31.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  31 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२९ वां सार -संक्षेप


स्थान :उन्नाव 



संसार हमें सताता ही है लेकिन हमें उसे झेलने की यदि शक्ति प्राप्त करनी हो तो ये सदाचार संप्रेषण अत्यन्त उपयुक्त हैं तो आइये  स्वावलम्बी बनने के लिए प्रवेश करें आज की वेला में 


प्रेम,आत्मीयता और एक दूसरे के प्रति आदर का भाव एक संगठन के लिए ये अत्यन्त आवश्यक तत्त्व हैं समाज के लिए भी 

हमें प्रयास करना चाहिए कि ये तत्त्व समाप्त न हो पाएं अन्यथा हम संगठित नहीं रह सकते और जब संगठित नहीं रहेंगे तो दुर्बल असहाय भी दिखेंगे इसीलिए प्रेम आत्मीयता की हम अनदेखी न करें तम से जूझने का संकल्प लें 


तम से जूझने का संकल्प लिए आचार्य जी के भारत देश,जहां के अवतरित हुए एक एक व्यक्ति को तत्त्व ज्ञान है, के प्रति अत्यन्त अद्भुत भावों,  क्यों कि आचार्य जी ने भारत देश को एक पूजा स्थल माना है, को प्रकट करती ये पंक्तियां देखिये 


यह देश विधाता की रचना का प्रतिनिधि है 

सत रज तम के साथ बनी युति सन्निधि है 

परमात्म तत्त्व की लीला का यह रंगमंच 

इसमें  दर्शित होते जगती के सब प्रपंच 

यह जनम जागरण मरण सभी का द्रष्टा है 

यह आदि अन्त का वाहक शिव है स्रष्टा है

हम हुए अवतरित पले बढ़े तम से जूझे 

विश्रान्त शान्त रहकर रहस्य हमको सूझे


कवित्व यही है इसी कारण कहा जाता है 

कवयः क्रान्तदर्शिनः

कवि के मन में विचार आते हैं वह चिन्तन करता है फिर उसे व्यक्त करता है आनन्दित होता है और  जो उन भावों को ग्रहण करते हुए सुनता है तो ऐसे श्रोता भी आनन्दित हो जाते हैं

और वास्तव में कविता, जिसमें भटके राही को राह दिखाने की क्षमता है,है भी अत्यन्त विलक्षण 


कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है

हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है


वरदान भारती का है ये शिव का संयम


शुभ सुखद सहज करती जीवन का  पथ दुर्गम


कविता की बान अनोखी है अलबेली है

 पीड़ाओं की सहचरी अभाव सहेली है

यह ज्योति अमावस की प्रभात का सूरज है

संगम का जल वृन्दावन की पावन रज है

कवि कर्म धर्म की बान जिसे भा जाती है

सपनों की दुनिया नयनों में छा जाती है

कवि की वाणी में सत्य शक्ति प्रेरणा भरी

संकट के तूफानों से यह जूझती तरी

कविता कल्याणी कीर्ति कर्म की धारा है

जूझती तरी के लिए सुरम्य किनारा है

आनन्द विधायी सत्य तत्त्व की राह सरल 

अधरों पर अमृत है अन्तर में पचा गरल

कविता का सत्य हृदय में भर देता उछाह

शीतल कर देता अन्तस्तल का विषम दाह

 भटके राही को राह दिखाती कविता है

कविता रजनी में चांद दिवस में सविता है


आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त उनाव विद्यालय के विषय में क्या बताया भैया पवन जी,भैया वीरेन्द्र जी,सुमन जी, जय शंकर प्रसाद का नाम क्यों लिया  वास्तव में शिक्षा है क्या सुरक्षा क्या है स्वास्थ्य क्या है जानने के लिए सुनें

30.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२८ वां सार -संक्षेप

 स्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२८ वां सार -संक्षेप



संसार का स्वभाव ऐसा है कि उथल पुथल चलती रहती है कब क्या होगा कैसे होगा क्यों होगा पता नहीं चलता कुछ लोग इसी में चिन्तित रहते हैं भ्रमित रहते हैं भयभीत भी रहते हैं 

वैसे तो अर्जुन स्वस्थ हैं लेकिन मन से बीमार हैं युद्ध स्थल में वे भ्रमित हैं सामने अपने खड़े हैं सामने आदरणीय लोग दिख रहे हैं गांडीव सरक रहा है शरीर पसीने पसीने हो रहा है 

अर्जुन ऊहापोह में है कि इन पर बाण कैसे चलेंगे 

यह तो मर्यादा के विपरीत है 

तो अर्जुन के बहाने एक लम्बा सा प्रवचन हम लोगों के लिए है 

गीता में दूसरे तीसरे चौथे पांचवे अध्याय अत्यन्त व्यावहारिक अध्याय हैं 

पांचवे अध्याय में अर्जुन सीधे सीधे पूछता है



संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।


यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।।5.1।।


आप कर्मों के संन्यास और योग (कर्म का आचरण) की प्रशंसा करते हैं। इन दोनों में जो भी निश्चयपूर्वक श्रेयस्कर हो उसको बताइये



तो भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं 

कर्मसंन्यास और कर्मयोग  दोनों ही परम कल्याणकारक हैं परन्तु उन दोनों में कर्मयोग श्रेष्ठ है


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि मूर्तिपूजा लोग क्यों करते हैं मूर्ति में संपूर्ण विश्वास को वे टिका देते हैं 



ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।


निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5.3।।


जो व्यक्ति न किसी से द्वेष करता है और न ही किसी की आकांक्षा,  वह सदैव संन्यासी  समझने योग्य है 

कारण स्पष्ट है द्वन्द्वों से रहित व्यक्ति सहज ही बन्धन मुक्त हो जाता है

आचार्य जी ने न्यास का अर्थ स्पष्ट किया किसी भी वस्तु भाव विचार को एक स्थान पर स्थापित कर देना न्यास कहलाता है 

जैसे शिलान्यास 



युगभारती भावों का विस्तार है हमने प्रतिज्ञा की है कि जीवन पर्यन्त हम समाज और देश के लिए समर्पित रहेंगे 

आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हमारे भीतर राष्ट्र -भक्ति प्रज्वलित रहे 

हम संकटों से जूझने के रास्ते निकालते रहें 


आज उन्नाव स्थित सरस्वती विद्या मन्दिर विद्यालय का स्थापना दिवस है और उसके संस्थापक अर्थात् हमारे आदरणीय भाईसाहब का जन्मदिवस है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन जी भैया पंकज जी भैया मलय जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

29.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२७ वां सार -संक्षेप

 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२७ वां सार -संक्षेप

स्थान :उन्नाव 


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि  आगामी २१/२२ सितम्बर को होने जा रहे राष्ट्रीय अधिवेशन में हम लोग अपने कर्तव्य और व्यवहार का सामञ्जस्य बैठाएं


इस अधिवेशन से हम समाज को एक संदेश देने जा रहे हैं उसमें एक विश्वास जगाने जा रहे हैं उसका भ्रम दूर करने जा रहे हैं ताकि उसे समझ में आ जाए कि सर्वत्र तिमिर ही व्याप्त नहीं है स्थान स्थान पर कुछ प्रकाश के पुञ्ज अभी भी दिखाई दे रहे हैं इस कारण भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है

28.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२६ वां सार -संक्षेप


स्थान :उन्नाव


जहां जितना अधिक प्रेम होता है, आत्मीयता होती है  उतना ही अधिक विश्वास बढ़ जाता है 

जो ईश्वर के प्रति विश्वासी व्यक्ति हैं उनके मन का प्रेम सीमातीत होता है 

सात्विक शुद्ध तात्विक प्रेम लेकर हम अवतरित होते हैं किन्तु जैसे जैसे संसार हमसे लिप्त होता जाता है वह शुद्ध सात्विक प्रेम विलुप्त होने लगता है

इसी कारण  विकार रहित बाल्यावस्था शैशवावस्था ईश्वर का रूप होती है 

सात्विक कौन है?

गीता, जिसके छंद हमें व्यवहार भी सिखाते हैं,के निम्नांकित श्लोक के अनुसार 


मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।


सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।


जो कर्ता राग रहित, अहंमन्यता से भी रहित, किन्तु धैर्य और उत्साह से युक्त  है एवं कार्य की सफलता असफलता में निर्विकार  है, वह सात्त्विक कहा जाता है।

सात्विक कर्ता संसार के भौतिक गुणों के संसर्ग से बिना प्रभावित हुए रहता है 

इसी तरह राजस कौन है 

जो रागी, कर्मफल की इच्छा रखने वाला , लोभी,स्वभाव से हिंसक है , अशुद्ध है अर्थात् जिसमें खाद्याखाद्य विवेक आदि नहीं है और हर्ष व शोक से युक्त है वह राजस है।

इसी तरह तामसिक कर्ता वह है जो 

असावधान, अशिक्षित, ऐंठने वाला,अकड़ वाला, जिद्दी, उपकारी का बुरा करने वाला, विषादयुक्त और आलसी है और तो और वह नियमविरुद्ध कार्य करता है 

राजनैतिक मञ्चों पर आजकल हम लोग तीनों  तरह के कर्ता देख सकते हैं कुछ समय पहले दो ही तरह के दिखाई देते थे बहुत पहले भी तीनों तरह के कर्ता थे जैसे आचार्य नरेन्द्र, मदन मोहन मालवीय सात्विक श्रेणी में गिने जाते थे 

इस समय तो तामसिकों का बोलबाला है उन्हीं के बीच में हम लोग हैं 

हम कभी सात्विक कभी राजसिक और कभी तामसिक भी हो जाते हैं 

किन्तु हम अपनी समीक्षा भी करते हैं हमें अपनी समीक्षा करनी भी चाहिए

उचित खानपान पर ध्यान दें व्यवहार ऐसा करें कि किसी आत्मीय को बुरा न लगे  अपने धर्म अपनी संस्कृति अपनी भाषा पर विश्वास करें आत्मसमीक्षा महत्त्वपूर्ण है 

अपने लिए जो प्रयोग करें उन्हें अपनी डायरी में स्थान दें जो अपनों के लिए करना चाहते हैं उन्हें प्रकाशित करें 

नए लोगों को खोजिए जिनमें सात्विक कर्तापन हो राजसिक कर्तापन हो तामसिक कर्ताओं में भी गुणों को देखने का प्रयास करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कालीचरण इंटर कालेज का नाम क्यों लिया विद्यालय में किन पर प्रयोग किया जानने के लिए सुनें

27.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२५ वां सार -संक्षेप


श्रीमद्भग्वद्गीता का दूसरा अध्याय इस ग्रंथ का तत्त्व है इसमें ७२ छंद हैं 

इसी में एक  अत्यन्त प्रसिद्ध छंद है 


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


हमारे देश का एक अद्भुत अध्यात्मवादी चिन्तन है कि हम सफलता असफलता का ध्यान न रखते हुए  कर्तव्य कर्म में रत रहें

सर्वज्ञानी शिक्षक श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि फल की इच्छा न करते हुए हम कर्म करते रहें 

कोई कहे कि वह कुछ नहीं करेगा तो यह संभव नहीं जीने के लिए सांस तो हमें लेनी ही होगी क्षुधा पूर्ति तो करनी ही होगी 

आगे भगवान् कहते हैं 


योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।


सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।

 हे अर्जुन आसक्ति  त्याग कर तथा सिद्धि / असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित होकर तुम कर्म करने में ध्यान दो यह समभाव ही योग  है।

कर्म तो करना ही है कर्म न करना अपराध है 

युद्ध क्षेत्र में  हैं तो युद्ध तो करना ही पड़ेगा  

सैनिक हो शिक्षक हो अधिवक्ता हो उसके लिए जो निर्धारित कर्म है वह उसे करना ही है यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह उपेक्षा का शिकार हो जाएगा 

क्षण क्षण में कण कण पर कर्म की योजना है 


बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।


तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।।

ये सारे छंद विचारणीय हैं 

कर्म करें कर्म में लिप्त न हों यह अध्यात्म है 

लेकिन वास्तविक अध्यात्म को शौर्य से प्रमंडित होना ही चाहिए 

माला जपना अध्यात्म नहीं है 

शौर्यविहीन अध्यात्म के कारण ही हमारे ऊपर इतने संकट आए शौर्याग्नि अत्यन्त आवश्यक है हमारा द्रष्टा ऋषि अध्यात्म के इस प्रकार से परिचित रहा है

तभी रावण ऐसे शौर्य पराक्रम शक्ति से युक्त ऋषि से भयभीत रहता था वह साधकों से उलझता था शौर्य प्रमंडित अध्यात्म मानवता को जीवन जीने का ज्ञान देता है 

संसार में हमें अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो संसार हमें समझना ही होगा 



जग स्वप्न सत्य माया मिथ्या का आडंबर ढोते ढोते

सुख सपनों का संसार सजाते रहते जो रोते रोते

वे सचमुच में अध्यात्मशक्ति से वंचित हैं सब बेचारे 

जीवन भर भटके भूले फिरते रहते हैं मारे मारे।

अध्यात्मवादियो ! एक बात समझो मेधा के तन्तु खोल

अध्यात्म नहीं माला जपना अथवा केवल जय जयति बोल 

अध्यात्म शक्ति संयम विवेक पौरुष परार्थ का चिन्तन है।

वह ज्ञान भक्ति वैराग्य शक्ति कर्मानुराग का मन्थन है

इस मंथन से संभूत तत्व-नवनीत जिस किसी ने जाना 

उसके विवेकमय संसारी उपयोग विधा को पहचाना 

वह द्रष्टा ऋषि अध्यात्म शक्ति के तत्व सत्व का गायक है 

वह ही संपूर्ण धरित्रि के जीवन का भाग्य विधायक है।

उसने ही इस मानवता को जीवन जीने का ज्ञान दिया 

अणु से विभु तक की यात्रा का पूरा पूरा अनुमान दिया 

हे, अधुनातन अध्यात्मवादियो ! सुनो ध्यान से बात एक 

पूजन अर्चन धारणा ध्यान का संगम है विक्रम विवेक।

शौर्याग्नि शिखा की आभा में ही दर्शित होते ज्ञान ध्यान 

पुरुषार्थ पराक्रम छाँव तले विकसित होते शाश्वत प्रमाण 

हे एकांगी अध्यात्मवादियो ! सुन लो अपने कान खोल 

अध्यात्म शौर्य के साथ विश्व में गूँजे अपने विजय बोल।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा ओम प्रकाश आनन्द जी कवि श्री सुरेश अवस्थी जी का नाम क्यों लिया भैया मधुकर वशिष्ठ जी भैया आशुतोष द्विवेदी जी भैया पवन मिश्र जी भैया पङ्कज जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

26.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२४ वां सार -संक्षेप

 हम  वसुधा भर को अपना परिवार समझते 

पर व्यवहार तुम्हारा घर में भी बाजारू..



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२४ वां सार -संक्षेप

ये सदाचार संप्रेषण हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक हैं इनमें जितनी बार  सांसारिक व्यस्तताओं में फंसे हम लोग अवगाहन करेंगे उतना ही ये हमें लाभ पहुंचाएंगे ये हमारे विचारों को परिमार्जित करते हैं उद्दीप्त करते हैं 

योगी भाव रखते हुए अपने राग द्वेष आदि के आवरण को हटाकर (क्योंकि भगवान् को भी वही प्रिय है जो भूतमात्र के प्रति  द्वेषरहित है  सबका मित्र और करुणावान् है,ममता  अहंकार से रहित, सुख और दु:ख में समान भाव रखने वाला है और क्षमावान् भी है)

शुद्ध दृष्टि प्राप्त करने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


क्या स्वधर्म है और क्या परधर्म है इस पर गहन विचार करने की आवश्यकता है यदि राष्ट्र -रक्षा की आवश्यकता आ गई है यदि इस संसार में दुष्टवृत्तियों के निरसन की जरूरत महसूस हो रही है और हम कहें हमारे लिए सब बराबर है तो यह भ्रम विभ्रम है

आचार्य जी ने शिक्षकत्व को परिभाषित किया  शिक्षक अध्ययन करता है स्वाध्याय करता है 

परिस्थितियों को भांपता है छात्रों की आयु व ज्ञान का भाव अपने अन्दर प्रवेश कराता है और फिर छात्रों को समझ में आ सकने वाली भाषा में उसे बताता है 

आचार्य जी ने ब्रह्मावर्त सनातन धर्म मण्डल से संबन्धित एक प्रसंग बताया जो यह था कि आचार्य जी ने पुस्तकों में मुद्रण -त्रुटियों का उल्लेख किया तो एक शिक्षक ने उसकी अनदेखी करने की बात कही 

ऐसे शिक्षक को शिक्षा देने का कोई अधिकार नहीं है 

आध्यात्मिक समर्पण को व्यक्त करती कबीर की एक साखी है 

जिसमें एक त्रुटि है 



यहु तन जारौं मसि करौं, लिखौं राम का नाउँ।

 लेखणि करूँ करंक की, लिखि-लिखि राम पठाऊँ ||

यहां करंक नहीं होना चाहिए क्यों कि करंक का अर्थ है हड्डी 

जब सांसारिक शरीर भस्म हो जाएगा तो हड्डी 

भी नहीं बचेगी 

 करंक के स्थान पर करम होना चाहिए 

इसकी पुष्टि भी हुई भैया अखिल सहाय और भैया सलिल सहाय के नाना जी ने Belvedere Press Prayagraj में छपी कबीर बानी दिखाई जिसमें लिखा था 


यहु तन जारौं मसि करौं, लिखौं राम का नाउँ।

 लेखणि करूँ करम की, लिखि-लिखि राम पठाऊँ ||


शिक्षकत्व आसान नहीं होता यह मात्र नौकरी नहीं है शिक्षक वह जो  ऐसी शिक्षा दे जिससे व्यक्ति संस्कारित बने 

शिक्षा ज्ञान का आधार है 

शिक्षा एक ऐसा तात्विक वरदान है जिसे प्राप्त है वह अपने को धन्य समझे ऐसी शिक्षा से इतर विदेशी शिक्षा ने हमें नौकर बनाया 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

25.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२३ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२३ वां सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हम सदाचारमय विचार ग्रहण करने का प्रयास करते हैं हमें अध्यात्म को जीने की राह सुझाने वाले आचार्य जी नित्य प्रयत्न करते हैं कि इनके माध्यम से हमारा चैतन्य जाग्रत हो सके, कर्म -प्रमाद  दूर हो सके, हमें सांसारिक व्यवहार में प्रतिष्ठा प्राप्त हो सके,हम मन की दुर्बलता दूर कर सकें, उत्साही बन सकें,

पं दीनदयाल उपाध्याय के जीवन और कर्म -कौशल का चिन्तन करने के साथ उनकी प्राणाहुति पर ध्यान दे सकें , व्यामोह से ग्रसित होने से बच सकें , आत्मविश्वासी बन सकें , पौरुष को पहचान सकें, राक्षसों को भांपने की तमीज पा सकें 


 अत्यन्त अल्प समय में १७ जून २०१४ को आचार्य जी द्वारा रचित एक अवतरित कविता जिसमें संपूर्ण सदाचार ही समाहित है देखिए 



पौरुष को तकदीर बदलनी आती है, कौशल को हरदम तदबीर सुहाती है 

उत्साहों को सभी मंजिलें छोटी हैं, असंतोष को भली बात भी खोटी है 

संशय से विश्वास हमेशा जीता है, भ्रम के अंधकार में दीपक गीता है 

मन की कमजोरी जीवन में घातक है, विश्वासी से दगा घोरतम पातक है 

सत्य विश्व की सबसे बड़ी   साधना है, सुख में यश मुट्ठी में रेत बांधना है

समझ -बूझ कर भी दुर्गुण का त्याग नहीं, आस्तीन के भीतर बैठा नाग कहीं

उपदेशों से जीवन नहीं संवरता है, पाता वही यहां पर जो कुछ करता है 

जीवन कर्म कुशलता की परिभाषा है, कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा है 

कर्म -प्रमाद निराशा की परछाई  है, पतन -मार्ग की सबसे गहरी खाई है 

कर्म करें विश्वास करें अपनेपन पर, मन में नव उल्लास रहेगा जीवन भर


गीता का तीसरा अध्याय कर्म -योग है इस अध्याय में ४३ छंद हैं इसके ४२ वें छंद  


इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।


मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।३/४२

 के अनुसार आत्मा को बुद्धि से परे कहा गया है 


अर्थ इस प्रकार है 


शरीर से परे  इन्द्रियाँ कही जाती हैं  इन्द्रियों से भी परे मन है,मन से परे बुद्धि और जो बुद्धि से भी परे है वह आत्मा है


४३ वें छंद में कहा गया है कि अपनी दुर्जॆय शक्ति इच्छाओं को आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा हम पराजित करें



 इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कठोपनिषद् की चर्चा क्यों की, आगामी आधिवेशन से हम लाभ कैसे उठाएं,भैया प्रदीप त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया, किनके अनुभवों का हम लाभ प्राप्त करें जानने के लिए सुनें

24.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२२ वां सार -संक्षेप


संसार में रहते हुए संसार को समझते हुए सांसारिक कर्मों को करते हुए यदि चिन्तन में किसी क्षण यह झलक जाए कि हम संसार नहीं हैं हम सार हैं तो यह अत्यन्त सुखद अनुभूति का विषय होता है 

वास्तविकता भी यही है



हमारी भाषा भाव इतिहास भूगोल विश्वव्यापी हैं 


देववाणी संस्कृत अत्यन्त गहन तात्विक बहुअर्थी विश्वसनीय भाषा है हिन्दी के साथ अन्य भाषाएं इसकी दुहिताएं हैं

आत्मशक्ति की अनुभूति न होना हमें भ्रमित करता है जितना अधिक भ्रम होगा उतना अधिक भय व्याप्त होगा

इसी कारण हम कमजोर भी दिखेंगे और दुष्ट हमें रौंदने की चेष्टा करेंगे


वास्तव में  अध्यात्म को न समझने के कारण हम भ्रमित रहते हैं अध्यात्म मात्र पूजा पाठ नहीं है


सदा विश्वासपूर्वक हर कदम आगे बढ़ाना है

 मगन मन राह में चलते हुए यह गुनगुनाना है 

कि भारतवर्ष में ही जन्म अगणित बार देना प्रभु..



भय की भ्रामक भावना के प्रचार से हम बचें 

रामत्व और कृष्णत्व तत्व शक्ति विश्वास हैं हम झंझाओं का सामना करने के लिए रामत्व और कृष्णत्व की अनुभूति करें संगठित भी रहें राम और कृष्ण के साथ संयुत कथाएं हमारे विश्वास में वृद्धि करती हैं 

महाबली रावण जिससे सारा संसार त्रस्त है दैवीय शक्ति भी व्याकुल हैं उसे मारने के लिए भगवान् राम के कार्य देखने लायक हैं इसे सबसे अनुभव किया राजा राजर्षि ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने जिनके कायल वशिष्ठ भी हैं


राक्षसों के बढ़ते प्रकोप से विश्वामित्र आहत थे 


विश्वामित्र को समझ में आया कि राम और लक्ष्मण योग्य हैं जो राक्षसों का संहार कर सकते हैं


गुरुत्व का अनुभव करने पर व्यक्ति अपनी शक्ति बुद्धि विचार विश्वास तप त्याग समर्पण अगली पीढ़ी को सौंपना चाहता है आचार्य जी भी यही कर रहे हैं ताकि हम अपनी शक्तियों को पहचाने अपने धर्म अपनी भाषा अपनी परम्पराओं से प्रेम करें अध्यात्म को शौर्य से प्रमंडित करने की अनिवार्यता को समझें


आचार्य जी ने भगवान् आदि शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए बताया कि आत्मानुभूति करने पर हम निराशा हताशा से दूर रहते हैं हम उत्साह से लबरेज हो जाते हैं


जो भी कार्य करें उसे भगवदर्पित समझें यही गीता ज्ञान है मानस का ज्ञान है यही वैदिक ज्ञान है 

अपनी युगभारती की मनोवृत्ति यह रहनी चाहिए कि 



दसों दिशाओं से आ जाएं दल बादल से छा जाएं

 

उमड़ घुमड़  कर इस धरती को नंदनवन सा सरसाएं


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि जिन्होंने स्वावलंबन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है ऐसे लोगों को हम अवश्य खोजें हमें ऐसे लोगों का सम्मान अवश्य करना चाहिए

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रदीप त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

23.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२१ वां सार -संक्षेप

 सदा संकल्प सबके सर्वविध पूरे नहीं होते 

मगर सब सोचते रहते उन्हीं को जागते सोते 

ये दुनिया हर अधूरे काम का ही नाम है प्यारे

इसी में तैरना सबको लगाना है यहीं गोते।



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२१ वां सार -संक्षेप


मनुष्य का भावनात्मक पक्ष अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है यह ईश्वर से प्रदत्त एक वरदान है इस शक्ति को जानने के लिए पहले शरीर को साधना पड़ता है


शरीर को बिना बोझिल किए शक्ति की हम अनुभूति कर सकें तो इससे अच्छा क्या हो सकता है


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अध्ययन स्वाध्याय करें,शरीर को बोझिल न बनाएं, परिस्थितियों से सामञ्जस्य बैठाकर शरीर की साधना का प्रयास करें,मन को नियन्त्रित करें,ध्यान और धारणा का प्रयास करें


आचार्य जी ने विज्ञान अध्यात्म सङ्गीत में गति रखने वाले सुप्रसिद्ध लेखक सुरेश सोनी जी की पुस्तक भारत अतीत वर्तमान और भविष्य का उल्लेख किया आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इसका अध्ययन अवश्य करें 

इससे हमें आत्मबोध होगा 

हम भ्रमित क्यों हुए हम व्यामोहित क्यों हुए इसका चिन्तन आवश्यक है

भारत में अंग्रेजी क्या खोया क्या पाया (तुलसीराम ) भी महत्त्वपूर्ण है


इसी तरह वेद उपनिषदों स्मृतियों आदि पर आधारित श्रीरामचरित मानस का अध्ययन करें 

फिर स्वाध्याय 

तब चिन्तन  तो हम देखेंगे कि चिन्तन एक ही स्थान पर जाता हुआ दिखेगा 

यह संसार है हम संसारी पुरुष हैं संसार का अपना व्यवहार है संसार हमसे छूटता है यानि शरीर हमसे अलग होता है इसका अर्थ है हम शरीर नहीं हैं हम मन नहीं हैं न बुद्धि हैं 

हम हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

आचार्य जी ने इस प्रकार स्वाध्याय का अर्थ स्पष्ट किया 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा अमित भैया का नाम क्यों लिया आधुनिक ऋषि पूज्य गुरु जी का उल्लेख क्यों किया स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के विषय में क्या बताया 

भारत की अमूल्य संपदा क्या है आगे की पीढ़ी क्षमतावान कैसे बनेगी जानने के लिए सुनें

22.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११२० वां सार -संक्षेप

 समंदर की सदा बे रोक टोके गूंजती रहती 

धरा की घ्राण इन्द्रिय प्रिय अप्रिय सब सूंघती रहती 

ये भारत देश है इसका निवासी सर्ववेत्ता है 

इसी से चेतना इसकी कि प्रायः ऊंघती रहती l



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११२० वां सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम निःस्वार्थ भाव से तेजस्विता के साथ राष्ट्र -सेवा में सन्नद्ध हो सकें 

नई पीढ़ी हमें आशान्वित करे इसके लिए उसके भय और भ्रम को दूर करने का हम सामर्थ्य पा सकें सनातनत्व की महत्ता को समझ सकें क्योंकि सनातन धर्म ही वैश्विक धर्म है अपना देश ही संपूर्ण विश्व है अपने कार्य व्यवहार को करते हुए अपने देश अपने धर्म को गहराई से जान सकें कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् की परिकल्पना को साकार कर सकें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हो सकें

सिद्धि की ललक उत्पन्न कर सकें


गुरु -शिष्य परम्परा के उदाहरणों में भगवान् राम और लक्ष्मण का विश्वामित्र के साथ जाना, चन्द्रगुप्त का चाणक्य के साथ भावनात्मक समर्पणात्मक संपर्क होना उल्लेखनीय हैं


जिस प्रकार मानस में दोहे चौपाई हैं उसी तरह गीतावली में भिन्न भिन्न रागों के पद हैं इसी में बाल कांड के सौवें पद में 


ऋषि नृप -सीस ठगौरी-सी डारी।

कुलगुर, सचिव, निपुन नेवनि अवरेब न समुझि सुधारी।1।


सिरिस-सुमन-सुकुमार कुँवर दोउ, सूर सरोष सुरारी।

पठए बिनहि सहाय पयादेहि केलि-बान-धनुधारी।2।

.....

आचार्य जी इसका वर्णन करते हुए बता रहे हैं कि मां कौशल्या सोच रही हैं कि विश्वामित्र प्रभावित करके मेरे बच्चों को ले गए..

संकल्पी शिक्षकों को लेकर अपना दीनदयाल विद्यालय १८ जुलाई १९७० को प्रारम्भ हुआ और उसमें छात्रावास भी खुल गया कई ऐसे अवसर आए जो भावुक कर देते हैं कई छात्र अपना घर छोड़ यहां रहने के लिए आने पर रोने लगते थे कई अभिभावक भी रोने लगते थे छात्र विद्यालय छोड़कर जाने पर भी रोते थे


जब ऐसे क्षण याद आते हैं तो बहुत भावुक कर देते हैं आचार्य जी को ऐसी ही अनुभूतियां होती हैं छात्रों को छात्रावास में परिवार जैसा व्यवहार मिला

जैसा कहा जाता है गुरु ही माता है पिता है मार्गदर्शक है वैसा ही विद्यालय के शिक्षकों ने सिद्ध किया 


मां गंगा का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम अपने भावों को परिमार्जित करें विचारों को परिष्कृत करें संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए नित्य अभ्यास करें हम भारत मां के सपूत हैं इसके लिए अपने कर्तव्य को जानें 

दुष्टों को अपने विचारों कार्यों से पराभूत करें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को जानें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने देवेन्द्र सिकरवार का नाम क्यों लिया चारबाग और गोरखपुर का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

21.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११९ वां सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से हम ज्ञान का संवर्धन तो करते ही हैं साथ ही शक्ति का संवर्धन भी करते हैं संगठन की महत्ता को समझने लगते हैं समाज -ऋण के मोचन का प्रयास करते हैं हम भ्रमित होने से बचते हैं 

अपने सामाजिक चैतन्य को जाग्रत करते हैं 

अपने यहां विद्वानों वीरों भक्तों संतों शूरवीरों ज्ञानियों तपस्वियों की एक लम्बी परम्परा रही है लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षा में विकृतियों के कारण हमें इनके बारे में पढ़ाया नहीं गया 'हिन्दी को मराठी संतों की देन' ( विनय मोहन शर्मा ) की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि महाराष्ट्र में वैष्णवों को भागवत कहते हैं वैष्णव का अर्थ है भक्त केवल विष्णु पूजक नहीं और ये समर्पण भाव से चलते हैं 

स्मार्त स्मृतियों के आधार पर चलते हैं 

महाराष्ट्र में १४ वीं शताब्दी में भागवत धर्म का बहुत अधिक प्रचलन हुआ भागवत धर्म मराठी में लिखा गया भक्ति आंदोलन संत ज्ञानेश्वर ने प्रारम्भ किया उनका श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित मराठी भाषा में  १३४७ विक्रमी में रचित ज्ञानेश्वरी नामक ग्रंथ एक आदर्श ग्रंथ है

भक्तमाल में भी संत ज्ञानेश्वर का वर्णन है 

ज्ञानेश्वर के स्वयं नाथ संप्रदाय में दीक्षित होने के कारण उनके इस अद्भुत ग्रंथ में  गोरखनाथी परम्परा के यत्र-तत्र सङ्केत मिल जाते हैं।गोरखनाथ मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे


हमारी भारतीय संस्कृति गुरु शिष्य परम्परा पर आधारित है एक सिखाता है एक सीखता है 

महारष्ट्र में अनेक संत हुए उन्हीं में एक हैं समर्थ गुरु रामदास 

इन संतों ने अभंगों और अन्य मराठी छंदों में जितनी रचनाएं की हैं उन सबमें भक्ति के माध्यम से शक्ति की उपासना परिलक्षित होती है और हमें इसी से दूर रखा गया ताकि हमें आत्मबोध न हो सके हम अपने देश अपनी शक्ति अपनी भाषा को सही प्रकार से न जान सकें

दीनदयाल विद्यालय को प्रारम्भ करने का कारण ही यह था कि हमें आत्मबोध हो सके देशभक्ति की भावना हमारे अन्दर जाग्रत हो सके संयम समर्पण भक्ति शक्ति स्वाध्याय राष्ट्रार्पित हो सके पं दीनदयाल उपाध्याय इसी के पर्याय थे उन्होंने गरीबी में अमीरी का दर्शन किया देश को झंझावातों से निजात दिलाने के लिए वे कृतसंकल्प थे 

आज भी वैचारिक संघर्ष शारीरिक संघर्ष चल रहे हैं हमें अपनी भूमिका पहचाननी होगी प्रवचन की अपेक्षा कर्म में विश्वास रखें 

प्रवचन महत्त्वपूर्ण तभी है जो शक्ति की अनुभूति कराए प्रज्वलित ज्वाला बनकर भभक उठे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण भागवत जी भैया विवेक भागवत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५० वां* सार -संक्षेप


राम के आदर्श और गीता के ज्ञान को आत्मसात् करने के लिए संकल्पित अपनी आत्ममूर्तियों के दर्शन के सदैव इच्छुक अत्यन्त भावुक आचार्य जी सदाचारमय संस्कारमय विचारों द्वारा नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि किसी विषय की *भौतिक प्राप्ति* न होने पर भी उस विषय के प्रति हम उत्साहित रहें हम सांसारिक उलझावों में फंसे न रहें 

आज से राष्ट्रीय अधिवेशन प्रारम्भ हो रहा है जिसका उद्देश्य भौतिक प्राप्ति नहीं है मानसिक संतोष और आत्मिक आनन्द की प्राप्ति इसका उद्देश्य है 

अधिवेशन में हमें संगठन का आनन्द मिलने वाला है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए वचनबद्ध होने जा रहे हैं राष्ट्र संकट में है संपूर्ण जगत् का गुरुत्व धारण करने वाले जिस राष्ट्र ने संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने का संकल्प लिया उसमें अनार्य लोग खूब तांडव मचाते रहे उस राष्ट्र के आर्य अपने आर्यत्व को बचाने के लिए छिपते घूमते रहे आज भी यही स्थिति है

हम स्वयं भी संकल्पित हैं कि संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने में गायत्री और सावित्री के उपासक हम सफल होंगे गहरे अंधेरे को मिटाने में सफल होंगे दीनदयाल जी के विचारों को साधना को सिद्धि तक पहुंचाने जा रहे हैं 

हमारे चार आयाम हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा जिन पर हम चर्चा करने जा रहे हैं जिसमें शिक्षा मूल है और शेष इसकी शाखाएं 

हमारी शिक्षा को ही मलिन किया जिसके कारण आज यह दशा है इस कारण शिक्षा पर चिन्तन अत्यन्त आवश्यक है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन में और क्या सावधानियां बरतने के लिए कहा आदि जानने के लिए सुनें

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 सितम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११५० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 सितम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११५० वां* सार -संक्षेप


राम के आदर्श और गीता के ज्ञान को आत्मसात् करने के लिए संकल्पित अपनी आत्ममूर्तियों के दर्शन के सदैव इच्छुक अत्यन्त भावुक आचार्य जी सदाचारमय संस्कारमय विचारों द्वारा नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि किसी विषय की *भौतिक प्राप्ति* न होने पर भी उस विषय के प्रति हम उत्साहित रहें हम सांसारिक उलझावों में फंसे न रहें 

आज से राष्ट्रीय अधिवेशन प्रारम्भ हो रहा है जिसका उद्देश्य भौतिक प्राप्ति नहीं है मानसिक संतोष और आत्मिक आनन्द की प्राप्ति इसका उद्देश्य है 

अधिवेशन में हमें संगठन का आनन्द मिलने वाला है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए वचनबद्ध होने जा रहे हैं राष्ट्र संकट में है संपूर्ण जगत् का गुरुत्व धारण करने वाले जिस राष्ट्र ने संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने का संकल्प लिया उसमें अनार्य लोग खूब तांडव मचाते रहे उस राष्ट्र के आर्य अपने आर्यत्व को बचाने के लिए छिपते घूमते रहे आज भी यही स्थिति है

हम स्वयं भी संकल्पित हैं कि संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने में गायत्री और सावित्री के उपासक हम सफल होंगे गहरे अंधेरे को मिटाने में सफल होंगे दीनदयाल जी के विचारों को साधना को सिद्धि तक पहुंचाने जा रहे हैं 

हमारे चार आयाम हैं शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा जिन पर हम चर्चा करने जा रहे हैं जिसमें शिक्षा मूल है और शेष इसकी शाखाएं 

हमारी शिक्षा को ही मलिन किया जिसके कारण आज यह दशा है इस कारण शिक्षा पर चिन्तन अत्यन्त आवश्यक है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन में और क्या सावधानियां बरतने के लिए कहा आदि जानने के लिए सुनें

20.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष  प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  20 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११८ वां सार -संक्षेप



जहां लक्ष्मी का अत्यधिक अंधकारमय पक्ष छा जाता है वहां मेधा व्याकुल विकुंठित और दिग्भ्रमित हो जाती है यही स्थिति अत्यन्त विद्वान् अद्वैत संप्रदाय के प्रधान आचार्य मधुसूदन सरस्वती की हुई 

इनका जन्म बांग्लादेश के फरीदपुर के निकट गोपालगंज जिले के वर्तमान कोटालीपारा डिवीजन में स्थित उनाशिया  गाँव में एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

उस समय शाहजहां का शासन था


ये कृष्ण भक्त थे ऐसे ऐसे विद्वान् हर शासक के काल में हुए शासन मुगलों का चलता रहा अच्छे अच्छे लोग उन मुगल शासकों की जी हुजूरी करते रहे


एक कवि हुए कुम्भनदास उनको एक बार अकबर बादशाह के निमन्त्रण पर फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ यद्यपि इसका इन्हें बराबर दुःख भी रहा जो इनके इस निम्नांकित पद से प्रकट भी होता है


संतन को कहा सीकरी सों काम ?

आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।।

जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।।

कुम्भनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।।



हम लोभ लाभ में फंसे रहे घर परिवार की दुहाई देते रहे 

हमारे देश में तो ऐसा समय भी था जब हम बुरा धन नहीं लेते थे और हम कहते थे हमारी संतानें हैं इस कारण यह धन हम नहीं लेंगे आज स्थितियां बदल गई हैं हम अब संतानों की खातिर ऐसा धन लेने में भी नहीं हिचकते यह समय का फेर भी हो सकता है लेकिन मतिभ्रम अधिक है


ऐसे समय में तूफानों में भी दिया जलाने का संकल्प लेना होगा


आचार्य जी ने समाज -धर्म की अनिवार्यता को स्पष्ट किया

 यदि कोई दुष्ट हमारे आत्मीय पर आघात कर रहा है तो उस समय हम पूजा तर्पण आदि नहीं करते रहेंगे हम पहले उसकी रक्षा करेंगे 

यह है समाज धर्म


इस आत्मबोध की हमें अत्यन्त आवश्यकता है इसी कारण आचार्य जी अध्यात्म को अनिवार्य तो बताते हैं लेकिन वास्तविक अध्यात्म वह है जो शौर्य प्रमंडित हो



हमें धनार्जन के लिए अध्ययन नहीं करना चाहिए अपितु ज्ञानार्जन के लिए अध्ययन करना चाहिए और ज्ञान ऐसा जो परिस्थितियों के अनुसार हमें दिशा और दृष्टि दे सके 

हर तरह की समस्याओं में हमारी भूमिका होनी चाहिए



इतिहास की गल्तियों से कई बार भूगोल बदले हैं हमारे देश का भूगोल भी बदला लेकिन अब हमें सचेत रहना चाहिए हमें शपथ लेनी होगी कि भूगोल न बदले हमें एकजुट होना होगा 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विद्यालय के ऊपर लेख के विषय में क्या कहा गद्य की रचना कैसे होती है सृष्टि कैसे बनी भैया प्रदीप श्रीवास्तव जी के विषय में क्या कहा  मन्त्र क्या हैं जानने के लिए सुनें

19.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११७ वां सार -संक्षेप

 सदा धर्मानुरागी कर्म कौशल के सहित रहता 

नहीं वह क्षुद्र स्वार्थों के लिए कुछ भी कहीं कहता 

न संयम छोड़ता  किंचित् न धीरज को कभी तजता 

सदा ही शौर्यमय निष्काम रहकर राम को भजता


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११७ वां सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि 

हमारे भाव भक्ति विचार तात्विक अंश राष्ट्रोन्मुख हों रामोन्मुख हों और कर्मोन्मुख हों 

पत्रकारिता में भगवान् नारद मुनि हमारे आदर्श हैं उन्होंने स्थान- स्थान पर इस संसार के उतार चढ़ाव के लिए जो भी समाचार संप्रेषित किए उन पर विवेकपूर्ण ढंग से दृष्टिपात करने पर हम पाएंगे कि सृष्टि संचालन में उनकी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका है


आधुनिक काल में गणेश शङ्कर विद्यार्थी,बाबू शिव प्रसाद गुप्त जिन्होंने  काशी विद्यापीठ की स्थापना की और 'आज' नाम से एक राष्ट्रवादी दैनिक पत्र निकाला आदि उच्च कोटि के पत्रकार रहे हैं


लेकिन कुछ ऐसे स्वार्थी लंपट विकृत मानसिकता के  लोग भी हैं जो इसे कलंकित कर रहे हैं


समय परिवर्तनशील है वह न बुरा है न अच्छा समय समय है समय के साथ मनुष्य की वृत्तियां जब तालमेल नहीं बैठाती विकृतियां वहीं जन्म लेती हैं आचार्य जी ने इसे moving staircase और train के उदाहरणों से स्पष्ट किया


जब हम कहते हैं कि समय खराब है तो इसका अर्थ है हमारा चिन्तन पंगु है कर्म का सिद्धान्त कुंठित है हम समयानुकूल विचार करने में असमर्थ हैं


आत्मशोध न करते हुए और आत्मबोध की अनुभूति न करते हुए हम दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं हम क्षुद्र स्वार्थों की भेंट चढ़ जाते हैं


इनसे बचने के लिए हमारे यहां पूजा का विधान है


आज धर्मबन्धन में बांधने का प्रतीक रक्षाबन्धन का पर्व है पुरोहित भी रक्षा सूत्र बांधते हैं यह पुरोहितों द्वारा किया जाने वाला आशीर्वादात्मक कर्म है हमारा लक्ष्य है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः पुरोहित वे हैं जो अपने यजमान का अपने राष्ट्र का हित रखते हुए आगे चलते हैं अपना हित नहीं 

हल्दीघाटी पुस्तक में  पुरोहित के आत्मबलिदान का प्रसंग अत्यन्त मार्मिक है 


येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ।

 तेन त्वां प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल: ।।


मध्य युग में रक्षाबन्धन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गया था 

हम एक दूसरे के राखी बांधें और एक दूसरे की रक्षा का संकल्प लें यही संगठन का स्वरूप है 

आचार्य जी ने विख्यात धर्मशास्त्री रघुनन्दन भट्टाचार्य की चर्चा करते हुए स्मार्त और भागवत में अन्तर स्पष्ट किया 

 आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अधिवेशन में राष्ट्र धर्म का हम सामूहिक चिन्तन करें और यह आवश्यक भी है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बंगाल का उल्लेख क्यों किया,भैया पंकज श्रीवास्तव जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

18.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११६ वां सार -संक्षेप

बौद्धिक दैत्य सदैव इस प्रकार का वातावरण निर्मित करते हैं कि उथल पुथल मच जाए वे अपने तर्कों से सामान्य जनों को भ्रमित करने की चेष्टा करते हैं  वामपंथ का कुचक्र भी बहुत अद्भुत स्वरूप लेता है हम जल के समान हैं हमें अपने जलत्व को शुद्ध रखने का प्रयास करना चाहिए जल में काला रंग मिला देंगे तो वह काला हो जाएगा शक्कर मिला देंगे तो मीठा हो जाएगा 

हम स्वयं  अपनी इच्छानुसार उसमें कुछ मिलाएं दूसरों को मिलाने न दें हम सचेत सतर्क रहें भावों के पट को जाग्रत करें 

एकात्म मानववाद,  जो भारत की सनातन विचारधारा का युगानुकूल रूप है,के प्रणेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक और संगठनकर्ता, भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष पं दीनदयाल उपाध्याय जी की हत्या में भी हमें भ्रमित करने की चेष्टा की जाती रही है 

उनकी हत्या में अटल बिहारी वाजपेयी जी और नाना जी देशमुख जी पर बलराज मधोक जी ने आरोप लगाए 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघ शिक्षा वर्ग में अटल जी दीनदयाल जी सम्मिलित होते थे उनके बौद्धिक भी होते थे 

बलराज मधोक जी कश्मीर के रहने वाले थे वहां प्रान्त प्रचारक रहे जनसंघ के जब वे अध्यक्ष थे तो दीनदयाल जी महामन्त्री थे मधोक जी अत्यन्त महत्वाकांक्षी थे लेकिन ईर्ष्यालु भी थे कानपुर के एक अधिवेशन से वे नाराज होकर चले गए थे आचार्य जी ने बसंत राव ओक जी का भी उल्लेख किया 

आचार्य जी ने अपने विद्यालय में अटल जी के पहली बार आने पर हुए कार्यक्रम का एक प्रसंग बताया 

उस कार्यक्रम में अटल जी ने बताया कि वे अपने पिता जी की मृत्यु पर उतने दुःखी नहीं हुए जितने दीनदयाल जी की मृत्यु पर हुए 

नाना जी भी बहुत दुःखी हुए थे 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किन व्याख्या मिश्रा जी और शिव कुमार जी की चर्चा की

Ulcer का कौन मरीज था 

जानने के लिए सुनें

17.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११५ वां सार -संक्षेप

भारत महान भारत महान 

जग गाता था गा  रहा नहीं गाएगा फिर पूरा जहान


 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११५ वां सार -संक्षेप


एक भावना को भीतर संजोकर अपना विद्यालय खुला था वह भावना जाग्रत हुई थी एक हृदयविदारक घटना के घटने से 

अत्यन्त शान्त सौम्य एक व्यक्ति,जो राष्ट्र के गीत गाता हुआ आगे बढ़ रहा था और अपने लिए कुछ नहीं कर रहा था,एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल जी की हत्या हो जाती है


सन् १९७० में विद्यालय खुला  और जुलाई १९७१ में सदाचार प्रारम्भ हो गया और यह क्रम आज तक चल रहा है

अपनी शक्ति बुद्धि विचार और व्यवहार को परिमार्जित करने के लिए, भक्ति के साथ शक्ति के सामञ्जस्य को समझने के लिए, कर्मशील योद्धा बनने के लिए, अपने लक्ष्य और लक्ष्य के अर्थ का संज्ञान लेने के लिए,अपना और अपनों का भय और भ्रम दूर करने के लिए,नई पीढ़ी को जगाने के लिए और अतिचार देखकर अपनी छाती अड़ाने का उत्साह पाने के लिए ये सदाचार संप्रेषण आवश्यक हैं 


कर्म का उत्साह भावों का समन्दर साथ में 


भक्ति- पथ पर पांव खरतर शूल दायें हाथ में


 ज्ञानगरिमा से प्रमंडित भाल मानस शान्त हो 


और अपना लक्ष्य अन्तःकरण में निर्भ्रान्त हो 


हे प्रभो इस जिन्दगी को बस यही वरदान दो 


लक्ष्य -पथ से प्रेम हो लक्ष्यार्थ का संज्ञान हो l


लेखन मन के भावों का प्रवाह है किसी भी तरह का लेखन हो उसे संजोकर रखें

आचार्य जी ने अधिवेशन के लिए क्या परामर्श दिया गुरुकुल कैसे होते थे जानने के लिए सुनें

16.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१११४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष  एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१११४ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य यही है कि हम जीवित और जाग्रत रहें सचेत रहें साथ ही संगठित सुगठित सन्नद्ध रहने का प्रयास करें 

परिस्थितियों का रोना न रहे इसके लिए प्रयत्नशील रहें हम मनुष्यत्व की अनुभूति करें ताकि मनुष्य का जो जीवन हमें मिला है वह सनाथ रहे 

स्वयं ही आत्मबल -परीक्षा का वरण करें तो आनन्द ही आनन्द है 

इन संप्रेषणों के शास्त्रीय वचनों की महत्ता तभी सिद्ध होगी जब उन्हें हम व्यवहार में उतारें राम का रामत्व सीखें 


आचार्य जी ने बताया कि बचपन से ही उन्हें संघ के प्रचारकों का स्नेह मिला अद्भुत परिस्थितियां आईं तो आचार्य जी शाखा पर जाने लगे पहले प्रचारक श्रद्धेय कृष्ण चन्द्र भारद्वाज जी बार बार प्रयत्न करते थे कि आचार्य जी शाखा पर जाने लगें लेकिन आचार्य जी नहीं जाते थे 

शाखा पर श्री श्याम लाल जी से मुलाकात हुई 

श्री श्यामलाल जी बाद में सेना में चले गए

 


जब सन् १९६० में तत्‍कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई भारत के दौरे पर आए थे उस समय आचार्य जी बी एन एस डी में थे जहां चीनी प्रधानमन्त्री के भारत दौरे के कारण हिन्दी चीनी भाई भाई नारे वाले बहुत से पोस्टर लगे थे



२० अक्‍टूबर १९६२ को भारत और चीन के बीच जंग का आगाज हो गया 

सूचना मिली श्री श्यामलाल जी शहीद हो गए घर में मातम छा गया 

त्रयोदशी संस्कार भी हो गया 

अचानक एक दिन श्यामलाल जी आ गए सभी में हर्ष की लहर दौड़  गई 

उन्होंने एक संस्मरण बताया उनके पास कारतूस खत्म हो गए दो चीनी सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया बाद में उन दोनों को श्यामलाल जी ने खाई में गिरा दिया बचते बचाते श्यामलाल जी अपनी यूनिट में पहुंच गए जब कि वहां भी उनके गायब होने की सूचना थी हर्षोल्लास का वातावरण बन गया 

और फिर वे अपने घर पहुंच गए 

उनका कहना था भारत के अतिरिक्त किसी भी सेना के नौजवान बहादुर नहीं होते वे केवल हथियारों से लैस होते हैं 

भारत देश शौर्य  वीरता पराक्रम त्याग तपस्या संयम का देश है और व्यक्ति व्यक्ति में इसका समावेश है लेकिन दुःखद है शीर्ष पर ऐसे लोग बैठते रहे हैं जिनसे घृणा होती है २०१४ में प्रकाश की झलक दिखी 

उत्साह आया कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगा ये विकार  भरने वाले लोग स्वार्थी लोगों की खोज में रहते हैं 

इतना अद्भुत देश और एकांगी अध्यात्म के अंधकार से घिर गया 

अब चैतन्य जाग्रत हो रहा है सैनिकों को हम आश्वस्त करें कि हम उनके साथ हैं उनके परिवार के रक्षक हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने नागा संप्रदाय का नाम क्यों लिया  अवधेशानंद ने क्या कहा आदि जानने के लिए सुनें

15.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी / एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१११३ वां* सार -संक्षेप

 पन्द्रह अगस्त का दिन कहता-आज़ादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाक़ी हैं, रावी की शपथ न पूरी है॥



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी / एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  15 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१११३ वां* सार -संक्षेप


आज १५ अगस्त है इसे स्वतन्त्रता दिवस कहा जाता है किन्तु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों के साथ जीवन जीने वाले और देश को प्रथम मानने वाले हम लोग इसे स्मरण दिवस के रूप में मनाते हैं देश का विभाजन देशवासियों की दुर्बलता और भय के लक्षण हैं दीनदयाल जी कहते थे हमारे जीवन की तरह ही राष्ट्र का जीवन भी होता है आर्ष -चिन्तन भी यही था 

तात्विक रूप से देखने पर हम अपने को आत्मा कहते हैं हम अपने भीतर अवस्थित चैतन्य को आत्मा कहते हैं उसी प्रकार राष्ट्र की चैतन्य अवस्था होती है जिसे चिति कहा जाता है चिति ही दूसरे शब्दों में चैतन्य है चैतन्य राष्ट्र वही है जो अपनी परम्परा, अपनी भूमि,अपने विश्वासों पर बिना भय और भ्रम के जीवन यापन करे


इस विश्वास की प्राप्ति पारंपरिक स्वाध्याय की विधि व्यवस्था के द्वारा होती है प्रथम स्वतन्त्रता दिवस के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता गांव गांव जाकर कह रहे थे यह प्रसन्नता का दिन नहीं चिन्ता का दिन है क्योंकि हमारा देश कट गया 

इस कारण हम लोग इस दिन इसे अखंड भारत दिवस के रूप में मानसिक रूप से पूजन करते हुए मनाते हैं


आध्यात्मिक जीवन जीने वाले क्रान्तिकारी महर्षि अरविन्द कहते थे एक दिन  हम इस स्वरूप को पाकर रहेंगे

अपने हिसाब से सभी को अधिकार प्राप्त होते हैं हमें उनकी अनुभूति की आवश्यकता है धरती पर हमारा भी भार है हम अपने कर्तव्यों की अनुभूति करें अपने परिवेश को जानें खोखले  चिन्तन से बचें हम जहां हैं वहीं संगठन करें हम छोटा संकल्प ही सही उसे लेकर कुछ करें 

भय से बचें भय हमें दुर्बल बनाता है 

हम अपने घर में अखंड भारत का चित्र लगाएं 



जो जहां है वहीं की समीक्षा करे


आत्मबल की स्वयं ही परीक्षा वरे 


संगठन -भाव क्षण भर न ओझल रहे 


देश के प्रेम की शीश शिक्षा धरे 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने व्यंग करने वाला कौन सा प्रसंग बताया किसे चोट लग गई थी जानने के लिए सुनें

14.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१११२ वां* सार -संक्षेप

 प्रभाव में  अभाव में स्वभाव सम बना रहे 

हृदस्थ भाव शक्ति शौर्य से सदा घना रहे 

कि हीनभाव मनस् में सदैव ही मना रहे 

स्वतंत्र ध्वज अनंत में फहर फहर तना रहे।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  14 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१११२ वां* सार -संक्षेप


हमारे विद्यालय में भगवान् की प्रार्थना के पश्चात्  अत्यन्त प्रभावशाली सदाचार की एक वेला होती थी  हम सौभाग्यशाली हैं कि राष्ट्र -निष्ठा और समाजोन्मुखता को प्रोत्साहित करती वैसी ही सदाचार वेला आज भी चल रही है

आजकल हम लोग राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारी में लगे हैं और इसका गांभीर्य हमारे मनों में पल्लवित हो रहा है हमने इसकी क्रमिकता बनाए रखते हुए यह भी सुनिश्चित कर लिया है कि सन् २०२५ का राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली में होगा

दुष्ट शक्ति पाकर मदान्ध हो जाते हैं और उनके व्यभिचार पल्लवित होने लगते हैं सज्जन भयभीत होने लगते हैं बांग्लादेश में हुई घटना से हम परिचित हैं

आचार्य जी ने *गीत मैं लिखता नहीं हूं* से एक अत्यन्त प्रेरक अभिव्यक्ति सुनाई 

सलोनी नींद में कब तक रहेगा इन्द्र का वैभव....


हमें शिक्षा में भ्रमित किया गया हमें उस भ्रम के निराकरण की आवश्यकता है और अपने ज्ञान द्वारा हम यह कर सकते हैं मार्कोनी का गुणगान किया गया जब कि जगदीश चन्द्र बसु का नाम नहीं लिया गया बसु विश्वविख्यात वैज्ञानिक थे सत्येन्द्र नाथ बसु ने अपना एक रिसर्च पेपर आइन्स्टीन को भेजा उस शोध से प्रभावित होकर आइन्स्टीन ने उसमें अपना नाम संयुत करने का आग्रह किया नए सूक्ष्मतम कण को Boson कहा गया 

हमारे ऋषि भी इसी तरह के शोधकर्ता थे इसलिए हम कहते हैं 

ऋषयः मन्त्र द्रष्टारः

मन्त्र ज्ञान के सूत्र थे 

हमारे यहां विपुल संपदा है अद्भुत वर्षा जलवायु, प्रचुर भू संपदा जल संपदा आदि 

हम सौभाग्यशाली हैं कि ऐसी धरती पर हमारा जन्म हुआ है हम अपने देश के प्रति समर्पण का भाव जाग्रत करें 

पावन मेरा देश भावन मेरा देश....

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विजय मित्तल जी भैया प्रवीण भागवत जी भैया पुनीत जी आदि का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

13.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११११ वां सार -संक्षेप

 प्रभाव में  अभाव में स्वभाव सम बना रहे 

हृदस्थ भाव शक्ति शौर्य से सदा घना रहे 

कि हीनभाव मनस् में सदैव ही मना रहे 

स्वतंत्र ध्वज अनंत में फहर फहर तना रहे।


प्रस्तुत आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का  आज श्रावण शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  13 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११११ वां सार -संक्षेप


समय की उथल- पुथल प्रारम्भ है भिन्न भिन्न प्रकार के विचार, सूचनाएं भावना से भरे हुए व्यक्तियों के मनों को उद्वेलित कर देती हैं और जो शक्ति शौर्य की अनुभूति करते हैं उन्हें आंदोलित कर देती हैं


जो उद्वेलित होकर निठल्ले बैठ जाते हैं वे भावुक भावक तो होते हैं किन्तु शक्ति -अनुभूति के अभाव में व्याकुल भी रहते हैं व्याकुलता व्यक्ति को दुर्बल बनाती हैअतः हमें उपाय खोजने चाहिए कि इस स्थिति में हम देशभक्त क्या कर सकते हैं

हमारे आसपास ही संकट आ जाए तो हम किस प्रकार उससे निजात पा सकते हैं इस पर विचार करें और ऐसे विचार व्यवहार में परिवर्तित हों

 हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

हमें आत्मबोध रहे परिस्थितियों की जानकारी भी रखें सत् का संवर्धन करें असत् का परित्याग करें 

हमें रामत्व की अनुभूति हो इसका प्रयास करें 


विदेश देश में विषाक्त बीज रोज बो रहा, 

स्वदेश का जवान रैन चैन  नींद सो रहा

समाज हिन्दुदेश का न हँस रहा न रो रहा 

विभव विलास बीच शौर्य युक्त भाव खो रहा।



श्रीरामचरित मानस जब रची गई तो भी विषम परिस्थितियां थीं तुलसीदास ने समाज जागरण की आवश्यकता समझी उनके मन में वह उत्साह जागा कि भगवान् राम का वह चरित्र प्रस्तुत किया जाए जो समाज को शक्ति शौर्य की अनुभूति कराए समाज को संगठित करा जाए इसका अनुभव कराए 

संगठन के महत्त्व की अनुभूति कराए व्यक्ति को संसार -समर जीतने का हौसला प्रदान कराए 

तुलसीदास जी ने हर सोपान का प्रारम्भ संस्कृत के छंद से किया और हर सोपान का अंत शिक्षाप्रद दोहे छंद से किया लंका कांड के अंत में है


समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।

 बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥ 


 जो व्यक्ति भगवान् राम की समर विजय संबंधी लीला का श्रवण करते हैं, उनको भगवान् नित्य विजय, विवेक और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं॥

विश्वामित्र को न जनक उपयुक्त लगे न दशरथ 

उन्हें राम उपयुक्त लगे साथ में लक्ष्मण भी उपयुक्त लगे 

भगवान् राम में जो शांति की अवधारणा है उसे उद्वेलित करने का कार्य समय समय पर लक्ष्मण करते हैं वे  प्रभु राम के अन्तःकरण में समय समय पर आवेश उत्पन्न करते हैं आचार्य जी ने परिणय -यज्ञ की चर्चा की जब जनक निराश हो 

गए उन्हें धरती वीर विहीन लगी 

उस समय भी लक्ष्मण ने यही चेष्टा की 

 माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें। रदपट फरकत नयन रिसौंहें॥


रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥

कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुलमनि जानी॥


रघुवंशियों में से कोई भी जहाँ  विद्यमान होता है, उस समाज में ऐसे वचन कोई नहीं कहता  जैसे अनुचित वचन  जनक ने कहे हैं तब जब रघुकुल शिरोमणि राम उपस्थित हैं 

शेषावतार लक्ष्मण जी को शक्ति लगी उपचार हुआ स्वस्थ हुए और फिर मेघनाथ का सामना करने को तैयार हो गए 

भयभीत नहीं हुए

हम सभी में भफ़्वान् का अंश है हम अणु आत्मा हैं हम निराश हताश न रहें चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शुद्धाद्वैत की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

12.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण १११० वां सार -संक्षेप

 शक्ति की अनुभूति का संदेश


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  12 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १११० वां सार -संक्षेप


हनुमान जी हमारे इष्ट हैं उनकी शक्ति और भक्ति, उनके संयम और उनके संहारकारी स्वरूप को अपने भीतर अनुभव करने का हमें अभ्यास करना चाहिए



सीता जी ने संदेह प्रकट किया 

मोरें हृदय परम संदेहा।

कि तुम्हारे जैसे वानर उस दुष्ट को कैसे पराजित कर पाएंगे 

तो 


 सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥

कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥4॥


उनका सोने के पर्वत जैसा अत्यंत विशाल शरीर था जो युद्ध में शत्रुओं को भयभीत करने वाला, अत्यंत बलशाली और वीर था



इन विषयों पर यदि हम ढोलक बजाते रहेंगे कथा सुनते सुनाते रहेंगे और अविश्वास के साथ भक्ति करेंगे तो हम भीतर से दुर्बल बने रहेंगे


प्रातःकाल यह आत्मबोध का समय है निम्नांकित 

पंक्तियों के संदेश को हम बिना भ्रमित हुए समझने की चेष्टा करें कि आपद धर्म क्या है



उठो हथियार साजो हो कलम के साथ पिस्टल भी 

गगन के तारकों के मध्य भरने लगे पुच्छल भी 

अहिंसा एक सद्गुण किन्तु कायरता नहीं होती 

बनो असिपर्ण जैसे रह न जाओ सिर्फ मुद्गल ही



 हम स्वयं सन्नद्ध रहें साथ ही हमारे साथी भी 

दुष्टों का संहार करने वाले भगवान् राम और भगवान् शिव का ध्यान रखें शक्ति शील सौन्दर्य भगवान् राम का स्वरूप है 

प्रायः क्रान्तिकारी, क्रान्तिकारी लेखक अपने साथ हथियार रखते थे 




खल को हमारी शक्ति का अहसास होना चाहिए शक्ति होने पर समय पर उसका सदुपयोग हो जाता है 

शिक्षक शिक्षा दे रहा हो और उसमें शक्ति नहीं तो शिक्षक कैसा


आत्मबल और शरीरबल दोनों आवश्यक है 

चारों आयाम शिक्षा स्वास्थ स्वावलंबन सुरक्षा सही अर्थों में समझें

खानपान सही रखें प्राणायाम योग आदि आवश्यक हैं 

आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुई बैठक की चर्चा की

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

11.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  11 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०९ वां* सार -संक्षेप


अनेक अवसरों पर परिस्थितियों से प्रभावित होकर व्यक्ति शिथिल पड़ जाता है इन परिस्थितियों को अपने विचारों में ढालने के लिए हमें साधक प्रयत्न करने होते हैं शिथिलता शक्ति -शून्यता की द्योतक है 

हमारे यहां शक्ति का वर्णन बहुत विस्तार से हुआ है जब जब हमने इस शक्ति का उपासन नहीं किया तब तब मनुष्य के रूप में रहने वाले हम लोगों के सामने बाधाएं आईं 

इतना श्रेष्ठ ज्येष्ठ विचारों और सात्विक व्यवहारों से परिपूर्ण होने के बाद भी भारतवर्ष के ऊपर ही इतने संकट क्यों आते हैं यह विचारणीय प्रश्न है



दुष्ट थोड़ी शक्ति पाकर मदान्ध हो जाते हैं और हम इतने शक्तिसम्पन्न होने के बाद भी भ्रमित रहते हैं शक्ति की भ्रामक परिकल्पना के कारण कभी श्रेष्ठ बंगभूमि आज बांग्लादेश  की ऐसी दशा है पूजा पाठ ध्यान सही है लेकिन साथ ही दुष्ट से निपटने की पात्रता भी होनी चाहिए 

अन्यथा उसके कृत्य बहुत खराब होते हैं श्रीराम कथा में इसका बहुत विस्तार है दशरथ के राज्य में सब कुछ ठीक चल रहा है दशरथ स्वयं अत्यन्त बलशाली शक्तिसम्पन्न हैं उधर जनक भी आनन्द में हैं जनक से ज्ञान प्राप्त करने अनेक विद्वान् आते रहते हैं दक्षिण भारत में बाली सुग्रीव भी शक्तिसम्पन्न लेकिन उनमें राष्ट्र -बोध विलुप्त है शक्ति  जगह जगह सिमटी हुई है ऐसी शक्ति जो जगह जगह सिमटी हुई हो दुष्ट के लिए वह भयानकता उत्पन्न नहीं करती


शक्ति की कल्पना और शक्ति की आराधना भारतीय धर्म की बहुत पुरानी परम्परा है और यह परम्परा शक्ति को मातृरूपा समझती रही 

पुराणों और तन्त्रों में इसका बहुत विस्तार है 

भगवान् रामकृष्ण परमहंस शक्ति के उपासक थे इसके पहले भी ऐसी परम्परा रही 

जिस बंगाल से ऐसी शक्ति और भक्ति का अनन्त काल से प्रादुर्भाव होता रहा हो उस बंगाल में राक्षसों का तांडव कैसे  प्रारम्भ हो गया विचारणीय है


शक्ति की उपासना के अर्थ सीमित होने के कारण ऐसा हुआ


अंग्रेजों ने हमें ज्यादा भ्रमित किया इन्होंने हमारे मन और मस्तिष्क को प्रभावित किया हमें सुविधा का लाभ दिखाया क्रियाशीलता शून्य की जब कि संसार सक्रियता का नाम है 

शक्ति ब्रह्मतुल्य है शक्ति क्रियाशील भाग है ब्रह्म तत्त्व है वह शक्ति के माध्यम से क्रिया करता है शक्ति व्यक्त है ब्रह्म अव्यक्त


सार में कहें तो हम शक्ति की अनुभूति करें और उसे अभिव्यक्त करें


प्रयास करें आसपास दुष्टों का परिवेश भयग्रस्त रहे स्थान स्थान पर शक्ति केन्द्रों की आवश्यकता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें

10.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  10 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०८ वां* सार -संक्षेप

आंशिक पुण्यकर्मों की प्राप्ति के रूप में मिला प्रातःकाल का यह चिन्तन का समय अद्भुत है अन्यथा दिन भर तो सांसारिक प्रपंचों में हम फंसे ही रहते हैं हमें उलझनों के उपाय खोजने चाहिए समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए 

हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों अपनी संस्कृति पर विश्वास करें 


जहाँ जो है वहीं पर संगठन के सूत्र को खोजे, 

स्वयं की क्षुद्र स्वार्थी वृत्ति पर लानत तुरत भेजे, 

न सोये खुद न सोने दे जवानी को किसी हद तक 

बिखर जाएँ न जबतक दुश्मनों के जिस्म के रेजे।



न केवल बात हो व्यवहार पर उतरें सभी साथी 

दिखेगा वह सुअर भर है लगा था जो बड़ा हाथी 

स्वयं सन्नद्ध होकर हाथ पकड़ो साथ वाले का 

कि काँधे पर धनुष हो पीठ पर वाणों भरी भाथी।




२५ जून १९७५ को देश में आपातकाल लागू हो गया जो २१ मार्च १९७७ तक चला मूर्खों के लोकतन्त्र में सब संभव है 

तत्कालीन राष्ट्रपति माo फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३५२ के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी क्योंकि प्रधानमन्त्री की कुर्सी जा रही थी  आचार्य जी जनता समाचार का संपादन करते थे विष्णु जी छपाने के लिए ले जाते थे  ऐसे अनेक काम हुए इन गिलहरी प्रयासों के पुंजीभूत रूप का अद्भुत परिणाम निकला उन्हीं प्रधानमन्त्री इन्दिरा जी के वंशज कह रहे हैं कि हम संविधान बचा रहे हैं यह स्वार्थ की पराकाष्ठा है 

स्वार्थ को जब परमार्थ के रूप में हम प्रस्तुत करने की चेष्टा करते हैं तो हम कालनेमि बन जाते हैं ऐसे कालनेमियों का ध्वंस  वज्रांग हनुमान जी करते हैं


जब जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।।”


राम अपने स्वरूपों में कभी एक पुंजीभूत रूप में व्यक्त होते हैं और कभी आंशिक रूप में 

हनुमान जी देवता उपदेवता शक्ति के केंद्र जब हमारे भीतर प्रवेश करते हैं तो हम वही वही हो जाते हैं यह अनुभूति करने के बाद उपनिषदकार लिखता है 


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

स्थितप्रज्ञ होना अच्छा है लेकिन इसका अर्थ कर्मकुंठित होना नहीं निराश होना नहीं जैसी परिस्थिति आई उसके अनुसार कर्म करके निर्लिप्त होकर बैठ जाना 

स्थितप्रज्ञ होना कहलाता है जैसे भगवान् कृष्ण 

महाभारत में अद्भुत रोचक भावना प्रधान प्रसंग हैं आचार्य जी ने महाभारत युद्ध की तुलना कबड्डी से की हम मरते जीते रहते हैं कबड्डी यही शिक्षा देता है 

आचार्य जी ने बताया भगवान शंकराचार्य अपने कार्यों में जुटे ही रहे ३२ वर्ष की आयु मिली लेकिन अनेक कार्य कर डाले ऐसे शंकराचार्यों की परम्परा आज भी आंशिक रूप में चल रही है 



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित जी का नाम क्यों लिया राष्ट्र की सेवा में कौन कौन लगा था संकट में उम्मीद की ज्योति कैसे दिखेगी क्या अस्तव्यस्त न होने पाए जानने के लिए सुनें

9.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०७ वां* सार -संक्षेप


भारतीय जीवनदर्शन का एक मूलमन्त्र है कि 

सीय राममय सब जग जानी।

 करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।


जो कुछ हमारे मन में है यदि वह हमारे जीवन में प्रविष्ट हो जाए तो हमें प्राप्त हो जाता है और हमारी दृष्टि भी वही हो जाती है

जैसी दृष्टि हो जाती है वैसी ही उसकी सारी सृष्टि बन जाती है


आचार्य जी बताते हैं कि दीनदयाल जी की हत्या का समाचार एक ऐसी परिस्थिति में मिला कि मन हिल गया जहां जहां यह समाचार पहुंचा वहां वहां के लोगों को आहत कर गया एक ऐसे सीधे सरल अजातशत्रु की हत्या हो जाती है जिससे किसी को कोई हानि नहीं पहुंचती

 हत्या इस कारण हुई कि उनका एक सात्विक विचार पल्लवित हो रहा था जो हमारे सनातन को जाग्रत करने वाला था यह हमें पीड़ित कर देता है 

 


यह विचार करें कि मैं कौन हूं 



बीज से वटवृक्ष का विस्तार हूं मैं 

मैं जगत  हूं जागरण का सार हूं मैं 

कर्म का संदेश जग व्यवहार भी हूं 

और जीवनमन्त्र भाव विचार का संसार हूं मैं 


भाव का विस्तार सीमातीत जब जो जाएगा

और अपना सत्व सबके साथ जब मिल जाएगा 

खिल उठेगी प्रकृति पूरे विश्व की आनन्द से 

और बन्धनमुक्त विचरेंगे सभी स्वच्छन्द से 

आज भी विषम परिस्थितियां हैं और हमें अपने दीपक को जलाना है हमें संगठित रहना है हमारा सत्व सबके साथ मिल सके यहां सब का अर्थ है सजातीय लोग अर्थात् सभी राष्ट्र -भक्त सनातन धर्म को मानने वाले लोग 

इसका प्रयास करना है

हमें शुभ भाव को विस्तार देना है इसके लिए भावनाओं को सात्विक वातावरण में अनुभव करने की आवश्यकता है और जब सात्विकता चरम पर पहुंचती है तो हम कहते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

 जिस प्रकार भगवान् राम ने यही काम किया उन्होंने संगठन किया दुष्टों का नाश किया व्यथित भी हुए कि एक व्यक्ति अत्यन्त गुणसंपन्न होने के बाद भी एक दुर्गुण के कारण अपने वंश सहित मारा गया

हमें अपने जीवन क्रम में परिवर्तन लाने की चेष्टा करनी चाहिए हम अपने संगठन में प्रभावी तभी होंगे जब हम खानपान पर ध्यान देंगे अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखेंगे

हमारे संगठन को दुनिया जान सके इसके लिए अत्यधिक त्याग समर्पण और श्रम की आवश्यकता होगी 

आचार्य जी ने भाव के विस्तार के कारण बढ़े राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबन्धित माखी का एक प्रसंग बताया और बताया कि अपने गांव सरौंहां में भी संघ की शाखा लगती थी 

 शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा का चतुष्टय हमें अपने ऊपर भी लागू करना है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशु शुक्ल जी का नाम क्यों लिया 

अधिवेशन में हमें क्या ध्यान में रखना है शाप देने की शक्ति हमारे भीतर कैसे आएगी जानने के लिए सुनें

8.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०६ वां* सार -संक्षेप

 शक्ति की अनुभूति और अभिव्यक्ति अत्यन्त आवश्यक है...


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०६ वां* सार -संक्षेप


जो महापुरुष होते हैं उन्हें सामान्य व्यक्ति पूर्णरूपेण जान नहीं सकते किन्तु वे श्रद्धा के आधार हो जाते हैं  जिसके प्रति हमारे मन में अपार श्रद्धा हो और उसका शरीर हमारे सामने तिरोहित हो जाए तो हम अपनी श्रद्धा के कारण उसे चित्र या मूर्ति के रूप में देखना ही चाहेंगे और इस तरह 

भारतवर्ष में मूर्तिपूजा का प्रचलन हुआ

मूर्तिपूजा में एक मार्ग है प्रपत्तिमार्ग जो भक्तिमार्ग का ही विकसित रूप है l इसका प्रादुर्भाव दक्षिण भारत में १३वीं शताब्दी में हुआ। किसी देव के प्रति क्रियात्मक प्रेम या तल्लीनता भक्ति  है जबकि प्रपत्ति निष्क्रिय सम्पूर्ण आत्मसमर्पण है।



ईश्वर प्राप्ति या लक्ष्य प्राप्ति के भिन्न भिन्न मार्ग हैं 


श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र एवं उपनिषदों को सामूहिक रूप से प्रस्थानत्रयी कहा जाता है जिनमें प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों मार्गों का तात्त्विक विवेचन किया गया है। ये वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ  हैं। इनमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, श्रीमद्भगवद्गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्र को न्याय प्रस्थान कहते हैं।


अद्वैत वेदान्त के एक महान दार्शनिक हुए हैं 

मधुसूदन सरस्वती 

इनका एक ग्रंथ है 


प्रस्थानभेद

उसमें सारे शास्त्रों का सामञ्जस्य करके उनका अद्वैत में तात्पर्य प्रदर्शित किया गया है। यह निबन्ध अत्यन्त संक्षिप्त होने पर भी अद्वितीय प्रतिभा का द्योतक प्रतीत होता है


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रपत्तिमार्ग में प्रविष्ट होने पर क्या अनुभूति होती है


स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा क्या आपने ईश्वर देखा तो उनका उत्तर था हां देखा है विवेकानन्द को बहुत आश्चर्य हुआ लेकिन उन्होंने विश्वास किया 

हम विश्वास से डिगे रहते हैं किसी पर विश्वास नहीं इसी कारण आत्मविश्वास नहीं


अविश्वास की व्याधि बढ़ती ही  जा रही है सवाल दर सवाल आते हैं उत्तरों से हम संतुष्ट नहीं होते अविश्वास का उद्भव और विस्तार इसी कारण होता है


सनातन धर्म को समाप्त करने का षड़यंत्र  चल रहा है हमें सचेत होने की आवश्यकता है और सचेत करने की भी 

इस कारण संगठन का महत्त्व बढ़ जाता है अतः हम संगठित रहें जूझने के लिए भी तैयार  रहें 

सहयोग आत्मविश्वास संयम के साथ शक्ति की उपासना करें


सनातन धर्म के प्रचार में भी कई संस्थाएं कई लोग लगे हैं जैसे स्वामीनारायण संप्रदाय,   हरे कृष्ण आन्दोलन आदि


आचार्य जी ने बांग्लादेश में ISKCON मन्दिर को जलाने की घटना का उल्लेख किया 

देवासुर संग्राम आदिकाल से चल रहा है संघर्ष संसार का यथार्थ है इस संघर्ष में विजयी होने के लिए शक्ति की उपासना आवश्यक है 

शक्ति उपासना का अर्थ है हमारा शरीर स्वस्थ हो हमारा परिवार संभला रहे आसपास के घरों से भी मधुर संबन्ध हों उनका सहयोग भी मिले 

राष्ट्रीय जीवन की ज्वाला  प्रज्वलित हो रही हो

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गुरु जी का नाम क्यों लिया अधन्ना पहलवान कौन था जानने के लिए सुनें

7.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०५ वां* सार -संक्षेप


जन्म से शरीर के बिछोह तक यात्रामय जीवन चलता रहता है सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर की भी यात्रा होती है यात्रा से विश्राम के लिए जो लोग मुक्ति की कामना करते हैं ऐसे अनेक लोगों से भारतवर्ष भरा पड़ा है अद्भुत है यह आर्ष चिन्तन


भैया प्रवीण भागवत जी के चतुर्दश तरु आंदोलन ( Fourteen Trees Foundation ) की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि भैया प्रवीण जी की परिकल्पना में है कि एक व्यक्ति यदि चौदह वृक्ष लगा दे तो उसे प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है



उनके अनुसार २८% भूमि  बंजर है उसको हरा भरा करने का आंदोलन छेड़ रखा है और उसमें उन्होंने काफी काम कर डाला है


इसी प्रकार भैया संतोष मिश्र जी भी एक काम में जुटे हुए हैं  ऐसे लोग आनन्दित कर देते हैं दीनदयाल विद्यालय के ये खिले हुए सुमन अपनी सुगन्ध फैला रहे हैं


आचार्य जी ने बताया कि भावना के कारण ही पुणे में बीस के आसपास युगभारती के सदस्य एकत्र हुए


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इस भावना को हम व्यर्थ में न जाने दें इसे विचारों में आरोहित करें और विचारों को क्रियाओं में परिवर्तित करें 

जीवन की भाव विचार क्रिया की त्रिवेणी को सार्थक करना ही युगभारती का उद्देश्य है


हमारा पूर्ण उद्देश्य है कि हम राष्ट्र के लिए जाग्रत हों कर्मशील बनें प्रयत्न करते चलें और सफलता के लिए पूर्णरूपेण आश्वस्त हों


तुलसीदास जी का जीवन हमें भावुक कर देता है  तुलसीदास जी का जीवन राममय हो गया उनके राम संपूर्ण राष्ट्र के पुंजीभूत स्वरूप हैं


मानस नाम का अद्भुत ग्रंथ उन्होंने रच डाला तुलसीदास जी कहते हैं यह हनुमान जी ने लिखवाया


आचार्य जी ने इसे भी स्पष्ट किया कि सबसे पहली राम कथा अनंतभक्त हनुमानजी ने लिखी थी, जिसे उन्होंने अपने नाखूनों से एक चट्टान पर लिख दिया था, इसे हनुमद रामायण कहा गया 

महर्षि वाल्मीकि जी ने कहा 

अब मेरी लिखी रामायण को महत्व नहीं मिलेगा हनुमान जी ने वह सब कुछ लिख दिया है  जिसके आगे मेरी रामायण कहीं नहीं टिक रही तो यह सुनकर हनुमानजी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि आप चिंता ना करें और यह कहकर हनुमान जी ने अपनी कथा नष्ट कर दी



भक्त ऐसे ही होते हैं वो चाहे राष्ट्र -भक्त ही क्यों न हों वो अपना यश नहीं चाहते वे अपने इष्ट का यश विस्तार चाहते हैं



तुलसीदास राम जी का शर और चाप कभी नहीं छुड़वाते कारण स्पष्ट है इनकी अत्यन्त आवश्यकता है उस समय भी थी आज भी है

भगवान् राम के हाथ में धनुष बाण से भक्त निश्चिन्त है लेकिन निश्चिन्त सो नहीं रहा है वह सेवा में लगा है 

बाल कांड में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दोहा है 


गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।

बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥18॥



जो वाणी और उसके अर्थ  और जल / जल की लहर के समान कहने में अलग अलग हैं, लेकिन वास्तव में एक हैं, उन सीताराम के चरणों की मैं वंदना करता हूँ, जिन्हें दीन और दुःखी अत्यन्त प्रिय हैं


आचार्य जी ने सीता स्वयंवर का प्रसंग बताया


और परामर्श दिया कि इसका अध्ययन करें इसके बहुत से अर्थ निकलेंगे जब उन्हें हम सुलझाएंगे तो हमारे अन्दर शक्ति का स्रोत उत्पन्न होगा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 

बांग्लादेश के राज्य विप्लव का उल्लेख क्यों किया भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

6.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०४ वां* सार -संक्षेप

 बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०४ वां* सार -संक्षेप


भगवान् राम की भक्ति हनुमान जी की शक्ति और परमात्मा की भारतवर्ष के प्रति विशेष अनुरक्ति ये सब कुल मिलाकर भारतवर्ष को अनेक संकटों से उबारते रहते हैं

इसी कारण भारत कभी नष्ट नहीं हुआ न कभी नष्ट होगा 

जो भौतिक दृष्टि से इसके उत्थान पतन को देखते हैं वो व्याकुल होते हैं हमें भौतिकता से विमुख नहीं होना है किन्तु भौतिकता में ही पूर्ण लिप्तता हमारी शक्ति का क्षरण है

तुलसीदास जी ने भगवान् राम और राष्ट्र को एक तरह से सामने रखा और मानस के रूप में जो पोथी दी वह हमारी मार्गदर्शक बन गई 

अनेक लोगों के जीवनयापन का साधन बनी तो अनेक लोगों के लिए राष्ट्र -सेवा का माध्यम भी बनी आचार्य जी इसी कारण भावपूर्ण ढंग से इसके अध्ययन का हमें परामर्श देते हैं इसके अध्ययन से हमें भ्रम और भय नहीं सताएंगे 


नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।

स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति।।7।।

स्वान्तः सुख अद्भुत शब्द है  

जिससे किसी का अहित न हो  और जिसे करते रहने से स्वयं को आनन्द की अनुभूति हो वह स्वान्तः सुख  कहलाता है ।

तुलसीदास जी बहुत ज्ञानी थे उन्हें परमात्मा का वरदान प्राप्त था 

तुलसीदास जी ने अक्षर शब्द अर्थ छन्द का ज्ञान देने वाली मां सरस्वती की वन्दना की मङ्गलकर्ता विनयक की वन्दना की 


वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।

मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।1।।


 जो जो उन्होंने अध्ययन किया वह सारा राम के स्वरूप में पहले ही वे अपनी माताओं से सुन चुके थे

गुरु की भी  वन्दना की 

इसके बाद वे राम की कथा  में संपूर्ण राष्ट्र का चित्र पिरो देते हैं एक एक प्रसंग में सिद्ध किया जा सकता है कि उन्होंने राष्ट्र सेवा कैसे की जनजागरण  कैसे किया

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि अपने कार्य व्यवहार में हम रमना सीखें तब हमें अनुभूति होगी कि यह परमात्मा की लीला ही हो रही है समाज के साथ सामञ्जस्य बैठाएं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज इस समय किसके साथ हैं भैया प्रवीण भागवत जी की किस उपलब्धि की आचार्य जी ने चर्चा की भैया मोहन जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

5.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०३ वां* सार -संक्षेप

 हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र की भाषा छोड़ उठें...


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०३ वां* सार -संक्षेप

स्थान :पुणे ( भैया विवेक भागवत जी का आवास



सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।

 सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:॥ 18-48॥


हम संसार में रह रहे हैं तो सहज जीवन जीने का भी प्रयास होना चाहिए लेकिन उस सहजता के साथ अपना उद्देश्य विस्मृत न करें 

हमारा उद्देश्य है 

राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

हम जहां हैं जिस परिस्थिति में हैं यह खोजें कि हमारा व्यक्तित्व राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण है या नहीं

भारतवर्ष में धर्म का यज्ञ सतत चल रहा है 

सिद्ध होकर किसी एक कार्यव्यवहार में लगना बहुत कठिन होता है क्योंकि जीवन एक बहुरंगी कैनवास है उस पर अनेक प्रकार के चित्र बनते रहते हैं और ये चित्र प्राकृतिक रूप से आते जाते रहते हैं 

अद्भुत है अध्यात्म 

अपने भीतर खोजने की चेष्टा की जाए तो हम स्वयं बहुत शक्तिसम्पन्न 

तेजस्वी ओजस्वी होते हैं 

ध्यान धारणा चिन्तन मनन उचित खानपान से यह खोजा जा सकता है

और इस प्रकार हम शक्ति शौर्य पराक्रम से अभिमन्त्रित होने का प्रयास करें यह अभिमन्त्रण अपने भीतर की शक्तियों को पराशक्ति से संयुत करने का एक भाव है यह जिनमें जितना समा जाता है उनकी शक्ति उनकी बुद्धि उनका विचार उनका प्रस्तुतिकरण दूसरे को प्रभावित करने लगता है


आचार्य जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम युगभारती के सदस्य अपने अपने कार्यव्यवहार में व्यस्त रहते हुए अपने भीतर झांकने के लिए कुछ समय निकालें हम अपनी शक्ति बुद्धि बाह्य जगत में फंसकर व्यर्थ कर देते हैं हमारे प्रकाश से अच्छे लोग आनन्दित हों 


आचार्य जी ने पुणे में संपन्न हुई बैठक की चर्चा की साथ ही लखनऊ और कानपुर की बैठकों का उल्लेख भी किया 

आचार्य जी ने बताया कि सीता स्वयंवर में भगवान् राम का कार्य अद्भुत रूप से प्रकट हुआ है 

तुलसीदास जी ने राम का स्वरूप राष्ट्र के रूप में चित्रित कर दिया 

युग -प्रभा संग्रहणीय हो इसके लिए संपादक मण्डल प्रयास करे 

इसके अतिरिक्त भैया विवेक भागवत जी भैया प्रवीण भागवत जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आत्मीयता प्रेम के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें

4.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०२ वां* सार -संक्षेप


हमारे यहां के जो अवतार हैं उन अवतारों के बारे में हमारी सहज श्रद्धा होनी चाहिए 

भगवान् राम हमारे वन्दनीय हैं सामान्य जनों के लिए अवधी भाषा में मानस को व्यक्त करने वाले अवतारी विद्वान् तुलसीदास ने मानस में हर सोपान के पहले अद्भुत वन्दना की है और जो संस्कृत में है लंका कांड का मंगलाचरण है 


रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं

योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।

मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं

वंदे कंदावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥ 





मैं उन राम की वन्दना करता हूं जो कामदेव के अरि शिव जी के द्वारा सेवित हैं(जो शिव के उपासक हैं राम के निन्दक हैं और जो राम के उपासक हैं शिव के निन्दक हैं वे नारकीय लोग हैं किसी से लगाव तो किसी से दुराव क्यों  हमारा इष्ट कोई भी हो दूसरे के प्रति दुर्भावनापूर्ण  भाव नहीं होना चाहिए ),जन्म-मृत्यु के भय का हरण करने वाले, कालरूपी मतवाले गज के लिए सिंह के समान, योगियों के स्वामी , ज्ञान के द्वारा जानने योग्य, गुणों की खान , अजेय, निर्गुण, निर्विकार, माया से परे , देवों के स्वामी, दुष्टों के वध में लगे हुए , ब्राह्मण समूह के एक  रक्षक,बादल के समान सुंदर श्याम, कमल की तरह की आंखों वाले, राजा  के रूप में परमदेव  हैं


आचार्य जी नित्य हमें उत्साहित कर रहे हैं


मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान

मैं भाव प्रभाव सुनिष्ठा हूं

धरती की प्राणप्रतिष्ठा हूं

संकट कराल संघर्ष बीच   दृढ़ धैर्य शक्ति मंजिष्ठा हूँ  

मैं  संयम शुचिता  सात्विकता संतोष सरलता मुदिता हूं

मैं गहन निशा में  चन्द्रकिरण प्रमुदित प्रभात का सविता हूं

विभु की कल्पना और अणु की अनुभूति हमारे मन में है

संसार -धर्म का ज्ञान और परिपालन भी जीवन में है...


आचार्य जी ने लेखन -योग के प्रति हमारा ध्यान आकृष्ट किया ताकि हमें अपने भीतर की आत्मशक्ति की अभिव्यक्ति के दर्शन हो सकें और हमारी शक्ति व्यर्थ न जाए 


अपनी प्रकृति के लोगों के साथ मित्रता करें विचार विमर्श करें संगठित शक्ति महत्त्वपूर्ण है राष्ट्रीय अधिवेशन को सफल बनाएं और उसकी समीक्षा करें नए कार्यकर्ता खोजें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण भागवत जी भैया विवेक भागवत जी का नाम क्यों लिया नागपुर की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

3.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०१ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है हमें राष्ट्र और समाज के प्रति अपने दायित्व की समझ प्राप्त होती है

 



जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।


श्री राम  एक अवतार हैं किसी के अनुसार वे विष्णु के अवतार हैं तुलसीदास जी ने श्री राम को परमात्मा का अवतार माना है ये मनुष्य की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुसार वर्णन होते हैं  राम अंशों में सर्वत्र अपना प्रवेश कर लेते हैं 

धर्म का भ्रम जितने अधिक लोगों में हो जाता है उतना ही धर्म का स्वरूप विकृत होने लगता है भौतिक वस्तु के प्रति भी सचेत सजग न रहने से उसकी विकृति परिलक्षित होती है जैसे मां गंगा को हम शुद्ध करने का प्रयास करते हैं यह भौतिक संसार की प्रकृति है अध्यात्म पूर्ण रूप से शुद्ध आत्मिक अनुभूति है यह अनुभूति ज्ञान के उन चक्षुओं को खोलती है जिनको संसार देखने की आवश्यकता नहीं है


सूरदास नेत्रविहीन थे लेकिन वे अद्भुत ज्ञान के भंडार थे उनमें अद्भुत सांसारिक समझ भी थी उन्हें भी संसार दिखाई दिया जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी भी इसी तरह के उदाहरण हैं

भारतवर्ष के ये यथार्थ हैं हमें इन पर विश्वास करना चाहिए भारतवर्ष में हमारा जन्म हुआ है यह हमारा सौभाग्य है क्योंकि यह धरा अद्भुत है


आचार्य जी कहते हैं मन की साधना हेतु नित्य हमें कोई नियम बांधना होगा  आत्मीयता का विस्तार भारत की संस्कृति का सार है तभी हम वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं आत्मीयता के विस्तार में कृत्रिमता नहीं आनी चाहिए

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हमारी दिनचर्या इस प्रकार की हो जिसमें हम आत्म की अनुभूति हेतु भी समय निकाल लें 

आत्म की अनुभूति का अर्थ है अध्यात्म और वह भी शौर्य प्रमंडित 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशु शुक्ल जी का नाम क्यों लिया आज आचार्य जी कहां रुके हैं जानने के लिए सुनें

2.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११०० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११०० वां* सार -संक्षेप

अंधकार का हरण करने वाले ये सदाचार संप्रेषण हमें केवल सुनने नहीं हैं गुनने भी हैं 


हम प्रकृति माता और परमपिता से दैहिक दैविक और भौतिक शान्तियों की कामना करते हैं इसी कारण हम लोग सदैव तीन बार शान्ति शान्ति शान्ति कहते हैं

आत्मिक विस्तार हमारे भारतीय जीवन दर्शन का आधार है इसी आधार पर हम उदार चरित्र वाले सबके सुख की निरोगी रहने की सबके कल्याण की कामना करते हैं और चाहते हैं कोई दुःखी न रहे और संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब मानते हैं हम सामञ्जस्यपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते हैं लेकिन जब सामञ्जस्य में हम शक्ति की अनुभूति और अभिव्यक्ति भूल जाते हैं तो परिणाम भयावह होते हैं होते रहे हैं इसी कारण हमें संघर्ष करने पड़े और हम भ्रमित भी हो गए पथभ्रष्ट हो गए 

हम बाहर के देशों से आकर्षित होकर पलायन करने लगते हैं यह चिन्ता का विषय है पलायन में व्यक्ति अपनी जड़ों से उखड़ जाता है सौभाग्य से हमारा जन्म भारत में हुआ है हमें इस पर गर्व करना चाहिए



हम लोग वैदेशिक उदाहरण देने के अभ्यासी हो गए हैं नई पीढ़ी को यदि वैदेशिक उदाहरण देकर सचेत करना हो तो एक अमेरिकी सीनेट के अध्यक्ष के भाषण का गम्भीर अंश है जिसे आचार्य जी ने पढ़ा 

इस अंश के अनुसार भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण प्रकृति को भोग्या समझा जा रहा है प्रकृति के साथ खिलवाड़ हमें महंगा पड़ रहा है  प्रदूषण के कारण तापमान बढ़ रहा है समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है


आचार्य जी ने The Impact of Science on Society

Book by Bertrand Russell की चर्चा की इसके अनुसार आज का मानव मानवीय कौशल और मानवीय मूर्खता के बीच जी रहा है अधिकाधिक विकास का अंत अत्यन्त दुःखदायी होगा 

Al Gore

Former Vice President of the United States का वक्तव्य है 

हम wrong track पर चल रहे हैं हमें सलाह के लिए पूर्व की ओर उन्मुख होना होगा



हम पूर्व में ही रहते हैं हम उदयाचल के उपासक हैं वे अस्ताचल के भोगभोगी हैं हम सकारात्मक चिन्तन करते हैं हमारी दृष्टि श्रेष्ठ है हम तत्त्व हैं हम भौतिकता नहीं हैं 

हमारा उद्घोष है 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्


इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज कहां रुकेंगे आज तक हमें किसने जीवित रखा है अधीर लोगों के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

1.8.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का श्रावण कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 अगस्त 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१०९९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज श्रावण कृष्ण पक्ष   द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 अगस्त 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१०९९ वां* सार -संक्षेप


निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥

जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥



सरस हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती ? लेकिन जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे श्रेष्ठ पुरुष संसार में अधिक नहीं हैं


अपनी प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती अर्थात् सभी को अच्छी लगती है लेकिन स्वार्थ से इतर ऐसे सहज स्वभावी लोग भी होते हैं जो दूसरों की प्रशंसा के लिए उद्यत हो जाते हैं



आचार्य जी ने पुडुचेरी का एक प्रसंग बताया जब किसी मन्त्री ने अखंड भारत के चित्र को देखकर उसे सुधारने के लिए कहा था तो उसके उत्तर में वहां के एक कार्यकर्ता ने कहा यह आपके लिए मानचित्र होगा हमारा तो आराध्य देव है


श्री अरबिंदो ने भवानी मंदिर नामक पुस्तिका की रचना की जो देश की क्रांतिकारी तैयारी के लिए थी। इसकी हजारों प्रतियां गुप्त रूप से बांटी गईं । इसी का एक अंश है 



भारत माता वास्तव में पुनर्जन्म के लिए प्रयास कर रही है, पीड़ा और आंसुओं के साथ प्रयास कर रही है, लेकिन वह व्यर्थ प्रयास कर रही है। उसे क्या दिक्कत है, वह जो इतनी विशाल है और इतनी शक्तिशाली है? निश्चित रूप से कोई बहुत बड़ा दोष है, हमारे अंदर ही कुछ  कमी है, हमारे समीप शेष सब कुछ है, लेकिन हम शक्ति से विहीन हैं, ऊर्जा  रहित हैं। हमने शक्ति को त्याग दिया है और इसी कारण शक्ति ने हमें त्याग दिया है। माँ हमारे दिलों में है किन्तु  हमारे मस्तिष्क में, हमारी भुजाओं में नहीं है।


और यह सिलसिला चल रहा है career बनाना बुरा नहीं है हमें केवल युगभारती की प्रार्थना मात्र कहनी नहीं है उसके अंशों को जीवन में उतारने के लिए प्रयत्नशील होना है इसके लिए हमें साधना करनी होगी 

भारत को पराजित करने के अनेक प्रयास हुए और हम लोग कहते हैं हिन्दू को पराजित करने के प्रयास हुए  हमें स्पष्ट रूप से यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दुत्व ही भारतीयत्व है  भारत हिन्दू और हिन्दुत्व के बिना कुछ भी नहीं है हमारे साथ बहुत धोखे हुए  अंग्रेजों ने  भी बहुत अनिष्ट किया


इस कारण हमें सात्विकता को धारण कर भारत भक्ति के साथ शक्ति उपासना पर ध्यान देना है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने देवादास जी का उल्लेख क्यों किया भैया मनीष कृष्णा भैया संतोष मिश्र जी भैया मलय जी का नाम क्यों लिया शक्ति और भक्ति के संयोजन को चरितार्थ करने वाले मानस के किस प्रसंग का उल्लेख किया जानने के लिए सुनें