31.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 31 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८२ वां* सार -संक्षेप

 अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची  अवन्तिका। पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 31 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८२ वां* सार -संक्षेप


अद्भुत गुरुत्व के धनी आचार्य जी दीर्घकाल से हमें जाग्रत उत्थित उत्साहित करते आ रहे हैं हमें कर्मानुरागी बनाने का प्रयास करते आ रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है

आचार्य जी चाहते हैं कि हम भगवान् की कृपा -छाया का  आनन्द लें  हम उस रामत्व की अनुभूति करें जिससे हमारी भारत माता स्वस्थ व प्रसन्न रह सकें हम अपने भीतर भारत रूपी मन्दिर का अनुभव करें हम कर्मफल का आश्रय न लेकर कर्तव्य-कर्म करने में ध्यान दें 

गीता में एक श्लोक है 

योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।


एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थितिं स्थिराम्।। ६/३३


जब तक मन के चाञ्चल्य का नाश नहीं होगा, तब तक ध्यानयोग सिद्ध नहीं होगा और ध्यानयोग सिद्ध हुए बिना समता की प्राप्ति नहीं हो सकती


हमारे मन जिन्हें आनन्द को भोगने का अभ्यास हो जाता है  उन्हें अभ्यास और वैराग्य से वश में कर सकते हैं यदि क्षणांश में ही सही वैराग्य का अनुभव हो जाए तो यह अत्यन्त लाभकारी है 

किसी भी विषय का या कार्य का अभ्यास एक अत्यन्त गहन गम्भीर विषय है जिस प्रकार की परिस्थितियां हैं उन्हें देखते हुए हमें राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित बनना है  हमें इसी का अभ्यास करना है हमें उस अध्यात्म का आश्रय लेना है जो शौर्य से प्रमंडित हो अपनों की रक्षा के लिए कृतसंकल्प होना है भारत पर कुदृष्टि रखने वाली दुरात्माओं से सचेत रहना है

जो रचे यहाँ आतंकी रचना,

भेंट मौत के चढ़ाएंगे,

सोने की चिड़िया  भारत माँ हो,

ऐसा स्वप्न सजाएंगे,



कोटि कोटि हिन्दुजन का,

हम ज्वार उठा कर मानेंगे,

सौगंध राम की खाते हैं,

भारत को भव्य बनाएंगे,

भारत को भव्य बनाएंगे।।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी को क्या परामर्श दिया साइकिल वाला क्या प्रसंग है आचार्य जी ने मां सीता और भारत माता की तुलना किस तरह की जानने के लिए सुनें

30.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 30 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 30 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८१ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य हमें  जाग्रत उत्थित उत्साहित करते हैं शौर्य अर्जित कराते हैं यह हमारा सौभाग्य है आचार्य जी कहते हैं 

*जलता रहा अभी तक अब भी सतत जलूंगा* 

*जिस मोड़ पर रुकोगे उस पर वहीं मिलूंगा*

इन तात्त्विक वेलाओं के माध्यम से आचार्य जी हमें भटकने से बचाते हैं और हमसे अपेक्षा करते हैं कि 

आत्मशक्ति -प्राप्ति के लिए अध्ययन, स्वाध्याय,चिन्तन, मनन और लेखन के साथ 

संगठन के महत्त्व को हमें समझकर संगठित रहना है एक दूसरे की सहायता करते रहना है

अपनी भूमिका को समझकर पूर्ण प्रमाणिकता से उसका निष्पादन करना है

उमंग से भर सन्मार्ग पर चलना है अंधकार को चुनौती देते हुए अपना प्रकाश फैलाना है समस्याओं के आगे झुकना नहीं है भावी पीढ़ी के भय भ्रम को दूर कर उसे जूझना सिखाना है


विश्व भर की आशा बने भारत को संवारने का काम जारी रखना है

अध्यात्म जो विचित्र संसार जिसे कोई सत्य कहता है, कोई मिथ्या बतलाता है और कोई सत्य—मिथ्या से मिला हुआ मानता है  तुलसीदास जिनमें अध्यात्म बहुत गहराई तक प्रविष्ट था के मत से तो जो इन तीनों भ्रमों से निवृत हो जाता है वही अपने असली स्वरूप को पहचान सकता है।

(कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै।

तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सो आपन पहिचानै॥)

 और इसी संसार जिसमें माया जो वास्तव में है ही नहीं दिखलाई देती रहती है 

*सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे*

 और सार दोनों को संयुत करता है को समझकर संसार में रहने की युक्ति जान लेने वाले पुरुष बनना है

यह संसार तो ऐसा है जिसमें जो होना होता है वह होकर रहता है शौर्यप्रमंडित अध्यात्म यही कहता  है कि होनी को कोई नहीं टाल सकता है प्रयागराज में कुम्भ की ही दुर्घटना देखिए जिसने हम सब राष्ट्र -भक्तों को दुःखी कर दिया 

व्यास जी महाराज ने भी कुंती को यही समझाया कि होनी टल नहीं सकती थी 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी की चर्चा क्यों की कवि -गोष्ठी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

29.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि (मौनी अमावस्या ) विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 29 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२८० वां* सार -संक्षेप

 ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥ 

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि (मौनी अमावस्या ) विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 29 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२८० वां* सार -संक्षेप

आज मौनी अमावस्या के दिन

हमारे हर कार्य व्यवहार में राम का रामत्व,जो भारत का तत्त्व है, प्रविष्ट हो भा में रत भारत के हम भक्त शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करें भारत का बोझा माथे पर लें सदाचरण के मार्ग पर चलें विभूतिमत्ता का हमें अहसास हो अर्थात् 

अपने मनुष्यत्व में ईश्वरत्व का प्रवेश कराएं आचार्य जी जो हमारे स्वरूपों में भारत के दर्शन करते हैं हमसे इनकी अपेक्षा कर रहे हैं

अद्भुत है यह संसार जहां विकार हैं समस्याएं हैं तो विचार भी हैं व्यवहार भी हैं समाधान भी हैं हम यह अनुभव करें कि अंशी के हम  अविनाशी अंश किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम हैं हम गर्व करें कि देश और समाज के लिए जीने वाले हम उस देश में जन्मे हैं जहां का मूल मन्त्र है अविनाशी अनन्त सनातन धर्म

जहां शिवा जी गुरु गोविन्द सिंह महाराणा प्रताप आदि इसके रक्षक रहे हैं

हमें अपने को अपने रिश्ते नातों को सुरक्षित करने के लिए संगठन के महत्त्व को समझना ही होगा अपनी शक्ति का संवर्धन भी करना होगा हम शक्ति की अनुभूति करें जैसी विषम परिस्थितियों से घिरे भारत की दुर्दश देख गोस्वामी राष्ट्र -भक्त तुलसीदास ने की तभी उन्हें वे राम प्रिय थे जो धनुष बाण हाथ में लिए हों 


का बरनउ छवि आपकी भले बने हो नाथ। तुलसी मस्तक तब नवे जब धनुष बाण लेउ हाथ।।”


राम हर स्थान पर रमे हैं 

राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार।

‘तुलसी’ भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥


किसी भी विकट से विकट परिस्थिति में भी राम निराश हताश नहीं हुए उन परिस्थितियों का वे शमन संयमन करते रहे और परिस्थितियां उन्हें अपने लक्ष्य से डिगा नहीं सकीं 

इसके अतिरिक्त भैया नीरज जी और आचार्य जी का दाढ़ी  वाला कौन सा प्रसंग था भाव -स्नान क्या है  कवि -गोष्ठी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

28.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 28 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 28 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७९ वां* सार -संक्षेप

हमारी परंपराओं का स्मरण कराने वाले ये सदाचार संप्रेषण इतने अद्भुत हैं कि सात्विक वृत्ति के हम लोग नित्य इनकी प्रतीक्षा करते हैं संसार जब आधिक्य के साथ हमसे संयुत हो जाए तब इनकी शरण में आना श्रेयस्कर है कुछ क्षणों के लिए संसारी भाव से हटने का प्रयास करना चाहिए 

यद्यपि चंचल मन को वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन है इसी के आधार पर महाभारत के माध्यम से यह समझाया गया है कि संसार एक युद्धस्थल है जिसमें हमें संघर्ष करना है बिना संघर्ष के संसार में कुछ नहीं है हमें अपनी भूमिका पता होनी चाहिए हमें रामत्व की अनुभूति होनी चाहिए 

राम और राम का परिवार भारत के लिए एक आदर्श है और जब जब भारत संकटग्रस्त हुआ है तब तब राम और राम के परिवार का स्मरण हुआ है राम -परिवार में चार पात्र मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं राम लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न और  उन चारों में अगाध प्रेम रहा है 

गोस्वामी तुलसीदास ने उसी तरह के एक संकट  (जब कुटिल अकबर का शासन था )में हमारे सामने प्रस्तुत कर हमें एक बार फिर  उनकी याद दिला दी

शत्रुघ्न अत्यन्त बलशाली किन्तु शांत 

सदैव युद्ध के लिए उत्साहित चरित्र हैं 

अद्भुत शक्ति -पुञ्ज 

उन्हें सुप्त ज्वालामुखी कहा जा सकता है 

जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा॥

 जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश होता है, उनका वेदों में सुविख्यात 'शत्रुघ्न' नाम है।


पुराणों के अनुसार शत्रुघ्न भगवान नारायण के प्रमुख अस्त्र सुदर्शन चक्र के अवतार थे।

जब नन्दिग्राम में भरत तपस्वी रूप में रहे हैं शत्रुघ्न के ही सिर पर संपूर्ण अयोध्या का भार रहा है 

साथ ही माताओं की देखभाल भी उन्होंने की 

उनका पराक्रम ही कहा जायेगा कि अयोध्या पूर्णत सुरक्षित रही।

 वे सेवा के एक अप्रतिम स्वरूप हैं

शत्रुघ्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति था जो कुशध्वज की बेटी थीं l


इसके अतिरिक्त संध्या क्यों अनिवार्य है भैया शैलेन्द्र पांडेय जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

27.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 27 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७८ वां* सार -संक्षेप

 यह क्या मधुर स्वप्न-सी झिलमिल


सदय हृदय में अधिक अधीर,


व्याकुलता सी व्यक्त हो रही


आशा बनकर प्राण समीर।



यह कितनी स्पृहणीय बन गई


मधुर जागरण सी-छविमान,


स्मिति की लहरों-सी उठती है


नाच रही ज्यों मधुमय तान।

( आशा,कामायनी )


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 27 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७८ वां* सार -संक्षेप



परिस्थितियां विषम हैं तथापि इत्थम्भूत आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उत्साहित उत्थित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है हमसे अत्यन्त लगाव के कारण आचार्य जी प्रयास करते हैं कि  भगवान् के अंश हम बुद्धि,विचार, चैतन्य, शक्ति और भक्ति से भली प्रकार से पूरित रहें हम अनुभव करें कि हमारे भीतर कुछ न कुछ विशेषता है 

(यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।)

हम एक उदाहरण बन सकें 

*पथ आप प्रशस्त करो अपना*

हमारे माध्यम से समाज और देश से लगाव के कारण भी ऐसा है ताकि समाज और देश 


(जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ)


 चैतन्य जाग्रत सत् असत् में भेद करने में सक्षम रहे


आचार्य जी इन दिनों भक्ति,जो 

उत्पन्ना द्रविडे साहं वृद्धिं कर्नाटके गता ।

क्वचित् क्वचित् महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता ॥

भागवत पुराण १३/१/४८ है ,


 पर चर्चा कर रहे हैं भक्ति में भी निर्भरा भक्ति विशेष है 

भक्ति भाव में डूबे तुलसीदास जी कहते हैं 

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥ 2॥


हे प्रभु राम जी! आपकी अद्भुतता का मैं एक भाग यह सत्य कहता हूं और वैसे तो आप सब जानते ही हैं कि मेरे हृदय में दूसरी कोई  इच्छा नहीं है। आप मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को षड्विकारों से दूर कीजिए


नारदभक्तिसूत्र में भक्ति अमृतस्वरूप कही गई है जिसे भी यह प्राप्त हो जाए वह अमर हो जाता है व्यासपूजा में अनुराग ही भक्ति है गर्गाचार्य के अनुसार कथा- श्रवण में अनुरक्ति ही भक्ति है

जिन व्यक्तियों को देशभक्ति की लगन लग गई उन्होंने प्राणों को कुछ नहीं समझा जैसे पं दीनदयाल जी ने देश के उत्कर्ष के लिए देशभक्ति में रमने डूबने के कारण न अपना career देखा न खाने पीने पर ध्यान दिया उनमें भक्ति का अद्भुत भाव जगा 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम निराश न रहें 


नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो


जग में रह कर कुछ नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो


समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को


नर हो, न निराश करो मन को

इसके अतिरिक्त अपनी जीवनचर्या हम कैसी बनाएं जानने के लिए सुनें

26.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 26 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७७ वां* सार -संक्षेप

 जो करता है परमात्मा करता है 

और परमात्मा सब अच्छा ही करता है 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 26 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७७ वां* सार -संक्षेप


*हमारे देश की धरती गगन जल सभी पावन हैं* 

*सभी  सुन्दर सलोने शान्त सुरभित मञ्जु भावन हैं*

*यहां पर जो रमा मन बुद्धि आत्मिक अतल की गहराई से* 

*उसको लगा करती धरा माता  सुजन सब भाई से*

*पर सिर्फ धन की प्राप्ति जिनका जन्मजात स्वभाव है* 

*उनको सदा दिखता यहां सर्वत्र अमिट अभाव है*

हमको यहां अभाव न देखकर भारत का प्रभाव देखना है इस प्रभाव का भाव हमारे भीतर प्रविष्ट हो हम भारत -भक्त बनें यह अनुभूति करें कि हम तो राम-काज के लिए जन्मे हैं 

कुशंकाओं से भरे इस कलियुग में जिसमें विश्वास एक दुर्लभ भाव बोध है हम परमात्मा पर विश्वास करते हुए भक्तिपूर्ण ढंग से उस पर आश्रित रहें प्रेम आत्मीयता का प्रसार करें व्यसनों से दूर रहें हमें निर्भरा भक्ति (भक्ति ही श्रद्धा है प्रेम है शृङ्गार है विश्वास है )में डूबने का अवसर मिले हमारे मन काम आदि षड्विकारों से मुक्त रहें आचार्य जी नित्य यही प्रयास करते हैं हमें प्रबोधित करते हैं  और उत्साहित करते हैं 


उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम्, शूरं

कृतज्ञं दृढसौह्रदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ll 

आचार्य जी ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया कि लक्ष्मी ईश्वर का सहारा है लक्ष्मी के माध्यम से ही परमात्मा सृष्टि रचता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी को भैया नीरज कुमार जी ने कौन सी pdf file भेजी भैया शैलेन्द्र पांडेय जी ने शत्रुघ्न की चर्चा क्यों की 

भैया डा मलय जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

25.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 25 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७६ वां* सार -संक्षेप

 भारत के शौर्य जगो निष्ठा जागो तप त्याग जगो

संपूर्ण समर्पण वाले दृढ़  अनुराग जगो

...


जागो  रे हरि सिंह नलवा वाले विक्रम 

राणा सांगा के अतुलनीय आवेश जगो

राणा प्रताप की आन बान अभिमान जगो

...


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 25 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७६ वां* सार -संक्षेप


एक अद्भुत ईश्वरीय व्यवस्था के अन्तर्गत प्राप्त ये सदाचार संप्रेषण हमें विषम परिस्थितियों से जूझने की शक्ति देते हैं हमें  जो हर भारत -भक्त हताश की आशा हैं उस कर्मपन्थ पर चलने का हौसला देते हैं जिससे उस निराश भारत -भक्त की निराशा दूर हो सके आत्मबोधोत्सव मनाने का उत्साह देते हैं अपने को पहचानने का मार्ग दिखाते हैं कि हम पौरुष शक्ति पराक्रम के वही प्रतीक हैं जो समराङ्गण में शत्रु के वारे न्यारे करने में सदैव समर्थ सक्षम रहे हैं

आइये नीराजना करते हुए प्रवेश करें आज की वेला में


अपने को पहचानो प्यारे 

मैं हवन -गंध मैं यज्ञ -अर्चि मैं सामगान मैं ऋषि महर्षि 

मैं पौरुष शौर्य पराक्रम हूं अनुशासन का मैं अनुक्रम हूं..


आज की परिस्थितियां ऐसी हैं कि हमें अपने को पहचानने की आवश्यकता है हमने उस अद्भुत देश भारत में जन्म लिया है जिसने अनेक अनुसंधान किए क्षेत्र चाहे अध्यात्म हो गणित हो विज्ञान हो आयुर्वेद हो ज्योतिषी हो मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति कराई

हमने ही बताया कि हम अंशी के अंश होने के कारण सब कुछ करने में सक्षम हैं हमारा सनातन धर्म अक्षुण्ण है

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम परमार्थ मन्त्र जपने वाले सरल संन्यासी बनें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करते हुए और विकट परिस्थितियां देख भागें नहीं अपितु अपने लक्ष्य का ध्यान रखें कि वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः,अपने सद्गुण का विस्तार करें आत्मशक्ति आत्माभिव्यक्ति को मां भारती के सामने प्रस्तुत करें देश और समाज के कल्याण के लिए संगठित रहें अपने कुल वंश परिवार परम्परा का परिपालन करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने माया का अर्थ बताया २ फरवरी २०२५ को काव्योत्सव को उत्साह से मनाने का मन्त्र दिया 

भैया राघवेन्द्र जी भैया आलोक जी भैया दिनेश प्रताप जी भैया विकास जी भैया डा पंकज जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया  सखा और सरवा में क्या अन्तर है शृङ्गार शक्ति कैसे है जानने के लिए सुनें

24.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष दशमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 24 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष दशमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 24 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७५ वां* सार -संक्षेप


यह आनन्दमय संयोग है कि ये अत्यन्त लाभकारी सदाचार संप्रेषण हमें प्राप्त हो रहे हैं

हमें इनका श्रवण कर लाभ उठाना चाहिए हम सौभाग्यशाली हैं कि आचार्य जी नित्य हमें प्रबोधित उत्साहित उत्थित कर रहे हैं हम इस कारण भी सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म ऋषियों द्वारा रचित इस देश में हुआ है यहां अनेक तपस्वी महापुरुषों ने जन्म लिया 

कल आचार्य जी ने मानस के उस प्रसंग की चर्चा की थी जिसमें लक्ष्मण भगवान् राम से पूछ रहे हैं कि ज्ञान और भक्ति क्या हैं


ज्ञान में विचार प्रमुख है जब कि भक्ति में भाव प्रमुख है

विद्या अविद्या में विभाजित ज्ञान जानकारी है भक्ति एक ऐसी शक्ति है जो समर्पित हो जाती है ज्ञानी इतिहास लिखता है

 भक्त इतिहास का निर्माता है

भक्ति मनुष्य के लिए अनिवार्य है भले उसमें कितने गुण हों 


जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥

भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥3॥


जाति, पाँति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चातुर्य के होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य उसी की तरह लगता है, जैसे जल से विहीन बादल शोभाहीन दिखता है


जब भक्ति के प्रसंग भावसहित भजे जाते हैं तो शक्ति प्राप्त होती है भक्तिमय शक्ति अद्भुत होती है व्यक्ति सब परिस्थितियां भूल जाता है वह विशेष भाव में रहता है

भक्ति नौ प्रकार की कही गई है  

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥ आदि 


नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई॥3॥

 मुझे वही अत्यंत प्रिय हो जाता है और जिनमें सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है तो जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वही गति उनके लिए सुलभ हो  जाती है

मानस में  ज्ञान और भक्ति के अनेक प्रसंग है मां शबरी का प्रसंग है 

कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि।

प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि॥34॥

यहां प्रेम की पराकाष्ठा दिखी

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सपन कुमार जी भैया मनीष कृष्णा जी का नाम क्यों लिया  क्या शबरी ने भगवान् को जूठे बेर खिलाए थे विद्यालय में रामकथा से क्या प्रभाव हुआ जानने के लिए सुनें

23.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष नवमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 23 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७४ वां* सार -संक्षेप

 पुलक गात हियँ सिय रघुबीरू। जीह नामु जप लोचन नीरू॥

लखन राम सिय कानन बसहीं। भरतु भवन बसि तप तनु कसहीं॥1

गात्र अर्थात् शरीर पुलकित है, हृदय में सीता राम हैं। जीभ राम नाम जप रही है, नेत्रों में प्रेम का जल  है। लक्ष्मण,सीता और प्रभु राम तो वन में बसते हैं, परन्तु भक्त भरत जो सब प्रकार से सराहने योग्य हैं जिनके व्रत और नियमों को सुनकर साधु-संत भी सकुचा जाते हैं जिनकी स्थिति देखकर मुनिराज भी लज्जित होते है,

 घर ही में रहकर तप के द्वारा शरीर को कस रहे हैं

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष नवमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 23 जनवरी 2025 (पराक्रम दिवस )का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७४ वां* सार -संक्षेप

ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत है गम्भीर पारगामी विद्वान् आचार्य जी नित्य हमें उत्साहित प्रबोधित उत्थित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है इन संबोधनों को सुनकर हमें शक्ति मिलती है संसार में रहने का उत्साह आता है 


भक्ति और ज्ञान के कई प्रसंग गीता, मानस, अन्य ग्रंथों में आये हैं मानस तो एक अद्भुत ग्रंथ है आइये इसमें प्रवेश करें 

काहु न कोउ सुख दु:ख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥2॥


 लक्ष्मण जो स्वयं ज्ञान, वैराग्य और भक्ति से परिपूर्ण हैं मधुर कोमल वाणी द्वारा कहते हैं - हे  निषादराज भाई! कोई किसी को सुख-दुःख का देने वाला नहीं है। सब अपने ही किए हुए कर्मों का फल भोगते हैं

यह अयोध्या कांड का प्रसंग है इसके बाद

अरण्य कांड प्रारम्भ हो जाता है स्फटिक शिला वाला जयन्त का प्रसंग है प्रभु राम जो कह चुके हैं 

जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥

अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥


हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों ! डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा और पवित्र सूर्यवंश में अंशों सहित मनुष्य का अवतार लूँगा,

 सीता और लक्ष्मण ऋषि अत्रि के आश्रम पहुंचते हैं 

इसके बाद पंचवटी पहुंच जाते हैं जो अत्यन्त आनन्ददायक है

वही ज्ञानवान् भक्त लक्ष्मण कहते हैं 

सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥


एक बार प्रभु श्री राम  सुखपूर्वक बैठे हुए थे। उस समय शेषावतार लक्ष्मण ने शेष पर शयन करने वाले भगवान् से सरल वचन कहे- हे सुर , मनुष्य, मुनि चर अचर सभी के स्वामी! मैं अपने प्रभु  जैसा आपको मानकर आपसे पूछता हूँ

(भगवान् राम जो समझाते हैं वही राम -गीता है )


ज्ञान, वैराग्य और माया का वर्णन कीजिए और उस भक्ति को कहिए, जिसके कारण आप दया करते हैं


ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।

जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥

मूल प्रश्न है  अंश और अंशी का भेद क्या है अंशी अर्थात् ईश्वर जिसके पास सब कुछ है और जीव जो उसका अंश  है  उसके पास भी सब कुछ है लेकिन वह जान नहीं पाता


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सपन कुमार के पिता जी श्री सुभाष चन्द्र दुबे जी की चर्चा क्यों की भैया पुनीत जी भैया पंकज जी आदि का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

22.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 22 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७३ वां* सार -संक्षेप

 ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।


ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।

ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ व्यक्ति का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 22 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७३ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी जो हमारे मां पिता और मार्गदर्शक के रूप में हैं नित्य हमें प्रबोधित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है 

हम शुद्ध रूप में आते हैं और माया की वजह से सांसारिकता के कारण अशुद्ध हो जाते हैं प्रातःकाल की इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य है कि हम अपने को पहचानें

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।


निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।

हे अर्जुन तीनों गुणों से रहित , निर्द्वन्द्व , निरन्तर नित्य वस्तु परमात्मा में स्थित हो जाओ ,योगक्षेम की कामना भी न रखो और परमात्मपरायण हो जाओ ।

हम भी प्रभु से यह वरदान मांगे कि शरीर हमारा साथ देता रहे और मन शांत संयत रहे चुनौतियों से डरें नहीं अपने देश के अतीत को भी न भूलें कि विषम परिस्थितियों के कारण भी हम मिटे नहीं इससे हमें शक्ति मिलेगी चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें 

 ज्ञान ध्यान जो भी करें अपने समाज के लिए अपने देश भारतवर्ष के लिए करें देश और समाज परिवार रूप में हमें लगे यह प्रयास करें 

विश्व में भारतवर्ष एकमात्र ऐसा देश है जो परिवार के आधार पर ही अपने पल्लवन की अनुभूति करता है और परिवार के भाव को विस्तार प्रदान करते हुए ही कहता है 

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। · उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥

यह भारतीय चिन्तन है हम भी ऐसा ही अनुभव करें कि हमारे परिवार वाले सब अपने ही हैं उनमें कमियां तो रहेंगी ही जैसे हमारे अन्दर रहती हैं 

यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।


समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।


जो कर्मयोगी फल की इच्छा से रहित होकर  अपने आप जो कुछ मिल जाय, उसमें ही सन्तुष्टि की अनुभूति करता रहता है और जो ईर्ष्या से रहित(लालच न करें ), द्वन्द्वों से अतीत तथा सिद्धि और असिद्धि दोनों में समान अवस्था में रहता है, वह कर्म करते हुए भी उससे नहीं बँधता।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मलय चतुर्वेदी जी और भैया शीलेन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया मालवीय जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें

21.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 21 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७२ वां* सार -संक्षेप

 कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है

हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 21 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७२ वां* सार -संक्षेप


आइये प्रवेश करें आज की वेला में 

जब भी हम ऊहापोह में हों तो हमें मानस ग्रंथ का आश्रय लेना चाहिए जो हमें अनुभूति कराता है कि हम तत्त्व शक्ति विश्वास सब कुछ हैं यह हमें सही राह दिखाता है

अध्यात्म सदैव शौर्य से प्रमंडित हो यह सिद्ध कराता है इसके प्रसंगों को हम  पढ़ें अपने भीतर प्रवेश कराएं निश्चित रूप से यह हमारा सहारा बन जाएगा राम का अद्भुत स्वरूप सामने आ जाता है अपने अंदर रामत्व का प्रवेश कराएं जो कर्म का आदर्श है भावार्णव है सेवा का एक विलक्षण उदाहरण है 

मानस में अयोध्या कांड का एक प्रसंग है  संपूर्ण विश्व में रमे भगवान् राम वन की ओर चल  पड़े हैं 

सुमन्त लौट चुके हैं अब वे भारत के सौन्दर्य को वृद्धिङ्गत करने वाले जयस्वी तपस्वी तेजस्वी उद्भट विद्वान् आदिकवि वाल्मीकि आश्रम पहुंचने वाले हैं 


देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीकि आश्रम प्रभु आए॥

राम दीख मुनि बासु सुहावन। सुंदर गिरि काननु जलु पावन॥3॥


सुंदर वन,सरोवर एवं पर्वत का अवलोकन कर प्रभु श्री राम वाल्मीकि जी के आश्रम में पहुंच गए और देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है, जहाँ सुंदर पर्वत, वन और पवित्र जल है

सरोवरों में कमल और वनों में वृक्ष फूल रहे हैं मकरन्द रस में मस्त हुए भौंरे सुंदर गुंजार कर रहे हैं। पक्षी और पशु कोलाहल कर रहे हैं और वैररहित  प्रसन्न मन से विचरण कर रहे हैं

यह देख प्रभु राम प्रसन्न हो गए उनके आगमन की सूचना पाकर मुनि वाल्मीकि जी उन्हें लेने के लिए आगे आए सन्त के सामने भगवान् लेट गए सम्मानपूर्वक मुनि उन्हें आश्रम में ले आए 

 वाल्मीकि जी ने  मधुर कंद, मूल और फल मँगवाए। मां सीता, लक्ष्मण और प्रभु राम ने फल ग्रहण किए  तब मुनि ने विश्राम करने के लिए उन्हें  स्थान बता दिया



फिर मुनि की भगवान् से वार्ता हुई उन्होंने वनगमन का कारण बताया अन्त में 

अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ। सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ॥

तहँ रचि रुचिर परन तृन साला। बासु करौं कछु काल कृपाला॥3॥


भगवान् ने उनसे पूछा कि ऐसा स्थान बतलाइए जहाँ मैं लक्ष्मण और सीता सहित जाऊँ और वहाँ सुंदर  पर्णकुटी बनाकर कुछ समय निवास कर सकूं 

वाल्मीकि बोले- धन्य! धन्य! हे रघुकुल के ध्वजास्वरूप! आप ऐसा क्यों न कहेंगे? आप सदैव वेद की मर्यादा की रक्षा करते रहे हैं जानकी जी  माया हैं, जो कृपा के भंडार आपका रुख पाकर जगत का सृजन, पालन और संहार करती हैं। जो हजार मस्तक वाले सर्पों के स्वामी हैं पृथ्वी को अपने सिर पर धारण किए हैं, वही चर-अचर के स्वामी शेषजी लक्ष्मण हैं। देवताओं के कार्यहेतु आप राजा का रूप धारण करके दुष्ट राक्षसों की सेना का नाश करने के लिए चले हैं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी कविगोष्ठी जिसका उद्देश्य यह है कि हमारे आचरण में परिवर्तन आए की चर्चा की 

आचार्य जी ने परामर्श दिया 

यह कविगोष्ठी वर्तमान रूढ़िबद्ध नियमों से हटकर सर्वप्रथम एक प्रेरक,उद्देश्य पूर्ण भूमिका के साथ प्रारम्भ की जानी चाहिए,  ताकि इसके महत्व को सुधी श्रोतागण समझें । मात्र मनोरंजन तक हम सीमित न रहें।

और आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया  बैरिस्टर साहब का कवि सम्मेलन से क्या जुड़ाव रहा  अर्चन पूजन भजन क्या हैं जानने के लिए सुनें

20.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 20 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७१ वां* सार -संक्षेप

 भौतिक विकास भी अच्छा है और यह होता रहना भी चाहिए किन्तु अपने मूल तत्त्व को विस्मृत किए बिना...


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 20 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७१ वां* सार -संक्षेप



वर्तमान परिस्थितियों पर दृष्टिपात करते हुए  और उनसे अनुकूलन स्थापित करते हुए सदाचारमय विचारों का अपने परिवार में नई पीढ़ी में किस प्रकार संचरण कर सकते हैं यह मार्ग हमें खोजने की आवश्यकता है इससे परिवार में नई पीढ़ी में गांभीर्य आयेगा इसी का नाम संस्कार है

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम सार्थक कार्य करें

जैसे जब भी अवसर उपलब्ध हो नई पीढ़ी को अपने अनुभवों से लाभ प्रदान करें   और उससे जो कहें वैसा करें भी यदि  हम कहें कि मृदु वाणी बोलो तो स्वयं भी मृदु वाणी ही बोलें 

इसी बात का एक आख्यान है जिसमें बहुत दिन के बाद भी युधिष्ठिर याद नहीं कर पाए कि 


सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।

तैत्तिरीय उपनिषद्, शिक्षावल्ली, अनुवाक ११, मंत्र १)

फिर उन्हें सत्यं वद याद हो पाया क्यों उन्होंने केवल कहा नहीं उसे आचरण में लाए 

सत्य, धर्म के साथ स्वाध्याय को भी हमारे ग्रंथों में बहुत विस्तार से समझाया गया है


स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का भी अध्ययन जैसा हमारे मनीषियों ने किया ज्ञान भीतर से ही उत्पन्न होता है


आचार्य जी ने कल की बैठक की चर्चा की जिसमें आचार्य जी सहित १९७७ से २०२३ बैच के २४ सदस्य उपस्थित रहे


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 


ज्ञान नसीहत का खुमार है, ध्यान यहाँ सोना-चांदी

विश्वासों की छत  नीचे सोई रिश्तों की आबादी

दुनिया रंगमंच दुनिया सागर दुनिया संग्राम है

दुनिया सुख-दुख की प्रहेलिका मग का एक मुकाम है

लेकिन दुनिया पर दुनियादारों को पूरा नाज है ॥५॥ 

का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

19.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 19 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७० वां* सार -संक्षेप

 जहां अच्छे लोग एकत्र हो रहे हैं तो इसका अर्थ है कोई दैवीय शक्ति सद्गुणों का प्रसार कर रही है


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 19 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७० वां* सार -संक्षेप


एक महानिबन्ध के रूप में हमारे लिए अत्यन्त हितकारी ये सदाचार संप्रेषण हमें प्राप्त हो रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है



मनुस्मृति में धर्म के जो दस लक्षण बताए गए हैं वो किसी जाति पंथ मजहब के न होकर मानवीय लक्षण हैं जो संकुचित मस्तिष्क वाले लोगों  जो अपने और दूसरों के बीच में भेदभाव करते हैं,से इतर हर ऐसे मनुष्य को चाहिए जो संपूर्ण वसुधा को अपना कुटुम्ब मानते हैं

जहां सत् है वहां बीज रूप में असत् भी विद्यमान् रहता है और जहां असत् है वहां बीज रूप में सत् भी रहता है चोर को चांदनी रात नहीं भाती है उसे तो अंधकार प्रिय है उससे इतर हमारा काम है प्रकाश फैलाना हम अंधकार दूर करने का प्रयास कर रहे हैं इसी सिलसिले में आज कानपुर में बैठक है जिसमें चित्रकूट जहां भगवान् राम ने उसे अपनी कर्मभूमि बनाकर शक्ति का संचय किया और समाज को संगठित किया  नानाजी ने भी इसे अपनी कर्मभूमि बनाया में एकत्रीकरण पर विचार होगा वहां ७ फरवरी को पहुंचकर   ९ फरवरी को लौटने की योजना है 

९ की रात्रि प्रयाग पहुंचने की योजना है जिसमें कुम्भ में 

भैया कुमार आनन्द अग्रवाल जी १९८७ बैच शिविर लगा रहे हैं और हमें आमन्त्रित कर रहे हैं 

हनुमान जी हमारा मार्ग निष्कंटक कर रहे हैं और हमें शक्ति सामर्थ्य दे रहे हैं हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 

भैया पुनीत श्रीवास्तव जी भैया अरविन्द तिवारी जी भैया रवीन्द्र प्रकाश जी, भैया अनुराग जी भैया प्रवीण जी भैया मनीष कृष्णा जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

18.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष पञ्चमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 18 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६९ वां* सार -संक्षेप

 त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।


कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः।।4.20।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष पञ्चमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 18 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६९ वां* सार -संक्षेप


अपने शिक्षक धर्म का पालन करते हुए अनेक विचारों से आवृत्त हुए असामान्य बुद्धिमान् ज्ञानवान् मतिमान् संवेदनशील भावनासम्पन्न विशुद्ध आत्मा परमात्मा के प्रति अनुरक्त आचार्य जी नित्य हमें स्मरण कराते हैं हमें जाग्रत करते हैं


(जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक


व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक)


कि हमारा कर्तव्य निर्विकार होते हुए कि हमें संसार से सांसारिक वस्तुओं से किसी व्यक्ति से किसी स्थान से कोई लगाव नहीं रह गया शान्तचित्त होते हुए एकांत खोजकर समाधिस्थ होने के लिए नहीं है हमारा कर्तव्य विश्वासपूर्ण ढंग से अपने लक्ष्य की ओर पग बढ़ाने के लिए है क्योंकि वर्तमान परिस्थितियां राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण संगठित कर्मशील योद्धाओं के निर्माण की आवश्यकता की ओर संकेत कर रही हैं आचार्य जी जिनके भाव हमें प्रभावित करते ही हैं हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को जताने वाली शिक्षा से समन्वित करते रहते हैं और सचेत करते हैं कि हम कर्म -कुंठा से ग्रसित न हो जाएं

हम कर्म अकर्म विकर्म को जानें  शरीर को शुद्ध रखते हुए जिससे मन  उद्बुद्ध रहे बुद्धि प्रबुद्ध रहे कर्म को अभ्यास में ले आएं उसमें दबाव लालच न हो 

जैसा युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए रणक्षेत्र में भगवान् कृष्ण अर्जुन को बताते हैं 

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।



जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें 

कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें 

हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो 

*चुनौती कोइ भी हो* हम न उससे भीत हों भागें


अपनी परीक्षा लेकर स्वयं को अंक देने से क्या तात्पर्य है, बैच १९८८ के भैया पंकज अवस्थी जी की चर्चा क्यों हुई

अतिथि यदि गुलदस्ता है तो क्या होता है संगठन से आनन्द की प्राप्ति न हो तो संगठन क्या लगता है 

कल की बैठक की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

17.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 17 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६८ वां* सार -संक्षेप

 संसार समस्या है तो हम हैं समाधान

स्रष्टाकर्ता के जगपालन के विधिविधान

हम अणु से विभु तक की यात्रा के राही हैं 

हम सृजन -प्रलय के द्रष्टा और गवाही हैं


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 17 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६८ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से विचारशील कर्मशील समर्पित संयमी सात्विक आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उत्साहित उत्थित करते हैं हमें इन सदाचारमय विचारों का श्रवण कर आगे बढ़ने का संकल्प लेते हुए लाभ उठाना चाहिए 

हम जो संयमित जीवन जीने का संकल्प लिए हुए हैं और भावनासम्पन्न हैं राष्ट्रभक्त हैं संसार में रहते हुए संसार को समझने का प्रयास करें अपने मनुष्यत्व की पूजा करें और ध्यान रखें 


संसार समस्या है तो हम हैं समाधान

विभु के द्वारा निर्मित निर्देशित संविधान

और सनातनत्व की अनुभूति करें आत्मविस्तार का प्रयास करें शुभ मार्ग की ओर चलें जलें क्षुद्र स्वार्थों का त्याग करें सोऽहं का भाव रखें 


हो एकत्रित किसी बहाने हिन्दुभाव के नाते 

तभी सुरक्षित रह पाएंगे घर के रिश्ते नाते 

हिन्दु हिन्दुस्थान सनातन धर्म न चिन्तन ही है 

इसके लिए शक्ति संवर्धन और संगठन भी है

हम संगठित तभी होंगे जब अपनों को जानेंगे

उनके सुख दुःख लाभ हानि को मन से पहचानेंगे


केवल बातें नहीं करें उतरें नित प्रति अपनों हित 

अपने वे जो मातृभूमि भारत माता से गर्वित


कलियुग में हम बिना संगठन के सशक्त नहीं रह सकते 

संघे शक्तिः कलौ युगे

इस कारण संगठित होकर शक्तिसंपन्न बनने का प्रयास करें 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः लक्ष्य भूले नहीं क्योंकि 


हमारा देश भास्वर भक्ति का

प्रतिमान है स्वर है

इसी ने तत्त्वदर्शन कर कहा संसार नश्वर है

न जाना जिस किसी ने इस धरा के मूल शिवस्वर को

वही भूले भ्रमे फिर फिर रहे हैं छोड़ निजघर को ।

निजघर भारत भी है और अपना आत्मतत्त्व भी है 

हम बिना समाज को त्यागे आत्मस्थ होने का प्रयास करें आत्मस्थता में कभी कभी ऐसे सांसारिक विषय भी प्राप्त हो जाते हैं जो अत्यन्त तात्त्विक होते हैं


आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त किस उपनिषद् के सारे छंद पढ़ने का परामर्श दिया,बत्ती जाने पर श्रद्धेय शर्मा जी ने क्या कहा था कामायनी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

16.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 16 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष  तृतीया तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 16 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६७ वां* सार -संक्षेप

नित्य इन सदाचार संप्रेषणों से आचार्य जी हमें उत्थित उत्साहित कराते हैं हमें स्मरण कराते हैं कि स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारी सद्ग्रंथों के अध्ययन के प्रति रुचि में वृद्धि हो और स्वाध्याय में मन लगे 

ताकि किसी विषय का हम त्वरित निर्णय ले सकें,हम साधक संस्कारयुक्त जीवन के साथ द्विजत्व प्राप्त कर समाज सेवार्थ प्रवृत्त हो सकें हम निश्चिन्तता प्राप्त करने के लिए परमात्माश्रित रहें, ऐसे भाव हमारे अन्दर प्रविष्ट हों कि हम राम कहते हुए जागें राम कहते हुए सोएं, हमारी अवतारवाद की महत्ता को जानने में रुचि जाग्रत हो सके 

पराश्रयता से हम बचें ताकि हमारा जीवन कष्ट में न व्यतीत हो 

(पराश्रयता :जैसे अंग्रेजी भाषा जानना बुरा नहीं है किन्तु अंग्रेजी भावों में प्रवेश करना गलत है ) हम सुशिक्षितों को संगठित करने का प्रयत्न करें ताकि उनके माध्यम से समस्याओं का समाधान हो सके 

इसी आधार पर आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


जैसा हम जानते हैं चित्रकूट के कार्यक्रम का आयोजन भैया विकास मिश्र जी कर रहे हैं प्रश्न है चित्रकूट हमें क्यों चलना चाहिए 

इसका उत्तर देते हुए आचार्य जी बता रहे हैं 

चित्रकूट में ही भगवान् राम का संपूर्ण कार्यक्षेत्र परिपुष्ट हुआ वह उनका साधना स्थल रहा यहां मन्दाकिनी नदी है 

चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाइ।

आइ नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ॥132॥


नदी पुनीत पुरान बखानी। अत्रिप्रिया निज तप बल आनी॥

सुरसरि धार नाउँ मंदाकिनि। जो सब पातक पोतक डाकिनि॥3॥


चित्रकूट में पवित्र नदी है जिसकी पुराणों ने प्रशंसा की है  अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया  अपने तपोबल से लाई थीं। वह गंगाजी की धारा है,नाम है मंदाकिनी  वह सब पाप रूपी बालकों को खा डालने के लिए एक डायन है


नाना जी का यह चित्रकूट केन्द्र रहा 

वहां जाने का अर्थ है  कि हम साधकों का एकत्रीकरण हो सके

यह एक विशेष उद्देश्य है क्यों कि कलियुग में संगठन बहुत महत्त्वपूर्ण है 


इसके अतिरिक्त १९ जनवरी को कहां बैठक है नाना जी देशमुख जी के संकल्प को पूर्ण करने के लिए हम क्या कर सकते हैं भैया पुनीत जी भैया मोहन जी क्यों चर्चा में आए जानने के लिए सुनें

15.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 15 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष  द्वितीया तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 15 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६६ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों में विभिन्न विषय समाहित हैं वे विषय कभी आचार्य जी के अध्ययन और स्वाध्याय के आधार पर होते हैं कभी स्मृतियों से संबन्धित और कभी तात्कालिक


और उद्देश्य,इस विश्वास के साथ कि हम अणु आत्मा विभु आत्मा के आदेश का पालन करते हुए कार्य कर रहे हैं और यह समझते हुए भी कि संसार की जो भी समस्याएं आती हैं वो हमारी धार तेज करती हैं कार्य कर रहे हैं ,यह रहता है कि हमारे अन्दर का भावनात्मक पक्ष बुद्धि से होते हुए समाज में संस्कार का कारण बने क्योंकि समाज के लिए शोध की अत्यन्त आवश्यकता है हम उसके भ्रम भय का निवारण कर सकें सर्वत्र व्याप्त अंधकार में उजाला फैला सकें हम स्वयं ध्यान पूजन कीर्तन सत्संगति भजन द्वारा विकारमय जीवन से मुक्त हो सकें 


और कुछ ऐसे होते हैं जो दुर्योधन की तरह होते हैं विकारों से घिर जाने के कारण  विकार उनका विचार बन जाता है दुर्योधन कहता है 


जानामि धर्मं न च मे 

प्रवृत्तिर्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।

केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।। (गर्गसंहिता अश्वमेध0 50। 36)


'मैं धर्म को जानता हूँ, पर उसमें मेरी प्रवृत्ति नहीं हो पाती और अधर्म का भी ज्ञान है पर उससे मेरी निवृत्ति नहीं होती। मेरे हृदय में स्थित कोई देव है, जो  जैसा करवाता है, वैसा ही मैं करता हूँ।'


हमें दुर्योधन से इतर सोचना है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम प्रयागराज चित्रकूट काशी और अयोध्या का एक कार्यक्रम बनाएं

चित्रकूट एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधना स्थल है  अत्रि और अनुसूया का वहां आश्रम रहा है वह प्रभु राम की कर्मभूमि है रामराज्य की भूमिका चित्रकूट से प्रारम्भ हुई  

नानाजी देशमुख जी की भी यह कर्मभूमि रही 

जिस सत्र में विद्यालय प्रारम्भ हुआ उसी सत्र में जनवरी माह में छठवीं कक्षा के अठारह छात्र चित्रकूट गए थे


इसके अतिरिक्त भैया विकास जी भैया आलोक जी सतना वाले भैया अरविन्द जी भैया राघवेन्द्र जी आचार्य जी राज करण जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया 

रेल के डिब्बे में बीड़ी वाला क्या प्रसंग था जानने के लिए सुनें

14.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 14 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६५ वां* सार -संक्षेप

 हम उपासक सूर्य के फिर क्यों तिमिर से भय..

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष  प्रतिपदा तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 14 जनवरी 2025 (मकर संक्रांति )का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६५ वां* सार -संक्षेप


स्वयं को भावी पीढ़ी, जो अपनी व्यावहारिक पढ़ाई में तत्त्व खोजने का भाव रखे,के लिए एक शिक्षक और अपने  तत्त्वदर्शी महान् भारतवर्ष


माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु

(अथर्ववेद के १२वें कांड, सूक्त १ की १२वीं ऋचा )


 के एक सेवक के रूप में समझने का भाव रखते हुए, मनुष्य के रूप में अपने कर्तव्य की अनुभूति करते हुए और यह विश्वास रखते हुए कि हम तत्त्व हैं शक्ति हैं और विभु आत्मा के अंश हैं शास्त्रीय भावों के प्रति श्रद्धा रखते हुए

संसार में छाए हुए अंधकार को कुछ मात्रा में ही सही दूर करने का संकल्प लेते हुए, संसार का आनन्द लेने वाले भाव को अपने अंदर स्थान देते हुए प्रवेश करें आज की ज्ञानवर्धक तात्विक सदाचार वेला में


आज मकर संक्रान्ति है संक्रान्ति का अर्थ है सम्यक् रूपेण क्रान्ति है जो

 सूर्य का एक राशि का अग्रिम राशि में प्रवेश  

ज्योतिष की गणना में हमारे यहां बारह राशियां और सत्ताइस नक्षत्र हैं

सूर्य प्राणदाता है इस

समय महाकुम्भ प्रारम्भ हो चुका है 

 महाकुंभ में कुल तीन अमृत स्नान होंगे, जिसमें से पहला अमृत स्नान आज है 

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम घर में ही गंगा जल से स्नान कर लें यदि गंगा में स्नान नहीं करते हैं 

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥ बोलें 

आज दान भी करें 

हमारे मन में नित्य रामत्व का भाव आए प्रतिदिन हमारे भावों में राम जन्मते रहें 

जोग लगन गृह वार तिथि, सकल भये अनुकूल। चर अरु अचर हर्ष जुत राम जनम सुख मूल।।

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि संगठन के भले के लिए हम अपने किसी भी  साथी की उपेक्षा न करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय वर्मा जी भैया अरविन्द तिवारी जी का नाम क्यों लिया शूद्र क्यों विशिष्ट है अद्वैत सिद्धान्त क्या है जानने के लिए सुनें

13.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 13 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६४ वां* सार -संक्षेप

 तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 13 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६४ वां* सार -संक्षेप





हनुमान जी,  जो कलियुग के प्रत्यक्ष देवता हैं


नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा।


 और जिनसे हमें बल बुद्धि विद्या संयम विचार बहुत कुछ मिलता है, की प्रेरणा से हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम भावों में प्रवेश करना सीखें और इस कार्य में हनुमान जी हमारे सबसे बड़े सहायक हैं अपने भीतर गुरुत्व खोजें देश का दर्शन करें अध्ययन स्वाध्याय करें 

अध्ययन के पश्चात् स्वाध्याय हमारी शक्ति है और इसी से बुद्धि  विचार संकल्प संयुत है कर्ममय जीवन बनाएं अपने लक्ष्य का स्मरण रखें 

कर्मकुंठा से बचें 


कर्ममय जीवन जगत का मूल है 


द्वीप को तट समझ लेना भूल है 


गीत गाना है सदा विश्वास के 


स्वप्न बुनने हैं प्रगति के, आस के , 


देहली दीपक धरा का न्याय है 


कर्म-कुण्ठा पतन का पर्याय है 


स्वर्ण शोभा हो भले पर 


अंकुरण के लिये व्याकुल बस धरा की धूल है।

धीरे धीरे जब हम संसार को समझने लगते हैं और वह समझ जब स्थिर होने लगती है तो ऐसी स्थिति को ब्राह्मी स्थिति की भूमिका कहा जा सकता है


विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।


निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।


वह मनुष्य शान्ति को प्राप्त होता है

 जो  सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग करके स्पृहारहित, ममतारहित और अहंकाररहित होकर आचरण करता है

ब्राह्मी स्थिति अद्भुत है 


जो विशुद्ध बुद्धि से युक्त, वैराग्य के आश्रित, एकान्तसेवी और नियमित भोजन करने वाला साधक धीरज के साथ इन्द्रियों का नियमन करके, शरीर-वाणी-मन को वश में करके, शब्द आदि विषयों और राग-द्वेष को छोड़कर निरन्तर ध्यानयोग के परायण हो जाता है, वह अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग  एवं  ममतारहित तथा शान्त होकर ब्रह्मप्राप्ति का पात्र हो जाता है।


(बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।...)

हम शान्ति की खोज में रहते हैं आनन्द की गवेषणा करते हैं 

इन्द्रियतृप्ति को हम यदि शमित कर लें अहं का भाव दबा लें तो हमारे स्मरण में रहता है 

ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि कल सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज उन्नाव जिसके नये प्रधानाचार्य श्री अशोक कुमार शुक्ल जी हैं की पुरातन छात्र परिषद का सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें १२० पूर्व छात्र उपस्थित रहे 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान् कार्यकर्ता धूपड़ जी की चर्चा क्यों हुई उनके किस प्रसंग का उल्लेख हुआ भैया अरविन्द तिवारी जी सरौंहां कब जा रहे हैं आने वाले कार्यक्रम कौन से हैं जानने के लिए सुनें

12.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 12 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६३ वां* सार -संक्षेप

 राम भक्तो जागो विश्राम छोड़ सन्नद्ध रहो 

कर में कर्मकुठार सतत तत्पर सचेष्ट प्रतिबद्ध रहो l


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 12 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६३ वां* सार -संक्षेप


जब हम आत्मस्थ होकर चिन्तन मनन विचार करेंगे  अपने भीतर आशा और विश्वास का संचार करेंगे तो यह अवश्यमेव अनुभूति होगी कि हम शक्ति के अद्भुत भंडार है शक्तिमत्ता जब भीतर से उत्साह से भर जाती है तो व्यक्ति जो भी कार्य करता है वह भक्तिपूर्ण कार्य होता है परिस्थिति कैसी भी हो उससे चिन्तित नहीं होता 

भक्ति में शक्ति उस समय परिलक्षित होती है जब भक्त को विश्वास होता है 

अविश्वसनीय भक्ति से कुछ प्राप्त नहीं होता


आत्मशक्ति वास्तव में अद्भुत है और इसके लिए अध्ययन स्वाध्याय ध्यान धारणा आवश्यक है


आत्मशक्ति की अनुभूति आनन्द प्रदान करती है

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 'जो वो है वही मैं हूं' 

अवर्णनीय है


मन्दिरों की उपस्थिति और भक्ति का सांकेतिक स्वरूप भी शक्ति देता है हमें इनसे भी संयुत होना चाहिए

इस कलियुग में हम कैसे तरेंगे इसका उत्तर है 


कलिजुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा॥2॥


केवल श्री हरि की गुणगाथाओं का गान करने से ही भवसागर की थाह पा जाएंगे जब हम बार बार गुणगान करेंगे उदाहरण के लिए


कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।

गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास॥103 क॥


 भगवान् राम का नाम लेंगे तो उनके कार्य भी याद आएंगे कितनी विषम परिस्थितियों में भी वे लक्ष्य से डिगे नहीं 

हमें रामत्व की अनुभूति होगी वह रामत्व कि हम दुष्ट का नाश करेंगे भले ही वह कितना भी शक्तिशाली हो


उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।



 यदि हम दुष्ट के विरोध में नहीं खड़े हैं तो इसका अर्थ है हमारे भीतर रामत्व नहीं है जैसे  मात्र दस वर्ष की आयु वाले शिवाजी गाय काटने ले जा रहे कसाई का विरोध करते हैं तो इस घटना से रामत्व प्रदर्शित होता है 

भक्त शिवाजी यह देखते हैं कि कसाई गो-माता पर अत्याचार करते हुए, उनको काटने ले जा रहा है वह तभी अपनी तलवार निकालते हैं और पहले तो गाय की रस्सी काटकर उसे बंधन मुक्त करते हैं और वह कसाई कुछ कहता इससे पहले ही उसका सर धड़ से अलग कर देते हैं

ऐसे महापुरुषों की लम्बी सूची है हमारे देश में और इसी के आधार पर हम कहते हैं कि हम कभी गुलाम रहे नहीं हम संघर्षशील रहे दुर्भाग्य से शिक्षा ऐसी रही कि हमें इन वीरों से परिचित नहीं कराया गया शिक्षा केवल उदरपूर्ति के लिए नौकरी के लिए रही


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन्नाव विद्यालय में आज होने जा रहे पुरातन छात्र परिषद के सम्मेलन की सूचना दी 

आचार्य जी ने मा अशोक सिंघल जी की चर्चा क्यों की उत्तरकांड की कौन सी चौपाइयां  पढ़ने  का परामर्श दिया जानने के लिए सुनें

11.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी (कूर्म द्वादशी )विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 11 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६२ वां* सार -संक्षेप

 बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।

बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसें॥2॥


बादल पृथ्वी के समीप आकर बरस रहे हैं, जैसे विद्या पाकर विद्वान्‌ नम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पर्वत उसी तरह सहते हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहन करते हैं 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी (कूर्म द्वादशी )विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 11 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६२ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का एक धर्म बन गया है कि वे नित्य हमारा मार्गदर्शन करते हैं 


हम सांत ( क्योंकि हमारा शरीर एक सीमा तक ही है  इस कारण उसका अन्त निश्चित है )लोगों के जाने के पश्चात् भी लोग यदि हमारी अच्छाइयों की चर्चा करते हैं तो यह चर्चा या स्मरणीय तत्त्व ही अमरत्व है इसी कारण भारतीय चिन्तन में इस बात पर जोर दिया जाता है कि हम काम ऐसे करें कि हमारे इस धरा धाम से जाने के बाद भी हमारी निन्दा न हो इसी अमरत्व की उपासना का सदैव हम प्रयास करते हैं 

नाम का अंत नहीं होता है  यदि उसके साथ कर्म संयुत है गीता के तीसरे अध्याय में कर्म की अद्भुत मीमांसा हुई है व्याकुल अर्जुन को भगवान् समझा रहे हैं 



मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।


निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः।।3.30।।

जो भी कर्म करो उसका मुझ में संन्यास करके,  आशा और ममता से विरहित,  सन्तापरहित हुए तुम युद्ध अवश्य करो ।

यह अध्यात्म बोध का द्वार है  ईश्वर के प्रति संपूर्ण आस्था होनी चाहिए हमें अपना धर्म याद रखना चाहिए आज का युगधर्म शक्ति उपासना है जिसके कारण संगठन की शक्ति महत्त्वपूर्ण हो जाती है 

अच्छी तरह से आचरण में लाए गए दूसरे के धर्म से गुणों की कमी वाला अपना धर्म श्रेष्ठ है

सबके अलग अलग कर्म हैं 

युद्ध में सैनिक का धर्म युद्ध करना है न कि भजन करना

इसी तरह हम राष्ट्र -भक्तों को निराश नहीं रहना चाहिए क्योंकि हमारी परंपरा अद्भुत रही है जिसमें निराशा का कोई स्थान नहीं है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी से भैया पंकज जी ने क्या आग्रह किया 


श्री शंकर श्रीपाद बोडस जी जो गायक विष्णु दिगंबर पलुस्कर के शिष्य थे का कौन सा प्रसंग आचार्य जी ने बताया जानने के लिए सुनें

10.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 10 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६१ वां* सार -संक्षेप

 लटे-पटे दिन काटिए रहिए घाम सो, वाके तले न बैठिए जा पेड़ पात न हो


संकट में दिन काटना और गर्मी में सोते रहना अच्छा है किन्तु ऐसे पेड़ के नीचे जिस पर पत्ते न हूँ  सोना नहीं चाहिए ऐसा पेड़ सूखा खोखला होता है और उसके टूटने का डर होता है

किन्तु मोटा वृक्ष हो तो उसकी शरण ले सकते हैं इसी प्रकार जो तत्त्वज्ञ विशिष्ट शक्तिसम्पन्न है उसका आश्रय लेंगे तो किसी भी परिस्थिति में शान्ति की अनुभूति होगी ही 

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 10 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६१ वां* सार -संक्षेप

शान्त और विशुद्ध पर्यावरण की कामना करते हुए आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि सद्शिक्षा दे रहे इन सदाचार संप्रेषणों से हमें कुछ तत्त्व, विचार प्राप्त हों साथ ही गुणों और दोषों से भरे इस संसार में  रहने की शक्ति प्राप्त हो

तत्त्वज्ञ विशिष्ट शक्तिसम्पन्न आचार्य जी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को नितान्त आवश्यक बताते हुए परामर्श दे रहे हैं कि हम भगवान् के प्रति शरणागत होते हुए जीवन के रहस्य को समझने का भी प्रयास करें 

हम अणुआत्मा  सर्वशक्तिमान् विभु आत्मा के अंश है  हमारी सीमा है इस कारण हम संपूर्ण संसार को न तो परिशुद्ध कर सकते हैं और न उसके पूरे यथार्थ को जान सकते हैं किन्तु वृक्षशायिका की तरह जितना कर सकें जितना जान जाएं यह भगवान् की कृपा है

हम आत्म के दर्शन करें पूजन करें और उसका भजन करें

आत्म का अपने भीतर जो प्रकाश है उसे पहचानना जानना ही ध्यान है इस कारण हम उसे जानने की चेष्टा करें

आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि तात्विक विषय आत्मदर्शन की भूमिका क्या है

आत्मा ही दर्शनीय श्रवणीय  विशिष्ट ज्ञान है 

इसके लिए आचार्य जी ने एक प्रसंग बताते हुए बृहदारण्यकोपनिषद् के  द्वितीयोऽध्याय के चतुर्थं ब्राह्मणं  के अंश का उल्लेख किया 

न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवत्यात्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति। आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैत्रेय्यात्मनो वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेनेद सर्वं विदितम्॥

इसके अतिरिक्त रज्जू भैया और आचार्य जी का एम ए फर्स्ट क्लास वाला क्या प्रसंग था त्रिकुटी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

9.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 9 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 9 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६० वां* सार -संक्षेप

ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं  व्यर्थ का प्रलाप नहीं है आचार्य जी नित्य हमें जो उनके भाव -पुत्र हैं प्रेरित करते हैं ताकि हम भाव -जगत् से परिचित हो सकें  अपने भीतर की प्रच्छन्न शक्ति का अनुभव कर सकें अपने भीतर स्थित तत्त्व को जान सकें 

(वस्तु और व्यक्ति दोनों में एक तत्त्व है और वह तत्त्व है एकोऽहं बहु स्याम की इच्छा लेकर बैठा हुआ परमात्मा यह आत्म -कृतज्ञता है कि हम उस परमात्मा को जान लें जो भीतर ही बैठा है )

अपने मूल शास्त्रीय अध्ययन के लिए उत्साहित हो सकें संसार को कुछ देने की भावना विकसित कर सकें

दंभ से दूर हो सकें 

जो जितना कर्महीन है वह उतना ही व्यर्थ का है इससे इतर जो जितना कर्मयुक्त है वह उतना ही उपयोगी 

विद्या अर्थात् मैं कौन हूं मैं वही हूं को जानना और अविद्या अर्थात् संसार का अध्ययन  विद्या -अविद्या दोनों को जानना आवश्यक है

सहज कर्म करने में ऊबें नहीं 

 संसारत्व से मुक्त होकर ही हम अमरत्व के उपासक हो सकते हैं


देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।


तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।



अर्जुन को समझाते हुए भगवान् कहते हैं यह देही आत्मा सभी के शरीर में सदैव अवध्य है, अतः समस्त प्राणियों के लिए तुम्हें शोक करना उचित नहीं है

देह और देही दोनों को जानना जरूरी है यही विरक्ति है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि  परम्परा का संचालन भारतीय जीवन दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है और हम सभी चाहते हैं कि हमारी परम्परा अक्षुण्ण रहे

प्रेत -योनि कब मिलती है प्राणायाम क्यों आवश्यक है स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान की कौन सी व्याख्या कर दी थी जानने के लिए सुनें

8.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 8 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५९ वां* सार -संक्षेप

 उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 8 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५९ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण हमारे ज्ञान -चक्षु खोल देते हैं इनके माध्यम से हमें सद्गुणों का दर्शन होता है हमें इनका श्रवण कर लाभ उठाना चाहिए 

इनके अच्छे तत्त्वों की गवेषणा कर शक्तिउपासक शक्तिसम्पन्न त्यागी  उत्साही अदीर्घसूत्री कृतज्ञ कर्मयोगी राष्ट्रभक्त बनने की चेष्टा करें 

तपस्विता और ऋषित्व के द्वार पर पहुंचने का प्रयत्न करें हम प्रयास करें कि हमारा चैतन्य जाग्रत हो सात्विक संसार के सृजन का भाव लेकर सन्मार्ग पर चलने का संकल्प लें  इष्ट के स्मरण के साथ जागरण और शयन हो यह अभ्यास करें 

आनन्द के अर्णव में तैरने का प्रयास करें कि मैं वही हूं जो परमात्मा है 

संसार और सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हुए हमने अपना लक्ष्य बनाया है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प लिया है

  राष्ट्र और समाज के लिए उचित अनुचित का विवेक भी बना रहे इसका प्रयास करते हुए 

बीच बीच में आ रहे अपने उपलक्ष्यों को पूर्ण करते हुए हम अपने लक्ष्य -पथ पर  चलते रहें 

समस्याओं से टकराने के लिए सदैव तैयार रहें और इसके लिए इस कलियुग में संगठित रहना आवश्यक है  हमारा युगभारती संगठन इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाता है संगठन की भलाई के लिए निःस्वार्थ भाव से कार्य करें अपनों के दोष न देखें अपनों की अच्छाइयों की चर्चा करें 

संगठन से वही संयुत रहते हैं जिनका मानसिक तालमेल संगठन के लोगों से बना रहता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भगवान् शंकराचार्य के किन छंदों को उद्धृत किया जानने के लिए सुनें

7.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 7 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५८ वां* सार -संक्षेप

 त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 7 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५८ वां* सार -संक्षेप




आचार्य जी, जिनका संस्पर्श मात्र ही अत्यन्त सुखदायक है और जिनकी वाणी  का स्वर चेतना प्रदान करता है हमें शक्ति शौर्य पराक्रम भक्ति तप त्याग समर्पण की अनुभूति कराता है,परामर्श दे रहे हैं कि हम आत्माभिव्यक्तियां करें 

आत्माभिव्यक्ति /

आत्म -प्रकाशन कि हमें कोई जाने एकोऽहं बहुस्याम् का भाव रखने वाले परमात्मा का एक प्रकाश -बिन्दु है

राष्ट्र -पहरुआ आचार्य जी का कहना है कि हम आत्म जो परमात्म का अंश है का पतन न होने दें 


उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।


आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।



हम भोग नहीं भोग रहे हैं 

 तरह तरह के दृश्यों रूपों वाले इस संसार में जो अंधकार छाया हुआ है हम उसे दूर करने का बीड़ा उठाए हैं 

इसी संघर्ष में हमें आनन्द की अनुभूति भी होती है 

जब तक दीपक में तेल तेल में बाती बाती में उजास 

तब तक अंधियारे से कोई भी भय कैसा क्यों हो हताश


यह अनुभूति कि 


अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्

अद्भुत है 

सनातनधर्मिता पर विश्वास करके हम अपना भय त्यागें आज का युगधर्म शक्ति उपासना है इसे विस्मृत न करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी के किस कार्य की प्रशंसा की ३ फीट ८ इंच के किस अघोरी संन्यासी की चर्चा की विवेकानन्द का उल्लेख क्यों हुआ

जानने के लिए सुनें

6.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 6 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५७ वां* सार -संक्षेप

 भारत ने शौर्य शक्ति विक्रम को भाषा दी 

म्रियमाण जगत् को प्राणों की परिभाषा दी


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 6 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५७ वां* सार -संक्षेप


हम भोग में मग्न न हों हमारे भाव नष्ट न हों हम यशस्वी तपस्वी जयस्वी बनें आचार्य जी इसी का प्रयास करते हैं 

वे अपेक्षा करते हैं कि हम शिक्षक के रूप में अपनी भूमिका को पहचानते हुए अपने अन्दर का तेज जाग्रत करें जिसके लिए चिन्तन मनन के साथ कार्यान्वयन आवश्यक है प्रातः जागरण खाद्याखाद्य विवेक नितान्त आवश्यक है आत्मबोधोत्सव मनाने का प्रयास करें आत्मप्रकाशन का अपना महत्त्व है हम धनार्जन में ही लगे रहेंगे तो इससे हमारा कल्याण नहीं होगा सांसारिक भाव से मुक्त होने पर भाव आयेगा चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

हमें जाग्रत होने की आवश्यकता है हम संगठन मन्त्र के जापकों को अपने वास्तविक इतिहास भूगोल को जानना चाहिए हमें अपने धर्म भाषा की विशेषता को समझना चाहिए हम भारत, जो क्षरणशीलता का अक्षर विधान है




अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।


नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।2.24।।


,को पहचानने की चेष्टा करें भारत, जिसने संसार को मुधा अर्थात् मिथ्या माना है,की भूमि तपस्या शुचिता की प्रतीक है यह भोगभूमि नहीं है 

हमें अपनी मातृभूमि से लगाव होना ही चाहिए जैसा रामनरेश त्रिपाठी अपनी कविता स्वदेश गौरव में कहते हैं 


विषुवत-रेखा का वासी जो

जीता है नित हाँफ-हाँफ कर


रखता है अनुराग अलौकिक

वह भी अपनी मातृभूमि पर


ध्रुव-वासी जो हिम में तम में

जी लेता है काँप-काँप कर


वह भी अपनी मातृभूमि पर

कर देता है प्राण निछावर।


आचार्य जी ने स्वरचित  अत्यन्त प्रेरक दो कविताएं सुनाईं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चीन के युद्ध की चर्चा क्यों की भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ  पूर्वजन्म के कर्मों का संग्रह क्या करता है   जानने के लिए सुनें

.

5.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 5 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५६ वां* सार -संक्षेप

 जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें 

कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें 

हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो 

चुनौती कोइ भी हो हम न उससे भीत हों भागें


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 5 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५६ वां* सार -संक्षेप


हम संसार में रहते हैं संसार में अनेक समस्याएं हैं हम उन्हीं समस्याओं में उलझे रहते हैं हमारे मन में यह भाव रहता है कि संसार हमें जाने इस चिन्ता में हम अपने को जानने का समय नहीं निकाल पाते हम कौन हैं यह जान नहीं पाते

हम  भक्तिभाव में डूबने का प्रयास करें क्योंकि अनगिनत जीवों के साथ भगवान् से हमारा भी विशिष्ट संबन्ध है जो वो है मैं भी वही हूं 

चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

श्रद्धा और प्रेमपूर्वक इष्ट देवता के प्रति आसक्ति भक्ति कहलाती है भक्ति एक तत्त्व है यह भीतर प्रविष्ट हो जाए तो उस अनुभूति का वर्णन नहीं किया जा सकता भक्ति का भाव कुछ नहीं चाहता है 

भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति 'भज्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ 'सेवा करना' या 'भजना' है


हमारे देश की शिक्षा भक्तिपरक शिक्षा है इसी कारण वह कल्याणकारी हुई भक्तिभाव में डूबने के पश्चात् यदि अर्जुन की तरह धनुष बाण उठाने की शक्ति नहीं आई तो महाभारत जीता नहीं जाएगा

इसी कारण भक्ति के साथ शक्ति की याचना आवश्यक है यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है

गीता इसी पर आधारित है जिसके मूल में यदि अंशांश भी प्रवेश मिल जाए तो अत्यधिक अवर्णनीय आनन्द की अनुभूति होती है

हम लोगों में देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई है देशभक्ति की लीला के हम सब पात्र हैं देशभक्ति जिस भक्त के जब भावों में हिलोरे लेने लगती है तो उसे देश ही सर्वस्व लगता है इसी भक्तिभाव के साथ हमारा सैन्य युद्धरत होता है



हम युद्ध भी लड़ते सदा निर्द्वन्द्व निस्पृह भाव से

तुम शान्ति में भी रह नहीं पाते सुशान्त स्वभाव से

हम त्यागकर संतुष्ट रहते जिन्दगी भर मौज से

तुम हर समय रहते सशंकित निज बुभुक्षित फौज से

तुम भोग हो हम भाव हैं तुम रोग हो हम राग हैं 

तुम हो अभावाक्रांत हम इस जगत का अनुराग हैं 

लेकिन समझ लेना न तुम हम शान्त संयत बुद्ध हैं 

*हम मुण्डमाली शिव कपाली कालिका का युद्ध हैं*


आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इन संप्रेषणों को सुनने के साथ इसके notes भी बनाते चलें 

इसके अतिरिक्त  कौन श्लेष्मा पी गया था आचार्य जी ने आज गीता के किन अध्यायों की चर्चा की जानने के लिए सुनें

4.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 4 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५५ वां* सार -संक्षेप

 नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।


मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।7.25।।


जो मूढ़ मनुष्य भलीभांति मुझे अजन्मा और अविनाशी नहीं मानते , उन सबके सामने योगमाया से अच्छी तरह से आवृत हुआ मैं प्रकट भी नहीं होता हूं ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 4 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५५ वां* सार -संक्षेप


प्रातःकाल का यह समय अद्भुत है जिसमें हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें मन बुद्धि चित्त अहंकार पंचमहाभूत से बने शरीर


(शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' यदि आपका शरीर स्वस्थ है तो धर्म के सभी साधन स्वयं क्रमवार सफल होते चले जाएंगे इसके लिए उचित खानपान आवश्यक है सही समय पर जागरण और शयन आवश्यक है परिवार समाज से उचित व्यवहार आवश्यक है )


 को धारण कर हम मनुष्य बने हैं इस मनुष्य का एक उद्देश्य होता है और वह उद्देश्य है मनुष्यत्व की अनुभूति और उस अनुभूति के पश्चात् उसकी अभिव्यक्ति 

अन्यथा संसार का जो आवरण लगा रहता है उससे सत्य का मुख दिखाई नहीं देता और भोग की कोई सीमा नहीं है

हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।

तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

 हमें सत्य का साक्षात्कार करना है सनातन धर्न हमें इसी दिशा की ओर ले जाता है  जब हमें सनातन धर्न समझ में आ जाता है तो हमारा कार्य व्यवहार चरित्र आचरण भद्र जनों को बहुत आकर्षित करता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शिक्षा की विकृति पर चर्चा की 

आचार्य जी ने स्पष्ट किया यदि हम कार्यक्रम अपने चैतन्य को जाग्रत करने के लिए करते हैं तो प्रचार स्वयमेव मिलता है इसी कारण किसी भी कार्यक्रम में आत्मस्थता अत्यन्त आवश्यक है


भैया नीरज अग्रवाल जी १९८५ बैच के,भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया

कल होने वाली बैठक में हमें और क्या चर्चा करनी चाहिए 

शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के लिए हमें क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें

3.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 3 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५४ वां* सार -संक्षेप

 समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।

बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥121 क॥ लंका कांड 


(हम भी यदि अपने जीवनकाल में विजय, विवेक और वैभव की कामना करते हैं तो रघुवंश शिरोमणि प्रभु राम के समर विजय की गाथा का श्रवण मनन और चिंतन करते रहें।)


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 3 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५४ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण विशिष्ट हैं और हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम उत्साहित रहें,अपनी क्षमतानुसार समाज को लाभ प्रदान करें, तत्त्व शक्ति विश्वास की अनुभूति करें आत्मबोध का अभ्यास करें ( चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् )

हमारा मन डांवाडोल न रहे अविश्वास में डोल रहे अपने आत्मीय जनों का सहारा बनें 


अँधेरा है अगर तो कल सबेरा भी सुनिश्चित है 

अगर अपना मनस् अश्रान्त स्वस्थित है विनिश्चित है

मगर प्राय: मनस् झंझा झकोरों में उड़ा करता

कहा करते इसी से सब "यहाँ सबकुछ अनिश्चित है "

श्रीकृष्ण कभी डांवाडोल नहीं रहे अपितु स्वयं अधीर जनों को शक्ति देते रहे 

हमें भी व्याकुल व्यथित नहीं रहना चाहिए प्रातःकाल तो हमें चिन्तामुक्त होकर उत्थित होने का प्रयास करना चाहिए

भगवान् कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि यह अनुभूति करो कि मैं कौन हूं मैं आत्मबोध के साथ जब संयुत हो जाता है तो हम व्याकुल नहीं रहते 

हमारे अंदर सब कुछ है 

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।


इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना।।10.22।।


मैं वेदों में सामवेद, देवों में इन्द्र,इन्द्रियों में मन और प्राणियों की चेतना हूँ।

तुम भी यह अनुभव करो कि तुम कौन हो

भगवान् कृष्ण का जीवन भगवान् राम का जीवन अद्भुत है



यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।

श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥121 ख॥


अरे मन! विचार करके देख लो ! यह कलियुग पापों का गृह है। इसमें श्री रामजी के नाम को छोड़कर  दूसरा कोई आधार  है ही नहीं 

धनुष बाण लिए भगवान् सदैव स्मरण में रहते हैं रामत्व की यह अनुभूति अद्भुत है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रुद्र देवता के विषय में बताया  और बतलाया कि हनुमान जी भी रुद्रावतार हैं 

आचार्य जी ने अमेरिका से लौटे भैया नीरज अग्रवाल जी और भैया नीरज कुमार जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

2.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 2 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 2 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५३ वां* सार -संक्षेप


ज्ञान -सिन्धु आचार्य जी सांसारिक प्रपंचों में अत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं  ताकि हम ज्ञानसम्पन्न शक्तिसम्पन्न मेधावी बन सकें  और यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य जी हमारे योगक्षेम की चिन्ता करते हैं  सदैव उत्साह में अपनी बात पूरी कर शिक्षकत्व की एक अद्भुत मिसाल पेश करते हैं हम इनमें रमने की चेष्टा करें 

आत्मबोधोत्सव मनाने का प्रयास करें 

प्रस्तुत है  अजब गजब दुनिया और दुनियादारी से परिचित कराती आचार्य जी की  एक कविता जिसकी अन्तिम पंक्तियां हमें पौरुष और पराक्रम की अनुभूति कराती हैं 


इस दुनिया में सबका अपना अलग अलग अंदाज है

सबकी बोली सबकी शैली अलग -अलग 

आवाज है ।

तरह-तरह के रंग-रूप रुचियों का अद्भुत मेल है 

अजब सुहाना अकस्मात मिट जाने वाला खेल है 

प्यार और तकरार प्रेम की पीर सुखद अनुभूति है

जो जलकर के

राख हो गयी उसका नाम विभूति है

सबका सुर सबका तेवर है सबका अपना साज है ॥१॥

इस दुनिया में...


दुनियादारी की भी सबकी अलग-अलग परिभाषा है

शब्दों का अन्दाज अलग पर वही एक सी भाषा है

दुनिया में आना जीना जाना तो एक बहाना है

सचमुच में दुनियादारी का अजब-गजब अफसाना है

यह अफसाना ही दुनिया का अपना एक मिजाज है ॥ २ ll 

इस दुनिया में....

  हर पारखी यहाँ पर रखता अपनी-अपनी माप है

पैमानों पर लगी हुई है सबकी अपनी छाप है

ये पैमाने ही दुनिया भर के सारे संघर्ष हैं

क्योंकि यहाँ सबके हो जाते अलग-अलग निष्कर्ष हैं

खुश हो जाता एक दूसरे पर जब गिरती गाज है ||३||

इस दुनिया में..

दुनिया में रहते रहने पर सबको सभी अखरते हैं 

गुम हो जाने पर सुधियों में प्राय: रोज उभरते हैं

अच्छा-बुरा प्रेम-नफरत दुनियादारी के नखरे हैं

तरह-तरह के छल-प्रपंच कोने-कोने में पसरे हैं

दिन में शीश मुफलिसी ढोता रात पहनता ताज है ||४||

इस दुनिया में...

ज्ञान नसीहत का खुमार है, ध्यान यहाँ सोना-चांदी

विश्वासों की छत  नीचे सोई रिश्तों की आबादी

दुनिया रंगमंच दुनिया सागर दुनिया संग्राम है

दुनिया सुख-दुख की प्रहेलिका मग का एक मुकाम है

लेकिन दुनिया पर दुनियादारों को पूरा नाज है ॥५॥

इस दुनिया...


जो दुनिया को जान न पाया उसको दुनिया फानी है,

हिम्मत और हौसले को यह दुनिया भरी जवानी है

दुनिया का इतिहास लिखा है  पौरुष और पराक्रम ने

मनचाहा भूगोल बनाया सदा बाहुओं के श्रम ने

श्रम का पौरुष का हरदम ऐसा ही रहा रिवाज है || ६ ||

इस दुनिया में...

१४-६-२०१४

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 

भैया आशीष जोग जी भैया प्रमेन्द्र जी और श्री ब्रह्मस्वरूप जी अग्रवाल का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

1.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 1 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५२ वां* सार -संक्षेप

ये सदाचार संप्रेषण हम लोगों पर अद्भुत प्रभाव छोड़ रहे हैं हमारे लिए अत्यन्त कल्याणकारी और उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं हमारे भय भ्रम वेदना को दूर कर शान्ति की अनुभूति करा रहे हैं हमें ऋषित्व का अनुभव करा रहे हैं  हमारे विकासशील संयमशील शक्तिमय तत्त्व को महसूस करा रहे हैं आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारा संकल्प संसार से आच्छादित न हो पाए हम शान्ति और आनन्द की अनुभूति कराने वाली सहजता धारण कर सकें 

ऋषियों की बहुतायत वाला यह अदृश्य शक्ति द्वारा सुरक्षित  हमारा भारतवर्ष अद्भुत देश है 


*हमारे देश की धरती गगन जल सभी पावन हैं* 

*सभी  सुन्दर सलोने शान्त सुरभित मञ्जु भावन हैं*

*यहां पर जो रमा मन बुद्धि आत्मिक अतल की गहराई से* 

*उसको लगा करती धरा माता और सुजन सब भाई से*

*पर सिर्फ धन की प्राप्ति जिनका जन्मजात स्वभाव है* 

*उनको सदा दिखता यहां सर्वत्र अमित अभाव है*



हम अनेक जातियों को, विचारों को,रीतिरिवाजों को आत्मसात् करते रहे हैं जैसे आज ईसाई नववर्ष प्रारम्भ हो गया है किन्तु हमने अपने राष्ट्र की संस्कृति विश्वास विचार को विस्मृत न करते हुए परिस्थितियों से अनेक बार संघर्ष किया है अब भी कर रहे हैं हमें संकट दिखते हैं फिर भी हम स्मरण करते हैं विश्वास करते हैं अनुभूति करते हैं कि चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्

लेकिन इसे शैथिल्य नहीं कह सकते यह निस्पृह निर्द्वन्द्व रहते हुए सुख-दुख राग-द्वेष से दूर कर्मानुरागी धर्मानुरागी जीवन की भूमिका है


इसके अतिरिक्त बबूल कौन नहीं झुका पाया भैया पवन रामपुरिया जी भैया ऋषीन्द्र जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया भैया सपन कुमार २००० के पिता जी श्री सुभाष चन्द्र दुबे जी (भरथना इटावा ) का कौन सा प्रसंग आया, शिक्षाविभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री हरि शंकर शर्मा जी किसके नाम के आगे जी नहीं लगाते थे जानने के लिए सुनें