31.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 31 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४०२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 31 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४०२ वां सार -संक्षेप

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि  हम अपने भीतर उठने वाले भावों, संवेदनाओं और विचारों को अधिक गहराई से अनुभव करें सतही प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठकर आत्मशोध और आत्म-बोध की ओर अग्रसर हों।

 यह भाव-जगत् जितना गहन होगा, उतना ही हमारा चिंतन, व्यवहार और जीवन दृष्टिकोण समृद्ध व व्यापक होगा।  यही गहराई हमें आध्यात्मिक रूप से भी उन्नत करती है और जीवन को सार्थक दिशा देती है यह एक आत्मविकास का संकेत है  बाहरी संसार को परिवर्तित करने से पहले भीतर के भाव-जगत् को समृद्ध करने का यह आह्वान है हमारा शरीर एक साधना भूमि है  यह संपूर्ण साधनों का आधार है 

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा,

 पाइ न जेहिं परलोक संवारा


कर्म का भोग भोग का कर्म, यही जड़ का चेतन आनन्द (जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध काव्यकृति कामायनी की पंक्तियाँ )

ये पंक्तियां हमें सिखाती हैं कि हमें अपने कर्मों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और उनके परिणामों को स्वीकारना चाहिए।


साधना भूमि के रूप में वर्णित इस शरीर को उर्वर बनाने का हमें प्रयास करना चाहिए 

कर्म करने के लिए शरीर की शुद्धि, सक्रियता भी अपरिहार्य है हमारे लिए विकारों को दूर करना अनिवार्य है इसके लिए प्रातः काल का जागरण आवश्यक है खान पान शुद्ध  सात्विक रखने की जरूरत है

संगति विकृत न हो इसका ध्यान रखें

अनेक ऐसे होते हैं जो शरीर के महत्त्व को नहीं समझते

वे मानव-बम तक बन जाते हैं उन्हें मानवों को नष्ट करना अच्छा लगता है ऐसे दुष्ट आज भी हैं और पहले भी थे

ऐसे अधर्मों के प्रतीकों को नष्ट करने के लिए अवतार प्रकट होते हैं जैसे भगवान् राम दुष्टों के नाश के लिए अवतरित हुए 

 "सुखी भए सुर, संत, भूमिसुर, खलगन-मन मलिनाई" यह पद का अंश गोस्वामी तुलसीदास कृत गीतावली के बालकाण्ड से संबंधित है जो श्रीराम के जन्म के समय के आनंद और उल्लास का वर्णन करता है।


 श्रीराम के जन्म से देवता (सुर), संत और ब्राह्मण सभी आनंदित हो गए।

और दुष्टों के मन मलिन (दुःखी) हो गए, क्योंकि धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश सुनिश्चित हो गया।

 श्रीराम के अवतरण के समय के वातावरण को अद्भुत ढंग से यहां चित्रित किया गया है जहाँ संपूर्ण सृष्टि में आनंद व्याप्त है तो अधर्म के प्रतीकों में भय और चिंता उत्पन्न हो रही है।



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपने स्वास्थ्य के विषय में क्या बताया भैया पंकज जी ने अयोध्या के विषय में क्या बताया  आसावरी क्या है जानने के लिए सुनें

30.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 30 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४०१ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 30 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४०१ वां सार -संक्षेप

भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥

सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥


किन्तु जब नाम-जप में श्रद्धा संयुत हो जाती है, तब वह केवल उच्चारण नहीं रहता वह रूप ले लेता है। यह रूप अंतरात्मा में स्पंदन करने लगता है,साधक के भीतर गहन परिवर्तन लाता है  यह श्रद्धा मनुष्य के अन्दर आत्मविश्वास की शक्ति उत्पन्न करती है अर्थात् श्रद्धा युक्त नाम-स्मरण ही सच्चा जप है।


अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।


नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।4.40।।

विवेकहीन और श्रद्धारहित संशयात्मा मनुष्य का पतन निश्चित है। ऐसे संशयात्मा मनुष्य के लिए न ही यह लोक  है न ही परलोक है और  सुख भी नहीं है।



उल्टा नाम जपत जग जाना। वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।।


हमारे उच्चारण यदि ठीक नहीं  हो रहे हों और इष्टदेव के ध्यान में भी विक्षेप आ रहे हों तो भी श्रद्धा के कारण ये सारे दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।


ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।

श्रद्धा और विश्वास अद्भुत हैं  सावित्री के समान पवित्र श्रद्धा देवी संपूर्ण विश्व को पवित्र करने वाली धर्म की पुत्री है

 आत्मविश्वास से भरे हम भारत -भक्त भी भारत देश के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं

 भगत सिंह चन्द्रशेखर खुदीराम आदि वीरों की लम्बी शृङ्खला है जिन्होंने मातृभूमि पर अपने शीश चढ़ा दिए क्यों कि इनके मन में देश के प्रति अपार श्रद्धा थी 

इसके अतिरिक्त आज  भैया पंकज जी कहां के लिए चल पड़े हैं कामायनी में श्रद्धा क्या है हल्दीघाटी का उल्लेख क्यों हुआ हम साधना के प्रतिफल कैसे हैं शेंडे आचार्य जी ने शेर का नाम लेकर किसे डराया था जानने के लिए सुनें

29.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण १४०० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 29 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १४०० वां सार -संक्षेप


यह संसार जो केवल नाम (वर्णन) और रूप (आकार) से बना है, वास्तव में माया का उत्पाद है। यह परिवर्तित होता रहता है, नश्वर है,इसी में हम प्रायः अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं।

 हम केवल शरीर, नाम, रूप या विचार नहीं हैं, बल्कि चैतन्य स्वरूप आत्मा हैं  जो शुद्ध, निराकार, अविनाशी और साक्षीभाव में स्थित है।

जब हम स्वयं को नाम-रूप से परे जान लेते हैं, तभी मोक्ष, शांति और अखंड आनंद की प्राप्ति होती है


आत्मा के साक्षात्कार से ही वास्तविक शांति व पूर्णता प्राप्त होती है। यही आत्म, विस्तार पाकर परमात्म हो जाता है आत्मा सीमित होने पर 'जीव' कहलाती है, और वही आत्मा जब अपने अज्ञान को पार कर ब्रह्म के साथ एकता स्थापित कर लेता है, तो वही परमात्म बन जाता है। यही है:


अहं ब्रह्मास्मि

सोऽहम्

कहने का तात्पर्य है कि 

संसार में रहकर संसार से असंपृक्त रहना कठिन काम है किन्तु हम यदि यह अनुभव करें कि नाम रूपात्मक जगत के अतिरिक्त भी हम कुछ हैं तो यह श्रेयस्कर है हमें अपने आत्म को पहचानने की आवश्यकता है यही आत्म विस्तार पाकर परमात्म हो जाता है

परमात्मा अत्यन्त रहस्यमय है जो परमात्मा के गूढ़ रहस्य को जानना चाहते हैं, वे (जिज्ञासु)  नाम को जीभ से जपकर उसे जान लेते हैं। लौकिक सिद्धियों के चाहनेवाले अर्थार्थी साधक लौ लगाकर नाम का जप करते हैं और अणिमा आदि  सिद्धियों को पाकर सिद्ध हो जाते हैं।


जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ॥

साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ॥

यह चौपाई बाल कांड से है इसका प्रारम्भ अत्यन्त तत्त्वमय है तुलसीदास जी के मन में निश्चित रूप से उस समय की परिस्थितियां कौंध रही होंगी

उस काल में शैव और वैष्णव संप्रदायों के बीच वैचारिक मतभेद और टकराव व्याप्त थे। तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में भगवान राम के द्वारा शिवलिंग की स्थापना (रामेश्वरम में) का वर्णन कर शैव और वैष्णव परंपराओं में समरसता स्थापित करने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने संस्कृत के स्थान पर अवधी भाषा में ग्रंथ की रचना कर आम जनता को धार्मिक ग्रंथों से जोड़ने का कार्य किया। इससे उन्हें तत्कालीन संस्कृत विद्वानों की आलोचना का सामना भी करना पड़ा, जिन्होंने इसे धार्मिक परंपरा के विरुद्ध माना। उस समय  दुष्ट मुगल सम्राट अकबर का शासन था रामचरितमानस ने न केवल धार्मिक भावना को प्रबल किया, बल्कि यह सामाजिक सुधार और जनजागरण का भी माध्यम बना। इस ग्रंथ ने रामलीला जैसी परंपराओं को जन्म दिया, जिससे समाज में नैतिक मूल्यों, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक एकता की भावना का संचार हुआ।

बाल कांड का प्रारम्भ  मां सरस्वती और भगवान् गणेश की वन्दना से है

इसी में आगे आता है 


समुझत सरिस नाम अरु नामी। प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी॥

नाम रूप दुइ ईस उपाधी। अकथ अनादि सुसामुझि साधी॥

समझने में नाम और नामी दोनों एक-से हैं, किंतु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है अर्थात् नाम और नामी में पूर्ण एकता होने पर भी जैसे स्वामी के पीछे सेवक चलता है, उसी प्रकार नाम के पीछे नामी चलते हैं। प्रभु राम अपने 'राम' नाम का ही अनुगमन करते हैं (नाम लेते ही वहाँ आ जाते हैं)। नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं; ये भगवान के नाम और रूप दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं और पावन बुद्धि से ही इनका स्वरूप जानने में आता है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया विनय अजमानी जी का नाम क्यों लिया दग्धाक्षर, संचित अध्ययन क्या है जानने के लिए सुनें

28.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 मई 2025 की कर्म-साधना १३९९ वां सार -संक्षेप

 अबिगत गति कछु कहति न आवै।

ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥

परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।

मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥

आत्म जब परमात्म से संयुत होता है तो उस अनुभूति की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 28 मई 2025 की कर्म-साधना

  १३९९ वां सार -संक्षेप


प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-प्रकाशन की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है  जो उसे आत्मज्ञान, आत्मबोध और आत्मविकास की ओर प्रेरित करती है।

यह वृत्ति हमें अपने वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाती है, जिससे हम अपने जीवन के उद्देश्य को समझ पाते हैं।

आत्म-प्रकाशन की यह वृत्ति हमें सत्य, शिव और सुंदर की ओर अग्रसर करती है, जो भारतीय दर्शन का मूल है।

 किन्तु आत्मा की पूर्णता के लिए तपस्या और जीवन के आकर्षणों दोनों का समावेश आवश्यक है। केवल आत्मसंयम से आत्मा का विकास अधूरा रह जाता है; इसके लिए जीवन के विविध अनुभवों और भावनाओं का अनुभव भी आवश्यक है।

यदि कोई व्यक्ति केवल तपस्या में लीन होकर जीवन के अन्य पहलुओं से विमुख हो जाता है, तो उसकी आत्मा का विकास अधूरा रह जाता है।

तभी कवि कहता है

तपस्वी आकर्षण से हीन कर सके नहीं आत्म-विस्तार  यह जयशंकर प्रसाद की एक प्रसिद्ध पंक्ति है, जो उनकी रचना "कामायनी" में श्रद्धा के माध्यम से कही गई है

आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः

हम स्वयं को महत्व देने के साथ सभी जीवों को भी महत्व दें।

इसके साथ आचार्य जी ने लेखन -योग को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बताया हमारे मन में जो भाव आएं उन्हें हम अवश्य लिख लें 

ऐसा लेखन, जो संवेदनाओं से भरा अनुपम धन है, हमें बहुत सहारा देता है 

लेखन जो एक प्रकार का साधना तप है हमारे सुप्त हुए अस्तित्व को जाग्रत करने की क्षमता रखता है यह हर प्रकार के अंधकार को दूर करने में समर्थ है


लेखन केवल विचारों की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरकर सत्य की खोज और आत्म-परिष्कार की प्रक्रिया है।

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित के रूप में अपनी भूमिका को जानते हुए कर्मरत हों भावी पीढ़ी में व्याप्त भय और भ्रम का निवारण करें स्वयं सन्मार्ग पर चलते हुए उसे सन्मार्ग पर लगाएं

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई 


कहां किसके लिए कब कौन रोता कौन हंसता है 

छुड़ाने आ रहा था जो वही आ आ फंसता है...

अमिताभ बच्चन जो १७ अप्रैल २००८ से लगातार अपना blog लिख रहे हैं की चर्चा क्यों हुई, आचार्य जी ने ६२-६३ वर्ष पूर्व की अपनी किस फोटो की चर्चा की

भैया आशीष जोग जी भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

27.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण *१३९८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 27 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१३९८ वां* सार -संक्षेप

हमारे पूज्य आचार्य जी, जिनकी वाणी में अद्भुत प्रभावशीलता, प्रेरणादायक शक्ति और कल्याणकारी भावनाएँ समाहित हैं, प्रतिदिन अपना बहुमूल्य समय देकर हम मानस पुत्रों को,जिन्हें आचार्य जी भारत के भविष्य के रूप में देखते हैं, उत्साहित और जाग्रत करने का सतत प्रयास कर रहे हैं। उनकी वाग्धारा इतनी मंत्रमुग्धकारी है कि श्रोता सहज ही उनके शब्दों में डूब जाते हैं। यह हमारा परम सौभाग्य है कि हमें ऐसे महान् गुरु का सान्निध्य प्राप्त है, जो न केवल परोपकारी भाव से हमारे जीवन को दिशा दे रहे हैं, बल्कि हमें आत्मिक और नैतिक रूप से भी समृद्ध कर रहे हैं। हम भाव-भक्तों का भय और भ्रम दूर कर रहे हैं l

तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में सदाचारमय विचार ग्रहण करने के लिए


भारत जो ऋषियों मुनियों की तपोभूमि  है और जहां से वेद, उपनिषद, योग, ध्यान, धर्म, कर्म, मोक्ष जैसे गूढ़ तत्त्व प्रकट हुए और जिसका अस्तित्व केवल राजनीतिक सीमाओं में नहीं, बल्कि चेतना के एक विराट् रूप में है तात्विक दृष्टि से परमात्मा की अव्यय मूर्ति है

इसलिए भारत की भावना को केवल भूमि से नहीं, अपितु सनातन ज्ञान, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना के रूप में अनुभव करना चाहिए। यह भाव स्वयं में एक उपासना है।

हमारे यहां सेवा को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है 

सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्य: 

वैष्णव, शैव, शाक्त, नास्तिक सभी सेवा को महत्त्व देते हैं सेवा साधना है जो अपनों के लिए समर्पित भाव से कार्य किए जाएं या भाव व्यक्त किए जाएं वह सारी सेवा है जैसे राष्ट्र-सेवा

वाराही तंत्र के अनुसार जिसमें सृष्टि, प्रलय, देवार्चन, संपूर्ण कार्यों की साधना, पुरश्चरण, षट्कर्म तथा ध्यानयोग का वर्णन हो, उसे आगम कहते हैं।


प्रत्येक आगम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें 'पाद' कहते हैं - क्रियापाद, चर्यापाद, योगपाद और ज्ञानपाद । क्रियापाद में देवालय की स्थापना,मार्ग-निर्मण, पौशाला-निर्माण, मूर्ति-निर्माण  का प्रतिपादन हुआ है।इसे पूर्त कर्म भी कहते हैं, चर्यापाद में मूर्ति की पूजा, उत्सव, भण्डारा आदि विषयों का निरुपण हुआ है। योगपाद में अष्टांगयोग साधना का तथा ज्ञानपाद में दार्शनिक विषय वर्णित हैं।

पुष्टिमार्गीय सेवा

समर्पण की सेवा है 

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा 

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि अधूरी सेवा क्या है 


इसके अतिरिक्त निबन्ध का समापन क्या है आज सरौंहां में  कैसा भण्डारा हो रहा है भैया पंकज जी की चर्चा क्यों हुई

महाजन कौन हैं जानने के लिए सुनें

26.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण *१३९७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 26 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१३९७ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम जो उनके मानस पुत्र हैं और जो प्रेम आत्मीयता के महत्त्व को भलीभांति जानते हैं भारतीय जीवन पद्धति की महत्ता को समझकर उसे अपनाएं जिसे हमने भ्रमवश त्याग दिया था  

हम संयमित जीवन जीने का प्रयास करें

 चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों प्राणायाम, ध्यान,योग, सत्संग करें खानपान सही रखें जल्दी जागें

ताकि हमारा शरीर ठीक रहे जिससे हमारी जीवनपद्धति को एक सकारात्मक दिशा मिले, हम यह अनुभूति करें कि हम ईश्वर के अंश हैं, संचित शक्ति की अभिव्यक्ति करें

ये प्रयत्न ही सदाचार

की महत्ता दर्शाते हैं 


उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी-

दैवं प्रधानमिति कापुरुषा वदन्ति |

दैवं विहाय कुरु पौरुषमात्सक्तया

यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोSत्र दोषः |


एक सदाचारी व्यक्ति न केवल अपने आचरण में श्रेष्ठ होता है, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की क्षमता भी रखता है।

सदाचारी व्यक्ति  संकल्पवान् सामर्थ्यवान् होता है वह शक्ति का प्रदर्शन भी करता है

ऐसे व्यक्ति की *संकल्प शक्ति* दृढ़ होती है, जो उसे कठिन परिस्थितियों में भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होने देती


बुद्धियुक्त शक्ति का प्रयोग आत्मभक्ति युक्त 

जन जन सबल समर्थ देशभक्त हो, 

रक्त हो न शीतल विरक्त कोइ भक्त हो  न

बाल युवा प्रौढ़ वृद्ध सबल सशक्त हो ,

व्यक्त  हर एक भाव देश की समृद्घि हेतु 

युवक युवति श्रेष्ठ कर्म में प्रवृत्त हो, 

भारत प्रचंड तेजवन्त शौर्यमंत्र-पूत 

वसुधा समग्र शान्ति संयम का वृत्त हो।



इसके अतिरिक्त चार दिन के तमाशे से आचार्य जी का क्या तात्पर्य है भैया राजीव मिर्जा जी, भैया पुनीत जी, आचार्य मनोज जी का उल्लेख क्यों हुआ २००८ बैच के किस भैया की चर्चा हुई जानने के लिए सुनें

25.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण *१३९६ वां* सार -संक्षेप

 कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम।

तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम॥

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 25 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१३९६ वां* सार -संक्षेप

अद्भुत है भा में रत हमारे देश की गुरु शिष्य परम्परा 

ये सदाचार संप्रेषण भी इसी परम्परा के अन्तर्गत हैं

एक गुरु की इच्छा रहती है कि उसका शिष्य अपने गुरु को सत्कर्मों में पराजित करे, अर्थात् वह गुरु से भी अधिक श्रेष्ठ कार्य करे और इस प्रकार गुरु की शिक्षा को सार्थक कर दे

आचार्य जी जिन्होंने सदैव शिक्षकत्व की अनुभूति की है  की भी यही इच्छा रहती है कि हम शिष्य, जिन्हें आचार्य जी भारत के भविष्य के रूप में देखते हैं, भी अध्ययन स्वाध्याय लेखन साधना या अन्य किसी सैद्धान्तिक जीवन जीने की विधि में  उन्हें पार कर जाएं

हम आज से ही यह प्रयास प्रारम्भ कर दें ताकि उन्हें यह न कहना पड़े 

सांझ उतर आयी मन की अभिलाष न पूरी है

कोई   चन्द्रगुप्त   गढ़ने  की  साध   अधूरी है



हम सदा ही कसौटी पर खरे उतरें हम सदैव मुस्कराते रहें बैराग को भी राग सुनाते रहें आत्मीय जनों को जाग्रत करते रहें प्रेम आत्मीयता का विस्तार करते रहें आचार्य जी नित्य यही प्रयास करते हैं

आचार्य जी कहते हैं

बाह्य आडंबर और दिखावे की तुलना में, आंतरिक साधना और सूक्ष्म प्रयास अधिक फलदायी हैं।

ये विचार गुरु-शिष्य परंपरा में पूर्ण सम्मान के साथ, श्रेष्ठता के आदर्श को दर्शाते हैं। अद्भुत हैं ऐसे भावनात्मक सूत्र भावनात्मक सूत्रों की युति हमारे देश की गुरु शिष्य परम्परा, पारिवारिक परम्परा का एक विलक्षण संस्कार है



मैंने तुमको ही विषय मानकर गीत लिखे

 मनमन्दिर की तुम ही उपासना मूरत थे 

साधना साध्य की तुम ही थे तब एकमेव 

सचमुच  ही अनुपम दिव्य समय की सूरत थे 

तुममें ही देखा मैंने भारत का भविष्य 

भारतमाता की सेवा के तुम उपादान

 शिक्षा पद्धतियों की विधि और व्यवस्था थे...

इसके अतिरिक्त अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं की ५२ वीं कविता कौन सी है बैच १९८१ के भैया दीपक जी और भैया नीरज जी की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की श्री आनन्द आचार्य जी,  स्व डा रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

24.5.25

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण १३९५ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 24 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१३९५ वां* सार -संक्षेप


जिसका भाव प्रभावी होने लगता है उसे स्वयं तो सुख मिलता है उसके परिजन परिवारीजन भी सुखानुभूति करते हैं 

भावात्मक संसार अत्यन्त अद्भुत है हमें ऐसा परिवेश मिला है कि हमारे अन्दर भारत राष्ट्र के प्रति  निष्ठा के भाव  हैं 

देश के लिए जिएं, समाज के लिए जिएं

ये धड़कने ये स्वास हो, पुण्यभूमि के लिए।


अपने जीवन का हर पल निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र के लिए समाज के लिए अर्पित करने वाले राष्ट्रभक्तों की एक लम्बी सूची है जैसे वीर सावरकर, छत्रपति शिवा जी, गुरु गोविन्द सिंह, महाराणा प्रताप

इन महापुरुषों की जीवन गाथाएँ हमें सिखाती हैं कि निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित जीवन ही सच्चे सुख और संतोष का मार्ग है। भय भ्रम से इतर

हमें भी अपने भाव सुस्पष्ट रखने हैं

हमें अपना आत्म विस्तार कैसे करना है यह सुस्पष्ट होना चाहिए


केवल तपस्या और इंद्रिय-निग्रह से आत्मविकास संभव नहीं है आत्मविस्तार के लिए जीवन के आकर्षणों, संबंधों और सेवा की भावना को भी अपनाना आवश्यक है।

 संसार में हमें कैसे रहना है हमारा क्या कर्तव्य है  यह हमें अच्छी तरह पता होना चाहिए जैसे भगवान् राम ने अपना कर्तव्य निभाया

(निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।)


कागर-कीर ज्यौं भूषन-चीर सरीर लस्यौ तजि नीर ज्यौं काई।

मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभाय सनेह सगाई॥


संग सुभामिनि भाई भलो, दिन द्वै जनु औध हुतै पहुनाई।

राजिव लोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाई॥

ऐसे जीवनों की परम्परा हमसे संयुत है हम इसका आनन्द प्राप्त करें 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जयशंकर प्रसाद का उल्लेख क्यों किया पद्मपुराण की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

23.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण *१३९४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 23 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१३९४ वां* सार -संक्षेप


हमारा सनातन जीवनदर्शन अद्भुत है, इसकी भावनाएं अत्यन्त पवित्र हैं , वह विश्व को अपना परिवार कहता है संगठन में विश्वास रखता है विघटन से दूरी बनाता है

 वह सदैव चाहता रहा है कि संपूर्ण विश्व का कल्याण हो, भय भ्रम की निशा का अवसान हो, यज्ञीय सुरभि से वातावरण महके


काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य  आत्मदाह का कारण बनते हैं  

जब जीवन से विवेक हट जाता है और प्रमाद आता है, तब दुःख  का आरंभ होता है। जीवन का दूसरा पहलू भी है

 सृजनशीलता और चिन्तनमय जीवन  सुख का कारण है  

कथा, कविता, कला, कौतुक  आदि सृजन और सौंदर्य के प्रतीक हैं।  

चिन्तन, मनन,ध्यान, विधान जीवन को अर्थ और सौंदर्य प्रदान करते हैं। यही चिन्तन मनन हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराता है

हमें विश्वासी बनाता है कि संसार रूपी समर के हम विजयी योद्धा थे हैं और रहेंगे हम हिन्दुओं का स्वाभिमान जगाता है

कथा कविता कला कौतुक यही संसार का सुख है

कि चिन्तन मनन ध्यान विधान ही संसार का मुख है

इसी चिन्तन मनन में शौर्य विजय - व्रत दमकता है

प्रमादी षड्विकारी भाव ही संसार का दुख है ll


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित दूसरी कविता कौन सी सुनाई, वीराङ्गना पन्ना धाय का उल्लेख क्यों हुआ, लुर्की क्या है भैया दीपक जी भैया पंकज जी का उल्लेख किस संदर्भ में हुआ जानने के लिए सुनें

22.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 मई 2025 का मार्गदर्शन १३९३ वां सार -संक्षेप

 योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।


सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 22 मई 2025 का मार्गदर्शन

  १३९३ वां सार -संक्षेप


सारा संसार प्रकृति से उत्पन्न होता है, जो त्रिगुणात्मक  है। प्रकृति जड़ (अचेतन) होती है, जबकि पुरुष चेतन, निराकार और स्वतंत्र है। जब पुरुष प्रकृति के साथ संयोग करता है, तब संसार का अनुभव होता है।

जीव प्रकृति के नियमों के अधीन होता है। उसकी क्रियाएं स्वाभाविक और अनैच्छिक होती हैं जब कि मनुष्य चेतन, विवेकशील और आत्मज्ञानी होता है। वह अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी होता है और स्वनियंत्रण की क्षमता रखता है।

 मनुष्य, यदि आत्मज्ञान प्राप्त करे, तो वह प्रकृति के बंधनों से मुक्त होकर स्वनियंत्रित हो सकता है। यह मुक्ति ही जीवन का परम उद्देश्य है। कहने का तात्पर्य है परमात्मा ने मनुष्य को कुछ अर्थों में स्वतन्त्र छोड़ा जिसने इस स्वातन्त्र्य का सदुपयोग कर लिया वह सत्पुरुष बन गया और जिसने इसका दुरुपयोग किया वह निन्दा का पात्र हो गया

विकारों में रुचि और सदाचार में अनिच्छा अपने पुरुषत्व का विस्मरण है हमारे हित के लिए सत्पुरुषों के गुणों को  हमारे  हितैषी पूर्वपुरुषों ने संगृहीत कर  दिया जिससे हमारी प्रशंसा हो तो वह हितकर है हमें सुख मिल रहा है आनन्द की अनुभूति हो रही है तो वह हमारे लिए हितकर है प्रातः काल जल्दी जागना एक सद्गुण है इसे अपनाएं

हम विकारों को दूर करें विचारों को ग्रहण करें जो अच्छा विचार आए उसे लिख लें ऐसे विचारों का व्यवस्थित संग्रह करें 


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज सिंह जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें

21.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण १३९२ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 21 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १३९२ वां सार -संक्षेप

 आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हमारे अन्दर भरपूर मात्रा में विद्वत्ता आए हम शक्ति संपन्न बनें राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित बनें

को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा शिष्यस्तु को यो गुरु भक्त एव ।

शिक्षा, ज्ञान, तत्त्व आदि अनेक क्षेत्रों में यह संसार गुरुशिष्यमय है जब गुरु शिष्य एकाकार हो जाते हैं तो अपार शक्ति का प्रादुर्भाव होता है ऐसे ही एक गुरुशिष्य का उदाहरण है श्रीरामानुजाचार्य और कूरेश स्वामी का


श्रीवत्सांक मिश्र, जिन्हें कूरेश स्वामी या कूरेशाचार्य (तमिल में कूर्त्त आल्वान्) के नाम से भी जाना जाता है, श्रीरामानुजाचार्य के परम शिष्य अनन्य सेवक सहकर्मी और श्रीवैष्णव परंपरा के एक महान् आचार्य थे। उनका जीवन त्याग, भक्ति और गुरु-सेवा का अद्वितीय उदाहरण है। ये व्याकरण साहित्य और दर्शन के पूर्ण ज्ञाता थे

श्रीरामानुजाचार्य ने वेदांत सूत्रों पर एक प्रामाणिक वैष्णव भाष्य लिखने का संकल्प लिया था, जिसे श्रीभाष्य के नाम से जाना जाता है। इसके लिए उन्होंने बोधायन वृत्ति का अध्ययन करना आवश्यक समझा, जो उस समय केवल कश्मीर के शारदा पीठ के राजकीय पुस्तकालय में उपलब्ध थी।

रामानुजाचार्य और कूरेश स्वामी ने कश्मीर की कठिन यात्रा की और वहां के राजा से संपर्क किया। राजा ने उन्हें पुस्तकालय में प्रवेश की अनुमति दी, लेकिन स्थानीय पंडितों ने कई प्रतिबंध लगाए:


- पुस्तक को बाहर ले जाने की अनुमति नहीं थी।

- पुस्तक का कोई भी अंश लिखने या नोट्स लेने की अनुमति नहीं थी।


इन कठिनाइयों से बिना विचलित हुए कूरेश स्वामी ने अपनी अद्वितीय स्मरण शक्ति का उपयोग करते हुए पूरी बोधायन वृत्ति को कंठस्थ कर लिया। कश्मीर से लौटने के बाद, उन्होंने इस स्मृति के आधार पर श्रीरामानुजाचार्य को श्रीभाष्य की रचना में सहायता प्रदान की। इस प्रकार, कूरेश स्वामी का योगदान श्रीभाष्य की रचना में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अखिल जी श्री आनन्द आचार्य जी,भैया पंकज श्रीवास्तव जी, भैया मनीष कृष्णा जी की माता जी, भैया पुनीत जी, भैया मलय जी की चर्चा क्यों की, कल्हण का उल्लेख क्यों हुआ सितम्बर में होने वाले अधिवेशन के विषय में आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें

20.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण १३९१ वां सार -संक्षेप

 कविता शीतल छांव है प्रखर सूर्य का तेज 

कवि के आगे सर्वदा राजदंड निस्तेज


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 20 मई 2025 का सदाचार संप्रेषण

  १३९१ वां सार -संक्षेप


आचार्य जी जो हम मानस पुत्रों का उत्कर्ष देखकर प्रसन्न होते हैं और इसके लिए तुलसीदास जी का एक प्रसिद्ध छंद है



जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥

सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7॥

हे भाई! जगत् में तालाबों और नदियों के समान मनुष्य ही अधिक हैं, जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं (अर्थात्‌ अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होते हैं)। समुद्र सा तो कोई एक बिरला ही सज्जन होता है, जो चन्द्रमा को पूर्ण देखकर (दूसरों का उत्कर्ष देखकर) उमड़ पड़ता हैll






 प्रायः हमें परामर्श देते हैं कि हम लेखन करें लेखन एक योग है

इससे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है

हम प्रतिदिन डायरी लिख सकते हैं

 लेखन को केवल प्रकाशन या प्रशंसा की दृष्टि से नहीं, अपितु आत्मिक उन्नति और साधना के रूप में अपनाना चाहिए। यह दृष्टिकोण लेखन को एक गहन और अर्थपूर्ण प्रक्रिया बनाता है। 

लेखन की अनेक विधाएँ हैं जिनके माध्यम से लेखक अपने विचार, अनुभव, कल्पनाएँ या ज्ञान प्रकट करता है। जैसे एक विधा है कविता - रचना अर्थात् छंद, लय और भावों के माध्यम से कलात्मक अभिव्यक्ति



कविता आती है स्वयं भावों में चुपचाप 

छंद बन्द अवतारणा होती अपने आप


कविता कवि कौशल नहीं यह मां का वरदान 

दुनिया से संभव कहां शब्द वर्ण संधान


कविता दुर्लभ कल्पतरु वरदायक विश्वास 

प्राणों को पुलकित करे महकाए प्रश्वास




वैसे तो प्रारम्भ ही काव्यमय है वेदिक वाणी छंदबद्ध है छंद वेदपुरुष के चरण हैं


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी वार्षिक अधिवेशन की चर्चा की जो बुन्देलखंड में ओरछा में होने जा रहा है ओरछा से राजा छत्रसाल का विशेष सम्बन्ध है

 छत्रसाल ने बुंदेलखंड में स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के साथ-साथ सांस्कृतिक और धार्मिक विकास को भी प्रोत्साहित किया। वे महामति प्राणनाथ जी के शिष्य थे और उनके मार्गदर्शन में उन्होंने पन्ना में हीरे की खानों का विकास किया, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।


राजा छत्रसाल और ओरछा के बीच का संबंध बुंदेलखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह संबंध न केवल राजनीतिक और सैन्य सहयोग का उदाहरण है, बल्कि यह दर्शाता है कि व्यक्तिगत वैर को भुलाकर धर्म, संस्कृति और क्षेत्र की रक्षा के लिए एकजुट होना कितना आवश्यक है।ऐसी एकजुटता हम युग भारती सदस्यों को दिखानी है और कार्यक्रम को सफल बनाना है

आचार्य जी आज कहां जा रहे हैं श्याम नारायण पांडेय जी, वीर कुंवर सिंह जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

19.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 मई 2025 का मंगल विधान १३९० वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 19 मई 2025 का  मंगल विधान 

  १३९० वां सार -संक्षेप


हमारा सनातन धर्म जिसके मूल चिन्तन में संसार की रचना पुरुष और प्रकृति के मिलन से है, अद्वितीय है जिसमें अनेक विकल्प हैं 

और जिसके उद्देश्य में केवल साधनात्मक मोक्ष, आत्मिक उन्नति ही न होकर  परहित,संपूर्ण विश्व का कल्याण  भी समाहित है जितने भी अच्छे कार्य हैं उन्हें सनातन धर्म ऊपर रखता है 

जैसा निम्नांकित वाक्य से भी स्पष्ट है 


" आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च "  जिसका अर्थ है "अपने मोक्ष के लिए और जगत् के कल्याण के लिए।" यह वाक्यांश रामकृष्ण मिशन का आदर्श वाक्य  भी है

आचार्य जी ने अनेक मङ्गलकारी रचनाएं निर्मित की हैं ऐसी ही कुछ रचनाओं को डा पङ्कज श्रीवास्तव जी ने बहुत परिश्रम करके संकलित कर दो पुस्तकों उन्मुक्त मुक्तक  और साकल्य का आकार दिया इन दोनों ही पुस्तकों का कल विमोचन हुआ

साकल्य से ही एक कविता है


मैं रचनाकार अनोखा हूँ

मंगलविधान का उन्नायक

मैं सृष्टि सुधानिधि का गायक 

स्रष्टा का सर्वप्रमुख पायक 

मैं जीवमात्र का सुखदायक 

पर, जब तब लगता " धोखा" हूँ। 

                मैं रचनाकार अनोखा...

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राघवेन्द्र जी का नाम क्यों लिया भैया पीयूष वर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

18.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण १३८९ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 18 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १३८९ वां सार -संक्षेप


संसार में मनुष्य जैसे ही प्रवेश करता है माया उससे लिपट जाती है मायामय संसार में मायामुक्त होना सरल नहीं है

संसार में सभी कर्म किसी न किसी दोष से युक्त होते हैं, और माया के प्रभाव से मनुष्य इन कर्मों में बंध जाता है। फिर भी, हमें अपने स्वाभाविक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, और उन्हें भगवद्भाव से, बिना आसक्ति और फल की इच्छा के करना चाहिए। यही मोक्ष और शांति का मार्ग है।

हम युगभारती के सदस्यों ने जो लक्ष्य निर्धारित किया है अर्थात् राष्ट्र निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

उसी की पूर्ति करता आज का कार्यक्रम होने जा रहा है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इस कार्यक्रम के निष्कर्षों को लिखा जाए 

जब हम अपने व्यक्तिगत कार्यों को त्याग  समस्याओं से बिना व्याकुल हुए ऐसे कार्यक्रम करते हैं तो हमें आनन्द की अनुभूति होती है ऐसे समाजोन्मुखता को प्रदर्शित करते कार्यक्रमों से हमारी समाज में विश्वसनीयता भी वृद्धिङ्गत होती है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया शरद जी भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें

17.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण १३८८ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 17 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १३८८ वां सार -संक्षेप

हम आत्मविश्वासी बनें विकारों पर प्रहार करने की अद्भुत शक्ति अर्जित करें आत्मबोध के साथ संसार को समझें समझदार लोगों को संगठित करने का प्रयास करें

मनुष्यत्व की अनुभूति करें मनुष्य हैं तो मनुष्य के हित के कार्य करें दुष्टों को दंड देने की शक्ति अर्जित करें  नकली भूगोल बदले जाने की संभावना पर विश्वास करें प्रच्छन्न शत्रुओं को पहचानते रहें चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन करें और उसे समय पर व्यक्त करें आचार्य जी नित्य यही प्रयास करते हैं

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। 

अलप काल बिद्या सब आई॥


यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड से लिया गया है

श्रीराम गुरुकुल में विद्या ग्रहण करने गए। उन्होंने बहुत ही अल्प समय में सम्पूर्ण विद्या प्राप्त कर ली।


इसमें श्रीराम के ज्ञान, बुद्धि और तेज की विशेषता को दर्शाया गया है कि वे परमात्मस्वरूप होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम रूप में, मानव की भांति विद्या के अर्जन हेतु गुरुकुल गए और अल्प समय में ही, क्योंकि उन्हें बहुत बड़ा काम करना है, विद्यार्जन ही करते रहेंगे तो वह काम कैसे होगा,समस्त ज्ञान को आत्मसात् कर लिया।


विद्या तत्त्व है और शिक्षा संसार का सत्य है सत्य के माध्यम से तत्व की प्राप्ति ही शिक्षा और विद्या का सम्बन्ध है 

विद्या धर्म दर्शन और कला के अर्थों में प्रयोग की जाती है धर्म में विद्या का अर्थ वेद सामाजिक शास्त्र है दर्शन में विद्या का अर्थ अध्यात्म है 


(अस कछु समुझि परत रघुराया !.....) वाक्य-ग्यान अत्यंत निपुन भव-पार न पावै कोई।

 निसि गृहमध्य दीपकी बातन्ह तम निवृत्त नहिं होई॥ २॥

हमें विद्या और अविद्या दोनों को जानना चाहिए अर्थात्

अध्यात्म और भौतिकता दोनों को


विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥

यह मंत्र उपनिषद् की अद्वैत और समन्वयवादी दृष्टि को दर्शाता है—जहाँ संसार और ब्रह्म, कर्म और ज्ञान, दोनों की भूमिका मानी गई है।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित जी भैया अरविन्द जी का नाम क्यों लिया संजाल क्या हैं आचार्य जी कितने बजे आज लखनऊ जा रहे हैं जानने के लिए सुनें

16.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण १३८७ वां सार -संक्षेप

 करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥

जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई। थकित होहिं सब लोग लुगाई॥

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १३८७ वां सार -संक्षेप


शिक्षा एक ऐसा संस्कार है जो मनुष्यों को ही दिया जा सकता है शेष जीव प्रशिक्षित ही किए जा सकते हैं शिक्षित नहीं

हम यह ध्यान रखें कि हम शिक्षा को प्रशिक्षण मात्र न बनाएं एक ओर शिक्षा आंतरिक परिवर्तन की प्रक्रिया है इसका उद्देश्य बुद्धि , विवेक, आत्मा और चरित्र का विकास करना है। जब कि दूसरी ओर प्रशिक्षण (Training) अधिकतर कौशल आधारित होता है और इसका उद्देश्य किसी कार्य को सटीकता से कराना है। यह केवल व्यवहारिक दक्षता को बढ़ाता है, परंतु आंतरिक दृष्टिकोण नहीं बदलता।

मनुष्य शिक्षा के द्वारा आत्मानुशासन, सदाचार, विवेक और सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर अग्रसर होता है। शिक्षा को तकनीकी दक्षता तक सीमित न रखकर उसे मानवता और चरित्र-निर्माण से जोड़ना आवश्यक है। शिक्षा और संस्कार मनुष्य जीवन की सतत प्रक्रिया है  संस्कारयुक्त शिक्षा  अत्यन्त आवश्यक है

जिससे व्यक्ति सीखता है समझता है और व्यवहार जगत में प्रकट करने में सक्षम होता है व्यक्ति संस्कारयुक्त शिक्षा से शिक्षित है तो व्यवहार जगत की संफलता निश्चित है ऐसे व्यक्ति में मनुष्यत्व जाग्रत होता है

सच्चे मन से गुरु की शरण में जाना शिक्षा विद्या प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है  जिस प्रकार भगवान् राम अपने भाइयों सहित गुरु वशिष्ठ के आश्रम गए 

भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। 

अलप काल बिद्या सब आई॥


(नोट :अलप काल बिद्या सब पाई॥ अशुद्ध है क्यों कि विद्या वस्तु नहीं है )

विद्या  के लिए शिक्षा की उपासना करनी होती है इस उपासना के लिए मार्गदर्शन करने वाले शिक्षक 

के लिए भी शिक्षा की उपासना आवश्यक है इसी कारण शिक्षक महत्त्वपूर्ण हो जाता है

बालपन से किशोरावस्था तक संस्कार यदि सुदृढ़ हैं   तो संस्कार आसानी से नष्ट नहीं होते

 

असुर समूह सतावहिं मोही। मैं जाचन आयउँ नृप तोही॥

अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा॥


भगवान् राम का रामत्व यहां से निखरना प्रारम्भ होता है वे इस प्रकार शिक्षित किए गए थे कि कठिन परिस्थितियों में खरे उतरे यह है  वास्तविक शिक्षा


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने व्योमिका सिंह का नाम क्यों लिया दंगे होने पर कौन उसके निवारण के लिए पुस्तक की सहायता ले रहा था जानने के लिए सुनें

15.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण १३८६ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 15 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १३८६ वां सार -संक्षेप


जब किसी संस्था का मूल भाव और विचारधारा इतनी सशक्त और प्रेरणादायक हो कि अन्य व्यक्ति या संस्थाएं भी उसे अंगीकार करने लगें, तो वह संस्था विस्तार पा लेती है वह प्रभावकारिणी होती है जैसे गंगा जिसमें अनेक नदियां रास्ते में मिलती हैं किन्तु गन्तव्य समुद्र तक  गंगा  पहुंचती है क्यों कि उसमें गंगा का मूल तत्त्व बना रहता है

 जैसे एक दीप से अनेक दीप जलते हैं, वैसे ही एक संस्थागत चिन्तन जब व्यापक जनमानस में प्रवेश करता है, तो उसका स्वाभाविक विस्तार होता है।

हमारी युगभारती संस्था अर्थात् पं दीनदयाल विद्यालय, जिसका उद्गम था महाराजा देवी सरस्वती शिशु मन्दिर तिलक नगर कानपुर, के पूर्व छात्रों द्वारा संचालित संस्था भी इसी प्रकार का विस्तार पाने में सक्षम है जिसका लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

यह ऐसी संस्था है जो इस प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता को समझती है जो सिर चढ़कर बोले क्योंकि जो  व्यक्ति इस प्रकार की शिक्षा से शिक्षित होगा उसका व्यवहार अत्यन्त आकर्षक होगा

ऐसी संस्था की चर्चा होती है  ऐसी संस्थाओं से वातावरण पर्यावरण शुद्ध होता है पवित्र होता है हम लक्ष्य निर्धारित करें कि हमारे परिवारों का आन्तरिक बाह्य वातावरण पर्यावरण भी हमारे प्रयासों से शुद्ध हो


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भगवद्गीता के 18वें अध्याय जिसका नाम है — "मोक्ष-संन्यास योग", जो गीता का अंतिम और सबसे व्यापक अध्याय है। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को समस्त गीता-ज्ञान का संक्षेप में सार प्रदान करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य है कर्तव्य, संन्यास, त्याग, गुणों का प्रभाव, धर्मपालन और मोक्ष की प्राप्ति का विवेचन। के कुछ छंदों की चर्चा की

अमरकंटक का उल्लेख क्यों हुआ

जादूगरों की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

14.5.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण १३८५ वां सार -संक्षेप

 विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा,

 सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।

 यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ,

 प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।


यह श्लोक भर्तृहरि रचित नीतिशतक से है

विपत्ति में धैर्य, उन्नति में क्षमा, सभा में वाक्पटुता, युद्ध में पराक्रम, कीर्ति में रुचि और शास्त्रों में रुचि — ये सभी गुण महापुरुषों में स्वाभाविक रूप से होते हैं।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 14 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  १३८५ वां सार -संक्षेप

शिक्षित होने का अर्थ यह नहीं है कि हमने बहुत सी जानकारियां एकत्र कर लीं यदि हम वास्तविक शिक्षा द्वारा शिक्षित हैं तो हमें शान्ति की अनुभूति होगी हम आनन्दित रहेंगे हम  समय पर निर्णय लेने में सक्षम होंगे हम संगठन के महत्त्व को समझने में समर्थ  होंगे हम धैर्यशाली विचारशील आत्मविश्वासी बन सकेंगे, मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकेंगे, यशस्विता प्राप्त कर सकेंगे


शिक्षा संस्कार है शिक्षा विचार है 

शिक्षा समाजोन्मुखता का आधार है 

शिक्षा ही सभ्यता को सुसंस्कृत बनाती है

वेदों के छह वेदांगों में से शिक्षा को वेद पुरुष की नासिका (घ्राण) कहा गया है।


--- वेदांगों और वेद पुरुष के अंगों का प्रतीकात्मक संबंध


वेदांगों को वेद पुरुष के अंगों के रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया गया है:


- छन्दः – पाद (पैर)  

- कल्पः – हस्त (हाथ)  

- ज्योतिषम् – चक्षु (नेत्र)  

- निरुक्तम् – श्रोत्र (कान)  

- शिक्षा – घ्राण (नाक)  

- व्याकरणम् – मुख (मुख)

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १८ मई के कार्यक्रम के विषय में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया

हम अपना अस्तित्व कैसे बचाए रखे

शिक्षा -सङ्ग्रह क्या है  वेद क्यों महत्त्वपूर्ण है जानने के लिए सुनें

13.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३८४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 13 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३८४ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों से हम सदाचारमय विचार, जो हमारे *जीवन की दिशा और ध्येय* दोनों को स्पष्ट करते हैं,ग्रहण करते हैं और कर्मरत होने का प्रयास करते हैं हम इनके आधार पर अपने जीवन का आकलन करें प्रातःकाल जागरण से लेकर रात्रि शयन तक हमारा जीवन कितना संकुचित है और कितना विस्तृत

तो इन संप्रेषणों की सार्थकता सिद्ध होगी

 (*संकुचित जीवन* – स्वार्थ, विलास, आलस्य और तुलना में डूबा।  

*विस्तृत जीवन* – समर्पण, त्याग, उद्देश्य और सेवा से प्रेरित)

  क्या हम *कर्तव्यनिष्ठ, विनम्र, समयबद्ध* हैं?क्या हम दूसरों के लिए कुछ करने का संकल्प लेते हैं?

   क्या दिनभर में किए गए कर्मों का हम मूल्यांकन करते हैं? इन पर चिन्तन करें आत्मतत्त्व की अनुभूति करें जिससे हम शक्ति के महास्रोत बन जाएं, स्वदेश के प्रति अनुरागी बनें स्वदेश की रक्षा करने के लिए संकल्पबद्ध हों

हम अपने जड़त्व के तत्त्वों जिनके प्रति हमारा अधिक आकर्षण होता है और चेतनत्व के अंशों की भी अनुभूति करें समीक्षा करें, स्थितप्रज्ञ होने का प्रयास करें


प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


जिस समय पुरुष मन में स्थित सब कामनाओं को त्याग देता है और आत्मा से ही आत्मा में सन्तुष्ट रहता है उस समय वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है।।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल रात्रि में हुए अपने मा. प्रधानमन्त्री के भाषण, जिसकी देश के भविष्य के साथ संयुति स्पष्ट है, की चर्चा की 

श्रुति स्मृति में क्या अन्तर है? स्थितिस्थापकता की चर्चा क्यों हुई? कौन शब्दशिल्पी बन सकता है? जानने के लिए सुनें

12.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा ( बुद्ध पूर्णिमा) विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३८३ वां* सार -संक्षेप

 हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी,

 आओ विचारें आज मिलकर, यह समस्याएँ सभी।


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा ( बुद्ध पूर्णिमा) विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 12 मई 2025 का  जागरण-संदेश 

  *१३८३ वां* सार -संक्षेप

हमें अध्यात्म और व्यवहार  दोनों में सामञ्जस्य रखना है संसार में रहते हुए पराक्रम और शौर्य का प्रदर्शन व्यवहार है  व्यवहार यह भी है जहां हम रहें वहां हमारा प्रभाव रहे 

आत्मशोध, आत्मानुभूति, अपने अन्दर आनन्द को खोज लेना अध्यात्म है  हमारे द्वारा यह प्रयास हो कि हम आजीवन सत्कर्मों में रत रहते हुए अपने मनुष्यत्व को सार्थक करें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के चिन्तन और अभ्यास से अपने मनुष्य जीवन को जाग्रत रखें


जागरण-संदेश भारत की प्रकृति का धर्म है

आत्मनिर्भरता सतत इस धर्मिता का मर्म है

इस प्रकृति की नियति का नेता सदा मानव रहा

किन्तु मानव वह जिसे प्रिय जन्मभर सत्कर्म है



आज कल युद्ध विराम की चर्चा चल रही है इसी कारण महाभारत का एक प्रसंग याद आ रहा है 

कि कैसे भारत अकाल भस्मीभूत न हो जाए तो युद्ध विराम आवश्यक है


काशी के राजा ने अपनी तीन पुत्रियों — अंबा, अंबिका और अंबालिका — के स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें भीष्म ने बिना निमंत्रण के पहुँचकर तीनों का हरण किया। अंबा पहले से ही राजा शाल्व से प्रेम करती थीं, इसलिए भीष्म ने उन्हें शाल्व के पास भेज दिया। हालांकि, शाल्व ने अंबा को स्वीकार नहीं किया, जिससे अंबा ने अपने अपमान का कारण भीष्म को माना। 

अपमानित अंबा ने अपने नाना के माध्यम से भगवान परशुराम से सहायता की याचना की। परशुराम ने भीष्म से अंबा से विवाह करने को कहा, लेकिन भीष्म ने अपनी ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा का हवाला देते हुए मना कर दिया। 

परशुराम ने भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा, जिसे भीष्म ने स्वीकार किया। दोनों के बीच २१ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। अंततः, ऋषियों और मां गंगा के कहने पर युद्ध विराम हो गया

( बताते चलें 

अंबा ने घोर तपस्या करके भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया और अगले जन्म में शिखंडी के रूप में जन्म लिया)


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अमित गुप्त जी और भैया उमेश्वर जी का नाम क्यों लिया, किसी भवन की सार्थकता कैसे है जानने के लिए सुनें

11.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३८२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 11 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३८२ वां* सार -संक्षेप


लगातार संसरित हो रहे इस संसार की रचना और परंपरा प्रारंभ से ही ऐसी रही है जहाँ संघर्ष,धैर्य, उत्साह, साधना, ज्ञान आदि की परीक्षा चलती रहती है।  इस चक्र को समझकर जीवन जीना आवश्यक है।

अध्यात्म कहता है गुणों और दोषों से युक्त इस संसार में रहते हुए शक्ति और शौर्य का प्रचुर मात्रा में संवर्धन करते हुए संसार की सांसारिकता के दोषों का हम निवारण करें और गुणों को धारण करें

यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है जिसका हमें वरण करना चाहिए वर्तमान परिस्थितियां भी यही संकेत कर रही हैं


अध्यात्म,संयम, शौर्य, कर्मशीलता आदि  जीवन के सहज गुण हैं।  इन गुणों को अपनाना कठिन नहीं, बल्कि मानवस्वभाव के अनुकूल है। परंतु यदि कोई व्यक्ति इन गुणों से अनभिज्ञ है, तो वह केवल मानव का शरीर लिए है, उसकी चेतना विकसित नहीं हुई।  

आत्मज्ञान और कर्म का अभाव उसमें परिलक्षित हो रहा है



अध्यात्म संयम शौर्य सक्रियता सहज है 

अनभिज्ञ दोनों से फकत मानव महज है

हे जागरित प्रियवर उठो यह जगत समझो 

प्रारम्भ से इसकी रही कुछ यही धज है





यह कविता व्यक्ति को केवल सांसारिक जीवन में उलझे रहने से बाहर निकालकर *धार्मिक, नैतिक और देश-सेवा भाव से परिपूर्ण जीवन जीने* का संदेश देती है। इसमें संयम, शक्ति और सजगता — तीनों को मिलाकर एक संतुलित और जाग्रत जीवन की बात की गई है। परिस्थितियों को भांपने की क्षमता विकसित करते हुए हम आसपास की गतिविधियों को भी जानें उनकी उपेक्षा न करें हम सहस्र नेत्र रखें प्रच्छन्न शत्रुओं

,छद्मवेशधारियों से सावधान रहें 

हमारे अन्दर देश के प्रति जागरित रहने का भाव होना चाहिए 

इसके अतिरिक्त किस पत्र की आचार्य जी ने चर्चा की जो  हमारे प्रधानमन्त्री को लिखा गया, व्यक्तित्व का विकास क्या है, १८ मई के कार्यक्रम के लिए क्या कोई शुल्क निर्धारित हुआ है जानने के लिए सुनें

10.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३८१ वां* सार -संक्षेप

 'परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् '

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 10 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३८१ वां* सार -संक्षेप


देशभक्ति के दिव्य पावन आवेश से परिपूर्ण ये सदाचार संप्रेषण हमें प्रेरित उद्वेलित उत्साहित जाग्रत करने के अत्यन्त उत्साहपूर्ण उद्घोष हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए और अपनी कर्तव्यनिष्ठा को जाग्रत करना चाहिए

 हमें प्रच्छन्न शत्रुओं से भी सावधान रहना चाहिए

यद्यपि भारत राष्ट्र के हम जाग्रत पुरोहित संपूर्ण वसुधा को ही अपना कुटुम्ब मानते हैं किन्तु जब हम राष्ट्रभक्तों के अपने परिवार पर कोई कुदृष्टि डालता है तो उसे नष्ट करने की शक्ति क्षमता भी  सदैव हमारे अन्दर रहनी चाहिए और इसके लिए हमें हनुमान जी के बल विक्रम प्रताप की अनुभूति करते हुए अपने पूर्वजों के तेज त्याग शौर्य से प्रेरणा लेकर अपने मनोबल को बढ़ाना चाहिए 

अपने आत्मीय जनों को संगठित करना चाहिए उन्हें सचेत रखना चाहिए


रखें हौसला सदा विजय का कर्म व्रत संकल्प प्रबल 

अथक परिश्रम देशप्रेम मन में पुरखों का तेजस बल, 

शत्रु-मित्र का बोध हर घड़ी कभी न गफलत भ्रम या भय 

*स्वर संगठित व्योम तक गूँजे* भारतमाँ की जय जय जय ।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १९३० का उल्लेख क्यों किया देशप्रेमी के क्या लक्षण हैं रघुनाथ -गाथा क्यों महत्त्वपूर्ण है जानने के लिए सुनें

9.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३८० वां* सार -संक्षेप

 मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं

वंदे कंदावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥ 1॥


माया से परे, देवताओं के स्वामी, *दुष्टों के वध में तत्पर*, ब्राह्मणवृंद के एकमात्र रक्षक, जल -मेघ के समान सुंदर श्याम, कमल जैसे नेत्र वाले, राजा के रूप में परमदेव राम की मैं वंदना करता हूँ


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 9 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३८० वां* सार -संक्षेप

हमारा सौभाग्य है कि ये सदाचार संप्रेषण अबाध गति से चल रहे हैं जिनसे हम सदाचारमय विचार ग्रहण करते हैं और कर्मरत होते हैं

आज के इस शौर्य-स्वर रूपी सदाचार संप्रेषण के मूल में वर्तमान परिस्थिति है पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा

ऐसे में हमें अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिए इस तरह के किसी भी युद्ध में हमें प्रबुद्ध रहने की आवश्यकता है यद्यपि इस तरह के अवरोधों के आने पर भी भारत का, हम भारत -भक्तों का भविष्य उज्ज्वल है तथापि हम गम्भीर रहें सचेत रहें जाग्रत रहें  संगठित रहें अपने तरह के स्वदेशानुरागियों को तैयार करें प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क में रहें शत्रु कमजोर हो तो भी उसे कमजोर नहीं समझना चाहिए

उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कायर गोरी का उदाहरण हमारे सामने है 


*समय गंभीर है गंभीरता से हर कदम सोचें*

*मुखों पर की नकाबें हर तरह से भींचकर नोचें*

 *कि जिसके हृदय में भारत न बसता हो उसे छोड़ें* 

*सभी का भाव भारत राष्ट्र के रक्षार्थ ही मोड़ें*


इसके अतिरिक्त भैया पंकज जी की चर्चा क्यों हुई, बैठकें  क्यों करें आदि जानने के लिए सुनें




8.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७९ वां* सार -संक्षेप

 यह पाक नहीं, भारत का वक्षस्थल है

ऋषियों का पुण्य प्रताप तपस् का फल है

दुनिया का बन्दर - बाँट समझना होगा

हमको नकली भूगोल बदलना होगा ।

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 8 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७९ वां* सार -संक्षेप

इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य है कि हम स्वदेश -हित में रत हों हमारा व्यक्तित्व राष्ट्रोन्मुखी हो हमारी वाणी हमारी लेखनी स्वदेशाभिमान से परिपूर्ण हो,हम जागरूक रहें, संगठित रहें, सकारात्मक चिन्तन रखें,अपने आर्ष साहित्य से शक्ति की प्रेरणा लें


प्रचण्ड वज्रदंड से प्रहार हो 

जवानियों के हाथ में कुठार हो..


भारत को वर्तमान में अनेक बहुआयामी और प्रापंचिक (छलपूर्ण) संकटों का सामना करना पड़ रहा है 

भारत की सुरक्षा केवल बाहरी खतरों तक सीमित नहीं है; देश के भीतर भी कई ऐसे तत्व सक्रिय हैं इन आंतरिक शत्रुओं से सतर्क रहना और उन्हें पहचानना नितान्त आवश्यक है।

पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हक्कानी नेटवर्क भारत की सुरक्षा के लिए निरंतर संकट बने हुए हैं। ये संगठन सीमापार से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के साथ-साथ भारत के भीतर भी अस्थिरता फैलाने का प्रयास करते हैं सरकारी प्रतिष्ठानों, सुरक्षा बलों और आम नागरिकों पर हमले करके अस्थिरता फैलाते हैं।


पाकिस्तानी चिंतन का सोच विषैला

कर गया देश के स्वाभिमान को मैला

भारत माँ की वन्दना हुई परदेशी

अन्तरतम बँट कर हुआ आज प्रतिवेशी ।

पाकिस्तानी विषधर फुंकार रहा है

जागो जन्मेजय देश पुकार रहा है


आहुतियाँ बाकी हवन - कुण्ड धधकाओ

होता बन फिर से सोये मंत्र जगाओ ।

स्वाहा करके विष-वंश, शान्ति को लाओ

ओ बुद्ध ! देशहित आओ खड्ग उठाओ

अब नहीं शान्ति उपदेश छिड़ गया रण है

'क्षण भर भी नहीं विराम' हमारा प्रण है  l


पहलगाम कांड का कल भारत ने बदला ले लिया हमें जो सफलता मिली वो प्रशंसनीय है साथ में सजगता भी प्रशंसा का पात्र है


लुर्किये क्या है जानने के लिए सुनें

7.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७८ वां* सार -संक्षेप

 ललकार रहा भारत को स्वयं मरण है,

हम जीतेंगे यह समर, हमारा प्रण है


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 7 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७८ वां* सार -संक्षेप

परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं ऐसे में हाथ पर हाथ धरकर उनका रोना रोने से कोई लाभ नहीं हम तो अपना चिन्तन प्रखर करें और उसके अनुसार कार्यान्वयन करें अपनी समाजोन्मुखता जाग्रत करें ताकि हम एक उदाहरण बन सकें हमें अपने प्रयत्नों से सोए हुए सिंहों को जगाना है

 जिनमें शक्ति है किन्तु उन्हें उसकी अनुभूति नहीं

याद आ रही है

*"परशुराम की प्रतीक्षा"*  की जो राष्ट्रकवि *रामधारी सिंह 'दिनकर'* द्वारा रचित एक प्रभावशाली प्रबंध काव्य है, जो १९६२ के भारत-चीन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में लिखा गया था। इस काव्य में दिनकर जी ने भगवान परशुराम जो जाग्रत क्रांति और आत्मरक्षा के उदाहरण हैं को प्रतीक बनाकर तत्कालीन भारतीय नेतृत्व की शांति-नीति और सैन्य उपेक्षा की आलोचना की है।यह रचना तत्कालीन नेतृत्व की निष्क्रियता पर तीखा व्यंग्य करती है और सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

उसी काव्य की निम्नांकित पंक्तियां देखिए


केवल कृपाण को नहीं, त्याग-तप को भी,

टेरो, टरो साधना, यज्ञ, जप को भी ।

गरजो, तरंग से भरी आग भड़काओ,

हो जहाँ तपी, *तप से तुम उन्हें जगाओ।*


युग-युग से जो ऋद्धियाँ यहाँ उतरी हैं,

सिद्धियाँ धर्म की जो भी छिपी, धरी हैं,

उन सभी पावकों से प्रचण्डतम रण दो,

शर और शाप, दोनों को आमन्त्रण दो।


चिन्तको ! चिन्तना की तलवार गढ़ो रे ।

ऋषियो ! कृशानु-उद्दीपन मंत्र पढ़ो रे ।

योगियो ! जगो, जीवन की ओर बढ़ो रे ।

बन्दूकों पर अपना आलोक मढ़ो रे ।


है जहाँ कहीं भी तेज, हमें पाना है,

*रण में समग्र भारत को ले जाना है* ।


 केवल बाह्य शक्ति (कृपाण) पर निर्भर न रहकर, आंतरिक शक्ति—त्याग और तपस्या—को भी जाग्रत किया जाए इसका प्रयास होना चाहिए यह संतुलित दृष्टिकोण हमें बताता है कि सच्ची शक्ति बाह्य और आंतरिक दोनों गुणों के समन्वय से प्राप्त होती है।  शस्त्र और शास्त्र दोनों की ही आवश्यकता है समाज में सच्चा परिवर्तन केवल बाह्य शक्ति से नहीं, बल्कि आंतरिक साधना, त्याग और तपस्या से संभव है।  हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और उसे जाग्रत करें।


आपदा धैर्य का एक परीक्षा स्थल है 

इस थल पर प्रायः होती बुद्धि विकल है 

किन्तु जहाँ पौरुष पल्लवित रहा है 

साफल्य वहाँ हरदम निर्बाध बहा है।


विद्यालय में ताले से संबन्धित कौन सा प्रयोग हुआ था,अल्पभाषी माननीय अनन्त राव गोखले जी का उल्लेख क्यों हुआ गतिमत्ता कहां से आती है जानने के लिए सुनें

6.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 6 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७७ वां* सार -संक्षेप

वाचिक संस्कारशाला की कक्षाओं के रूप में परिलक्षित हो रहे इन सदाचार संप्रेषणों में  भाव विचार क्रिया व्यवहार आदि बहुत कुछ समाहित है जिनसे हमें लाभ प्राप्त होता है हमारे विचार सुदृढ़ होते हैं हमें सकारात्मक सोच की दिशा प्राप्त होती है

पहलगाम कांड ने  विभिन्न पहलुओं पर भारत राष्ट्र के हम जाग्रत पुरोहितों को पुनर्विचार करने के लिए बाध्य किया है। यह केवल एक आतंकवादी हमला नहीं, बल्कि एक व्यापक बौद्धिक संघर्ष की शुरुआत का संकेत है, जिसमें हमें अपनी नीतियों और दृष्टिकोणों की पुनः समीक्षा करनी होगी। यह समय भलमनसाहत का नहीं है, यह बौद्धिक संघर्ष के साथ शारीरिक संघर्ष का भी समय है हमें परस्पर बैठकर इस पर चिन्तन मनन विचार तर्क करने की आवश्यकता है कुतर्क से हमें सतर्क रहना है समाज हमारा विरोध न करे इसके लिए हमें उसे अपने अनुकूल बनाने के प्रयास करने होंगे व्यापारी व्यापार में ही मग्न न रहे समाज को कुछ देने का भाव रखे इस ओर भी हम ध्यान दें

उठो जागो जगाओ बेफिकर सोई जवानी को 

गुरू गोविंद  बन्दा  शिवा राणा सी रवानी को 

न संयम इस तरह का हो कि रिपु दुर्बल समझ बैठे

चलो गंगाजली लेकर नमन करने भवानी को।

(*ओम शङ्कर* )

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जप का क्या महत्त्व बताया १८ मई को हमें किस विषय पर चर्चा करनी है २१ व २२ सितम्बर को होने जा रहे वार्षिक अधिवेशन के लिए हमें क्या करना है जानने के लिए सुनें

5.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७६ वां* सार -संक्षेप

 अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः।  

इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 5 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७६ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि पं दीनदयाल जी के स्वप्न को पूर्ण करने के लिए कटिबद्ध दीनदयाल विद्यालय के हम छात्र इन सदाचार वेलाओं से सदाचारमय विचार ग्रहण करें और उन्हें अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार क्रिया में परिवर्तित करें

हमारी सनातन संस्कृति अद्भुत है हमारा इतिहास  शौर्य और पराक्रम के प्रतीक अनेक पूर्वजों जो भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं, से भरा पड़ा है   वे kन केवल युद्धभूमि में अद्वितीय वीरता दिखाने वाले योद्धा रहे हैं, बल्कि स्वधर्म,सत्य और राष्ट्र- रक्षा के लिए अपने जीवन का सर्वस्व अर्पण कर देने वाले मार्गदर्शक भी हैं। उनकी वीरगाथाएं हमें प्रेरित करें, हम रामत्व की अनुभूति करें, हनुमान जी


(मनोजवं मारुततुल्यवेगं  

जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।  

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं  

श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥)


 जिनका रामकार्य में पूर्ण समर्पण, असाधारण शारीरिक एवं आत्मिक शक्ति,नीति, विवेक और युक्तिपूर्ण कार्य परम भक्त का आदर्श रूप असत्य और अधर्म के विरुद्ध अडिगता परिलक्षित होती है का तेज धारण करें

भले ही परिस्थितियाँ विषम हों,प्रकृति भी विरोध में लगे, कोई भी व्यक्ति साथ न दे

तब भी



*आंधियां जोर की चलती हों*,

*उल्काएं रूप बदलती हों*

*धरती अधैर्य धर हिलती हो*

*अपनों की सुमति न मिलती हो*

*तब जयश्रीराम पुकार उठो*

*अपना पौरुष ललकार उठो*

*पुरखों का शौर्य निहार उठो*

*हनुमन्त तेज को धार उठो*


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १८ मई के विषय में क्या बताया भैया अजय शंकर जी का विशेष उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें

4.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 4 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७५ वां* सार -संक्षेप

कभी संयम नियम के नाम पर वैराग्य मत पालो, 

कभी सुख शान्ति के बदले नहीं संघर्ष को टालो, 

समस्या जगत भर में हर कदम पर ही समायी है ,

उसे दो-चार होकर ही हटाओ शक्ति भर घालो।


अत्यन्त प्रेरणास्पद और आत्मबल को जाग्रत करने वाली पंक्तियां, जो जीवन को पलायनवादी नहीं, सक्रिय और संघर्षशील दृष्टिकोण से जीने का आह्वान कर रही हैं


सतत पुरुषार्थ रत रहना पुरुष का सहज लक्षण है 

इसी कारण धरा पर वह सदा सबसे विलक्षण है,

सदा पुरुषत्व की अनुभूति जिस नर में बनी रहती 

वही भावुक वही उद्बुद्ध वह ही प्रभु विचक्षण है।


 संयम और नियम जीवन में आवश्यक हैं, परंतु इनके नाम पर संसार से पलायन या निष्क्रियता उचित नहीं। संयम सक्रिय जीवन का मार्गदर्शन करे, न कि निष्क्रियता का बहाना बने कभी-कभी शांति की रक्षा हेतु युद्ध तक करना पड़ता है


संसार समर है,तो हथियार बिना कैसे 

सागर है, तो पतवार चलाना ही होगा


 — यह भगवद्गीता का भी संदेश है संसार में हर कदम पर कोई न कोई चुनौती है; समस्याओं से रहित कोई जीवन नहीं। 


संकट जीवन के रंगमंच की शोभा हैं

इनसे विहीन सारा परिवेश अधूरा है,

पौरुष दहाड़ कर ज्यों बढ़ता संकट- समक्ष 

धरती पर बिछ जाता बन चूरा चूरा है।



 उन समस्याओं का समाधान मुँह मोड़ने से नहीं, बल्कि सामना करने से होता है। अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर हम उन्हें दूर करने का प्रयास करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल सम्पन्न हुई लखनऊ

बैठक के विषय में क्या बताया १८ मई की क्या योजना है जानने के लिए सुनें

3.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 3 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७४ वां* सार -संक्षेप

प्रभंजन कभी भी संदेश देकर के नहीं आता 

किसी भी भांति का अवरोध उसको टुक नहीं भाता 

मगर हम हैं सदा अवरोध ही बनते रहे उसके

यही उसका हमारा जन्म जन्मों का रहा नाता

*"प्रभञ्जन"* का अर्थ है *तूफान*, *भीषण विपत्ति*, या *आकस्मिक संकट*। 

जैसा अभी २२ अप्रैल को पहलगाम में घटित हुआ

प्रभञ्जन हमें मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से सदा सजग रहने का संकेत देता है यह  हमें *चेतनशील* और *कर्तव्यनिष्ठ* बनाए रखने का आह्वान करता है

यह जीवन का अकाट्य सत्य है।

जब प्रभञ्जन आता है, तो कोई भी रुकावट उसे रोक नहीं सकती। यह उसकी स्वाभाविक शक्ति और निरंकुश गति का बोध कराता है।

किन्तु मनुष्य के रूप में हम बार-बार उसके लिए अवरोध की भूमिका में प्रकट होते ही रहते हैं यह संघर्ष, यह द्वंद्व — मनुष्य और संकट के बीच — शाश्वत है। 

 *प्रतिकूल परिस्थितियों, अनिश्चितताओं और जीवन में आने वाले झंझावातों* के प्रति मानव के दृष्टिकोण की ये एक प्रकार से समीक्षा है।

*समाज* शरीर रूपी राष्ट्र का *प्राण* है — जब तक समाज जीवित नहीं, जागरूक नहीं, सशक्त नहीं, तब तक राष्ट्र केवल एक खोखली संरचना बनकर रह जाता है यदि समाज नैतिक, उदार, जागरूक और संगठित है, तो राष्ट्र स्वतः ही शक्तिशाली और प्रतिष्ठित होता है हमें राष्ट्रभक्त के रूप में भारत देश के प्रति प्रेम रखने वाले इसी समाज को जागरूक सशक्त बनाना है

शक्ति का अर्जन विसर्जन दम्भ का

मुक्ति का भर्जन भजन प्रारम्भ का 

संगठन संयमन युग की साधना है 

देशहित शिव शक्तियों को बाँधना

है

 नित्य प्रातः यही शिवसंकल्प जागे 

पराश्रयता का यहाँ से भूत भागे


उठें अपनों को उठायें कर्मरत हों 


बुद्धिमत्ता सहित हम सब धर्मरत हों l 


आचार्य जी कल कहां जा रहे हैं, विरोधी दलों के नेता सुर में सुर क्यों मिलाने लगे जानने के लिए सुनें

2.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७३ वां* सार -संक्षेप

 उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ।

दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या यत्ने कृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्र दोषः ॥

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 2 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७३ वां* सार -संक्षेप


22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में हुआ आतंकी हमला हमें संकेत दे रहा है कि हम राष्ट्र-भक्त के रूप में अपने कर्तव्य का बोध करें

ऐसे संकटपूर्ण समय में,  हमारा परम कर्तव्य है कि हम राष्ट्र की सुरक्षा, अखंडता और समृद्धि के लिए सजग, जागरूक और सक्रिय रहें।  समाज के किसी भी वर्ग—चाहे हम विद्यार्थी हों, शिक्षक,अभियन्ता, चिकित्सक, अधिवक्ता, व्यापारी या किसान हों हम अपने-अपने क्षेत्र में राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें

इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से जिन सूत्र सिद्धान्तों जैसे


उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।


आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।

अपने द्वारा अपना उद्धार करें, अपना पतन न करें; क्योंकि आप ही अपने मित्र हैं और आप ही अपने शत्रु हैं


 की हमें जानकारी हो रही है उन्हें व्यवहार में प्रयुक्त करने का यह सबसे उचित अवसर है हमें यह अनुभव करना चाहिए कि *स्वदेश का भार हमारे कंधों पर है*। हमें न केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए,अपितु दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए कि वे राष्ट्रहित में कार्य करें, हम राष्ट्र -भक्त संगठित रहने का संकल्प लें

*स्वदेश हित परम प्रबुद्ध हो* 

*स्वराष्ट्र हेतु भाव शुद्ध हो* 

*स्वधर्म कर्म मर्म बुद्ध हो*

*कि सत्त्व रक्षणार्थ युद्ध हो*


यह रचना राष्ट्रचेतना का अत्यंत प्रभावशाली और ओजस्वी स्वर है। इसमें राष्ट्र, धर्म और कर्तव्य के प्रति सजगता की प्रेरणा है प्रबुद्ध होने से आशय है कि हम राष्ट्र की स्थिति और आवश्यकता को समझने वाले विवेकशील नागरिक के रूप में स्वयं को अनुभव करें और अपनी भावनाएँ शुद्ध और निर्मल रखें यह भाव रखें कि देशभक्ति केवल बाह्य प्रदर्शन नहीं, बल्कि आंतरिक भावना और निष्ठा का विषय है। सत्य और धर्म की रक्षा के लिए आवश्यकता पड़े तो युद्ध का विकल्प हम बिना भय भ्रम के स्वीकारें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी चित्रकूट जाने के लिए क्या योजना बना रहे हैं जानने के लिए सुनें

1.5.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 मई 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१३७२ वां* सार -संक्षेप

 ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।


निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5.3।।



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज वैसाख शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 1 मई 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१३७२ वां* सार -संक्षेप

*संसार (जगत्)* एक अद्भुत रंगमंच है जहाँ समय-समय पर अनेक अनुभव—सफलता-असफलता, सुख-दुःख, लाभ-हानि—मानव जीवन को शिक्षित और परिपक्व करते हैं

   सब कुछ क्षणिक है—सुख भी, दुःख भी। यह बोध ही वैराग्य की ओर ले जाता है जब मनुष्य लाभ-हानि, जय-पराजय के बीच समता का अभ्यास करता है, तभी वह आत्मस्थ होता है।  

   संसार हमें केवल परिस्थितियाँ देता है, लेकिन विवेक और निर्णय हम स्वयं करते हैं—यहीं से *जीवन दर्शन* का निर्माण होता है।

*संसार एक विद्यालय है*, जहाँ हर अनुभव—चाहे वह मधुर हो या कटु—हमें कुछ सिखा देता है। जो इस अद्भुतता को समझता है, वही असली जीवनद्रष्टा बनता है विकारों को दूर करते हुए हमें सद्विचारों को ग्रहण कर संसार की इस अद्भुतता का आनन्द लेना चाहिए 

वर्तमान में भारत की सीमाओं पर जो स्थिति उत्पन्न हो रही है, वह न केवल सामरिक दृष्टिकोण से, अपितु राष्ट्रीय एकता और नागरिक कर्तव्यों की दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।


वर्तमान परिस्थितियाँ हमें यह सिखाती हैं कि राष्ट्र की सुरक्षा और समृद्धि केवल सीमाओं पर लड़ने वाले सैनिकों का ही कर्तव्य नहीं है, अपितु प्रत्येक राष्ट्र भक्त का भी कर्तव्य है। हमें देशद्रोहियों से सतर्क रहकर, देशभक्ति की भावना के साथ, अपने अपने क्षेत्रों में योगदान देना चाहिए।

आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार ।

हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार ।


 हमें संगठित रहने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि इस समय संगठन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ताकि समस्या आए तो उसे हम मिलकर आसानी से सुलझा सकें


संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।

भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो ॥


सामान्य व्यक्ति की चाह और ईश्वर की चाह में क्या अन्तर है भैया अभय महाजन जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें