्राप्त होता है

आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि इनका श्रवण कर हम कर्मशील, शक्ति शौर्य  पराक्रम से प्रमंडित,अध्यात्मोन्मुख हों, अंधेरे में दिया जलाने वाले समझदार व्यक्ति बनें, मनुष्यत्व की अनुभूति करें, संकट में समाधान खोजने वाले बनें क्योंकि वैसे भी मनुष्य का जीवन संकट में समाधान खोजने के लिए बनाया गया है, स्वयं संकट न बनें, समाज में संस्कार जगाने की चेष्टा करें, समाज को जाग्रत करने का प्रयत्न करते रहें निराश हताश न रहें, चिन्तन मनन निदिध्यासन लेखन करें, अपनी संस्कृति की अनुभूति करें 

हम युगभारती सदस्य के रूप में शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के आधार पर कार्य करते रहें, परिणाम के लिए विचलित न हों क्योंकि परिणाम की अपेक्षा शैथिल्य प्रदान करती है, राष्ट्र को मात्र भूमि का टुकड़ा न मानें, स्वार्थ से दूर रहें,व्यामोह में न डूबे रहें, भारतीयता से परिचित हों 


चार वर्ण चार आश्रम की ओर सङ्केत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि ब्राह्मण वर्ण कुंठा से ग्रस्त नहीं होता वह कर्म के आधार पर जीवन जीता है 

ब्राह्मण वह जो कर्मशील चिन्तनशील विचारशील परोपकारी संयमी रहे जीवन पर्यन्त तप करता रहे इसी तरह अन्य वर्णों में भी विशेषताएं हैं 

आजकल आचार्य जी बता रहे हैं कि शिक्षा में. समस्याएं कैसे उत्पन्न हुईं


मैकाले ने अपने घृणित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बहुत से प्रयास किए 

वह चाहता था कि देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण न हो सके व्यक्ति सुख सुविधा के लिए संघर्ष करता रहे लेकिन अपने तत्त्व सत्व की अनुभूति का भाव उसके भीतर उत्पन्न न हो, शिक्षा में भारतीय भाषाएं न रहें

मैकाले ने अंग्रेजी माध्यम  पर जोर दिया नौकरी के लिए कुछ नियम अनिवार्य कर दिए 

परिणाम यह हुआ कि हमारे भाव समाप्त हो गए भाषा बदल गई भगवान् राम, भगवान् कृष्ण आदि को कुछ लोग कल्पना मानने लगे 

, अंग्रेजी आसान लगने लगी


आचार्य जी ने बताया कि स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद बहुत दिनों तक शिक्षा के बजट में २% राशि रखी गई 


इसके अतिरिक्त अपने को अंतिम अंग्रेज किसने कहा श्री राजेन्द्र चड्ढा जी की चर्चा क्यों हुई भैया पवन मिश्र जी की चिन्ता का क्या कारण था जानने के लिए सुनें

13.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०८० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  13 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०८० वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं हम इनसे मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं हम इनकी अधीरता से प्रतीक्षा करते हैं ताकि हम संसार के साथ साथ अध्यात्म के महत्त्व को भी जान सकें अपने को सशक्त बना सकें सही खानपान से विमुख न हो सकें आजकल शिक्षा पर चर्चा हो रही है इसी क्रम में प्रस्तुत है आज की सदाचार वेला



अनौपचारिक चर्चाओं में गम्भीर विषयों को लेकर सरल ढंग से जब परस्पर का संवाद किया जाता है तो ऐसी शिक्षा अत्यन्त प्रभावशाली होती है

आजकल आचार्य जी शिक्षा पर चर्चा कर रहे हैं कि कैसी कैसी साजिशें हुईं हमको अपनी धुरी से कैसे अलग करने की चेष्टा की गई शिक्षा की विकृति कैसे हुई

शिक्षा को विकृत करने का अर्थ है संस्कार को विकृत करना 

जिसके संस्कार विकृत हो जाते हैं उसके विचार अस्त व्यस्त हो जाते हैं आत्मविश्वास डिग जाता है अंग्रेजी सीखना गलत नहीं है लेकिन अंग्रेजी माध्यम होना गलत है 

ऐसे माध्यम से जीवन की शैली का मूलमन्त्र बदल जाता है 

शिक्षा को विकृत करने में कई लोग शामिल थे जैसे कीथ,माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन,   थॉमस बैबिङ्टन मैकाले आदि 

माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन FRSE (6 अक्टूबर 1779 - 20 नवंबर 1859) एक स्कॉटिश राजनेता और इतिहासकार था , जो ब्रिटिश भारत की सरकार से संयुत था बाद में बॉम्बे  का गवर्नर बना  भारतीय आबादी के लिए सुलभ  इसने कई शैक्षणिक संस्थान खोले


थॉमस बैबिङ्टन मैकाले का जन्म, २५ अक्टूबर १८०० रोथले टैंपिल (लैस्टरशिर) में हुआ। पिता, जकारी मैकॉले, व्यापारी था। इसकी शिक्षा केंब्रिज के पास एक निजी विद्यालय में, उसके बाद एक योग्य पादरी के घर और फिर ट्रिनिटी कालेज कैंब्रिज में हुई

इसे  सामान्य समाज को निर्देशित करने के लिए भारत भेजा गया ताकि भारतवासी ये समझें कि अंग्रेज हमारे कल्याण के लिए आये हैं भारत के प्रति यह व्यक्ति अत्यन्त दुर्भावना से भरा था 

१८३४ में इसे भारत का शिक्षा प्रमुख बना दिया गया 

उसने अपने पिता को पत्र लिखा था जो बहुत चर्चा में है कि कैसे भारत में शिक्षा में उसके प्रयास सफलता पा रहे हैं 

१८५९ में इसकी मृत्यु हो गई


इतने कुत्सित प्रयासों के बाद भी भारत का स्वरूप अक्षय बना हुआ है 

विवेकानन्द सरीखे व्यक्ति भी हुए उन्होंने लंदन की मेधा को हिलाकर रख दिया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने एक कक्षा में प्रतिक्रियाओं के न आने पर क्या सुझाव दिया था भैया राजेश जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

12.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष षष्ठी / सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 हो गये हैं स्वप्न सब साकार कैसे मान लें हम।

टल गया सिर से व्यथा का भार कैसे मान लें हम।

आ गया स्वातंत्र्य फिर भी चेतना आने न पाई।

प्रगति के ही नाम श्रद्धा और श्रम को दी विदाई।

इस भयंकर मौज को पतवार कैसे मान लें हम।


प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष षष्ठी / सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  12 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७९ वां* सार -संक्षेप

अपने भीतर के सत्व तत्व की पहचान कराने वाले,भावनाओं पर आधारित ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं  हमारे लिए हितकारी हैं हमें इनका श्रवण अवश्य करना चाहिए 

सिर से व्यथा का भार अभी टला नहीं है सारे सपने साकार नहीं हुए हैं कुछ समस्याएं ही हल हो पाई हैं समय गम्भीर है इसलिए हम समय की गम्भीरता को पहचानें मौज मस्ती में डूबे न रहें, यथार्थ को जानें 

और अपने लक्ष्य को पाने के लिए कदम बढ़ा लें

हमारे देश में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत भयानक प्रभावकारी षड़यंत्र हुआ 

हम संवेदनशील राष्ट्र -भक्त आज तक उसके प्रभाव का अनुभव कर रहे हैं किन्तु जो भौतिकता आधुनिकता के रंग में रंग गए हैं वे इसे विकास के लिए आवश्यक बताते हैं

जो कुछ हम अध्ययन करें विद्यार्जन करें गहराई से करें उस पर मनन अवश्य करें इससे विवाद उत्पन्न न हों 

दुर्जन की विद्या विवाद हेतु , धन उन्माद के लिए , और शक्ति दूसरों का दमन करने के लिए होती है। सज्जन इसी को ज्ञान, दान  और दूसरों की रक्षा हेतु उपयोग करते हैं।


मैक्समूलर छद्मवेशी था कभी आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वह प्रोफेसर / हैड  था उसके बाद मैकडोनाल्ड हैड बना  वेदों पर आधारित उसकी लिखी पुस्तकें आज भी प्रैस्क्राइब की जाती हैं इन लोगों ने हमारे ऋषियों हमारे देवताओं हमारे ग्रंथों आदि को काल्पनिक बताया 

जिन ग्रंथों में भारतीय जीवन के हर पक्ष का वर्णन हो अखंड प्रवाह वर्णित हो वह काल्पनिक कैसे हो सकते हैं 

हमें भ्रमित किया गया 

हम यथार्थ की जानकारी से दूर हैं हम यथार्थ को जानने की चेष्टा करें निराशा त्यागें शक्ति बुद्धि कौशल विचार को उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रज्वलित करते रहें लेखन करें दुविधा से बचने के लिए अंग्रेजी का व्यामोह उतारें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संजय अस्थाना जी भैया निखिल जी की चर्चा क्यों की जेम्स मिल ने कैसे विकृतियां फैलाईं 

(वह भारत के बारे में कोई सकारात्मक विचार नहीं रखता था उसका मानना ​​था कि सभी एशियाई समाज यूरोप की तुलना में सभ्यता के निचले स्तर पर थे)

किस कवि की चर्चा में आचार्य जी ने ट्रेन का उल्लेख किया जानने के लिए सुनें

11.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०७८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  11 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७८ वां* सार -संक्षेप


शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा युगभारती के चार आयाम हैं इन पर चिन्तन  करने के लिए इन्हें पुनर्विश्लेषित करने के लिए हमारे सामने भूमिका स्पष्ट है


अस्ताचल देशों के कारण हम व्यामोहित हो गए थे  मैकाले आदि ने जान लिया था कि वैदिक ज्ञान अपार है अतुलनीय है इसी वैदिक ज्ञान को प्राप्त कर भारत के लोग अमरत्व के उपासक और विश्वासी हैं इस कारण इन्हें व्यामोहित करना आवश्यक है  आचार्य जी ने कुछ प्रसंग बताए कि कैसे मैकाले ने अपने उद्देश्य में सफलता पाने का प्रयास किया मैक्समूलर का उद्देश्य भी विद्वेषपूर्ण रहा  उसने वेदों को निकृष्ट बताने का प्रयास किया ये लोग अपने प्रयसों में सफल हुए अपनी कर्मठता को तिलाञ्जलि देकर हमें सुविधापूर्वक जीवन जीने की आदत पड़ गई, स्वावलम्बी बनने की चाह समाप्त हो गई 

अब परिवर्तन का समय है इसके लिए शिक्षा में सुधार आवश्यक है विद्यालय पाठ्यक्रम शिक्षक आदि में परिवर्तन आवश्यक है

वैदिक ज्ञान का प्रवेश पाठ्यक्रम में जरूरी है 


हम अपने को केन्द्रित कर लेते हैं  शासन सत्ता के परिप्रेक्ष्य में प्रशंसा और निन्दा करने में  

जब कि आत्मचिन्तन आत्ममन्थन आत्मोत्थान आवश्यक है 

हमारा धार्मिक चिन्तन इङ्गित करता है कि हर प्रभात हमारे जीवन का प्रभात होता है जीवन सतत है सतत जीवन के लिए विद्या और अविद्या दोनों को जानने की आवश्यकता है मरणधर्मा संसार में सांसारिकता के साथ अमरत्व का भी ध्यान आवश्यक है उस अमरत्व के लिए प्रयास भी हम करें जिसके लिए अध्ययन स्वाध्याय आवश्यक है फिर हमें प्रपंच सताएंगे नहीं 

प्राणायाम ध्यान धारणा दैनन्दिनी लेखन उत्साह प्रदान करेगा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रीकृष्ण देव जी, केशवचन्द्र, राजा राममोहन राय की चर्चा क्यों की मैक्समूलर ने देव को देवृ (देवर )क्यों लिखा,मैक्समूलर की पत्नी ने क्या प्रकाशित करवाया आदि जानने के लिए सुनें

10.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०७७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  10 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७७ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से अत्यन्त मूल्यवान स्वाध्याय और चिन्तन से ओतप्रोत आचार्य जी नित्य हमें जाग्रत उत्साहित उत्थित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है 

आचार्य जी द्वारा भावों को संप्रेषित करने का प्रभाव हमारे ऊपर पड़ रहा है 


हम अपने मन का मालिन्य दूर भगाएं , दंभ दूर करें,उत्फुल्लता उत्साह से लबरेज रहें

हमारी कल्पना में समाज स्वदेश स्वधर्म रहे 

 यह प्रयास आचार्य जी करते हैं 

इस समय समस्याएं गम्भीर हैं इन समस्याओं के समाधान हेतु हमारा एक दायित्व बनता है हम निश्चिन्त नहीं रह सकते  प्रत्यूह डालने में सदैव तत्पर रहने वाले दुष्टों को सबक सिखाने के लिए हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को जानना होगा इस कारण शिक्षकत्व महत्त्वपूर्ण हो जाता है 


हम सभी लोग किसी न किसी रूप में शिक्षक हैं

हम सभी में शिक्षकत्व का अंकुर भीतर अवस्थित है

 इस कारण अपने शिक्षकत्व को किसी भी तरह की परिस्थितियों में हमें जाग्रत रखना चाहिए


हमें नियमित रूप से मानसिक साधना करनी चाहिए और इसमें सातत्य रहना चाहिए

अपने अध्ययन अध्यापन की साधना गहन  करें

नित्य प्राणायाम, ध्यान,

दैनन्दिनी लेखन अवश्य करें 

शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता

हमें शिक्षकत्व की पूजा करनी चाहिए


बुद्धिवादी समाज के भय और भ्रम को दूर करने की आवश्यकता है क्योंकि 

भय और भ्रम सभी के लिए घातक है

हम सही प्रयास करेंगे तो परिणाम भी अच्छा आयेगा 

समाज परिणाम की पूजा करता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि अपना विद्यालय जब प्रारम्भ हुआ तो सेवा पूजा साधना के लिए शिक्षक आये पद प्रतिष्ठा के लिए नहीं उनमें 

भावना प्रमुख थी उनमें 

यशस्विता का स्वार्थ था


आचार्य जी ने पुस्तकों को पार्षद के रूप में कैसे परिभाषित किया, उन्नाव वाले अपने विद्यालय की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

9.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०७६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०७६ वां सार -संक्षेप


जो परिणाम हमें दिख रहे हैं उससे सिद्ध हो रहा है कि ये सदाचार वेलाएं फलीभूत हो रही हैं किसी भी कार्य जैसे अध्ययन चिन्तन मनन स्वाध्याय लेखन पूजन सदाचार -श्रवण को करने में यदि  बुद्धि और मन एक रूप होकर उसमें प्रवेश कर जाते हैं तो हमारे शरीर की शक्ति सामर्थ्य पराक्रम अनन्तगुणित हो जाते हैं 


कुछ अच्छी चीजें हमारे शीलन में रहती हैं तो कुछ बुरी भी यह संसार का स्वभाव भी है और स्वरूप भी



हम संसारी पुरुष हैं हमारे लिए संसार से निर्लिप्त रहना संभव नहीं यद्यपि भगवान् शंकराचार्य के लिए यह संभव था हम तो सामान्य मनुष्य है लेकिन यदि सामान्य मनुष्यत्व की अनुभूति भी यदि हमें होती रहे तो हमें कुछ भी बोझिल नहीं लगेगा


लेकिन जिसे देखें वही पीड़ित है दुःखी है भ्रमित  भयभीत असंतुष्ट है 

यह असंतुष्टता अविश्वास के कारण होती है


ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रवेश का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि अंग्रेजों ने यह निष्कर्ष निकाला कि  भारतवर्ष का साहित्य ही भारतवर्ष की प्राणिक ऊर्जा है और यदि हम इस साहित्य को मुसलमानों की तरह जला देते हैं  तो कोई लाभ नहीं क्योंकि ये  श्रुति स्मृति पर विश्वास करते हुए इसे याद कर लेते हैं इसलिए इन्हें विकृत करना हित में रहेगा


उन्होंने अंग्रेजी के प्रति लगाव पैदा किया ऐसा करने में मैकाले जैसे अनेक लोगों की भीड़ थी

 विलयती चीजों के प्रति आकर्षण में वृद्धि होने लगी भाव ही परिवर्तित हो गया लेकिन सबके भाव नहीं बदले


हम संघर्ष  करते ही रहते हैं 



आचार्य जी ने youtube के एक video की चर्चा की कि हमारा वास्तविक इतिहास कैसा था 

इसका link है 


https://youtu.be/Jg7mMyxnXJQ?si=ExXY88yjbBJ5g3Hi


हमें इस वास्तविक इतिहास से दूर करने के लिए आज भी दुष्ट सक्रिय हैं इन्हें निष्क्रिय करने के लिए हमें अध्ययन स्वाध्याय करना होगा संगठित भी होना होगा धन दौलत कमाने के साथ समाजोन्मुखी भी होना होगा तार्किक होना भी आवश्यक है 

हमें अपनी शौर्याग्नि को धधकाना होगा


प्रयास करना होगा कि स्वदेश भक्ति का सुरूर छाया रहे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी कौन सी कविताएं सुनाईं डा तुलसीराम वीर सावरकर तक्षक का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

8.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७५ वां* सार -संक्षेप


हम अपने यज्ञीय सुकर्मों से शिखर को स्पर्श करने के लिए प्रयत्नशील रहें,बिन्दु से सिन्धु तक की यात्रा के लिए उद्यत रहें,भय और भ्रम से दूर रहकर आनन्द -अर्णव में तैरैं,सनातन धर्म का परिपालन करें, अपनी परम्पराओं से प्रेम करें,अपने पूर्वजों की गौरव -गाथाओं को याद करें,धन के पीछे रार न ठानें, भरपूर स्नेह से भरे दिए जलाते रहें,ईर्ष्या वैमनस्य का कर्दम दूर करें,पश्चिम की देखा देखी नकल न करें, चरैवेति का मन्त्र याद रखें, भारत भा -रत हो इसके लिए  शुचिता कर्मठता का पर्याय बनी वास्तविक शिक्षा को महत्त्व देने का प्रयास करें,हम विश्व -गुरु बनें, आचरण -शुद्धता पर पूर्णरूपेण विश्वास करें, समाजोन्मुखी दृष्टि रखें, आत्मविश्वासी चिन्तक विचारक बनें इसके लिए आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं हम धन्य हैं कि हमें उनका यह सान्निध्य प्राप्त है और हमारा जन्म तप  त्याग समर्पण कर्म की धरती भारत भूमि में हुआ है इसके लिए भी धन्य हैं



ऐनी बेसेंट ने कहा था विश्व के महान् धर्मों और पंथों के अपने चालीस वर्ष के अध्ययन के पश्चात् मैंने यह पाया कि हिन्दू धर्म जितना संपूर्ण, विज्ञान- सम्मत,दार्शनिक और आध्यात्मिक है उतना दूसरा कोई नहीं

ऐसी विदुषी महिला थीं ऐनी बेसेंट 

दूसरी ओर मूर्ख लोगों की भी कमी नहीं है जो सनातन धर्म का मजाक उड़ाते हैं 

हमें मूर्ख लोगों के भ्रम जाल में नहीं फंसना चाहिए

१७ सितम्बर २०११ को लिखी आचार्य जी ने अपनी कविता सुनाई 


चिन्ता है भारत में क्यों भ्रष्टाचार बढ़ा...

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा दीपक सिंह जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

7.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष  द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७४ वां* सार -संक्षेप



इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उत्साहित करते हैं यह हमारे लिए सौभाग्य का विषय है 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि  अपने जीवन में हमें परमात्मा ने जितनी शक्ति और सीमा प्रदान की है, उसका उसी की सेवा-पूजा में सदुपयोग करते हुए हम सोत्साह आगे बढ़ते रहें अनथक अनवरत। इसमें हम अपने लक्ष्य ओझल न होने दें  भय और भ्रम से दूर रहें यह ध्यान रखें कि हमारा स्वार्थ सदैव परार्थोन्मुख रहे और सदा इसी भाव से भावित रहे कि हमारे द्वारा किसी प्राणी को उद्वेग प्राप्त न हो और हमें स्वयं भी किसी प्राणी से उद्वेग न हो क्योंकि भगवान् को ऐसा ही भक्त प्रिय है जो संयतात्मा, दृढ़निश्चयी और सन्तुष्ट है, जो अपने मन और बुद्धि को उन्हीं में अर्पित किए है 

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं 

अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।


सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः। १२/१६

जो अपेक्षारहित, शुद्ध, दक्ष, उदासीन, व्यथा से रहित और सारे कर्मों का संन्यास करने वाला है 

वह मुझे प्रिय है 


इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि हम सभी को अपने परमपिता का प्रिय पुत्र बनने का चाव है।

6.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७३ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी जिनके पास अद्भुत दृष्टि है एक शिक्षक के रूप में नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है आचार्य जी हमारी आत्मज्योति जलाने के लिए तत्त्व के भाव प्रेषित करते हैं जिनका लाभ उठाकर हम गम्भीर से गम्भीर समस्याओं का समाधान आसानी से निकाल सकते हैं भ्रमित होने से बच सकते हैं भटकने से बच सकते हैं निराशा से दूर रह सकते हैं  शान्ति शक्ति भक्ति कौशल बुद्धि विचार व्यवहार प्राप्त कर सकते हैं यही शिक्षकत्व का मूल तत्त्व है 

जिस शिक्षक में दृष्टि, जिसका भावों पर आधार है ,नहीं होती वह सृष्टि नहीं रच सकता 

शिक्षा ब्राह्मणत्व की आधारभूमि है शिक्षा को समझने की बड़ी आवश्यकता है  शिक्षा ज्ञान का सोपान है यूं तो हम सभी शिक्षक हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं 

जिनमें शिक्षकत्व का अभाव है हमें उनसे प्रभावित नहीं होना चाहिए हम उनसे सहानुभूति रख सकते हैं 

आज की शिक्षा भिन्न प्रकार की है

हमें शिक्षा को गम्भीरता से लेना चाहिए

हमें अध्ययन की इसी कारण आवश्यकता है कि हम दैत्य परम्परा से संघर्ष करने में भ्रमित न हों और अपने को विशुद्ध भी बनाए रखें

यदि हम भ्रमित होंगे तो अपना रास्ता पा भी नहीं सकते लक्ष्य हमसे दूर रहेगा 

आज की शिक्षा में यही सब नहीं बताया जाता वह केवल नौकरी के लिए बनी है पैसा कमाने के लिए बनी है वह हमें न तो स्वावलम्बी बनाती है न हमें सुरक्षा देती है न ही हमें स्वस्थ रखती है 

मनुष्य जब पैसा कमाने की मशीन बन जाता है तो उसके भीतर भाव भक्ति समाप्त हो जाती है 

जो भरा नहीं भावों से......

इसी कारण वह पशु के समान हो जाता है 

धन साधन है साध्य नहीं 


आचार्य जी प्रायः परामर्श देते हैं कि हमें रामचरित मानस का पाठ अवश्य करना चाहिए तुलसीदास ने भावों से भरी रामकथा को सामान्य भाषा में प्रस्तुत कर दिया इसमें इतिहास भूगोल मनोविज्ञान राजनीति दर्शन अर्थशास्त्र आदि बहुत कुछ है 

इसी तरह गीता है महाभारत है 

गोविन्द स्वामी जी कहते हैं 

Mahabharat is the greatest work on psychopathology 

i. e.the scientific study of mental illness or disorders

एक शिक्षक को इसका ज्ञाता होना चाहिये

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण सारस्वत जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

5.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७२ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हम सद्विचार ग्रहण करते चले आ रहे हैं जिनका सदुपयोग करके हम सुयोग्य संस्कारवान् शक्तिसम्पन्न तेजस्वी कर्मनिष्ठ आदि बन सकते हैं 

आचार्य जी ने स्वयंसेवक  का अर्थ स्पष्ट किया 

स्वयं की प्रेरणा से जो अपनी शक्ति बुद्धि विचार से राष्ट्र -सेवा के लिए प्रवृत्त हो उसे स्वयंसेवक कहते हैं 

जब प्रातः हम उठते हैं 

तो प्रायः प्रातः स्मरण करते हैं 

कराग्रे वसते लक्ष्मी.....

इसी में एकात्मता स्तोत्र संयुत कर दिया गया जो भारत की राष्ट्रीय एकता का उद्बोधक गीत है इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में भी गाया जाता है

इसी का अंश है 

चतुर्वेदाः पुराणानि सर्वोपनिषदस्तथा

रामायणं भारतं च गीता सद्दर्शनानि च ॥८॥


जैनागमास्त्रिपिटकाः गुरुग्रन्थः सतां गिरः

एषः ज्ञाननिधिः श्रेष्ठः श्रद्धेयो हृदि सर्वदा ॥९॥

वेदों पुराणों उपनिषदों आदि के प्रति हमारी श्रद्धा हो 


शिक्षा के संबन्ध में एक सुस्पष्ट विचार है 

शिक्षा अर्थात् संस्कार 

संस्कार अर्थात् विचार 

विचार अर्थात् शक्ति 

हम  स्वदेश के लिए स्वधर्म के लिए शक्ति अर्जित करें 


स्वधर्म स्वदेश भारतीय सनातन चिन्तन का एक मौलिक आधार है 

हम संघर्ष करते चले आ रहे हैं फिर भी मिटे नहीं 

जीवित हैं और जाग्रत होने के लिए उत्सुक हैं 

यह उत्सुकता बनी रहे इसका आधार है शिक्षा


समय का परिवर्तन अद्भुत होता है  अरब से उठे तूफान से हम भी प्रभावित हो गए  हमारे ग्रंथों की व्याख्याएं काफी समय तक बन्द रहीं दुष्टों ने अपने बल पर विध्वंस प्रारम्भ कर दिए ग्रंथागार भी जलाए गए नालंदा का उदाहरण हमारे सामने है

नालंदा विश्वविद्यालय पर तीन बार आक्रमण हुआ  परन्तु सबसे विनाशकारी हमला ११९३ में हुआ  जिसमें दुष्ट बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया


फिर अंग्रेज आ गए 

हमारे अन्दर की सरलता सज्जनता का उन लोगों ने लाभ उठा लिया

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले...


मैक्समूलर भी दुष्ट था उसने 

वेद के उलटे सीधे अनुवाद किए 

उसने हमारे ज्ञान के मूल 

को बेकार बताया 

उस समय भी अपार धन देकर शिक्षित लोगों को व्यामोहित किया जा रहा  था आज भी यही चल रहा है इस कारण हमें सचेत रहने की आवश्यकता है

आज अंग्रेजी बोलने वाले को हम विद्वान् समझते हैं जब कि ऐसा नहीं होना चाहिए 

 शिक्षा के माध्यम से हम नई पीढ़ी को जाग्रत कर सकते हैं 

उसे हर हाल में समझाना होगा समाज का शुद्धिकरण आवश्यक है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नाना जी देशमुख का उल्लेख क्यों किया आदि जानने के लिए सुनें

4.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आषाढ़ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७१ वां* सार -संक्षेप



यह संसार असार सारमय अद्भुत गजब खिलौना है 

कुश कांटों के परिधान पहनकर भी सुन्दर है लोना है

हम खेल रहे इससे या फिर ये हमको खेल खिलाता है 

गतिमयता इतनी अधिक नहीं कुछ साफ समझ में आता है 

सब पढ़ा सुना इसके आगे बेकार दिखाई देता है

लगता भर है दे रहा मुझे पर सब कुछ मुझसे लेता है...



संसार में मनुष्य को परमात्मा द्वारा जो चिन्तन और विचार दिया गया है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और अद्भुत है

इसी के आधार पर मनुष्य समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो जाता है  मनुष्य वही है जो प्रयास में रत रहता है 

दिव्यभूमि भारत, जहां भावनाओं की आहुतियां दी जाती रही हैं,में चिंतन की परंपरा बहुत प्राचीन और समृद्ध है।यहां चिंतन का महत्व अत्यन्त उच्च माना गया है और इस चिन्तन ने समाज, संस्कृति, धर्म और राजनीति के विभिन्न पहलुओं को आकार दिया है हमें इस दिव्यता की अनुभूति होनी चाहिए


भारत की सेवा सहायता सुरक्षा के लिए अनन्तकाल से महायज्ञ चल रहा है हम युगभारती के सदस्य भी इसी भाव का आधार लेकर कार्य और व्यवहार करने में संलग्न है हमने अपना लक्ष्य भी बना रखा है कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् 

पं दीनदयाल जी भी इसी भाव की प्रतिमा बनकर जिए और जूझे 

हम लोग उनके विचारों के पल्लवन के लिए उत्साहित हुए संकल्पित हुए सनातन जीवनशैली को अपनाने के लिए प्रेरित हुए


यह देश विधाता की रचना का प्रतिनिधि है 

सत रज तम के साथ बनी युति सन्निधि है 

परमात्म तत्त्व की लीला का यह रंगमंच 

इसमें  दर्शित होते जगती के सब प्रपंच 

यह जनम जागरण मरण सभी का द्रष्टा है 

यह आदि अन्त का वाहक शिव है स्रष्टा है

हम हुए अवतरित पले बढ़े तम से जूझे 

विश्रान्त शान्त रहकर रहस्य हमको सूझे


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम सब कुछ करें लेकिन विचारों से दूर न रहें विचारों को कर्म में परिवर्तित करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने समस्याओं से संबन्धित कौन सी कविता सुनाई आचार्य श्री जे पी जी से संबन्धित कौन सा प्रसंग सुनाया  भैया अजय शंकर जी भैया प्रवीण भागवत जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें

3.7.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०७० वां* सार -संक्षेप

कुछ दुष्ट लोगों को उत्पात करना बहुत अच्छा लगता है 

उत्पात के लक्षणों से यदि हम भयभीत हो जाएंगे तो उत्पाती उत्साहित हो जाएंगे उत्पाती तभी उत्साहित होता है जब शक्तिसम्पन्न  शान्त व्यक्ति शक्ति की अनुभूति नहीं करता


जब कि हमारा शास्त्र कहता है डरो मत 

भय अनेक प्रकार का होता है इसलिए किसी भी भय से भयभीत नहीं होना चाहिए

यदि इसके बाद भी हम भयभीत होते हैं तो इसका अर्थ है हमारा अध्ययन और स्वाध्याय कमजोर है

उन्नति विकास स्वास्थ्य शक्ति बुद्धि भक्ति विचार चिन्तन मनन दुष्टों के नाश शिष्टों के विकास की तरह ये स्थायी विषय हैं इन्हीं विषयों का उल्लेख इन सदाचार संप्रेषणों में होता है इस कारण ये हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं

हमें प्रेरित उत्साहित करने के लिए आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय दे रहे हैं यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हमें परिस्थितियों को भांपना चाहिए अथर्ववेद में महाशान्ति विधि में इन्हीं सब बातों का उल्लेख है 

विधि से मुक्त होकर हम चुप्पी साधकर बैठे रहें और सब अच्छा होता रहे यह संभव नहीं इसीलिए हमें अपने लक्ष्य का सदैव ध्यान रखना चाहिए 

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्


राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 


कृण्वन्तो विश्वमार्यम्


अखंड भारत 

व्यक्ति व्यक्ति के सामने लक्ष्य है क्योंकि हम संसार के अंग हैं इस परिवर्तनशील संसार, जिसे मिथ्या ज्ञान से उत्पन्न वासना कहा गया है,में कौन नहीं जन्मा कौन नहीं मरा 

लेकिन वही व्यक्ति सच्चा

जीवन जीता है जिससे उसका वंश उन्नति और प्रसिद्धि प्राप्त करता है |


स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम् । परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ।।

ये मनुष्य के लिए ही संभव है क्योंकि मनुष्य कर्मयोनि में है कर्मयोनि का मनुष्य जब भोगयोनि में भ्रमित हो जाता है तो उसकी कर्मचेष्टाएं कुंठित हो जाती हैं 

कूर्मपुराण में ईश्वर गीता के अनुसार 

संसार की एक अत्यन्त रोचक परिभाषा है 

आत्मा परमार्थतः चैतन्य है माया और प्राण नहीं किन्तु अज्ञान से वह अपने को कर्ता सुखी दुःखी दुबला मोटा कहता है 

इस संसार में रहते हुए कुछ क्षणों के लिए संसारत्व से मुक्त होना आवश्यक है इन सदाचार वेलाओं का मूल भाव यही है 

हम कौन हैं हम कैसे हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 


इसके अतिरिक्त अथर्वा ऋषि की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की भैया कै० शिवेन्द्र जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ राजनीति के विषय में क्या बात कही आदि जानने के लिए सुनें

2.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०६९ वां* सार -संक्षेप



इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से नित्य आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के आधार को लेकर देश और समाज के लिए उत्साहित ऊर्जस्वित सक्रिय हो सकें  हम आत्मविश्वासी आत्मसंयमी बन सकें खाद्य अखाद्य पर ध्यान दे सकें सामञ्जस्यपूर्ण संतुलित जीवन जी सकें

अपना और अपनों का विकास कर सकें चिन्तन मनन ध्यान धारणा निदिध्यासन लेखन के लिए प्रेरित हो सकें शक्ति भक्ति सामर्थ्य पराक्रम पा सकें इसके लिए नित्य वे  हमें अपना बहुमूल्य समय दे रहे हैं यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है

विषम परिस्थितियों में भी इन संप्रेषणों का नैरन्तर्य आश्चर्य का विषय है


संसार-समर में संघर्ष है इस कारण हमें खड्ग शूल गदा धनुष -बाण आधुनिक अस्त्र शस्त्र सब चाहिए हम भय भ्रम से दूर रहें शैथिल्य से विमुख रहें 

गीता एक अद्भुत ग्रंथ है 

अर्जुन भी शिथिल खड़े हैं भ्रमित हैं भगवान् कृष्ण समझाते चले आ रहे हैं भगवान् उन्हें दिव्य नेत्र देते हैं अर्जुन के सारे तर्क विलुप्त हो जाते हैं


पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।


नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।11.5।।


भगवान् अपना विराट् रूप दिखा देते हैं


आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब से संबन्धित कुछ प्रसंग बताए 

और बताया कि आचार्य श्री आनन्द जी ने  बहुत परिश्रम करके Porch में गीता के छंद लिखे थे 

आचार्य जी ने youtube पर उपलब्ध उस साक्षात्कार की चर्चा की जिसमें सिद्धान्तवादी नाना पाटेकर ने किसानों का अत्यन्त मार्मिक वर्णन किया है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ द्विवेदी,भैया आशीष जोग का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

1.7.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आषाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 जुलाई 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १०६८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है   आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  आषाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 जुलाई 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १०६८ वां सार -संक्षेप

सांसारिक कार्यव्यवहार में लगे रहते हुए हम लोग सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने के लिए लालायित रहते हैं यह हनुमान जी की महती कृपा है उनका प्रसाद है प्रसाद पूर्णरूपेण आत्मसात् किया जाता है


हम इनके माध्यम से स्वयं  पढ़ें औऱ संसार को भी पढ़ाएं ऐसी अवस्था में हम जीवनमुक्त स्थिति में आ जाते हैं अर्थात् शरीर के रहते हुए भी मोक्ष का अनुभव कर लेना जीवन मुक्त अवस्था कहलाती है


उस व्यक्ति को अद्भुत अनुभूति होती है जिसको तत्त्व का साक्षात्कार हो जाता है अर्थात् कि हम कौन हैं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

यह अनुभूति जब अभिव्यक्ति में बदल जाती है तो वह दिव्य अत्यन्त प्रभावशाली साहित्य हो जाता है

निर्वाणषट्कम् में आता है...


मैं बिना किसी परिवर्तन के , बिना किसी आकार के हूँ 

मैं हर स्थान पर सभी वस्तुओं के आधार के रूप में और सभी इंद्रियों के पीछे उपस्थित हूँ ,

 न तो मैं किसी वस्तु से आसक्त होता हूँ , न ही किसी वस्तु से मुक्त होता हूँ मैं सदा शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ  मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ

ये अभिव्यक्तियां स्पष्ट कर रही हैं कि यह अनुभूति भगवान् शंकराचार्य को हुई 

हम लोग भगवान् शंकराचार्य के इन गुणों से प्रभावित होकर आनन्दित हो जाते हैं 

विद्यालयों में इस प्रकार के साहित्य की चर्चा अवश्य होनी चाहिए वहां मनुष्यत्व का अनुभव कराने वाली संस्कारमय शिक्षा दी जानी चाहिए 


विद्यालय का अर्थ है जहां शिक्षा के माध्यम से विद्या प्रदान की जाती है और विद्या प्राप्त की जाती है 

आचार्य जी ने प्रारब्ध कर्म की चर्चा की जो बहुत दिनों बाद भी प्रतिफलित हो सकता है याद करिये धृतराष्ट्र और भगवान् कृष्ण का संवाद 


तत्त्वज्ञान रूपी अग्नि संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण--तीनों कर्मों को भस्म कर देती है।

जीवनमुक्ति की दो अवस्थाएं हैं 

समाधि और उत्थान 

समाधिस्थ व्यक्ति संसार और समाज के संपर्क में नहीं रहता 

आचार्य जी ने उत्थान अवस्था को स्पष्ट किया और यह भी बताया कि इसका अभ्यास कठिन है 

मन और मस्तिष्क की शक्ति से हम शरीर को संवार सकते हैं क्योंकि शरीर हमारा मृत नहीं हुआ है काम कठिन है लेकिन संभव है 

आचार्य जी ने प्राणायाम और सही खानपान पर भी जोर दिया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अनिल महाजन के लिए क्या परामर्श दिया 

विभिन्न रोगों का औषधोपचार क्या है जानने के लिए सुनें