31.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी /अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 31 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी /अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  31 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९० वां* सार -संक्षेप

मनुष्य के मनुष्यत्व के अनेक रंग हैं किन्तु मनुष्य का मनुष्यत्व यही है कि हम संसार में हैं तो संसार हैं यह तो मानें  किन्तु यदि उससे मुक्त हैं तो सार हैं तत्त्व हैं यह भी मानें 

मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान


इन भावों में प्रविष्ट होकर संसार के अभावों को पूर्ण करने का प्रयास हम लोग मिलकर करें 

संगठित रहकर कार्य करना इस कलियुग में अत्यन्त प्रभावकारी है 

प्रातःकाल इन सदाचार वेलाओं से हम लाभ उठाने का प्रयास करें 

साथ के पाथेय ज्ञान कर्म भक्ति तप त्याग साधना को न भूलने का प्रयास करें अपने मित्रों को पहचानने की चेष्टा करें संकटों के आने पर हनुमान जी पर विश्वास रखें कि वे कल्याण करेंगे अन्तःकरण में जल रहे दीप की अनुभूति हम आज दीपावली के पर्व पर करें 

संकटों में क्या स्थिति होती है आचार्य जी द्वारा ३० नवम्बर २०१५ को लिखी इस कविता के माध्यम से देखिए 

जाग मेरे दीप झिलमिल

अंधकार घना कुहासा घोर मन विभ्रमित चिन्तित

शान्त मेधा चकित व्याकुल चित्त विचलित

सांझ घिरती आ रही पर सभी कुछ फैला पड़ा है 

प्राण प्यासे झांकते उठ उठ मगर खाली घड़ा है

साथ का पाथेय चुकता जा रहा प्रतिपल तिल तिल 

जाग मेरे दीप झिलमिल


हौंसले से ही सभी अरमान बैठे अनमने हैं 

रंगरूपों की नुमाइश के फकत तंबू तने हैं

बाहरी दुनिया कि ऐसा लगा भीतर सजी है 

दूर सूने में कहीं पर प्यार की वंशी बजी है 

सभी रिश्तों में जड़ा है एक सूना काठ का  दिल 

जाग मेरे दीप झिलमिल


देश दुनिया विश्व घर परिवार बोझिल हो चले हैं

एक थोड़ी सी जगह हिलती हुई पांव तले है 

साधना के नाम पर कुछ शब्द सुधियों में  पड़े हैं   

किन्तु बोझिल वैखरी के द्वार पर ताले जड़े हैं 

जा रहे अपने पराए आंसुओं के साथ मिल मिल 

...

हम इस जगत के सत्य के संधान को पूर्ण करने का अपना लक्ष्य बनाएं विद्या और अविद्या दोनों को जानें 

तत्त्व चिन्तन को प्रकट करती ये पंक्तियां देखिये 

दीप तुम ऐसा जलो किञ्चित अंधेरा रह न जाए

सीप का वह बन्द मोती खिले खुलकर जगमगाए

इस जगत् के सत्य का संधान पूरा हो, न भटकूं

मुक्तिपथ पूरा करूं  अश्रांत किञ्चित भी न अटकूं

प्राण मन्दिर के जलो रे दीप मेरे सतत झिलमिल

जाग मेरे दीप झिल मिल

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अनिल महाजन जी का नाम क्यों लिया रामलाल श्यामलाल का नाम कैसे आया कलियुगी मन्त्र क्या है  आत्मभक्ति और राष्ट्रभक्ति क्या अलग अलग है जानने के लिए सुनें

30.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  30 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८९ वां* सार -संक्षेप


जिसका तन मन मस्तिष्क सामञ्जस्यपूर्ण रहता है वह जीवन भर अभ्यासरत रहता है और यदि ये असंयत हो जाते हैं तो व्यक्ति व्याकुल व्यथित हो जाता है और समाधान खोजने का प्रयास करता है समाधान उसे मिलता नहीं तो शरीर का सूक्ष्म तत्त्व व्याकुल होता है और तब उसे अनेक व्याधियां विकृतियां घेर लेती हैं इसी कारण स्वास्थ्य के लिए हमें ध्यानस्थ होने की आवश्यकता होती है

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति अद्भुत है हम अपनी शक्तियों की अनुभूति करें तो बहुत कुछ कर सकते हैं अपने अन्दर की प्राणिक ऊर्जा की न्यूनता को दूर करने के लिए हमें सांगठनिक आश्रय लेना चाहिए अपने मित्र बनाने चाहिए विद्वेष से बचना चाहिए सहज कर्म करते रहना चाहिए संसार में रहने की रीति भी हमें सीखनी चाहिए 

हमें चिन्तन मनन ध्यान प्राणायाम स्वाध्याय अध्ययन करना चाहिए 

भगवान् राम का नाम हमें ऊर्जा देता है उनका जीवन उनके कार्य उनका व्यवहार और विषम परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य से उनका न डिगना हमें प्रेरणा देता है 

संसारत्व का निर्वाह करते हुए वे संसार से मुक्त होकर चले गए और हनुमान जी को आदेश दे गए और हनुमान जी सतत अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं हम सनातनधर्मियों के रक्षक बने हुए हैं 

यह अनास्थावादियों को काल्पनिक प्रलाप लग सकता है किन्तु हम आस्थावादी यदि क्षण भर भी इसकी अनुभूति कर लें तो हनुमान जी हमें बल बुद्धि विद्या देते ही हैं ऋषित्व के पर्याय तुलसीदास जी कह रहे हैं 

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।3।।

इसकी व्याख्या करते हुए 

आचार्य जी  ने वानर शब्द की भी व्याख्या की 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मोहन कृष्ण जी भैया पुनीत जी भैया अनिल महाजन जी डा अजय कटियार भैया जी भैया उमेश्वर जी भैया अमित गुप्त जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

29.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 29 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८८ वां* सार -संक्षेप

 लक्ष्य न ओझल होने पाए, कदम मिलाकर चल । मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  29 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८८ वां* सार -संक्षेप



आइये प्रवेश करें संसार से अपने को असम्पृक्त कर दिनभर की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए चिन्तन, मनन, स्वाध्याय, संयम की इस वेला में जिसमें हमें अपने विचलित मन को केन्द्रित करने की,अपने भीतर प्रवेश करने की, इष्ट में अपने मन को प्रवेश कराने (ताकि अनिष्ट में चिन्तित होने वाली भावना से विरक्ति हो जाए)की प्रेरणा मिलेगी


हमारा सौभाग्य है कि हमें विश्वास वाली भारतीय संस्कृति का सान्निध्य प्राप्त है हमें अनेक ईश्वरीय वरदान मिले हैं जिनके कारण हमें कृतज्ञ होना चाहिए 

हमारा शरीर ही कितना अनमोल है इसका हमें भान होना चाहिए इसके लिए आचार्य जी ने एक कथा सुनाई जिसमें भ्रमित भक्त को गुरु समझा पाए कि बहुत सारी संपदा तो परमात्मा ने तेरे साथ संयुत कर दी शरीर का एक एक अंग अनमोल है

हमें अपना लक्ष्य स्मृति में रखना चाहिए हमारे भारत का लक्ष्य है मोक्ष 

मुमुक्षु होने की भावना क्षणांश में भी आ जाए तो आनन्द देती है बाहर की इच्छाओं में अपने को दौड़ाते हैं तो spiral बढ़ता चला जाएगा अनन्त तक और उल्टा कर दें तो अपने प्रारम्भिक बिन्दु पर हम पहुंच जाएंगे यही आत्मबोध है 


इसके अतिरिक्त भैया न्यायमूर्ति श्री सुरेश गुप्त जी भैया पुनीत जी भैया मुकेश जी भैया उमेश्वर जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिए सुनें

28.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  28 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८७ वां* सार -संक्षेप

हमें दिशा दृष्टि मिल सके हम भय और भ्रम के मकड़जाल से निकल सकें विभिन्न संस्कृतियों के आधार अपने सनातन धर्म की विशेषताओं को जान सकें अपने ऋषियों जिनके लिए संपूर्ण वसुधा ही कुटुम्ब है जो एक ही सत्य को भिन्न प्रकार से कहते हैं के भाव -विस्तार को जान सकें ऋषित्व और ईश्वरत्व की अनुभूति कर सकें अपने भावों को उदात्त कर सकें सांसारिक अहंकार को त्याग सकें हमारे अन्दर की शक्ति,बुद्धि, विवेक, विचार, संयम,तप, साधना,अध्ययन, स्वाध्याय आदि का समय पर  हमारे द्वारा सदुपयोग हो सके दुष्टों से सामना कैसे कर सकें भक्ति के साथ शक्ति की अनुभूति कर सांसारिक समरोद्देश में पराजित न हो सकें संसार में आने की अपनी भूमिका पहचान सकें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम आत्म को परमात्म से संयुत करने के लिए नित्य कुछ समय निकालें ताकि दिन भर के हम अपने सांसारिक क्षरण की भरपाई कर सकें



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने माता जी का उल्लेख क्यों किया भैया मनीष कृष्णा जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया मोहन कृष्ण जी भैया प्रवीण सारस्वत जी भैया उमेश्वर जी भैया नवीन भार्गव जी का नाम क्यों लिया कौन से चित्र देखकर आचार्य जी भावुक हुए  आवेश में आकर हत्या करने वाले हत्यारों की हत्या अवश्य होगी किसने कहा था जानने के लिए सुनें

27.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  27 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८६ वां* सार -संक्षेप



अपने वैदिक चिन्तन के विश्लेषणात्मक स्वरूप को आधुनिक रूप में कैसे सामने लाया जाए यह हम लोगों के लिए एक गम्भीर विषय है हम लोग वैदिक साहित्य के अध्ययन की गहराइयों में जाने का प्रयास करें 


आज स्वास्थ्य मेला है हम लोग प्रयास करें कि जो भी अपने गांव सरौंहां जाने के इच्छुक हों उन्हें उत्साहित प्रेरित करें कि वे वहां पहुंचें

हम अपने उद्देश्य का ध्यान रखें आनन्दपूर्वक सेवा करें दवाई देने के साथ गांव वालों को हम लोग अपने चारों सोपानों के आधार पर प्रशिक्षित भी करें 

लालची लोगों पर भी नजर रखें गांव वालों में मुफ्तखोरी का भाव न आए हम इस बात का प्रयास करें कि उनमें स्वस्थता का भाव जागे खानपान में भी ध्यान दें क्योंकि गांव में ऊर्जा है अद्भुत प्रकृति की सन्निधि उन्हें प्राप्त है 

आगे की योजनाएं बनाएं 


राष्ट्र और समाज के संवर्धन में जितने भी क्षेत्र हैं उनमें हम रुचि के अनुसार अपनी पैठ रखें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी आज रात्रि में क्यों जागे विषम परिस्थितियों की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की जानने के लिए सुनें

26.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८५ वां* सार -संक्षेप

 हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत

हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत

हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत !!

जीवन सुमन चढ़ाकर आराधना करेंगे

तेरी जनम जनम भर हम वंदना करेंगे

हम अर्चना करेंगे …१


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  26 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८५ वां* सार -संक्षेप 

जो व्यक्ति विद्या और अविद्या दोनों को ही जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्व प्राप्त करता है l 

हम अविद्या को जानकर इस मरणधर्मा संसार में यशस्विता अर्जित करें कुमार्ग पर जाने से बचें वाणी पर नियन्त्रण रखें प्रेम आत्मीयता लगाव को महत्त्व दें

आइये प्रवेश करें आज की वेला में 

वेद मरणधर्मा संसार में शक्ति के भावबोध हैं

आचार्य जी जिनमें हम बिना संशय विद्वत्ता के दर्शन करते हैं वेदांग के बारे में बता रहे हैं 

वेद नाम है उसका रूप भी है इस कारण उसके अंग भी हैं 

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छः वेदांग हैं । छन्द को वेदों का पाद, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है।

निरुक्त यास्क ने लिखा है इसके पहले निघण्टु बना जो किसने लिखा इस पर अनुसंधान चल रहा है 

कात्यायन की एक पुस्तक है सर्वानुक्रमणिका 

इसमें सात छंदों का उल्लेख हुआ है 

अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन के साथ आज के युगधर्म शक्ति उपासना पर भी हम ध्यान दें हम कमजोर न रहें अन्यथा व्यथित व्याकुल रहेंगे भारत विरोधी वर्ग से जूझने के लिए अपनी तैयारी करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष मिश्र जी भैया श्रीकांत गोरे जी का नाम क्यों लिया युगपुरुष की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

25.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  25 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८४ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के विचारों को ग्रहण कर हम अपने दोषों का निरसन करने का यत्न करें हमें प्रयास करना चाहिए कि सतत संतोष कैसे बना रहे अपने गुणों दोषों का आत्मविवेचन कर हम अपने मनुष्यत्व को निखार सकते हैं  क्योंकि मनुष्य से मनुष्यत्व की यात्रा संसार का आनन्दमय प्राप्तव्य है हम अपने रहस्यों से भरपूर शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन भी करें 


उत्साहसम्पन्नमदीर्घ सूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेश्वसक्तम्  |

शूरं  कृतज्ञं दृढसौहृदं   च  लक्ष्मी  स्वयं याति  निवासहेतौः  ||   -


जो मनुष्य उत्साही , तुरन्त कार्य संपन्न करने वाले ,कार्यकुशल, दुर्व्यसनों  से विरत रहने वाले , साहस से भरपूर ,  कृतज्ञ और मित्रता निभाने वाले होते  हैं , ऐसे मनुष्यों के घर लक्ष्मी स्वयं  निवास करने हेतु जाती हैं

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि भ्रमित सती की अपेक्षा परम शुद्ध पार्वती, जिनका संसारत्व विलीन हो गया,से शिव क्यों संयुत हुए 

संसारत्व विलीन कर हम भी ईश्वर से संयुत हो सकते हैं 


बोलीं गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि॥


मां पार्वती भगवान् शिव से प्रश्न पूछ रही हैं अपनी जिज्ञासा शान्त करना चाहती हैं 

राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी॥


नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू।

तो भगवान शिव प्रसन्न होकर बतलाने लगते हैं 


राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी। मत हमार अस सुनहि सयानी॥

तदपि संत मुनि बेद पुराना। जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना॥

भोगवादियों दुष्टों के नाश के लिए हमें रामत्व की अनुभूति करनी है भगवान् राम के गुणों शक्ति भक्ति संयम समर्पण सेवा त्याग की अनुभूति करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया संतोष मिश्र जी का नाम क्यों लिया तीन यज्ञोपवीत कौन धारण करते हैं सर्वसहा कौन है 

स्वास्थ्य मेले में रामत्व से क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें

24.10.24

प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म l रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म ll प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८३ वां* सार -संक्षेप

 सदा संयम नियम के साथ धीरजमय पराक्रम हो 

समय पर छोड़ उहापोह, तत्क्षण प्रकट विक्रम हो


कि मानव जन्म ही अपना समर्पण शक्ति संयम है

हमेशा याद रखना है जन्म जीवन एक अनुक्रम है।


प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म l 

रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म ll 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  24 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८३ वां* सार -संक्षेप


इस समय गम्भीर समस्याएं हैं जो कहीं उलझती कहीं सुलझती दिखाई दे रही हैं

 राजनीति के साथ अपनी स्वार्थपरायणता में संपूर्ण समाज का स्वरूप केन्द्रित है

ऐसे में हमें अपने शिक्षकत्व की अनुभूति करनी चाहिए जिसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं सभ्यता और सुसंस्कृति की दिशा में चलने के लिए तत्पर समाज में शिक्षक और शिक्षार्थी का भाव एक दूसरे पर आश्रित है और सर्वत्र व्याप्त है 

शिक्षक सुमाली शुक्राचार्य वृहस्पति विश्वामित्र वशिष्ठ आदि जैसा हो सकता है शिक्षार्थी प्रभु राम जैसा या हमारे जैसा हो सकता है

यदि शिक्षक असमर्थ व्याकुल लोभी धूर्त है तो शिक्षार्थी उससे कहीं अधिक सामर्थ्यहीन बेचैन आदि हो जाएगा इस कारण हमें आत्मचिन्तन करते हुए अपने शिक्षकत्व की उचित भूमिका को पहचानना होगा

हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म को अपनाना होगा भक्ति और शक्ति का सामञ्जस्य करना होगा 

भक्ति में दैन्य भाव का प्रकटीकरण नहीं करना है जैसा सूरदास कहते हैं 


मो सम कौन कुटिल खल कामी।

जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥

भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।

हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥(राग सारंग )

अपितु भक्ति में उत्साह की अनुभूति करनी है करानी है

वीर भाव का समावेश कराना है 


जयति वात-संजात,विख्यात विक्रम,बृहद्बाहु,बलबिपुल,बालधिबिसाला।

जातरूपाचलाकारविग्रह,लसल्लोम विद्युल्लता ज्वालमाला ॥ १ ॥ 


जयति बालार्क वर-वदन,पिंगल-नयन,कपिश-कर्कश-जटाजूटधारी।

विकट भृकुटी,वज्र दशन नख,वैरि-मदमत्त-कुंजर-पुंज-कुंजरारी ॥ २ ॥

हमें दीन दुःखी होकर काम नहीं करना है हमें शक्ति सामर्थ्य पराक्रम की अनुभूति करनी है 

निराशा हताशा से काम नहीं चलेगा

हम कभी नष्ट न होने वाले सनातन धर्म को मानने वाले हैं अक्षय वट के पुजारी हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  की अनुभूति करते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी लेखन की महत्ता बता रहे हैं जो मन में  भाव विचार आएं उन्हें लिख लें परस्पर के विचारों का आदान प्रदान करें कुछ क्षण गम्भीर चिन्तन हेतु रखें 


भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों हुआ पार्क क्यों जाएं स्वास्थ्य शिविर के विषय में क्या ध्यान दिया जाए जानने के लिए सुनें

23.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८२ वां* सार -संक्षेप

 जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥



प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म। 

रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म। ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  23 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८२ वां* सार -संक्षेप


मूँद-मूँद वे पृष्ठ, शील का

गुण जो सिखलाते हैं,

वज्रायुध को पाप, लौह को

दुर्गुण बतलाते हैं।

मन की व्यथा समेट, न तो

अपनेपन से हारेगा।

मर जायेगा स्वयं, सर्प को

अगर नहीं मारेगा।

पर्वत पर से उतर रहा है महा

भयानक व्याल।

मधुसूदन को टेर, नहीं यह

सुगत बुद्ध का काल  l 


नाचे रणचण्डिका कि उतरे

प्रलय हिमालय पर से,

फटे अतल पाताल कि झर-

झर झरे मृत्यु अम्बर से;

झेल कलेजे पर, किस्मत की

जो भी नाराजी है,

खेल मरण का खेल, मुक्ति

की यह पहली बाजी है

सिर पर उठा वज्र, आँखों

पर ले हरि का अभिशाप ।

अग्नि-स्नान के बिना धुलेगा

नहीं राष्ट्र का पाप ।

ये पंक्तियां दिनकर की पुस्तक 

परशुराम की प्रतीक्षा से हैं यह अद्भुत पुस्तक है जो भारत और चीन में २० अक्टूबर से २१ नवम्बर १९६२ तक जो युद्ध हुआ था उससे व्यथित दिनकर की भावनाओं को दर्शाती है

परशुराम की प्रतीक्षा, रामचरित मानस, गीता आदि 

का सार संक्षेप एक ही है कि *शक्ति और भक्ति के सामञ्जस्य* को हमें समझना ही होगा अन्यथा हमारा अध्ययन धनार्जन  मान सम्मान प्रतिष्ठा सब व्यर्थ है


आचार्य जी हमें सचेत सतर्क कर रहे हैं हमें इस ओर ध्यान देना है हमें अपने को बदलना है अन्यथा किसी को नहीं बदल पाएंगे आत्मशोध आवश्यक है 

इस समय संकट के बादल छाए हुए हैं परिस्थितियों का रूप परिवर्तित हुआ है 

इन संप्रेषणों को हम ध्यान से सुनें तो हमारा सांसारिक कर्दम नष्ट हो जाएगा 

हमें मनुष्यत्व की अनुभूति करनी है 

हमें विलायती शिक्षा ने बहुत भ्रमित किया भ्रम के कारण राह से भटकने के कारण कुछ लोग कहने लगे गीता से वैराग्य आता है महाभारत ग्रंथ के होने से युद्ध हो जाता है हमें इस भ्रम को समाप्त करना है इस धुंध को  हटाना है शत्रु को मारने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करना है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नवनीत जी भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया बी एन एस डी में किसके पोस्टर्स लगे थे जानने के लिए सुनें

22.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८१ वां* सार -संक्षेप

 प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म। 

रात्रि समीक्षा दिनकर की हो, यही आज का धर्म। ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  22 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८१ वां* सार -संक्षेप



वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः का लक्ष्य लेकर चल रहे हम लोग स्वयं भी जाग्रत रहें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं हमें इन  संप्रेषणों का लाभ उठाना चाहिए

भावनाओं से भरे हम लोगों के मूर्तियों,प्रकृति, पुस्तकों के दर्शन करके भाव बदल जाते हैं एक ऐसी ही पुस्तक है 

१९६२ के चीन से युद्ध से व्याकुल हुए दिनकर जी के काव्य संग्रह के रूप में *परशुराम की प्रतीक्षा*


(परशुराम की मुट्ठी से परशु तब छूटा जब उन्होंने पिता के कहने पर ब्रह्मकुंड में स्नान किया भारतवर्ष को उस परशु से ही उन्होंने फिर मुक्त किया है)

जिसके माध्यम से कवि यह संदेश  देना चाहता है कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा हेतु सतत जागरूक रहना चाहिए। राष्ट्र के हृदय में घुमड़ने वाली बेचैनियों को कवि बारी-बारी से अभिव्यक्ति देता है और कविता के अन्त में वह उस पथ का भी संकेत करता है जिस पर आरूढ़ हुए बिना भारत सम्मान के साथ नहीं जीवित रह सकेगा


...उचक्के जब मंचों से गुजर रहे थे तूने उन्हें प्रणाम किया था...


देश पर गम्भीर खतरा है हमें बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है चैन से न रहें  संगठन के सही अर्थ को समझें भावी पीढ़ी  के लिए कांटे न बोएं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने ब्रह्मपुत्र नदी के विषय में क्या बताया राजकुमार कौन हैं जानने के लिए सुनें

21.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११८० वां* सार -संक्षेप

 समय के साथ गति पकड़ो मगर ठोकर बचाकर 

कि मन के साथ बौद्धिक शक्ति को पूरा जगाकर 

हमें पुरुषार्थ करने के लिए भेजा गया है 

हमारे लिए इस जग में सभी कुछ ही नया है 

हमें अभ्यास करना है यहाँ की रीतियों का 

कि अपने पूर्व पुरुषार्थी जनों की नीतियों का ।

कुछ क्षणों के लिए ही सही यदि हम सात्विक जीवन में प्रविष्ट हो जाते हैं तो यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है 

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  21 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११८० वां* सार -संक्षेप


प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म। 

रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म। ।



किसी भी कार्य को करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि  उस कार्य को करते समय हम चिन्ता न करें यश मिलेगा कि नहीं इसकी चर्चा हो रही है या नहीं आदि आदि पर ध्यान न दें 

उस कार्य को हम त्यागपूर्वक करें 

त्यागपूर्वक कार्य न करने से हम आनन्द से दूर हो सकते हैं जब कि चाहते हम आनन्द ही हैं

हम त्यागपूर्वक कार्य करें हम कार्यकर्ता ही हैं गीता के १८ वें अध्याय में तीन प्रकार के कर्ता कहे गए हैं 

सात्विक राजसिक और तामसिक



मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।


सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।


जो कार्यकर्ता रागरहित अर्थात् सारे भौतिक साधनों संसर्गों संपर्कों इच्छाओं कामनाओं से मुक्त , अनहंवादी अर्थात् मिथ्या अहंकार से मुक्त , धैर्य ( जिसके कारण ही वह संकल्पी भी होगा ) और उत्साह से समन्वित तथा सिद्धि और असिद्धि में निर्विकार है, वह सात्त्विक कहा जाता है।


रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।


हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः।।18.27।।

रागी, कर्मफल की इच्छा करने वाला , लोभी, हिंसक स्वभाव वाला, अपवित्र और हर्ष व शोक से अन्वित कर्ता राजस है 

हमें विकारों से मुक्त होने की चेष्टा करनी चाहिए और इसके लिए आत्ममन्थन आत्मचिन्तन अत्यावश्यक है 


अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः।


विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते।।18.28।।



जो कार्यकर्ता असावधान,अशिक्षित,अकड़ रखने वाला, जिद्द करने वाला,उपकारी व्यक्ति का अपकार करने वाला, आलस से भरपूर , विषादी और दीर्घसूत्री है, वह तामसी है

अद्भुत ग्रंथ है गीता जिसमें हमारे कल्याणार्थ उपदेश है  इस ग्रंथ में दर्शन है व्यवहार है और संसार में रहने का सलीका भी है हम शान्ति की कामना करते हैं लेकिन अशांतिकारक कार्यों में लगे रहते हैं 

अन्य ग्रंथ भी इसी प्रकार हमारे कल्याण के लिए हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए 

हमें नित्य लेखन करना चाहिए 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने गोविन्दाचार्य जी की चर्चा क्यों की, दिल्ली में कौन नमूना है आदि जानने के लिए सुनें

20.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७९ वां* सार -संक्षेप

 प्रातःस्मरण पूर्वजों का, दिन में संसारी कर्म। 

रात्रि समीक्षा दिनभर की हो, यही नित्य का धर्म। ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  20 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७९ वां* सार -संक्षेप


जो भयभीत हैं भ्रमित हैं वे अच्छा काम करने में भी डरते हैं सर्वप्रथम हमें अपना भय भ्रम दूर करना है स्थिति गम्भीर है उथल पुथल चल रही है

ऐसे संकट में हमें क्या करना है हमें संगठित रहना है

इस कलियुग में हजार हाथियों का बल यदि हमारे पास नहीं है तो संगठन का बल तो हो सकता है इस तरह के प्रयास चल रहे हैं 

 संगठन के विषय में  डा हेडगेवार की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कल्पना थी वे चाहते थे कि यथाशीघ्र हम इतने संगठित हो जाएं कि एक एक व्यक्ति शक्ति बुद्धि विचार से युक्त होकर एक सुगठित स्तम्भ बन जाए

समाज की बेचारगी भयानक है 

राक्षस अपनी जनसंख्या वृद्धिंगत करने में रत हैं ऐसे में हमें अपना अस्तित्व 

बचाए रखना है और इसके लिए संघर्ष करते रहना है 

कालनेमियों को मारने के लिए हनुमानत्व की आवश्यकता है 

हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥


बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर

हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर

ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए

ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पत्रकार अर्चना तिवारी की चर्चा क्यों की 


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

आदि की व्याख्या क्यों करनी चाहिए 

आयुर्वेद का इलाज क्यों आवश्यक है औरास की चर्चा क्यों हुई २७ अक्टूबर को होने वाले स्वास्थ्य मेले के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा कौन से कोषाध्यक्ष अस्वस्थ हैं  अपनी भारतीय संस्कृति को क्यों समझने की आवश्यकता है जानने के लिए सुनें

19.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  19 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय में रत हों अपनी संतानों की दिशा दृष्टि सही रखने के लिए हम अत्यधिक परिश्रम करें केवल उनको धनार्जन के लिए ही तैयार न करें किसी भी कार्य को अच्छे ढंग से करें कर्मरत रहें शक्ति के अर्जन हेतु हर तरह का प्रयास करें अपना आकलन करते रहें 

ढोंगी महाजनों से प्रभावित न हों उनसे सम्मोहित न हों

देहाभिमान संसाराभिमान के निरसन हेतु वन्दना करें 


(देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।

बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥)


पुराणों उपनिषदों मानस गीता आदि का अध्ययन करें 

मानस अद्भुत कथात्मक ग्रंथ है इसमें ज्ञान भक्ति वैराग्य के लिए बाल कांड और उत्तर कांड हैं 

अपना चिन्तन पंगु न करें 

शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करें 



शक्ति का अर्जन विसर्जन दम्भ का

मुक्ति का भर्जन भजन प्रारम्भ का 

संगठन संयमन युग की साधना है 

देशहित शुभ शक्तियों को बाँधना

है

 नित्य प्रातः यही शिवसंकल्प जागे 

पराश्रयता का यहाँ से भूत भागे


उठें अपनों को उठायें कर्मरत हों 


बुद्धिमत्ता सहित हम सब धर्मरत हों l



इसके अतिरिक्त भैया संतोष मिश्र जी ने किस दर्शन की चर्चा की जानने के लिए सुनें

18.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  18 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७७ वां* सार -संक्षेप



अनेक प्रपंचों से घिरे होने के बाद भी हमें फलित पुष्पित देखने की चाह में आचार्य जी नित्य सहज भाषा में प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है इस शुभ अनुशीलन का हमें लाभ उठाना चाहिए और इसका आनन्द लेना चाहिए 

जिसकी दृष्टि अच्छी है उसके लिए यह देश अद्भुत है उसको यह धरती मां लगती है अन्यथा जिनकी दृष्टि विकृत है जो अतृप्त और आसुरी स्वभाव के हैं  

 उन्हें यह भोगभूमि लगती है उन्हें लगता है इस देश में कुछ है ही नहीं 


हमारे देश की धरती गगन जल सभी पावन है 

सभी  सुन्दर सलोना शान्त सुरभित मञ्जु भावन है

यहां पर जो रमा मन बुद्धि आत्मिक अतल की गहराई से 

उसको लगा करती धरा माता और सुजन सब भाई से

पर सिर्फ धन की प्राप्ति जिनका जन्मजात स्वभाव है 

उनको सदा दिखता यहां सर्वत्र अमिट अभाव है


अपनी समीक्षा भी करें कि क्या अपना स्वभाव परिवर्तित हो सकता है अच्छे संगठन के लिए अच्छा स्वभाव अनिवार्य है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वृक्ष में लड्डू लगना कैसे सिद्ध किया, कर्ण सिंह का उल्लेख क्यों हुआ हरिऔध ने किन्हें पढ़ाया था जिनका सम्बन्ध हमारे विद्यालय से था  पुष्टिमार्ग की चर्चा में आचार्य जी ने आज क्या कहा तक्षक को बाग में क्यों नहीं ले जाना चाहिए जानने के लिए सुनें

17.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  17 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७६ वां* सार -संक्षेप


यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उत्साहित करते हैं हमें इन सदाचार संप्रेषणों का लाभ उठाना चाहिए


हम अपने भीतर झांकें 

आत्मानुभूति में प्रविष्ट होने पर ही हम भय और भ्रमों से मुक्त हो पाएंगे 

यही अध्यात्म है 

यह अध्यात्म शक्ति सामर्थ्य पराक्रम भक्ति कर्म धर्म का भंडार है यह हमारे ग्रंथों में वर्णित है 

दुर्भाग्य से हम भ्रमित हो गए 

हमें अब इस भ्रम से दूर होना है

वास्तविक इतिहास का अवगाहन करेंगे तो हमारी हिम्मत में वृद्धि होगी


जो काम हमें मिला है उसे कर्तव्यपूर्वक पूर्ण करें 

आइये आचार्य जी की निम्नांकित एक शाश्वत कविता से लाभ उठाने का प्रयास करें 


भयद तूफान की आवाज बढ़ती जा रही है ,

बची कुछ रोशनी अंधियार बीच समा रही है ,

क‌ई कमजोर दिल धड़कन समेटे रो रहे हैं ,

विवश मजबूर से वे जिंदगी को ढो रहे हैं ,

मगर हम हैं कि हिम्मत हौसले से आ डटे हैं ,

न किंचित भी डिगे हैं या कि तिल भर भी हटे हैं ,

हमारे पूर्वजों ने यही हमको है सिखाया ,

कि साधन शक्ति का आगार है यह मनुज-काया ,

सदा उत्साहपूर्वक विजय  पथ को नापना है ,

कठिन कितनी डगर है हमें यह भी मापना है ।।

किसी भय से नहीं भयभीत होते हम कभी भी ,

विगत में भी  दबे हैं और न दबना है अभी भी ,

हमारे पूर्वजों ने युद्ध भी हंसकर लड़ा है ,

हमारा शौर्य सीना तान कर हरदम अड़ा है ,

कि हम हैं जो समर में भी उतरकर ज्ञान देते,

पराजित शत्रु के भी आत्म को  सम्मान देते,

कभी हमने किसी को भी  पराया ही न माना,

सदा विश्वात्म को निज अनुभवों में आत्म जाना,


इसी विश्वास को व्यवहार में हम सब उतारें,

परायी ओर क्षण भर भी न लालच से निहारें ll 

(ओम शङ्कर २४. ०९. २०२१ )


इसके अतिरिक्त  ज्ञान और विधान के एक दूसरे के पूरक होने पर क्या होता है भैया मनीष कृष्णा का आचार्य जी ने नाम क्यों लिया कौन से लोक व्यवहार संस्कृति को संपोषित करते हैं

जानने के लिए सुनें

16.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 16 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७५ वां* सार -संक्षेप

 क्षान्त्या भीरुर्यदि न सहते

प्रायशो नाभिजातः,

सेवाधर्मः परमगहनो

योगिनामप्यगम्यः ॥

- नीतिशतक



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  16 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७५ वां* सार -संक्षेप



यदि भक्ति में शक्ति नहीं है तो ऐसी भक्ति ढोंग है विजयादशमी पर शस्त्र पूजन किया जाता है जिसका प्रारम्भ राजा विक्रमादित्य ने किया था

शस्त्र वीर का शृंगार है जो शस्त्र को शृंगार के रूप में धारण नहीं करते वो कायर हैं


चिन्तन से और सरकार का आश्रय लेकर तो काम नहीं चलने वाला

 समय गम्भीर है हमें अपनी रक्षा स्वयं करनी चाहिए और अपनी रक्षा के लिए संगठित होने की आवश्यकता है शक्तिसम्पन्न होना अनिवार्य है केवल चिन्तन से काम नहीं चलेगा अपने लक्ष्य का ध्यान रखें सक्रिय सचेत जाग्रत रहें 



अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;

न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।

इस तत्व पर ही कौरवों से पाण्डवों का रण हुआ,

जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ।

सब लोग हिलमिल कर चलो, पारस्परिक ईर्ष्या तजो,

भारत न दुर्दिन देखता, मचता महाभारत न जो ॥

हो स्वप्नतुल्य सदैव को सब शौर्य्य सहसा खो गया,

हा ! हा ! इसी समराग्नि में सर्वस्व स्वाहा हो गया ।

दुर्वृत्त दुर्योधन न जो शठता - सहित हठ ठानता,

जो प्रेम-पूर्वक पाण्डवों की मान्यता को मानता,

तो डूबता भारत न यों रण-रक्त- पारावार में,

' ले डूबता है एक पापी नाव को मझधार में । '

(मैथिली शरण गुप्त कृत जयद्रथ -वध )



अभिजात वर्ग समाज के लिए क्यों बोझ हो जाता है निराला जी की श्रद्धा पाने वाला कौन भाग्यशाली व्यक्ति था अभिमन्यु के विवाह के समय क्या चर्चा हुई थी और उसमें रोहिणी के पुत्र बलराम ने क्या कहा था, भैया मनीष जी, भैया मुकेश जी का उल्लेख क्यों हुआ शस्त्रों को देखकर कौन प्रसन्न हुआ था जानने के लिए सुनें

15.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  15 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७४ वां* सार -संक्षेप

हम लोगों से लगाव के कारण भावना सम्पन्न आचार्य जी संसारत्व से मुक्त रहकर नित्य हमें प्रेरित करते हैं और हम संसारी भावों में घिरे आत्मीय जनों को आगाह करते हैं 

कल आचार्य जी ने विस्तार से बताया था कि सेवा के कितने प्रकार हैं वल्लभाचार्य के अनुसार सेवा के कितने स्वरूप हैं आदि

आज आचार्य जी उसी का और विस्तार कर रहे हैं 


मर्यादा सेवा के अन्तर्गत ज्ञान पूजन भजन श्रवण आदि के द्वारा सायुज्य की कामना की जाती है 

सायुज्य अर्थात् भगवान् के साथ रहना जिसके कारण हमारे पास शक्ति बुद्धि ज्ञान विवेक वैराग्य आदि रहेंगे



मर्यादा सेवा में उन्मुक्त समर्पण नहीं है जब कि पुष्टि सेवा में विधि निषेध रहित उन्मुक्त समर्पण है


सूरदास पुष्टि मार्ग के जहाज कहे जाते थे 


आजु हौं एक-एक करि टरिहौं।

के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं।

हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं।

अब हौं उघरि नच्यो चाहत हौं, तुम्हे बिरद बिन करिहौं।

कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि हीरा।

सूर पतित तबहीं उठिहै, प्रभु, जब हँसि दैहौ बीरा।


इसी प्रकार तुलसीदास कहते हैं 


मैं हरि, पतित पावन सुने।

मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥


अगर हम पतित नहीं होंगे तो आपका पतित -पावन नाम कैसे होगा


इस कारण हम पतित ही रहना चाहते हैं यह बाल- हठ के समान है 


आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि अर्जुन पुष्टि मार्ग के किस प्रकार आदर्श हैं


इसी प्रकार जिन देशभक्तों ने भगवान के स्थान पर भारत माता को रख दिया तो वे हंसते हंसते फांसी का फंदा अपने गले में डाल लेते थे और कामना करते थे कि फिर उनका जन्म इसी धरती पर हो ताकि वे और अधिक भारत मां की सेवा कर सकें 


हम लोग भी कुछ इसी प्रकार के जीवन में आंशिक रूप से प्रविष्ट हैं


हम अखंड भारत के उपासक हैं हम इसी के लिए जीवित हैं 

बहुत से संकट हमें घेरे हैं एक ओर इनकी बात होती है और दूसरी ओर ये सदाचारमय विचारों का प्रवाह चलता है हमें इनमें सामञ्जस्य बैठाना है

.इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया मुकेश जी की चर्चा क्यों की स्वास्थ्य शिविर में क्यों जाना चाहिए जानने के लिए सुनें

14.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  14 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७३ वां* सार -संक्षेप


त्यागपूर्ण भोग के साथ ही हमें कोई भी कार्य करना चाहिए l कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता है l 

सेवा ही हमारा परम धर्म है l सेवा धर्म गहन तत्त्व है l कुछ विद्वानों ने सेवा की व्याख्या और विश्लेषण करने का प्रयास किया है 

हमारे ऋषियों ने सेवा के प्रकार बताए हैं


ज्ञान -पाद, योग -पाद, क्रिया -पाद और चर्या -पाद प्रकार हैं


क्रिया -पाद और चर्या -पाद के अन्तर्गत भौतिक सेवा प्रविष्ट है


शुद्धाद्वैत के प्रणेता वल्लभाचार्य सेवा के स्वरूपों का वर्णन करते रहते थे इनके अनुसार सेवा के तीन स्थान हैं गुरु,संत और प्रभु 

गुरु अर्थात् जो जीवन के अंधकार को दूर कर दे, संत अर्थात् जिसमें कोई भौतिक विकार ही न हो दूसरों के दुःखों को दूर करना संतत्व है गुरु और संत नामक ये दो सोपान साधन हैं और प्रभु की सेवा साध्य है 

पुराणों में कर्मकांडीय सेवा वर्णित है विस्तार को प्राप्त इस कर्मकांड में हम लोग इतना अधिक उलझ गए कि तत्त्व पर न ध्यान देकर प्रपंच करते रहे


उपनिषदों में सेवा को विस्तार से बताया गया है 


दीन निर्बल असहाय दुःखी की सेवा करना भौतिकता की सेवा है इसे भी बहुत से लोग प्रभु की सेवा ही मानते हैं उस व्यक्ति में ही वे परमात्मा का स्वरूप देखते हैं ऐसी सेवा का स्वरूप अद्भुत है 

हमें सेवा करने का एक अद्भुत अवसर २७ अक्टूबर के लिए मिला है जब सरौंहां में स्वास्थ्य शिविर लगने जा रहा है हम उस अवसर का लाभ उठाएं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने vibgyor का उल्लेख क्यों किया पद्मपुराण, कोरोना की चर्चा क्यों की, कुत्ता चाट ले वाला क्या प्रसंग है 

आदि जानने के लिए सुनें

13.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  13 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७२ वां* सार -संक्षेप

 इन सदाचार संप्रेषणों से हम प्रेरणा लें और प्रार्थना करें कि हमारी कर्मनिष्ठा में समर्पण भाव प्रविष्ट हो जाए हम देशानुरागी बनें 

हमारे दुर्गुण दूर हो जाएं 

हम भी अपने अध्यवसाय से अपनी पहचान बनाएं



महाशक्ति हमें अनेक तात्विक विषय प्रदान करती है उस महाशक्ति से किसी व्यक्ति का कितना जुड़ाव है यह आर्ष परम्परा के अनुसार उसके पूर्व जन्मों पर आधारित हो सकता है


अध्ययन के साथ स्वाध्याय अनिवार्य है अर्थात् स्वयं का अध्ययन अनिवार्य है स्वयं के साथ स्वाध्याय करने वाले व्यक्तियों की अनुभूतियों का अध्ययन भी स्वाध्याय है


परमात्मा की अद्भुत लीलाओं के कारण ही मनुष्य रूप में हमें जन्म मिला है हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिए 

यह आत्मस्थता अद्भुत है अवर्णनीय है 


अबिगत गति कछु कहति न आवै।

ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥

परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।

मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥


सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥

वही का आभास जब हमारे भीतर प्रविष्ट हो जाता है तो हम कहते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 


जो इस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है वह उसी आनन्द में रहता है वह उसे व्यक्त नहीं कर सकता

यह अव्यक्त की अनुभूति जब हमारे भीतर आयेगी तो हम आनन्दित रहेंगे भ्रमित और भयभीत नहीं रहेंगे भूलेंगे नहीं भटकेंगे नहीं


किन्तु निश्चिन्त भी नहीं रहेंगे कारण स्पष्ट है कि हमारा एक पक्ष संसार से संयुत है हमें विद्या के साथ अविद्या को भी जानना है

आत्मानुभूति को व्यक्त करती आचार्य जी द्वारा रचित ये पंक्तियां देखिये


मैं अन्तरतम की आशा हूँ मन की उद्दाम पिपासा हूँ

 जो सदा जागती रहती है ऐसी उर की अभिलाषा हूँ ।


मैंने करवट ली तो मानो 

हिल उठे क्षितिज के ओर छोर

 मैं सोया तो जड़ हुआ विश्व

  निर्मिति फिर-फिर विस्मित विभोर 

मैंने यम के दरवाजे पर दस्तक देकर ललकारा है

मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ पढ़ने के लिये पुकारा है

मैं हँसा और पी गया गरल

मैं शुद्ध प्रेम-परिभाषा हूँ l


*मैं* जब संसार में लिप्त रहता है तो शिथिलता निराशा हताशा घेर लेती हैं 

संसार में प्रविष्ट रहेंगे तो समस्याओं के समाधान नहीं सूझेंगे

इस कारण आत्मस्थता अनिवार्य है 

हमारे आर्ष ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जो हमें दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं 

उन आर्ष ग्रंथों को सरल करके गोस्वामी तुलसीदास जी ने हमें राम कथा के रूप में प्रस्तुत कर दिया



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कक्षाप्रमुख के रूप में भैया अजीत पांडेय जी की चर्चा क्यों की भैया पवन मिश्र जी भैया आशीष जोग जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिए सुनें

12.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  12 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७१ वां* सार -संक्षेप


मनुष्य के पास कल्पना नामक अद्भुत शक्ति होती है  कल्पना का एक अंश ही मिल जाए तो  उसका बहुत विस्तार किया जा सकता है काल्पनिक कथाएं मनुष्य को बहुत सहारा प्रदान करती हैं

जीवन एक कथा है इसमें व्यथा और आनन्द दोनों है

मनुष्य इस कथा के लिए अनेक विस्तार कल्पनालोक में करता है अनेक योजनाएं बनाता है फिर उनका क्रियान्वयन करता है

कल्पना से परमात्मा ने सृष्टि का निर्माण किया है 

परमात्मा सर्वशक्तिमान है उसके नियन्त्रण में काल भी रहता है इससे संबन्धित एक कथा आचार्य जी ने महाभारत की सुनाई जिसमें अर्जुन के स्नान का और द्रौपदी के भोजन बनाने का उल्लेख है

परमात्मा जब द्रवित होता है 

जब जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।।”


भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ 72 क॥


जथा अनेक बेष धरि नृत्य करइ नट कोइ।

सोइ सोइ भाव देखावइ आपुन होइ न सोइ॥ 72 ख॥



जैसे कोई खेल करने वाला बहुत से वेष धारण करके नृत्य करता है और उसी वेष के अनुकूल भाव प्रदर्शित करता है, पर स्वयं वह उनमें से कोई हो नहीं जाता


उसी प्रकार भगवान राम ने भक्तों के लिए राजा का शरीर धारण किया और साधारण मनुष्यों की तरह अनेक परम पावन चरित्र किए l


परमात्मा कलाकार के रूप में उतरेगा तो कौन समझ पाएगा


विवेकानन्द भी एक अंशावतार थे आचार्य जी ने उनका खीरभवानी मन्दिर का प्रसंग बताया 


ऐसे प्रसंगों से कथाओं से जब हम संयुत होंगे तो हमें संसार से संघर्ष करने की शक्ति भी मिलेगी सफलता असफलता में भ्रमित नहीं होंगे  

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति अद्भुत है

निराश हताश होने से बचें अपना लक्ष्य ध्यान में रखें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसके विवाह की बात की जानने के लिए सुनें

11.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 11 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११७० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  11 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११७० वां* सार -संक्षेप


अत्यन्त प्रभावशाली वाणी के धनी आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारे अन्दर शक्ति बुद्धि पराक्रम कौशल आए और हमारे अन्दर समाज -सेवा की ललक जागे 

हम अपना खानपान सही रखें दिनचर्या सही रखें ताकि शरीर निरोगी रहे आत्मस्थ हो सके

वेद जिसमें सारे सांसारिक रहस्यों के सूत्र हैं ब्राह्मण ग्रंथों आरण्यक उपनिषदों जिनमें उन सूत्रों की गहन व्याख्या है आदि का अध्ययन करें 


मनुष्य के जीवन का स्वरूप क्षरणशील मरणशील और कर्मशील है l कर्मशीलता मनुष्य का एक रहस्यात्मक सद्गुण है जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है कल जाने माने उद्योगपति की मृत्यु पर उनके सद्गुणों के कारण जनज्वार उमड़ पड़ा 

गीता के दूसरे अध्याय का एक छंद है 


त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।


निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।


वेद तीनों गुणों के कार्य को ही वर्णित करने वाले हैं तो हे अर्जुन! तुम तीनों गुणों से रहित हो जाओ साथ ही निर्द्वन्द्व भी हो जाओ , निरन्तर नित्य वस्तु परमात्मा में स्थित हो जाओ , योगक्षेम की अभिलाषा भी न रखो और परमात्मपरायण हो जाने का प्रयास करो ।


कैर्लिंगैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो।


किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते।।14.21।।


अर्जुन जानना चाह रहा है कि इन तीनो गुणों से अतीत हुआ पुरुष किन लक्षणों से सज्जित होता है ? वह किस प्रकार का आचरण प्रदर्शित करता है ? और वह किस उपाय से इन तीनों गुणों से परे होता है।।


भगवान् समझाते हैं - ज्ञानी पुरुष प्रकाश, प्रवृत्ति और मोह के प्रवृत्त होने पर भी उनका द्वेष नहीं करता तथा निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा नहीं करता है।



उसे उदासीन रहकर गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता एवं "गुण ही व्यवहार करते हैं" ऐसा जानकर स्थित रहता है और उस स्थिति से तनिक भी विचलित नहीं होता।


जो मान और अपमान में एक समान अवस्था में रहता है,शत्रु और मित्र के पक्ष में भी सम है, ऐसा सर्वारम्भ परित्यागी पुरुष ही गुणों से अतीत हुआ कहा जाता है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हाथी और जिलाधिकारी का क्या प्रसंग बताया दुर्योधन का उल्लेख क्यों हुआ खून बहने पर भी कौन चलता चला गया जानने के लिए सुनें

10.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६९ वां* सार -संक्षेप

 विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, 


मरो परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  10 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६९ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी इन संप्रेषणों से परामर्श देते हैं कि हम सचेत सतर्क रहें संगठित रहें व्याकुल न रहें नकारात्मक सोच से दूरी बनाएं

शौर्यमय इतिहास की चर्चा करते हुए जागृति लाएं

हम अतुलनीय हैं यह विश्वास हमारे मन में प्रविष्ट होना ही चाहिए और अपने आचरण में भी प्रकट होना चाहिए

परमार्थ चिन्तन करें 

गीता में भगवान् कहते हैं 


क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।


क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।

इस ज्ञान से हमें उत्साह और कर्मशीलता का बोध होना चाहिए 


इस संसार में जिनके कार्य जितने अधिक प्रभावशाली हैं वे उतने ही अधिक लम्बे समय तक यहां सूक्ष्म रूप में टिके रहते हैं


स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति।

अयशोऽकीर्तिसंयुक्तः जीवन्नपि मृतोपमः॥


भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन नवल टाटा कल इस संसार से विदा हो गए उनका जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था l

संसार से विदा होने के बाद भी जिस व्यक्ति की सहज चर्चा हो यह सिद्ध करता है कि उसे मनुष्यत्व का वरदान प्राप्त है क्योंकि मनुष्यत्व प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है यद्यपि मनुष्य का जीवन मिलना कठिन नहीं है


वे राष्ट्र के लिए और मानवीय जीवन की सुरक्षा हेतु समर्पित व्यक्तित्व थे उनके व्यवसाय के विस्तार ने उनका  बहुत अधिक सम्मान वृद्धिंगत किया

 वे त्यागपूर्ण भोग करते थे

चित्रकूट में आरोग्यधाम में लगभग सारा धन उनका ही लगा है

उन्होंने उदारता से देश में काम किया

पद्म विभूषण और पद्म भूषण से सम्‍मान‍ित भारत के दिग्गज रतन टाटा का जीवन सबके ल‍िए प्रेरणास्रोत रहा l वे कहते थे- मैं सही निर्णय लेने में विश्वास नहीं करता, मैं निर्णय लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं l शक्ति और धन मेरे दो मुख्य हित नहीं हैं l


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चिकित्सा शिविर की चर्चा में क्या कहा 

अर्जुन वाल्मीकि दधीचि ऋषि अगस्त्य का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

9.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  9 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६८ वां* सार -संक्षेप


अद्भुत व्यक्तित्वों में से एक आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है इन सदाचार वेलाओं की हमें उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती है क्योंकि इनमें विचारों सैद्धान्तिक बातों व्यावहारिक बातों सकारात्मक चिन्तन आदि का समावेश रहता है


श्री आदि शंकराचार्य की विवेकचूड़ामणि के छंद 



जन्तुनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंसत्वं ततो विप्रता

तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमसमात्परम्।

आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभावो ब्रह्मात्मना संस्थितिः

मुक्तिर्नो शतजन्मकोटिसुकृतैः पुण्यैरविना लभ्यते ॥ 2॥


सभी प्राणियों हेतु मनुष्य रूप में जन्म -प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है,  उससे भी अधिक कठिन नर-देह, उससे भी अधिक दुर्लभ  ब्राह्मणत्व, उससे भी अधिक दुर्लभ  वैदिक धर्म_पथ में आसक्त होना,उससे भी अधिक है शास्त्रों का पाण्डित्य; आत्मा और परमात्मा का विवेक, साक्षात्कार और ब्रह्म के साथ तादात्म्य में स्थिति   ऐसी मुक्ति सौ करोड़ जन्मों के पुण्यों के बिना नहीं मिलती।

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया बुद्धि के पांच भेद हैं जिनमें अन्तिम है विवेक 

समाधि के निकट जो अवस्था होती है वह है विवेक बुद्धि 


पहले-पहल जब  जगत् सुषुप्तावस्था से उठा था, तब सबसे पहले इसी महत्तत्त्व का आविर्भाव हुआ था।

यह प्रकृति के विकास का पहला चरण है l 

महत्तत्त्व को आचार्य जी ने विस्तार से बताया 

अहं मन इन्द्रियां बुद्धि के लिए कार्य करती हैं 

बुद्धि सीधे आत्मा के लिए कार्य करती है 

बुद्धि के मुख्य कार्य हैं निश्चय और निर्धारण 


इस निश्चय और निर्धारण का उदय सत्त्व गुण की प्रधानता के कारण होता है 

इसके मौलिक गुण हैं धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य 

ये विकृत होने पर हो जाते हैं 


अधर्म अज्ञान आसक्ति और दैन्य


इसी कारण धार्मिक साधनाओं में बुद्धि की पवित्रता पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है 

भगवान् शंकराचार्य की बुद्धि सतोगुण से आप्लावित थी तभी उन्हें धर्म ज्ञान वैराग्य और ऐश्वर्य सुस्पष्ट थे 

उन्हें इसी कारण सहज ज्ञान उत्पन्न हुआ 


 आचार्य जी ने बताया ऋषित्व कठिन नहीं है ऋषि में एकाग्रता होती है उसमें अनुसंधान की गहरी प्रकृति का समावेश रहता है 


इसके अतिरिक्त मन्त्री और सस्ते ऊंट का क्या प्रसंग है भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ, संगठन क्यों महत्त्वपूर्ण है जानने के लिए सुनें

8.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  8 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६७ वां* सार -संक्षेप


हम आशावान् हैं हमें नकारात्मक सोच नहीं रखनी चाहिए मन से नकारात्मकता को दूर भगाएं विश्वासी बनें विश्वास का परिक्षेत्र स्वयमेव विकसित करें 

अपने समीक्षा के नेत्रों को विशुद्ध करें 

हमारे साहित्य में वियोग के स्थान पर योग पर अधिक बल दिया गया है 

जो व्यक्ति ईश्वर में आधारित होकर अपने जीवन  के संपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करता है वह सांसारिक समस्याओं से कमल-पत्र की भांति लिप्त नहीं होता है 

कमल -पत्र जल में रहते हुए भी शुष्क रहता है

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।


लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।5.10।।

गीता का पांचवा अध्याय कर्मयोग पर आधारित है


इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण  ने कर्मयोग और साधु पुरुषों के बारे में बताया है 

हम इसका अध्ययन करें अपने विचारों को पोषित करने के लिए गीता के अतिरिक्त मानस पुराण उपनिषद् आदि का भी अध्ययन करें 

हम क्या कर रहे हैं इस पर चिन्तन करें 

जो भौतिकवादी व्यक्ति हैं जो शरीर में ही जीवित रहते हैं सनातनधर्म पर विश्वास नहीं करते ऐसे लोगों के प्रभाव में हम न आएं ऐसा न हो कि उनके प्रभाव के कारण हम अपने ही धर्म पर विश्वास न करें 

हम तो ये करें कि वे हमसे प्रभावित हों 

आत्मविश्वासी बनें आत्मविश्वास में बहुत बल होता है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र जी भैया डा अमित जी भैया डा सारस्वत जी भैया विनय अजमानी जी का नाम क्यों लिया किस परिणाम की आज प्रतीक्षा है स्वास्थ्य शिविर के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा जानने के लिए सुनें

7.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  7 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६६ वां* सार -संक्षेप


आइये आज के सदाचार संप्रेषण के माध्यम से प्रवेश करें भावजगत में


हमें अपने शिक्षकत्व को जगाना है और नई पीढ़ी  के सर्वांगीण विकास हेतु उन्हें संस्कारमय शिक्षा प्रदान करनी है इसमें हमें आनन्द की अनुभूति भी होगी

इस समय भारतीय संस्कृति पर अनेक दुष्ट आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रहे हैं 

हमें उनके दुष्प्रभाव से अपने को बचाना है और अपनी भावी पीढ़ी को भी बचाना है


इसके लिए अपने मन को मजबूत करना आवश्यक है 


मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥


हमें संबल प्रदान करने वाली एक अत्यन्त प्रेरक कविता है 


जीवन-पथ मोहक जरूर है, इसमें मगर घुमाव बहुत हैं ,

अगल बगल अनगिन आकर्षण लेकिन कुछ में चाव बहुत है।


निर्धारित था लक्ष्य राह के आकर्षण ने भ्रमित कर दिया ,

तैयारी से ही निकला था कुटिल राह ने श्रमित कर दिया ।

चलता हूं दो-चार कदम कुछ ठिठक देखने लग जाता हूं ,

पीछे का कुछ सोच पलट कर फिर पीछे को भग जाता हूं ।

आगा-पीछा करते करते उभर उठे तल घाव बहुत हैं ।।१।।


 जीवन -पथ.......

राह राह ही हरदम रहती चाहे जितने आकर्षण हों ,

सत्कृत बिना  न पाप कटेंगे चाहे जितने अघमर्षण हों ।

इसीलिए भ्रम का भी भय अति दुस्तर और भयानक होता,

और जगत का इसी तरह का कुछ कुछ वही कथानक होता ।

इसी कथानक के प्रति अपने मन में उलझे भाव बहुत हैं ।।२।।

जीवन-पथ........

राहों का आकर्षण तज कर चलने का है नाम तपस्या ,

लेकिन ऐसा कर पाना राही के लिए अबूझ समस्या ।

इसी समस्या को सुलझाने में जीवन की सांझ हो गई ,

प्रखर विवेकशील मेधा भी कुंठित बेसुध बांझ हो गई।

लेकिन लक्ष्य-प्रप्ति के प्रति मानस में बसा लगाव बहुत है ।।३।।

जीवन-पथ.......

चलता हूं तो जगह-जगह  पर मिल जाते चत्वर चौराहे ,

किधर चलूं दुविधा की मारी व्याकुल होतीं चतुर निगाहें ।

पथदर्शक उठ ग‌ए घरों को पथ पर बचे भटकते राही,

सब अभियुक्त सदृश व्याकुल हैं, दिखता कोई नहीं गवाही ।

भरा-पुरा बाजार मगर हर मन में भरा अभाव बहुत है ।।४।।

 जीवन-पथ.......

पथ पर सदा भटकते रहने की ही क्या है नियति हमारी ?

क्या अपने जीवन में चिपकी जग की अन्तहीन बीमारी ?

नहीं नहीं यह भ्रम है अपना हम तो शिव संकल्प सनातन ,

चिर पुराण हम ही भविष्य हैं हम ही हैं संतत अधुनातन ।

देखो देखो वह पथ आया  जहां अर्चिमय लाव बहुत हैं ।।५।।

जीवन-पथ--------





इसके अतिरिक्त कर्मठ योद्धा श्री हरमेश जी की चर्चा क्यों हुई रात्रि ढाई बजे किसने आचार्य जी को फोन किया भैया शुभेन्द्र जी भैया शुभेन्दु जी भैया पंकज श्रीवास्तव जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

6.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६५ वां* सार -संक्षेप

 सत्यं ज्ञानम् अनन्तं ब्रह्म।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  6 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६५ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं कि शक्ति की अनुभूति के लिए हम व्याकुल पीड़ित दुविधाग्रस्त व्यथित न रहें, संगठित रहें और सद्भावी व्यक्तियों का संगठन करें

अपने लक्ष्य को याद रखें 

कि ऋषि परम्परा के कारण ही जीवित हम सनातनधर्मी पुरोहित राष्ट्र को जीवन्त एवं जाग्रत बनाए रखेंगे 

शिष्य बनते हुए भक्ति शक्ति भाव विश्वास प्राप्त करने के लिए हमें प्रतिदिन के इन सदाचार संप्रेषणों की ओर उन्मुख होना चाहिए इनके तत्त्व को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए 

माया से मुक्ति के लिए अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन भक्ति भाव विचार संगति आवश्यक है परमात्माश्रित रहना अनिवार्य है

गीता में अर्जुन भ्रमित हो गए हैं और शिष्य के रूप में भगवान् श्रीकृष्ण से परामर्श लेने के लिए कहते हैं 


कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः


पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।


यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे


शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।


कृपणता के दोष से तिरस्कृत स्वभाव वाला और धर्म के संदर्भ में व्यामोहित अन्तःकरण वाला मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए जो कल्याणकारी हो वह बताइये 

(कृपणता मात्र धन के संदर्भ में ही नहीं होती 

अपने गुणों को व्यक्त न करना भी कार्पण्य है अपने अन्दर की शक्ति को भावों को छुपाना भी कार्पण्य है)

अर्जुन को तब भगवान् ज्ञान देते हैं गीता का ज्ञान प्रारम्भ हो जाता है 


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने शिक्षक श्री माताप्रसाद जी का उल्लेख क्यों किया मुन्नी क्या है किसकी युति ने  वर्तमान उठापटक पैदा की आचार्य जी ने तैत्तिरीय उपनिषद् का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

5.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  5 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६४ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमें शक्ति, बुद्धि,विचार, कौशल की प्राप्ति हो हम मानसिक रूप से उलझनों में न रहें क्योंकि इससे पाचन भी विकृत होता है 

देशसेवा करने में उलझनें आड़े  न आयें इसके लिए अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन व्यायाम प्राणायाम आदि आवश्यक है 

अपने इष्ट से प्रार्थना करें कि 


स्वयं के मान या अपमान की चिंता न  क्षणभर हो 

कभी भी स्वार्थ का लौलुप्य मन में भी न कणभर हो l 

सतत् स्वर गूँजता मस्तिष्क में देशानुरागी हो 

प्रकृति में ईर्ष्या कुण्ठा निराशा भी न तृणभर हो। 

विधाता! इस दशा की जिंदगी का सार मुझको दे 

सदा संतोष संयम शौर्य का संसार मुझको दे l 

सरलता शीलवत्ता के सहित निर्द्वन्द्व मन कर दे 

*कि मेरी कर्मनिष्ठा को समर्पणभाव से भर दे* l


आचार्य जी ने तैत्तिरीय उपनिषद् की भृगुवल्ली की चर्चा की 


भृगु जिनका जन्म 5,000 ईसा पूर्व में ब्रह्मलोक-सुषा नगर (वर्तमान ईरान) में हुआ था  परमात्मा को जानने की उत्कट इच्छा के कारण अपने पिता वेदज्ञ महापुरुष ब्रह्मनिष्ठ वरुण के पास गए 

और कहा 

भगवन् मैं ब्रह्म को जानना चाहता हूं मुझे ब्रह्म के तत्त्व को समझाइये 

पिता कहते हैं अन्न प्राण 

नेत्र श्रोत मन और वाणी 

आदि ब्रह्म की उपलब्धि के द्वार हैं इन सबमें ब्रह्म की सत्ता स्फुरित हो रही है 

और फिर पुत्र को तप करने के लिए भेज दिया 

भृगु पिता के पास पहुंचे और बोले अन्न ही ब्रह्म है 

तो पिता चुप रहे 

भृगु पुनः तपस्या करने चले गए 

इसके आगे आचार्य जी ने क्या बताया किशोरीदास वाजपेयी जी का पाचन क्यों सही नहीं रहता था विवेकानन्द के मन में क्या आया शिवजी को पशुपति क्यों कहा जाता है हम श्राद्ध क्यों करते हैं जानने के लिए सुनें

4.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६३ वां* सार -संक्षेप

हमारे सामने अनेक प्रपंच आते रहते हैं किन्तु हमें एक ऐसा समय निर्धारित करना चाहिए जब हम आत्मस्थ हो सकें अपने पास बैठ सकें अर्थात् उपासना करने का समय निकाल सकें 

क्योंकि अपने भीतर ही परमात्मा विद्यमान है 


नित्यो नित्यानां चेतनश्चेतनानामेको बहूनां यो विदधाति कामान्‌।

तत्कारणं सांख्ययोगाधिगम्यं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः॥


सब अनित्य अर्थात् अस्थायी और असत् से इतर एकमात्र नित्यतत्त्व' है, समस्त चेतनताओं में वही एकमात्र 'चेतन-तत्त्व' है  अनेक की कामनाओं को वह ही एक परिपूर्ण करता है वही एकमात्र 'मूलकारण-स्वरूप' है जिस पर सांख्य एवं योग हमें ले जाते हैं। यदि तुम इसको  अर्थात् परमात्मा को जान लो तो तुम समस्त बन्धनों से मुक्त हो जाओगे।

इसी तरह कठोपनिषद् में है 


नित्योऽनित्यानां चेतनश्चेतनानामेको बहूनां यो विदधाति कामान्‌।

तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां शान्तिः शाश्वती नेतरेषाम्‌ ॥


प्रातःकाल प्राप्त ये सदाचार संप्रेषण हमें आत्मशोध का अवसर प्रदान कर सकते हैं चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करा सकते हैं हमारे अन्दर की सुप्त ऊर्जा के दर्शन करा सकते हैं बस इसके लिए आवश्यक है हम इन पर विश्वास करें



सतत संकल्प को साथी बनाकर चल पड़ो प्यारे 

जमाने की शिकायत हर बसर के साथ बैठी है 

निराशा हर समय पुरुषार्थ से डरती सहमती है 

खड़ी हो जाए पौरुष-ढिग कि उसकी यही हेठी है।

हमारा जीवनदर्शन अद्भुत है इसका रहस्य यदि कुछ क्षणों के लिए ही हमें समझ में आ जाए तो अध्यात्म और पुरुषार्थ को हम संयुत कर लेते हैं 

भटकाव वाले आधुनिक इतिहास से उबरने के लिए हमें गीता मानस उपनिषदों ब्रह्मसूत्र आदि का अध्ययन करना चाहिए 

जो समाज समीक्षा से दूर हो जाता है वह अपने को हानि पहुंचाता है भटकाव से बचने के लिए हमें जाग्रत विवेक का स्थान स्थान पर प्रसार करना चाहिए 

हमारा यह उद्देश्य कतई नहीं होना चाहिए कि हम कमाने वाली शिक्षा ग्रहण करें अपने बच्चों को भी वही शिक्षा दें कमाएं और  फिर मर जाएं घुन की तरह न बनें 

जीने के लिए खाना है या खाने के लिए जीना है इसकी समीक्षा करें 



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया कहां शोर मचा कि चोर आ रहे हैं कहां प्रश्नावली बन रही थी दूसरी दियासलाई लाने के लिए किसने कहा जानने के लिए सुनें

3.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  3 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६२ वां* सार -संक्षेप


सुख, सुविधाओं के कारण,नासमझी के कारण और प्रपंची लोगों के दुष्प्रभाव से भ्रमित होने के कारण हम लोग आत्मविस्मृत हो गए

अब समय है हमें सात्विक जीवनशैली अपनानी चाहिए हमें सनातन धर्म के महत्त्व को समझना चाहिए जिसके चिन्तन में संसार और संसारेतर दोनों का समन्वय है जो हमारा अंधकार दूर करता है

तमसो मा ज्योतिर्गमय

 जो परामर्श देता है कि निर्बलता को दूर करने वाली सात्विक जीवन शैली ही कल्याणकारी है भारतीय संस्कृति सुरम्य है क्योंकि यहां गुरुत्व और शिष्यत्व फलीभूत होता है इसके लिए हमें वेद पुराण उपनिषद् आदि का अध्ययन स्वाध्याय करना चाहिए


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि अपनी संस्कृति भाषा अपने देश पर विश्वास करने का मार्ग खोजें  अपने संतत्व के साथ विवेक को जाग्रत रखें शयन से पूर्व हम अपने इष्ट का ध्यान अवश्य करें इष्ट हमारा मार्गदर्शक होता है जिस  प्रकार अर्जुन को भगवान् कृष्ण ने मार्गदर्शन दिया 



शौर्य पराक्रम धैर्य के प्रतीक नरावतार ज्ञानी विद्वान् अर्जुन पितामह भीष्म गुरु द्रोण आदि को सामने देखकर व्याकुल हो जाते हैं 


गुरूनहत्वा हि महानुभावान्


श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।


हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव


भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्।

२. ५



इन महान् गुरुजनों को मारने की अपेक्षा इस लोक में भिक्षा का अन्न ग्रहण करना अधिक कल्याणकारी है क्योंकि गुरुजनों को मारकर मैं इस संसार में रक्तरंजित अर्थ और काम रूप भोगों को ही भोगूँगा।


करुणा की मलिनता से आच्छादित  कर्तव्यपथ पर भ्रमित हुए मेरे लिये जो श्रेयष्कर हो वह बताइये क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ मुझ शरणागत को आप उपदेश दीजिये।।


तब भगवान् कृष्ण अर्जुन का मार्गदर्शन करते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुरुषोत्तम जी का नाम क्यों लिया रविवार की योजना क्या है जानने के लिए सुनें

2.10.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष  अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  2 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६१ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य  एक भावपूर्ण वातावरण में हमें संयुत करते हुए प्रेरित करते हैं कि हम भय भ्रम निराशा हताशा से दूर रहें उत्थित और जाग्रत हों दिनचर्या और खानपान पर भी ध्यान दें  परिस्थितियों को भांपना सीखें समय पर शक्ति का प्रदर्शन करें वर्तमान को संभालें भावों के साथ विचार और क्रिया पर भी दृष्टि रखें हमारा संगठन  सुदृढ़ रहे आचार्य जी हमें सचेत करते हैं कि हमारे विचार भावों के दास बनकर भटकें नहीं

और कहते हैं कि *सुसज्ज सन्नद्धता* भी आवश्यक है


हम युद्ध भी लड़ते सदा निर्द्वन्द्व निस्पृह भाव से

तुम शान्ति में भी रह नहीं पाते सुशान्त स्वभाव से

हम त्यागकर संतुष्ट रहते जिन्दगी भर मौज से

तुम हर समय रहते सशंकित निज बुभुक्षित फौज से

तुम भोग हो हम भाव हैं तुम रोग हो हम राग हैं 

तुम हो अभावाक्रांत हम इस जगत का अनुराग हैं 

लेकिन समझ लेना न तुम हम शान्त संयत बुद्ध हैं 

हम मुण्डमाली शिव कपाली कालिका का युद्ध हैं


श्रीरामचरित मानस की तरह बहुआयामी क्षेत्रों के द्वार खोलने वाली गीता का संदेश हमें अपने कर्तव्य का स्मरण कराता है 


जब अर्जुन कहते हैं 



यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।


धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्।।1.46।।


यदि मुझ शस्त्ररहित और प्रतिकार न करने वाले व्यक्ति को धृतराष्ट्र के ये शस्त्रधारी पुत्र युद्ध में मारें,  तो भी वह मेरे लिये कल्याणकारी होगा।

और ऐसा कहकर 


एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।


विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।1.47।।


 शोक से उद्विग्न मन वाला अर्जुन बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गया।

तो भगवान् कृष्ण अर्जुन को आर्य -स्वभाव बताते हैं दुष्टता करने पर आर्य दुष्ट को आंखें दिखाना भी जानता है शत्रु को ताप देना वह बखूबी जानता है यही सनातन धर्म है जिस पर गीता आधारित है शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनिवार्यता को गीता इंगित करती है 



तीसरे गाल और साध्वी ऋतम्भरा का क्या प्रसंग है 2 अक्टूबर के विषय में आचार्य जी ने क्या कहा भैया प्रदीप जी का नाम क्यों लिया किसकी हत्या की चर्चा हुई जानने के लिए सुनें

1.10.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 अक्टूबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११६० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज आश्विन कृष्ण पक्ष  चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  1 अक्टूबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११६० वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं कि हमारे अन्दर बेचारगी तनिक भी न आए 

आचार्य जी द्वारा रचित निम्नांकित चार पंक्तियां हमें प्रेरित कर रही हैं कि किस प्रकार संगठित रहते हुए हमें परिस्थितियों का सामना करना है 


जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें 

कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें 

हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो 

छुनौती कोइ भी हो हम न उससे भीत हो भागें



भगवान् राम और भगवान् कृष्ण दोनों ने संगठन किया  दोनों के सामने विषम परिस्थितियां थीं लेकिन उन्होंने डटकर उनका सामना किया ये हमारे मार्गदर्शक हैं अद्भुत प्रकाश की किरणें फैलाने वाली हमारी परम्परा अद्भुत है

 जो हमें  शौर्य पराक्रम धैर्य संयम पुरुषार्थ का बोध कराती है  इसलिए हमारे अन्दर कायरता का भाव लेशमात्र भी नहीं आना चाहिए रामादल की तरह संगठन करें 

समस्याएं बहुत सी हैं हमें उनका समाधान करना है 


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।२/४७।।

तुलसीदास जी जिनकी यशधारा कभी नहीं सूखेगी के सामने भी विषम परिस्थितियां थीं अकबर समाज को व्यामोहित किए था ऐसे में उन्होंने मानस की रचना की जिसने तन्द्रिल तरुणावस्था को जाग्रत किया यह ग्रंथ संकटों में सहारा बना 

तुलसीदास ऐसे मार्गदर्शक, आदर्श,शक्ति के केन्द्र, विश्वास के आधार बने जिनकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती आचार्य जी लिखते हैं 


तुलसी तुम अंधकार के दीप दिवस की.....

समस्याओं से निजात पाने के लिए हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कर्मशील बनना चाहिए 

हम राष्ट्रभक्त कुक्करों में निहत्थे घिर न जाएं इस ओर ध्यान रखें सजग रहें निराशा हताशा से दूर रहें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष जी का नाम क्यों लिया धूपड़ जी और वीर कुंवर का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें