प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
११२९ वां सार -संक्षेप
स्थान :उन्नाव
संसार हमें सताता ही है लेकिन हमें उसे झेलने की यदि शक्ति प्राप्त करनी हो तो ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त उपयुक्त हैं तो आइये स्वावलम्बी बनने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में
प्रेम,आत्मीयता और एक दूसरे के प्रति आदर का भाव एक संगठन के लिए ये अत्यन्त आवश्यक तत्त्व हैं समाज के लिए भी
हमें प्रयास करना चाहिए कि ये तत्त्व समाप्त न हो पाएं अन्यथा हम संगठित नहीं रह सकते और जब संगठित नहीं रहेंगे तो दुर्बल असहाय भी दिखेंगे इसीलिए प्रेम आत्मीयता की हम अनदेखी न करें तम से जूझने का संकल्प लें
तम से जूझने का संकल्प लिए आचार्य जी के भारत देश,जहां के अवतरित हुए एक एक व्यक्ति को तत्त्व ज्ञान है, के प्रति अत्यन्त अद्भुत भावों, क्यों कि आचार्य जी ने भारत देश को एक पूजा स्थल माना है, को प्रकट करती ये पंक्तियां देखिये
यह देश विधाता की रचना का प्रतिनिधि है
सत रज तम के साथ बनी युति सन्निधि है
परमात्म तत्त्व की लीला का यह रंगमंच
इसमें दर्शित होते जगती के सब प्रपंच
यह जनम जागरण मरण सभी का द्रष्टा है
यह आदि अन्त का वाहक शिव है स्रष्टा है
हम हुए अवतरित पले बढ़े तम से जूझे
विश्रान्त शान्त रहकर रहस्य हमको सूझे
कवित्व यही है इसी कारण कहा जाता है
कवयः क्रान्तदर्शिनः
कवि के मन में विचार आते हैं वह चिन्तन करता है फिर उसे व्यक्त करता है आनन्दित होता है और जो उन भावों को ग्रहण करते हुए सुनता है तो ऐसे श्रोता भी आनन्दित हो जाते हैं
और वास्तव में कविता, जिसमें भटके राही को राह दिखाने की क्षमता है,है भी अत्यन्त विलक्षण
कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है
हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है
वरदान भारती का है ये शिव का संयम
शुभ सुखद सहज करती जीवन का पथ दुर्गम
कविता की बान अनोखी है अलबेली है
पीड़ाओं की सहचरी अभाव सहेली है
यह ज्योति अमावस की प्रभात का सूरज है
संगम का जल वृन्दावन की पावन रज है
कवि कर्म धर्म की बान जिसे भा जाती है
सपनों की दुनिया नयनों में छा जाती है
कवि की वाणी में सत्य शक्ति प्रेरणा भरी
संकट के तूफानों से यह जूझती तरी
कविता कल्याणी कीर्ति कर्म की धारा है
जूझती तरी के लिए सुरम्य किनारा है
आनन्द विधायी सत्य तत्त्व की राह सरल
अधरों पर अमृत है अन्तर में पचा गरल
कविता का सत्य हृदय में भर देता उछाह
शीतल कर देता अन्तस्तल का विषम दाह
भटके राही को राह दिखाती कविता है
कविता रजनी में चांद दिवस में सविता है
आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त उनाव विद्यालय के विषय में क्या बताया भैया पवन जी,भैया वीरेन्द्र जी,सुमन जी, जय शंकर प्रसाद का नाम क्यों लिया वास्तव में शिक्षा है क्या सुरक्षा क्या है स्वास्थ्य क्या है जानने के लिए सुनें