31.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  31 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४१ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी प्रतिदिन प्रयास करते हैं कि हम नित्य अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन आदि करें  कर्ममय जीवन अपनाएं सत्कर्म परमात्मा को समर्पित करते चलें हम आत्मविश्वास से भर जाएं परमात्मा में हमारी आस्था हो

राष्ट्र के हम जाग्रत पुरोहित बनें 

हमारा भारत देश जिसका सिद्धान्त है कि 

न राज्यं न च राजासीत् न दण्ड्यो न च दाण्डिकः। धर्मेणैव प्रजा: सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम्

हमारा सनातन धर्म अद्भुत है अद्वितीय है कतिपय कारणों से सनातन धर्म को *विदेशी आक्रमणकारियों* द्वारा नष्ट करने का प्रयास लगातार होता रहा और इसका दुष्प्रभाव हिंदू समाज और संस्कृति पर गहरा पड़ा हम भ्रमित हो गए हमारी श्री विलुप्त होने लगी  वेद पुराण आदि को हम ढोंग मानने लगे 

किन्तु हमारी संस्कृति हमारा सनातन धर्म इतने संकटों को झेलने के बाद भी नष्ट नहीं हो पाया क्योंकि 

जब जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।।” 

अद्भुत है परमात्मा की लीला कि कोई न कोई महापुरुष किसी न किसी रूप में उत्पन्न होता रहा है

दुष्ट अकबर के शासनकाल में भी ऐसा ही हुआ जब तुलसीदास जी को लगा कि  अकबर से पीड़ित  हमारे राष्ट्रभक्त समाज को जाग्रत करने की आवश्यकता है 

उनकी कृति श्रीरामचरित मानस एक अद्भुत ग्रंथ है इसमें कई स्थानों पर प्रेरक संदेश हैं


धुआँ देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा॥

बोली बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी॥3॥


खर-दूषण का विध्वंस देखकर शूर्पणखा ने जाकर रावण को भड़काया। वह बड़ा क्रोध करके वचन बोली- तूने देश और खजाने की सुधि ही भुला दी॥


करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती॥


राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥4॥



बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥

संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥5॥

तू सुरापान करता है और दिन-रात पड़ा सोता रहता है। तुझे भान नहीं  कि शत्रु तेरे सिर पर खड़ा है? नीति के बिना राज्य और धर्म के बिना धन प्राप्त करने से, भगवान को समर्पण किए बिना उत्तम कर्म करने से और विवेक उत्पन्न किए बिना विद्या पढ़ने से परिणाम में श्रम ही हाथ लगता है। विषयों के संग से संन्यासी, बुरी सलाह से राजा, मान से ज्ञान, मदिरा पान से लज्जा 

प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहिं बेगि नीति अस सुनी॥6॥


नम्रता के बिना  प्रीति और मद से गुणवान शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं, इस प्रकार नीति मैंने सुनी है


छपिया और अक्षरधाम का क्या सम्बन्ध है श्री श्रीरविशङ्कर और झूले का क्या प्रसंग है भैया मुकेश जी ने कल कौन सा कार्यक्रम किया अपने सरौंहां में कल कौन सा कार्यक्रम हुआ जानने के लिए सुनें

30.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३४० वां* सार -संक्षेप

 विक्रमी संवत् २०८२ नववर्ष की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  30 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३४० वां* सार -संक्षेप


संसार में अनेक प्रपंच,भ्रम,आकर्षण,झंझावात हैं जो हमें बाह्य भौतिक सुखों की ओर खींचते हैं,किन्तु ये अस्थायी होते हैं  इनसे बंधे रहने पर हम अपने वास्तविक उद्देश्य से दूर हो जाते हैं ऐसे झंझावातों में भी जो टिककरआत्मस्थ आत्मनिष्ठ आत्मबोधी संगठित बना रहेगा तो वास्तव में वह अनेक क्षमताओं से युक्त होकर महान् से महान् कार्य कर सकेगा

 आज चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ है हमारा नववर्ष प्रारम्भ हो रहा है यह 

एक नए जीवन का प्रारम्भ , आत्मसंयम और सकारात्मकता की ओर बढ़ने का भी प्रतीक है पश्चिमी देशों के फैलाए भ्रम से  हम जो भ्रमित हो गए हैं अपनी संस्कृति अपनी परम्पराओं,जिनके कारण ही हम सुरक्षित रहे हम स्वाभिमान से जीते हुए संघर्षशील रहे, से दूर हो गए हैं उनपर हमें विचार करने की आवश्यकता है अतः हम २०८२ नववर्ष को उत्साहपूर्वक मनाएं और अधिक से अधिक लोगों को संदेश भेजें 


नववर्ष हम सब के लिए शुभ सुखद मंगलमय रहे

आवर्ष होते रहें शिव शुभ कर्म शुचि गंगा बहे।

समृद्धियाँ संसार की हर देश प्रेमी को वरें

सत्शक्तियाँ संगठित हो कल्याण जनगण का करें।

शिक्षक सदाचारी सरल विद्वान् भावापन्न हों

सब छात्र संतोषी शरीरी शक्ति से सम्पन्न हों।

शासन प्रशासन करे निस्पृह भावमय सद्बुद्धि से

भारत दिखाए विश्वभर को राह अपनी बुद्धि से।

आचार्य जी अपनी इस कविता के माध्यम से यह भी बता रहे हैं कि ऐसे शिक्षक हों जो इस प्रकार की शिक्षा दें जिससे उत्साह शक्ति आत्मविश्वास मिले शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसके पक्षाघात की चर्चा की कबीर का उल्लेख क्यों हुआ भैया मनीष कृष्णा जी की चर्चा क्यों हुई

Poster boy का उल्लेख क्यों हुआ हमारी आस्था किसपर स्थिर हो जाए तो हम निराश हताश नहीं होंगे जानने के लिए सुनें

29.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 29 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 29 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३९ वां* सार -संक्षेप

अपनी अद्भुत यज्ञमयी संस्कृति,जिसने हमें न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, अपितु सामाजिक, मानसिक एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यधिक शिक्षित किया है ,के हम याज्य इन सदाचार संप्रेषण रूपी यज्ञों जो हमारे भीतर के दोषों को शुद्ध करने, समाज के कल्याण की कामना करने, और अपने आत्म को परमात्म से संयुत करने का माध्यम है (यही कारण है कि यज्ञ भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है और यह आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक है) के भाव -धूम को अपने भीतर प्रविष्ट कराकर उत्साहित, आनन्दित, जाग्रत,ऊर्जस्वित,सतत सत्कर्म -रत हों, झंझाओं को झेलने की शक्ति प्राप्त करें, आत्मविश्वास प्राप्त करें, अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों आचार्य जी का नित्य यही प्रयास रहता है


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी कह रहे हैं हम कर्म करते चलें बार बार फल की इच्छा न करें, धैर्य रखें, जय पराजय सफलता असफलता में समभाव रखें

हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि हम अंशी के अंश हैं 

किन्तु संसार से बंधे हैं

प्रकृति इसका माध्यम है 

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥1॥


सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाईं॥

जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई॥2॥


ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।


मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।15.7।।


इस जीव लोक में जीव मेरा ही एक सनातन अंश है वह प्रकृति में स्थित हुआ (देहत्याग के समय) पाँचों इन्द्रियों तथा मन को अपनी ओर खींच लेता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्फुट -पद का उल्लेख क्यों किया, लखनऊ में कौन सा कार्यक्रम होने जा रहा है, आचार्य रजनीश का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

28.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 28 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 28 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य हमें  जो अध्यात्म के द्वार पर खड़े हैं उद्बोधित प्रबोधित उत्थित करते हैं ताकि इनका श्रवण कर हम अध्यात्म के भीतर प्रविष्ट होने का प्रयास कर सकें हमें आत्मबोध हो हम महापुरुषों के जीवन का अध्ययन कर उनके मार्ग पर चलें हम संस्कारवान्,शौर्यवान्, धैर्यवान्, तपस्वी, यशस्वी, राष्ट्र -भक्त,सनातन धर्मी मर्यादा का पालन करने वाले बनें

जब हम सांसारिकता में उलझकर कष्ट में रहें हमारा कोई वश नहीं चले तो हमें परमात्मा की शरण लेनी चाहिए निर्भरा भक्ति अर्थात्  सब कुछ संचालित करने वाली शक्ति भगवान् के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव  हमें अपने भीतर जाग्रत करना चाहिए विनय पत्रिका के ९१ वें पद में तुलसीदास जी कहते हैं 


नाचत ही निसि-दिवस मर् यो।

तब ही ते न भयो हरि थिर जबतें जिव नाम धर् यो ॥ १ ॥ 


बहु बासना बिबिध कंचुकि भूषन लोभादि भर् यो।

चर अरु अचर गगन जल थलमें,कौन न स्वाँग कर् यो ॥ २ ॥ 


देव-दनुज,मुनि,नाग,मनुज नहिं जाँचत कोउ उबर् यो।

मेरो दुसह दरिद्र, दोष,दुख काहू तौ न हर् यो ॥ ३ ॥ 


थके नयन, पद, पानि, सुमति, बल, संग सकल बिछुर् यो।

अब रघुनाथ सरन आयो जन,भव,भय बिकल डर् यो ॥ ४ ॥ 


जेहि गुनतें बस होहु रीझि करि, सो मोहि सब बिसर् यो।

तुलसिदास निज भवन-द्वार प्रभु दीजै रहन पर् यो ॥ ५ ॥


नाचते-नाचते दिन-रात भटकता रहा, लेकिन जब जीव ने हरि का नाम लिया तब वह स्थिर हुआ।

अनेक वासनाओं, विविध आभूषणों  लोभ आदि से भरा  था। चराचर , आकाश, जल और धरती में सभी रूप अपनाए ।

देव, दानव, मुनि, नाग और मनुष्य - कोई भी मेरी दुर्दशा, गरीबी, दोष और दुःख हटा नहीं पाया।

मेरी आँखें, पैर, हाथ, बुद्धि, बल, सब कुछ थक गया है। अब मैं, रघुनाथ की शरण में आया हूँ, हे प्रभु, मेरे भव और भय को दूर करो।

हे प्रभु, जिस गुण से आप प्रसन्न होते हो, वह मुझे याद नहीं  हे प्रभु, मुझे अपने घर के द्वार पर रहने की अनुमति दीजिए।


संसार को संसार की दृष्टि से देखते हुए स्वयं को स्वयं की दृष्टि से देखने का अभ्यास करें आत्मस्थ होने का प्रयास करें सारी व्याधियों के निराकरण के लिए आत्मस्थता अनिवार्य है अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन व्यायाम लेखन भी अनिवार्य है इस पर ध्यान दें 

खानपान जागरण शयन व्यवहार पर ध्यान दें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रमेन्द्र जी भैया आशीष जोग जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

27.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 27 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३७ वां* सार -संक्षेप

 यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।


स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 27 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३७ वां* सार -संक्षेप


हमें इस भाव में अवश्य रहना चाहिए कि जो भी यह दृश्यमान गतिशील, वैयक्तिक जगत् है-यह सबका सब ईश्वर के आवास के लिए है। हमें इन सबका त्याग द्वारा उपभोग करना चाहिए,किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि नहीं डालनी चाहिए

यही अध्यात्म है और जब कोई व्यक्ति अध्यात्म में गहरी रुचि दिखाता है और ध्यान, साधना या ईश्वर की भक्ति,  जिसमें अद्भुत शक्ति होती है,में लीन होता है तो वह अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने लगता है। इस स्थिति में वह भौतिक संसार की अस्थिरता और असारता का अनुभव करता है।

उसके लिए संसारिक सुखों और भौतिक वस्तुओं की महत्ता कम होती जाती है। अध्यात्म में प्रवेश के समय संसार से मुक्ति ही ध्यानस्थता है

परमात्मतत्त्व की ओर आस्था ही अध्यात्म में प्रवेश है और संसार -तत्त्व की ओर व्यावहारिक जगत् में प्रवेश है 

भारतवर्ष में एक समय ऐसा आया जब अध्यात्म तत्त्व में अत्यधिक लिप्तता से हमें समाज और देश से प्रयोजन ही नहीं रहा हम एकांगी हो गए जिसका दुष्टों ने लाभ उठाया

इसी कारण हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को समझना चाहिए शौर्य पराक्रम बल की अनुभूति करनी चाहिए जिसके लिए हमें अपने शरीर पर भी ध्यान देना चाहिए उचित समय पर जागरण शयन आवश्यक है खाद्याखाद्य विवेक भी आवश्यक है

 संसार और सार दोनों में सामञ्जस्य की महती अपरिहार्यता है

मन बुद्धि शरीर में सामञ्जस्य अनिवार्य है अध्ययन स्वाध्याय लेखन राष्ट्र चिन्तन आवश्यक है 

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने प्रेमानन्द जी की चर्चा क्यों की शौर्य का वास्तविक अर्थ क्या है संसार में शौर्य की अनुभूति क्या है जानने के लिए सुनें

26.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 26 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 26 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३६ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण हमें  अनाचार से बचाते हुए उत्साहित करते हैं,जाग्रत करते हैं ताकि हम,  जिन्हें जन्म से ही अनेक दैवीय वरदान प्राप्त हो जाते हैं  बाह्य आडम्बरों से बच सकें,क्षुद्र स्वार्थों से बचते हुए परमार्थ के कार्य कर सकें,शान्ति की स्थापना कर सकें,मनुष्योचित कार्य ही करने का संकल्प कर सकें, प्रेम और आत्मीयता का विस्तार कर सकें,भारत माता के प्रति आस्थावान् बन सकें,समाज में व्याप्त अंधकार और भयंकर कष्टदायक रोग के रूप में फैल रहे अविश्वास को दूर कर सकने की क्षमता ला सकें अपनों के साथ विश्वास का भाव विकसित कर सकें 


यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ

(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)



हमारे कल्याण की कामना करने वाले आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम खाद्याखाद्य पर विशेष ध्यान दें अपना आहार शुद्ध रखें क्योंकि आहार के शुद्ध होने से अन्तःकरण की शुद्धि होती है, अन्तःकरण के शुद्ध होने से बुद्धि निश्छल होती है और बुद्धि के निर्मल होने से सब संशय और भ्रम जाते रहते हैं

आचार्य जी ने यह भी परामर्श दिया कि 

अपनी उलझनों को सुलझाने के लिए आत्मस्थ होने के लिए कुछ समय प्रतिदिन एकांत में रहने के लिए निकालें

साथ ही मानस के बालकांड के प्रथम दस दोहे नित्य पढ़ें 

और उन पर विचार करें

हमें हंस का भाव अपने भीतर लाना होगा क्योंकि 



संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥

 संत रूपी हंस दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी के किस कार्यक्रम की चर्चा की जानने के लिए सुनें

25.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 25 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 25 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३५ वां* सार -संक्षेप


अद्भुत है यह वाचिक संपर्क जिसके माध्यम से आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उद्बोधित करते हैं ताकि हम अपने विकार दूर कर सकें, सदाचारमय विचार ग्रहण कर सकें, अपनी अद्भुत ऋषि परम्परा पर आस्था रखते हुए सनातन धर्म के व्याख्याता और संरक्षक बन सकें , हम भटकने और व्याकुल होने से बच सकें,अपने भीतर यह आस्थावादिता उत्पन्न कर सकें कि परमात्मा हमारे भीतर स्थित है हमारे अन्दर शिवत्व और रामत्व जैसे अद्भुत गुण भरे हुए हैं जिनके माध्यम से  हम शक्ति पराक्रम की अनुभूति करते हुए दुर्धर्ष समस्याओं को भी हल कर सकते हैं, परमात्मा हमें अच्छे और बुरे की पहचान वाली शक्ति दे सके, हमें स्मरण रहे कि अखंड भारत हमारा लक्ष्य है 


तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस

जिसमें 

 रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥

मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥



 श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पावन है इस कथा में वेद,पुराणों का सार है, यह कल्याण का भवन है और अमंगलों को हरने वाला है, जिसे मां पार्वती सहित भगवान शिव सदा जपा करते हैं


एक ऐसा अद्भुत ग्रंथ है जिसमें यदि भाव टिक जाए तो हमें सारी समस्याओं का उत्तर मिल जाता है 


भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।

सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिबेक॥9॥


तुलसीदास कहते हैं कि उनकी यह रचना सब गुणों से रहित है, इसमें बस, विश्वप्रसिद्ध एक गुण है। उसे विचारकर अच्छी बुद्धि वाले पुरुष, जिन्हें निर्मल ज्ञान प्राप्त है, इसको सुनेंगे l

आचार्य जी ने आस्था  को विस्तार से बताया यह भी समझाया कि विश्वास और आस्था में क्या अन्तर है हम यह आस्था रखें कि जब भी हम संकटों में फंसेंगे हनुमान जी हमारी रक्षा  अवश्य करेंगे 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रमोद जी भैया आकाश जी भैया ज्योति जी भैया आशु शुक्ल जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

24.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 24 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३४ वां* सार -संक्षेप

 सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥

आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 24 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३४ वां* सार -संक्षेप

यह हमारा सौभाग्य है कि हनुमान जी, जिनका वरदहस्त सदैव हमारे ऊपर रहता है,की प्रेरणा से ये सदाचार वेलाएं हमें प्राप्त हो रही हैं ताकि हम जिज्ञासु सदाचारमय विचार ग्रहण कर सकें अपने विकार दूर कर सकें अपनी सोच सकारात्मक रख सकें उस यशस्विता का वरण कर सकें जिसके लिए हम  परमात्मा की लीला के पात्र उसकी इस लीलाभूमि में संघर्ष करते रहते हैं,आत्मानुभव के सुख का सुंदर प्रकाश फैले ताकि संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो सके, हम उत्साहित प्रफुल्लित हो सकें, अविद्या के साथ विद्या को भी जान सकें, शक्ति की अनुभूति कर सकें, ऊलजुलूल खानपान से बच सकें 


तुलसीदास जी ने विषम परिस्थितियों में जब  दुष्ट अकबर का शासन था प्रेरणा देने वाली श्रीरामचरित मानस की रचना की आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम इस अद्भुत ग्रंथ का पाठ करें आज भी यह प्रासंगिक है आज भी परिस्थितियां विषम हैं  इसके लिए हमें शक्तिबोध होना चाहिए और हमें आत्मविस्तार का प्रयास करना चाहिए संगठन को महत्त्वपूर्ण मानते हुए  हम राष्ट्रभक्तों को संगठित रहना चाहिए 

यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ

(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किन भैया के घर भोजन की चर्चा की, कामायनी के पात्र श्रद्धा और मनु का उल्लेख क्यों किया, कल सम्पन्न हुए रामकथा -कार्यक्रम के विषय में क्या बताया  जानने के लिए सुनें

23.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 23 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३३ वां* सार -संक्षेप

 असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।


नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 23 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३३ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार वेलाएं हनुमान जी की कृपाछाया से नित्य हमें प्रेरित प्रभावित उद्बोधित सुसंस्कारित करती हैं ताकि ब्रह्म की ओर चलने वाले हम मनुष्य अपने विकार दूर सकें अर्थात् असत् से विमुख होकर सत् को ग्रहण कर सकें, प्रतिष्ठा प्राप्त करने का प्रयास कर सकें , कुसंगति से बच सकें 


हम अपना इतिहास देखें तो जब जब हमारे देश के राष्ट्र -भक्त समाज पर संकट आया है तो हमारे ऋषियों महर्षियों मार्गदर्शकों कवियों साधुओं ने अपार शक्तियों वाले हनुमान जी की उपासना अवश्य की है हमें भी उनकी उपासना अवश्य करनी चाहिए क्योंकि वे हमें संकटों से निकाल लेते हैं हमारे विकार हर लेते हैं हमें बल विद्या बुद्धि प्रदान करते हैं


जो हमारे स्वभाव में नियत कर्म है वही धर्म है स्वभाव से नियत किये गये कर्म को करते हुए मनुष्य पाप को नहीं प्राप्त करता।।


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।

और दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म को नहीं त्यागना चाहिए जो भी कार्य करें मनोयोग पूर्वक करें

इसके अतिरिक्त खीर वाला क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें

22.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 22 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 22 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३२ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी हमारे मनमस्तिष्क में सदाचारमय विचार इस तरह से पिरोने का प्रयास कर रहे हैं ताकि हम उन्हें ग्रहण कर  अपने विकारों को दूर करें सद्गुणों को ग्रहण करें सब प्रकार से क्रियाशील बनें शक्तिसम्पन्न बनें भविष्य का इतिहास बनाने का संकल्प लें राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में अपने कर्तव्य का परिपालन करें राम का रामत्व धारण करें 

भगवान् राम ने नर रूप में इस कारण लीला की ताकि हम नर उनसे प्रेरणा लेकर अपने मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए उस प्रकार कार्यव्यवहार करें जो समाज और राष्ट्र के हित में हो और विषम से विषम परिस्थिति में भी अपने कर्तव्य से विमुख न हों न ही भ्रमित भयभीत हों

भगवान् राम ने नर के रूप में कार्य किए परमात्मा के कार्य नहीं किए ताकि हमें यह विश्वास बना रहे कि जब वो बड़ा से बड़ा कठिन से कठिन काम  कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं

राम ने क्रिया से लगाव किया क्रिया के परिणाम की चिन्ता नहीं की 


यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।


ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।


जिसके समस्त कार्य कामना और संकल्प से रहित हैं,  ऐसे उस ज्ञानरूप अग्नि के द्वारा भस्म हुये कर्मों वाले पुरुष को ज्ञानीजन पण्डित कहते हैं।। 

राम से बड़ा पंडित कौन होगा 

हर दिशा में प्रसरित भगवान् राम का रामत्व अयोध्या के बाहर दिखा 


कागर-कीर ज्यौं भूषन-चीर सरीर लस्यौ तजि नीर ज्यौं काई।

मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभाय सनेह सगाई॥


संग सुभामिनि भाई भलो, दिन द्वै जनु औध हुतै पहुनाई।

राजिव लोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाई॥


सुग्गों के पंख के समान वस्त्र और आभूषण त्यागने पर राम का शरीर इस प्रकार सुशोभित हुआ जिस प्रकार काई हटा देने से जल सुशोभित होता है। माता,पिता

(जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥)

, प्रिय जन, स्नेही-संबंधियों का सम्मान करके साथ में सुंदर स्त्री और अच्छे भाई  उनकी छाया लक्ष्मण को लेकर कमल जैसे नेत्रों वाले श्रीराम अपने पिता के राज्य को छोड़कर बटोही की तरह ऐसे चल पड़े मानो वह अयोध्या में दो दिन के अतिथि थे।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि हमारे सनातन धर्म की परस्परावलम्बित सामाजिक व्यवस्था अद्भुत है 

भगवान् राम की कथा आज की विषम परिस्थितियों में बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है

21.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 21 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३१ वां* सार -संक्षेप

 ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥

कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 21 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३१ वां* सार -संक्षेप


यह परमात्मा की महती कृपा है कि हमें मनुष्य का शरीर प्राप्त है इसी शरीर में 

कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः ।

उत्तिष्ठन् त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरन् ।।


तत्त्व शक्ति विश्वास आदि बहुत कुछ है हम अपने मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए, कि  शरीर से मन तक मन से बुद्धि तक बुद्धि से विचार तक  विचार से यशस्विता तक परमात्मा द्वारा सौंपी गई एक विधि व्यवस्था है, अधिक से अधिक आनन्द के कार्य करने का प्रयास करें 

यह सर्वविदित है कि प्रशंसा से आनन्द की अनुभूति होती है

किसी व्यक्ति के अच्छे कर्मों से अर्जित कीर्ति सदैव अस्तित्व में रहती है

चलालमिदं सर्वं कीर्तिर्यस्य स जीवति



सहज व्यक्तियों के मन में एक आकर्षण रहता है जिससे कोई  वस्तु स्थान व्यक्ति अच्छा लगता है वे एक सहज जीवन जीते हैं उसी सहज जीवन द्वारा भक्ति भाव में हम राष्ट्र की सेवा करते हैं हमारे राष्ट्र भारत की भूमि परमात्मा की अद्भुत लीला स्थली है अपने इस भारत देश की,इसकी परम्परा की ,सनातन धर्म की भक्ति पूर्वक जो उपासना करता है वह भी आनन्दार्णव में तैरता रहता है

देशभक्ति भगवतभक्ति एक ही है हम अपनी भूमिका को पहचानते हुए अपने कर्तव्य को करें और हमारा कर्तव्य है राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

हम सगुणोपासक हैं

हम मन्दिरों में मूर्तियों में सहज रूप से मन लगा लेते हैं 

अर्जुन जब पूछते हैं कि सगुण और निर्गुण अव्यक्त ब्रह्म की उपासना में क्या श्रेष्ठ है क्या सरल है 

एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते।


येचाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः।।12.1।।

तो भगवान् कहते हैं 

मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।


श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।।12.2।।

मुझ साकार में मन को एकाग्र करके नित्ययुक्त हुए जो भक्तजन परम श्रद्धा से युक्त होकर मेरी उपासना करते हैं, वे श्रेष्ठ हैं।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने २१ मार्च १९५० की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

20.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 20 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३३० वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 20 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३३० वां* सार -संक्षेप


भगवान् की बनाई ये सृष्टि अद्भुत है  

तत्त्वमस्यादिवाक्येन स्वात्मा हि प्रतिपादितः।

नेति नेति श्रुतिर्ब्रूयादनृतं पाञ्चभौतिकम् ॥ १.२५॥


परमात्मा की लीला अद्भुत है हम उस लीला के पात्र हैं हमें अपनी भूमिका पहचाननी होगी  हम व्यक्तित्व हैं और इसी कारण कृतित्व हमसे सदैव संयुत रहेगा और कृतित्व ऐसा जो यशस्विता प्रदान करे परमात्मा हमें संपूर्ण सृष्टि के दर्शन कराता है उसे अनुभव कराता है 

अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्

निर्द्वंद्व होकर अपने कर्तव्य का पालन करें यह सत्य है कि हम कभी नहीं मरते हमारा शरीर नष्ट होता है ऐसा अद्भुत चिन्तन है हमारे भारतवर्ष का 

इसी कारण  क्योंकि हम भारत में जन्मे हैं हमें इस पर गर्व होना चाहिए  हमें अपनी परम्परा अपनी संस्कृति अपने ग्रंथों अपने वास्तविक इतिहास पर गर्व करना चाहिए 

हमारा जो वास्तविक इतिहास है वह अद्भुत है उसी वास्तविक इतिहास को उद्धृत करते हमारे ग्रंथ  जैसे पुराण,उपनिषद्, श्री रामचरित मानस कपोल कल्पना नहीं हैं  यदि ये सब हम कल्पना समझेंगे तो यह हमारा भ्रम ही है यथार्थ के बिना कल्पना होती ही नहीं है कुछ न कुछ यथार्थ का अंश अवश्य ही होगा जिसके कारण कल्पना संभव है

   उदाहरण के लिए जैसा हमारे ग्रंथों में लिखा है कि शम्बर के विरुद्ध दशरथ इन्द्र की सहायता करने देवलोक गए तो उनका देवलोक जाना कल्पना पर आधारित नहीं है यह वास्तविक घटना है इसके लिए हमें अपनी दृष्टि सुस्पष्ट रखनी होगी भाव जगत् में हम प्रवेश करने की चेष्टा करें तो यह संभव है हमें जब विश्वास करने का अभ्यास होगा तो यह सब स्पष्ट होता चला जाएगा अस्ताचल देशों के कारण हमारे ऊपर जो भ्रम का परदा पड़ा है उसे हटाना होगा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 

अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा । पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।। का उल्लेख क्यों किया सुनीता विलियम्स एलन मस्क का उल्लेख क्यों हुआ श्री बालेश्वर जी का नाम क्यों आया गीतावली से आचार्य जी ने क्या उदाहरण दिया जानने के लिए सुनें

19.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 19 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष   पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 19 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२९ वां* सार -संक्षेप

अस्ताचल देशों के कारण हमारे अन्दर जो भ्रम हैं उनका निवारण आवश्यक है हमें अपने वास्तविक इतिहास पर अपने ग्रंथों पर गर्व करना चाहिए हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं पुराणों में इतिहास है वेद ज्ञान के भण्डार हैं शास्त्रों में विधि विधान हैं हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन में रत हों हम अपने शरीर जो साधन है साध्य नहीं का उचित पोषण करें 

हम जहां है जैसी भी परिस्थिति में हैं वहां जिस कार्य को कर रहे हैं उसमें रमें उसे मनोयोग पूर्वक करें उसे विश्वासपूर्वक करें  और भ्रान्तियों से दूर रहें  सकारात्मक सोच रखें यह भाव वही है जो भगवान् राम के अन्दर था जैसे उन्होंने वन जाते समय संकटों से भरा मार्ग चुना  यद्यपि दूसरे मार्ग में संकट नहीं थे भगवान् राम जहां रहे वहां रमते हुए रहे जिस भी कार्य को उन्होंने किया उसे रम कर किया इसी कारण उनके जीवन के साथ यशस्विता साथ साथ चलती रही यशस्विता सुख और साधनों से प्राप्त नहीं होती यह धन कमाने से नहीं मिलती 

 स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति। 

भगवान राम का जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी भी कार्य को सच्चे मन और समर्पण के साथ करना चाहिए, चाहे वह कार्य कितना भी कठिन या चुनौतीपूर्ण हो।यही रामत्व हमारे भीतर प्रविष्ट हो आचार्य जी इसका प्रयास करते हैं भगवान् राम का प्रत्येक कार्य और व्यवहार अनुकरणीय है उनका जन्म भारत में हुआ है ऐसी अद्भुत है हमारी भारत भूमि 


भलि भारत भूमि, भले कुल जन्म, समाज सरीर भला लहिकै।

करषा तजिकै, परुषा वरषा, हिम मारुत घाम सदा सहिकै॥

जौ भजै भगवान सयान सोई तुलसी हठ चातक ज्यों गहिकै।

न तो और सबै विष-बीज बये हर-हाटक काम-दुहा नहि कै।


'भारत जहां ऋषियों महर्षियों शूरवीरों योद्धाओं की अद्भुत परम्परा  जिस पर हमें गर्व करना चाहिए रही है की अच्छी  पावन भूमि में, अच्छे कुल में जन्म पाकर, समाज और शरीर भी भले पाकर, क्रोध छोड़कर, वर्षा, हिम , वायु और गर्मी सदा सहकर जो चातक की तरह हठ करके भगवान् को गहै―अर्थात् जैसे चातक स्वाती का ही पानी पीता है नहीं तो प्यासा ही रहता है―और उनका भजन करे वही हे तुलसी! सयाना है अन्यथा और सब तो सोने के हल में कामधेनु जोतकर विष का बीज बोने जैसा है

इसके अतिरिक्त श्री नरेन्द्र शुक्ल जी को कौन से सूत्र संयुत नहीं दिखे, धनुष यज्ञ की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

18.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 18 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२८ वां* सार -संक्षेप

 रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥

कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुलमनि जानी॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष   चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 18 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं ग्राम आधारित गोवंश आधारित इस देश के हम जाग्रत पुरोहित बनें, यशस्विता के लिए प्रयास करें, गांव की ओर उन्मुख होने का प्रयास करें, अपने आत्म की ओर भी उन्मुखता करें, रामत्व की अनुभूति करें 


दूसरी ही सृष्टि बना देने वाले  अत्यन्त क्षमतावान्  क्षत्रिय से ब्राह्मण बने विश्वामित्र के यज्ञों का जब रावण विध्वंस करने लगा तो विश्वामित्र को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता हुई जो संपूर्ण देश को एक सूत्र में बांध सके और दुष्ट रावण का आतंक समाप्त कर सके यद्यपि उस समय जनक भी बहुत बलशाली थे और राजा दशरथ (नेमि ) भी अत्यन्त बलशाली जिन्होंने कैकेयी के साथ देवलोक जाकर असुर शम्बर  को पराजित कर दिया था लेकिन ये सब लोग एकांगिता अपनाए हुए थे और रावण की ओर ध्यान नहीं दे रहे थे जिसका लाभ रावण उठा रहा था

और तब विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण की मांग की यहीं से नर रूप में लीला कर रहे भगवान् राम की यशस्विता प्रारम्भ होती है उन्हें तो राजतिलक होने पर सुविधाओं का जीवन मिलता किन्तु उन्होंने सुविधाओं का त्याग कर वन जाने का निर्णय किया 


प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।

मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥2॥

रघुकुल को आनंद देने वाले श्री रामचन्द्रजी के मुखारविंद की जो शोभा राज्याभिषेक की बात सुनकर न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवास के दुःख से मलिन ही हुई, वह छवि मेरे लिए सदा सुंदर मंगलों की देने वाली हो


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सरौंहां में हो रहे किस कार्यक्रम की चर्चा की,वहां मेला कब लगने जा रहा है,चहारुम क्या है, कवितावली में सबसे लम्बा कांड कौन सा है जानने के लिए सुनें

17.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 17 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२७ वां* सार -संक्षेप

 जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?

    भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 17 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२७ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि हम  अखंड भारत के उपासक शौर्य पराक्रम की अनुभूति करें, हमारा पौरुष जाग्रत हो,हमारी साधना सिद्धि तक पहुंचे, हम  संसार के प्रपंचों में फंसे रहने पर भी सार के तत्त्व को ग्रहण करने का समय निकाल सकें,  हम समय का सदुपयोग करें, हमारे भीतर अवस्थित ऊर्जा ऊष्मा कर्म के लिए प्रवृत्त हो,हम तत्त्व शक्ति की अनुभूति करते हुए भारत माता की सेवा में रत हों,हमें भारत और प्रभु राम एकाकार रूप में  आनन्दप्रद दर्शन दें, प्रभु राम का रामत्व



हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥

रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥5॥


 हमारे भीतर प्रविष्ट हो ताकि हम संसार के जंजालों से मुक्त हो सकें 

प्रभु राम गुणों की खान हैं सुन्दर कांड में उनका गुणगान इस प्रकार है 

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्। 

रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ll


शान्त, सनातन, अप्रमेय, निष्पाप, मोक्ष और परम शान्ति प्रदान करने वाले, ब्रह्मा जी, शंकर जी और शेषनाग जी से निरंतर सेवित, वेदों के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में लीला करने वाले , समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुवंश में श्रेष्ठ तथा राजाओं में शिरोमणि श्रीराम कहलाने वाले जगत् को धारण करने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पंचवटी का उल्लेख क्यों किया, भैया संतोष जी भैया शैलेन्द्र पांडेय जी का उल्लेख क्यों हुआ, रघुवंश ही क्यों है रामवंश क्यों नहीं जानने के लिए सुनें

16.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 16 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष  तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 16 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२६ वां* सार -संक्षेप

हनुमान जी की कृपा से आचार्य जी द्वारा हम सदाचारमय विचार तब से ग्रहण कर रहे हैं जब हम छोटी आयु के थे इन सदाचार संप्रेषणों  का उद्देश्य  यही रहा है कि हम आत्मबोध से संयुत हो जाएं, अपनी संवेदनशीलता बनाए रखें,भारतीय जीवन दर्शन के वैशिष्ट्य को गहराई से जान सकें जिसके चिन्तन में यह भी है कि हम कभी नष्ट नहीं होते , हम अपने कर्तव्य बोध से विमुख न हों, हम स्थूलता के साथ सूक्ष्मता का भी चिन्तन करें, अपने परिवार में भी हम सदाचारमय विचारों का संप्रेषण करें 



कहीं क्रंदन रुदन विध्वंस का वीभत्स मंजर है 

कहीं लौलुप्य लघुता लोभ का मारक समंदर है 

मगर इस दौर में भी हम प्रकाशक दीप जैसे हैं 

यही संदेश दें जग को कि हम आश्रयी मन्दर¹ हैं

1- पर्वत 


हम यह अनुभव करें कि हम प्रकाशक दीप जैसे हैं जो समाज का अंधकार दूर करने में सहायक  हैं जैसा तुलसीदास रहे 

अकबर के शासनकाल में जब राष्ट्रभक्त समाज को अनेक समस्याओं और असहमति का सामना करना पड़ रहा था, तब तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस  से धार्मिक जागरूकता, भक्ति, और  शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का प्रसार किया। उन्होंने सनातन धर्म के मूल्यों को पुनर्जीवित किया और समाज में समता, भाईचारे, और सहिष्णुता का संदेश फैलाया। उनके द्वारा लिखित ग्रंथ ने समाज को धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से सशक्त किया और राष्ट्रभक्त समाज को दुष्ट अकबर के शासन में भी अपने आदर्शों और विश्वासों पर टिके रहने की प्रेरणा दी।


उन्होंने भगवान राम


निसिचर हीन करहुँ महि भुज उठाई पन कीन्ह


 को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बालकांड के किस भाग को पढ़ने का परामर्श दिया १७, १८ को आचार्य जी कहां जा रहे हैं, वर्षफल की चर्चा क्यों हुई, शूकर क्षेत्र का उल्लेख क्यों हुआ, भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी और भैया मनीष कृष्णा जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

15.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 15 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष  द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 15 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२५ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों का सिलसिला एक लम्बे समय से चल रहा है जिनका उद्देश्य है कि हम इनसे सदाचारमय विचार ग्रहण करें अपने विकारों को दूर करें अपने जीवन को तप त्याग सेवा समर्पण भक्ति की सहायता से स्थायी रूप से जाज्वल्यमान् बनाने का प्रयास करें,हम उत्साहित प्रफ़ुल्लित आनन्दित हों, कर्मानुरागी बनें,भारतभूमि की सेवा में रत हों, यह विवेक धारण करें कि दुष्ट दंडनीय हैं, प्रेम आत्मीयता आदि का विस्तार करें, अपनी दुर्बलता का परित्याग करें भय भ्रम से दूरी बनाएं 


कल होली पर्व था


इस देश का हर पर्व उत्सव मांगलिक शिव सृष्टि है 

ऋषियों विचारक पूर्वजों की गहन चिन्तक दृष्टि है 

इनको मनाना चाहिए उत्साहपूर्वक 

पर सदा यह ध्यान रखना चाहिए हर व्यक्ति एक समष्टि है


 आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम ऐसे पर्व मनाते समय फ़ूहड़पन से बचें

जैसा हम जानते हैं कि श्री सनातन धर्म सभा कौशलपुरी कानपुर के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आचार्य जी २१, २२, २३ मार्च को श्रीराम कथा कहने वाले हैं 

और जब राम कथा की चर्चा हो तो सहज रूप से अनन्तमुखी प्रतिभा के धनी चिन्तक विचारक समाजसेवक कवि गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम याद आ जाता है आचार्य जी ने उनसे संबन्धित वह प्रसंग सुनाया जिसके कारण उन्होंने रामाज्ञा प्रश्न की रचना की 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम क्यों लिया 

 लंका मोहल्ले का संकटमोचन हनुमान मन्दिर किसने बनवाया था जानने के लिए सुनें

14.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा /चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 14 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२४ वां* सार -संक्षेप

 *मैं रचनाकार अनोखा हूँ*


मंगलविधान का उन्नायक

मैं सृष्टि सुधानिधि का गायक 

स्रष्टा का सर्वप्रमुख पायक 

मैं जीवमात्र का सुखदायक 

पर, जब तब लगता " धोखा" हूँ। 

                मैं रचनाकार अनोखा....

✍️ ओमशंकर


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा /चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 14 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२४ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम भारतीय जीवन दर्शन, सनातन धर्म को गहराई से जानें, मनमुटावों को दूर करें, भारतीय पर्वों को उत्साह से मनाएं,अपने अन्दर के दीपकत्व की अनुभूति करें उसकी सार्थकता सिद्ध करें ताकि समाज का अंधकार दूर  सके, जीवमात्र के सुखदायक बनें,भावना का प्रवाह उत्पन्न करें,मात्र भौतिक भंवर में ही रमे रहने से बचें,पूर्त कर्म करने का प्रयास करें,भीतर बह रहे आनन्दार्णव का अनुभव करें, राष्ट्र सेवा के अपने उद्देश्य को न भूलें अद्भुत है हमारा देश कि 


यह वेद विदों का देश तपस्या सेवा इसकी निष्ठा है 

इसका मंगल विश्वास जगत ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा है 

यह जगन्नियन्ता का विश्वासी पौरुष की परिभाषा है 

संपूर्ण जगत के संरक्षण की एकमात्र शिव आशा है 

और इसकी अनुभूति करते हुए शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को समझें, लगातार धर्ममय कर्म करते चलें 


हमारे यहां अपार शक्ति के भंडार तीन भक्त बहुत प्रसिद्ध हुए हैं जिन्होंने अनुभव किया कि भक्ति में अथाह शक्ति होती है 

महात्मा सूरदास


(आजु हौं एक-एक करि टरिहौं।

के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं।

हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं।

अब हौं उघरि नच्यो चाहत हौं, तुम्हे बिरद बिन करिहौं।

कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि हीरा।

सूर पतित तबहीं उठिहै, प्रभु, जब हँसि दैहौ बीरा।)

, महात्मा तुलसीदास

(जाके प्रिय न राम-बदैही।

तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥)


, मीराबाई 


(अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।

दासि मीरा लाल गिरधर, होई सो होई॥)


 जिनकी एकनिष्ठा अवर्णनीय है 

सूरदास  तुलसीदास से ३३ वर्ष  बड़े थे और उन दोनों की ईर्ष्या प्रतिस्पर्धा की दुर्भावना से इतर भावनापूर्ण भेंट हुई है उस काल में तुलसीदास एक जाज्वल्यमान् नक्षत्र की तरह चमक रहे थे तुलसी उनसे लिपट गए और रुंधे स्वर में बोले

आपके पदों को गा गाकर मैंने भीख मांगी है और मेरा पेट भरा है आप मेरे प्रकाश स्तम्भ हैं 

राजमहिषी मीराबाई तुलसी से १३ वर्ष बड़ी  थीं और उनका लिखा पत्र बहुत प्रसिद्ध है 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने डा राजबली पांडेय का नाम क्यों लिया अ अक्षर को किस प्रकार कामधेनु तन्त्र में वर्णित किया गया है, युगभारती में कितने संस्थापक हैं जानने के लिए सुनें

13.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी /पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 13 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी /पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 13 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२३ वां* सार -संक्षेप


मनुष्य के रूप में जन्म लेने की अपनी सार्थकता को सिद्ध करने के लिए, मनुष्योचित व्यवहार करने के लिए,भक्ति भाव में विभोर होने के लिए, अपने मन को  (द्वीप को तट न समझते हुए ) हमारे द्वारा निर्धारित लक्ष्य की दिशा में प्रविष्ट कराने के लिए, अपने अस्तव्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के लिए, संतों, ज्ञानियों, ऋषियों, कवियों, भावकों, भावुकों के शब्दरत्नों से आनन्दित होने के लिए, अपने विकारों को दूर करने के लिए,

अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति के लिए, अपने भीतर छिपी शक्तियों की पहचान के लिए 


 हमें इन अद्भुत हितकारी सदाचार संप्रेषणों की नित्य प्रतीक्षा रहती है


ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥


परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।


 यह हनुमान जी

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई॥




 की कृपा है


हम  ज्योति के उपासक गति के स्वर उदय के गीत इन सदाचार संप्रेषणों के विचारों को सुनकर कर्मरत हों किन्तु कर्म के फल की इच्छा न करते हुए 

क्यों गहरा अंधकार छाया हुआ है  दुष्टों से अपने को अपने राष्ट्रभक्त समाज को भयभीत हुए बिना बचाना है ऐसे में 


राम का आदर्श गीता ज्ञान का निष्कर्ष लेकर  बढ़ चलो साथी अभी गहरा अंधेरा है..


गीता के दूसरे अध्याय में 



योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।


सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।


यदि कर्मफल से प्रेरित होकर कर्म नहीं करने चाहिए तो  किस प्रकार करने चाहिए इस पर  भगवान् कहते हैं


 हे अर्जुन आसक्ति का परित्याग कर तथा सिद्धि/ असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हो तुम कर्म करो। यह समभाव ही योग कहलाता है।


भक्ति में शक्ति है 

भक्ति में रमने वाले मनुष्य की अद्भुत स्थिति होती है  भक्त लीला दर्शन में भी मग्न हो सकता है या रूप दर्शन में  और वह भाव दर्शन में भी मग्न हो सकता है

अपने प्राणों का दम भगवान् की शक्ति के साथ समन्वित हो जाए तो आनन्द ही आनन्द है


इसके अतिरिक्त कर्म धर्म बने तो क्या होता है भैया दिनेश जी (राठ वाले भैया ) का नाम क्यों आया आचार्य माधवेन्द्र पुरी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

12.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 12 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 12 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२२ वां* सार -संक्षेप

हम श्रोताओं को सदाचारमय विचार प्रदान करने वाले हमारी असीमित शक्तियों का हमें अनुभव कराने वाले अत्यन्त कल्याणकारी इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने की हमारे अन्दर प्रतिदिन जिज्ञासा बनी रहती है और इनके आधार में प्रेम आत्मीयता भक्ति तप त्याग समर्पण शौर्य पराक्रम प्रविष्ट है

तुलसीदास जी 


राम बाम दिसि जानकी, लखन दाहिनी ओर।

ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरु तुलसी तोर॥

के लिए वह ध्यान कि भगवान् श्री रामजी की बाईं ओर श्री जानकी जी हैं और दाहिनी ओर श्री लक्ष्मण जी हैं,  संपूर्ण रूप से कल्याणमय मनमाना फल देने वाला कल्पवृक्ष ही है


ने अद्भुत अद्वितीय कृति श्री रामचरित मानस की जो रचना की है उसमें केवल भक्ति ही आवेष्टित है ऐसा नहीं है उनका विचार सतत जाग्रत रहा है 

तुलसीदास जी ने जिनका जीवन राम की सेवा में ही व्यतीत होना निश्चित था जिस राम को उन्होंने सहज रूप से अपने अंतःस्थल में बसा हुआ पाया उसे फिर खोना नहीं चाहा 

जब राम के स्थान पर काम स्थान बनाने लगा तो उनकी अर्धाङ्गिनी ने पुनः उन्हें जाग्रत कर दिया

तुलसीदास जी का ध्यान वनवासी राम पर अधिक परिलक्षित हुआ है क्यों कि उस समय दुष्ट अकबर के कारण उपजी विषम परिस्थितियों में राम उन्हें आदर्श दिख रहे थे संपूर्ण भारतवर्ष उन्हें राम के रूप में दिखाई दे रहा था


भगवान् राम के ध्यान से ऐसी विषम परिस्थितियों से राष्ट्रभक्त समाज उबर सकता था


परमात्मा की  अखंड रूप से चल रही लीला  अद्भुत है जिसके हम भी एक पात्र हैं हमें अपनी भूमिका की पहचान होनी चाहिए 

जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।

त्रेता में विश्वामित्र यज्ञ करने में रत थे और रावण यज्ञ विध्वंस में 

ऐसे में परमात्मा  मार्ग सुझाता है


राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥ 

 आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया कि लस्सी न मिलने पर  कपड़े की दुकान में कपड़े देखने में किसी ने कैसे अपना समय व्यतीत किया 

उसका सार यह है कि हमें समय नहीं बिताना है हमें समय को सार्थक करना है 

हमें अपना लक्ष्य विस्मृत नहीं करना है हमें राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में अपनी भूमिका के साथ न्याय करना है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों प्रातः जल्दी जागें खानपान सही रखें 

संगति का ध्यान रखें


परसंद क्या है मीराबाई के पत्र का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

11.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 11 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२१ वां* सार -संक्षेप

 जय श्री राम 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 11 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२१ वां* सार -संक्षेप


हमारे कल्याण के लिए आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय निकालकर हमें उद्बोधित प्रबोधित करते हैं आनन्द की अनुभूति कराते हैं यह हमारा सौभाग्य है

इन वेलाओं



*जहां श्रम शक्ति सेवा साधनामय प्रेम होता है*

*जहां  निज देश के प्रति प्रेम निष्ठा नेम होता है*

*जहां अपनों परायों की सही पहचान होती है*

*जहां चर्चा कथा में पूर्वजों की शान होती है*...




 के माध्यम से हम असार के साथ सार को भी जानने का प्रयास करते हैं अपने जीवन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करते हैं

इनका महत्त्व इस कारण भी वृद्धिङ्गत हो जाता है क्यों कि इनमें ज्ञान भावनाओं के साथ समन्वित होकर चलता है आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम दंभरहित शक्ति का अर्जन करें और देश समाज के हित हेतु शुभ शक्तियों को संगठित करते चलें 

व्यापारमय संसार से इतर अपनी सोच रखें 

हमारे भारतवर्ष जहां  आज भी सांकेतिक यज्ञ धूम उठते रहते हैं की आर्ष परम्परा की विशेषता है कि उसने ज्ञान और व्यवहार को अपनी भावनाओं से बांध दिया


हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं जिनमें वेद ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद् गीता रामायण आदि अनेक प्रमुख ग्रंथ हैं 

भगवान् राम की कथा का वर्णन करते रामायणों के अनेक स्वरूप हैं 

आज भी प्रासंगिक यह कथा ऐसी है जिसकी  हमारे लिए उपयोगिता अवर्णनीय है इस कथा का श्रवण कर हम संकल्पित होने का प्रयास करें 


आदिकाव्य से 


श्री राम शरणं समस्तजगतां, रामं विना का गति।

रामेण प्रतिहन्ते कलिमलं, रामाय कार्यं नम:।

रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो, रामस्य सर्वं वशे ।

रामे भक्ति खण्डिता भवतु मे, राम त्वमेवाश्रयः ।।


श्री राम जी समस्त संसार को शरण देने वाले हैं, श्री राम के बिना दूसरी कौन सी गति है ? श्रीराम कलियुग के समस्त दोषों को नष्ट कर देते हैं  अतः श्री राम जी को नमस्कार करना चाहिए। श्रीराम से कालरूपी भयंकर सर्प भी डरता है। जगत् का सब कुछ श्रीराम के वश में है। श्रीराम में मेरी अखंड भक्ति बनी रहे ऐसी कामना है । हे राम! आप ही मेरे आधार हैं।

श्रीरामचरित मानस की रचना तुलसीदास जी ने विषम परिस्थितियों

(मांगि के खाइबो, मसीत को सोइबो)

 में जब अकबर के शासनकाल में राष्ट्रभक्त त्रस्त थे


अपने आत्मतत्त्व, आत्मसत्त्व, आत्मबोध को जाग्रत कर 


 की 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय अजमानी जी भैया मुकेश जी भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

10.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 10 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३२० वां* सार -संक्षेप

 धर्मार्थ-काम-मोक्षाणाम्, उपदेश-समन्वितम्

पूर्व-वृत्त-कथा-युक्तम् इतिहासं प्रचक्षते ll 

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 10 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३२० वां* सार -संक्षेप


प्रेम, अपनत्व , आत्मीयता में अद्भुत शक्ति है किन्तु दुर्भाग्यवश हमने जब इस शक्ति को विस्मृत कर दिया तब हमें बेचारगी घेरने लगी  

 बेचारगी से बचने के लिए हमें उसी शक्ति की अनुभूति अनेक प्रापञ्चिक कार्यों में फंसे रहने वाले आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय निकालकर कराते हैं और इस कारण हमारा भी कर्तव्य बन जाता है कि हम प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें  समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित  सुयोग्य भावनासम्पन्न आचार्य जी का प्रयास रहता है कि राष्ट्र -बोध, राष्ट्र -सेवा का भाव हमारे अन्दर विकसित हो 

हम अपने विकार दूर करें हम अपना आत्मबोध जाग्रत करें 

भगवान् राम की कथा के भावों में प्रवेश कर हम रामत्व की अनुभूति करें  रामत्व से संयुत प्रभु राम की कथा अद्भुत है 


मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।

गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥

प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी

भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥


कुशल कवि और वक्ता गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है। मेरी इस भद्दी कविता रूपी नदी की चाल पवित्र जल वाली नदी गंगाजी की चाल की भाँति टेढ़ी है। प्रभु राम के सुंदर यश की संगति से यह कविता सुंदर तथा सज्जनों के मन को भाने वाली हो जाएगी। श्मशान की अपवित्र राख भी शिव जी के अंग के संग से सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हरिशंकर शर्मा जी का नाम क्यों लिया भैया शशि शर्मा जी १९७५ का उल्लेख क्यों हुआ भैया विनय अजमानी जी द्वारा आयोजित और आचार्य जी द्वारा कही जाने वाली श्री राम की कथा के लिए आचार्य जी हमसे क्या अपेक्षा कर रहे हैं राजा साहब परिन्दा कौन थे जानने के लिए सुनें

T

9.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष दशमी / एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 9 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष दशमी / एकादशी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 9 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१९ वां* सार -संक्षेप


ये हितकारी सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं जिन्हें सुनने के लिए नित्य हम लालायित रहते हैं 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि अपने मन को केन्द्रित करते हुए इन्हें सुनकर हम अमर आत्मा आत्मस्थ होने की चेष्टा करें, पराश्रयता से बचें, सशक्त मानस वाले बनें,भय भ्रम से दूर रहें, अपने धर्म अपनी परम्परा, अपनी संस्कृति के वैशिष्ट्य को जानने वाले जिज्ञासु बनें, मनोयोग पूर्वक किसी भी सत्कर्म को करें,भक्ति श्रद्धा विश्वास समर्पण तप त्याग जैसे सद्गुण विकसित करें, काकमनोवृत्ति से जीवन जीने से बचें, सार असार दोनों को जानें 


इस कलियुग में भगवान् राम के आदेश का पालन कर उपस्थित रहते हुए हनुमान जी महाराज हमें भक्तिमय शक्ति के साथ प्रेरित करते हैं

ताकि हम अपने मनुष्य के रूप में जन्म लेकर भाग्यशाली होने का गर्व कर कर्तव्यबोध का स्मरण करते हुए राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित बनें

हमारे ग्रंथ अद्भुत हैं जिन पर हमें पूर्ण विश्वास करना चाहिए 


गीता का दूसरा अध्याय हम बार बार अवश्य पढ़ें  और अपनी संततियों को भी प्रेरित करें 

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः।


वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः।।2.42।।


हे अर्जुन ! जो कामनाओं में तन्मय हो रहे हैं, स्वर्ग को ही श्रेष्ठ मानते हैं, वेदों में कहे हुए सकाम कर्मों में प्रीति रखने वाले हैं, भोगों के सिवाय और कुछ है ही नहीं - ऐसा कहने वाले हैं, वे विवेकहीन मनुष्य इस प्रकार की जिस पुष्पित (दिखावे वाली शोभायुक्त) वाणी बोलते हैं, जो कि जन्मरूपी कर्मफल को देने वाली है तथा भोग और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये बहुत सी क्रियाओं का वर्णन करनेवाली है।


इसके अतिरिक्त तुलसीदास जी ने हनुमान बाहुक कब लिखी थी, भैया विनय अजमानी जी आचार्य जी से क्या अपेक्षा कर रहे हैं, आचार्य जी आज उन्नाव विद्यालय क्यों जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

8.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 8 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 8 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी

(साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥

जो सहि दु:ख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥3॥)


 नित्य प्रयास करते हैं कि इन ज्ञानसम्पन्न प्रेरक कल्याणकारी मनोनुकूल सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम अपनी जीवनशैली के विकारों को दूर करते चलें अपने व्यवहार और आचरण को अच्छा रख सकें राष्ट्र -यज्ञ में अनाम रहने पर भी हवन से विमुख न होकर हवन करने की भावना को बलवती कर सकें,संसार में छाए अंधकार को दूर कर सकें संकटों से अपने को और अपनों को उबारने के लिए विश्वास को दृढ़ीभूत कर सकें हम संतुष्ट रहें 


सत्संग अत्यन्त उपयोगी है


बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥

सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥2॥


 यह परमार्थ के साथ अपना भी कल्याण करता है  अच्छे लोगों के अभाव में पुस्तकों का सान्निध्य भी सत्संग का एक उदाहरण है 

संयम और साधना के अभ्यासी आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में अवश्य रत हों पुरुषार्थ अवश्य करें  दंभ न करें


ॐ ब्रह्मवादिनो वदन्ति॥

किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता जीवाम केन क्व च संप्रतिष्ठाः।

अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम्‌॥


सद्संगति का ही एक उदाहरण है कि ब्रह्म को चर्चा  का केंद्रबिन्दु मानते हुए ऋषिगण प्रश्न करते हैं कि क्या ब्रह्म जगत् का कारण है? हम कहाँ से उत्पन्न हुए हैं , किसके द्वारा जीवित रहने में सक्षम हैं और अन्त में किसमें विलीन हो जाते हैं ? हे ब्रह्मविदों ! उस अधिष्ठाता का नाम क्या है जिसके मार्गदर्शन में हम सुख-दुःख के विधान का पालन करते रहते हैं ?


आचार्य जी परामर्श दिया कि हम गीता प्रेस से प्रकाशित सामान्य अर्थ की पुस्तकों का अध्ययन करें अपने परिवार के साथ सत्संग करें 

अपनी दिनचर्या पर खानपान पर ध्यान दें कुसंग से बचें सचेत रहें जाग्रत रहें 

इसके अतिरिक्त हमारे ऊपर रामकृपा कैसे हुई भैया महेन्द्र जैन जी का उल्लेख क्यों हुआ बूजी का उल्लेख क्यों हुआ तथाकथित ब्राह्मण से क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें

7.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 7 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 7 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१७ वां* सार -संक्षेप

इन  आकर्षक सदाचार संप्रेषणों,जिनमें असार के साथ सार को अत्यन्त सरल भाषा में समझाया जाता है ,को सुनने के लिए हम प्रतिदिन लालायित रहते हैं इनसे हमें बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है बस हमें विश्वास करना होगा ये हमारे दुर्गुणों को दूर करने में भी सहायक हैं 


आत्म का विस्तार जब आनन्दार्णव में हिलोरे लेने लगता है

तो इसकी अनुभूति और अभिव्यक्ति बड़ी  अद्भुत होती है 


मैंने तुमको ही विषय मानकर गीत लिखे

 मनमन्दिर की तुम ही उपासना मूरत थे 

साधना साध्य की तुम ही थे तब एकमेव 

सचमुच में अनुपम दिव्य समय की सूरत थे 

तुममें ही देखा मैंने भारत का भविष्य 

भारतमाता की सेवा के तुम उपादान

 शिक्षा पद्धतियों की विधि और व्यवस्था थे...



 और उस अभिव्यक्ति में  अधूरापन संसार का सत्य है  इस अधूरेपन को पूर्ण करने के लिए व्यक्ति का व्यक्तित्व है उसका आत्मबोध है

व्यक्ति उस अधूरेपन को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील रहता है  इसी कारण  भावपूर्ण अभिव्यक्ति करते हुए विवेकानन्द ने कहा था कि वे बार बार इस कारण जन्म लेना चाहते हैं कि देश का एक कुत्ता भी भूखा न रह जाए इस नाम रूपात्मक जगत् में नाम और रूप आनन्द का अनुभव कराते हैं

हमने भारतवर्ष में जन्म लिया है इसके सच्चे सपूत के रूप में हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में शौर्य पराक्रम पौरुष की अनुभूति करते हुए हम अपनी भूमिका पहचानें

इस युग विलास में हम उल्लास भरें 

हम मनुष्य होने के कारण समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हैं रुदन से बचते हुए  अंधकार को चुनौती देते हुए उत्साहपूर्वक राष्ट्र हित में अपने लक्ष्य बनाएं क्योंकि हम ही इस राष्ट्र के लिए उम्मीद की किरण हैं

हमें पतित करने वाले भोगों से हम अपने को बचाएं 

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों संगठन की महत्ता को पहचानें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कामायनी पर आपत्ति का उल्लेख क्यों किया दशरथ माझी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

6.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 6 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१६ वां* सार -संक्षेप

 यह अविश्वास का अंधकार है आत्मदीप हो जाओ

युगचारण जागो कसो कमर फिर से भैरवी सुनाओ

(अपने दर्द दुलरा रहा हूं ४४वीं कविता)

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 6 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१६ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी ने जो भी शक्ति बुद्धि विचार वैभव सार असार रामत्व कृष्णत्व अर्जित किया है उसे यदि हम ग्रहण कर लें तो निश्चित रूप से हमें लाभ पहुंचेगा 

(मैंने ही तुमको विषय मानकर गीत लिखे)

चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय आदि के द्वारा हम विघ्न भाव  मानसिक असंतुलन अपने भीतर व्याप्त कर्दम दूर कर सकते हैं और इसमें श्रीरामचरित मानस से भी हमें बड़ा सहारा मिलता है 

हमें यदि कोई अच्छा साथी नहीं दिख रहा तो सद्ग्रंथों का हम आश्रय लें लेखन का सहारा लें तो संकट दूर होंगे 

विघ्नों को गले लगाते हैं।

        काँटों में राह बनाते हैं।।

है कौन विघ्न ऐसा जग में

टिक सके आदमी के मग में,

खम ठोंक ठेलता है जब नर

पर्वत के जाते पाँव उखड़,

      मानव जब जोर लगाता है         पत्थर पानी बन जाता है।।

मन बहुत चंचल होता है 

अर्जुन भी चञ्चल मन के निग्रह का उपाय भगवान् से पूछते हैं 


चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।


तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।


तो भगवान् उन्हें उपाय बताते हैं 

भारतवर्ष की छायातले  अनेक विशिष्ट महापुरुषों ने काम किया है 

हमें जब भी ऐसा वैशिष्ट्य दिखे 

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।

तो समझ लें भगवान् का अंश विद्यमान है 


....करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि मनुज सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥

हमारी आर्ष परम्परा जिसे हमने भ्रम में भुला दिया विश्वासपूर्वक कहती है कि माया से आवेष्टित होकर मनुष्य शरीर धारण कर परमात्मा कुछ न कुछ कमाल करता रहा है 

हम उसी परम्परा के मनुष्य हैं हमें अपने मनुष्यत्व की अनुभूति कर अपनी असीमित क्षमताओं को पहचानना चाहिए  अपने कर्तव्य का पालन करें  वैराग्यपूर्वक अच्छे कार्यों विचारों का अभ्यास करें 

संगठित रहें निर्विकार रूप से जीवन जीने का अभ्यास करें धीरज न त्यागें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन्नाव के विद्यालय की चर्चा क्यों की भैया पंकज जी भैया आशीष जोग जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें



5.3.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 5 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१५ वां* सार -संक्षेप

 आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।

बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र ३)


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 5 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१५ वां* सार -संक्षेप


हमें संसार अत्यधिक ग्रस न ले साथ ही संसारी भाव से मुक्त होने के लिए  हमारे लिए सद्संगति आवश्यक है  जैसे हम महापुरुषों की सद्संगति करें और कर्मक्षेत्र में प्रवृत्त करने की एक अद्भुत विधा के रूप में अंकित ये हितकारी सदाचार संप्रेषण सद्संगति का एक अच्छा उदाहरण हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए हम सद्ग्रंथों जैसे वेद ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद् गीता मानस का अध्ययन करें तो हमें लाभ प्राप्त होगा

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।


युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ll ६/१७ ll 


उस व्यक्ति के लिए योग दु:ख का नाश करने वाला होता है, जो युक्त आहार और युक्त ही विहार अर्थात् जीवन अच्छी तरह व्यतीत हो रहा है जैसे अच्छी संगति है अच्छी जगह रह रहे हैं प्राणायाम व्यायाम आदि कर रहे हैं  अध्ययन स्वाध्याय पर ध्यान है, करता है  एवं जो जीवन निर्वाह के लिए यथायोग्य चेष्टाएं करता  है साथ ही परिमित शयन और जागरण करता है। अति सर्वत्र वर्जयेत का सूत्र सिद्धान्त याद करते हुए व्यवस्थित जीवन जीता है उसके लिए योग दुःखनाशक होता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 

भैया अक्षय जी २००८,भैया नीरज कुमार जी १९८१,भैया आशीष जोग जी १९८३ का नाम क्यों लिया 

पूर्व प्रधानाचार्य श्रद्धेय ठाकुर जी के अभ्यास में क्या था, श्रद्धेय शर्मा से संबन्धित क्या प्रसंग था  दिव्यकीर्ति कौन हैं जानने के लिए सुनें

4.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 4 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 4 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१४ वां* सार -संक्षेप


हम हताश निराश न रहें और आनन्दार्णव  में तिरें, हमारा मन मस्तिष्क व्यवस्थित रहे,हम भाव विचार के साथ क्रिया पर भी दृष्टि रखें और अपनी सोच को विस्तार देते हुए अधिक मात्रा में संकल्पबद्ध हों,राष्ट्रभक्त आत्मीय जनों के लिए हम आशा की किरण बनें, संगठित रहें, रामत्व की अनुभूति करें और संस्कारवान् बनें कंचन मृग की खोज में लगे आचार्य जी जिनके मन में है 


सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है

कोई   चन्द्रगुप्त   गढ़ने  की  साध   अधूरी है


इसके लिए सकारात्मक परिणामों की आशा करते हुए नित्य प्रयास करते हैं


हमारे भारतवर्ष की अनेक विशेषताएं है यहां की शिक्षा पद्धति तो ऐसी रही है कि हम विश्व गुरु ही हो गए, यह शिक्षा पद्धति हमें भावनात्मक रूप से शिक्षित करने वाली रही है इसने विद्या और अविद्या दोनों को महत्त्व दिया है 

यह सिद्ध करती है कि हम अविनाशी हैं

कठोपनिषद् में धर्मराज यमराज द्वारा नचिकेता को यही शिक्षा दी जाती है कि यह शरीर और भौतिक संसार अस्थिर हैं, किन्तु आत्मा अविनाशी, अनश्वर और परमात्मा से संयुत है। यही हमारी वास्तविक पहचान है।

नायमात्मा प्रदीर्णेन लभ्यः। न मे धुना प्रवचनेन लभ्यः। यमः शाश्वतम्।

किन्तु 

हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा

अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा


पछुआ के इस कदर तपे झोंके अमराई में 

कि झुलस झरे सब पात पात बगिया की खाई में 

और हमारे ऊपर ऐसा आवरण चढ़ा कि धनार्जन में हम अपना सारा जीवन जुझा देते हैं 

 चाणक्यत्व की अनुभूति करने वाले आचार्य जी का प्रयास है कि हम इससे इतर सोचें परमार्थ की भावना को बलवती करते हुए देश और समाज के हित के कार्य करें 

शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को जानते हुए दुष्टों से सजग रहें और इसके लिए संगठित रहें हमारी भावनाएं आनन्दित रहें इसके लिए हम आत्मस्थ हों क्योंकि परमात्मा हमारे भीतर अवस्थित है अध्ययन स्वाध्याय लेखन प्राणायाम आदि पर ध्यान दें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशुतोष जी का नाम क्यों लिया १६/१७ लोग कहां आने के लिए तैयार हैं जानने के लिए सुनें

3.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 3 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 3 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१३ वां* सार -संक्षेप


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।

एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ll 


इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए हमारे लिए इस प्रकार का ही विधान है, इससे अलग किसी और प्रकार का नहीं है, इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा  से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता।

यह हमारा ऋषि कहता है और यही ऋषित्व हमारे भीतर प्रविष्ट है किन्तु हम उसका अनुभव नहीं कर रहे हैं 

इसी ऋषित्व की अनुभूति के लिए, भक्ति में शक्ति है  परमात्मा  जिसके नियन्त्रण में हम चल रहे हैं अलौकिक है इस पर दृढ़ विश्वास करने के लिए, स्थूल की पूजा में ही अपने को व्यस्त होने से बचाने के लिए,अपने शरीर को सूक्ष्मता से संयुत करने के अभ्यासी बनने के लिए, व्यावहारिक प्रेम आत्मीयता तप त्याग संयम समर्पण विश्वास का विस्तार करने के लिए, अपने में ही संकुचित होने से बचने के लिए, इस सिद्धान्त पर विश्वास करने के लिए कि बीज कभी मरता नहीं है, आशंका भय भ्रम ईर्ष्या बेचारगी दूर करने के लिए, आत्मविश्वास का विस्तार करने के लिए अपनों पर विश्वास करने के लिए, दुष्टों से सजग रहने के लिए आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं

हम ऊहापोह से मुक्त होकर आत्मानन्द की अनुभूति करें चिन्तन मनन ध्यान प्राणायाम आदि करें 

जो कार्य करें उसे ही पूजा मानें 

एक छंद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इसकी गहराई में जाएं 


ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः


आचार्य जी ने शोभन सरकार का उल्लेख क्यों किया भैया विजय गर्ग जी के विषय में क्या बताया कल की बैठक की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

2.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 2 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३१२वां* सार -संक्षेप

 यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते।येन जातानि जीवन्ति।

यत् प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। तद्विजिज्ञासस्व। तद्‌ ब्रह्मेति।स तपोऽतप्यत। स तपस्तप्त्वा॥


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 2 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३१२वां* सार -संक्षेप


हमारे ऋषियों का चिन्तन अद्भुत है उसी चिन्तन का आधार लेकर आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं ताकि हम मनुष्य के रूप में जन्म लेने के वैशिष्ट्य को,सौभाग्य को जान सकें, अहं ब्रह्मास्मि की अनुभूति कर सकें,अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को जान सकें अपने भीतर कर्म -चैतन्य का भाव जगा सकें, हम अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन की ओर उन्मुख हो सकें हम अपने को असहाय असमर्थ अक्षम अशक्त बनाने वाली पीड़ाकारक बेचारगी से बचा सकें 

सदाचारमय जीवन हमें आनन्दित करता है अन्यथा संसार के बोझ से  हम बोझिल ही रहें  गार्हस्थ्य जीवन के संकटों से संतप्त रहें अध्यात्म के मार्ग पर चलने पर पराकाष्ठा पर पहुंचे चिन्तन से हम स्थूल तत्त्व को विस्मृत कर सूक्ष्म में विचरण करने लगते हैं ज्ञान की अनुभूति करने लगते हैं भोगों में लिप्त करने वाले दैत्य भाव को विस्मृत करने लगते हैं 

आचार्य जी यह भी परामर्श देते हैं कि मात्र हम चिन्तन में न बैठे रहें हम कर्तव्य का पालन करें समाज और राष्ट्र के लिए कार्य करें संगठित रहें शक्ति सामर्थ्य पराक्रम की अनुभूति करें


आचार्य जी ने ब्रह्म शब्द की विस्तृत व्याख्या करते हुए 

सर्वं खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति शान्त उपासित। अथ खलु क्रतुमयः पुरुषो यथाक्रतुस्मिल्लोके पुरुषो भवति तथेतः प्रेत भवति स क्रतुं कुर्वीत॥

में आये तज्जलान् शब्द की व्याख्या की 

तज्जलान् ऋषियों द्वारा वास्तविकता या ब्रह्म का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त की गई कुछ रहस्यमय विधियों में से एक है । यह सृष्टि आदि के संदर्भ में वास्तविकता की समस्या के लिए एक ब्रह्माण्ड संबंधी दृष्टिकोण है। यह शब्द ब्रह्म के तीन मूल गुणों का सकारात्मक रूप से वर्णन करता है


आचार्य जी ने यह भी बताया कि ब्रह्म जब संसारी भाव में आता है तो  परमात्मा हो जाता है

और उसका सूक्ष्म अंश हम आत्मा हो जाते हैं

इसके अतिरिक्त humpty dumpty के साथ क्या  पढ़ाया जाना चाहिए स्वामी परमानन्द का उल्लेख क्यों हुआ घूस और बच्चों में क्या सम्बन्ध है भूमा क्या है जानने के लिए सुनें

1.3.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 1 मार्च 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३११वां* सार -संक्षेप

 *मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है*

*तिल तिल जलकर प्रकाश देते रहना ही इसका लक्षण है*


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 1 मार्च 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३११वां* सार -संक्षेप


हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है हम चाहते हैं कि राष्ट्र का संवर्धन हो इसी कारण हमने अपना लक्ष्य बनाया है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः


एक राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में परमार्थ हित में सदैव रत आचार्य जी नित्य हित का हमें उपदेश देते हैं  ताकि हम अपने षड् दोष दूर कर सकें 


षड् दोषा: पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता। निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं दीर्घसूत्रता॥

हम सिद्धान्त और आदर्श पर विश्वास करें 

यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि 

हम मनुष्य हैं हमें समझना चाहिए कि मानव जीवन सृजन कर्म की एक उत्कृष्ट परिभाषा है 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि मां सरस्वती को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए हमें अपना विद्यालय भी नहीं भूलना चाहिए जहां हमने अध्ययन किया है हमारे अन्दर उसके प्रति श्रद्धा का भाव होना चाहिए हमें वहां के विकारों को न ध्यान देकर अच्छाइयों को देखना चाहिए हमें अपने मनुष्यत्व से डिगना नहीं चाहिए

अच्छाई और बुराई का संघर्ष चलता रहेगा किन्तु हमें सन्मार्ग पर ही चलना है 

हमें समाज को सशक्त बनाना है समाज यदि अशक्त है तो हमारा पौरुष पराक्रम कलंकित रहेगा 

इसके अतिरिक्त भैया ओम प्रकाश मोटवानी जी की पोस्ट की क्यों चर्चा हुई गुरुघंटाल किसे कहते हैं बिठूर वाले श्री मुन्नालाल जी का उल्लेख क्यों हुआ 

दारासिंह के कौन से गुरु बालू के लड्डू खा लेते थे जानने के लिए सुनें