9.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष पञ्चमी/षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५९४ वां* सार -संक्षेप मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७६

इस जग में सुख दुख सभी, आते जाते भोग। 
कभी वही सुखप्रद लगे, कभी कष्टप्रद रोग ॥

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष पञ्चमी/षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 9 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
  *१५९४ वां* सार -संक्षेप

मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७६
देश संकट में है इस कारण हमें संगठित रहने की अत्यन्त आवश्यकता है


जब शरीर अस्वस्थ होता है, तब स्वाभाविक रूप से मन भी उदास या विचलित हो जाता है। किंतु यदि ऐसी स्थिति में भी मन प्रसन्न, शांत और प्रफुल्लित बना रहे, तो यह एक विशिष्ट और दुर्लभ अनुभव है। यह केवल परमात्मा की कृपा से ही संभव होता है।ऐसी अवस्था में व्यक्ति को अपने शारीरिक कष्ट की अनुभूति होते हुए भी उसका मानसिक भार नहीं लगता।यही उस परमात्मा की अद्भुत लीला है कि वह हमें हमारे ही शरीर के दुःख से कुछ समय के लिए अलग कर देता है और आनन्द की अनुभूति कराता है। यह अवस्था आध्यात्मिक उन्नयन की ओर संकेत करती है 
 गीता में १८वें अध्याय में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के स्वाभाविक कर्म बतलाए गये हैं ब्राह्मण अर्थात् जो ब्रह्मत्व को प्राप्त हैं  (ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से ही ब्राह्मण नहीं  ) के कर्म इस प्रकार हैं


मन का निग्रह करना इन्द्रियों को वश में करना; धर्मपालन के लिये कष्ट सहना जिस प्रकार गुरु गोविन्द सिंह, गुरु तेग बहादुर आदि ने कष्ट सहे; बाहर-भीतर से शुद्ध रहना; दूसरों के अपराध को क्षमा करना; शरीर, मन आदि में सरलता रखना; वेद, शास्त्र आदि का ज्ञान होना; यज्ञविधि को अनुभव में लाना; और परमात्मा, वेद आदि में आस्तिक भाव रखना -- ये सब-के-सब ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं।
शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।

ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।18.42।।

इसी प्रकार अन्य के कर्म हैं l
बाह्य और आन्तरिक दोनों स्तरों पर शुद्ध रहना ही सनातन धर्म का मूल चिन्तन है। 

यह विचार केवल बाहरी स्वच्छता या शारीरिक पवित्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि मन, वचन और कर्म की शुद्धता को भी सम्मिलित करता है सनातन धर्म हमें यही सिखाता है कि केवल क्रियाएँ नहीं, बल्कि भावनाएँ भी निर्मल हों, तभी जीवन सच्चे अर्थों में धर्ममय बनता है।

इसके अतिरिक्त कर्मभोग क्या है भैया डा अमित जी का उल्लेख क्यों हुआ सोना माटी किस कारण हुआ जानने के लिए सुनें

8.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५९३ वां* सार

 संकट कठिन कराल हो,अथवा सुखमय सेज।

दोनो में सम सहजता, यही स्वत्वमय तेज    ॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 8 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५९३ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७५

 समय समय पर स्वयं की समीक्षा अवश्य करते रहें


कार्यक्रम किसी एक निश्चित लक्ष्य को लेकर आयोजित किए जाते हैं, और वह लक्ष्य होता है—मूल कार्य का विस्तार करना। यह मूल कार्य कुछ भी हो सकता है जैसे स्वधर्म का पालन करना, स्वदेशभाव को जाग्रत करना, समाज में जागरूकता फैलाना, समाज की विद्रूपताएं समाप्त करने का प्रयास करना आदि।


ये कार्यक्रम केवल औपचारिक आयोजन या बाह्य प्रदर्शन नहीं होते, अपितु आत्मदर्शन के भी सशक्त माध्यम होते हैं। इनका उद्देश्य आत्ममूल्यांकन, आत्मपरिष्कार और जीवन के उच्च आदर्शों को समाज में व्यक्त करना होता है।


इस प्रकार के आयोजन हमारे आंतरिक विश्वास, विचारधारा और राष्ट्रीय-धर्म के प्रति आस्था को जाग्रत करते हैं। अतः ऐसे प्रत्येक कार्यक्रम को गम्भीरता और समर्पण से देखने की आवश्यकता है, क्योंकि यही हमारे आत्मिक उत्थान और सामाजिक कर्तव्यबोध का माध्यम बनते हैं।

इसी प्रकार का एक कार्यक्रम २८ दिसंबर को होने जा रहा है तो इससे अनुस्यूत किसी अन्य कार्यक्रम में स्वैराचार अर्थात्

ऐसा मनमाना आचरण जो नैतिक, धार्मिक, सामाजिक आदि नियमों या बंधनों की उपेक्षा करके किया जाय (= उच्छृंखलता)

  का स्थान कैसे हो सकता है

स्वतन्त्रता और स्वैराचार में अन्तर है हमें सुसंस्कृत और सुसभ्य ही रहना चाहिए ताकि समाज में भी सम्मान मिले  हनुमान जी ने भारत मां की सेवा के लिए हमें  युगभारती के रूप में एकत्र किया है

भारत मां हमारे सत्कार्यों को देखकर प्रसन्न होती हैं और हमारी हीनता को देखकर दुःखी होती हैं

दूसरों का उत्कर्ष देखकर प्रसन्न होने  वाले कम होते हैं किन्तु होते हैं

जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥

सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7॥


संसार में तालाबों और नदियों के समान ही मनुष्य भी अधिक हैं, जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं अर्थात्‌ अपनी उन्नति से प्रसन्न होते हैं। समुद्र जैसा तो कोई एक बिरला ही सज्जन होता है, जो चन्द्रमा को पूर्ण देखकर अर्थात् दूसरों का उत्कर्ष देखकर) उमड़ पड़ता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राजनीति प्रधान चिन्तन का उल्लेख क्यों किया भैया रत्नेश जी भैया मनीष जी क्यों चर्चा में आये दिल्ली अधिवेशन के लिए क्या परामर्श है किसने स्व पर ध्यान दिया और पर का ध्यान नहीं किया जानने के लिए सुनें

7.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 दिसंबर 2025 का उपदेश *१५९२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 7 दिसंबर 2025 का उपदेश

  *१५९२ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७४

हम सब अपने संगठन में प्रेम और आत्मीयता के विस्तार का यथासंभव प्रयास करें



यदि परिवार के किसी एक सदस्य को कष्ट होता है और शेष सभी सदस्य उसके दुःख को अपना दुःख मानकर उसकी चिन्ता करते हैं, उसे दूर करने का प्रयास करते हैं, तो यही भाव 'परिवार-भाव कहलाता है। इसमें सभी सदस्य एक दूसरे के सुख दुःख के सहभागी होते हैं। कोई भी कष्ट अकेले नहीं झेलता सभी मिलकर उसका समाधान ढूंढते हैं। यही सच्चा पारिवारिक जीवन है जहाँ आत्मीयता, सहयोग और सहानुभूति का सामूहिक भाव होता है। यह भाव केवल रक्त-संबंधों से नहीं आता, बल्कि आपसी समझ, समर्पण और संवेदना से विकसित होता है। यही भाव परिवार को एकजुट और सशक्त बनाता है। हमें अपने संगठन युगभारती को इसी भाव के साथ सशक्त बनाना हैl

संगठन में शंका का अंकुर अत्यन्त भयानक होता है हम सब मिलकर प्रयास करें कि यह उपज न पाये l

जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि।

बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि॥ 57(ख)॥


यह सोरठा प्रेम की सच्ची प्रकृति और उसकी कोमलता को अत्यन्त सूक्ष्मता से समझाता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि जल और दूध  दोनों एक साथ होते हैं, तो कोई अंतर कर पाना कठिन होता है। यही स्थिति सच्चे प्रेम की होती है जहाँ दो आत्माएँ या दो व्यक्तित्व इतनी आत्मीयता से जुड़ जाते हैं कि भेद ही मिट जाता है किन्तु यदि इन दोनों को अलग करने का प्रयास किया जाए जैसे दूध और जल को अलग किया जाए  तो स्वाद चला जाता है, प्रेम की मिठास समाप्त हो जाती है। इसका संकेत यह है कि प्रेम में भेद की भावना आती ही नहीं, और यदि आ जाए तो उसकी आत्मा नष्ट हो जाती है lअतः हम सबका सामूहिक प्रयास हो कि भेद की भावना न आ पाए l 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा अमित जी  भैया डा मनीष वर्मा जी भैया सूर्यांक जी आदि का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें

6.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 दिसंबर 2025 का उपदेश *१५९१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 6 दिसंबर 2025 का उपदेश

  *१५९१ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७३

अपने शरीर अपने परिवार का ध्यान रखते हुए समाज और राष्ट्र के हित हेतु कार्य करें


प्रभातकालीन यह अद्भुत वेला केवल एक नियमित दिनचर्या का भाग नहीं, अपितु गम्भीर चिन्तन का अमूल्य अवसर है ये क्षण हमारे जीवन की जटिलताओं व समस्याओं को सुलझाने हेतु अन्तःप्रेरणा देने के लिए हैं हमारा अन्धकार दूर करने के लिए हैं संसार के रहस्य को जानने का प्रयास हैं। यह वेला हमारे भीतर सदाचारमय, सात्त्विक एवं राष्ट्र-निष्ठ विचारों का सिंचन करती है ताकि हमारा व्यक्तित्व आत्मोन्मुख न रहकर समाजोन्मुख बने। ऐसे विचार जब हमारे आचरण में उतरते हैं, तब हमारा जीवन राष्ट्र और समाज के लिए उपयोगी, प्रेरणादायी एवं संस्कारमय बनता है।


सनातन जीवन-दृष्टि हमें यह सिखाती है कि मनुष्य को अपने भीतर की दिव्यता को पहचानते हुए सक्रिय और जागरूक जीवन जीना चाहिए।सनातन धर्म यह नहीं कहता कि मनुष्य एकांगी जीवन जिए, केवल तप-जप करता रहे और संसार की समस्याओं से मुँह मोड़ ले। यदि हम केवल ध्यान-साधना में लगे रहें और दुष्ट आक्रमण करते रहें, तो यह धर्म के विरुद्ध है।

यह धर्म संतुलित जीवन का आह्वान करता है जिसमें आध्यात्मिक साधना भी हो और सामाजिक सक्रियता भी। यही इसकी युगानुकूल विशेषता और सार्वकालिक प्रासंगिकता है।भगवान् राम इसी शौर्य -प्रमंडित अध्यात्म की प्रासंगिकता को सिद्ध करते हैं वे पुरुषत्व को धारण कर नर -लीला करते हुए पुरुषोत्तम हो गये वे परिश्रम, विक्रम और शील  से संयुत शौर्य का स्वर हैं वे तो असंख्य सद्गुणों का निकर हैं


इसके अतिरिक्त प्रभाकर जी और शास्त्री जी का उल्लेख क्यों हुआ, मानव धर्म और सनातन धर्म एक कैसे हैं, सावित्री मन्त्र क्या है जानने के लिए सुनें

5.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 दिसंबर 2025 का उपदेश *१५९० वां* सार -संक्षेप

 स्वतंत्रता के भीषण रण में

लखकर जोश बढ़े क्षण क्षण में

काँपे शत्रु देखकर मन में

मिट जावे भय संकट सारा

झंडा ऊँचा रहे हमारा


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज पौष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 5 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५९० वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७२

जनमानस में राष्ट्र -भक्ति, सनातन धर्म के प्रति अनुरक्ति की भावना जाग्रत हो जाए

हम इस जागृति के लिए हर संभव प्रयास करें


 प्रभात काल की इस अद्भुत वेला का चिन्तन समस्याओं को सुलझाने के लिए है हमें प्रेरणा देने के लिए है हमें सदाचारमयी विचारों से आप्लावित करने के लिए है ताकि हमारे राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व  का उत्कर्ष हो सके तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में


केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है

जीवन जीने को दुनिया में अनगिन सुख सुर साज चाहिए......


यह जीवन रचनाकर्ता की एक अनोखी  अमर कहानी 

इसमें रोज बिगड़ते  बनते हैं दुनिया के राजा रानी

जीवन सुख जीवन ही दुःख है जीवन ही है सोना चांदी

जीवन ही आबाद बस्तियां जीवन ही जग की बरबादी

जीवन तीन अक्षरों का अद्भुत अनुबन्ध हुआ करता है 

केवल प्राणों का..



परमात्मा की कृपा से ही हमें मनुष्य का जीवन प्राप्त हुआ है

इसमें प्रतिदिन परिस्थितियाँ परिवर्तित होती रहती है चिरस्थायी कुछ नहीं होता l यह जीवन सुख और दुःख  दोनों का समन्वय है। मनुष्य का जीवन केवल जीवित रहने की क्रिया नहीं, बल्कि उसे ऊँचे आदर्शों, संवेदनाओं, रसों और सर्जना के माध्यम से पूर्णता देना ही उसका वास्तविक उद्देश्य है यह जीवन ईश्वर की एक अनुपम  दिव्य रचना है। हमें इसकी अनुभूति होनी चाहिए अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन भारत मां के भक्तों के मध्य प्रेम आत्मीयता सद्भाव के वातावरण के निर्माण द्वारा हम इसका सदुपयोग कर सकते हैं

हम अपने उद्देश्य का ध्यान रखें राष्ट्र को वैभवशाली बनाना हमारा कर्तव्य है l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज कुमार जी का उल्लेख क्यों किया

वह कौन था जो पहले स्वर्ग में तुंबुरु नामक एक गंधर्व था।जो रंभा नाम की अप्सरा पर मोहित हो गया था और उचित मर्यादा का उल्लंघन करने के कारण जिसे शाप मिला था। जिस शाप के फलस्वरूप वह राक्षस योनि में जन्मा जो भगवान् श्रीराम द्वारा  वध किए जाने पर  अपने पूर्व स्वरूप को प्राप्त हुआ जानने के लिए सुनें

4.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 दिसंबर 2025 का उपदेश *१५८९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 4 दिसंबर 2025 का उपदेश

  *१५८९ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७१

हम जो भी अपने कार्य कर रहे हैं उनमें मन लगाएं


संसार स्वभावतः अपूर्ण है—यहाँ इच्छाएँ अनंत हैं और परिस्थितियाँ परिवर्तनशील। मनुष्य जीवन भर इन्हीं अपूर्णताओं को पूर्ण करने का प्रयास करता रहता है परंतु यह अधूरापन अंतहीन है। उसे पूरा करने की चेष्टा में ही जीवन का अधिकांश भाग व्यतीत हो जाता है।


प्रातःकाल के जागरण ध्यान अध्ययन स्वाध्याय लेखन भजन पूजन व्यायाम से एक प्रकार से नये जीवन का प्रारम्भ होता है  इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि नित्य नया जीवन है और नित्य ही इस जीवन का समापन है 

 जीवन तो एक संग्राम की भांति विविध संघर्षों और चुनौतियों से भरा हुआ है। इन संघर्षों में सफलता प्राप्त करने के लिए केवल ज्ञान या भावना पर्याप्त नहीं होती, अपितु शौर्य, शक्ति और पराक्रम जैसे गुणों की आवश्यकता होती है यदि इन गुणों का अभाव हो, तो जीवन में आने वाले विघ्नों, अन्यायों और बाधाओं को पार करना कठिन हो जाता है। अतः जो व्यक्ति या समाज इन गुणों से युक्त होता है, वही संसार रूपी युद्धभूमि में विजयी हो पाता है। यही शौर्यप्रमंडित अध्यात्म है जिसे तुलसीदास जी ने मानस में अनेक स्थानों पर प्रकट किया है 

मुनि सुतीक्ष्ण से जब भगवान् राम कहते हैं 

अबिरल भगति बिरति बिग्याना। होहु सकल गुन ग्यान निधाना॥13॥

तुम प्रगाढ़ भक्ति, वैराग्य, विज्ञान और समस्त गुणों तथा ज्ञान के निधान हो जाओ।॥

तो मुनि कहते हैं 

अनुज जानकी सहित प्रभु *चाप बान धर राम*।

मन हिय गगन इंदु इव बसहु सदा निहकाम॥ 11॥॥

हे प्रभो! हे राम! छोटे भाई लक्ष्मण और सीता सहित *धनुष-बाणधारी* आप निष्काम (स्थिर) होकर मेरे हृदयरूपी आकाश में चंद्रमा की भाँति सदा निवास कीजिए॥ 11॥

भगवान् राम का धनुष बाणधारी होना हमें शौर्यप्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराता है यह रामत्व अद्भुत है जिसमें ऋषित्व सम्मिलित है इसी ऋषित्व ने भगवान् राम को अपने सिद्धान्तों और आध्यात्मिक शक्तियों के प्रयोग हेतु धनुष बाण सहित दर्शाया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों किया बड़ा ही C I D है वो

नीली छतरी वाला

हर ताले की चाबी रखे

हर चाबी का ताला.. गाने की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें

3.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 3 दिसंबर 2025 का उपदेश *१५८८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 3 दिसंबर 2025 का उपदेश

  *१५८८ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ७०

प्रातः काल शीघ्रोत्थान अत्यन्त आवश्यक है ताकि हमारा मानस उपदेशों के लिए सज्ज रहे


अरण्यकाण्ड में उपदेशों की  एक लम्बी श्रृंखला है जो अत्यन्त सारगर्भित और जीवनोपयोगी है। इसमें विविध पात्रों के माध्यम से जो संवाद हुए हैं, वे केवल कथानक को आगे ही नहीं बढ़ाते, बल्कि गहन शिक्षाएँ भी प्रदान करते हैं।  उदाहरणार्थ नारद द्वारा जयंत को, अनसूया माता द्वारा मां सीता को,अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् राम को,शूर्पणखा द्वारा रावण को,भगवान् राम द्वारा लक्ष्मण जी और मां सीता को, रावण द्वारा मारीच को उपदेश दिए गये हैं ये केवल संवाद नहीं, बल्कि नीति, धर्म, मर्यादा, विवेक, नारीधर्म, पराक्रम और जीवनदृष्टि के व्याख्यान हैं इन उपदेशों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि यह सम्पूर्ण संसार जहां जीव वियोग झेलता है और जिसे इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है कि

*संसार समंदर एक अबुझ आकर्षण है*

*उसको, जो दूर सुरक्षित छाया तट पर हो* 

*पर जो लहरों को झेल रहा हो किसीलिए*

*उसको वह भीषण भयद जटिल संघर्षण है*


 एक गुरु-शिष्य रूप व्यवस्था है जहाँ प्रत्येक पात्र, परिस्थिति और घटना किसी न किसी रूप में ज्ञान, जागरण का कारण बनती है 

अरण्यकाण्ड केवल वनगमन का कथानक नहीं, अपितु यह मानव जीवन की विविध जटिलताओं में मार्गदर्शन करने वाले उपदेशों का अमूल्य भण्डार है, जो हर युग में प्रासंगिक और प्रेरणादायक है। वर्तमान परिस्थितियों में तो इन उपदेशों की और अधिक महत्ता है l


इसके अतिरिक्त आचार्य जी को यात्रा करते समय किस प्रकार की बाधा का सामना करना पड़ा, केरल, कन्याकुमारी और पुरी का उल्लेख क्यों हुआ, अरण्य कांड और माया का क्या सम्बन्ध है बाजा बजाता कौन घूम रहा है जानने के लिए सुनें

2.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५८७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 2 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५८७ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६९

जिस पद पर आप हैं उसकी प्रतिष्ठा का सदैव ध्यान रखें


भगवान् राम का व्यक्तित्व अत्यन्त व्यापक, बहुआयामी और आदर्शों से परिपूर्ण है। वे जीवन के प्रत्येक पक्ष में एक महान् उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने रघुकुल की मर्यादा का पालन करते हुए प्रजावत्सल, धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय शासन दिया। उनका राजधर्म इतना उच्च था कि आज भी रामराज्य को आदर्श शासन-प्रणाली के रूप में स्मरण किया जाता है। उन्होंने पिता के वचन की मर्यादा रखते हुए राजसिंहासन का परित्याग कर वर्षों तक वनवास का कठोर जीवन जिया उनका जीवन भोग से नहीं, त्याग और तप से प्रकाशित हुआ।वे वनवास काल में विभिन्न ऋषियों के आश्रमों सहित अनेक स्थानों में धर्म-प्रसार, संवाद और प्रेरणा के स्रोत बने। उन्होंने अन्याय, अत्याचार और अधर्म के विरुद्ध युद्ध किया  उनका प्रत्येक निर्णय विवेकपूर्ण, यथार्थवादी और धर्मसम्मत रहा। वे नीति, मर्यादा और सत्य के गहन ज्ञाता थे।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस सहित अपने अनेक ग्रन्थों में यह भाव स्पष्ट किया है कि भगवान् राम  भगवान् विष्णु के अवतार  नहीं, अपितु स्वयं परम ब्रह्म परमात्मा के पूर्ण स्वरूप हैं।


आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥1॥


उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥

सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानि देहिं बर बाटा॥2॥


आगें रामु लखनु बने पाछें। तापस बेष बिराजत काछें॥

उभय बीच सिय सोहति कैसें। ब्रह्म जीव बिच माया जैसें॥1॥


भगवान् राम का अवतरण उस समय हुआ जब संसार में अधर्म, अन्याय और अत्याचार अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच चुके थे। उस युग में जो शक्तिशाली योद्धा थे, वे आत्ममुग्ध हो चुके थे और समाज की उपेक्षा कर रहे थे। जैसे कि राजा दशरथ और जनक l वे  किसी न किसी रूप में समाज से विमुख होकर व्यक्तिगत मोक्ष या आत्मकल्याण की साधना में लीन थे।


ऐसे समय में भगवान् राम ने अवतरित होकर यह प्रतिपादित किया कि केवल आत्मकल्याण पर्याप्त नहीं, अपितु समाज की रक्षा, धर्म की पुनःस्थापना और मर्यादा के पालन हेतु पुरुषार्थ, पराक्रम और अध्यात्म का संगठित समन्वय आवश्यक है उनका जीवन यही सिखाता है कि धर्म एकांत साधना में नहीं, अपितु समाज के लिए समर्पित कर्म में  प्रकट होता है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से स्पष्ट किया कि वह अध्यात्म, जो पराक्रम  से रहित है, अधूरा है। अर्थात् शौर्य -प्रमंडित अध्यात्म अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है l


भगवान् राम की आवश्यकता इस कारण थी कि रावण वरदानी और अभिशप्त दोनों था इस विषय को आचार्य जी ने कैसे स्पष्ट किया राम का रामत्व कैसे देश में व्याप्त है भारत का स्वभाव क्या है

भैया अभिषेक जी, भैया सिद्धनाथ गुप्त जी, भैया मनीष कृष्णा जी, भैया पंकज श्रीवास्तव जी का उल्लेख क्यों हुआ, हमारे विद्यालय के आचार्यों से हमारा आत्मीय सम्बन्ध भारत-भक्ति की भूमिका कैसे थी जानने के लिए सुनें

1.12.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 1 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५८६ वां* सार -संक्षेप

 भुजदंडों में बल करतल पर कर्म बिराजे 

यह तन आजीवन रग रग में पौरुष साजे

सजे भाव में देशभक्ति का अनुपम उत्सव 

कण कण में उत्साह सुधा का सागर गाजे...



प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 1 दिसंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५८६ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६८

इन सदाचार वेलाओं के तत्त्वों को समझने की चेष्टा करें 



मनुष्य का जीवन अमूल्य है अमूल्य का अर्थ है जिसका कोई मोल लगा ही नहीं सकता l मनुष्यत्व अद्भुत है l परमपिता परमेश्वर के मानस में जब मनुष्यत्व जाग्रत होता है तो कहता है एकोऽहं बहुस्याम् l

वह परमेश्वर वह ब्रह्म जो निराकार है, वह ही भक्तों की कृपा के लिए सगुण होकर श्रीराम रूप में अवतरित होता है 


उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥

सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानि देहिं बर बाटा॥2॥

राम ब्रह्म हैं लक्ष्मण जीव हैं और बीच में माया हैं जब ब्रह्म और जीव माया से अनुस्यूत होते हैं तभी संसार निर्मित होता है और जब तीनों का सामञ्जस्य होता है तभी संसार का तत्त्व सत्त्व ज्ञात भी होता है और आनन्द भी आता है यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है


भगवान् राम का जीवन समग्र रूप से लोकमंगलकारी आदर्शों की प्रतिमूर्ति है। उनके जीवन का प्रत्येक कण, प्रत्येक क्षण धर्म, मर्यादा, संयम, करुणा, शौर्य और सत्य की दिव्य गाथा से ओतप्रोत है। वे मानवता के चरम उत्कर्ष का प्रतीक हैं। स्थान-स्थान पर उन्हें यशस्विता प्राप्त हुई किन्तु उनके मन में अहंकार कभी नहीं आया l परिस्थितियां भांपकर आदेशों को सहज रूप से स्वीकारते रहे l

जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥

जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥


 बाल्यकाल से लेकर राज्यत्याग, वनगमन, रावणवध और राज्याभिषेक तक उनका सम्पूर्ण जीवन मर्यादाओं की सीमाओं में रहते हुए अवर्णनीय पुरुषोत्तमत्व का दिग्दर्शन कराता है।

भगवान् राम का जीवन न केवल भावात्मक श्रद्धा का विषय है, अपितु व्यावहारिक अनुकरणीयता का प्रतीक भी है। उनका जीवन एक जीवित ग्रन्थ की भाँति है, जिसका प्रत्येक पृष्ठ जीवन साधना का पथ बताता है।


जासु कृपा अज सिव सनकादी। चहत सकल परमारथ बादी॥

ते तुम्ह राम अकाम पिआरे। दीन बंधु मृदु बचन उचारे॥3॥



इसके अतिरिक्त रामलीला  क्या है अदीनत्व क्या है अखंड भारत हमारे लिए क्या है  विश्वामित्र राष्ट्र के हितैषी कैसे हैं जानने के लिए सुनें